इ-लाइब्रेरी
 
कवि हरिचंद
infohn-lab.html
Infocenter.html
!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
थाह्मे उरे सो: देहळी > इ-लाइब्रेरी > कवि हरिचंद बन्धु > कविताई 41-80
कविताई 41-80
कवि हरिचंद बन्धु जी की हरियाणवी कविताई

कुल 40 (41-80)
बंधू जी का संक्षिप्त परिचय

कवि हरिचंद 'बंधू' M. A., Ph. D. (हिंदी) पुत्र श्री कुरड़िया राम जी, गाँव व् डाकखाना सिल्ला खेड़ी, जिला जींद (हरियाणा)

अध्यन एवं लेखन में रुचि, कई शोध पत्र व् प्रकाशन, जिनमें हरियाणवी सांगों में रागिनी (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में श्रृंगार (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन व् श्री लख्मीचंद का काव्य वैभव (हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत) प्रमुख हैं|
41. मसक बांध्य कै गेर्या
42. रसातल़
43. पंसारी
44. मोती छोड्य सकेरै धूल़ी
सौह्न सील भौं तै भी ज्यादा; बडा गगन तै द्यल तेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितना बडा ज्यगर लेह्र्या ।
लाई -पेट चलाई क्यरसी;
कुत्ते आल़ा हाड सै ।
पड़ै चबाणा मुंह् फडवाणा;
खोड़्य तै ना लाड सैं ।
पीयां जा सै खून आपणा;
या हे घाल काढ सै ।
भाज्जम-भाज्जा, सांसम - सांसा;
ल्यकड़्या रहै बाढ सैे ।
कुए की माट्टी कूए लाग्गै; फिर भी सबर भतेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या ।
भूख , गरीबी और त्यरसणा;
ये आठों पैह्र सताती ।
म्यली ब्यरासत मँह् तन्नै यें;
कोन्य म्यले घोड़े - हाथी ।
सूक्का काल़ कदे पणियाल़ा ;
फसल ब्यमारी आती ।
रात्य त्यरी बीतैं ब्यड़्यक्यां मँह् ;
नींद रात्य की उड्य जाती ।
आंदणी थोड़ी खरच घणे नै; तूं मसक बांध्य कै गेर्या ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या, कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या ।
मैल , मकोडे़ , कीड़ी , खटमल;
माच्छर, जूम त्यरे नाती।
कै अरंधगी साझ्यण तेरी;
कै लांडा-खंूह्डा साथी ।
लाग्गी पाच्छै जिया- जून्य सै;
जो चूंड्य ज्यगर नै खाती ।
फ्यर भी कोन्य पड़ै पाल़े तै;
रहै खड़्या मारें गाती ।
करज-मरज नै बेस्सक तै तूं ; च्यांरू ओड़ां तै घेर्या ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या ।
मरणा-जीणा त्यरा करजे मँह् ;
इसतै पेैडंा नांह् छूटै ।
अध भूखा ,अध नंगा रैह् कै;
बंध्या रहै उस्सै खूंटै ।
ब्याह् - सादी, पिलि़ए- छूछ्यक मँह् ;
झूठी बौर तलै़ टूटै ।
गैह्णै धर्य फिर किल्ला बेच्चै ;
या फिर तूं गोल़ी घूंटै ।
बचै-खुचै तै दवा ब्यमारी; फिक्का रहै त्यरा चेह्रा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
फसल ब्यमारी,पणियाले़-
सुक्के तै मारैं ऐ मारंै ।
सरकारी नीतियां भी तन्नै;
जमा रसातल़ मंँह् तारैं ।
बांध,सेज , विज्ञान नगर अर;
माडल नगरी की धारैं ।
कौडियां भा त्यरी छीन जमीं;
बंधू, बेदखली डारै ।
नांह् को तेरे ह्यत मॅँह् ,नांह् को; फसली दाम सही देह्र्या।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
फीम-भांग नै दिया ब्यठा मै ; जमा रसातल़ मँह् ।
पी कै दारू क्यां हें के भी; रय्हा न काब्यल मैं ।
पी कै करी कबाडे़बाजी ;
नाहक मँह् धन खोया ।
बुद्धी हुई मलीन म्यरी, राह्;
नास होण का टोह्या ।
टी0बी0, दमा ब्यमारी होगी ;
ल़्हास बणा तन ढोया ।
टेम कर्या बरबाद व्यर्थ मँह् ;
नींद नसे की सोया ।
जड़ काट्टी अपणे आप्पै न्यूं; घ्यरग्या आग्गल़ मँह् ।
पी कै दारू क्यां हें के भी ; रय्हा नै काब्यल मैं ।
टूम-ठेकरी बरतन भांडे;
खूड ड्यगाए सारे ।
सरम केरी नांह् , घर बार्यण के ;
लत्ते तलक उतारे ।
पूच्छड़ एक बची नांह् ,ब्याकगे;
कांले-धोले़ नारे ।
घेर ब्यके ग्यतवाडे़- बाडे़;
डयौढी हेल चुबारे ।
र्होज लड़ाई कर्या कुटम्ब कुट; बणग्या कात्यल मैं ।
पी कै दांरू क्यां है के भी ; रय्हा न काब्यल मैं ।
धरम-करम सतसंगत छूटे ;
कर्य लिया नस्ट इमान ।
मरयादा की ड़यौल़ टूट्यगी ;
नांह् रही म्यरी जबान ।
लुच्चा कहैं लफंगा वैं भी ;
जो वारैं थे ज्यान ।
नांह् को कैहान्दा आज्या भाई ;
होगी जात्य ब्यरान ।
लाग्गी बदबो आण आज, स्यड़ ; होग्या दाग्य़ल मैं ।
पी कै दांरू क्यां हे के भी ; रय्हा न काब्यल मैं ।
अगत्य ब्यगाड़ी बच्यां की , यें;
फ्यरते मारे-मारे ।
कै मंगते कै चोर उचक्के ;
कै होज्यां हत्यारे ।
भीत्यर बड़्य अरधंगी रोवै ;
फूट्टे करम हमारे ।
हे भगवान दया करिए, हम;
सब नै होगे खारे ।
फ्यरूं तरसदा भीख मंग्या ज्यूं ; चाट्टूं पातल़ मैं ।
पी कै दांरू क्यां हंे के भी; रय्हा न काब्यल मैं ।
खुल्हैं आँख्य नांह् दांरू ब्यन, न्यूं ;
इसनै कर्या बंध मँह् ।
पड़्या किते नाल़ी मँह् बैहकूं;
नांस्टी गडी गंद मँह् ।
मुंह् कै मुंह् ला कुत्ता चाट्टै ;
भरपूर आनेन्द मँह् ।
आब उतरगी , के रैह्ग्या ? था ;
कदे सोभा चन्द मँह् ।
इब तै बस्य पछताणाऐ सै ; बण्या कुजात्यल मैं ।
पी कै दारू क्यां हे के भी ; रय्हा न काब्यल मैं ।
कुत्ते ज्यूं हड़खाया होग्या ;
काढें जीभ फ्यंरू था ।
म्यलै किते दारू बस्य दारू ;
नांह् च्यत मँह् और धरूं था ।
दारू कारण चोरी ठग्गी ;
करण तै नहीं डरूं था ।
यारे -प्यारे ठगे सगे, ब्यन ;
जाण्यां जाण्य करूं था ।
के जीणा इब, बंधू , मेरा ; होग्या पागल मै
पी कै दारू क्यां हंे के भी ; रय्हा न काब्यल मैं ।
छोह्री आल़ा न्यूं चाहवै को; माणस सूद्धा पावै।
छोह्रे आल़ा पंसारी! के; कड़्य पै हाथ धरावै?
पैदा जिस द्यन छोह्री होज्या;
नया मुकदमा छ्ंयड़ज्या ज्या।
बाल़कां आल़ा खेह्ल नहीं सै;
सूत्य सा र्यस्ता झड़ज्या।
मेल़े मँह् जणु पसू बेचणा;
गाहक बलाणा पड़ज्या।
पड़ैं झंाखणे कितणे ए दर;
बुरंक सांतल़ां चढज्या।
नहीं ठ्यकाणा छाह्रे आल़ा मन-मन मँह् बतल़ावै।
छोह्रे आल़ा पंसारी! के; कड़्य पै हाथ धरावै?
गुलो़ई मुटाई छोह्री के;
अंगां की हो म्यणती की।
नाप-तोल मँह् कद-काठ्ठी मँह्;
लाम्बी तगड़ी बणती की।
कढी कागचां मँह् तै हो जणु;
अलग कलपना ख्यणती की।
सील सभा की गुणवंती हो;
फैंकै नहीं उफणती की।
पढी-ल्यखी हो, सरविस मँह् भी; ब्होत घणा धन ल्यावै।
छोह्रे आल़ा पंसारी! के; कड़्य पै हाथ धरावै?
देखणिए जब करंै कुटर सी;
जी गोड़यां तक ल्यकड़ै सै।
मात-पिता च्यंतत हर दम, जणु;
कोह्लू मँह् र्होज प्यडैं़ सैं।
छोह्री कै भी हीन भाव के;
जैह्री नाग्य लडैं सैं।
बाट-बाट मँह् तेल ल्यकड़्य ले;
इतणै संजोग झड़ैं सैं।
कांसी आल़ा क्रोंत बणै ब्याह्; जब मूहरत -द्यन आवै।
छोह्रे आल़ा पंसारी! के; कड़्य पै हाथ धरावै?
बड़ी पाह्ड़ तै धेज-मांग, वा;
नपै नहीं छोटे हात्थां।
ब्यकज्या सै घर-बार, जमीं;
मारै करजा दे लात्तां।
अजा-जात्य के ब्यकै, कुड़क या;
इज्जत ब्यखरै ज्यूं पात्यां
जणु काठ मँह् ठुक्या, न छूटै;
पैंडा सैह्जै सी बात्तां।
बंधू, मजबूर जनक धी बेच्चै; या हत्या करवावै।
छोह्रे आल़ा पंसारी! के; कड़्य पै हाथ धरावै?
