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हिंदी संस्करण |
हरियाणवी संस्करण |
Pour the habit of verifying in child and not of empathy |
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Protect the child from inherited negativity |
Don’t presume innocence of a child by age and quality. Child inherits the accumulation of experience and character of both of parents and by presuming it wrongly, parents waste the infancy of their infant in pouring in what the child possesses from inheritancy. So focus should be on what negatives parents' birth-course could yield as end-result and what new the community is shaping up in. Child should be nurtured and purified with 6 characters (inpouring of 3 positives and rectification of 3 negatives) of these 3 radical (parents and society). A child should be foreseen as an opportunity to develop as a dream personality of your own dreams, for which you might regret for not becoming. But irony says that parents consume this chance in pouring in only the positives of own and this process is so blossoming that when the rectification of negatives left behind is only realized at the moment when child brings any disgrace to family. - NH (04/03/2013) - 20 |
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बच्चे को देखना नहीं वरन परखना सिखाओ| |
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सकारात्मक गुण भरने की चिंता ना करो उसको विरासती नकारात्मकता से बचाओ| |
बच्चा उम्र या गुणों से नादान नहीं होता, याद रखिये उसमें माँ-बाप दोनों के जीवन के अनुभव का संचय दम्पति के संसर्ग के वक्त विरासत में संचारित हो जाता है| फिर भी माँ-बाप उसके बच्चा होने का गलत अर्थ ले, उसका पूरा बचपन उसको उन्हीं सिद्धांतो और विचारों से भरने में व्यर्थ कर देते हैं जो कि उसकी रक्त-धमनियों में विरासत से दौड़ रहा होता है| ध्यान इस बात पर जाना चाहिए कि माँ-बाप के संसर्ग से बच्चा रुपी नया तत्व नया गुण-अवगुण (End result) क्या ले के आया है और इस दौरान समाज में नया क्या पनपा है| इन 3 तत्वों (माँ-बाप और समाज) के 6 रूप (3 सकारात्मक और 3 नकारात्मक) से उसकी सुद्धि करनी चाहिए| एक बच्चा आपके हाथ में वो अवगुणों (गुणों की चिंता आप ना करें) से रहित तस्वीर तराशने का अवसर होता है जो कि कभी आप खुद बनने के सपने लेते आये रहे होते हैं, लेकिन व्यथा यह है कि माँ-बाप बच्चे में अपने सकारात्मक गुण भरने में ही इतने मशगूल हो जाते हैं कि खुद के नकारात्मक उनमें ना जाएँ इसपे ध्यान ही नहीं दे पाते| - NH (04/03/2013) - 20 |
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छोरट नैं नकटा नीह ब्यलक परखणिया बणाओ| |
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उसके स्याणा बणन की फय्क्र ना करो, उसनें खानदानी कमियाँ तैं बचाओ| |
छोरट याणा उम्र अर गुणां के ताण नहीं होंदा,क्यूँ अक उस म्ह मात-प्यता के जीवन का तजुर्बा उनके संभोग के बख्त पै-ए उस छोरट म्ह पास हो ज्यां सें| फेर भी मात-प्यता उसके याणा होण का गलत मतलब ले, उसका सारा याणापण उसमें वें-ए स्य्धांत अर व्यचार भरण म्ह खो दें सें जो अक उनकी रगां म्ह पहल्यां तैं-ए हों सें| गोळ इस बात पै जाणा चहिये अक उनके संभोग तै जो बाळक जाम्मया सै ओ किह्से अर कुण्से गुण-अगुण ल्याया सै अर इस बीच समाज म्ह नया के चलण म्ह आया सै| इन 3 तत्वां (मात-प्यता अर समाज) के 6 रूप (3 सुल्टे अर 3 उल्टे) तैं उसकी सुद्धि करणी चहिए| एक बाळक म्हारे हाथ म्ह उन कमियां (गुणां की चय्न्ता थाह्मे ना करो) नैं छांट कें जिनतें के हाम खुद हट कें बणन की सोचदे आयें हों उह्सा अयन्सान बनाण का मौका हो सै, पर बण इह्सा जा सै अक मात-प्यता उसमें आपणे सुल्टे गुण तो सारे भर दें सें पर उल्टयां पै ध्यान-ए नि दे पान्दे| - NH (04/03/2013) - 20 |
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Genetic chivalry of Khapland |
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A land where child solicitude is lured with democratic psychology! |
