इ-लाइब्रेरी
 
कवि हरिचंद
infohn-lab.html
Infocenter.html
!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
थाह्मे उरे सो: देहळी > इ-लाइब्रेरी > कवि हरिचंद बन्धु > कविताई 81-119
कविताई 81-119
कवि हरिचंद बन्धु जी की हरियाणवी कविताई

कुल 39 (81-119)
बंधू जी का संक्षिप्त परिचय

कवि हरिचंद 'बंधू' M. A., Ph. D. (हिंदी) पुत्र श्री कुरड़िया राम जी, गाँव व् डाकखाना सिल्ला खेड़ी, जिला जींद (हरियाणा)

अध्यन एवं लेखन में रुचि, कई शोध पत्र व् प्रकाशन, जिनमें हरियाणवी सांगों में रागिनी (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में श्रृंगार (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन व् श्री लख्मीचंद का काव्य वैभव (हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत) प्रमुख हैं|
81. बहू (रड़की सल़ी)
82. बहू (धौल़पांह्) - अ
83. बहू (कर्य द्यूं आँख्य) - ब
84. बहू (आंधी)
बूढा -बूढी बतलावैं थे ।
अपणी गुरबत नै गावैं थे
बहू छोह्रे की बात चली
बुढिया कै जणु रड़की सल़ी
घ्यण सी मँह् कुछ्य हो कै छोह्ली
रोणी सी हो बुढिया बोली
मै तै थी ब्यन बहूए भली
इब नाचूं मैं ज्यूं कठपुतल़ी
जिस द्यन या बड़ी घर मँह् जल़ी
उस्सै द्यन म्यरै फांसी घली
कहे सुणे की कती न मान्नै
ज्यद मँह् सच के सै नंाह् ध्यानै
कहैं सुलट उलट पकड़ै सै
बडी करै अपणी जकड़ै सै
रीस करै या हद्य करणी सै
सस्ते सुआदा पै मरणी सै
के कैह्गा को नांह् सरमावै
ओहे चलण बाज नांह् आवै
बडे पीह्र की करै मरोड्य
सब नै फैंकै या तोड़्य- तोड़्य
खुह्ले मुखेरै चरदी हांडै
बैइज्जती से हमनै डांडै
झट से बदलै झूठ्य बोलज्या
तरक करै तै खून खोलज्या
फूट्टे करम, कैह् इस घर आई
म्यरे साथ की अपसर- ब्याही
हमनै तै या मान्नै कूड़ा
बंधू , हरदम बोल्ल्ैा फूहड़ा
ब्लड प्रेसर की बीमारी सै
या क्र्रोधण सब से न्यारी सै
थोड़ा सा कैंह्दंइं या छ्यलकै
जब्बै आँख्यांे आँसू ढ़लकै
ठोस्सै दे या मनै ख्याज्यावै
उं़गली द्यखा मनै धमकावै
कैदा इज्जत या नांह् जाणै
कदे छोट - बड नहीं प्यछ्याणै
नाक पै माक्खी नहीं ब्यठावै
या बारूद नांह् दाब सुहावै
धोरै बैठे बतलावै नांह्
दुख-सुख सुणै सुणावै नांह्
हर दम चढी रहै या गुमसुम
थाह् ना देख सके इसकी हम
मन की नांह् या घंूडी खोह्लै
मगन मथन अपणे मँह् डोल्लै
खंाए रैह् जणु गोल़ी गम की
रैह थुम्बला सी भरी अहम् की
हाँसी कदे न हो होठंा पै
मोटे- मोटे से ठोठां पै,
काम करण के नां सरकै नांह्
म्यस करले या खा कर्य कै नांह्
स्यर मँह् दरद कदे गात भड़क
पेट दरद कदे द्यल की ध ड़क
खा-खा माल सूज्यगी ज्यूं मल
लटकै मांस गात नांह् खा बल
बंधू, बसणी नांह् बात करै
या, गेल धौल़, पांह् साफ करै
काम देख कै नाक चढैसै
जणु टूट्य कै पाह्ड़ पडै़ सै
लहू म्यरे मँह् कैह् थोड़ा सै
कमजोरी नै तन तोड़्या सै
तोडै़ खाट मरौड़े मारै
चैंबिस घंटे हारपण तारै
काम चोर बीमारी कीड़ा
पीवै लहू द्यवै या पीड़ा
हाथ खुह्ल्यंा मँह् जो कुछ्या आज्या
वाहियाती खरचे ठाज्या
नहीं टेम पै टुकड़ा - पाणी
रूक्खी- सूक्खी पड़ैं धकाणी
न्यूं भी कोन्या न्यारी पोल्यैं
न्यूं मँह् घर की इज्जत खोल्यैं
न्यूं कैह् मेरे तै कैह्णे की
नही जरूरत, नांह् सैह्णे की
घणी करोगे गोल़ी खा ज्यां
झट से धेज्जी केस बणाज्यां
करद्यूं आँख्य याद्य राखोगे
जेल़ गजां मँह् कै झांखोगे
घणे डरैं सै नंाह् बोल्लैं हम
होणी नांह् करदे ? या सै जम
किस कूए मँह् इब हम पड़ज्यंा
नांह् दीक्खै बिल जिस मँह् बड़ज्यंा
छोह्रे नै भी मुसक्यल होरी
न्यून भंींत न्यून झोट्टा खोरी
हमनै देखै तै सरमाज्या
उसनै देक्खै तै डर्य सा जा
पच-पच कै द्यन रात्य कमावै
बंधू , फिर नांह् टिकड़ा थ्यावै
ओ नहीं, या सै उसकी खसम
एक घूर्य मँह् करदे भसम
बेबस सै, सब कुछ्य पीवै सै
धर्य धड़्य पै पत्थर जीवै सै
दो पाटां बिच छ्यत - घ्यस कै नै
चून हुया सै प्यसय प्यसय कै नै
बुझ्य - बुझ्य कै नै होग्या कोल्ला
लोग कहैं जोरू का गोल्ला
उसकी ग्यणती बूझ नहीं सै
राहू नै चाँद - स्यकल गही सै
मूर्यत पूजै पत्थर सींजै
करै लटोटर हांगे-धींगै
ब्यंसवासां मँह् इऱ्ंघै- तींघै
अंध फ्यरै ज्यूं त्यरछै - बींगै
इसी लगन जै खुद्य सुधार मँह्-
हो तै रैह् ना बीच धार मँह्
सतसंग के नां स्यंगरै- डोरै
गंुडे, लूटू गरूआं धोरै
उड़दी फ्यरै बैह्म के डोरै
ल्यूं बरदान रहूं नांह् कोरै
धरम बाप-मँा हम उसके जो
पूजै पूछै नांह् हम नै वो
पर हम होगे माक्खी कौलै़
च्यकली-छड़ी दूब ज्यूं ड्यौलै़
राम घरंा पर बाहर टोह्वै
या यंे झूठे झगड़े झावै
पत्थर बुद्वी पै पड़गै क्यूं?
कद्य समझै हे कुलच्छणी तूं?
कैह् सै, नांह् को म्यरे ताड़े की
और भेड सै सब बाडे़ की
बिंदी पोडर सीस्सा कंघा
जणै कितणक सै अड़ंग धडं़गा
जूते , चप्पल कई ढाल़ के
सूंट अणग्यणत नई चाल के
घातण इतणा कठ्ठा कर लिया
बाह्र्य पड़ै घर जमा भरलिया
रोह्जे नए का फ्यकर करै या
हट्य कै न उसका ज्यकर करै या
बंधू , हो आंधी, इसा अड़ंगा
जमा करण का लेह्री पंगा
यें साधन परसाधन नकली
कुदरत द्यवै रूप गुण असली
85. बहू (सुथरी - स्याणी)
86. बहू (ड्यंध मँह् ड्यंध ठाले)
87. कथा मलाल की
88. मूरछा टूटी
चाह्वै जणु पदमनी बणज्यां
सब बीरां मँह् न्यारी जणज्यां
सुथरी लाग्गंू होज्या चात्यर
जणु इन्दर खाड़े की पात्यर
सुथरा के धौेल़ी चमड़ी का
गुण नांह् हो जै इक दमड़ी का
छान्य काम की ठाले सै जो
काम हरी रूप मनाले सै जो
टोह्-टोह् काम करै सार्यां नै
ठा खेवे भारी भार्यां नै
सबकी इज्जत करै करावै
बोल्लां मँह् सरबत सा प्यावै
ऊंचा सोच्चै सादा जीवै
ओरां का गम खावै पीवै
फरज करण मँह् कदे न लरजै
जैह्मत ठा, जा ऊंचे दरजै
स्यान मानले बणै न नुगरी
कर्य कै भला बणै ना फुकरी
आप्पा भींच्य स्यकोड़ चलै जो
नांह् ओरां कै धक्के खा वो
आँट - भीड़ मँह् अर दुख- सुख मँह्
साझ्यण हो झुक सबके रूख मँह्
आत्याचार कुन्याय् आग्गै जो
समझौता कर्य नांह् भाज्जै जो
जो आच्छे काम किसे के की
करै बडाई सुण्य देक्खे की
सैह्न सील ज्यूं माट्टी होज्या
नांह् ल्हासी ज्यूं खाट्टी होज्या
ममता दया सबर हो जिसकै
ब्यसै बाह्र्य नांह् दीक्खैं र्यस कै
बंधू , वाहे सुथरी स्याणी
बेस्सक हो वा काली ,काणी
भूखे भा के बोल प्यार के
ठंडे गोत्ते गंग-धार के
बूढे चाह्वै और नहीं कुछ्य
बाम लाग्यज्या, भूलैं सब दुःख
बूढा बोल्या तू सै बौल़ी
चुप खींचण की खा ज्या गोल़ी
टेढी पुछड़ या कुत्ते की
म्हारे नहीं बात बूत्ते की
चिकणा पैंह्डा बूंद थलस्य ज्या
लाल तवा या बूंद झुल़स्य ज्या
जाड़ भींच कै झाल्य डाट्यले
न्यांे कै सजनी टेम काट्य ले
मरे मौत ब्यन कसर नहीं सै
घणी कैह्ण का ब्यसर नहीं सै
कूड़ा सैं तै पडै़ रहैंगे
कूड़़दान मँह् स्यड़ै रहैंगे
चलण देख जी जलै़ भतेरा
बस चाल्लैं नांह् खल़ै भतेरा
हम नै इब के लेणा-देणा
टेम पास बस्य करदे रैहणा
भूक्ख्यां नै दो रोटी म्यलज्यां
ठ्योस करैं चहे जून्य टलज्यां
इनके गल़ घल्य के लेणा सै
जिसा बीतज्या सब सैह्णा सै
बाल़ चाल्यगी नई चाल की
ढल़्य कै पकड़ लें उसै ढाल़ की
न्यू करणे मँह् फैदा रैह्गा
खोट न म्हारे मँह् को कैह्गा
घणी गई इब थोड़ी रैह्री
कान्ना टालै़, होज्या बैह्री
के बेरा कै द्यन जीणा सै
जैह्र भी अमरत कर पीणा सै
द्यल पत्थर का करले सजनी
ध्यान अगत्य पै धरले सजनी
अहम् बराबरी जब टकरावै,
माह्भारत सा तब छ्यड़्य ज्यावै
और किसे का के ब्यगडैे़गा
अपणाए तै घर उजडै़गा
बंधू ,कै तै, पाच्छैं लाले
कै फिर ड्यंघ मँह् ड्यंघ ठा ले
कय्हा करैं सै आम्मण लाले
