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रत्नावली
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!!!......जो अपनी ऐतिहासिक जड़ों व् संस्कृति को नहीं जानते, उनकी सामाजिक पहचान एक बिना पते की चिठ्ठी जैसी होती है; ऐसे लोग सांस्कृतिक रूप से दूसरों की दार्शनिकता के गुलाम होते हैं| यह एक ऐसी संस्कृति को समर्पित वेबसाइट है जो "हरियाणव" के नाम से जानी जाती है|......!!!
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रत्नावली 2012
रत्नावली 2012: हरियाणवी संस्कृति का महाकुम्भ

रत्नावली: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग द्वारा गत 27 वर्षों से आयोजित रत्नावली उत्सव हरियाणा की लोक संस्कृति का वह समारोह है जहां पूरे प्रदेश के युवा कलाकार 27 प्रतियोगी विधाओं में अपने संस्थान का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन विधाओं के साथ-साथ हरियाणा के प्रसिद्ध कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियाँ देते हैं।

1966 में प्रदेश बनने से आरंभ हुए सांस्कृतिक मंथन के पश्चात, अपनी तरह के इस अनूठे अभियान को वर्ष 1985 में मंच पर उतारा गया और आज यह चार दिवसीय महाकुंभ देश-विदेश में हरियाणा की लोक संस्कृति और कला के लिए जाना जाता है। विश्वविद्यालय प्रांगण में बने छह मंचों पर 3000 से ज़्यादा प्रतिभागी कलाकार और लगभग 12000 से 15000 की संख्या में संस्कृति प्रेमी इसमें भागीदार होते हैं।

रत्नावली ने इन 27 वर्षों में अपने कुशल प्रबंधन और सफल योजना शैली से अनेक विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों को प्रभावित किया है। गुरु गोबिन्द सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (नई दिल्ली), चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा, दिल्ली विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से संबद्ध कई संस्थानों ने अपने छात्रों को रत्नावली पर शोध करने के लिए भेजा है, साथ ही इन युवाओं ने रत्नावली के आयोजन में हाथ भी बंटाया है।

रत्नावली की यह महायात्रा कई पड़ावों से होकर आयी है। स्थापित कलाओं और शैलियों के हर मापदंड पर खरा उतरते हुए रत्नावली ने अपनी विधाओं में साहित्य से लेकर सामान्य ज्ञान, नाट्य से लेकर हास्य, नृत्य से लेकर गीत-संगीत, लोक नाट्य से लेकर लोक धुन-और ललित कलाओं (फ़ाइन आर्ट्स) को भी अपना बनाया है। हरियाणा का लोक नाट्य-सांग- रत्नावली के माध्यम से आज जीवंत हो चुका है। सांग की प्रतियोगिता में केवल छात्र ही नहीं बल्कि छात्राएँ भी समान रूप से प्रतिभागिता करते हैं और एक परिपक्व संस्कृति का प्रमाण देते हैं।
लुप्त होती संगीत शैलियों और धुनों को फिर वापस लाने के लिए गत वर्ष से सांगीत संध्या का आयोजन आरंभ हुआ है। चौपाल विधा दो वर्षों से गाँव के जीवनऔर विचारधारा को मंच पर ला रही है। रागनी, गज़ल, हास्य नाटिका, कविता व भाषण, पेंटिंग और अन्य प्रदर्शनियाँ अनायास ही मन मोह लेती हैं। रत्नावली दशक भर से हरियाणवी पॉप सोंग की विधा से परचम लहरा रही है। हर साल एक नयी विधा जोड़ी जाती है। इस वर्ष, एक सफ़ल कार्यशाला के पश्चात, ‘रसिया’ नृत्य एक प्रतियोगिता के रूप में आ रहा है।

अपनी हरियाणवी भाषा में इतने कार्यक्रम, और वो भी पारंगत कलाकारों को निर्णायक बनाकर, रत्नावली के मंचों पर प्रस्तुत होते हैं। विशेष यह भी है कि रत्नावली के आयोजन में युवा छात्र-छात्राएँ ही मुख्य भूमिका निभाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों- खेल, सिनेमा, लेखन, थिएटर इत्यादि में स्थापित हरियाणा की विश्वप्रसिद्ध हस्तियाँ भी रत्नावली का आनंद उठाने पहुँचती हैं। आधुनिकता के साथ चलते हुए रत्नावली की सोशल नेटवर्किंग और इंटरनेट पर प्रभावी उपस्थिती है।

अनूप जी की यह टीम रत्नावली युवा है- सब युवा रत्नावली स्वयं सेवकों की ओर से हम अनूप जी का और हर उस बड़े का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने हमें हमारा अपना सब लौटा दिया-जो खो रहा था...!