सब की एक जणन आल़ी माँ; प्यता एक म्हारा सै ।
फेर किसा हम भेद करैं, जब; कुटम एक सारा सै ।
सीताराम को राधेस्याम;
को पारबती स्यव टेरै ।
बण्या भगत को दुरगा आग्गै;
कर्य ल्हास जीव की गेरै ।
अप-अपणे नै बडा बतावैं ;
बज्या बांस ब्यन बेरै ।
भूल्य असलियत पागल दुनिया ;
इरसा-बीज बखेरै ।
मोती छोड्य सकेरै धूल़ी ; अंधे का चारा सै ।
फेर किसा हम भेद करैं, जब; कुटम एक सारा सै ।
हुए पवित्तर कहैं खालसे;
करैं गुरू की हम टल्ला ।
सांझ हुए सरले़ रूक्यां तै ;
दे को बांग मुसल्ला ।
को आरियै को बरह्म समाजी;
लोग अकल तै झल्ला ।
बण्य चेल्ला को इसा मसीह् का ;
रैह् , पकड़य गाॅड का पल्ला ।
गाॅड, पातस्याह् इसवर, अल्ला; सब का इक प्यारा सै ।
फेर किसा हम भेद करैं, जब; कुटम एक सारा सै ।
को मुँह् पटिया , को गढमडिया ;
किते तपैं सै ग्यरनारी ।
रैह्दासी , कैलासी गिर भी ;
गरीबदासी पंसारी ।
किते ओधड़ किते नाथ , पुरी;
नाग्यां की डफली न्यारी ।
त्यागी और ब्यरागी, जोगी ;
सरबंगी दे क्यलकारी ।
सब की अक्कल मारी, पड़्यर्याह्; भेडां का लारा सै ।
फेर किसा हम भेद करैं, जब; कुटम एक सारा सै
पड़ै नरक मँह् जो दो समझैं ;
एक्कै पै नीत ट्यकाले ।
सरब आतमा एक समझले ;
वो परम पदी पद पाले ।
टोह्ले नै को सच्चा गरू तूं ;
भीत्यर ले नै खंगल़ाले ।
बंधू, जा सै पार्य उतर्य, जब;
बल़ी ग्यान की लाले ।
गंगा जा या जमना न्हाले; बगै एक धारा सै ।
फेर किसा हम भेद करैं, जब; कुटम एक सारा सै ।
45. जड़ सै अहंम् नास की
46. बात जिरैह् की नांह् सै
47. भाग समारूं
48. सेर नै सवा सेर
सब की एक जणण आल़ी माँ; प्यता एक सै म्हारा ।
भेद करैं क्यूं आपस मँह्, जब; कुटम एक सै सारा ।
पवन, अगन, जल चइहे सब नै,
धरती और आकास ।
भीत्यर मँह् पच्चिस परक्यरती;
कर दी रैंह् सैं बास ।
ग्यान, करम की लगी बराबर्य ;
इन्दरी मन की दास ।
वैं हंे ब्यरती-भाव सभी मँह्;
रोणा , भैय् , दया, हास ।
मान- बडाई हर चाह्वै सै; होज्यां सब का प्यारा ।
भेद करैं क्यूं आपस मँह् ; जब ; कुटम एक सै सारा ।
मरण-जीण के बंधन मँह् सब ;
आण-जाण मँह् फ्यरते ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, नांह्
किस के मन नै हरते ?
आस-त्यरसणा, दुख-च्यंता नांह्;
किसके च्यत नै चरते ?
गरमी-सरदी , भूख-प्यांस मँह्;
किसके तन नांह् झुरते?
बंधन फांस करम तै टल़्य कै; कूण रह्या सै न्यारा ।
भेद करैं क्यूं आपस मँह्? जब; कुटम एक सै सारा ।
जाण्य-बूझय अणजाण बणैं हम;
राकस ब्यरती धारी ।
कुणसा धरम स्यखावै नफरत ?
सोचो हे संसारी ।
भाई चारा, सह्न सीलता;
मानव सेवादारी ।
प्यार, अहिंसा, सच्चाई के ;
धरम सभी परचारी ।
माणस नै माणस तै जोड़ो ; सब धरमा का नारा।
भेद करैं क्यूं आपस मँह् जब; कुटुम एक सै सारा ।
भासा संसक्यरती न बडी को ;
बडी न जात्य धरम सै ।
माणस, बनस्पती, जी जन्तर ;
मँह् को भले नरम सै ।
सभी बराबर्य सरेस्ठ नीच नांह्
आप्पा बडा, भरम सै ।
सब मँह् एक्कै जोत्य बलै़ सै ;
सब मँह् एक परम सै ।
इज्जत से जीणे का सब नै; हक कदरत से थ्याह्र्या ।
भेद करैं क्यूं आपस मँह्; जब कुटम एक सै सारा ।
और नहीं को कारण दूजा;
जड़ सै अहंम नास की ।
अपणी भासा, देस धरम से ;
बध्य नांह् बात रास की ।
बणूं बाह्दस्याह् हो मलकीयत;
चाल्लै काट तांस की ।
जल़ण -दुसमनी, भेद-भाव सब ;
पैदा अहंम खास की ।
साधो रे, मन साधो, बंधू ; अहंम, रहै नांह् भार्या ।
भेद करैं क्यूं आपस मँह्, जब; कुटम एक सै सारा ।
स्याणा ओझा पौंह्च का मैं; किसीए मरज कटाल्यो ।
घणे कहैं सैं झूठा ठग सै ; पर देखो अजमाल्यो ।
सैयद, पीर, औलिया, द्योता;
बाला जी बजरंगी ।
काल़ी माई, भैरों गूगा;
दुरगा माता जंगी ।
भग्ती कर्य सब स्यध कर्य राक्खे;
खड़े-खड़ै इक टंगी ।
कंढी और चुराहे आल़ी ;
संतोसी माँ चंगी ।
आणे दे नांह् तंगी, ल्यछमी; इसके जाप करा ल्यो ।
घणे कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
पढ-पढ गंडे-ताग्गे द्यूं सूं;
झाड़ा लाऊं कमाल ।
दाणे देख तबीज बांध्य द्यूं ;
दुख रैहज्या के मजाल ।
नांह् ल्पकड़ै स्याणे की काड्ढी;
इसी घाल्य द्यूं घाल्य ।
माक्खी,माच्छर, भूंत बांध्य द्यूं ;
करद्यूं खूब रूखाल़ ।
पूच्छा पाड़्य भाल़ लगाद्यं; बेस्सक तै पुछवाल्यो ।
घणे कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
छ्यौर, ब्यटोह्ड़े जल़वाद्यूं मैं
गोद ह्यरी होज्यावै ।
कूख बदल द्यूं छोह्रा होज्या
फूह्ड़्य परी होज्यावै ।
द्यला दं्या द्योत्यां नै, पसू-नर;
बली, खरी हो ज्यावै ।
करा कढाई गैह्णा धरा द्यूं ;
ज्यान बरी होज्यावै ।
भटकण तै वो फ्री होज्यावै ; प्यतर थान बणाल्यो ।
घणे कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
हो अंधे ब्यसवास करो तुम;
बात जिरैह् की नांह् सै ।
अंधे हो, पर और हो ज्याओ ;
पार्य जाण का राह् सै ।
उस इसवर नै चाह्या तै यू ;
लाग्गै थ्हारा दा सै ।
मैं दलाल ऐजंटांे का सूं ;
उन मँह् मेरा भा सै ।
बंधू, चढा पीर पै दारू; ब्यगड़ी का हल पाल्यो ।
घणे कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
स्याणा ओझा पौंह्च का मैं ;किसिए मरज कटाल्यों।
लोग कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
जली-समाधी द्यलाऊं, सती,
कराऊं,मुक्ती म्यलज्या ।
सावितरी, दमयन्ती की ज्यूं ;
सीता सा यस ख्यलज्या ।
बणै समाधी पूजा हो वै ;
करम कर्या जो फल़ज्या ।
पिछले जनमां के करमा का ;
पाप-मैल सब धुल़ज्या ।
भीत्यर मँह् द्यूवा सा बल़ज्या; मेरी बात जराल्यो ।
लोग कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
युग विग्यान का है पर फिर भी;
म्हारा जादू चलज्या।
आवै म्हारै नांह् बंधू , को;
कूण इसा जो टल़ज्या ?
नेता तक ब्यदवान, विज्ञानी;
भी म्हारे गल़ घलज्या ।
जीत इलैक्सन मँह् करवा द्यूं ;
रैंक, मंत्री म्यलज्या ।
बैरी का सब मान ढल़ज्या; नैया पार्य त्यरा ल्यो ।
लोग कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
आज्याओ तुम एक बार, बस्य;
भाग समारूं मंदे ।
फिर तै आप्पै भाज्जे आओ;
हो कै पागल अंधे ।
जै ना चाल्या जागा, फिर भी;
तुम आआगे पड़दे-ढंह्दे ।
ढैया, साढ सती तारूं मैं ;
काट्टूं सारे फंदे।
रटो सनिच्चर हो कै बौले ; ला कै धोक मनाल्यो ।
लोग कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
किसिए पूछो, हारी -ब्यमारी;
खेती-बाड़ी ढोर की।
म्यलै नौकरी र्यस्ता होज्या ;
चैध्यर म्यलै पौर की ।
आइए! आइए। करवाद्यूं मैं ;
होज्या बात बौर की ।
आंधे नै मैं करूं सुणाक्खा ;
दे द्यूं आँख्य त्यौर की ।
नांह् बस की यंे बात और की ; अपणे बैह्म म्यटाल्यो।
लोग कहैं सैं झूठा ठग सै; पर देखो अजमाल्यो ।
मैं नादान भट्यकगी, लाग्गी; मेरै भूल भुलाई।
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी; ब्होत घणी प्यछताई ।
पैदा होंदिए चाल्य पड़ी मैं;
रीझ-रीझ इतराई ।
कर्य ब्यस्तार चली मदमाती;
लाम्बी डांक लगाई ।
अहंम् नसे मँह् चूर सोचती;
सै को मेरे नांई ?
किसका सै ब्यस्तार इसा सा?
किसकी सै लम्बाई?
अगुवा करल्यूं स्याहमी आज्या; करदयूं ढाया ढाई ।
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी; ब्होत घणी प्यछताई ।
किस पै झोक झ्यलैगी मेरी?
देक्ख्ूंा मूढ मती नै ।
नहीं किसे के बस मँह् , आँकै;
कूण म्यरी सगती नै ?
जी-जन्तर जां दैह्ल, देखकै;
म्यरी डाँक पड़ती नै ।
किस मँह् ताब अड़ै स्याह्मी? जो ;
रोक्कै म्यरी गती नै ।
चली काफले संग म्यरी थी; पल-पल कला सवाई ।
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी; ब्होत घणी प्यछताई ।
ज्हाज कम्बाए, नाव डबोई ;
जैसे आग्गै चाल्ली ।
एक चटान टकरगी आग्गै ;
कसर मनै नांह् घाल्ली ।
हट्य -हट्य टक्कर मारी उसकै ;
एक सूत नांह् हाल्ली ।
अहंम् चूर मैं हुई चूर थी;
क्यूकर रैह्गी लाल्ली ?
ल्यकड़् जी लिया सांझ समैय् जब; फेर समझ मँह् आई ।
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी; ब्होत घणी प्यछताई ।
त्यार सेर नै सवा सेर सै;
बडे की बडा दवाई ।
देखै नीचा सदा करै जो ;
हांगे की हंगाई ।
न्यो कै रैह जौ , रैह् फैदे मँह् ;
करै न बौर बडाई ।
देख बाल़ का रूख बरसाले;
होज्या रास्य छुवाई ।
छोड्डे जड़ नै, पकड़्य गोंड ले; रस मँह् नहीं रसाई
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी, ब्होत घणी प्यछताई ।
नान्हा सा मन किसा हठीला;
कूण स्यझावै सठ नै।
अहंम टनां मँह् ठाणे की के;
सैह्जे छोड्डै हठ न ?
