इ-लाइब्रेरी
 
च्यांदणा
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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
थाहमें उरै सो: देहळी > इ-लाइब्रेरी > च्यांदणा > खरी-खोटी
खरी-खोटी
समाज नै दीमक की ढाळ चाटण आळी प्रथाओं अर समस्याओं पै काव्यात्मक चिंतन

कुल 19
1. कन्या-भ्रूण हत्या
2. एक महिला की पुकार
3. किसे और की कहाणी कोन्या
म्हारा हरयाणा दो तरियां आज दुनिया के महँ छाया,
आर्थिक उन्नति करी कम लिंग अनुपात नै खाया |
छाँट कै मारें पेट मैं लडकी समाज के नर नारी,
समाज अपनी कातिल की माँ कै लावै जिम्मेदारी |
जनता हुइ सै हत्यारी पुत्र लालसा नै राज जमाया ||
औरत, औरत की दुश्मन यो जुमला कसूता चालै,
आदमी, आदमी का दुश्मन ना यो रोजै ए घर घालै,
समाज की बुन्तर सालै यो हरयाणा बदनाम कराया ||
वंश की पुराणी परम्परा पुत्र नै चिराग बतावें देखो,
छोरा जरूरी होना चाहिए छोरियां नै मरवावें देखो |
जुलम रोजाना बढ़ते जावें देखो सुन कै कांपै सै काया||
अफरा तफरी माच रही महिला कितै महफूज नहीं,
जो पेट मार तैं बचगी उनकी समाज मैं बूझ नहीं,
आती हमनै सूझ नहीं रणबीर सिंह घणा घबराया ||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
खत्म हुई सै श्यान मेरी, मुश्किल मैं सै ज्यान मेरी
छोरी मार कै भान मेरी, छोरा चाहिए परिवार नै ||
पढ़ लिख कै कई साल मैं मनै नौकरी थयाई बेबे
सैंट्रो कार दी ब्याह मैं, बाकी सब कुछ ल्याई बेबे
घर का सारा काम करूँ, ना थोड़ा बी आराम करूँ
पूरे हुक्म तमाम करूँ, औटूं सासू की फटकार नै ||
पहलम मेरा साथ देवै था वो मेरे घर आला बेबे
दो साल पाछै छोरी होगी फेर वो करग्या टाला बेबे
चाहवें थे जाँच कराई, कुनबा हुया घणा कसाई
मैं बहोत घनी सताई, हे पढ़े लिखे घरबार नै ||
जाकै रोई पीहर के महँ पर वे करगे हाथ खड़े
दूजा बालक पेट मैं जाँच कराण के दबाव पड़े
ना जाँच कराया चाहूं मैं, पति के थपड़ खाऊँ मैं
जी चाहवै मर जाऊं मैं, डाटी सूँ छोरी के प्यार नै ||
दूजी छोरी होगी सारा परिवार तन कै खड्या हुया
नाराजगी अर गुस्सा दिखे सबके मुंह जडया हुया
अमीर के धोरै जाऊं मैं, अपनी बात बताऊँ मैं
रणबीर पै लिखाऊँ मैं, बदलां बेढंगे संसार नै ||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
किसे और की कहाणी कोन्या इसमैं राजा रानी कोन्या
सै अपनी बात बिराणी कोन्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो।।
यारी घोड़े घास की भाई, नहीं चलै दुनिया कहती आई
मैं बाऊं और बोऊं खेत मैं, बाळक रुळते मेरे रेत मैं
भरतो मरती मेरी सेत मैं, अन्नदाता का मत नाम लियो।।
जमकै लूटै सै मण्डी हमनै, बीज खाद मिलै मंहगा सबनै
मेहनत लुटै मजदूर किसान की, आंख फूटी क्यों भगवान की
भरै तिजूरी क्यों शैतान की, देख सभी का काम लियो।।
चाळीस साल की आजादी मैं, कसर रही ना बरबादी मैं
बाळक म्हारे सैं बिना पढाई, मरैं बचपन मैं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी हो तै लगाम दियो।।
शेर बकरी का मेळ नहीं, घणी चालै धक्का पेल नहीं
टापा मारें पार पडैग़ी धीरे, मेहनतकश रुपी जितने हीरे
बजावैं जब मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर का सलाम लियो।।