देख बाल़ का रूख बरसाले
फखर कंरू थी सीता सूं मै; उस त्रेता काल की।
चैंध्ंा म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की ।
सोच्चै था ल्यूं ऐस; बुण्या न्यूं;
घुटमा जाल़ मरद नै ।
ललक सुआरथ पूरे हों, न्यूं ;
चाल्ली चाल मरद नै ।
गलत धारणा पाट घड़े, म्यरी़़;
दल़दी दाल़ मरद नै ।
भल़ो भका की मसक बांध्य मैं;
करी न्यढाल़ मरद नै ।
जड़ करदी थी बुद्वी मेरी; सुध रही नांह् हाल की ।
चैंध म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की।
रीत, दबा, भैय् अर मरियादा;
कइए ढाल़ मरद नै ।
थोंप करी काबू, मैं सेई ;
स्योड़े लाल मरद नै ।
बणा रकासा मुजर्यां मँह्, दी;
कोठ्ठै घाल्य मरद नै ।
बांदी बण्य दे दास्सी नाच्ची;
ली न्यूं ढाल़्य मरद नै ।
खाण-पीण की मान्य, धसाई ; मैं हंसणी ताल की।
चैंध म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की।
ज्यादा नाड़ धरे मेरे पै;
आप्पा टाल़य् मरद नै ।
फरज- पांड़ धर मेरे स्पर, दी;
फोड़्य कपाल़ मरद नै ।
उत्तर बणी सभी का जो भी;
करे सुआल मरद नै।
पसू ब्यकंे ज्यंू मेले़ मँह्, दी;
बेच दलाल मरद नै ।
के- के जुलम सहे नांह् उसके ? बणी बुगल़ काल़ की ।
चैंध म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की ।
मंद बुद्वी कमजात्य, ब्यसूह्री;
मान्नी ग्याल़ मरद नै ।
बद चलण, औगुणी, गंदी कैह्, दी;
भेज पताल़ मरद नै ।
हर तरियां ओच्छी मानण की;
करी न टाल़ मरद नै ।
रोह्ज कसाई वाड़ा देख्या;
करी हलाल मरद नै ।
रही समप्र्यत सदा, कर्या नांह् ; उजर मान्य बाल़ की ।
चैंध म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की।
हम दरद नहीं, बेदरद, दिया था;
ह्यरदा साल्य मरद नै ।
पल्ला कदे न सूक्या मेरा ;
खाई खाल मरद नै ।
फिर भी नाथ सुआमी मान्या,;
कर्या न ख्याल मरद नै ।
रही भगतणी खुदी सौंप, नांह्;
डाट्टी झाल्य मरद नै ।
बे काम गई भगती सब, बंधू; म्यरी सालांे साल की ।
चैंध म्यटी, जब रची मरद नै; म्यरी कथा मलाल की।
मैं वा त्रेता सीता, कोन्या; रही चडि़या जाल़ की ।
जाल़ भरम का उड़्या, हवा जो ; चाल्ली आज -काह्ल्य की ।
मूरछा टूटी, आँख खुह्ली इब ;
आई होस कडै़ सूं ।
खुजली हो च्यमराट माच्यग्या,
आवै बांस जडै़ संू ।
देख्या न्यजर धुमा कै, च्यत मँह्;
ऊड़े की ऊड़ै संू ।
हुया चाणचक ग्यान जनक की
पाल़ न, घली धड़ै सूं
नव युग- सीता, बणू काल़ मैं ; इब अपणे काल़ की ।
जाल़ भरम का उड्या , हवा जो; चाल्ली आज काह्ल्य की ।
सही यातना जाड़ भींच्य, जो;
नरकां मँह् भी हों नांह्।
पाणी फ्यरग्या स्यर् पर कै नै;
रही कसर इब को नांह्।
झुकूं कुन्या आग्गै न, संहू इब;
कुत्ते आल़ी तोह् नांह् ।
ईब व्यवस्था बदलूं, पैह्ले;
पड़ी कदे भी फौह् नांह् ।
करू लड़ाई आर्य - पार्य की; माह्भारत ढाल़ की ।
जाल़ भरम का उड़्या , हवा जो; चाल्ली आज- काह्ल्य की।
छोह्वै कदे, डरी मै हरदम, ज्यूं ;
भीत्यर अपराधी का ।
मेरा भी तै कुछ्य हक होगा ;
साबत्य का आधी का ।
स्यकस्या, न्याय् बोल्लण, जीणे का ;
समता , आजादी का ।
जनम जात्य हक यें , हक सब के;
गगनी भौं प्यादी का ।
इज्जत से जीऊं न रंहू इब; बणी रोड़ी गाल़ की ।
जाल़ भरम का उड्या, हवा जो, चाल्ली आज काह्ल्य की ।
जर जुग- जुग का तार्य ऊठली;
मांज्य मानसिकता नै ।
च्यमक, ल्यकड़ज्या पार्य फोड़्य इब;
पौराणिक ल्यखतंा नै ।
उंगल़ी दांद तलै़ दें सब , लख;
मेरी साह्सिकता नै ।
कम न किसी से बेदी सूं मै ;
बदलूं भसिकता नै ।
सू की पैड़ां चाल्य बणूं मै; म्यसाल बेम्यसाल की ।
जाल़ भरम का उड़्या, हवा जो; चाल्ली आज- काह्ल्य की ।
हिम्मत कर्य मैं बणूं कलपना;
गगन ऊंचाई नापंू ।
मैं तसलीमा, मै इबादी;
ब्यदरोह् - ब्यदरोह्ै जापूं।
आध्यात्मिक भी ऐसी होज्यां;
कीड़ी नै भी थापूं।
संत टरेसा सी बण्य कै, नांह्;
सेवा करदी धापूं ।
बंधू, करूं न मै समझौता ; ला आम्मण बाल की ।
जाल़ भरम का उड़्या; हवा जो चाल्ली आज- काह्ल्य की ।
89. जाम्मी अणबोई
90. इसे जीण तै
91. पांह् की जूती
92. सेर सवारी
फोड़ा बल़्य - बल़्य ऊठ्ठै मेरा; सुण्यले कूण ज्यकर नै ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै।
जिस द्यन मैं गरभस्थ हुई ;
ड्यग्या मान जनक - जननी का ।
ताग्गै, धोक, दवा मँह् होग्या;
ध्यान जनक- जननी का ।
अल्ट्रा- सांऊड़ मँह् देख्या ;
परिणाम जनक- जननी का ।
कोन्या पाया लाल ब्यगड़ग्या ;
ज्ञान जनक- जननी का ।
तवा चढ्या नांह् उल्टे नगारे; छोह्रे के चक्कर मँह्।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
मजबूरी मँह् अपणाई मैं ;
कोन्या सील़क होई ।
करी स्यम्भाल़ अणमना सी, जणु;
मै जम्मी अणबोई ।
गरमी-सरदी भूख- प्यास मँह् ,
दुखी दरद मँह् होई ।
कैंह थे खून खा लिए म्हारे,
बोझ मान्य कै ढोई ।
रूस्या राम उठाई भी नांह् , क्यूकर कंरू सबर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
बीत्या सैसव जैसे तैसे,
फ्यर बचपन मँह् आण्य रल़ी ,
बणी टैह्लुआ आग्गै - आग्गै ,
पर ग्यणती मँह् नहीं रल़ी ।
करी दुभाँत्य सदा मेरे तै;
खाए झूठ्ठे टूक पल़ी ।
भाईरोई बेस्संा रंडी;
सैह्न करी सब कटी जल़ी ।
मरी मेर मँह् उनकी मैं, पर; उनके लाड कसर मँह्।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा ; खाया चंूड्य फ्यकर नै ।
आग्गै म्यल्या जुवारी भरता;
पीऊ नास करणिया ।
घर की ठ्यौड़ ब्यटौड़ा हो;
इस बात की ख्यास करणिया ।
कुछ्य पीग्या कुछ्य दा पै लाग्या ;
सब कुछ्य घास करणिया ।
दुनिया हाँसै थी, इज्जत का;
पड़दा फास करणिया ।
अणकरूआ, नांह् बाल़क स्यम्भले, लट्यके रहे अधर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
फोड़ा बल़्य- बल़्य ऊठ्ठै मेरा; सुण्य ले कूण ज्यकर नै ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चंूड्य फ्यकर नै ।
चैन गंडीरी सी छोह्रे की;
गूंठी हो सुसरे की ।
झुमके, बाल़ी सास्य के हांे ;
नांह् स्योने ध्ाुसरे की ।
बौर बडाई म्हारी - थ्हारी;
करे काम सुथरे की ।
मारूती हो सैल करण नै;
नांह् आस करैं दुसरे की ।
इनकी सुण्य - सुण्य मांग म्यरा जी; चढ्य-चढ्य गया स्यखर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चंूड्य फ्यकर नै ।
फ्रिज, कूलर , अलमारी, सोफे;
अर हों तील़ नए सन की।
सास्य नणंद तान्ने दे सारैं;
भूक्खी थी वै धन की।
भीत्यर बड़्य -बड़्य रोया करती;
ज्योड़ी बांटी तन की ।
र्होज लड़ाई कर पीटैं थे;
कदे न पूछी मन की ।
भूक्खी नांगी द्यन तोड़ू थी, कोन्या सही घर बर नै ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
पीहर कान्ही न्यजर पसारी ;
फोह् ना पड़ी कैह्ण की ।
वैं बेचारे आप दुखी थे;
ताकत नहीं सैह्ण की।
कित्तै भोभा भरदी उनका;
आगी बात तैह्ण की ।
लाचारी परबत तै भारी , मन;
आई म्यरे दैह्ण की ।
आंधे सासरिए नांह् समझें; फरक खांड सक्कर मँह्।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंृड्य फ्यकर नै ।
मारैं भी नांह् रोण द्यवैं, को;
क्यूकर करै गुजारा।
इस्सै दुख मँह् ज्यान झोकगी;
कमला, ब्यमला,तारा ।
इसे जीण तै सोच्ची मँह् भी;
राह् पकंड़ू को न्यारा ।
याहे सोच्य कै ड्यौल़ तोड़्य कै;
बंधू, छोड्य पसारा ।
बंधी भाग के डोरै चाल्ली ; मैं अणजाण डगर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चंूड्य फ्यकर नै ।
फोड़ा बल़्य’-बल़्य ऊठ्ठै मेरा; सुणले कूण ज्यकर नै।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
इक मन कैह् ले कूआ झेरा;
इक नै गेल ब्यचार्या।
आतमघाती कायर हो, के;
एक यही सै चारा?