विस्यै रमण नांह् छुटै न भूलै;
संसारी सुख रट नै।
जात्य ब्यर्यान करी, ना समझ्या;
चंचल इज्जत मठ नै ।
बंधू, कुट्य प्यट कै नै बैठ्या ; आखिर मुँह् की खाई ।
आँख्य म्यची हांगे मँह् मेरी, ब्होत घणी प्यछताई ।
49. आगली ग्यण ले
50. मंज्यल समझ कड़ै सै
51. भूल्य पाछली
52. उलटा आज्यां - अ
ए प्यरवा! प्यरवा तै आई; हो प्यछवा मँह् जाणा ।
सजल सभां सील़े की भैणा; मेरा कैह्ण पुगाणा ।
प्यछवा मँह् माँ जाया मेरा;
नाता एक खून का ।
बौल़ भरम की चढी, बैह्कग्या;
कोन्या रय्हा जूण का ।
भाई का सम्बंध सैह्द सा;
खारा बण्या नूण का ।
भाई सै मँह् या भी जाणू ;
साह्रा कड़क - थूण्य का ।
न्यूं कैह् , के मैं बण्या चून का ? मेरा बल़ ना जाण्या ।
सजल सभा सील़े की भैणा; मेरा कैह्ण पुगाणा ।
लदो-बधो की करी कामना;
होया था जब न्यारा ।
मरूं मेर मँह् भाई की , वो;
हिंसा आंधी ठाह्र्या ।
सींज कर्या गुलजार च्यमन जो;
था दोनांे का प्यारा ।
आज बल़ै सै भखड़-भखड़ वो;
आग्य जल़ण की लाहर्या ।
पड़्यर्या अहंम् पाह्ड़ तै भार्या; उसका आज उठाणा ।
सजल सभा सील़े की भैणा; मेरा कैह्ण पुगाणा ।
सुख तै बस्यले अर बस्यल्यण दे;
न्यूं कहिए तूं जा कै ।
नादिर साह् , चंगेज बणै ना ;
न्यूं कहिए समझा कै ।
अपणे दा मँह् आप पड़ै क्यूं ;
कुबल़ा हांगा ला कै ।
गलती हर पै हो , पर ऊंचा;
गलती जो मान्नै आप्पै ।
धरम नाम पै जी तरसा कै; होगा कड़ै ठ्यकाणा ।
सजल सभा सील़े की भैणा, मेरा कैह्ण पुगाणा ।
जा कहिए संदेस हमारा;
भूखे सील न्यजर के ।
म्हारा सै ब्यसवास अहिंसा;
राह्ई प्रेम डगर के ।
आपस्य मँह् कर्य मेल़ रहैं , क्यूं;
पूत्तर बणै सगर के ।
भाई-चारे स्योना हांे सै ;
मत्यना करै भगर के ।
पांडो नै फल़ म्यले सबर के ; कोन्या र्य्हा उल्हाणा ।
सजल सभा सील़े की भैणा, मेरा कैह्ण पुगाणा ।
ज्यद मँह् हो सै नास, अहंम् भी;
तीन ज्याह्न तै खोवै ।
कैरूं रावण ज्यूं खपज्या जो;
दुख के सेल चुभोवै ।
मैं बेस्सक तै दुखी रंहू, पर ;
वो क्यूं सुख तै सोवै ।
दुखी दूसरे के सुख मँह् जो;
कदे सुखी नांह् होवै ।
ख्यास करै जो औरां की , वो;
जौं गंगा मँह् बोवै ।
पर हित मँह् कर्य कै सुकरम वो;
अमर जगत मँह् होवै ।
अपणा यू परिवार एक सै; कोए नहीं ब्यराणा ।
सजल सभा सील़े की भैणा, मेरा कैह्ण पुगाणा ।
अपणी-अपणी जो सोच्चै , वो;
आप्पा आप डबोवै ।
पिछली भूल्य ग्यणै अगली;
क्यूं बेठ क्यनारै रोवै ।
चहिए सै ब्यसवास आपसी;
क्यूं तीजे नै टोह़वै?
सैह्न सीलता मँह् स्यान्ती;
क्यूं सैह्न सील ना होवै?
बंधू, पेड बबूली बोबै; कड़ै आम्ब का खाणा
सजल सभा सील़े की भैणा, मेरा कैह्ण पुगाणा ।
हुस़र कटड़वा चल्या ऊठ कै; छोह् मँह् जमा त्यड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य, कचिया प्यौध छड़ै सै ।
आड़े तक मैं सूं कैह वो;
उसका हांगा पाट्या ।
अपणी ज्यद पै अड़्या हुया वो ;
अहंम डटै नांह् डाट्या ।
मार्य फुकारे खैड़ चलावै; खोरी खूब भ्यड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौंध छड़ै सै ।
सींग टूट्यगे कूल्ली उतरी ;
चाल$आवै ना आझा ।
इसकी अहंम् आग्य नै झोट्टा ;
सील-सबर भी दाझया।
झोट्टा कढ्यर्या, द्यन देक्खे सैं; गौंड नहीं पकड़ै सै ।
खुरां काट्य कै क्ररै बराबर्य , कचिया प्यौध छडै़ सै ।
जब नांह् मान्या हद्य होली;
देक्खै खड़्या छल़्या सा ।
खैड़- गोफिया मार्या बगाया;
फैंक्या दूर्य डल़ा सा ।
करणी-भरणी का फल़, जैसी; खोद्दै आप पड़ै सै।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
पड़्या- पड़्या भसम्या सा जा सै;
कोन्या चैन पड़ी सै ।
क्यूकर खोज म्यटाऊं?
बदले आल़ी आग्य छ्यड़ी सै ।
इसी उच्चाटी होगी तन मँह् ; या खार सी लड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
झोट्टे नै समझाण त्यौर मँह् ;
करी न्यजर समझाणी ।
स्यंाती करले सब कुछ म्यलज्या;
स्यान्ती मँह् नांह् हाणी ।
ताते जल़ै बसैं सील़े , क्यूं ; तन मँह् तै ल्यकड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
गलत करम मँह् समझणिये की ;
बंधू, सुरती नांह् हो सै ।
गलती हो तै ठीक करण का
सभा कुद्रती हो सै ।
आग्गै नांह् हो, अगत्य देख ले; मंज्यल समझ कड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
हुसर कटड़वा चल्या ऊठ्य कै ; छोह् मँह् जमा त्येड़ै सै ;
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
भूल्य पाछली ग्यण अगली;
बैठ म्यटाले रौल़ा।
रौल़ा और बधावै रौल़ा ;
न्याय् मिलता नांह् तोल़ा।
समझ-यकीन आपसी मँह् , सक न कदे जकडै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
जब तक भैय् , नांह् म्यलती थ्यरता;
ब्यन थ्यरता नांह् स्यान्ती।
स्यान्ती मँह् हो सै ब्यकास, फिर;
हो खुसहाली क्रांती।
खुस हाली मँह् परमानन्द सै ; मुक्ती म्यले जडैं़ सै।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
या मँा भौं की करण घार,जो ;
कचिया प्यौध छडै़े तूं ।
लाई सै तै इस का भी हक ;
किसके सपन हडै़ तंू ?
छाया चाह्वे प्यार लखा की ; जिसनै तूं रगड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
अगत्य देस की न्यसछल़ सै या ;
सुदंर प्यारी मूरत।
देख हरकतें इस की भोल़ी ;
कूण न प्यंघल़े घूरत ।
बघ्ंाू ,नाच्चै-खैह्लै सै या ; अगले सपन घडे सै।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
हुसर कटडवा चल्या ऊठ्य कै ; छोह् मँह् जमा त्यडै़ सैं
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
सोधी आई बाक सुणे ,क्यूं -
करता घात रह्या मै?
खा ली इतणी चोट, फेर भी ;
खाल्ली हाथ रह्या मै ।
उल्टा आज्यां ह्यत सै इस मँह् ; भूल्या मन अकडै़ सै।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
नंाह् हिम्मत औकात म्यरे मँह् ;
आच्छी तरियंा जाणूं ।
अंत पडै़ समझौता करणा ;
कितणेक तीर ताणूं ?
भला इसी मँह् सल्हा मान्यल्यूं ; कोन्या स्यान झड़ै सै ।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
इज्जत दोनों की जब्बै, जब;
दे-ले कै निबडै़ सै ।
करै अहम् मँह् ज्यद खाह्मै खा ;
जबै बात ब्यगड़ै सै ;
ज्यद करवा दे सै माह्भारत ; उस मँह् जीत कडै़ सै।
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
किसका दोस बतऊं , हड़ी थी ; -
मेरी अकल , भूल नै ।
बधंू , खुद्य नै समझय और कुछ्य ;
पाड़ण चाल्या मूल़ नै ।
भूल्या सुबह सांझ नै आज्या ; मुड्य कै, के ब्यगडै़ सै ?
खुरां काट्य कै करै बराबर्य; कचिया प्यौध छड़ै सै ।
53. भूख
54. तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह्
55. तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् - अ
56. ढाई अक्खर
म्यटी कदे के म्यटै कदै या ; तन की मन की भूख ?
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख।
म्यटै एक पल जगै दूसरे ;
मर्य-मर्य पैदा हौ सै।
सोण द्यवै नांह् सपने मँह् भी ;
लगी किते रैह् लो सै।
बैह्कावै मन ,कई बै, न्यूं कैह ;
और नहीं कुछ टोह् सै ।
पूरी हो बस्य याह्-याह्, नाह् ;
और क्यमंे मँह् मोह् सै ।
घड़ा चीकणा फेर मागंले ; नाँह् मानणिया रूख ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख।
नान्हा सा पर भूख घणी सै ;
हांगा लावै कितणा !