Khapland, a land which records the largest number of wars, invasions, lootings, displacements and rehabilitations throughout the endless span beginning from "Satyuga" to "Kalyuga" and still it holds intactly the existence, culture and faith of its native lanes. And if it all sustained then it is due to glorious heritage of its Khap system; a system of democracy with decentralized power for justice and politics; a social ideology which is all above the religions and castes. Khap has been succumbing the way to liberal and individual earning while keeping an eye on policies and wills of rulers by further ensuring the social and national security and enrichment. A democracy where, the decisions of social welfare and interest were never furnished by royal clans but through public opinions. A democracy which nourished the society by growing grains on one hand and guided and suggested the rulers for ruling with principle of “democracy of people by people opinion” on other hand. Such a visionary has been the Khap system at its soul. - NH (19/02/2013) - 19 |
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खापलैंड का वांशिक-शौर्य |
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यहाँ लोकतांत्रिकता बच्चे को परवरिश में दी जाती है| |
खापलैंड, दुनियाँ की ऐसी धरती जहाँ सतयुग से ले कलयुग तक सबसे ज्यादा युद्ध, आक्रमण, लूटपाट, विस्थापन और पुनर्वास होने के बावजूद भी यहाँ की मूल-जातियों का अस्तित्व, संस्कृति और विश्वास आज भी ज्यों-का-त्यों कायम है| और ऐसा सिर्फ खाप विचारधारा की विकेंद्रीकृत न्यायिक और राजनयिक चलन के चलते सम्भव हुआ, एक ऐसी सामाजिक नीति जो हर धर्म और जाति से परे है| खाप एक ऐसी नियति है जिसकी सरपरस्ती में एक मानव को ऐसे पाला जाता है कि वो सामान्य परिस्थितियों में स्व-रोजगार करता/करती हुआ/हुई, राजनयिक सत्ता की भनक रखते हुए, सत्ता के द्वारा सामाजिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा और तरक्की को सुनिश्चित करता आया/आई है| एक ऐसा लोकतंत्र जहां वंश नहीं, जिन्स बैठ के समाज के निर्णय लेते हैं| एक ऐसा लोकतंत्र जो अन्न पैदा कर समाज का पेट भी भरता आया और राज-राजाओं को लोकलाज का लोकराज लोकमत से कैसे चलाया जाए ये भी सिखाता और सुझाता आया| ऐसी निगरानी भरी दूरदर्शिता वाली आत्मा बसती है एक सच्चे खापतन्त्र में| - NH (19/02/2013) - 19 |
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खापलैंड की दादा-लाअही बोर |
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आडै भाईचारा अर समाजिक सद्भाव बाळक ताहीं परवरिश म्ह दिया जा सै| |
खापलैंड, दुनियाँ की इह्सी माट्टी जडै सतयुग तैं ले कळजुग लग सबतैं बाद्दू रण, हमले, लूट-खसोट, उज्जड़पणा अर बाहरल्यां खात्तर बसासत होयें पाछै भी आडै की मूळ-ज्याताँ की खो-माट्टी, संस्क्रती अर ब्यस्वास आज भी दुनियाँ जहान म्ह न्यूं-का-न्यूं बाज्जै सै| अर इह्सा वाणा ब्यस खाप ब्यचारधारा की जन-जन लग पसरी होई न्या अर राज-पाट की नीत के चालदे हुया| खाप इह्सी समाजिक नीत सै जो हर धर्म अर ज्यात तैं बाय्हर सै, जिसकी सरपरस्ती म्ह एक जी भी इस ढाळ पाळया सै अक ओ सोळए ह्लाताँ म्ह ख्स्मान्नी रुजगार करदा/करदी होया/होई, राज करणियां के चाल-चलण पै न्यगाह गढ़ायें, सत्ता आळयाँ पै समाजिक अर देश सुरक्षा अर फलण के पक्के त्यजाम करदा आया/आई सै| एक इह्सा लोकतंत्र जिसमें कोए एक वंश निह ब्ल्यक ज्य्नस कट्ठी बेठ समाज के फैसले करदे आये| एक इह्सा लोकतंत्र जो नाज उगा समाज का पेट भी पाळदा आया अर राज-राजाओं तैं लोकलाज का लोकराज लोकमत गेल क्यूकर चलाया जा, न्यूं स्यखान्दा अर सुझान्दा भी आया| इह्सी चोक्कस समझ का नजरिया बताया खापाँ की सच्ची आत्मा का| - NH (19/02/2013) - 19 |
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What a democracy is ours? |
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Where no civil honour/award for a farmer |