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
4. शाबाश बहादुर वीरांगनाओं
5. नाम कमाया हे!
6. सुन्दरता किसनै कहते इसपै चर्चा करणी चाहूँ मैं|
खानपुर की लड़कियों नै जम कें विरोध जताया रै|
शाबाशी थाम सब नै देऊँ मिलकै कदम बढाया रै||
बदमाश ठेकेदारों के खिलाफ थामनै आवाज उठाई|
बलात्कारियो किते लुह्क्ल्यो इब थारी श्यामत आई||
दबंगों की पहोंच सै कसूती, पंजा फेर बी लड़ाया रै|
आज बिना आवाज उठायें लफंगे बसण नहीं देवैं||
चुप रहकैं सहती रही तो इस चुप्पी का फैदा लेवैं|
मजबूती तैं खड़ी रहियो एकता म दम बताया रै||
लड़ाई म जोश के साथ होश भी जरूरी बतावें सें|
लाम्बी लड़ाई चालैगी या कई बै लड़ाकू थक ज्यावें सें||
वें हरा नहीं सकते जो संगठन मजबूत बनाया रै|
पूरे हरियाणा की लड़कियों नै इब आगै आणा होगा हे,
इन बदमाशों को मिल कै सही सबक सिखाना होगा हे|
कह रणबीर बरोणे आळआ टोह कै नै छंद ल्याया रे|| 

NH salutes to brave girls of
BPSU-Khanpur, Gohana-Haryana

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
यो घूँघट तार बगाया हे, खेताँ म्ह खूब कमाया हे,
खेलां म नाम कमाया हे, हाम आगै बढती जा र्ही बेबे|
ल्यबास पर रोह्णात गाम म्ह बहादुरी खूब दखाई बेबे,
अंग्रेजां तैं जींद की राणी नै गजब करी लड़ाई बेबे|
हमको दबाना चाहता हे, नहीं रास्ता सही दिखाया हे,
गया उल्टा सबक सिखाया हे, म्हारी खूबे अक्कल मारी बेबे|
डांगर-ढोर की संभाल करी, धार काढ कें ल्याई बेबे,
खूब बोल सहे हमनै स्कूलां म्ह करी पढाई बेबे|
सब कुछ दा पै लाया देखो, सबनै खवा कै खाया देखो,
ना गम चेहरे पै आया देखो, कदे हारी कदे बीमारी बेबे|
नक़ल रोकती सुशीला, जमा नहीं घबराई सै,
मर कें करी हिफाजत असूलां की नई राह दिखाई सै|
गन्दी राजनीति स्याह्मी आई, औरतां पै श्यामत ढाई,
फेर बी सै अलख जगाई, दे कें कुर्बानी भरी बेबे|
लडती-मरती-पड़ती हम मैदाने-जंग म डटती देखो,
कादे-कानूनां तैं आज म्हारी सरकार हटती देखो|
हर महिला म लहर उठी, हर गली अर शहर उठी,
सुबह-शाम दोपहर उठी, रणबीर की कलम पुकारी बेबे|

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
सुन्दरता किसनै कहते इसपै चर्चा करणी चाहूँ मैं|
गौरी चमड़ी आच्छी हो सै, छिपरया नस्लवाद दिखाऊं मैं||

गौरी चमड़ी बता सुन्दर गौरे, सारी दुनियां पै छागे|
काळी चमड़ी सुन्दर कोन्या, इन्नै निर्भाग बतागे||
गौरी चमड़ी की सुन्दरता नै, खड़ी कर दइ खाट बताऊँ मैं|
मिह्न्न्त करकै जो बणता सुन्दर, उसनै कूण पिछानै||

कष्ट कमाई चोर कें लेज्यां, उनकी चोरी नै ना कोए जानै|
बाहर तैं सुन्दर काळआ भीतर तैं, कती कोन्या भकाऊं मैं||
उनकी सुन्दरता भूल गए, जिन्नै यो ताजमहल बणाया|
क्य्स्सा शाहजहाँ-मुमताज का, यो जावै रोजाना सुणाया||

कारीगरां कै पटी रै बिवाई, वा सुन्दरता कड़े ल्कोहूँ मैं|
बाहर पेट तैं ल्यावण खात्तर, यो साथ दिया जिस दाई नै||
जिनै न्हवा-धुआ कें मैल तारया, गेरी नीच जात की खाई म|
रणबीर सिंह असली सुन्दरता पै सुन्दर छन्न बणाऊं मैं||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

7. पींघ टोही न पाई|
8. जीणा होग्या भारी बेबे|
9. सुवास्ण छोरी का दुःख
लख्मी दादा देख ले आ कें, पींघ नहीं टोही पाई,
तीज त्यौहार गया सुक्का, तेरी याद घणी आई|

सारे गाम म घूम लिया, झूल घली नहीं देखी,
देवर-भाभी की झूल कितै बी बंधी नीह देखी|
घेवर था फेर सुहाळी ना दई कितै दखाई||

साम्मण की मिहने की बदली देखी तासीर मन्ने,
पहले आळी तीजाँ की ना दिखी तस्वीर मन्ने|
दो च्यार जंगहा सर फुट्टे कै, देखी मन्ने लड़ाई||

इस ग्लोबलाईजेसन नैं, तीज-त्यौहार खोस्से रै,
मानवी रयस्ते आपस के, जोर ला कें मोस्से रै|
खीर-पूड़े अर गुलगले नहीं टोहे पाए भाई||