के ब्यसात सै? बोझा ठावै ; पाह्ड़ ह्यमालय् इतणा ।
खुध्या मँह् बैह् पागल होग्या ;
चढै एक भी च्यत नांह् ।
यू हड़खाया भेड्डा आंधा ;
सोचै नांह् त्यल जितणा ।
भूख म्यटै बस्य, खाया मैं भी; फिर नांह् ऊठ्ठी कूख ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख।
दिब्य द्यरस्टी भी नांह् भाज्जै ;
जितणा चाल्लै यू सै ।
पलक झपक से पैहले वाप्यस ;
सात समंदर छू सै ।
दुखिय सै पर अणथक सै यू;
भूखा फ्यरै गुरू सै ।
भूखा नाप्पै भरमंड छन मँह् ;
चल मँह् रहै फ्यरू सै ।
भाज्यां जा दुख च्पऩ्ता मँह् भी ; जा तन पंजर सूख ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख।
भूख सुआरथ की मँह् बदलू ;
ग्यरगट बदलू यू सै ।
अहंम् भूख मँह् न्यंदा-चुगली
जल़ण- जैह्र का ढूह् सै ।
लोभ-भूख मँह् नीत और पै;
हड़पण मँह् रैह् रूह् सै ।
काम-भूख मँह् नीच भूलज्या ;
बेस्सक हो, हू-हू सै ।
र्यसी पालकी मँह् जोड़ै यू ; बण्य कै चलै नहूक ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख।
थोड़े सुख मँह् मान्य उम्हाया ;
फूल्य गुब्हारा होज्या ।
भरी हवा नै मान्नै आप्पा ।
औरे आप्पा टोह्ज्या ।
उडै हवा मँह् , मै भी सूं कुछ ;
होज्या , औ जा-औ जा ।
नान्हा सा कांडा, लाग्गै ;
ब्यस फोट तरज मँह् रोज्या ।
भैय् मँह् बुझै , दुखी जनमा के; घा ज्यूं जावैं दूख्य ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारे भूख ।
औरां का जब न्याय् करणा हो ;
बणै ब्यकरमा द्यत सै ।
बुद्धी आग्गै, आप्पा पाच्छै ;
रखणे मँह् रैह् च्यत सै ।
खुद-न्याय् के ना बुद्धी आग्गै ;
राक्खै हिम्मत कित सै ।
होज्या आंख्य बदल तोता जब;
देक्खै अपणा ह्यत सै ।
गोल़ तल़ी का सै यूं, बंधू ; नांह् ब्यसवास अचूक ।
लग्या भूख का घुण तन-मन मँह् ; भूखा मारै भूख।
पसर्या रेगिस्तान चुगर्दै ; रेतले उडंै़ बवाल ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह्; सूक्के बावड़ी ताल ।
क्षतिज सीम तक आंधी-आंधी ;
आर्य-पार्य कुछ है नांह् ।
ब्यचल़ परासत सी हो भाज्जी ;
ब्यखरी इन्दर सैना ।
सुन सा, अचरज मँह्, इन्दर सै; गल़ती नहीं इब दाल़ ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह्; सूक्के बावड़ी ताल
लुक ल्यकड़ै भरमंड जलै़ सै ;
भीत्यर आग्य लाह्ग्यरी ।
करी तपिस नै अगुआ सील़क;
जंगल़ी नै ज्यूं नागरी ।
इन्दर मरता फ्यरै त्यसाया ; हुई जल बंद मुहाल ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् सूक्के बावड़ी ताल ।
कोह्ल्य, पपहिए, भौंरे ,तितली;
मुरझाए जी- जन्तर ।
मोर - पिहू भी भूल्ली ब्यसरी ;
बुझ्या हुया सा अंतर ।
हर द्यन सै जणु जेठ दुपैहरी; आवा तपै ज्यूं लाल ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् सूक्के बावड़ी ताल ।
जल़ण क्रोध की अगनी बरसै ;
कोमल भाव जले़ सारे ।
नफरत की आंधी मँह् उडगे ;
कोन्या रहे खल़े सारे ।
बंधू, माणस नांगा होग्या ; हुया यूं जबर कमाल़ ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् सूक्के बावड़ी ताल ।
पसर्या रेगिस्तान चुगर्दै ; रेतले उडैं बवाल ।
तरेड़ खुल्ही जणु होठ प्यास मँह् ; सूक्के बावड़ी ताल ।
इन्दर सोचै था रैह्- रैह् कै ;
यू के होया ? छल्या गया ।
रय्हा अकेला खाली हाथां ;
फौज र्यसाला टल्या,गया।
फंस्या बेबसी के बस मँह्, वो; ल्यकड़ण हो किस ढाल़ ?
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् ; सूक्के बावड़ी ताल ।
कद्य मधुबन मँह् मधु बरसैगा;
मधुबन कद्य चैहक्ैगा ।
मान टूट सा होर्या सै, यूं ;
मधुबन कद्या मैह्कैगा ।
कद्य र्यम-झ्यम मँह् इन्दर नाच्चैं; कद्य नाच्चैं ब्यरध-बाल;
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् ; सूक्के बावड़ी ताल ।
देख किसे की सूजी आँखें ;
आँखें कद्य नम हांेगी ?
ऊंच-नीच अर जल़ण म्यटैं कद्य?
न्यजरें कद्य सम हो होंगी ।
तार्य मखौटा, खुदी पै खुद ; कद्य सी करे मलाल ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् ; सूक्के बावड़ी ताल ।
जले़ बले़ मरू ह्यरदे मँह् , कद्य ;
बीज प्यार के जाम्मैं ?
जुलम करै जो हाथ जबर , वैं ।
कद्य ग्यरदे नै थाम्मैं ?
कद्य आवैगा वो द्यन, बंधू ; बदरंग करै गुलाल ।
तरेड़ खुह्ली जणु होठ प्यास मँह् ; सूक्के बावड़ी ताल ।
हंस छोड्य कै ताल ड्यगरज्या ; जीणा सै पल छन का ।
घटा द्वेस की हटा , प्रेम कर्य ; रोग कटै जीवन का ।
प्रेम ब्यना जग सून्ना सारा ;
प्रेम के कारण ह्यर्या-भर्या ।
प्रेम ब्यना तूं खोट्टा रैहज्या ;
प्रेम तै खोट्टा बणै खर्या ।
प्रेम ब्यना कुछ्य त्यरे पास नांह्;
प्रेम से सब कुछ्य पास धर्या ।
प्रेम ब्यना नांह् फांसा कटता ।
पे्रम ब्यना न्यूं ए रहै घ्यर्या ।
ब्यरथा हांडै फ्यर्या -फ्यर्या तूं ; के ऊठ्ठै इस तन का ।
घटा द्वेस की हटा , प्रेम कर्य ; रोग कटै जीवन का ।
प्रेम इसा कोमल ससतर, दे ;
काट्य कसाई बक्कर नै ।
गरम सभा सै फिर भी सील़ा ;
प्यंघल़ादे पत्थर नैं ।
दब्या बोझ मँह् माणस इसके ;
आप ऊठ्यज्या ऊप्पर्य नै ।
ब्यना झुकाए ताकत लाए ;
पांह्यां आज्या झुक्कर्य नै ।
जै आज्या इसकी टक्कर मँह् ; भला करे दुसमन का ।
घटा द्वेस की हटा , प्रेम कर्य ; रोग कटै जीवन का ।
प्रेम विभूती इस्वर की सै ;
सदा प्रेम का वरण करै ।
स्याह्मी दरसन दे ज्यावे जै ;
प्रेम सै इसे समरण करै ।
बरह्म प्रेम है प्रेम बरह्म है ;
प्रेम उसका न्यराकरण करे ।
सारे न्यारे भेद पाट्यज्यां ;
जै तूं प्रेम की सरण करै ।
जै प्रेम करण का परण करै ; हो रूप अमीं घन का ।
घटा द्वेस की हटा , प्रेम कर्य ; रोग कटै जीवन का ।
सरवण , कीर्तन , अर्चन , पूजन ;
सेवन , वंदन , दास नही ।
सबसे बड़ी प्रेम की भगती ;
और क्यंाहे मह् रास नही ।
सब जीवों से प्रेम करै जै;
कैसे इसवर पास नहीं ?
अजमाले तूं भरम काढ्यले ;
जै होन्दा व्यसवास नहीं ।
पार्य उतरज्या, बंधू ; भ्यास्सी; जो प्रेम बढावण का ।
घटा द्वेस की हटा, प्रेम कर्य; रोग कटै जीवन का ।
57. कूण सै यू ?
58. लाले़ की माक्खी
59. स्यकारी
60. चाल कुदरती
देख-देख अचरज आवै यू ; किसनै खेह्ल रचाया ।
हो- गया सोच्य हार्य मँह् कोन्य समझ मँह् आया ।
किसकी मेहर न्यजर फ्यरणे से ;
परक्यरती हाँसै सारी ।
कीड़ी तै ले हाथी तक सब;
भरैं जीव सैं उडारी ।
पवन देव भी जोड़्य अरथ नै ;
करता मंदी असवारी ।
किसकी रागनी सुण्य कै भौंरे ;
गूंज करै न्यारी- न्यारी ।
किसके नाच तै प्यरवा- प्यछवा ;
बाल़ चलै बारी-बारी ।
किसके रंग तै फूल ख्यलैं;
स्यंगार करै क्यारी - क्यारी ।
भूचर , जलचर, नभचारी सब; भरै उमंग मँह् काया ।
हो-- गया सोच्य हार्य मँह् कोन्य समझ मँह् आया ।
बेठ चाँद मँह् कूण हँसै, या;
हाँसी ब्यखरै बे अनुमान ।
चुप हाँसी नै सुण्य के ख्यल ;
बाध्य सुरग तै हो सुनसान ।
भरमंड टूल्लै सुण्य कै उसके ;
मौन गीत की मीठ्ठी तान ।
कूण ओढ्य कै काल़ी चाद्यर ;
आसन्न ला ऊंचे असमान ।
तार्यां मँह् कै करै इसारे ;
सजनो देक्खो धर्यकै ध्यान।
सब नै ब्यरैह् सतावै उसका ;
किसी अनूठी उसकी स्यान ।
जितना नाप्पै उतनाए बधज्या; अथाह् अनन्त समाया ।
हो- गया सोच्य हार्य मँह्; कोन्य समझ मँह् आया ।
तपै भान मँह् गरमी बण्य कै ;
सरदी कूण जमावै सै ।
कदे चमासा पतझड़ पाच्छै ;
रंग बसंती छाह्वै सै ।
चक्कर बंध्या अम्बर-धरती का ;
इन्है कूण घुमावै सै ।
ब्यन् आधार के भरमंड लटकै ;
इसनै कूण झुलावै सै ?
पत्थर मँह् भी बस्या रहै, कुण ;
फूल्लै और फूलावै सै ?
संहार कदे ब्यसतार करै ;
अक्कल नै झुठलावै सै ।
भूल भुलैया लावै सै यू ; भेद पटण ना पाया ।
हो गया सोच्य हार्य मैं; कोन्य समझ आया ।
कड़क गरज बादल़ मँह् किसकी?
बडा भयंकर रूप धरै ।
सागर, अम्बर, धरणी दैह्लैं ।
पर बण्य अमरत रूप झरै ।
च्यमक छ्यपै सै बिजल़ी मँह् यू ;
आँख्य मीचणा खेह्ल करै ।
कूण भुरूपिया सब तै न्यारा ;
पता न कितने रूप धरै ।
सच्चे गुरू की ज्ञान धार मँह् ;
बैह् जो गुरू की टैह्ल करै ।
ढाई अक्षर सच्चे गुरू के ;
पढ़ै त, उसतै मेल़ करै ।
बंधू, कमी नै उसकै जिसनै; मंतर प्रेम ह्यथ्याया ।
हो गया सोच्य हार्य मैं ; कोन्य समझ मँह् आया ।
माया की माया न्यारी या; तै नए-नए रूप धरावै ।
च्यपटैं लाले़ की हम माक्खी; या तै सब की उकल चरावै ।
या सै मीठ्ठे ब्यस की सांपण्य ;
बेरा पटै न डसले पाप्पण्य ।
खा-खा पेट लाह्ग्यरी नाप्पण ; पी-पी कै लहू गलरावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी; या तै सब की अकल चरावै ।
चोल़ा पाह्र्य त्यरंगा अनूप ;
ठगती र्यसी महातमा भूप ।
धार्यले़ रणचंडी का रूप ; या तौ खप्पर खूब भरावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी ; या तै सब की अकल चरावै ।
बण््ाो म्यरग हम सब सुध भूल्लैं ;
संगीत तान नै सुण्य टूल्लैं ।
तीर से ब्यंध कै नै कूल्हैं; या ब्यन आई मौत मरावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी; या तै सब की अकल चरावै ।
हेड़ी फैंक जाल़ गल़ घोट्य ;
छलि़या मारै छल़्य कै चोट ।
सच्चे गुरू के ग्यान ब्यन, ओट; कोए भी नहीं करावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी; या तै सब की अकल चरावै ।
फंसे जाल़ मँह् मजा मान्य कै ;
पत्थर पड़े अकल पै आण्य कै ।
दे खूंची या जाण्य-जाण्य कै ; हट्य-हट्य कै या हमंे ग्यरावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी; या तै सब की अकल चरावै ।
सस्ते सुआदां मँह् नांह् बहिए ।
ठीक मती माणस नै चहिए ।
करै अति काल्य, दूर्य रहिए; या हे जुगती गती करावै ।
च्यपटैं लाल़े की हम माक्खी; या तै सब की अकल चरावै ।
बंधन फांस करम की गल़ मँह् ; ली घला ब्यचारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंदेई; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
माया चूंदड़ी रंग ब्यरंगी ;
पै लाग्गी फुलकारी ।
गोठ्य लगा कै जड़े सुतारे ;
पेम्मक च्यमकै न्यारी ।
कढ्या कसीदा मन मोहण नै ;
घोट्टा और क्यनारी ।
इस तै बध्य कै दुनिया मँह् नांह्् ;
और चंदड़ी प्यारी ।
झूठी इसकी च्यमकारी या ; ठगै दुनिया सारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंदेई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
चली ओढ्य कै चूंदड, बण्य कै ;
नई बहू इतराई ।
अग्यान का घूंघट काढ्य लिया ;
तम गुण गात्ती लाई ।
करण आसकी झूठी चाल्ली ;
अपणिए करी ठगाई ।
लेणे के देणे पड़्यगे जब;
स्यर धुण कै पछताई ।
खूब जाल़ के बीच फंसाई ; कूण सुणै क्यलकारी नै?