If to contemplate the list for Indian Civil Honor and Awards ( see the list from here), it proves to be the source of motivation for individuals to prove their talent in their respective fields of work and expertise except for a FARMER. This seems like grading of the fate of a farmer as jeopardized as of a woman, where on one hand we proclaim woman as a "DEVI-Goddess" but on other hand decline her being as a human and so is going on with farmer that we proclaim them as "ANNDATA - God of grain" but same time decline their being as a human. And the opposite pole truth says (through so called socialite NGOs) as if farming community is the only left void of social reforms. After all when will a farmer be considered as human? Why such an important class is yet deprived of these national civil honours? What kind of democracy is ours? - NH(27/01/2013) - 18 |
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ये कैसा गणतन्त्र हमारा? |
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जहाँ किसान के लिए कोई नागरिक सम्मान नहीं |
भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की पात्रता सूची देखें ( यहाँ से देखिये) तो उसमें एक किसान को छोड़ बाकी सब कार्यक्षेत्रों और विभागों के नुमाइंदों और सख्शियतों को अपने-अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कार्य कर इन सम्मानों को प्राप्त हो, अपने जीवन को सार्थक करने का प्रेरणा-स्त्रोत है| क्या ठीक वैसे ही जैसे कि आजकल एक नारी को देवी ना कह उसको बराबर का सम्मान दे नारी समझने की बात कही जा रही है तो वैसे ही एक किसान को अन्नदाता कह भगवान् का दर्जा देने (जो कि उसके अस्तित्व को टरकाने सा प्रतीत होता है) की बजाये, उसको भी इंसान समझा जाना जरूरी नहीं है? क्यों एक तरफ तो किसान को भगवान् बना दिया जाता है और दूसरी तरफ समाज-सुधार के नाम पर समाज के तथाकथित सुभचिन्तक NGO वालों को भी इन्हीं में कमियाँ नजर आती हैं? आखिर किसान को ये दोनों ही ना समझ, इंसान कब समझा जाएगा ताकि उसको भी अन्य की भांति भारतीय नागरिक होने का सम्मानित पुरस्कार मिल सके? - NH (27/01/2013) - 18 |
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यू किह्सा लोकतंत्र म्हारा? |
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जडै एक क्यसान होण का कोए नागरिक पुरस्कार नहीं? |
भारत के सर्वोच्च बाशिन्दगी मान पाण की पात्रता सूची देखी जा ( आडै तैं देखो) तो उस म्ह एक क्य्सान नैं छोड़ बाकी सारे कार्यक्षेत्रां अर विभागां के नुमाइंदयां अर सख्शियतां नैं आपणे-आपणे क्षेत्रां म्ह न्यरोळआ काम कर इन मान्नां नैं हास्सल होण बाबत आपणे जीवन नैं सार्थक बनाण का होंसला म्यलै सै| के ठीक न्यूं-ए ज्युकर अक आजकल एक बीर नैं देब्बी ना कह उसनैं बरोबर का दर्जा दे बीर समझण की बात कही जा रीह सै तो न्यूं-ए एक क्य्सान नैं अन्नदाता कह भगवान् का दर्जा देण (जो के इसके अस्तित्व नैं ए टरकाण सा सै) की जगहा, उसनें भी अयंसान समझया जाणा जरूरी नहीं सै? क्यूँ एक बळ तो क्य्सान नैं भगवान् बणा दिया जा सै अर दूसरी बळ समाज-सुधार के नाम पै समाज के तथाकथित शुभ-च्यन्तक NGO आळयां नैं भी इन्हें म्ह कमी नजर आ ज्याँ सें? आखर क्य्सान नैं यें दोनूं ना मान, अयंसान कद समझया जागा जिसतैं यू भी दूसरयां की ढाळ भारतीय बाशिंदा होण का मान म्यल सके? - NH (27/01/2013) - 18 |
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Sex Ratio and Media |
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Boy : Girl :: 1000 : 1000 ? |