जिस कौम को अपनी विरासत का अहसास नहीं होता उस कौम का कोई इतिहास नहीं होता।

आप सादर आमंत्रित हैं।
रत्नावली कार स्टीकर

इस बार के नए ख़ास आकर्षण: इस बार आपके लिए रत्नावली थीम की ख़ास टी-शर्ट्स भी बनवाई गई हैं जो आपको रत्नावली उत्सव के चारों दिन उपलब्ध रहेंगी| आपकी पसंद पर आपके लिए आपके ऑर्डर पर| टी-शर्ट्स के दो सैम्पल आप दाईं ओर देख सकते हैं| आपकी कारों-गाड़ियों पर भी रत्नावली का रंग रंगे उसके लिए भी ख़ास रत्नावली के कार स्टीकर बनवाये गए हैं, जिन्हें आप रत्न्वाली उत्सव स्थल से ऑर्डर पर प्राप्त कर सकते हैं| दाईं ओर की तस्वीर इसी का सैम्पल है|


रत्नावली में प्रस्तुत होने वाली विधाओं का संक्षिप्त परिचय:


संगीत संध्या:

पंडित लख्मी चंद, उनके गुरु मान सिंह जी, राम किशन ब्यास जी, खेमा जी, धनपत जी, चंद्र बादी जी, तब से अब तक सभी पूजनीय कला साधकों ने लोक संगीत को निखारा है...सांगीत संध्या उसी समृद्धि की प्रतीक है। हमारे प्रदेश में बहुत सी गायकियाँ हैं। पर जब भी बात होती है तो मान लिया जाता है के रागणी ही है॥

सांग से पहले सांगीत था और उस से पहले भगत.....अनूप लाठर जी के संकलन में लगभग 150 धुनें आज भी हैं और उनके अनुसार कम से कम 500 या इस से भी ज़्यादा धुनें हरियाणा में हैं.... इन्हीं से गीत बनते हैं....आप देखिये 2011 की पहली सांगीत संध्या....लगता है अपने इष्ट का पूजन यही होता है...
प्रभु नाम से शुरू करते हैं- सबसे पहले मंगलाचरण , फिर भवानी मनाते हैं...चमोला होता है, हाथरसी चमोला भी होता है,पानीपती भी, थानेसरी भी....पटका होता है...रसिया शैली है गायन की... झूलना, कड़ा, सवैया, चौपाई, इत्यादि....शास्त्रीय संगीत की तरह हरियाणा के लोक संगीत के भी घराने हैं-शैलियाँ हैं...

One video on Sangeet Sandhya Program

रसिया:

रसिया नृत्य हरियाणा के फ़रीदाबाद, पलवल, होडल और मेवात क्षेत्र का नृत्य है। हरियाणा के अन्य नृत्यों से यह थोड़ा सा भिन्न है- ख़ास बात यह है कि रसिया नृत्य में दायाँ पैर आगे चलता है और इसमें ठुमका भी एक तरफ ही लगाया जाता है... पर एक बात बिल्कुल सांझी है रसिया में- वो है भरपूर भरपूर भरपूर मस्ती...रसिया की गायन शैली को 'गाहे' कहते हैं|

One video on Rasiya

रत्नावली के लिए एक दर्शक का साक्ष्य: मैने रत्नावली महोत्सव को 2 बार करीब से देखा है, क्योंकि मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग की छात्रा हूँ, इस लिये मुझे लोक नृत्य, नाटक आदि देखना बहुत पसंद है। मेरा इस प्रदेश से वैसे तो कोई नाता नहीं है। ज्यादा कुछ हरियाणा की संस्कृति का ज्ञान नहीं है, लेकिन बावजूद इसके हरियाणा लोक नृत्य मुझे बहुत भाते हैं। मेरे हिसाब से यह एक अच्छी शुरुआत है। रत्नावली के रूप में हरियाणा की संस्कृति धरोहर को बचाऐ रखने के लिये और बढ़ाने के लिये। यूं कहें कि यह एक अनोखा व अनूठा महोत्सव है जो पूरे भारत वर्ष में सिर्फ और सिर्फ हरियाणा राज्य में मनाया जाता है।

