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तीज-त्यौहार
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!!!......जो अपनी ऐतिहासिक जड़ों व् संस्कृति को नहीं जानते, उनकी सामाजिक पहचान एक बिना पते की चिठ्ठी जैसी होती है; ऐसे लोग सांस्कृतिक रूप से दूसरों की दार्शनिकता के गुलाम होते हैं| यह एक ऐसी संस्कृति को समर्पित वेबसाइट है जो "हरियाणव" के नाम से जानी जाती है|......!!!
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स्थानीय तीज-त्यौहार

संदर्भ: निडाना में तीज को एक साल में मनाये जाने वाले सब त्योहारों की शुरुआत माना जाता है और इसीलिए कहा जाता है कि "आ गई तीज, बो गई बीज"| तो इस तरह तीज गाँव का सबसे पहला त्यौहार है| ऐसे ही होली को साल भर के त्योहारों का आखिरी त्यौहार कहा गया है जो इस लोक्कोक्ति में झलकता है कि "आई होली, भर ले गई झोली" यानी अब अगला त्यौहार "तीज" ही आएगी तब तक कोई त्यौहार नहीं है| हालांकि इस अंतराल के दौरान एक-आध छोटे-मोटे त्यौहार आते हैं जैसे कि गेहूं की फसल कटाई की शुरुवात के लिए रखा गया "मेख" का दिन, जिसको कि पंजाब में "बैशाखी" के नाम से जानते हैं| इसके अलावा होली और तीज के बीच कोई बड़ा त्यौहार गाँव के लिए नहीं होता|

अब नीचे गाँव में मनाये जाने वाले हर त्यौहार का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत है| क्रमबद्ध यानी तीज से शुरू हो होली तक के गाँव में मनाये जाने वाले सब मुख्य त्यौहार| वर्तमान के त्यौहार: दिवाली के दिन फूल-जौं भाई के सर पे वारना, सावन माह में हरिद्वार से कावड़ लाना|



प्राचीन काल और वर्तमान दोनों के त्यौहार:


तीज (सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तारीख): यह बारिस, झूलों और घर की बनी मिठाइयों और पकौड़ों का त्यौहार है| पींघ-पाटड़ी-कोथळी-गुलगुले-सुह्वाली-नमकीन भुजिया-बतासे-मखाणे-शक्कर-पारे-पींघ ऊँची चढ़ा के सासू का नाक तोड़ना, बागों में झूले-झूलना, नीम पे निम्बोली लगना, वातावरण में सावन के लोकगीतों की स्वरलहरियों का तैरना इस त्यौहार की पहचान और इस उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न रस्म और रिवाज हैं| सावन में गाये जाने वाले गीतों की एक झलक इसी हिस्से के "लोकगीत-संगीत" पृष्ठ पे देखें|

तीज को गाँव में एक साल में आने वाले सब त्योहारों की शुरुवात माना जाता है, इसी के सन्दर्भ में "आ गई तीज बो गई बीज" की कहावत कही जाती है, जिसका मतलब है कि तीज आ गई है अब इसके साथ ही साल के त्योहारों की शुरुवात हो गई है, अब एक के बाद एक त्यौहार लगातार आयेंगे और मनाये जायेंगे|


रक्षा-बंधन (सावन माह की पूर्णिमा): भाई-बहन के अटूट प्यार का त्यौहार जब बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी (पोह्ची) बांधती हैं और भाई बहन की हर संकट में मदद करने का प्रण लेते हैं| इसमें भाई को टीका लगाना, फिर राखी बांधना और मिठाई खिलाना और फिर भाई का बहन को शगुन देना जिसके साथ उसके दुःख-सुख में हर पल उसके साथ खड़े रहने का वचन दोहराया जाता है| इस त्यौहार की महता इस बात से और भी बढ़ जाती है कि इस दिन सार्वजनिक वाहनों खासकर हरियाणा सरकार की बसों में बहनों के लिए यात्रा निशुल्क होती है|


गूगा नवमी: इस दिन बहनों के द्वारा भाइयों के हाथों पे रक्षा-बंधन के दिन बाँधी गई राखियों को उतार के गूगा जी को सौंपने का दिन होता है| गाँव की गली-गली में गूगा जी के प्रवर्तक डेरू और मोर-पंख वाली नीली पताका ले, गीत गाते हुए आपकी राखी पताका पे बंधवाने आते हैं| यह त्यौहार रक्षा-बंधन के ठीक नौ दिन बाद बध्विन माह की कृष्ण पक्ष की नवमी को आता है|