Media visualizes the female feticide as if the only reason behind skewed sex ratio of around 870 females against 1000 males in Haryana and Punjab, then would perhaps the media like to visualize the male feticide the only reason behind skewed sex ratio of around 924 males against 1000 females (1000 males against 1081 females) in Kerala? We object this polarized attitude of media on same facts of extreme opposite trends. And if media glorifies the Kerala fact by pertaining it to be a female dominancy there (which is yet to confirm in real) then these figures should be sufficient to understand this dual nature fact that neither kind of dominancy (male and female) is in favor of opposite sex. And by the fact of ground research it’s not the female feticide being primary reason rather it’s the natural higher male birth rate behind skewed sex ratio in Haryana. - NH (25/01/2013) - 17 |
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लिंगानुपात और मीडिया |
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लड़का : लड़की :: 1000 : 1000 ? |
मीडिया कहता है कि हरियाणा और पंजाब में 1000 लड़कों के पीछे 870 के आसपास लडकियाँ होने की वजह कन्या-भ्रूण हत्या है| पर कोई मीडिया वाला ये कहते नहीं सुना कि केरल में 1000 लड़कों पे 1081 लडकियाँ (यानी तकरीबन 1000 लड़कियों पर सिर्फ 924 लड़के) होने के पीछे भी लड़का-भ्रूण हत्या है? हमारा ऐतराज इस बात से है कि मीडिया इन दो-धुर्वी तथ्यों के होते हुए भी सिर्फ एक में यह दोष क्यों ढूंढ रहा है? और अगर मीडिया यह कहे कि केरल में ऐसा इसलिए है क्योंकि वहाँ मातृसत्ता (जिसकी वास्तविकता की प्रमाणिकता अभी नहीं है) है तो फिर यह आंकड़े यह समझने के लिए भी काफी होने चाहिए कि जैसे पितृसत्ता नारी के लिए अभिशाप है वैसे ही मातृसत्ता नर के लिए| और हरियाणा में धरातलीय शोधों से साबित हुआ है कि यहाँ लिंगानुपात कम होने का मुख्य कारण कन्या-भ्रूण हत्या नहीं बल्कि यहाँ कुदरती तौर पर गर्भ से ही लड़कों का ज्यादा पैदा होना है| - NH (25/01/2013) - 17 |
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लिंगानुपात अर मीडिया |
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छोरा : छोरी :: 1000 : 1000 ? |
मीडिया न्यूं तो कह दे सै अक हरियाणा अर पंजाब म्ह 1000 छोरयां गेल 870ए-क छोरियां का कारण सै बेटियाँ की गर्भ म हत्या, पर कोए मीडिया आळआ न्यूं कहंदा कदे नी सुणया अक केरल म्ह 1000 छोरयां पे 1081 छोरी (यानी तकरीबन 1000 छोरियां पै स्य्र्फ़ 924 छोरे) होण पाछै भी छोरा-भ्रूण हत्या सै? म्हारा अतराज इस बात पै सै अक मीडिया इन दो-धुर्वी तथ्यां कै होंदे होयें भी क्यूँ चूचियाँ म्ह हाड टोहंदा हांडया करै? अर जै मीडिया न्यूं कह्वै अक केरल म्ह इह्सा उडै मातृसत्ता (जिसकी वास्तविकता की प्रमाणिकता इब्बै नहीं सै) होण के कारण सै तो फेर यें आंकड़े ईतणा समझण नैं भी भतेरे होणे चहियें अक ज्युकर पितृसत्ता नारी खात्तर अभिशाप सै, न्यूं-ए मातृसत्ता नर के खात्तर| अर हरियाणा म्ह धरातलीय शोधां तें प्रमाणित होया सै अक आडै लिंगानुपात नुवाया होण का बड्डा कारण कन्या-भ्रूण हत्या निह ब्यल्क आडै कुदरती तौर पै गर्भ तैं ए छोरे घणे पैदा हों सें| - NH (25/01/2013) - 17 |
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Ambiguity versus Dogma |
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Religion should be a choice or convenience? |
If the holy Satyarth Prakasha (Arya-Samaaj) preaches that closeness in opposite sex persons works like fuel to fire then same book also says that the marriage of a young couple should be as per their like and dislikes and parent' like and dislike comes second. Then where comes the enforcement of dogmatic attitude over own posterity in inter-caste or out of gotra marriages? - NH (13/01/2013) - 16 |
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अस्पष्टता बनाम हठधर्मिता |
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धर्म एक विकल्प या सुविधा? |
सत्यार्थ प्रकाश (आर्य-समाज) अगर यह कहता है कि लड़का-लड़की की नजदीकी एक-दूसरे के लिए आग में घी के समान हैं तो साथ ही यह भी कहता है कि लड़का-लड़की की पसंद पर ही माता-पिता उनकी शादी करें, तो फिर उन पर अंतरजातीय या सगोत्र से बाहर की शादियों में अपनी पसंद या बंदिश थोंपने की हठधर्मिता क्यों? - NH (13/01/2013) - 16 |