जिन्दा द्यल का नाम ज्यन्दगी;
क्यूं समझै सै भार्या ।
जूझ्य मरो, ल्यो इसका रस, जो;
खाट्टा, मीठ्ठा खारा ।
कायर जिन्दा ल्हास कहैं, वो, बसता, सदा कबर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
क्यूकर लाली रहै चीर की;
झाड़-झाड़ था बैरी ।
डर लाग्गै था गीध न्यजर से ;
जात्य बीर की ठैह्री ।
यू समाज न्यरदयी के समझै;
किस कै कितनी फैह्री ।
करै सुआरथ पूरा अपणा;
डंक मारता जैह्री।
कोए नांह् दीक्खै था उपणा, किसके रहूं ब्यसर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
बीर सैह्ज ब्यसवास्यण हो सै;
द्यल की नरम बणी सै ।
इसकी अपणी मजबूरी , या;
न्यू कमजोर घणी सै ।
भोप्यां मँह् आ फ्यरै भटकती;
नांह् को बणै धणी सै ।
चूस्सी फैंकी मेरे जैसी;
कोन्या ऐ जणी सै ।
हो मैं रेप कई बै पोंह्ची, ब्यक अणजाण नगर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंडय फ्यकर नै ।
पांह् की जूती रही सदा मैं ;
सब का बणी पूआणा ।
रही र्यझाती बणी ख्यल्हौणा;
चकल़ा म्यल्या ठ्यकाणा ।
आँट्टण खात्यर पेट खह्डा, यू ;
पड़्यर्य्हा मन समझाणा ।
करी धरी के लांछण ओट्टे;
किस नै द्यऊं उल्हाणा ।
जाङ़ भींच , पी सब कूछ्य; बंधू, रोऊं टसर- टसर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
फोड़ा बल़्य- बल़्य ऊठ्ठै मेरा; सुण्य ले कूण ज्यकर नै ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूडं्य फ्यकर नै ।
बैरी बण्या समाज बीर का ;
इसका हक नांह् जाण्या ।
मान्ने सब अधिकार मरद के ;
फरज बीर नै ठाणा ।
आस करैं सीमा से ज्यादा;
न्यूं हो से ध्यंगताणा ।
सीता हर का लेबल लावैं ;
मैंह्गा पड़ै भकाणा ।
झूठी करैं बडाई गेरैं; मसक बांध्य पल भर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
काया मान्य कपास करी थी;
इसकी खूब लुढाई ।
कोल्हू आल़ा बैल बणी पर ;
कोन्या होई आई ।
ह्यली वहींे लोलक सी, सरकी;
एक इंच नांह् राही ।
कूए की मिडंक राखी नांह्;
बाहर दिया द्यखाई ।
नाल़ी का कीड़ा रैह्गी मै; न्यूंए घ्यसर-घ्यसर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
सुन्दतम क्यरती कुदरत की;
फ्यरती मारी - मारी ।
सैह्न सीलता, दया, प्रेम अर;
मीठ्ठे जल की झारी ।
ह्यरदा मोमी सैह्द भर्या ज्यूं;
घड़्य ब्यधना नै तारी ।
खूब दिया धन मेरे तै, पर;
परबस सूं बेचारी ।
धन सै फ्यर भी न्यरधन; करदी धन नै लचर-पचर मैं ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा; खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
स्यड़्या समाज पुराणा, ल्याओ ;
और ब्यावसथा न्यारी ।
तुम क्या हो पैह्चाणो आप्पा;
रण चंडी सै नारी ।
भसमो जितणे भसमा सुर सैं ;
तुम सो दूरगा सारी ।
अपणा हक लेणा सै हम नै ;
करल्यो सेर सवारी ।
तभी उदय हो भाग बीर का; बंधू , डटो समर मँह् ।
बात्य बंधी तन सूक्या मेरा, खाया चूंड्य फ्यकर नै ।
93. चैल़ां मँह् गौणा
94. लाल उपतजी
95. थाली खीर की
96. अठमासी
क्यूकर चाल्लैं बंस बेल जब; धरती नै खोद्य बगावंै।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
ब्यना जमीं नांह् फसल उगै, या;
जग जाह्यर, हम जाणैं सैं ।
फ्यर भी जाण्य बूझ्य सच्चाई;
क्यूं हम नही प्यछ्याणै सैं ।
स्यरस्टी का आधार जमीं, फ्यर;
क्यूं बातां नै छाणैं सैं ।
रतन खान्य स,ै इनै सासतर;
सब्भै मात बखाणै सैं ।
जब तक धरती तब तक स्यस्टी, द्यौते भी इसनै ध्यावैं ।
कितै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
गाल़ भरी चाल्लैं ब्यन ब्याहे;
छोह्र्यां के लंगार फ्यरैं ।
कित्तै बसज्यां घर - डेरे, जब ;
छोह्री तै हम इसे डरैंे ।
राक्कस बण्य हम खोद्य जमींनै;
म्यटणे का सामान करैं ।
छोह्रा हो बस्य छोह्रा होज्या;
अपणे दा मँह् आप घ्यरैं ।
पर छोह्रे के दो बै दें सैं? स्यर पीट्टैं , आँख्य द्यखावैं ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
मान्य पराया धन छोह्री नै ;
समझैं ब्यरथ बोझ ढोणा ।
कर्य दे जात्य ब्यर्यान कदे या;
झेरा- कूआ पडै़ टोह्णा ।
किसे म्यलै आग्गै डर लाग्गै ;
कदे पडै़ दो बै पोणा ।
चढ्य ज्यावै नांह् धेज भेटं ? न्यू ;
सब कुछ्य ब्यकै पडै़ खोणा।
जिन्दी रैह् तै जुलम उमर्य भर; बस्य यें हें च्यन्ता खावंै ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
छोह्रा जनमै थाल़ी बाज्जै ;
फूल्ले धर के सभी फ्यरैं।
न्यकराड़ी बेचारी छोह्री;
जनमै तै सब आहेँ भरैं ।
दुभाँत्य करैं छोह्री से हम ;
हांडी मँह् दो पेट करैं ।
चाह्वैं स्योन्ने का करदें जणु;
छोह्रे पै धन लाद्य ग्यरैं ।
लाड -प्यार ओढण पैह्रण, अर ;
खान-पान तै खूब दरैं।
छोह्री बेस्सक मरज्या, छोहरे ;
के बदलै जणु हमैं मरैं ।
इने मान्य चैल़ा मँह् गोैणा ; दिखद्यंईं काढ्य बगावैं ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
बूढे बारे लाठ्ठी - साह्रा ;
न्यूं छोह्रे पै नीत धरैं।
हाल़ी-पाल़ी बणैं रूखाल़ी
लाठ्ठी ठाऊ नही डरैं ।
ब्यन छोह्रे नहीं मुक्ती होवै ;
या भी मन मँह् खूब जरैं ।
कुल़ का दीवा बल़दा रैह्ज्या ;
नाम लेणिएं नहीं मरैं
इन बातां मँह् भूल्य- भटक हम ; हद्य तै आग्गै बढज्यावंै ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
क्यूकर चाल्लै बंस बेल जब ; घरती नै खोद्य बगावैं
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब ; छोह्रे - छोह्रे चाह्वैं ।
फरक करैं बेटा -बेटी मँह् ;
के वा म्हारा नहीं लहू ?
बैह्म सुआरथ मँह् ना समझैं;
नहीं मांस तै अलग नहू ।
लाग्गै दीवे कै दीवा न्यूं , के ;
चाहवैं हम नही बहू ?
हम चाह्वैं या च्यता तलक भी ;
रहै जणु या गैह्णै रहू ।
इसके बांटे रत्ती भर भी ; को दया भाव ना आवै ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
बेटी ब्यन कैसा जग होगा ;
झांखो देखो अन्दर सी ।
कित्तै आवैंगी ममता मँह् ;
माँ, जो अथाह् समन्दर सी ।
अर बाह्ण , देखकै भाई नै ;
ख्यलै कली ज्यूं सुन्दर सी ।
म्यटज्या माणस नसल - स्यान, ज्यूं ;
म्यटै मौस नै चन्दर सी ।
हम नुगरे हैं घिक्कार हमें ; हम इनका भ्रूण हत्यावैं ।
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब ; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
अरमान फूल ज्यूं इनके भी ;
सैं ख्यलण- ह्यलण मैह्कण के ।
आंगण गूंजित करण च्यड़ी ज्यूं;
फुदक -फुदक कै चैह्कण के ।
स्यंगर- डोर्य सज ओढ्य - पैह्र्य कै ;
मट्यक- मट्यक बैह्कण के ।
आँचल मँह् ढक दूध प्याण के ;
आनन्दी मँह् लैह्कण के ।
अरमान मार्य द्यैं म्हारा के हक ; क्यूं घातक ठेस लगावैं ?
कितै आवैंगे छोह्रे ? जब; छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
सीता, अहिल्या साव्यतरी के ;
समरपण भाव छदम कोन्या ।
बणी टैह्लुआ रहैं अगाड़ी
होवैं ज्यदम- ज्यदा कोन्या
झूठ्य- कूठ्य खा पलै़ं ब्यचारी ;
फोड़ैं कदे भरम कोन्या।
भूख - प्यास मँह् प्यली रहैं सैं;
करैं कदे यें गम कोन्या ।
एक बोल द्यैं दस बै ऊठठैं;
कहैं कदे भी थम कोन्या ।
पर इनकी बेबस हाल्यत पै ;
आँखे म्हारी नम कोन्या ।
जडै़ बंाध्य द्यैं खड़ी रहैं सैं ; नांह् खुह्लणे का डां ठावैं ।
कितै आवैंगे छोह्रे ? जब छोह्रे - छोह्रे हम चाह्वैं ।
लाल उपजती ल्यछमी सैें यें ,
के कुबेर के सम कोन्या ?