कह रणबीर तीजाँ का रंग जमा फीका होग्या,
दादा तेरा साम्मण बेर ना आज कड़े खोग्या|
किसनै फुरसत सै, आज या डिस्को-डांस छाई||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

जीणा होग्या भारी बेबे, तबियत होगी खारी बेबे|
सबनै खाल उतारी बेबे, फेर भी जीवन का आस मनै||

१) पुराणा घेरा तोड़ बगाया, ढंग तैं जीणा चाहया,
कमाया मनै जमा डटकै, उनकै याहे बात खटकै|
मेरी हर बात अटकै, पूरा हुया अहसास मनै||

२) मुंह मैं घालण नैं होरे, चाहे बूढ़े हो चाहे छोरे,
डोरे डालैं सांझ-सबेरी, कहते मनै गुस्सैल बछेरी|
कई बै मेरी राह घेरी, बैंल बतावें ये बदमाश मनै||

३) संभळ-संभळ मैं कदम धरुं, आन-बाण पै सही मरुँ,
करूँ संघर्ष मिल-झुल कै, हंसू-बोलूं सबतें खुलकै|
न जियुं घुट-घुट कें, बात बतादी या ख़ास मनै||

४) चरित्रहीन यें बतादें, भो-कोए तोहमद ला दे,
खिंडादें ये इज्जत म्हारी, खुद करते यें चोरी-जारी|
न्यूं होज्या तबियत खारी, रणबीर आवै न रास मनै||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

द्यनांक: 16/06/2012
जवान छोरी फांसी खाज्या, फेर के बाकी रह्ज्या|
साहमी कोए कारण नहीं, या दुनिया के-के कह ज्या||

गामौली छोरी पढ़-लय्ख, नई दुनिया चाहवै देखो,
नया विचार उसनै, बेचैन घणा कर ज्यावै देखो|
देखै उलटे-सीधे काम, कितै तो तुरत जा कें फह ज्या||

जेंडर-बायस कितणा खतरनाक इसका बेरा लागै,
उत्साह-डिप्रेसन बार-बार, भीतर छोरी कै जागै|
घणी बर तो लाचारी म छोरी बहुत-कुछ सह ज्या||

घर के भीतर अर बाहर के हो रह्या जमाने मैं,
सुवास्ण छोरी का विश्वास यो खो रह्या जमाने मैं|
के सही गलत सै छोरी एक पल म सब लह ज्या||

कितणा तनाव झेलैं सें, आज जवान छोरी देखो,
हम समझ नहीं सकदे दुखी कित णी होरी देखो|
रणबीर सिंह छोरी का दुःख गेहटे म ए गह्ज्या||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
10. किसनै संसार रच्या
11. जहर पीवां
12 . हरयाणा का माहौल
सृष्टि के बारे म सब धर्मों नै न्यारा-न्यारा अन्छाज लगाया सै|
देवी भगवती पुराण न्यों बोलै एक देवी नै संसार रचाया सै||

१) ब्रह्मा के भगत जगत मैं, ब्रह्म को जनक बताते भाई,
शिव पुराण का किस्सा न्यारा शिवजी जनक कहाते भाई|
गणेश खंड न्यों कहवैं गणेश जी दुनिया को चलाते भाई,
सूरज पुराण की दुनिया को सूरज महाराज घुमाते भाई|
विष्णु आळए न्यों रूक्के मारैं विष्णु जी की निराळी माया सै||

२) विष्णु-महेश के चेले दुनिया मैं घने बताये देखो,
आपस म झगडा करकें कई बै सिर फुड़वाये देखो|
आपस की राड़ मेटण नैं त्रिमूर्ति सिद्धांत ल्याए देखो,
ब्रह्मा पैदा करै, विष्णु पालन, संहार शिव नै मचाये देखो|
बाइबल नै सबतें हटकें पैगम्बर का नाम चलाया सै||

३) यो बुद्धमत उभर कै आया त्रिमूर्ति का विरोध किया,
जैन मत भी गया चलाया नहीं दोनों को सम्मान दिया|
यहूदी और इसाई धर्म नै एक ईश्वर को धार लिया,
इस्लाम नै एक परमात्मा मैं लाया सै अपणा जिया|
दुनियां में माणस नै एक ईश्वर सिद्धांत पन्यापा सै||

४) सोच समझ कै इसाईयां नै यो परमेश्वर गले लगाया,
मुसलमान क्यों पाछै रहें न्यों अल्लाह हाकिम बनाया|
सिख्खां नै शब्द तोह लिए ओंकार झट से जनाया,
हिन्दुओं नै तावल करकें नै ॐ दिल पी खिणवाया|
घणे भगवान पैदा कर दिए रणबीर का जी घबराया सै||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
जहर पीवां पैप्सी-कोल्ला म, मौत के मुंह म जावां रै|
सब्जी दूध भोजन म भोत कीटनाशक खावाँ रै||