अंध कूप तै बाह्र्य् आंदेई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
म्यरग त्यरसणा के बस हो कै ;
फ्यरती मारी-मारी ।
पर कसतूरी म्यलै नहीं ,खो;
दे सै ज्यान गुआरी ।
भीत्यर ले पै काबू कोन्या ;
किसी हुई लाचारी ।
रेह्-रेह् माट्टी करै जीव की ;
आल़्हंडा बदकारी ।
आख्यर जब प्यट बेठै, मान्नै; वो हार्य करारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंदेई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
पौंह्चै रेगिस्तान झुल़सती;
लू लाग्गैं घबरावै ।
मरती फ्यरै त्यसाई, भाज्जै ;
कुछ नांह् पार बसावै ।
जाण्य रेत नै पाणी आग्गै -
आग्गै भाज्जी जावै ।
मारै कूद भाज्य कै बड़यज्या ;
खह्डा रेता का पावै ।
करें आँजल़ा रैह् ज्यावै फ्यर; कोस्सै अक्कल मारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंर्देई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
दुख-सुख गरमी-सरदी मान्नै ;
म्यलै न इनते छुटकारा ।
आल्हंडे मन तै छुटकारा जै ;
पाज्या तै हो उचियारी ।
अपणा असली रूप जाण्यले ;
खो भीतरी अंधियारा ।
परबत के समझै धरती का ;
कितणा इसका ब्यसतारा ।
मैं भी अँस रूप इसवर का ; पता न दुखियारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंदेई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
चक्कर ब्यूह् मँह् घ्यरी रहै, नांह् ;
टोही राही पावै ।
रहै भटकती फ्यर-फयर कै नै ;
उसी जगह् पर आवै ।
क्यूकर पार्य करै घेरा जै ;
मन के पांह् नांह् ठावै ।
आस-त्यरसणा छोड्य, गल़ामा;
माया नै पैह्रावै ।
न्यसकाम्मी हो संयम कर्य ले; बंधू, पी खारी नै ।
अंध कूप तै बाह्र्य् आंर्देई ; ली पकड़्य स्यकारी नै ।
जिसकी लाठ्ठी म्हैस उसै की ; होन्दी आई सै ।
देखी- परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
छोट्टे की या मजबूरी सै ;
पड़ै चालणा न्यो कै ।
नामरदी मँह् जीवै सै वो ;
अपणा आप्पा खो कै ।
धौंस द्यखावै, अजगर न्यंगलै; स्यामत आई सै ।
देखी- परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
स्यकरा दीक्खै नभचर दुबकैं ;
बण मँह् धाक सेर की ।
बड्डी मछली खा छोट्टी नै ;
कोन्या बात मेर की ।
उथल-पुथल जो भी कुदरत मँह् ; लठ-अंघाई सै ।
देखी-परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
हथकंगण नै अरसी के ; जो;
घटना होरी सैं ।
ठाढा मारै रोण द्यवै नांह् ;
जोरा-जोरी सै ।
जिसका जोरा उसका गोरा; नहीं समाई सै ।
देखी-परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
सुआरथ अंकल सैम का था ;
काबुल बगदाद ग्यरे ।
खाग्या सेर मेमने नै ;
चली नांह् एक जिरेह् ।
होठ पीट्य कै जग रैहग्या,के ; हुई सुणाई सै ?
देखी-परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
नाच्य-कूद्य कै, पटा खेह्ल कै ;
कर्य लाठ्ठी परदरसन ;
हिंसा कर्य कै अहं स्यान्त कर्य ।
करले सै मन परसन ।
भूल्लै, नांह् जा धोरे कै जो ; दी तरसाई सै ।
देखी-परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
पर कुछ भी तो रय्हा सदा नांह् ;
इतिहास गवाही दे ।
अम्बर सूक्कै सै जिसकी ;
अर जो त्रास तवाई दे ।
बंधू, वा लाठ्ठी भी टूटै, या ; काल चलाई सै ।
देखी-परखी चाल कुदरती ; बात सचाई सै ।
61. भैय् का भूंत बबावै
62. रूत्य-राज आवण
63. पनघट
64. पनघट - 2
चलते-चलते भान अरथ मँह् ; गगन स्यखर जब आवै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
इसा लगै जणु इस्सै कारण ;
रथ भी थम सा जावै ।
लम्बी होज्या जेठ दुपैह्री ;
इसका नाप न पावै ।
दुखी हुई सी छाँह् भी चाह्वै ; क्युकरी छांह् थ्यावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
चैन पड़ै ना जणु लटाएँ ;
दसो द्यसा ब्यखरावै ।
जणु क्रोध मँह् लाल हुया सा ;
तांडव नाच द्यखावै ।
गगन तपै जणु आवा तपता ; अंगारे बरसावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
भौं से भी लुक ल्यकड़ैं सैं ;
धधकै जणु च्यता सै ।
नाले़, खाल़े मरे सूक्य ;
जल का नहीं पता सै ।
घास फांस , कंकाल ताल का ; सून्ना रूप डरावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
आंधी-हूल़े भसम्या का जणु ;
भसमी रेत उडावैं ।
जी जन्तर डर्य ढार्यां बड़्ज्यां ;
फिर भी ड्रय घबरावैं ।
मरघट सा सुनसान स्यमाणा ; भैय् का भूंत बबावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
पल-पल सूक्कै होठ ब्यना जल ;
बेदम हुए हांफते ।
गगन कपासी-घन देखैं , जणु ।
करैं मजाक झांकते ।
भान-तेज मँह् निंदा पंछी ; उदड़क्या फड़फड़ावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
किते ग्यलैह्री को करेलि़या ;
कीकर, जांड नापते ।
मूस्सा, न्यौल़ किसे बोज्झे मँह् ;
राही बणा छापते ।
बंधू, सून्ने नभ मँह् बस्य को ; फ्यरती चीह्ल त्यरावै ।
घबरा खुद्य की गरमी से जणु ; आराम कर्या चाह्वै ।
हो-रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट; जिसकी माल़ा साल भजी । आवण भनक कान मँह् पड़्ज्या ।
चुगर्दे कै सन्देसा फ्यरज्या ।
जणु हल चल सी सारै करज्या ।
खुह्लज्यां भीत्यरली सब गांठ्य; ल्यकड़ै जितणी खीज ख्यजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
वायु,जल अर गगन न्यखरज्या ।
चाह् मँह् भर्य भौं जणु स्यंगरज्या ।
जिस पल पिया म्यलण की जरज्या ।
सजा कै जणु ड़योढी अर डाट ; खड़ी आर्ते नै त्यार मंजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
हरियाली पै ब्यछ्या गलीचा ।
रंगीले फूलां का सच्चा ।
जणु काढ्या नेह् जचा-जचा ।
दे न्यारी-न्यारी छाँट; पतझड़ आल़ी स्यकल तजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
फूलां-रंगी हाँसी ब्यखरी ।
अंगा मँह् तन पुस्टी न्यखरी ।
चुम्बक तरंग चुगर्दै दिखरी ।
जणु खुह्ल्यगे सारे पाट; वीनस दखै रझी- रझी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
गीतां की गंजार हर जंघा ।
झूम्य-झूम्य सब नाच्चैं अंघा ।
रास करण मँह् सब की न्यंघा ।
जणु सुरग जसन मँह् ठाठ ; देख-देख कै भूख भजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
जो लाग्गंै थे मरे-मरे से ।
लगैं रीस मँह् भरे-भरे से ।
ख्यलगे होगे ह्यरे -ह्यरे से ।
रहे भौंरे मधु नै चाट्य ;भीं-भीं कर्य जणु बीन बजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
मंद पवन, जणु सांस ल्यवै सै ।
सांस नहीं या अमग बव्है सै ।
करै गुदगुदी कुछे कव्है सै ।
बंधू , कुछ्य सा हो नै डाट्य ; मन-मन मँह् कुछ्य सोच्य लजी ।
हो....रूत्य राज म्यल्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
दुनिया कूआ पनघट का सै ; अपणी -अपणी बारी । पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
इस पनघट की गजबी सोभा;
रंग रंगीली सै ।
मेल़े कैसा लगै नजारा;
छवी खूब सजीली सै ।
चैहल-पैह्ल अर गैह्मा- गैह्मी ;
हो न कदे ढीली सै ।
लग्या रहै सै, नांह् हो सून्ना ;
नांह् हो तबदीली सै ।
आन्दी रैंह् अर जान्दी रैंह् सैं; स्यर धर दोघड़्य -झारी।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
भाँत्य -भाँत्य की पनिहारी सैं ;
रंग ब्यरंगी सारी ।
पनघट लाग्गै सज्या - धज्या सा;
कढरीह् ज्यूं फुलकारी ।
कुन्दन बदनी च्यमके लाग्गै ;
सुरज क्यरण सरमाह्री ।
पन्दरा सोल़ा स्यर की सै को ;
को हाथ्यण सी भारी ।
काल़ी , कोल्ला सी स्याह सै को ; रात्य घोर अंधियारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
जोस भरी को बेधड़के की ;
कोए रहै, भैय् - काम्बी ।
छोट्टी- मोट्टी , को पतल़ी सै ;
को केल़ा सी लाम्बी ।
गात्ती ला को झोक रोक ले ;
कोए थम्बै नांह् थाम्बी ।
फूह्ड़्य ब्यसूह्री आख, नीम्ब को ;
को टपके की आम्बी ।
कोए आग्य का पूल़ा सै ; को चाँद क्यरण सी प्यारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
कोए भुलक्कड़ चाली जा सै ;
मण्य पै दोघड़्य भूल्ली ।
को बैह्री सै करै इसारे ;
घड़ा ठवा हे बूल्ली ।
कोए लड़ोक्का सै कलि़हारी;
के जा सैह्जै जूल्ली ?