गगन समंदर नाप्पै सै , जब;
कैसे इन मँह् दम कोन्या?
मौक्का द्यैं तैं इन्दरा सैं यें ;
न्यूं बेट्यां तै कम कोन्या
दोस्सैं छोहरी नै, बंधू, पर ;
क्यां हें जाग्गे हम कोन्या
हबस वासना राक्कस की ; हम घटिया न्यजर लखावैं
कित्तै आवैंगे छोह्रे ? जब छोह्रे -छोह्रे हम चाह्वैं ।
रतन उपज या करै उजाल़ा; म्यटै रात्य - अंधेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
या मूरत्य ममता की , ममता ;
से ही प्राण रहैं धड़ मँह् ।
ममता कारण भूख- प्यास मँह् ;
गरमी- सरदी अर झड़ मँह् ।
अंडे की ज्यूं से सूत राक्खै ;
ज्यूं केल़ा गुद्दा घड़्य मँह् ।
फ्यरै कुरह्ड़ती पेट पकड़्य जब;
सुत ना दीक्खै जड़ मँह् ।
ममतामयी ह्यरदे मँह् , उसके ; जल सील़क का डेरा
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
उस्सै खंूटै खड़ी रहै या ;
पती भरता हो सै नारी ।
अपणा आप्पा मान्नै कोन्या ;
कंत हवालै हो सारी ।
पती की इच्छा इसकी इच्छा ;
इसकी होती नांह् न्यारी ।
बच्चों और पती की खुसियां ;
इसकी खुसियंा हो भारी ।
करै कामना रहंू सुहागण्य ; बसता रहै बसेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
या गुुदड़ी सै त्याग सबर की ;
सेवा , सील , समाई की ।
बंधू , आज्ञाकारी रैह् या ;
हो सै बुगल़ मल़ाई की ।
च्यत-च्यंता मन पीड़ा हरणी ;
कोन्या लोड़्य दवाई की ।
मायूसी के अंधेरे मँह् ;
क्यरण चाँद रूसनाई की ।
या सै साह्रा कड़क थूण्य का ; ओट्टै बोझ घनेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
इसतै बत्ती कूण सल्हाइया;
कोन्या लोड़्य वजीर की ।
टौट्टे मँह् भी ल्यछमी सै या;
कोन्या लोड़्य अमीर की ।
चुगर्दे तै या मीठ्ठी रोटी ;
या सै थाल़ी खीर की ।
समाज बणै ब्यगड़ै इस तै ए ;
या रेखा तकदीर की ।
कैंह अबला पर फौलादी या ;
धार सै समसीर की ।
इस दुनिया मँह् कूण बराबर्य ;
हो सकता है बीर की ?
संतोस दया का माह्सागर ; जिसकी थाह् का नांह् बेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
रतन उपज या करै उजाल़ा ; म्यटै रैन अंधेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
या मरियादा प्यार अहिंसा ;
लज्जा का पाह्रै गैह्णा ।
सीता, साव्यतरी, दमयन्ती ;
मीरां हर का के कैह्णा ।
मन्नू , मदर टरेसा हर मँह्
इसका त्याग सदा रैह्णा ।
घर भरणी या ल्यछमी हो सै;
माँ पत्नी हो या भैणा
सबला या मुँह मोडै़, बेसक्क ; हो कोई समसेरा
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
अपणा आप्पा पूरा खो के ;
जीवन भर या गात तलै़ ।
पडै़ नहीं अपणे जूए तै ,
खींच्यां जा नहीं टलै़ ।
आग्गै चाल जिसी कुणबे की ;
उस्सै मँह् या आण्य ढलै़ ।
न्यरमल कुंदन होज्या तप्य कै,
दुक्खंा मँह् या जलै़-बलै़ ।
काम छान्य नै ठाएं फ्यरती ; इसतै कूण कमेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
हम नुगरे न्यरभाग न समझैं ।
ल्यछ्मी रूप प्यछाणंै नांह्
अणसमझी मँह् रांग समझ हम ;
अठमासी नै जाणैं नांह्
गूठली की ज्यूं चूस्य फैंक द्यैं ;
दूध -नीर नै छाणैं नांह् ।
छात्ती पै पत्थर धर्य सैह्ले ;
पर या कदे उल्हाणै नाह्
आप्पै पीज्या घूंट जैहर या ; करती सबर भतेरा ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
अहम् उठै जै झट हो समतल ;
मींह् मँह् ज्यूं हो बाह्न डल़ा ।
छुई - मुई की लता जणु सै ;
झट से दीक्खै मूड ढल़्या ।
थकी थकी सी भी लाग्गी रैह् ;
जब तक दीक्खै काम खल़्या ।
दुख साझ्यण हम दरद रहै या ;
इस का द्यल रैह् सै प्यंघल़्या ।
बंधू , किसा तपसवी सै यूं ; खड़ी तपस्या लेह्र्या ।
सून्नी बगिया चैह्क उठै ज्यूं ; आग्या नया सबेरा ।
97. चीज ब्यराणी
98. इस आस मँह्
99. छुटज्या आज क्यनारा
100. ल्यकड़ सको नांह् बाह्र्य
न्यरमम हो कै तोड़्य बगाई ; चोट ज्यगर खुबकै सै ।
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
ले बचपन तै आज तलक की ;
आगी याद्य कहाणी ।
हिया उझल्य कै आवै सै यू ;
बण्य आँख्यंा मँह् पाणी ।
सखी चली परदेस आज या ;
हो कै चीज ब्यराणी ।
कोन्या बस की बात , पडै़ या ;
जग की रीत न्यम्भाणी ।
याद्य नहीं या चीस बणी इब ; हट्य- हट्य कै चुभकै सै
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
सोल़ा बरस तक पाल़ी - पोस्सी ;
राक्खी हाथां मँह् ।
खेह्ल - कूद्य कै बडी हुई ;
सखियां के सात्थां मँह् ।
रचै काज थी गुडिय़ंा के तूं ;
खुद्य आगी सात्तां मँह् ।
तोड़्य मुल्हाजा बंध्य चाल्ली ;
नए रिस्ते नात्यां मँह् ।
काच्चा सा जी हुबक उठैं सैं, हिया उझल्य हुबकै सै ।
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
चाची ,ताई अगड़- पड़ोस्यण ;
सारी याणी स्याणी ।
भाई - भाभी खड़े लखावैं ;
बोल्लण तै बन्द बाणी ।
करैं ब्यदा तनै भरे नैन हे ;
परदेसी की राणी
सुख की करैं कामना, नांह् हो;
बल बुद्वी की हाणी ।
तूं जा सै हे क्यूकर डाट्टै ; जी जणु त्यर डुबकै सै ।
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
किसे बात का घाटा नांह् रैह् ;
इसा तनै घर बार म्यलै ।
इज्जत सोह्रत बधै त्यरी हे ;
सब का ढेरांे प्यार म्यलै ।
ज्यठाणी -दुराणी , सास्य नणद का ;
बरतेवा इकसार म्यलै ।
तूं भी उन्है देख - देख कै ;
हरसावै जणु फूल ख्यलै ।
बास्सण हर घर मँह् खुड़कैं सैं ; पर स्याणा चुप दुबकै संै ।
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
मान टूट सा होर्या म्हारा ;
द्यल मँह् धक-धक होरी ।
के हट्य के भी म्यल ज्यांगी हम ;
टूट्टी पतंग डोरी ।
जी कर्य र्य्हा सै गेल चलण नै ;
हे गंडे की पोरी ।
कूण चल्या पर गेल हमेसा ;
चलै न जोरा जोरी ।
रीत जगत की तगड़ी , बंधू ; या सब नै ठ्हुबकै सै
माँ नै पल्लू - पल्ला भे लिया ; बाबल भी सुबकै सै ।
ब्यछड़ै रैह्बर आज हमारा , जो था बस्य कुल एक्कै साह्रा ;
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् , कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
जग परल़ो मँह् कसर रही नांह्;
बात मणां तै भारी होगी ।
हिया उझल्य कै आवै कुठ्ठी ;
याद्य पाछली सारी होगी ।
जारी होगी आँसू धारा, छ्यपज्या ईब भोर का तारा ।
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
ह्यरदा मोमी भर्या सह्द सा ;
देख हमें ख्यल उठते थे ।
दया करण मँह् पीड़ हरण मँह्;
दुखी होण मँह् लुटते थे ।
जुटते थे, न कदे भी हार्या ; करम का खेवा पार्य उतार्या ।
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
माफ कर्या अणजाण जाण्य कै ;
सदा बडप्पण द्यखलाया ।
स्यकसा दी नांह्, द्यकसा दी, बस्य;
स्याणा बण्य कै समझाया ।
नहीं सताया न्यबल उभार्या ; हर होण् आल़ी कोस्यस द्वारा ।
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
दुखी हुया द्यल, गल़ा रूंध्या ;
कैसी आई है बेला ।
जीभ उथलती कोन्या म्हारी ;
घड़ी दो घड़ी का मेल़ा ।
उडै अकेला, हो कै न्यारा; कुणबै तै जो धोरै सारा ।
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
अमर रय्हा नांह् साथ किसे का;
इक द्यन होणा जुदा पड़ै ।
यही सोच्य कै ब्यदा करैं , पर ;
कहैं ब्यदा जी सा ल्यकडैं़ ।
कड़ै, बंधू , म्यलै उधारा? मांग्यंा तै को द्यल का प्यारा ।
दुबारा, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
ब्यछड़ै रैह्बर आज हमारा, जो था बस्य कुल एककै साह्रा ।
दुबारां, होगा म्यलण इस आस मँह् ; कोक रहैंगे जिंदा इसी ख्यास मँह्।
जाणे वाल़े जुग-जुग जीओ;
खुसियांे क अम्बार म्यलै ।
यही दुआ आग्गै भी इसतै ;
बध्य के इज्जत प्यार म्यलै ।
नांह् , टलै़ यू साह्रा थ्हारा ; राह् द्यखाऊ यू उजियारा।
दुबारा होगा म्यलण इस आस मँह्; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
आंदे- जांदे कदे किते तुम;
याद्य हमंे भी कर्य लेणा ।
झुक -झुक कै ने ब्यदा करैं हम;
भूल माफ म्हारी कर्य देणा ।
सैह्णा जलम यू हमनै भार्या ; दुख दारण जो हम पै डार्या ।
दुबारा होगा म्यलण इस आस मँह्; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
खाल्ली द्यल मँह् यादंे बण्य कै;
भाँफ उडैंगी रात्य द्यना ।
घ्यर-घ्यर घटा घुटैंगी भीत्यर ;
जब हो ज्यांगी भाँफ जमा ।