पाणी म जहर घुळग्या, इसका हमनें बेरा कोन्या,
घणा कसूता घाल दिया, टूटता दीखै घेरा कोन्या|
हरित-क्रांति हरियाणा म, ख़ुशी थोड़े लोगां म ल्याई,
घणे लोगां म कीटनाशक नै या घनी रची तभाई||
आज पाछै बोतल हम नहीं पैप्सी-कोल्ला की ठावां रै|

अनतोल्या अस्तेमाल हुआ सै, पछले दस सालां म,
गात न्यचोड़ बगा दिया, लाल्ली बची नहीं गाल्लां म|
ब्यदेशी कम्पनी लूटें हमनें, यें जहर प्यल्या कें देखो,
मुन्नाफा कमावें अरबां का कीटनाशक खिलाकें देखो||
कसम खावाँ आज सारे देखो, नहीं हाथ ठन्डे कै लावां रै|

खाय्ज गात म करदी सै, आज घर कोए बच्या नहीं,
दमा-बय्मारी बाधू होगी, खुलासा म्हारै जच्या नहीं|
गैस पेट की बदती जा, बीर होक्टी पीण लाग्गी,
नामर्दी का शय्कार हो कें, पीढ़ी युवा जीवण लाग्गी||
अय्लाज किते होंदा कोन्या, बताओ हम कित जावां रै|

कई साल तें रुक्या नहीं, जहर का खेल न्यूं-ए चाल्लै,
के बेरा किस-किस के जीवन पै हाथ रोजाना घाल्लै|
कैंसर बदता जावै आज कई ब्यद्वान बतावें देखो,
जन्मजात बय्मारी बध्गी, आंकड़े यें द्यखावें देखो||
कहै रणबीर बरोणे आळआ इब तै मोर्चा जमावें रै|

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
एक बै आदत पड्ज्या तो छूटै ना कितने ए ताण तुडाले ।।
मुश्किल होज्या ऐब छुडाना चाहे कितनी ए कसम दुआले ।।
तम्बाकू की लत होज्या तो कैंसर रोग की खुल ज्य़ा राही
दमा बढे और साँस रोग भी मचावै बुढापे के मैं तबाही
खांसी बलगम तडकें ए तड़क मानस नै खूबे ए रूआले ।।
दारू की लत का काम बुरा पूरे हरयाणा मैं छागी देखो
माणस की इस लत के कारण महिला दुःख पागी देखो
गैंग रेप बढ़े हरयाणा मैं या गिरती साख कौन बचाले ।।
पर नारी की लत कसूती या घर परिवार बर्बाद करै
महिला पुरुष के मीठे रिश्त्याँ मैं या कसूता खटास भरै
नहीं छुटती लत माणस की कोए कितना ए समझाले ।।
ताश खेलन की लत बढ़ी हरयाने के गामाँ की गालाँ मैं
जुए की लत कारण द्रोपदी का चीरहरण हुया दरबारां मैं
परम्परावादी रूढ़ीवादी नेता पुलिश अफसर रख वाले ।।
हरयाणा के लड़के लडकी कई लतां के शिकार हुए
समाज सुधार की जरूरत घनी रणबीर के विचार हुए
सते फरमाना दिल तैं तूं या रागनी ऊंचे सुर मैं गाले ।।

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

द्यनांक: 10/10/12
13. रेप मैनिया
14. ज़मीदारां के बाळक
15. जाट के सी हद्छाती
यो रेप मैनिया क्यों म्हारे हरयाणा के मैं छाग्या रै ।।
पढ़ पढ़ कै हादसे रोजाना जी घणा दुःख पाग्या रै ।।
जिस कै लागै वोहे जानै दूजा के जानै पीर पराई,
म्हारै भी दुःख नहीं होंता जब तक ना झेलै माँ जाई|
सर पर कै पानी गया समाज पूरा घबराग्या रै ।।
कुछ अत्याचार बढ़ाये परम्परावादी रिवाज नै रै
बाकी कसर पूरी करदी इस बाजारी समाज नै रै
महिला बनाई भोग की वस्तु बुरा जमाना आग्या रै ।।
बदमाशों की देखी जा सफेदपोश बदमाश होग्या
माहौल पूरे समाज का यो अपराधों के बीज बोग्या
बाड़ खेत नै खाण लगी रूखाला मुंह काला कराग्या रै।।
रेपिस्ट उनकी जिन्दगी मैं ये जहर कसूता घोलें
हिम्मत उन महिलाओं की जो इसके खिलाफ बोलें
कहै रणबीर बारोने आला छोह मैं छंद बनाग्या रै ।।