ताखड़ी-ताखड़ी खेलना: इस दिन को व्यापारिओं का भी दिन कहा जाता है| बच्चे कुम्हार द्वारा मिटटी के बनाए गए ताखड़ीनुमा पलड़ों, सूतली या धागे रस्सी और छ-इंची लकड़ी की डंडियाँ ले तराजू बनाते हैं और फिर उनके साथ ताखड़ी-ताखड़ी खेलते हैं| मुझे डर है कि बदलते परिवेश ने इस विधि को भी लील ना लिया हो, हालाँकि मेरे बचपन के जमाने तक मैंने, मेरे भाई-बहनों और दोस्तों ने ये खूब खेला हुआ है|


दशहरा (अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं): दशहरा भगवान राम जी की रावण पर विजय की याद में मनाया जाता है| हालाँकि निडाना में रामलीला का आयोजन नहीं होता लेकिन लोग जींद और आस-पड़ोस के जिस भी गाँव में रामलीला होती है वहाँ देखने जाते हैं| इस त्यौहार के स्थानीय आकर्षण होते हैं:

लड़कियों द्वारा सांझी-रंगोली बनाना, सांझी भिन्न प्रकार की होती हैं जैसे: गोबर-गारा-मडकन-कपास की सांझी, मोज़े-सितारे और रंगों की सांझी| सांझी बनाने की तैयारियां दस-दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं|

फिर दशहरे वाली रात सांझी को लडकियां इक्कट्ठी हो जोहड़ों में बहाने जाती हैं|

लड़के गाँव के जोहड़-कल्लर-गौरों पे खुलिया लाठियों के साथ चाँद की चांदनी रातों में गींड खेलते हैं| हालाँकि आज बदलते परिवेश में ये चीजें कम जरूर हो गई हैं परन्तु आज से पांच-सात साल पहले तक भी इन चीजों को ले के युवक-युवतियों का उत्साह देखते ही बना करता था|

पुराने मटके फोड़ना: दशहरे की रात गाँव के घरों में जितने भी पुराने मटके होते थे उनको उठा कर गली में पटका जाता था और फोड़ा जाता था ताकि पीने के पानी के पुराने बर्तनों की जगह नए बर्तन ले सकें| और युवकों में इस बात की होड़ लगती थी कि किसने सबसे ज्यादा मटके फोड़े|


कार्तिक स्नान: कार्तिक माह के प्रथम पक्ष की रातों को गाँव की बहु-बेटियां कुँए-तालाबों पर स्नान टोलियाँ बना कार्तिक स्नान के गीत गाती हुई स्नान करने जाया करती थी| इस स्नान के इतने इंतजाम होते थे कि हर कुँए-जोहड़ पर बुर्जियां ओर बुर्ज बनाए गए थे, जोहड़ों में सीढियां उतारी गई होती थी ताकि हमारी बहु-बेटियों के स्नान को सुविधा हो सके|

इस वक्त की ख़ास बात यह होती थी कि जिस पहर में बहुत-बेटियां स्नान करने जाती थी, गाँव का हर युवक-बुजुर्ग उस पहर के दौरान कुँए-तालाबों के पास से भी नहीं गुजरता था| आज के दिन वैसे तो वो वाले कुँए-तालाब ही नहीं रहे और जहां रहे वहाँ भाईचारा नहीं रहा और बदलते परिवेश ऩे सब-कुछ लील लिया है, वरना आज से दस साल पहले तक कार्तिक की रातों में गाँव के चारों ओर के कुँए-जोहड़ों से लोकगीतों की स्वर-लहियाँ छाल मारा करती थी|

और मधुरिमा भरे वातावरण और सोहार्द का सबसे बड़ा मूल होता था गाँव के "गाम और गोत" का नियम| जैसा कि गाम और गोत के नियम के अनुसार गाँव की छत्तीस बिरादरी की बेटी आपकी बहन बताई गई और मानी गई तो कोई चाहकर भी उधर जाना चाहता था तो इस शर्म में अपने-आप कदम रोक लिया करता था कि नहीं उधर तो मेरी बहनें होंगी, मैं उधर कैसे जा सकता हूँ| क्या मुकाबला करेगा आज का युग उस युग का, फिल्मों और सिनेमाओं ऩे सब कुछ लील लिया या कहो कि लीलने के कगार पे पहुंचा दिया है|