जमा चलै नांह् कोए चारा; बादल़ बरसैगा जल धारा ।
दुबारा होगा म्यलण इस आस मँह्; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
म्हारे लेखै परक्यरती या;
थ्हारे ब्यन जणु फना - फना ।
मरैं तरसदे हम प्यासे ज्यूं;
चातक स्वाती बूंद ब्यना ।
छ्यन्या,बंधू ,फूल हजारा; छूट्या जा सै आज क्यनारा ।
दुबारा होगा म्यलण इस आस मँह्; कोक रहैंगे जिन्दा इसी ख्यास मँह् ।
ब्यड़के रात्यूं ल्यूं मैं; याद् आवैगा प्यार ।
साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
ब्यरह् रूप का ढीमरा होग्या ;
सुन होग्या जणु सब कुछ्य सोग्या ।
टूटे सारे तार; साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
जब नांह् दीक्खैगा टोहूंगी;
कूण टटोल़ूंगी रोऊंगी ।
आँसू धारमधार; साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
क्यूकर बेदन ब्यरह् सहूंगी;
कौल़ैे लाग्गी रय्हा करूंगी ।
बंधू, चाह् मँह् हो दीदार, साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
मुँह् राक्खंूगी खुह्ल्या सीप मैं ;
बंूद स्वाती की उडीक मँह्।
और नही दरकार, साथी चाल्य पड़्या तूं दिखदा रहिए यार ।
कूण ढाल्य बण्यज्यागा तड़कै;
किस पैे रीझंूगी बेधड़कै ।
बे वारिस लाचार, साथी चाल्य पड़्या तूं दिखदा रहिए यार ।
101. उजड़ी बाग बहार
102. धंधकै मैह्ल मंडेरे
103. राह्वै चाक्की
104. बांधी मसक जकड़्य कै
ब्यड़के रात्यूं ल्यूं मैं याद् आवैगा प्यार ।
साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
सदा अमीरस सा सुख पीओ ;
सुरग सरीखा जीवन जी ओ ।
लगै नही दुख-ब्यार , साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
जिस डाह्ल़ी चैह्के थी बुलबुल;
आई अंाधी गया ब्यखर गुल ।
उजड़ी बाग बहार, साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
बातां का पाणी सा प्याया;
घी सक्कर सा मेल़ बणाया ।
नरम सभा हर बार, साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
छत्तिस ब्यंजन ढोल़ ज्यमाऊं ;
गल़ा भर्या पर ब्यदा कराऊं।
गल़ फूलां का हार, साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
बंधू , नांह् जीवै ब्यन साथी ;
ख्यंडग्या तेल जलै़ नांह् बाती ;
हुया घोर अंधियार, साथी चाल्य पड़्या तूं; दिखदा रहिए यार ।
पिया जी.............पिया जी...............होज्यां सूने डेरे ।
क्यूकर ठाढ्य करूं मँह् मन मँह्;
आग्य ब्यरह् की छ्यड़गी तन मँह् ।
बुझै सजन ना मेरे, पिया जी होज्यां सूने डेरे ।
चोट काल़जै लगी जाण की;
बाट रहैगी त्यरे आण की ।
राह् देखूं मँह् तेरे, पिया जी होज्यां सूने डेरे ।
झूल्य घलैं जब आवै साम्मण ;
सब आवैंगे तीज झुलावण ।
र्ाहोज कंरू मै बेरे, पिया जी होेेज्यंा सूने डेरे ।
दादुर , मोर, पपीहे बोल्लंै;
कोयल कूक काल़जा छोल्लैं।
सज ज्यंा साज भतेरे, पिया जी होज्यां सूने डेरे।
बेकाबू हो ज्यागा फागण;
मट्यक-मट्यक कै नाच्चैं कामण।
मुड्य -तुड्य नाच्य चुुफेरे, पिया जी होज्यंा सूने डेरे ।
कूण करैगा लाड पिया जी;
किसकी ल्यूंगी आड पिया जी।
पड़ी रहंू इस झेरे, पिया जी होज्यंा सूने डेरे।
रात च्यादंणी तरसावैगी;
आग्य अंगारे बरसावैगी ।
धंधकंै मह्ल -मंडेरे, पिया जी होज्यंा सूने डेरे।
कूण सुणैगा मेरे मन की ;
ज्यौड़ी बंाटंू अपणे तन की ।
द्यन मँह् स्याम सबेरे, पिया जी होज्यां सूने डेरे।
इतणै म्यरा सुलतान आवैगा;
जल़ ले न्य्हाल्दे नांह् पावेगा।
उजड़े पावैं बसैरे ,पिया जी होज्यंा सूने डेरे।
उन बीरां का के जीणा सै;
मरद दूर्य या वर हिणा सै।
बंधू , कहैं बडेरे, पिया जी होज्यां सूने डेरे।
हो पिया जिया म्यरा घबरावे; जावे सौ सौ कोस परै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्क्र आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरै।
पिया तुम जाओ, जी ल्यकड़ै सै;
जणु को द्यल की धड़क पकड़े सै।
पड़ै सै टूट्य आह्लणा आज; हुई परल़़ो मँह् कोन्य त्यरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरे।
आज म्यरा हिया उझल्य कै आवै ;
सूना महल लगै जणु खावै ।
राह्वै चाक्की सी को ठक-ठक ; मेरे भीत्यर चोट करै ।
घीगघी बंघ्यगी चक्कर आवै ;धरणी डाम्माडोल फयरे ।
इब मै क्यूकर द्यल नै डाटंू ;
त्यरे ब्यन क्यूकर जिन्दगी काटंू।
बांटूं तन की ज्यौड़ी , जल़ू आग्य मँह् ,च्यन्ता च्यत चरै।
घीगघी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरे ।
रात्यंू नींद नहीं आवैगी;
आई त सपन त्यरे ल्यावैगी ।
ठावैगी डूंडे भीत्यर मँह् ; जणु को डोई फ्यरै म्यरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फयरैे ।
मन मँह् संका घटा उठ्यली;
अणहोणी नै जणु ल्ूट्यली ।
रूठली बंधू , किसमत आज; मेरी कोन्या त्यरै जरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरैे ।
झड़्य - झड़्य, टप-टप आँसू पड़ते ; नाड़ी मंदी धड़कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
प्यारी सूरत्य भोल़ी- भोल़ी ;
काम देव सरमावै ।
रंग बसंती छाह्ज्या सै , जब ;
हँस्य बोल्लै बतल़ावै ।
के सोच्ची ब्यधना नै ? तेरा ; रूप धर्या यू घड़्य कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
कांडा लाग्गै था जब मेरै ;
दुख तेरै था होवै ।
रूधन करौंची करै जुकर्य, न्ंयू ;
आज म्यरा मन रोवै ।
के भूल्या जा प्यार त्यरा ? तूं ; कदे न चाल्या लड़्य कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
काह्ल्य चल्या जा पील़ी पाट्टी ;
तारा छ्यपै भोर का ।
हाल्लण सा आर्य्हा मेरे मँह् ;
झटका लग्या जोर का ।
इस्क यार के बैरी नै म्यरी ; बांधी मसक जकड़्य कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
सून्ने बाग - बगीचे हांे , जब ;
लेज्या च्यड़ी उडारी
तीरथ सून्ना यातरियंा ब्यन ;
कूआ ब्यन पनिहारी ।
बंधू, मैं भी न्यूए सून्ना ; मरणा होगा स्यड़्य कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
105. भटकी फयरै चकोरी
106. हाड़े
107. नान्ही ज्यान डरै - अ
108. कोन्य इसा को पाणी
झड़्य - झड़्य, टप-टप आँसू पड़ते ; नाड़ी मंदी धड़कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
सून्नी रात्य चांद ब्यन हो जब;
भटकी फ्यरै चकोरी ।
खोया लाल क्यरोड़ी टोह्वै;
पागल सा ज्यूं जोैह्री ।
न्यूंए टोह्ऊं यार तनै मैं ; घर के भीत्यर बड़्य कै
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
मोती खतम ताल के होज्यंा ;
लेज्या हंस उडारी ।
सून्ना ताल स्याल बोल्लैं फ्यर ;
चैहक् खतम हो सारी ।
नेम कुदरती मँह् बंध्या हर ; जाणा पड़ै ब्यछ्यड़ कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
कुणसे जोड़े रहे सदा सै ;
इक द्यन न्यारे पाट्टैं ।
न्यारे पाट्य एकले रैह्ज्यंा ;
बाट एकले काट्टैं ।
तन का बंधज्या बाध , याद्य या ; कांडे की ज्यूं रड़कै ।
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
चोडढे खाज्यंा चूंड्य मांस नै
क्यूकर सांटा - सांटै ,
मर्य का मर्यज्या मरणा बाकी ;
मन मोस्सै द्यल डाट्टै ।
चैन पडै ना , बंधू , हट्य-हट्य ; आँख्य काह्ल्य की फड़कै
के दीक्खैगा ? हो अंधेरा ; यार चल्या जा तड़कै ।
हाथ जोड़्य मै खड़ी मनांऊ; तनै रांझे पाल़ी ।
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नही पेट की काल़ी ।
तनै रोस्से मँह् भर्या देख म्यरी ;
ज्यान ब्यचारी डरगी ।
खून सूक्यग्या नूर झड़्या ;
मोती सी आब उतरगी ।
मत्य जुलम करै मुझ दासी पै ;
मैं इतने मँह् ए मरगी ।
कोन्या सरै मनै त्यरे ब्यन ;
तनै त म्यरे ब्यन सरगी ।
ह्यरदा च्यर्या मुलाम्य, गई ; मुरझा चम्पा की डाह्ल़ी ।
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नहीं पेट की काल़ी ।
सात जनम की यारी नै न्यंू ;
क्यूकर भूल्य ब्यसरग्या ।
जग परल़ो मँह् कसर रही नांह् ;
गगन टूट्य कै ग्यरग्या ।
आँख्यां ओल्है करी कदे नांह् ;
आज किसा मन भरग्या ।
चाँद चकोरी ख्यली रहै थी ;
किसा अंधेरा करग्या ।
पाणी दे सरसबज बणा यू ; च्यमन सूकज्या, माल़ी ।
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नहीं पेट की काली ।
मनै देख मुंह फेर लिया क्यंू ?