बंधू, हंस मुखी को हँस मुख ;
फूल झड़ी ज्यंू फूल्ली ।
तीर चलै ज्यूं कोए चलै न्यूं ; को हार्यड़ सी हारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
दुनिया कूआ पनघट का सै ; अपणी-अपणी बारी । पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
नकटी, बूची लंग करै, को-
आंधी , काणी , लूल्ली ।
कोए भुराड़ी मुंह् दाग्यल, पर
मगन मथन मँह् टूल्ली ।
को गूंगी खा गुड़ सा, तन मँह् ;
नहीं समावै फूल्ली ।
को हाकल़ी यै बतल़ावै जब ;
चढै सांस की गूल्ली ।
सरम जाण्य को काण्य करै नांह् ; खुह्ले मुखेरै आर्ही ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
म्यलणसार को सील घणी सै ।
कोए जमाए माट्टी ।
कोए सुरूपी खान्य गुणां की ;
सै लाक्खां मँह् छांटी ।
अहम् भरी को नखरो जलि़यर;
चरचा च्यांरू पाट्टी ।
बेइमान को झूठ्य -कपट मँह् ;
कदे डटै नांह् डाट्टी ।
काम चोर को औरां पै ए ; घड़ा भराणा चाह्री ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
को सेवक सै औरां के भी ;
घड़वे आप्पै भरदे ।
जब पनघट पै आवै -जावै ;
रैह् सै आल्है- परदे ।
बडी बडेरी जब फेट्टै , पांह् ; -
बोच्चै इज्जत करदे ।
बड्यसर भी फिर सीस द्यवै ;
अर हाथ सीस पै धरदे ।
बोल्लै सै कैह् दाद्यस , तायस ; जाणै नेग ब्यब्हारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
दो घाटी को मतलब काढू ;
नुगरी अक्कल खोरी ।
भर्या ठुआले अपणा, नाट्टें ; -
औरां नै , कम चोरी ।
तील़ नए सन की पनघट पै ;
पाह्रय द्यखा को फोरी ।
को औंरा नै खींच्यां फ्यरती ;
बण्य कै सब की धोरी ।
को दुरबल सै घड़ा उठै नांह् ;
अधंा जाण ने होरी ।
हट्टी -कट्टी गात पाह्ड़ को ;
बंधू , ताकत - बोरी ।
दबा काख मँह् ले उड्य ज्यावै ; दोयां नै वा नारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
65. रूत्य राज - अ
66. पनघट - 3
67. चक्कर ब्यूह्
68. अटल नेम बदलावा - अ
रूत्य राज म्या थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
ठाढे झोक्के मँह् दब्य न्योज्या ।
जणु अंगड़ावै लाम्बी होज्या ।
कठ्ठी हो फिर अंग ल्हकोज्या।
भौं , नांह् जोबन मँह् घाट्य ; सराबोर सै प्यार पगी ।
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
लीले न्यतरे मंडप भीत्यर ;
ज्यंू नखरो का सा को चितर ।
ढलै़ नूर सै यो न्यखर -न्यखर ।
जणु खसबो का घन पाट्य ; मैहक्या नभ अर धरा रजी ।
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
भान किरण भी ज्यूं ललचाई ।
उतर्य धरा पै चुम्बण आई ।
न्य्हाल हुई कर्य क्यरण म्यलाई ।
न्हा-न्यखर धूप के घाट ; पलके मारैं मोर धजी ।
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
नसा भर्या सा आनंद बरसै ।
अंग फड़कैं नस-नस मँह् सरसै ।
देव लोक भीज्जण नै तरसै ।
परी रही मधु सा बंाट्य ; कर्य नख-सिख स्यंगार सजी ।
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
छ्यड़े-छ्यडे़ से सब कैंह् जणु यें ।
आनन्द ही सै जीवन का ध्येय् ।
भैय् दुख धोल्यो इस मँह् भे-भे ।
जा कट्य जीवन की बाट ; क्यूं जिन्दगी हो दझी-दझी ?
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
बंधू, सारस पर तोलैं सैं ।
भीत्यरली घंूडी खोह्लैं सैं ।
खडे़ हुए चुप पर बोलैं सै ।
नांह् धर्य तोलण नै बाट ; भूख हुई बध्य कई गजी ।
हो....रूत्य-राज म्यल्या, थी बाट ; जिसकी माल़ा साल भजी ।
दुनिया कूआ पनघट का सै; अपणी- अपणी बारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
पीह्र- सासरे घर कुणबे की ;
बतल़ावेैं पनघट पै ।
लाभ- हाण अर दुख-सुख अपणा;
गावैं पनघट पै ।
हाॅंसी - ठठ्ठा करैं मसखरी;
इतरावै पनघट पैं ।
भूल्लैं घ्यरसत टेम गवावैं ;
गप भावैं पनघट पै ।
तंू ओच्छी सै,इसे उल्हाणे ;
भी थ्यावैं पनघट पै ।
इसकी उसकी सब की चरचा ;
भी ठावैं पनघट पै ।
लाग्गैं न्यंदा चुगली मँह् वैं; जीभ घसांलय्ं सारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
गैह्रा कूआ डोल ख्यंचाई ;
खवे काढ्यले जड़ तै ।
सांस फूलज्या, हाँफ सुणै ;
जब ल्यकड़ै सै धड़्य तै ।
डोल डूबज्या कदे टूट्य कै ;
मण्य से लेज रगड़ तै ।
ब्यना ध्यान जब ठुकराज्या , जल ;
फूट्य बहै दोघड़्य तै ।
घड़ा भरण मँह् स्यर तल़वाई ; पूरे हांगे लाह्री ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
कितणे गाल्यम सैं कुदरत मँह् ?
को ग्यणती अनुमान नहीं।
जमा एक से इस दुनिया मँह् ;
कोए दो इनसान नहीं ।
सबके गाल्यम न्यारे- न्यारे ;
सबकी एक प्यछ्याण नहीं ।
भाव, ब्यचार सभी के न्यारे ;
त्यस अर भूख समान नहीं ।
गुण,रस न्यारे-न्यारे सब मँह् , जितने ; भी सैं जी धारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
और तमासा नहीं इसा को ;
जिसा तमासा पनघट सै ।
देख-देख कै अचरज आवै ;
किसा तमासा पनघट सै ।
भेद न पाया क्यूं लाया यू ?
इसा तमासा पनघट सै ।
दूणा उल़झै ज्यूं झख मारैं ;
तिसा तमासा पनघट सै ।
बंधू, पावै आद-अन्त नांह् ; न्यू अक्कल चकर्हारी ।
पैह्ले - पाच्छै आ कै आड़ै ; भरज्यां सैं पनिहारी ।
बीहड़ जंगल़ हिंसक जन्तु; बाट न देखी भाल़ी ।
मंज्यल दूर्य बाट लाम्बी, अर; घटा उगमणी काल़ी ।
आंधी तूफां ओले़ बरसैं;
ओट न्यजर नांह् आवै ।
खाई - खंदक चैेगर्दे नै; क्यूकर ल्यकड़्या जावै ।
लचारी मँह् ग्यर ध्यर कै; याद्य आवै जाम्मण आल़ी ।
मंज्यल दूर्य बाट लाम्बी, अर; घटा उगमणी काल़ी ।
छोट्टी बुद्वी राह् सूझै नांह्;
जगपरल़ो सी होज्या।
भैय् -च्यन्ता मँह् ब्यचल़्त हो कै ;
सुध -बुध सारी खोज्या ।
धीरज नांह् हो नांह् को दीक्खै; जोग जुगत की ताल़ी ।
मंज्यल दूर्य बाट लाम्बी, अर; घटा उगमणी काल़ी ।
किस की पार बसावै सै जब ;
हर की माया फ्यरज्या ?
लाख ज्यतन करल्यो नांह् ल्यकडै़,
चक्कर ब्यूह् मँह् घ्यरज्या ।
ब्यना हुक्म उस परम प्यता के ; ह्यलैं न पत्ते डाह्ल़ी ।
मंज्यल दूर्य बाट लाम्बी, अर; घटा उगमणी काल़ी ।
बखत्य कहो या होणी कैह्ल्यो; यंे बलवान बताए ।
बखत्य करावै होणी होज्या;
कोन्या हटं़ैं हटाए ।
बंधू सोचै ल्यखी भाग मँह् ; हरगाज टल़ै न टाल़ी ।
मंज्यल दूर्य बाट लाम्बी अर; घटा उगमणी काल़ी ।
कर्य ब्यसवास भाग मँह् माणस; बुद्वी नै जड़ करले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
कौल़ी अंधे ब्यसवासां की;
भरै जकड़्य, छोड्डै नांह् ।
स्याणे- भोप्यां की बात्तंा के;
जाल़ भरम तोड़ै नांह् ।
फिर भी बार-बार दुख हो सै; दुखै दुखां मँह् मरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
लाम्बी-लाम्बी करै यातरा;
तीरथ-धाम पूजता ।
मनोकामना पूरी होज्या ;
नांह् कुछ्य और सूझता ।
न्यूं होज्या तै न्यूं कर्य द्यूगां; कई बै बचन भरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
न्यूं नांह् सोच्चैं परक्यरती का; अटल नेम बदलावा ।
छाया-धूप, धूप-छाया का ; करती खेह्ल छल़ावा ।
कदे एक सी रहै नहीं या; पलक झपक मँह् फ्यरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्,बस्य होणी मँह् च्यत धरले ।
बाहर भीत्यर के जो कारक;
जितणे कुदरत मँह् सैं ।
न्यचले नांह् रैंह् मन मरजी मँह्;
बंधू चाल्लू रैंह् सैं।
आपस मँह् टकरायां जां सैं; हो ऊप्परले तरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य, होणी मँह् च्यत धरले ।
69. सीमा हो सै
70. क्यसमत ब्यगड-समरले
71. ओपरी नांह् को माया
72. ओड़ हय्द्ां का आया
कर्य ब्यसवास भाग मँह् माणस, बुद्वी ने जड़ करले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
सब मौके की बात मुताबिक;
मौके के बीतै सै ।
लाभ -हाण, दुख-सुख जोडे़ मँह्;
हारै को जीतै सै ।
आँख्य फोर मँह् बदल पता नांह्; किसा सांग भरलेे।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
रैहज्यां धरे धराए, बुद्वी;
जतन चैकसी सारे ।
मौका झड़ज्या इसा कई बै ;
नांह् बस चाल्लैं चारे ।
हर प्राणी की सीमा हो सै क्यूकर बाह्र्य ब्यचरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
हर दम चैकस कोन्या प्राणी;
मन चंचल के कारण ।
मन चिन्तन मँह् भूल्लै कित सूं
खां ठोक्कर दुखे दारण ।
साधें ब्यन , मन चंचल, बंधू , जीव चेतना हरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