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

द्यनांक: 10/10/12
ज़मीदारां के बाळक रोड़वेज की बसां नै तोड़ दिये,
कुछ लटकग्ये, कुछ चढ़ग्ये,कुछ राह मैं छोड़ दिये|
नहा-धो कें तैयार होए, पठठयां पै तेल ला लिया,
नये बूट अर नया कुरता, सारा फैशन सजा लिया|
कंघा ल्याया, बटुआ ल्याया, गेल्यां एक फूल ल्याया,
अड्डै पै आ कै न्यूं बोल्या, ओहले! किताब तो भूल-ए-आया|
किसे के लाम्बे, किसे के छोट्टे पट्टे,
अड्डै पै आ कै होग्ये सारे लड़धू कट्ठे|
महऋषी दयानन्द की ज्ञान-भूमि पै, किसे ताले भेड़ण लागग्ये,
गाम की इज्ज़त पै मरण आले़, गाम की छोरियाँ नै छेड़ण लागग्ये|
जब एक भूण्डै चुटकलै पै, सबनै मारी ठाड्डी किलकारी,
नाई कै हाथ तै छूट्या उस्तरा,मिस्त्री के हाथ तै छूट्टी आरी|
इतणै मैं एक ताज़ी बस आई,
पर सवारियां कॅानी ना लखाई|
ड्रेवर भी झूमता-सा मजालेग्या,
एक न्यू बोल्या, मेरी सासू का भज्या लेग्या|
फेर बाळकां की टोळी हरकत मैं आई,
दुकान पर तैं कुल्हाड़ी ठा ल्याई|
अड्डै पै खड़ये सारे पेड़ सहमग्ये,
पत्ते झूमैं थे जो हवा मैं, सारे थमग्ये|
पर पेड़ कुछ कह सकै ना, किसी या लाचारी सै,
काल एक कीकर कट्यी थी, आज शीशम की बारी सै|
पर शीशम नै चुपचाप जख़्म तन पै खा लिया,
उसका एक डाळआ गाबरूआं नै सड़क पै ढ़ा लिया|
इतणै मैं एक टुट्यी-सी बस आई,
डाह्लै़ पै आ कै रूकगी, पार ना बसाई|
मार किलकी भाजे सूरमां,बस की धड़कै नाड़ी थी,
इस ढ़ाळ चढ़े उसपै, जाणू कारगिल की पहाड़ी थी|
कोय आगे कै, कोय पाछे कै, बस के भीतर धंसग्ये,
कोय-कोय लटकग्या खिड़की मैं, कुछ शीशयाँ मैं फंसग्ये|
दम लिकड़ै हवा ना आवै, फेर भी बीड़ी सहारैं थे,
एक दूसरे की माट्टी पिट्टण नै, ज़ोर तैं किलकी मारैं थे|
उनकी एक हरकत पै, एक रिटायर्ड मास्टर बुरकग्या,
आपणै जीवन का सारा ज्ञान, उन मूढाँ पै खरचग्या|
बोल्या, रै मूर्खो! थारे तैं देस नै कोय आस नहीं,
कित की बी.ए.करोगे, किताब तक थारै पास नहीं|
ल्या इब पूछ ल्यूं सवाल, एक बी ना बता पाओगे,
सूझैगा कुछ नहीं, धुंध म गधे की ढ़ाळ लखाओगे|
एक बोल्या, रै बोळए मास्टर, तरी क्यूँ मति भाज़ री सै,
पढ़ाई की नहीं, न्यूँ पूछ आज कुणसी फिल्म लाग री सै|
उनकी या बात बुढ़यां कै पसन्द ना आई,
पुराणी पीढ़ी नै नई पीढ़ी तैं नाक चढ़ाई|
बस कै टायर पै बैठा एक आदमी, ना सोवै ना जागै था,
बाळ उलझे आँख खोई-सी, पर पढ़या-लिख्या लागै था|
बोल्या आ कें,मास्टर जी क्यूं सिर खपाओ सो,
इन पागलाँ तैं तुम खामखा बतला़ओ सो|
क्यूँ मास्टर जी इतणा नान्हा छाणो सो,
पहल्यां न्यू बताओ मन्नै पिछाणो सो?
जिसका दम भरण लागरे, मैं थारा ओए विश्वास सूँ,
कलास में हरदम फस्र्ट आया करता, मैं ओए सुभाष सूँ|
इन मस्त-मौलयां गेल्या क्यूं राड़ बधाओ सो,
ल्याओ मैं बताऊंगा के-के पूछणा चाह्वो सो|
मैं बतादयूँगा, क्यूं धरती-सूरज के चक्कर काटै सै,
मीहं बरसे पाछै अयन्द्रधनुष क्यूं सात रंग छांटै सै|
बता दयूँगा,क्यूँ मरे पाछै ये जीव सड़ै सैं,
न्यूटन कहग्या वा भी जाणूं, क्यू चीज़ धरती पै पड़ैं सैं|
सारी बात अंग्रेजी की कह दयूं मन्नै राम की सूँ,
I know Hamlet’s dilemma – What to do or not to do|
मान ज्यागां आपनै, आज फेर वो-ए विश्वास जगा दो,
एम.ए.फस्र्ट क्लास सूँ, कोय छोटी-सी नौकरी दुआ दो|
मास्टर का मुँह बाया-का-बाया रहग्या,
आख्याँ के मैं नीर आया-का-आया रहग्या|
म्हारी धरती सह री सै कष्ट घोर,
चालो-रै-चालो, एक बै खेतां की ओर|
सन्देश सबकै नाम करग्या,
हांसता-हांसता ओ उतरग्या|