उठ छात्ती कै लाले नै ।
रल़ेै कमाई त्यरी रेत मँह् ;
ठा इसनै संगवाले नै ।
मै जूत्ती सूं पांह्े की तेरे ;
पाँह् नै इनै पर्हाले नै ।
तन, मन जोबन सब तेरा , या ;
ह्यरदै बात जराले नै ।
अण समझी मँह् ना ठुकरावै ; भरी खीर की थाल़ी ।
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नहीं पेट की काल़ी ।
बेल्ला भर्या दूध का ऊप्पर;
खांड मल़ाई गेरी ।
लिंह्एं खड़ी पी रांझे , होज्या ;
सील़ी आतमा मेरी ।
मेरे लेक्खै राम म्यरा तूं ;
तुझ ब्यन मैं के लेह्री
मेरे प्राण बसैं तेरे मँह् ;
तुझ ब्यन यू तन ढेरी ।
रैह्म करै नै हाड़े खाऊं ; भूल्ली गऊ जुगाल़ी
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नहीं पेट की काल़ी ।
के ले ज्याणा दुनिया मँह् तै ;
सब कुछ्य आडै़ रैह्ज्या ।
करले प्रेम कमाई , समाई ;
कर्य कै छोह् नै सैह्ज्या ।
छोड्य नदी नै पाणी इक द्यन;
बीच समंदर बैह्ज्या ।
फेर मल़ेैगा हाथ, त्यरा जब ;
मैह्ल भरम का ढैह्ज्या ।
बंधू, खंह्डरां मँह् टोहिए फ्यर ; तकत हजारे आल़ी ।
खता माफ कर्य दिए म्यरी मैं ; नहीं पेट की काल़ी ।
हो पिया जीया म्यरा धबरावै ; जावै सौ सौ कोस परै ।
घीग्घी बँॅध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फयरैे ।
त्यरी न्य्हाल्दे देक्खेै बाट ;
ख्यंडैं इन मैह्लां के सब ठाठ ।
घाट्य सुलतान तोलिये नंाह्; पौंह्चिए जुणसी घड़ी धरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फयरैे ।
भौं उप्पर नै जणु चढै सै ;
लगी उचाट्टी त्यौर झड़ै सै ।
लडै़ सै ब्यरैह् ब्यसियर जैह्री ; अंग -अंग मँह् जैह्र भरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरैे ।
नीचे का दम नीचे रैह्ग्या ;
ऊप्पर राम खींच्य कै लेग्या ।
देग्या जकड़ जाड़ भ्यंचगी ; मेरे भीत्यर सांस घ्यरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरैे ।
रहै सै ढकी मरद तै बीर ;
उतरज्या जब स्यर पर तै चीर ।
धीर फ्यर कूण बंधावै सै ; मचांदी रो-रो रूदन, मरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरैे ।
पड़्या जणु आज ह्यमाला टूट्य ;
मरूं मैं फोडं़ू स्यर नै कूट्य ।
झूठ्य नहीं रत्ती भर , बंधू ; इकली नान्ही ज्यान डरै ।
घीग्घी बंध्यगी चक्कर आवै ; धरणी डाम्माडोल फ्यरैे ।
छोड्य चल्या त्यरा पाल़ी आग्गै ; के बीत्तै के जाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
छोड्य देवते वर्या म्यरे को ;
नांह् भूल्लू त्यरे वरण नै ।
मरण़-जीण का गेल म्यरे, नांह् ;
भूल्लूं त्यरे परण नै ।
मैं नुगरा न्यरभाग त्याग दी ; कोन्या समो प्यछ्याणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
जुणसा भा हो बीर मरद का ;
खूब न्यम्भाया मन तै ।
सेवा टैह्ल सौंपणा पूरा ;
कर्य द्यखलाया तन तै ।
तूं पूरी मैं रय्हा अधूरा ; म्य्रे करम की हाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
गुनाहगार तेऱा जीवन भर ;
जल़ू आग्य प्यछतावे मँह् ।
किस ब्यध पाप जल़ै यू मेरा ;
बल़ै आग्य ज्यंू आवे मँह् ।
कूण बुझादे इसी आग्य नै ; कोन्य इसा को पाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
पाप मनै ले बेठ्ठै इक द्यन ;
हरग्यज नहीं टल़ै यू ।
करम भोग तै पड़ै भोगणा
न्यूं एं कोन्य जलै़ यू ।
बंधू या तै मैं भी जाणंू , मैं ; पीऊं सूं ब्यन छाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
न्यारे-न्यारे पाट्य चले हम ;
आए थे म्यल कर्य कै ।
हट्य कै फेर म्यलण की चाह् सै ;
जनम म्यलै जै मर्य कै ।
ऊठ्य, बैठ बतल़ावै क्यूं नांह् ; फ्यर नांह् समो ह्यथ्याणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
109. तोड्य बगाई टाह्णी - अ
110. रय्हा नाच्य जोर्य
111. माँ
112. प्रेम यात्रा
छोड्य चल्या त्यरा पाली, आग्गै ; के बीत्तै के जाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्यां धक्के खाणी ।
आँख्य खुल्हैं जब जमीं ख्यसकज्या ;
पाह्यां तले़ की तेरी ।
उडज्यां होंस तुवाल़ा आवै ;
स्यात सै होज्या ढेरी ।
बची त स्यर धुन कैह् , साजन ! क्यंू ; तोड़्य बगाई टाह्णी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
कूण सुणै रै मन की तड़कै ;
पैड़ंा नै टोह्वैगी ।
पागल की ज्यूं बात करैगी ;
जीणे नै खोवैगी ।
डरै एकली बण मँह्, किसतै ; कैहगी ब्यथा कहाणी ?।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
टेम आखरी माफी मांगंू ;
दिए खता कर्य माफ म्यरी ।
जुलम कंरू , ब्यसवासधात , हो;
दुखी आतमा साफ त्यारी ।
देक्खी जागी छोड्य चलूं इब ; राम रमी ले राणी
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
संकल्प विकल्पां के घेरे मँह् ;
घ्यर्या हुया नल़ सोच्चै ।
कई बै उल्टा-सुल्टा गया नल़ ;
उसका भीत्यर लोच्चै ।
बधंू बस की बात रही नांह् , ब्यधना रीत न्यम्भाणी ।
बियाबान मँह् फ्यरै भटकदी ; होज्या धक्के खाणी ।
नैन लालची थे भूखे इन्है ; थी दरसन की प्यास ।
मेहर हुई आज , पूरी हो गई आस ।
खोह्ल्य राज दिए द्यल के आज ;
सब लाज ब्यसारी पल छन मँह् ।
प्रिय म्यलण मँह् खुसी हो तन मँह् ;
न्यूं ए परसन मन मन मँह् ।
बण्य चकोर रही देख और ; थ्हारी, भूल्ली होस हवास
मेहर हुई आज , पूरी हो गई आस ।
द्यल मतवाला हुया ह्यमाला ;
यह स्यम्भाल्या जावै नांह् ।
भरग्या रंग मँह् चाव उमंग मँह् ;
फूल्या अंग मँह् आवै नांह् ।
बण्या मोर रय्हा नाच्य जोर्य ; रय्हा पूरी कर्य अभिलास ।
मेहर हुई आज , पूरी हो गई आस ।
कर्या ध्यान म्हारा रख्या मान ;
स्यर धर्या स्यान म्हारै आए ।
लगी झड़ी खुसियां की बड़ी;
या किसी घड़ी तुम ल्याए ।
करैं बडाई करी न जाई; इतना हुया उल्लास ।
मेहर हुई आज, पूरी हो गई आस ।
गए जाग्य आज म्हारे भाग;
हम गावैं राग सुआगत का ।
करैं सुआगत करैं सुआगत;
सुआगत है नव आगत का ।
परक्यरती ख्यली रही कली-कली; द्यखा, बंधू, अपणा हास ।
मेहर हुई आज , पूरी हो गई आस ।
मेरी मँा की भोल़ी सूरत्य;
प्रेम- स्नेह् ममता की मूरत्य ।
माँ का आंचल इतणा ठंडा ;
सब तापों का समन करन्दा ।
सुरग तै बध्य कै माँ की गोद ;
आनन्द भरी है मोद ही मोद ।
मोमी द्यल की सैह्द भरी;
मीठ्ठी ठंडी बरफ ठ्यरी ।
बोल्लां मँह् सीतल जल - झारी;
कूण जो इसतै ज्यादा भारी ?
सैह्न सील या धीरज धारी;
पीज्या सब या कड़वी-खारी ।
सबर बांध इसका नांह् टूट्टै;
आस बंधी रैह् कदे ने छूट्टै ।
कदे या जीजा बाई सै ;
कदे यसोधा माई सै ।
पल भर जै मै होज्यां लेट;
देक्खै बाह्र्य खोह्ल्य के गेट ।
खङी देह्ल़ पे देक्खै बाट;
आन्दे जान्दे नै ले डाट्य ।
देख्या हो किते म्हारा भाई ?