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बळओखा बनाम छाप्पा |
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धर्म एक पर्ण अक मौक्का? |
सत्यार्थ प्रकाश (आर्य-समाज) जै न्यूं कहवै सै अक गाभरू छोरा-छोरी का मेळ-झोल आय्ग म्ह घी जिह्सा हो सै तै गेल-की-गेल न्यूं भी तो कह सै अक ब्याह-वाणे के फैसलां म्ह बाळकां की पसंद-नापसंद की पूछ पहल्यां होणी चाहिए अर मात-प्यता की हां-ना दूज्जी| तो फेर ज्यात अर गोत तैं बाहर भी अपणी पसंद तैं ब्याह ना करण देण की माँ-बाप की बाळकां कै आस्सणपाट्टी (जी नैं साक्का) क्याँ ना की? - NH (13/01/2013) - 16 |
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Present day Haryana! |
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Call 1966 as re-birth year instead of birth year of Haryana |
Today's Haryana is just a segment of the Haryana of pre 1857, which was comprised of present day Haryana, Delhi, western U.P. and parts of northern Rajsthan and Uttrakhand. It was just after nailing 1857 Indian independence revolution that Britishers fragmented this region to nail its KHAP Power (because Khap armies confrontation during the revolution was strongest) thus present day Haryana was merged into Punjab, Delhi was made their HQ to control north-India operations and obviously Khaps (which was further asserted by transferring of their capital from Kolkata here during 1911), western Uttar Pradesh into present day U.P. (that time Avadh) and parts northern Rajsthan into that time Rajputana. This fragmentation was so severe that people were banned even to marry across Yamuna river. Existence of Khaps and Jat culture across these regions, home to historical "Yoddheyas", land to epic "Mahabharta", speaking of different dialects of Haryanvi by natives of these regions are satiable facts to prove that present day Haryana is not the original Haryana as above said regions are still kept fragmented from it. - NH (25/11/2012) - 15 |
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आज का हरियाणा! |
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1966 को हरियाणा का जन्म वर्ष नहीं बल्कि पुनर्गठन वर्ष कहिये| |
आज का हरियाणा 1857 से पहले के हरियाणा का एक हिस्सा है| उस हरियाणा का हिस्सा जिसमें कि आज का हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश होते थे| उस वक्त क्योंकि खाप सेनाओं ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए थे, इसलिए 1857 के गदर को दबाने के बाद, इस खाप-एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों नें इसके चार टुकड़े कर एक पंजाब में मिला दिया था, दिल्ली क्षेत्र को अपनी कार्यवाहियों का केंद्र बनाने हेतु अपने पास रखा (जो कि 1911 में साबित भी हुआ जब भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली लाइ गई), पश्चिमी उत्तर प्रदेश को आज के उत्तर प्रदेश में मिला दिया और उत्तरी राजस्थान को उस वक्त के राजस्थान में मिला दिया| यह तोड़ना ईतना सख्त था कि अंग्रेजों ने यमुना के आर-पार तो शादियों तक पर भी रोक लगा दी थी| सो आज का हरियाणा पूरा हरियाणा नहीं है, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश आज भी इससे काट के रखे हुए हैं| यह तथ्य इस बात से भी प्रमाणित होता है कि हरियाणा, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही खापें हैं और हरियाणवी भाषा के भिन्न-भिन्न रूप ही इस क्षेत्र के मूलनिवासियों की भाषा है| - NH (25/11/2012) - 15 | |
तुरत का हरयाणा! |
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1966 नैं हरियाणे का जन्म वर्ष नीह ब्यल्क पुनर्गठन वर्ष कहो| |