सौजन्य: प्रवेश नरवाल

द्यनांक: 22/08/12
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

बुद्ध धर्म परणाने की ऐवज म 40 लाख जाट खपाए थे,
फेर भी देश इज्जत बाबत, सोमनाथ के लुटेरे थपड़ाए थे।
किते गोरी के शीश उड़ाए, तो तैमूर कै भी लांडे लाये थे,
गॉड गोकुला अवतार किते औरंगजेब के सांस फुलाये थे।।
जींद भूतेश्वर जो बणाये थे, घुन्नों ने निशानी वो रोळ दी,
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

अंग्रेजां नैं इनतें बड्डे सूरमे ना कित्ते और पाए,
ww 1 हो या 2, विक्टोरिया क्रॉस से मान धराये|
हिटलर को भी भीड़ पड़ी म जुट-सेना की दरकार पड़ी,
लोहागढ़ म्ह शेर गाज्ज़े जय्ब, थी अंग्रेजां की मरोड़ झड़ी||
शुद्र ठहरावण नैं फेर भी, घुन्ने कुकाए कोर्ट लाहौर की।
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

दादा छोटू-छाज्जू चले राही किसान को पढ़ाण की,
दुश्मन निरोळा दिखा कें, खसम-खेत का बनाण की।
व्यापारी का भी असहयोग हो, गाँधी के कान थी धरी,
किसान-कमेरा ही करे आंदोलन, व्यापारी को के पड़ी?
मत्न जान गाँधी के, पंजाब की बोर बणाई जोर की,
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

खाप लड़ो संग्राम सत्तावन का बहादुरशाह ने पुकारा था,
किते शाहमल, नाहर सिंह, दिल्ली का बनाया ढाहरा था।
सरदार भगत सिंह उभरया ज्यूँ दूर नभ में ध्रुव तारा सा,
देशभक्ति का सिरमौर जा बणया, देश उदासी से उभारा,
लाल-किले पै कुकाया घुन्ना, देशभक्ति हो कुछ और भी,
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

सबतें पहल्यां अजाद भारत म्ह पटियाळा अर भरतपुर रळे,
पाक्यस्तानी खत्रियों खायत्तर, इन्नें आपणे ठ्य्काणे दळे|
एक चौधरी चरण सिंह होए, जो प्रधानमंत्री जा बणे,
जळदे-बळदे घुन्ने कुकाए, यू छोटी ज्यात का संतरी|
देश अनाज संकट में पड़ा जब, चहुंओर चिंता घोर थी,
तब जाट्टां नें ल्या हरित-क्रांति, भरे देश के स्टोर भी||
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

फेर मंडल कमिशन आण धमक्या, ल्या रिजरवेसन फळवाया,
किसे नें ना लाहौर अर छोटी ज्यात का जय्क्र लग भी ठाया|
ताऊ-वी.पी. की जोड़ी देख, कह अटल बिहारी सपने चूर हुये,
चरण सिंह को महत्वाकांक्षी कहणीये, उसके रोणे पै चुप रहे|
जाट-गैरजाट हथ्यार टोह्या, जाट्टां नें बिचलावण तान्हीं,
दो पाट्टां के 35 बणाये, चाल जाट की जान पे जोर की|
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

इतणे पर भी जी ना भरया तै, खाप्पाँ नें ज्या छेड्या,
समाज एक रय्वाज एक, पर हर ठीकरा इनपै फोड्या|
कितै साहनी पंचकुला, किते गोत पै ल्या कोर्ट घुसेड़या,
विधवा-देवदासी-सति पालणिए कहें, नारी को जाट ने रोळा?
कह फुल्ले-भगत नंग-धड़ंगों कै लिहाज-शर्म ना किसे ठोर की।
जाट के सी हद्छाती ना होई किसे और की|
बाढ़-सूखा भी टयोटैं, कचोट घुन्नों के त्योर की||

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

द्यनांक: 18/10/12 (edited - 06/08/15)
16. अंधविश्वास नाश की राही
17. किस धोखे में जीवे जाट
18. कंगारू कोर्ट
तर्क करूं अर सच्चा जाणू, यें रहणी चहिये ख्यास मनै|
अन्धविश्वास सै नाश की रही, बात बताणी खास मनै|

1) भगत और भगवन बीच म्हं, दलाल बैठ गे आ कै,
कई भेड़िये पहन भेड़ की खाल, बैठ गे आ कै,
भगवान बहाने कई उत चाटणे, माळ बैठ गे आ कै,
क्यूँ होरी सै खुंडी लूट्यें, सवाल बैठ गे आ कै,
करणी चहिये जाँच-परख, तंग कर री यें बकवास मनै|