सुआद, सुआरथ भावावेस मँह्;
प्राणी जोख्यम ठा सै ।
आप मरै औरां नै मारै;
हाथ भाग कै ला सै
करणी दाता की कहै दोस्सै; अपणे खोट ब्यसरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य, होणी मँह् च्यत धरले ।
क्र्य ब्यसवास भाग मँह् माणस; बुद्वी नै जड़ करले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य, होणी मँह् च्यत धरले ।
साहस, धीरज , चेतन बुद्वी;
दुख मँह् बाम दवाई।
ढाल , कवचे यें वार ओट्य ल्यैं;
किसिए पड़ो तवाई ।
तूफानंा मँह् किस्ती सैं, जी; भव सागर मँह् त्यरले।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
सपने मँह् भी हो न कदे जो;
हो संजोग इसा भी ।
आप्पै हो स्यध काम चाणचक ;
चाव्हैं म्यलै जिसा भी ।
छप्पर पाट्टै पड़ै मोघ से; ख्यंडज्या खूब, समह्रले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य, होणी मँह् च्यत धरले ।
अपणे अर औरां के परती;
करम कर्य जो , फल़ दे ।
भाव- ब्यचार जिसे हों म्हारे ;
दें फल़ कोन्या टल़दे ।
भाव - ब्यचार करम से होणी ; क्यसमत ब्यगड़ समरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
अंधंे ब्यसवासां का कारण,
बंधू , ग्यान अधूरा ।
भैय्- च्यन्ता से मुक्ती क्यूकरी ;
होज्या सुआरथ पूरा ।
उस्सै चाह् मँह् आग्यजनी अर; जी हत्या की जरले
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
कर्य ब्यसवास भाग मँह् माणस ; बुद्वी नै जड़ करले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
कुदरत के जो संकट आवैं ;
उनके भी कारण सैं ।
ओपरी नांह् को माया पड़ै;
दुख सैह्णा दारण सै् ।
टलै़ं न कारण दें दुख, बंधू; कितनाए राम समरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
कारक न्यच्यलें नांह् रैहणे से ;
पल - पल कुदरत बदलै ।
राज यही घटनाओं का ;
जी ख्यलज्या अर ग्यधलै़
स्यरस्टी रचैं करैं परल़ो ; इनते कूण उभरलै।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य ; होणी मँंह् च्यत धरलै
आवै काम , काम््य दूजे कै;
आज्या सूत्य चाणचक।
पता लगै नांह् कारण का, फट;
छप्पर लूट्य चाणचक।
कहै दया सै ऊपरले की ; झुक्य कै राम उतरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
बचा - बचाई करदें - करदें;
भी आज्या सै आड्डी ।
कद्य के होज्या सै, नंाह् बेरा ;
धसै गार्य मँह् गाड्डी ।
अणजाण किसे कारण तै , जी; जाण्य पटै जब घ्यरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
कारक ही तै चांस रचैं सैं ;
जमा ल्हको खुद साया ।
बंधू नांह् को इनते न्यारा ;
नांह् इसवर की माया ।
बेरा पटै न हम नै, चानस; म्हारी बुद्वी हरले ।
तरक करै नांह् भीत्यर मँह्, बस्य; होणी मँह् च्यत धरले ।
चैंध टूट्यगी , हुआ खुलास्सा; ओड़ ह्यदां का आया ।
पाणी फ्यरग्या स्यर पर कै नै ; कुणबा हुया पराया ।
उमर हुई कुछ्य बेमारी ;
कुछय च्यन्ता नै खाया ।
पड़्या खाट मँह् भी नाह् दीख्ै;
जणु पंजर की छाया ।
खंासंू् सूं जब सांस उलझ ज्या ;
लाग्या भीत्यर फाह्या ।
माक्खी बड्य- बड़्य ल्यकडैं़ , रैह् सै;
मुंह बाया का बाया।
ऊठ्य बैठय ज्यां या भी कोन्या ; अन की बांधी काया ।
पाणी फ्यरग्या स्यर पर कै नै ; कुणबा हुआ पराया ।
गैर हुया मैं उस द्यन, जिस द्यन;
उठ्या उसका साया ।
द्यसा जाण की भी नांह् आस्यंग ;
कूण करै संगवाया ।
उसका भीत्यरला रोवै था ;
नाह् खुद्य अपणा जाया ।
हाल पूछणा बात दूर्य की ;
धोरै तक नांह् आया ।
ऊठ्य गया मन उसका इक द्यन ; तज्य द्यूं घर, मन भाया ।
पाणी फ्यरग्या स्यर पर कै नै ; कुणबा हुआ पराया ।
बीत्तण मँह् कुछ्य कसर रही नांह्;
के-के दुख नांह् ठाया ?
दुखी हुया वौ न्यूं सच्चै था ;
ज्यान ल्हकोज्या भाया ।
चल्या ऊठ्य कर्य हिम्मत, फिर नांह् ;
घर की कैड़ लखाया ।
लाठ्ठी- साह्रै चाल्या जा था ;
चढ्य घ्यरणी चकराया ।
पड़्या ! पड़्या ! जणु ईब पड़्या बस्य ; अंधेरा सा छाह्या ।
पाणी फ्यरग्या स्यर पर कै नै ; कुणबा हुआ पराया ।
ग्यर्या जमीं पै अण स्यम्भल़्या सा ;
बोल्लण तक नांह् पाया ।
घणी बार मँह् सोधी आई ;
सैह्मे त्यौर लरवाया ।
सैह्ज- सैह्ज फिर बैठ्या हो ;
तन ढेक भींत के लाया ।
नब्बै पैंते सीढी चढ्य ली;
न्यूं मन मँह् बतल़ाया ।
इब नाह् सीढी थाम्बणिंया को ;
लरजी थलस्या पाया ।
बंधू ,सब फल मीठ्ठे पाक्कंै ;
माणस फल़ कड़वाया ।
करले जो कुछ्य मरजी तेरी ; हे इसवर त्यरी माया ।
पाणी फ्यरग्या स्यर पर कै नै ; कुणबा हुआ पराया ।
73. कूण ब्यचारा
74. दुख-मार्या (तेरै के फैह्री)
75. दुख - मार्या (अट्यक खजूरा)
76. दुख-मार्या (फुफा)
नब्बै पैंते चढग्या जब वो ; तन काम्ब्या घिगयाया ।
सीढी थाम्बणियां हो को , न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
बच्य कै भी नांह् बच्या ब्यचारा;
त्यरसंकू सा रैह्ग्या ।
लगी चोट से चूल़ ह्यली , वौ ;
ढारा सा ढैह्ग्या ।
डरे दास सब ल्यकड़ भाजगे ;
एकला फंस फैह्ग्यां ।
सुनामी मार्या सा जखमी वो ;
सैह्म्या सा सब सैह्ग्या ।
चोट घणी गुम लगी जोर की ; चसकै जर-जर काया ।
सीढी थाम्बणियां हो को , न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
लगी टकटकी दूर्य बाट मँह् ;
लगै किसे का मार्या ।
आए ब्होत पकड़गे पास्सा ;
कैंह् थे , कूण ब्यचारा ?
पर नांह् वो आया अपणा, जो ;
दे लाठ्ठी का साह्रा ।
ल्हास पड़ी मैं उठ्या न जाता ;
इतणा होग्या भार्या ।
लाचार हुया सब क्यांहें तै ; धीरे सीस ह्यलाया ।
सीढी थाम्बणियां हो को , न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
बचपन और जवानी रंग ;
जां डूब बुढाप्पे मँह् ।
जो नांह् होणी चहिएं , वैं भी ;
हों ,खूब बुढाप्पे मँह् ।
उसके भाव ब्यचार छड़े जां ;
ज्यूं दूब, बुढाप्पे मँह् ।
ज़ात्तग कैंह् म्यस करै, भरै यू ;
हबूब बुढाप्पे मँह् ।
भाज्या फ्यरया करूं था, डूब्या ; सारा आज उम्हाया ।
सीढी थाम्बणियां हो को , न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
पड़या पेट मँह् गोड्डे दे कै ;
सुन सा , बाज्जै जाड़ी ।
पेट बांस तै म्यल्या हुया था ;
देह् भी अघ- उघाड़ी ।
दौरा सा पड़्य बन्द कई बै;
हो ज्यावै थी नाड़ी ।
उगज्य खड्यां मँह् बूंद कदे दो ;
च्यमकै माड़ी -माड़ी ।
घायल हुए सुआभिमान से ; घायल हो बोर्राया ।
सीढी थाम्बणियां हो को , न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
याद्य, न्यजर सब मंदे होगे ;
बाणी, सरवण चूक्या ।
कई द्यन होगे पड़े-पडे़ नै ;
घर का नांह् को ढूक्या ।
पास ब्होत कुछय मेरे है, फिर ;
क्यंूं मैं नांगा भूखा ?
दे दे तै जै भागवान को ;
खा ले रूक्खा - सूक्खा ।
उथला पुथली भीत्यर मँह् थी ;
कड़ै गया पूत्तर - मूंगा ।
जवाब सुआल का कूण द्यवै जब ;
समाज बैह्रा गूंगा ।
ठग्या गया ब्यन बेरै ,बंधू ; ब्यरथा गया कमाया।
सीढी थाम्बणिया हों को, न्यूं ; च्यारूं तरफ लखाया ।
आन्दी होई जब बस देखी
झट गोड्यां पै थेल़ी टेक्की
उठ्या हड़बड़ाया वो, भाज्या
गात थम्ब्यां नांह् झोका खाग्या
अस्सी सालां का बेचारा
लुंज -अपंग सा, था दुख- मार्या
आस्यंग कोन्या थी ऊठ्ठण की
चैक्खी चोट लगी दुक्खण की
झटके तै बस रूकी ठ्यौड़ पै
उठी सवारी जणु मखोैड़ सेै
सब की लगन चढण की बस मँह्
धक्कम धक्का के उस रस मँह्
कूण लखावै बूढे़ काह्नी
जिसकी आँख्यां मँह् था पाणी
बूढे गेल्ली कौड बणी थी
देख्या, आई दया घणी थी
तौल़ जाण की थी मन्नै भी
बस मँह् हुआ चढण नै सी
अंतर् आत्मा थी कुछ्य कैह्री
चोट लगी थी मेरै गह्री
सुआर्थी दुनिया अंधी बैह़्री
न्यू सोच्चै तेरै के फैह्री
संकल्प विकल्पां के घेरे तै
बाह्र्य हुया झट उस हेरे तै
मनै ठ्यौड़ तै गेड़ा खाया
कौली भर्य कै बूढा ठाया
मित्तर प्यारा, नाती बेल्ली
कोए नंाह् था उसके गेल्ली
सांस ल्यवै जब बांसली बाज्जै
आँख गाह्ल तै कूआ लाज्जै,
न्यरास दुखी था जणु बेज्यान
बंधू बेहद्य था परेसान
माटटी संगवाले हे राम
मेरा जीणा इब किस काम
उसके भितरी बाक- बोल थे
कैह्रे जणु वैं साच खोह्ल्य थे
दुक्खां की आंधी का झोल्ला
उसके लाग्या था अणतोल्या
पूच्छया जब, क्यंू एकला चाल्या
जब नांह् जाता चाल्या -हाल्या
के तेरा परिवार नहीं सै
कोए भी जिम्मेवार नहीं सै
चल्या एकला अकल बही सै
इसी कोणसी आण्य फही सै
कित्तै आया कुणसे गाम?
जाणा सै अर के सै नाम ?