तुरत का जो हरयाणा सै, यू 1857 तैं पहल्यां के हरयाणा का एक ह्य्स्सा मात्र सै| ह्य्स्सा उस हरयाणे का जिसमैं के आज का हरयाणा, द्यल्ली, उत्तरी राजस्थान अर पश्चमी उत्तर प्रदेश भी होया करदे| ज्युंके के उस बख्त खापाँ आळी सेनाओं नैं अंग्रेजां तान्हीं नाकां चणे चबवा दिए थे, तो 1857 का गदर काबू म्ह करें पाछै, अंग्रेजां नैं खापाँ का एक्का तोडं बाबत, इसके च्यार ह्य्स्से कर, एक पंजाब म्ह म्यला दिया था, द्यल्ली आपणी कार्यवाहियाँ का केंद्र बनाण बाबत आपणे धोरै राखी (जो के 1911 म्ह साबत भी होया ज्यब देश की रजधानी कलकत्ता तें द्यल्ली ल्याए), पश्चमी उत्तर प्रदेश आज के उत्तर प्रदेश म्ह म्यला दिया अर उत्तरी राजस्थान उस बख्त के राजस्थान म्ह म्यला दिया| अर हरयाणे का यू ख्यंडा ईतणा तोड़ का था अक जमना कै आर-पार तो ब्याहाँ पै भी पाबन्दी ला दी थी| सो आज आळा हरयाणा साब्ता हरयाणा कोन्या, द्यल्ली, उत्तरी राजस्थान अर पश्चमी उत्तर प्रदेश आज भी इस्तें काट राखे सें| इस बात की सबूति इस भेद तें भी हो सै अक स्यर्फ हरयाणा, द्यल्ली, उत्तरी राजस्थान अर उत्तर प्रदेश म्ह ए खाप सें अर हरियाणवी के न्यारे-न्यारे रूपां की भाषा ए इस क्षेत्र के मूळ -न्यवासियाँ की भाषा सै| - NH (25/11/2012) - 15 | |
Prefer marrying over purchasing! |
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Spread this message across villages, guard the human kindness! |
O! Man of the land of earliest widow remarriage, O! Man of the land of girl education enlightenment, O! Man of the land of democratic civilization! Your saviour is shaded by bride laundry these days! Why even a social legislate or reformer seem going mum instead appealing the community to adore the bride with proper ritual over disrespectful purchasing? Remember thou that you hail the decadency of great protectors of woman esteem, who took anti-woman provinces like Kalanaur into dust. Today again a woman living with the disgust of “being purchased” at your land seeks your enthusiasm of same passion and love in protecting their dignity as your ancestors used to!- NH (10/11/2012) - 14 |
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खरीदो मत, अपितु प्रणाओ! |
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यह संदेश गाँव-गाँव तक फैलाओ, नारी सम्मान को बचाओ| |
हे! विधवा के सम्मान के पुरोधाओ, हे! नारी शिक्षा का अलख जगाने वालो, हे! लोकतान्त्रिक सभ्यता के वंशजो की धरती के लोगो, आज तुम्हारी धरती की यह हालत हो गई है कि यहाँ बहुएँ भी खरीद के लाई जाने लगी हैं? क्यों नहीं कोई पंचायती या समाजसेवी इस बात का अलख जगाता कि बाहर से बहुएँ खरीद कर मत लाओ अपितु ब्याह कर लाओ! याद कीजिये हम उन पूर्वजों के वंशज हैं, जिन्होनें अपनी बहु-बेटियों के सम्मान की रक्षा में कलानौर जैसी रियासतों को दिन-धोळी धूल में मिला दिया था| और उन्हीं वीरों की इस धरती पर एक औरत को "मैं खरीद कर लाई गई हूँ" की भावना की घुटन में जीना पड़ रहा है? आपको अपने उन बुजुर्गों के सिद्धांतों का वास्ता, इस औरत के आत्मसम्मान की रक्षा कीजिये| - NH (10/11/2012) - 14 |
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ब्यसाओ ना भाई, ब्याह कें ल्याओ |
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यू संदेश गाम-गाम लग फैलाओ, बीर के मान नैं बचाओ| |
रै विधवा नैं भी सम्मान देणियाँ की धरती, नारी श्यक्षा का अलख जगाणियाँ की धरती, क्यूकर पड़कें सोगे रै? रै लोकतान्त्रिक सभ्यता के वंशजो, आज थारी धरती की या हालत अक आडै बहु भी खरीद कें आणी शुरू होगी| क्यूँ नहीं कोए पंचाती, समाज-सेवी यू अलख जगान्दा अक भाई जै बाहर तें बहु ल्याणी भी पड़ री सें तो उन्नें ब्यसाह कें मत ल्याओ, बल्क ब्याह कें ल्याओ| रै हम उन पूर्वजां के वंशज सां जिननें आपणी धियाँ के सम्मान बाबत कलानौर बरगी रयासत दयन-धोळी माट्टी म्ह मय्ला दी थी| अर उन्हें वीरां की इस धरती पै औरत नें "मैं खरीद कें आई सूं" की घुटन म्ह जीणा पड़ रह्या सै? रै तःमनें उन बुजुर्गां के सिधांता का वास्ता, इस औरत के आत्मसम्मान नैं संगवा द्यो जजमानों| - NH (10/11/2012) - 14 |
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Inauspicious…who? |
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Just born baby girl or one who stamps the sexuality? |