2) मुल्ला किते पुजारी तो, किते ग्रन्थी ठेकेदार बणे,
खूब कमा कै भी भूखा, यें महलां के सरदार बणे,
सभी ठिकाणे दीन-धर्म के, लूटण के हथियार बणे,
पहन गेरुए रांड-मलंग, मेहनत के हक़दार बणे,
इस तरियां की लूट-दुधारी, ना आणी चहिये रास मनै|

3) इज्जत लूटैं अर धन लूटैं, जित भी लग ज्या दा लूटैं,
रोज पढैं अखबारां म्हं हम, यें बाबे म्हारा क्या लूटैं,
रब तैं, ना कानून से डरते, हो कें नै बेपरवाह लूटैं,
मैं फिर भी फिरता हाथ जोड़ता, शर्म और ह्या लूटैं,
"सिस्टम" सारा सड़-गळ ग्या, ना आती फिर भी बास मनै|

4) खा कै किलो अफीम सोच ली, बात उड़ा दी जनता म्हं,
सहम नशे म्हं गप्पे घड़ रया, अर सरका दी जनता म्हं,
झूठ-कपट की टेढ़ी-मेढ़ी, राह बिछा दी जनता म्हं,
राम-नाम की झूठ कहाणी, ईब सुणा दी जनता म्हं,
समझ रह्या मैं 'रामेश्वर' सूं, वें आज समझ रे 'दास' मनै|

सौजन्य: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

द्यनांक: 04/11/12
SEZ आ गए, जाट की जमीन बिकगी है,
तोड़ हवेली पुरखों की, नई कोठी बना ली है...

जो चार पैसे बचगे, उनकी सफारी कढा ली है...
पर खाद-बीज इब भी आढ़ती तें उधार आवै है|

देशी छोड़ अंग्रेजी तें यारी कर ली है|
राबड़ी लागन लाग़गी कड़वी, मुर्गे नें सस्ता बतावै है|

घर-घर आगै रिवाल्वर, बहू यूपी, बंगाल तें मोल ल्यावै है,
सरपंची का पाळ लिया शौक, सगे भाईयां पै गोळी चलावै है|

धरती माँ की इज्जत करना भूल गया, शौक जारी के फरमावै है,
किस धोखे में जीवे जाट, तेरा जान्गेदा आ लिया है|

यो-ए हाल रह्या ते तेरी अर्थी नें भी कोए कन्धा न देणिया है,

लेख्क्क: आवेश अहलावत

द्यनांक: 30/11/12
कंगारू-कंगारू अर बबाल मचा राख्या,
सै को इह्सा कोर्ट जो नयां दे गरज का?

संविधान की लिखत सें, पर न्या कित सै?
कोर्ट-कचहरियाँ म्ह, फाइल पड़ी-पड़ी सस्कें,
समाजिक पंचाता तैं भी थारे धोरै पोहंच कें,
गरीब-कान्दू क्यूँ कोर्टा म्ह दर-दर भटकें?
अर न्या के ना का, पाणी सा भरा राख्या,
कंगारू-कंगारू अर बबाल मचा राख्या,
सै को इह्सा कोर्ट जो नयां दे गरज का?

सच्चाई तै या सै, ज्यात-पात सब क्याहें नैं खा सै,
सरकारी, के समाजिक, न्या का तै ब्ळओखा सै|
जितणा ऊँचा दर सै, चौधर उतणिये मुखर सै,
ज्यांते-तो कोर्टा म्ह घ्न्खरा जज बड्डी ज्यात सै||
फेर समाजिक पंचाता काय्न क्यूँ हूड ठा राख्या?
कंगारू-कंगारू अर बबाल मचा राख्या,
सै को इह्सा कोर्ट जो नयां दे गरज का?

फेर भी कोर्ट-कोर्ट सै, समाजिक गैल्यां के रीस सै?
ना रीस सै तो कोर्टा म्ह न्या की क्यूँ लिकडै घीस सै?
कनून बणान्दें हांण, समाजिक कदे गोऴया नहीं,
ज्यान्ते कोर्टा का न्या, क्दे पकड़दा कोळआ निह||
हर दफ्तर म्ह बता फाईलाँ का क्यूँ ढू ला राख्या?
कंगारू-कंगारू अर बबाल मचा राख्या,
सै को इह्सा कोर्ट जो नयां दे गरज का?

पिह्सा अर घूस इन कोर्टा नें तो खून खा लिए,
पिह्सा-बख्त बचा दें, चालो समाजिका पै न्या लें|
अर या ब्यल्ली ज्यूँ मुस्सा खिलाणियां नैं ब्यदका दें,
अर वें कणछ्दे-ए फेर समाजिकां नें कंगारू बता दें||
बता यू फुल्ले भगत भी खूब ब्यचळआ राख्या|
कंगारू-कंगारू अर बबाल मचा राख्या,
सै को इह्सा कोर्ट जो नयां दे गरज का?