पूच्छ्यंा जा कर्य गात समाई।
खड़ी रहै वा काल़जा मोस्य्
खतम हुया जणु गात का जोस ।
जब मैं आऊं वा ख्यलज्या सै ;
तेल द्युवे मँह् ज्यूं घलज्या सै ।
छाती कै ला चुम्बै चाट्टै;
देर करण तै नम हो नाट्टै ।
जब ढबियाँ नै ल्याऊं घर पै ;
खुस होज्य नैनां जल भर्य कै ।
पुचकारै अर प्यार करै वा ;
मन ही मन मँह् मोद भरै वा ।
देख्य सरारत सुण्य क्यलकारी;
वा भी गावै बणी नचारी ।
सब नै ब्यठा भूला वा दुख सुख ;
ब्यदा करै वा दे कै कुछ्य- कुछ्य ।
अपणी माँ पै बलि-बलि जाऊं;
बंधू, नाम सपूत कहाऊं ।
उंडज, पिंडज, जेरज, स्वेदज; जल, थल, नभी परंदे ।
एक नूर से स्यरसटी सारी ; कुद्यरत के सब बन्दे ।
तुणके, कण तै बड़ परबत तक;
कीड़ी तै ले हात्थी ।
सब मँह् एक्कै झलक झलकती;
बेसक्क न्यारी जाती ।
सुन्दर और असुन्दर के सै ? कूण भले कुण मन्दे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी ; कुदरत के सब बन्दे ।
अहम् नसे मँह् चूर मानते;
रहैं ह्यमाला आप्पा ।
घ्यरे भरम मँह् कहैं जमीं नै ;
छोट्टी कोन्या नाप्पा ।
मान्य सरेसठ आप्पा, घ्यण मँह् ; हिंसा करैं दरिन्दे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी; कुदरत के सब बन्दे ।
भा के भूखे सभी जीव सैं ;
प्रेम स्नेह् जीवन का ।
क्रोध , द्वेस, घ्यण घटा घ्यरै तै;
अगन बरसता रण का ।
संस्कार - फल द्वेस- पाल मँह् ; गल़ स्यड़ होज्यां गन्दे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी; कुदरत के सब बन्दे ।
प्रेम कहै सब नै जीणे द्यो;
यू सै जीवन दाता ।
सब ताल़्या की ताल़ी सै यू ;
आपस्य जोड़ ब्यठाता ।
इस मँह् स्यांती, त्याग ; खोह्ल्यदे ताले़ सभी जरंदे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी ; कुदरत के सब बन्दे ।
दया भाव से जी की सेवा ;
इसवर प्रेम बताया ।
जिसनै प्रेम कर्या जीवांे से ;
परम पदी पद पाया ।
प्रेम ही रब, इसवर, अल्लाह, सै; प्रभू प्रेम बसंदे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी ; कुदरत के सब बन्दे ।
सैह्न सीलता की आम्मण ला;
मांज्यण् प्रेम-बुहारी।
भुरल़ी बुखल बुहार्य उतारो;
रास्य करो संस्कारी।
प्रेम यातरा तीरथ की जड़ै ; कटैं जीव के फंह्दे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी ; कुदरत के सब बन्दे ।
फल इच्छा ब्यन , जी की सेवा ;
ब्यन मांग्यां मोल करै ।
जलण, क्रोध सब घुल़, जल़ज्यां, यू ;
बामांे से बाम परै ।
बंधू, प्रेमा ज्ञान गुरू दे; ह्यरदा सुध करन्दे ।
एक नूर से स्यरस्टी सारी ; कुदरत के सब बन्दे ।
113. संगत
114. जड खोट की
115. करै खुलास्सा सारा
116. ओह्ए ढांहढा ढाई का
अदल-बदल कुदरत मँह् जितनी; संगत कारण घटना ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
संगत रंगत अपणी दे सै ;
कर्य दे ठंड़े जल़दे ।
ठंड़े नै दे भून्य तपा कै;
तर्हां छ्योंक की तल़दे ।
बल़ज्यां बुझे हुए संगत से ;
बुझैं संग से बल़दे ।
जल़ज्या परवाना संगत मँह् ;
गुल भौंरे ने मल़दे ।
छल़दे संगत स्याणे नै भी ;होज्या न्यारा छंटणा ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
बदी-अछाई जनम-मरण सब;
हो संगत से जीणा ।
आस-न्यरासा, हास-रूधन की;
बजै संग से बीणा ।
उदय संग से भाव अनेकों ;
अंजल खाणा - पीणा ।
हार- जीत यस-अपयस, संगत;
से हो ठाढा हीणा ।
ढोरा संगत करै ग्यहूँ की ; हो पाट्टा मँह् प्यसणा ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
अफ्रीका , यूरोप देखल्योे ;
अंतर जगह संग से ।
काल़े , गोरे बरण भान की -
अपणी च्यमक ढंग से ।
इन्दर धनुस ख्यलादे नभ नै ;
अपणे सातों रंग से ।
संगत बदलै रूप रसायन ;
करती रहै दंग से ।
गंग संग जल अमरत, बंधू; परल़ो बादल़ फटणा ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
वा हे बूंद च्यमकता मोती;
संग सीप का पा कै ।
धार्य कपूरी रूप मैह्कती ;
पड़्य केल़े मुख आ कै ।
मरै जीव पी गरल़ बणै वा ;
फनियर गुख मँह् जा कै ।
बनस्पती संग बणै रसायन ;
अमर जीव, पी खा कै ।
ता के संग मँह् स्योना कुंदन; दूणे रंग का हो चढणा ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
भले पुरूस की संगत करले ;
माड़ा नहीं कुहावै ।
सत पुरसां की संगत ,नैया;
परले पार्य त्यरावै ।
पारस के संग लोहा , बंधू;
कीमत का हो ज्यावै ।
भान तेज के संग चन्दरमा;
काल़ी रात्य ख्यलावै ।
न्हावै मल़्य कै रंगत न्यखरै; मैल काट्य दे मटणा ।
ब्यन संगत नांह् कारज, संगत; से स्यरस्टी का डटणा ।
बकरा बली का हम बण्य र्हे सैं ; दोस बतावैं म्हारा ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
बाल़क कोन्या बस के रैह् रे ;
न्यूं माँ-बाप कहैं सैं ।
कितनाए कैह्लें ढाक्खे के ;
तीन्नै पात रहैं सैं ।
मान्नै कोन्या छाती फूक्का ;
हम द्यन - रात्य दहैं सै ।
र्होज लड़ाई त्यार मुकदमा ;
कितै हो जा फहैं सैं ।
किते जाण नै जघां रही नांह् ; चाल्लै नांह् को चारा ।
अपणी बुक्कल मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
फैसन फोन ब्यना नांह् रैंह् यें ;
पिस्से र्होज चहैं सैं ।
कित्तै ल्यावैं ? पैह्ल्यांए हम -
टोट्टा मार सहैं सैं ?
के रूक्खां कै लाग्गैं सैं ? के ;
धन के खाल़ बहै सैं ?
हम तै चोत्थी-चोत्थी फ्यरते ;
या यें नहीं लहैं सैं ।
बण्य रईस यें बकसैं सैं, द्यल ; खोह्ल्य ब्यटौह्ड़े भार्या ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
ऐब करैं जितणे भी हों; नांह्;
हाथ काम कै लावैं ।
जै थोड़ा सा भी कुछ्य कैह् द्यैं ;
पाड़्य खाण नै आवैं ।
पढण- ल्यखण मँह् ध्यान नहीं, बस्य;
दाद्दाग्यरी चाह्वैं ।
ब्लैकमेल कर्य हमनै हम पै ;
जुलम जबर ये ढावैं ।
म्हाराए जी जाणै सै बस्य; कितणा दुख यू पाह्र्या ।
अपणी बुक्कल मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
ऊंचे ख्याल रहैं सैं इनके ;
चढे रहैं असमान मँह् ।
चैंध्य टूट्य जब पड़ैे जमीं पै ;
जब आवैं सै ध्यान मँह् ।
इतणै ब्होत बार हो ले सै ;
लगयले आग्य मकान मँह् ।
जल़ होज्या सब राक्खी , कोल्ला ;
कुछ्य नांह् बचै दुकान मँह् ।
राह् की कैंह् थे जब इनतै हम; चढ्य ज्यावै था पारा ।
अपणी बुक्कल मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
पर पूच्छैं हम मात-पिता से;
जड़ खोट की कडै़ सै ?
बंधू, किनै बणाए इसे हम -
कित्तै खोट छ्यड़ै सै ?
कह्ैं समाज्जै भटकावै यू ;
सब की अकल हड़ै सै ।
भ्रस्टाचार, अपराध गंद से ;
सारा समाज स्यड़ै सै ।
पर माँ- बाप्पै तै समाज सैं; और नहीं को न्यारा ।
अपणी बुक्कल मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
बकरा बली का हम बण्य र्हे संै ; दोस बतावैं म्हारा ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
मुँह् ठढ हो स्याम्ही बोलणिया ;
किनै बणाया हमको ?
चोरी-जारी, दारू धंधै ;
किने चढाया हम को ?
सट्टा, जुआ जेब तरास मँह्;
किनै धकाया हम को ?
दाद्दा बण्य जादाद हड़पणा ;
किनै पढाया हमको ?
लूट्य-पाट अर डाक्का धंधा ; भी ब्यरासत मँह् थ्याह्र्या ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
लेण सुपारी, कतल करण मँह् ;
किनै फंसाया हम को ?
ठग्गी क्यूकर कर्या करैं सैं ;
किनै बताया हम को ?
करण तसकरी ल्हुक-छ्यप कै नै ;
किनै सुझाया हम को ?
काम चोर बण्य पड़्य कै खणा ;
किनै स्यखाया हम को ?
खोट करैं सैं आप्पैं, म्हारै; हाथ लाण नै पाह्र्या ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
हम सैं कचिया प्यौध, जिसी तुम;
पाल़ोगे पल़ज्यांगे ।
जिस गाल्यम मँह् ढाल़ोगे, हम;
उस्साए ढल़ज्यांगे ।
साफ स्लेट पै जिसा ल्यखोगे ;
हम औ हे ख्यलज्यांगे ।
राजा जिसा, उसी परजा की ;
तरज पै हम ह्यल्य ज्यांगे ।
या काह्वत सै सार भरी, या ; करै खुलासा सारा ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
रंग त्यंरगे के भरो हम मँह्;
बणज्या मोह्नी मूरत्य ।
त्याग , सचाई , खुसहाली की ;
धारण करल्यैं सूरत्य ।
ऊँचा होज्या म्हारा चरितर;
रहैं न हम सठ धूत्त
घूर्य हमंे, फयर कूण लखाज्या ?
किस मँह् इतणी जुर्रत
म्हारे रंगा तै च्यमकै भारत; बंधू, चढै स्यतारा ।
अपणी बुक्कल़ मँह् नांह् झाँखै; जित सै खोट पसारा ।
संसारी सुख करैं दुखी, हो; सत संगत से हटणा ।
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
ऐस भोग के मोह् मँह् धन की,
करण ब्यटौल़ चले थे ।
हत्या- डाक्के, लूट्य-पाट कर;
कितणे द्यल मसले़ थे ।
चोरी ठग्गी झूठ्य बोल्य कै ;
चैकस्य खूब छल़े थे ।
आँख्य मीच्य कै लुंज - अपंगे ;
न्यरधन ब्होत दल़े थे ।
द्युवे बले़ थे म्हारै, उनकै; था जणु दुनिया लुटणा ।
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
बण्य अपराधी अगत ब्यगाड़ी;
पाट खुल्हे ना घट के ।
म्यरग त्यरस्णा मँह् आनंद की
मारे-मारे भट्यके ।
पर आनंद पखेरू, आग्गै -
उडे, किते नांह् अटके ।
आँख्य बाध्ंय दे मोहनी माया;
खूब द्यखाए झटके ।
नरक- कूंड्य मँह् पटके ल्या कै ; करम भोग नांह् म्यटणा ।
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
जात्य-जमात्य ब्यगङ्यगी म्हारी;
कुसंगत की सटक मँह् ।
नरक-कूड्य मँह् होस उडे पङ्य-
पङ्य कस्टां की पटक मँह् ।
कित आनन्द म्यलै माया मँह् ?