दीवाली (कार्तिक मास की अमावस्या): दिवाली पूरे गाँव में धूम-धाम से मनाई जाती है| दिवाली के ख़ास आकर्षण इस प्रकार हैं:

  1. साल भर से खेतों से इक्कट्ठी की हुई गीदड़ की पीढ़ी (कुर्सी) को मिटटी का तेल दाल जलाया जाता है|

  2. घर में मिटटी के नए बर्तन खरीदे जाते हैं, जिनमें मटका, काप्पन, दिए, चुग्गे प्रमुख होते हैं| मटका-काप्पन पीने के पानी के लिए होते हैं और दिए-चुग्गे घी-तेल के दिए जला घर की मुंडेरों पे लगाए जाते हैं|

  3. सार्वजनिक जगहों पर दिए जलना: गाँव के हर घर का फर्ज होता है कि वो कम से कम एक दिया गाँव की चौपाल (परस) और चौराहों पे जरूर जला के आता है|

  4. घर में दिए जलाने का नियम: घर की पानी निकासी की नाली यानि मोरी के द्वार पर एक दिया और घर की धन की तिजोरी पर एक घी के दिए जोत जरूर जलाई जाती है|

  5. पशुओं के लिए ख़ास: दिवाली के दिन से एक दिन पहले यानी आधी-दिवाली जिसको गाँव में गिर्डी कहते हैं को दिन में घर के सारे पशुओं को जोहड़ों में नहला के लाया जाता है| फिर उनके सींगों और खुर्रों पर तेल लगाया जाता है| फिर उनके लिए साल भर से खेतों से इक्कट्ठे किये हुए मोर-पंखों और रस्सी की बनी गांडली पहनाई जाती है| और फिर अगले दिन पूरे गाँव वालों की नजर इस बात पे होती है कि किसके जानवर सबसे ज्यादा सुन्दर लग रहे हैं| हालाँकि कि बदलते परिवेश में इसको ले लोगों में उत्साह भी घटता जा रहा है और लोग मोर-पंख की अपने हाथों से बने हुई गंडलियों की जगह आजकल बाजारू मालाएं ला के पहना देते हैं|

  6. पटाखे-चलाना: छोटे बच्चे इस दिन रात को पटाखे चलाते हैं और फुलझड़ी फोड़ते हैं|

  7. हीडों हाथों में ले गाँव की फेरी निकालना: हालांकि पहले इसमें अधिक लोग भाग लेते थे लेकिन आज कल भी मेरे जैसे बचे हैं जिनमें हीड़ो का नाम सुनते की रोम-रोम मचल उठता है और सहसा मुंह से फूट पड़ता है "हीड़ो रै हीड़ो, आज गिर्डी तड़कै दिवाली हीड़ो रै हीड़ो"....यह स्वर-भेरी होती थी जिससे गाँव की गलियाँ गूँज उठती थी| पता नहीं लोग क्यों आज के जमाने को ज्यादा शालीन और सभ्य बताने पे तुले रहते हैं जहां की तीज-त्योहारों को सामूहिक रूप के मनाने के नाम पर सबकी नानी सी मरी दिखती है|

  8. खील-बताशे-हलवा-खीर खाना: अब जब इतनी साड़ी चीजें जिस त्यौहार पे होती हों तो भला फिर खाने-पीने की बात पीछे क्यों रहे| हर तरह के पकवानों की खुसबू हर घर से निकलती है फर्क सिर्फ इतना है की आज के जमाने में हर कोई अपने घर में घुसा खाता है पहले लोग झोली भर के गलियों में निकल मिल कर खाते थे|


ईद: गाँव के मुस्लिम समुदाय का सबसे मुख्या त्यौहार है| इस दिन हर भाई एक दूसरे के गले मिल अल्लाह की अरदास करता है|

देह-उठनी ग्यास (मंगसर माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी): वो दिन जिस दिन के बाद से ब्याह-शादियों का शीतकालीन स्तर शुरू हो जाता है| इस अवसर के एक मुख्य लोकगीत का मुखड़ा: "ओळएं-कोळएं धरें जंजीर, जियो दुल्हन तेरे बीर बीर"| इस दिन गुड़ या चीनी के मीठे चावल बनाए जाते हैं| और शादी वाले घर में शादी के दिन से पहले भी मीठे-चावल बनते हैं जिनको खुद भी खाया जाता है और बांटा भी जाता है| इन चावलों को बरात के नाम के चावल कहा जाता है|