गैह्रा सांस सबर का घाल्या
बेदन कैह्ण लग्या मुह् हाल्या
तल़ै जमीं ऊप्पर असमान
बस्य यू हे सै मेरा गाम
मेरी म्यटरी जमा प्यछ्याण्य
अट्यक खजूरा मेरा नाम
जेल़ी भींत ब्यचाल़ै आग्या
भौंरा भ्यंच्या फूल मँह् थ्याग्या
सांस लेण का भी सांह्सा सै
इब दीक्ख्या दुनिया झांसा सै
पाच्छा भूल्या चाहूं सूं मँह्
द्यल ब्होतै समझाऊं सूं मँह्
मन , पिछली याद्य करें जा सै
हरकै सै, गल़ा भरैं जा सै
चाल्लै घर मँह् किड़नाल़ मेरे
बेटे , पोते बहू भतेरे
कैए बसो गाम घर डेरे
बंधु , मेरे नां के ढेरे
दो कांधै दो गोद्दी ठाए
तर्हां - तर्हां के लाड लडाए
उनके टुबकणे थे ताक्कू से
बाध्य वैं तीर हलाकू से
आठों पैह्र सेल मारैं थे
भीत्यर अन्तर नै सारैं थे
कदे परोहित कदे बटेऊ
फूफा कैंह थे कदे बधेऊ
ल्यकड़ चल्या जा किते, कहैं न्यूं
क्यूं खर बंध्यर्या म्हारै सै तूं?
गढ्यर्या छड़ा रांद्य नांह् कटदी
म्हारी होणी तूं नांह् हट दी
जै घर मँह् सब सत्यानासी
अप-अपणे मतलब के ख्यासी
ल्यछमी नांह् वै बहू कुलछणी
खुल्हे मुखेरै चरंै ब्यन धणी
ढाल़ -ढाल़ के तोह्मंद लावैं
मारणी गां की ढाल़ लखावैं
लडै़ं मूछ अर डाढी पाडै़ं
मेरे गेल्यां बट्टे हाडैं़
भूखा - प्यासा मांगू था जब
झलकारंैं थे मंगते ज्यूं तब
कुत्ते ज्यूं न्यजर चलाऊं था
उनकी बुगल़ां पै लखाऊं था ।
बैठ्या देख्यां जां था बाट ;
अणजाण जणु भेड़ै थे पाट
नांह् को ले था म्यरी ह्यमात
ब्यन मार्यां लाग्गैं थी लात
तूं देक्खै सै नंगा गात
लत्ते पाट्टे ब्यगड़ी जात्य
बंधू गाद्दड़ आल़ी रातय्
हौगी लाम्बी आगी स्यात।
77. दुख - मार्या (हुआ खटारा)
78. दुख- मार्या (कड़वा फल)
79. दुख - मार्या (नरक बास मँह्) - अ
80. दुख - मार्या (माणस तै वोहे)
काह्ल्य बणी जो मेरे गेल्ली
सुणै कोए जो जा नांह् झेल्ली
उंगली दांदंा तलै़ दबावै
सुण्य के मुह् बाएं रैहज्यावे
परसों मन्नै प्यलस्यण थ्याई
आंद्यई होगी हाथा पाई
एक बहू नै कौल़ी भरली
गौझ्य एक नै झाड़ी तरली
दोस्सो रपैये काढ्य लिए
सौ-सौ कर्य कै बांड्य लिए
कई बै मूंधी मारी खाट
सोच्या इब क्यां की सै बाट
बाक्की रैह्र्या था जो भरम
टूट्या वो भी टूटी सरम
मन भरग्या बस्य ल्यकड़्या घर तै
कै द्यन जीऊंगा डर्य -डर्य कैे
के ल्याया के लेज्यां धर कै
पिंड छुटाल्यूं अपणा मर्य कै
लद्या फ्यरूं था मोह् का मार्या
सब नै खींच्या करदा धोरी
आज देह् नांह् , ड्हीखर होरी
गाड्डी नांह्, इब हुया खटारा
उतर भाज्यगे पड़ग्या लारा
मनै द्यलासा दी डट्य- डट्य कै
स्यान्त हुया सा था जब हट्य कै
पूच्छ्या, जाणा सही बता कित
छोड्डूं, सही ठ्यकाणा सै जित
ब्ंाधू , न पूगै म्यरी मरोड़्य
मन्नै धरूवा लाया मन मँंह्
ध्यान आसरम आया छन मँह्
इतने मँह् बस दुसरी आगी
उठा ब्यठाया बस मँह् त्यागी
ले कै ब्यरध आसरम आया
नाम ल्यखा भरती करवाया
कुछ्य खरचा -पाणी दे कै जब
हुया चलण सी नै मैं तब
आँख्या उसके पाणी से
बुझी हुई सी थी बाणी से
उसके भीत्यर मनै प्यछ्याणी
विरह् रूधन की भरगी घाणी
उथल -पुथल जो चली धक -धकी
देक्खै था जब लगा टकटकी
धीमी बाणी मँह् बौलैे था
सैह्ज मँह् सबद जणु तोल्लै था
भला भली करणी नांह् छोड्डै
पर हित मँह् अपणा तन लोड्ढै
भला त्यरा हो जुग-जुग जीओ
सदा सुखां का अमरत पीओ
एक स्यान तूं और कर्य दिए
फेर कदे भी याद्य कर्य लिए
सबद सीस के ब्होत भले थे
लगे मनै जणु ध्यरत घले थे
बुढे ने जब चल्या छोड्य कै
द्यल थाह्म्बूं था मोस्य मोड़्य
उस पंजर की सिंह् आवै थी
भीत्यर डूंडे से ठावै थी
पर आनन्द लैह्र भी ऊठै
गद गदांदी बैह्र सी ऊठै
म्यरी मदद सेे एक ब्यचारा
जीग्या जणु आया जी सारा
उमर पकै जब माणस जा ढल़
बंधु , होज्या सै कड़वा फल़
इनै कदे के सोच्ची होगी
करणी ज्यन्दगी ओच्छी होगी
पड़्य कै जैसे डाभ- कांस मँह्
पिछली घडि़या नरक बास मँह्
ढोए डले़ इनै जीवन भर
नाहक बोज्झा धर्य कै स्यर पर
लाणा लाग्गै उस उलाद्य को
जो नांह् जाणै दाद्य फलाद्य को
उसका डूब्य मरण का हक सै
बेबस को जो न्यूं दे दुख सै
मन मँह् बूढे नै फेट्टण की
हाल्यत पूच्छण अर देक्खण की
आई कुछ्य द्यन पाच्छै मेरे
मता बणाया चलूं सबेरे
पर देख्या उस रात्य नींद मँह्
स्ंयगर- डोर्य वो बैठ पींघ मँह्
झूल्य रयहा था लोग झुलावैं
करै इसारे मनै बुलावै
न्यूं सी कैंह्दा मनै सुणै वो
घणे द्यना मँह् आए क्यंू हो
सोच्या करदा मैं मन-मन मँह्
याद्य त्यरे कर्य अपणेपण नै
क्यूं नाह् आया अंग नोच्चूं था
पकड़य कालजा मैं बोच्चूं था
मुँह आंसुआं तै मैं पोच्चूं था
बेबस मीन तर्हां लोच्चंू था ।
आँख्य खुल्ही मैं था ख्यन सा तब
हुया चलण नै अगले द्यन जब
अखबार पढ्या तो पड़ी न्यजर
ब्यर्ध् $आसरम की लगी खबर
’’बूढा जिसका नाम र्यसाला
ला वारिस था अस्सी साला,
को सज्जन हमदर्द था उसका
नाम भूल्यग्या था वो, जिसका
उसकै लाग्गे उसके चोड्ढे
आँख्य सूज्य के होगी डोड्डे
आया ना इकरार करे पै
जल पड़्य ज्यांदा विरह् भरे पै
दयन-रात्य याद्य मँह् वो कूल्है था
पीणा पीज्या ज्यूं जी भूल्लै था
ब्यलाप मँह् दसरथ से कम नंाह् था
पर सज्जन नै उसका गम नंाह् था
बंधू के प्यारे बोल फुहारें
मह्सूसे अर करी गुहारें
आख्यर मरदा- मरदा मरग्या
घु़ल़्य-घुल़्य कै दम पूरा करग्या
सज्जन के नां पछतावे की
आग्य छोड्यग्या ज्यूं आवे की
खुद्य की लाग्गी नै सब जाणै
दूजे की नै कूण प्यछयाणै ’’
पढी खबर गाड्डे से टूटे
कौल़ म्यरे सब होगे झूठे
सरणाट्टा सा गया गात मँह्
हुया पतझड्ी सूक पात मँह्
बुत सा बणया मै बेठ्या रैह्ग्या
झड़गी आब चाँद सा गैह्ग्या
घर घ्यरस्ती मँह् इसा फंस्या मैं
ल्यकड़ सक्या नांह् इसा धस्या मँह्
एक बात असली सै आड़ै
सुआरथ का जो पड़दा पाडै़
के मैं उसनै न्यंू खो द्यन्दा?
जे मैं असली माणस होन्दा
अपणा ह्यत तो सभी करैं सैं
खुद सुआरथ मँह् सभी मरैं सैं
पर माणस तो वो हे हो सै
जो दूजे ह्यत आप्पा खो सै
सुआरथ स्यध जै होंदा उसतै
रोह्जै फेट्दा न्यांेंदा उसतै
खून का र्यस्ता नांह् होणे से
दूर्य रय्हा वो द्यल कोणे से
अपणा तै अपणाए हो सै
पर मँह कितनक हो मोह् सै
इसी सभा की मजबूरी से
कर्या न याद्य लगन पूरी से
न्यूं तै केभरा कितणे फेटटैं
किसकी लगन नै पूरी मेट्टैं ?
गेड़ा लाग्या नांह् ज्यांहे तै
र्यस्ते रहैं आएं-जाएं तै
एक बार भी नहीं म्यल्या मैं
उसका कर्य नांह् सक्या भला मँह् ,
एक बार भी जै म्यल ल्यन्दा
उनै तसल्ली स्यान्ती द्यन्दा
उसकी ब्यैरह् तड़प म्पट ज्यांदी
याद्य म्यरी नांह् डूंडे ठांदी
पर कुछ भी हो या थी ह्ंयसा
म्यरा करम था ब्यलकुल ज्यन सा
इंसान नही हैवान अधम-
मै पापी संू नीच छदम
ध्यक्कार मुझे वो तड़फाया
ह्ंयसा कर्य कै के कुछय पाया ?
पछतावै का रहै कोढ यू
ज्यन्दगी भर का गात फोड़ यू
मै सुनैह्रा कुहाऊं मगर
नांह् स्यौन्ना, इब हुया भगर
हे द्यवंगत बुजरग तेरा
बास सुरग मँह् नरक है मेरा
करूं कामना तेरी रूह् को,
म्यलै स्यान्ती भंवर फ्यरू को
हे द्यवंगत माफी मांगूं
प्यछताऊं सूं करणी छांगूं
सज्जन का भीत्यर रोवै था
बंधू, मन काल्य़स धोवै था


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


सौजन्य: प्रोफेसर राजेन्द्र गौतम

सम्पादन: न्य्डाणा हाइट्स

आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
© न्यडाणा हाइट्स २०१२-१९