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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
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साम्मण-तीज-2020
 
रय्म-झ्य्म की न्यरोळी झड़ी, पीन्घां की चरड़-मरड़, कोथळीयों के लारों-लंगारों के संग-संग बाहणों की पोहंचियों के संदेशों-वचनों का मिन्हा

साम्मण अध्याय 3 - 'हरयाणवी तीज 2020'

छोरी गावैं गीत सुरीले, झूल घाली सामण की - तीज के त्यौहार और हरियाणवी संगम की एक झांकी

Pronunciation: सामण/साम्मण (Hariyanvi), श्रावन/सावन (Hindi), Saamman/Shrawan (English)

बाबत: "साल के इस मिन्हे का हरियाणे (आज का हरियाणा, हरित-प्रदेश, दिल्ली अर उत्तरी राजस्थान) खात्तर के मतलब अर अहमियत हो सै"
शक्कर पारे गिरी छुआरे लाङङू और सुहाली घी की
घर- घर ते ये चालू होरी लाङ कौथली बेटी धी की
सारा कुनबा राजी हो रया बांट देखरे सब मीं के सी
सुखी तीज मनाऊ कयूकर मीं का मौका साढ ले गया
हे परदेशी गेल मेरे बांध कयू ना हाङ ले गया।

मौज- मस्ती से भरपूर सावन महीने की अमावस के तीसरे दिन अपनी मस्ती लुटाता हुआ 'तीज' का त्योहार आता है। हरयाणा को सांस्कृतिक पहचान देने वाले त्यौहारों में से 'तीज' पर्व सबसे महत्वपूर्ण व मुख्य है। हरयाणावासी इस त्योहार का बङी धूम-धाम व दिल खोलकर स्वागत करते है। बच्चो मे, महिलाओ मे, बुजूर्गों में और सबसे अधिक किसानों में इस पर्व का चाह बहोत पहले ही चढ जाता है। चैत और बैसाख में गेंहू की कटाई के बाद लोग सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार करते है, क्योकि इसी महीने से त्योहारों की व हरयाली की शुरुआत होती है। इस सावन के महीने में धूल, गर्द, मिट्टी सब दब जाती है, हवा शुद्ध हो जाती है, पेङो पर नये- नये पत्ते फूटने लगते है। हाली के लिए बङी राहत लेकर आता है, यह रंगीला, हरया- भरया त्योहार, जिसमें किसान जीरी, ज्वार, उङध, मूंग, बाजरा, मक्की, हरङ आदि सब उगाता है। हाली के जीवन में अन ही उसका धन है। जमींदार इसी महीने में फलता फूलता है। खेती की शुरुआत इसी पर्व, इसी त्योहार से होती है। कहावत कतई सही है:- " आगी तीज अर बोगी बीज।" सब क्या ए का बीज बोके जा है या तीज। मौसम में इतनी ताज़गी आजा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि नाह- धोहकर सिंगार करके हरयाली खुद-ब-खुद हमारे सामने खङी हो। हरयाली की प्रतीक हमारी सबकी चहेती यह तीज। पहले हमारे घर की लडकिया, बहुएं कुएं, जोहङ, खेतों आदि से चिकनी मिट्टी लेकर आती थी, उस मिट्टी मे गोबर मिलाकर, पहले कच्चे घरों मे पूरा चूल्हा, साल लीपकर खाना बनाती थी। ऐसे उस स्थान को पवित्र स्थान माना जाता था, जहाँ फिर सरसों के तेल में सुहाली, पूङे, गुलगुले, खुरमें आदि मिठाइयां बनाई जाती थी। घर की औरते नहा- धोकर इन्ही का प्रसाद दादा खेङा, दादा भैया, थान पर चढाती है। पहले सांवन आते ही महिलाए सैवंईया/ जवें तोङने लगती थी। इसी महीनें में औरतें आम का, निंबू का, लगभग हर अचार ङालती है।जो कि मां अपनी बेटी की कोथली में पीपे भर-भर के दिया करती। मां अपनी बेटी की कोथली के लिए तैयारियां बहुत पहले से ही शुरु कर देती जिसमें बढ़िया से बढिया सूँट वो उसकी ननंद, साँस और अपनी लडकी के लिए रखती है। तीज के त्योहार पर नयी- नवेली बहू का ससुराल से सिंधारा आता है। शादी- शुदा महिलाएँ अपने भाईयों का इंतजार करती है, मिलने के लिए व्याकुल हो उठती है। कोथली में भाई अपनी बहन के लिए मेंहदी, हरी चूड़ियाँ, मिठठी सुहाली, गिरी छुआरे, घेवर आदि सब लेकर जाता है। मेँहदी, हरी चूङियाँ हाथो की शोभा बढाते है, मेँहदी से रचे हाथों में हरी चूङियाँ बहोत सजती थी। यह त्योहार केवल विवाहित स्त्रियों के लिए सिमित नहीं है बल्कि कुवांरी लङकिया भी मनचाहा वर पाने के लिए प्रार्थना और उपवास करती है।