मक्र-शक्रान्ती: बड़े बुजुर्गों की मान-मनुहार का त्यौहार| इस त्यौहार के ख़ास आकर्षण:

  1. सुबह उठते ही हर किसी को स्नान करना होता है|

  2. घर के आगे आग सुल्गानी होती है जिसपे कि गली में आते-जाते लोग ठंड में कंपकपाते अपने हाथ-पैर शेंक सकें|

  3. अपने सामर्थ्य अनुसार दान-पुन करना होता है, जिसमें की गाँव की डूमनी को सूट और शगुन देना प्रमुख होता है|

  4. नई-नवेली दुल्हनें घर और आस-पड़ोस के बुजुर्गों (बूढ़े-बूढ़ियाँ दोनों) को शाल-कम्बल-चद्दर भेंट करती हैं और बदले में सीघ्र ही संतानवती होने का वर और शगुन पाती हैं|

  5. पुराने जमाने में जब चरखे होते थे तो औरतें इक्कट्ठी हो चरखे काता करती थी और बच्चे आसपास खेला करते थे और सब रेवड़ी-मूंगफली खाया करते थे, पर अब तो वो नज़ारे सिर्फ ख्यालों के हो के रह गए हैं| पता नहीं लोग नए जमाने के नाम पे पुराने जमाने का इतना खुलापन और सोहार्द भी कैसे दांव पे लगाते जा रहे हैं कि किसी के पास अपने गाँव-ननिहाल जा इन खुशियों को मनाने तक की न तो फुर्सत और न ही उत्साह|

  6. नई ब्याही लड़कियों की ससुराल भाइयों का सीधा ले के जाना|



बसंत-पंचमी: यह त्यौहार बसंत ऋतू के आने, पेड़-पौधों और फसलों में नए अंकुर फूटने की ख़ुशी में मनाया जाता है| इसी दिन दीन-बंधू सर छोटूराम की जयंती भी मनाई जाती है|

होली-फाग (फागुन माह की पूर्णिमा): गाँव का सबसे बड़ा त्यौहार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी| लोगों में इस त्यौहार का जोश एक सप्ताह पहले से ही चढ़ना शुरू हो जाता है| इस त्यौहार के ख़ास आकर्षण:

  1. होली-फाग पे दादा खरक रामजी पूजा करके आना| वहाँ से आते हुए ट्रेक्टर-ट्रोलियों में दौड़ होना| ट्रोली के पिछले हिस्से में मिटटी-पानी भर के चलना और आने-जाने वाले हर इंसान को पानी से सरोबार करते आना| साथ में औरतों का रंग भरे गीत गाना माहौल में अति-उत्साह भर देता है| मेरे जैसे बेवकूफों के सर तो इसकी दीवानगी चढ़ के बोला करती थी लेकिन आज भी इस उत्साह में उतनी ही खुमारी देखी का सकती है|

  2. गाँव में एक सप्ताह पहले से ही औरतों का खेतों में कोरडे साथ ले के चलना और जो फंसा उसको वहीँ घेर धुनाई शुरू कर देना|

  3. फाग वाले दिन युवकों का भाभियों को खुली चुनौती देना और भाभियों की ये जिद्द की मेरे आगे देखूं कौन ठहर सकता है का जोश और उमंग से लबालब वातावरण|

  4. मेरे जैसे सरफिरों द्वारा स्वांग-नौटंकियाँ करना, औरतों के कपडे पहन, हाथ में कोरड़ा ले मर्दों की बैठकों में घुस उनका बकल उधेड़ना यानी भाभी बन अपने चाचा-ताऊ-भाइयों को कोरडों से पीटना| और फिर भेद खुल जाने पर पैरों में पहिये लगा भागना| लेकिन सबसे बड़ी बात भेद खुलने पर भी किसी का बुरा ना मानना|

  5. गाँव के युवकों का टोली बना, ढोल ले पूरे गाँव की फेरी लगा के आना और पूरे गाँव की भाभियों को चुनौती देते चलना और फिर किसी अच्छी खाई-पीई भाभी का सबकी पात्ती सी खिंडा देना (पात्ती सी खिंडा देना का मतलब पूरे दल में खलबली मचा तितर-बितर कर देना) और फिर से मौका देख टोली का एक जुट हो जाना| भाई सच कहूँ तो मैंने तो यह लेख लिखते-लिखते ही जैसे होली खेल ली हो|