कोन्या बाह्र्य भटक मँह् ।
सुख बसता स्यान्ती मँह् , स्यान्ती;
सतसंग की गटक मँह् ।
छाज-फटक मँह् गौणे छंटज्यां; न्यूंए होग्या छंटणा ।
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
आ पाट्टां के बीच प्यसे हम;
ज्यूं प्यस्यज्या सै ढोरा ।
बीती उमर्य कुकरमा मँह् लिया;
कर इज्जत का भोरा ।
इब प्यछताए के हो सै ? जब ;
छ्यनग्या सब धन धोरा ।
ओह्ए ढांह्ढा ढाई का सै ;
इब कोरा का कोरा ।
मन फोर्या यू उड्या फयरै था ; नांह् जाणै था डटणा;
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
हिंसा हो संसारी सुख मँह्;
सुध सुख तै संतोस मँह् ।
अंधे हो हम बरबर होज्यां ;
सुख आनंदी जोस मँह् ।
विवेक नस्ट संसारी सुख मँह् ;
कोन्य रहैं हम होस मँह् ।
इच्छाएं कम कर, जील्यैं जै ;
कोन्य किसे के दोस मँह् ।
बंधू, जीणा ठ्योस मँह् हो ; फयर न दुखा मँह् प्यटणा ।
भजा-भजा चाह् मारै इनकी ; म्यटै न इनकी रटणा ।
117. सास्सू - कटखाणी
118. सास्सू - डाण्य
119. सास्सू- नाग्यण
मात-पिता नै बात चलाई ; छोह्री नै इब करो पराई ।
मन मेरे आनंदी छाह्ई ; पर उन आग्गै मैं सरमाई ।
भर चाह् मँह् मैं बान्य ब्यठाई ;
कई द्यन मटणा मसल़ नुहाई ।
हरस्य मनै जैय माल़ा पर्हाई ;
फेर्यां फ्यरी मैं गद्य गदाई ।
अगड़- पड़ोस्यण चाची ताई ;
भरी उम्ग मँह् खूब उम्हाई ।
सखी-सहेली ज्यूं बौर्राई;
करैं मसखरी द्यवै बंधाई ।
पर जिस द्यन मैं इस घर आई ; उस्से द्यन आगी करड़ाई ।
मन मेरे आनंदी छाह्ई ; पर उन आग्गै मैं सरमाई ।
सोच्या करदी बाले़पण मँह् ;
लहर उमग दौड़ै थी तन मँह् ।
भर्या म्यरै था चाह् कण-कण मँह् ;
नई बह् आले़ बण्य -ठण्य मँह् ।
साजे थे जो सपने मन मँह् ;
टूटी नींद टूट्यगे छन मँह् ।
इब दीखैं तारे से द्यन मँह् ;
आंनद नांह् इब जोबन-धन मँह् ।
म्यरी सास्य च्यंडाल़ लुगाई, कटखाणी सै वा हड़खाई ।
मन मेरे आनंदी छाह्ई ; पर उन आग्गै मैं सरमाई ।
आणे दे त्यरे ढेढ खसम नै ;
प्यनवाद्यूं मैं त्यरे ज्यसम नै ।
त्यरी तराद्यूं खाल-पसम नै ;
कढवाद्यूं मै त्यरी चसम नै ।
छोड्डैगा नांह् त्यरी भसम नै ;
करै तेरम्ही त्यरी रसम नै ।
उसकी इस गस करण कसम नै;
मारी उसके जुल़म स्यतम नै ।
म्यरी भूल थी मैंे भरमाई ; चैंध टूट्यगी मुँह् की खाई ।
मन मेरे आनंदी छाह्ई ; पर उन आग्गै मै सरमाई ।
बेट्टे नै उलट स्यखावै वा ;
घणी उल्टी सीधी लावै वा ;
चैद्धर्य का रोब जमावै वा ;
घर, अपणे तै बस्या बतावै वा ;
खप्पर खूब भरावै वा ;
कुट र्होज मनै करवावै वा ;
मँुह् फट सै नांह् सरमावै वा ;
बकदे सै जो मँुह् आवै वा ।
बंधू, नांह् मँह् कदे सुहाई ; नांह् मै कदे उनै अपणाई ।
मन मेरे आनंदी छाह्ई ; पर उन आग्गै मै सरमाई ।
समझे सै वा मनै पराई ; हरदम रैह् सै छोह् मँह् आई ।
मैं दासी ज्यूं उनै चलाई ; जिस द्यन से मै इस घर ब्याही ।
कैहणे नै सास्सू का डां सै;
पर इब वाहे मेरी माँ सै ।
माँ हो ठंडी मीठी छांह् सै ;
बच्चों की हो सरण पनाह् सै ।
बहू- बेट्यां की उसकै कां सै ;
बाल़कए उसका जी जां सै ।
ममता त ए माँ का माँ नां सै ;
पर वा त डाण्य सै माँ नांह् सै ।
हर दम रैह् वा जल़ी जल़ाई ; द्यल उसका नांह् माँ-द्यल नांईं ।
मैं दासी ज्यूं उनै चलाई ; जिस द्यन से मैं इस घर ब्याही ।
पीहर तक मेरे कोस्सै सै ;
घंड उघाड़े कैह् दोस्सै सै ।
पीहर उसका के खोस्सै सै ?
प्यता म्यरा सुण मन मोस्सै सै ।
खंा हाड़े फ्यर भी भौंस्सै सै ;
वा तान्ने मनै परोस्सै सै ।
गूंठा द्यखा-द्यखा ठोस्सै सै ;
हुस्यर म्यरे कान्ही जोस्सै सै ।
म्यरी नांह् कदे पार बसाई ; नांह् कोए इसकी दुवाई
मैं दासी ज्यूं उनै चलाई ; जिस द्यन से मै इस घर ब्याही ।
रात्यूं ब्यड़क्यां मँह् जाग्गूं सूं ;
मुंह् अंधेरै उठ भाग्गूं संू ।
सब सुख अपणे मैं त्याग्गूं सूं ;
काम्मा पाच्छै लाग्गूं सूं ।
प्यटूं काम मँह् खर भाग्गू सूं ;
थक झोट्टे की ज्यूं झागूं सूं ।
झल़ उसकी तै खुद्य नै दाझूं सूं ;
प्यंड छुटज्या बस्य या राग्गूं सूं ।
सपने मँह् भी द्यवै द्यखाई ; जो दे सै वा त्रास तुवाई ।
मैं दासी ज्यूं उनै चलाई ; जिस द्यन से मै इस घर ब्याही ।
मैं खां सूं वा धड़ी बतावै ;
न्यूं कैह् तनै मुफत मँह् थ्यावै ।
काम का डिकड़ा तक नांह् ठावै ;
ब्यनां कर्यंा तनै कित्तै आवै ।
मन्नै ठाई ग्यरी बणावै ;
चोह्ल्यां के ताक्कू से लावै ।
बंधू , दिखर्ही नहीं बसावै ;
तूं इस घर का ओड़ अणावै ।
भूखे घर की तूं के ल्याई ; आड़ै चाव्है छाप जमाई ।
मैं दासी ज्यूं उनै चलाई ; जिस द्यन से मैं इस घर ब्याही ।
चढज्या स्यर पै बेपरवाही ; कर र्ही बैरण बैर ब्यस्हाई ।
इस सास्सू तै मैं भरपाई; जणै कुणसी करै उगराही ।
नाग्यण वा तै कई फणी सै;
भीत्यर म्यरा कर्या छलणी सै ।
तेग दुधारी रहै तणी सै ;
जणै कितणे वा घा करणी सै ?
मरै न, मनै मार्य मरणी सै ;
द्यई डबो मैं , बैह्तरणी सै ।
चक्कर खां चढर्ही घ्यरणी सै ;
घूमै जणु अम्बर-धरणी सै ।
बैरी स लुगाई की लुगाई ; समझी संू मैं इब सच्चाई ।
इस सास्सू तै मैं भरपाई ; जणे कुणसी करै उगराही ।
खोट्टां पै खोट ग्यणावै वा ;
हर बार मनै ब्यसर्हावेै वा ।
ज्यौड़ी का सांप बणावै वा ;
गाल़ा की आंधी ठावै वा ।
दुहाथ्यड़ मार्य ग्यरावै वा ;
म्यरी चुटिया पकड़्य घुमावै वा ।
कुतका भी कदे द्यखावै वा ;
म्यरै भैय् का भूंत ब्यठावै वा ।
सब क्यांहे तै मैं तरसाई ; काढ्यले बुगल़ म्यरे मुंह आई ।
इस सास्सू तै मैं भरपाई ; जणे कुणसी करै उगराही ।
उजल़े लत्ते जै पाह्रूं सूं ;
कैह् वा न्यूं , मैं सरम तांरू सूं ।
ग्यरकाऊं सुरमा साह्रूं सूं ;
छोहर्यां पै डोरे डांरू सूं ।
हो कै नै दु खी ब्यचारूं सूं ;
बेबस मन मोस्सूं मांरू सूं ।
डरदी नांह् नाड़य उभारूं सूं ;
हर तरियां उस तै हारूं सूं ।
चेर्हे की उडै सै हवाई ; सुण , जो नांह् धरी जा नांह् ठाई ।
इस सास्सू तै मैं भरपाई ; जणे कुणसी करै उगराही ।
फोड़ा भरग्या राध्य घणी सै ;
बल़्य- बल़्य ऊठै चीस बणी सै ।
मुझसी कोन्या एक जणी सै ;
ब्होत सैं जो नांह् गई ग्यणी सैं ।
इनका न को हमदरद धणी सै ;
बात न छोट्टी कई मणी सै ।
सास्य समझ ल्यैं यंे अपणी सैं ;
मन ब्यरती चइहें बदलणी सैं ।
यें भी सै किसे की जाई, बंधू ; इनते कला सवाई ।
इस सास्सू तैं मैं भरपाई ; जणे कुणसी करै उगराही ।


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


सौजन्य: प्रोफेसर राजेन्द्र गौतम

सम्पादन: न्य्डाणा हाइट्स

आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
© न्यडाणा हाइट्स २०१२-१९