पहले जमाने मे लङकिया काँतरा की मिंढ़ि करवाया करती, उनका बालों में जाल बनवाया करती। हमारे बड़े- बूढ़े रस्सी बनाने के लिए पहले सण को खेतो की जमीन में दबाते थे, फिर उसको काटकर जोहड़ में 1/2 महीने तक दबाते, फिर उसको निकालकर उसका सण उतारते और फिर बेढ (रस्सी) बाँटते। जिसकी फिर दरख्त यानि पेड़ पर पींग, पींझोली ड़ाली जाती थी। घर की औरते सुबह नाह- धोकर मरकनी जूती, कंद का दामण, धोला कुर्ता और घोटया वाली चूदँड़ी, जिसमें सभी प्रकार के गहने जैसे कि:- कड़ी छलकड़े, पाति- धाति, नयोरी, गलसरी, कंठी, मटर-माला, झाँझण, रमझोल, हार, झालरा, ड़ांड़े, सार, बोरला, छन पजेबी, हथफूल, कड़ूले आदि सब सज- सँवरकर इकट्ठी होकर बागों में झूले झूलने जाया करती। मर्द माणस भी सुबह नाह- धोकर खंडका, धोती कुर्ता, चादरा, जूती अर कांधे पर लठ तैयार हो जाया करता। पहले महिलाए रात को मेँहदी को मुठ्ठी में बदं करके सो जाया करती और सुबह हाथों में गंड़या आली मेँहदी उनके हाथों मे रची पाया करती। सारी औरते इकट्ठा होकर गीत गाती थी, झूला झूलती थी और मर्द माणस झोटा दिया करते। कच्चे नीम की निंबोली सांवन जल्दी आइयो रे।




विशेष: लेखक एक शोध पत्र इस तस्वीर वाली "अंतर्राष्ट्रीय तीज मेला 2020 कांफ्रेंस" में लेखक द्वारा प्रस्तुत किया गया था|

हरयाणा का यह लोकगीत तीज के दिन हर औरत की जुबान पर रहता है। झूला झूलते वक्त सभी औरते अपनी- अपनी बेरी का इंतजार करती और कहते थे कि जब पेड़ का पत्ता यानि अपनी साँस की नाक तोड़ के ला। खट्टी- मिठठी तकरार के ये लोकगीत त्योहार में चार- चाँद लगा देते। हाली वही हमेशा की तरह हर सुबह 4 बजे उठता, बैल जोड़ता, खेत मे जाता, खेत बांधा, कांदे साटा राखता फिर लौटते वक अपने पशुओ के लिए गाड़ी भर के हरा- भरा घास- फूंस के भरोटे लेकर आता। यह त्योहार सबके चेहरे पर हर्षोल्लास की लहर लेकर आता है और जाते- जाते सभी के उपर उसी खुशी की छाप छोड़ जाता है।

तीज मे मौसम मस्त मोला, बेफिक्र, अलहड़ बालक की तरह अंगड़ाई लेता रहता है, कभी चारों ओर काली घटा छा जाती है, कभी तेज बारिश, कभी धूप इस तरह मौसम अपना रंग बदलता रहता है।

एकदम सही कहावत है- साढ़ सुकया, सामण हरया।



जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


विशेष: साम्मण के मिन्हे पै न्यडाणा हाइट्स की खोज लगातार जारी सै। म्हारी साईट के इस पद-भाग का उद्देश्य सै साम्मण अर हरियाणवी का जो भी मेळ-मान-मनुहार-लाग-लपेट तैं यें एक-दूसरे तैं जुड़े सें वें सारी बात कट्ठी इस भाग म्ह संजोणा। जै थाहमनैं इस भाग म्ह किसे भी हिस्से म्ह कोए कमी नजर आवै, या कोए चीज छूटी होई दिख्खै तो हाम्नें इस पते पै जरूर ईमेल करें: nidanaheights@gmail.com हाम्में थाहरे नाम की गेल वा चीज इसे भाग म्ह प्रकाश्यत करांगे|


लेखन अर सामग्री सौजन्य: शालू पहल



लेखक के बारे: शालू पहल
एक सार्थक एवम् शिक्षित पहल।
शालू यानी सही रास्ते का मालिक।
इसी अर्थ के नाम से अस्तित्व में आई एक लड़की 20अप्रैल 1996 को।
गांव की माटी के दुलार ने जहां मन को शक्ति दी वहीं श्रेष्ठ गुरुजन की शिक्षा ने आत्मबल दिया।
खुद की व्यथा से अपने जीवन का मार्ग तय किया तो साहित्य के प्रति तृष्णा जगी और महिला के स्वाभिमान का ध्वज भी विचारो में लहराने लगा।
आज शालू के आगे एक विशाल आसमान है जिसे उसे अपनी उड़ान से अधिकृत करना है।
हौसलों के पंख इतने विशाल है कि अम्बर भी मित्रता को लालायित है।
अंग्रेजी एक ऐसा विषय जिसको गांव के एक प्रशिक्षु को आतंकित करने का अभ्यास था आज शालू ने उसके रोम रोम को जान लिया है।
ज्ञान का स्वामी होना ही वास्तविक शिक्षा है।
रिसर्च स्कॉलर
एम फिल ईंगलिश
अमेटी यूनिवर्सिटी, नोएडा, उत्तर प्रदेश!

तारय्ख: 09/08/2020

छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

हरियाणवी समूं अर उसकी लम्बेट

नारंगी मतलब न्यगर समूं, ह्यरा मतलब रळमा समूं




हरियाणवी तारय्खा के नाँ



आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
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