  6. दादा खरक रामजी पे कुश्ती दंगल में भाग लेना व दंगल देखना|


सीली-सात्तम (चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी): सीली-सात्तम को माना जाता है कि होली-फाग से पहले से भी चला देवर-भाभी का कोरडे का खेल इस विराम ले लेता है यानी होली-फाग के भी सात दिन बाद| और इसी के साथ वो कहावत लागू हो जाती है कि "आई होली भर ले गई झोली"| इसके बाद सबसे बड़े स्तर पर मेख को ही माना जाता है वरना अगला बड़ा त्यौहार आती है अगली तीज, जो त्योहारों के मौसम का नया बीज बो के जाती है| और फिर यह सिलसिला साल-दर-साल यूँ ही चलता जाता है|

मेख (बैसाखी का हरियाणवी रूप): मेख का दिन गेहूं की पक चुकी फसल की कटाई करने का सबसे सटीक दिन माना गया है|


राष्ट्रीय त्यौहार: इन त्योहारों के अलावा गाँव में सारे राष्ट्रीय सरकारी त्यौहार जैसे की स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, गाँधी और शास्त्री जयंती भी मनाई जाती हैं|


राजकीय त्यौहार: हरियाणा राज्य सरकार के त्यौहार जैसे कि हरियाणा शहीदी दिवस, हरियाणा जयंती भी बड़े चाव से गाँव में मनाये जाते हैं|


शहीदी दिवस: आजादी की लड़ाई में शहीद हुए शहीदों की जयन्तियां जिनमें मुख्यत: नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जयंती, शहीद भगत सिंह जयंती, शहीद उधम सिंह जयंती, चौधरी छोटू राम जयंती मनाई जाती हैं|


पौराणिक व धार्मिक जयंतियां: वैदिक देवी-देवताओं में मुख्यत: हनुमान जयंती, राम-नवमी, जन्माष्टमी (भगवान कृष्ण का जन्मदिन -बध्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी), परशुराम जयंती, रविदास जयंती, कबीरदास जयंती, बाल्मीकि जयंती, शिवरात्रि बड़ी उमंग से मनाई जाती हैं|



गाँव के मेले और धार्मिक आयोजन:


गाँव के लोग निम्नलिखित भिन्न-भिन्न मेलों में गाँव के अंदर-बाहर आयोजन पर बड़े उमंग-उत्साह से भाग लेते हैं| तीज के झूलों में सावन के गीतों के मेले, कार्तिक स्नान के बेलाएं, होली-फाग के दिन दादा खरक रामजी का होली मेला व पूजन, गूगा नवमी का मेला, दशहरे की रामलीला, चाँद की चांदनी में गींड खेलना और सांझी का जोहड़ में तैरा के आना, भिन्न-भिन्न अखाड़े-दंगलों के आयोजन, दादा श्याम जी का मेला, भन्भौरी का मेला, दादा नगर खेड़ा का मासिक मेला-पूजन, दादी चौरदे का मेला, गाँव की देवी का मेला - सीली सात्तम, सूर्य-ग्रहण मेला|

चेतावनी: उपरलिखित त्यौहार मनाने के तरीके निडाना गाँव में मनाये जाने वाले विभिन्न त्योहारों के नए-पुराने तौर-तरीकों का मेल है इसलिए संभव है कि आपके गाँव, शहर या क्षेत्र में इनको मनाने के तरीकों में अंतर हो| इसलिए हर बच्चे-जवान-बुजुर्ग को बताना जरूरी हो जाता है कि इन त्योहारों को खेलते या मनाते वक़्त अपने अंदर के शैतान को काबू कर, बदले-द्वेष की भावना को दूर रख ही इनमें शामिल हों या लोगों को शामिल करने की सोचें अन्यथा कभी-कभी हंसी-हंसी में फांसी भी हो जाया करती है|


विशेष: वक्त के साथ इस विषय पर और जानकारी जोड़ी जाती रहेगी|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 20/04/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

  • Sulochana Kundu

  • Sunita Kundu

  • Kusum Malik

  • Darshana Malik

  • Santosh Malik

  • Vimla Devi

  • Uday Sheokand

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