Why on the birth of a baby boy “Peeliya” is sent during moonlight fortnights whereas on birth of a baby girl same is sent in dark fortnights? No one seems discussing on why these orthodox rituals were introduced in society, were it under any compulsion, superstition or willingly, whatever was the reason but now it should go. Until when we will continue treating a women as commodity or it is just to keep prevailing the male dominancy? - NH (19/09/2012) - 13 |
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अमंगलिक कौन? |
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पैदा होने वाली या पैदा हुई पे मोहर लगाने वाले? |
वाह रे इंसानियत के ठेकदार पुरुष-प्रधान समाज, लड़का पैदा होने पे "पीलिया का शगुन" शुक्ल पक्ष में देना और वही जब लड़की हो तो कृष्ण पक्ष में| अगर औरत को इतना ही मनहूस मानते हो तो उसकी कोख से जन्म लेना क्यों नहीं त्याग देते? कोई इस बात पर भी नहीं सोचता की ऐसे ताकियानूसी रिवाज क्यों चलाये गए थे, चाहें वो मजबूरी में चलाने पड़े हों, ढोंग में या फिर ख़ुशी से ही सही परन्तु अब तो इनको छोड़ने से ही काम चलना है| आखिर कब तक अपनी ही जननी की इतनी मिटटी पीटेंगे हम? - NH (19/09/2012) - 13 |
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ब्यसाओ ना भाई, ब्याह कें ल्याओ! |
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जाम्मण आळी अक जाम्मी-इ पै मोहअर लाणिये? |
वाह रे अन्सानिय्त के ठेकेदार पुरुष-प्रधान समाज, छोरा जम्मै तै पीळीया देणा च्यान्दण म अर छोरी जाम्मै तै अंधेर म| लुगाई जै इतणिये मनहूस हो सै तो इसकी कोख तैं जन्म लेणा क्यूँ नीह त्यज द्यन्दे| कोए इस बात पै भी नीह सोचदा अक इह्से ताकियानूसी रय्वाज चलाये क्यूँ गए थे, चाहे वें मजबूरी म चाल्लें हों, ढोंग म फेर चाहे ख़ुशी म, पर इब तो यें छोडडें काम चल्ले| कद लग आपणी जननी की इतनी माट्टी पिटोगे? - NH (19/09/2012) - 13 |
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Bringing them into mainstream |
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Creating the motivation for learning |
Village level economic model and learning system induction into middle school level syllabus is the need of the hour! And providing price right for crops to farmers will create the urge of learning in their children, consequeently motivation to join nation's main stream. (03/09/2012) - 12 |
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उन्हें मुख्यधारा में लाना होगा |
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सीखने हेतु प्रेरणा निर्मित करना |
स्कूल के पाठ्यक्रमों में ग्राम स्तर की आर्थिक शिक्षा प्रणाली शामिल करने की जरूरत आन पड़ी है| और किसानों को फसलों के लिए सही मूल्य निर्धारित करने का हक़ दिया जाए तो यह कृषक समुदाय के बच्चों में सीखने की ललक पैदा करेगा| - NH (03/09/2012) - 12 |
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वें आगली कतार म ल्याणे होंगे |
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सीखण ताहीं चा पैदा करणा |
स्कूल के पाठ्यक्रमों म्ह गाम स्तर की आर्थय्क बन्दोबसत के तोर-तरीके पढ़ाण की जरूत बाज रीह सै| अर गैल्यां क्यसानां तान्हीं उनकी पैदवार के दाम खुद धरण का हक़ की कवायद जै पूरी हो ज्या तै इनके बाळकाँ म ऊँची पढ़ाई पढ़ण की लाल्ह्सा ब्यण ज्यागी| - NH (03/09/2012) - 12 |
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Ill effect of male-dominancy |
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U-turn of Dowry |
False pride should sustain so what if it costs bride purchasing for mighty son. False pride should not be replaced so what if one need to give dowry for getting a bride for mighty son (Bride trafficking from other states is the example). False pride should not be touched so what if now we the boy side have to plead girl family to adore our son as their son-in-law and that too with demanded cost. How screwed mentality of society is this that they can exchange the role of dowry donor but can’t say bid to dowry system, which is also the root-cause behind female-foeticide. - NH (19/07/2012) - 11 |