आज से करीब 27 साल पहले शुरु किया गया यह अनोखा महोत्सव जिसे रत्नावली का नाम दिया गया, किसी को अंदाजा भी नहीं था कि इतना फले फूलेगा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने एक अच्छी पहल की अपनी धरोहर, कला, संस्कृति को देश-विदेश भर के लोगों तक पहुंचाने का ताकि जो इस प्रदेश की कलाकृति से परिचित न हों उन्हें ज्यादा से ज्यादा हरियाणा को जानने का मौका मिले। बहुत अच्छे से सजाकर व संजोकर यह महोत्सव दर्शकों के लिये पेश किया जाता है। पूरे प्रदेश से यहां छात्र छात्राऐं अपनी प्रस्तुति लेकर आते हैं जोकि हरियाणवी परिधान, हरियाणवी भाषा और हरियाणवी अंदाज से कूट कूट कर भरा होता है। और सच में इतना मन मोहक भी कि दर्शक बिना थिरके रह नहीं सकते।

इस दौरान 6 जगहों पर अलग अलग कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां चलती हैं। जिसको जो कार्यक्रम देखने होते हैं वह उस स्थान पर पहुंचकर प्रस्तुतियों का लुत्फ उठाते हैं। 4 दिनों तक चलने वाले रत्नावली में हम भूल जाते हैं सब कुछ, बस सामने होता है एक ऐसा भंवर जिसमें अनेकों रंग के कलाकार अपने नृत्य, रंग बिरेंगे परिधानों से सबका मन मोह लेते हैं। यहां पर हर कार्यक्रम की प्रस्तुति मे हयिाणा की बोली व हयिाणवी महक है, या यूं कहें कि इसका अपना अलग ही मजा है।

हरियाणवी पॉप कहने को पॉप है, लेकिन हरियाणवी तडक़ा जिसमें सुर संगीत गायिका, नाच सब कुछ मिलकर बनता है हरियाणवी पॉप। शायद यह लोगों को इतना भाता है कि लोग प्रतिभागियों के साथ झूम उठते हैं।

हरियाणा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित रत्नावली में इसके अलावा जो बात मुझे अधिक पसंद आई वह थी हरियाणवी भजन की मनमोहक धुन। इसमें मनमोहक रंग भरा प्रदेश भर से आए प्रतिभागियों ने। सिर्फ यही नहीं कि हरियाणवी पॉप में ही लोगों ने अपनी रूचि दिखाई , इस माहेत्सव में प्रस्तुत अन्य नाटक, भजन, भाषण में भी लोगों ने बढ़ चढ़ कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। सांग तो जैसे लोगों के हरियाणा के बड़े-बुजुर्गों के दिलों में बसता है। इसके लिये खास मंच बनाया जाता है, जहां पर सांग की प्रस्तुति होती है। सांग के लिये उत्सुक बड़े बुजुर्ग, माताऐं बहनें आदि लोगों को देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि आज हमारी नई पीढ़ी न सिर्फ़ पॉप का लुत्फ उठाती है, बल्कि हरियाणा के सांस्कृतिक सांग से भी आकर्षित हो रही है।

अनेकों त्यौहार महोत्सव हर जगह मनाऐ जाते हैं, लेकिन रत्नावली सच में कुछ खास और अलग है। इस महोत्सव से मुझे ऐसा आभास होता है कि जैसे पूरा प्रदशे इस महोत्सव के माध्यम से अपने विचार, संस्कृति, परम्परा, धरोहर को बचाने, सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहा है। एक अपनेपन की महक, भावना इससे मुझे लगती है। सब मिलजुल कर इस महोत्सव को मना रहे हैं। हर साल मनाया जाने वाला इस तरह का कार्यक्रम जिसकी बेसब्री से सभी प्रदेश वासियों को इंतजार रहता है। तीन चार दिनों तक चलने के बाद एक उम्मीद जताई जाती है कि अगले साल फिर से उसी उर्जा उम्मीद, जोश, खुशी के साथ मिलने का और एक नए रंग रूप में रत्नावली की यादों को संजोने समय चलता रहता है। लेकिन अच्छी यादें हमेशा के लिये कैद हो जाती हैं। रत्नावली एक ऐसी ही मीठी याद है जब तक इस प्रदेश का अस्तित्व रहेगा लोग रत्नावली को हमेशा अच्छी याद की तरह याद करते रहेंगे- भागीदार बनते रहेंगे!


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेखक: फूल कुमार मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 27/10/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

  • श्री सुनील कौशिक

  • श्री प्रवीण शर्मा

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रत्नावली 2012 कार्यक्रम सारणी
रत्नावली के अद्वितीय क्षण - कैमरे की एक नजर
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
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“लाडो को लीड दें”
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