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

द्यनांक: 16/12/12
19. जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह!
जै 'जाट जी' कह कैं बोलोगे, तो स्यर लग भी ब्यठा ल्यांगे,
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

एक दयानंद महर्षि, 'सत्यार्थ-प्रकाश' म्ह जाट को 'जाट जी' जो कहग्या,
जो उल्टी राह्याँ चले मंदिर आर्यसमाज के, महर्षि तैं सिर्फ दयानंद रहग्या|
ढोंग दिखाईयो मत ना, पूरी खापलैंड पै स्यर ब्यठवा दयांगे|
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

राजपूत को भी जिन्होनें कभी 'जी' ना लगाया,
उन्हीं ब्राह्मणों ने जाट को 'जाट जी' फ़रमाया|
जाट-देवता यूँ ही ना कुहाया, रहे धर्म तैं ऊँची मानवता बतांदे,
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

'जाट-देवता' बाज्जे कदे तैं हम, बोद्दा म्हारा ढाहरा नहीं,
उलझण की राह चालियो ना, जाट को थारे तैं प्यारा नहीं|
हमनें जहर भी खारा नहीं, जै सुच्ची नीत तैं प्या द्योगे|
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

'चौधर' किसे तैं खोस कैं ना चलाई, अर खेतां ढोळ बैठ कैं कदे ना खाई,
च्यारूं वर्ण छयकाये सदा, रोजगार पुगाये सदा, तब चौधर स्यर धराई|
मत सामन्तियों के भुकायां आईयो, थारै मोरणी अटारियां चढ़ा दयांगे|
अर जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

खून-पसीने तैं सींची हुई या, म्हारी हरयाणे की माटी सै,
जितणे दाब्बो उतने उभरां, सदा येहिं अळसेठ पाँटी सैं|
शर्मांदे भीतर बैठे सां, ना तै लोहागढ़ और भतेरे बणा दयांगे,
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

'फुल्ले-भगत' सूं 'दादे खेड़े' की, चैन तैं हमनें जी ल्यण द्यो,
राहसर ल्य्कड़ो-राहस्यर बड़ो, सांस चैन की भर ल्यण द्यो|
ना तैं गढ़ी भतेरी घड़ी सैं हमनें, गुरिल्ल्याँ ढाळ नचा दयांगे|
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

जै 'जाट जी' कह कैं बोलोगे, तो स्यर लग भी ब्यठा ल्यांगे,
जै जाट गेल पड़े उलझेड़याँ म्ह, तै दाहुँ धूळ म्ह ला दयांगे||

शब्दावली:

हरयाणा/खापलैंड = वर्तमान हरयाणा + दिल्ली + पश्चिमी यू. पी. + उत्तराखंड + उत्तरी राजस्थान|

सामन्तियों = मंडी-फंडी

च्यारूं वर्ण = चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व् शूद्र

गुरिल्ल्याँ = गुरिल्ला युद्ध कला, जो विश्व को जाटों की देन है, मुग़लों ने जिसको जाटों से सीखा, शिवाजी महाराज ने खापों-योद्धेयों को बुलवा मराठों को सिखवाया|

लोहागढ = भारतीय इतिहास का एकमात्र किला, जिसको अंग्रेज 13 बार हमले करके भी जीत नहीं सके, मुग़ल जिसकी तरफ नजर उठा के नहीं देख सके और राजपूत-मराठे-होल्करों की सात-सात सेनाएं मिलकर भी जिसको बींध नहीं सकी|

गढ़ी = उदाहरणत: रोहतक की साँपलागढ़ी, हिसार की राखीगढ़ी, दिल्ली की मोरीगेट, लालकिले वाली जाटगढ़ी, भरतपुर की बदनगढी, पानीपत की सिवाहगढ़ी, कलानौर की गढ़ी-टेकणा, करनाल की गढ़ी बीरबल, गढ़ी रोढाण, जींद की गढ़ी बधाना, बागपत की हजूराबाद गढ़ी आदि| ऐसा स्थान जहां खाप युद्ध करने से पहले, अंडरग्राउंड शेड बना के वृद्धों व् बच्चों को सुरक्षित छोड़ युद्धों में उतरा करते थे|

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

द्यनांक: 18/05/2015


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

आग्गै-बांडो
 
जानकारी पट्टल - लाइब्रेरी

श्यक्ष्या ब्यौरा सूची म ताहरी खात्तर राष्ट्रीय अर राजकीय श्यक्ष्या तन्त्र, स्कूल बोर्ड अर यून्वरस्टी की न्यारी-न्यारी वेब-साइटों के लंक लाये गए सें| NH नियम अर शर्त लागू|
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न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
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