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ये कैसी पुरुष-प्रधानता? |
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दहेज़ की उलटी पड़ रही मार| |
झूठी शान नहीं जानी चाहिए फिर बेशक बेटे के लिए दुल्हन खरीदनी ही क्यों न पड़े| झूठी शान नहीं छोड़ेंगे चाहे दहेज़ लेने की जगह देना ही क्यों न पड़े (दुसरे राज्यों से दुल्हन खरीदने के लिए)| झूठी शान को ठेस न पहुंचे फिर चाहे जैसे पहले के वक्तों से दहेज़ इकट्ठा करते-करते लड़की वाले की जो कमर टूटती आई है वो अब हम लड़के वालों की दुल्हन खरीदने में ही क्यों न टूटनी शुरू हो जाए| कैसी मानसिकता है ये समाज की कि दहेज़ देने वालों का किरदार बदल सकता है परन्तु दहेज़ को समाज से विदाई नहीं दे सकते, जो कि कन्या-भ्रूण ह्त्या का भी मूल है| - NH (19/07/2012)- 11 |
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यो किह्सी पुरुष-प्रधानता? |
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दहेज़ की उलटी पड़गी मार| |
झूठी मरोड़ ना जाणी चाहिए चाहे बेटां खात्तर बंदड़ी बिह्साणी पड़ो बीस बै| झूठी मरोड़ कोन्या छोडां चाहे दहेज़ लेण की जगहाँ देणा पड़ो बीस बै (दूसरे राज्यां त बहु खरीदनैं तान्ही)| झूठी मरोड़ नैं आंच नी आणी चहिये चाहे ज्युकर पह्ल्ड़े जमान्याँ तै दहेज़ कठ्ठा करण म छोरी आळऐ की जो रे-रे माट्टी होंदी आई, इब बेसक म्हारी होणी शुरू ज्या बीस बै| किह्सी मती सै समाज की अक दहेज़ देण आळयाँ के करदार बदल सकें सें, पर दहेज़ नै समाज तैं बिदा नी कर सकदे, जो कन्या-भ्रूण हत्या का भी मूळ सै| - NH (19/07/2012) - 11 |
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Farmer's plight |
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Why farmer hereditary is not turning around? |
Seems farmers are deprived of for ploughing the fields to stay with their hereditary of centuries for centuries. Welfare policies designed for them proving a bone in mouth of dog, rather a white elephant. They should be brought to nation's main stream by providing them the right to decide the price of their crops. It will put their children in learning process consequently the environment of better speak-up and communication skills. - NH (16/07/2012) - 10 |
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किसान की बदहाली |
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सबके पुस्तैनी धंधे बदल गए तो फिर किसान के क्यों नहीं? |
प्रतीत होता है जैसे सदियों से सदियों तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनको हल-ट्रेक्टर ही जोतने के लिए छोड़ दिया गया है| नीतियां भी ऐसी बनाई जा रही हैं कि जमीन एक कुत्ते-की-हड्डी बनके सफ़ेद हाथी हो गई है| और जब किसान खुद भी आवाज उठाये तो इस सफ़ेद हाथी को आगे अड़ा दिया जाता है पर इस हाथी को पालते-पालते किसान की जो दुर्गति हो रही है उसको ले के कोई गंभीर नहीं दीखता? क्यों नहीं इनको मुख्य धारा में जोड़ने की नीतियां बनती, क्यों नहीं इनको उत्पादन के मूल्य-निर्धारण का हक़ दिया जाता? जो कि ना सिर्फ इनको राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ेगा बल्कि इनके बच्चों को बोलने के सलीके और संचार-कौशल का माहौल भी देगा| - NH (16/07/2012) - 10 |
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कय्सान की रे-रे माट्टी |
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सबके पुस्तैनी धंधे बदल लिए फेर इस कय्सान के क्यूँ नीह? |
इह्सा लाग्गै सै अक जाणूं तै येंह युग-युगाँ तांही पीढ़ी-दर-पीढ़ी खूड-पाडण तांही ए छोड़ दिए सें| नीति भी इह्सी कुत्ते के आह्ड आळआ नेवा हो रही सें जिह्के कारण धरती द्यन भर द्यन धोळआ हाथी लय्कड़गी| जिह्के चलते जै ब्यचारा कय्सान भी हक़ की आवाज ठावे तो यू धोळआ हाथी स्याह्मी अड़ा दिया जा सै| पर इस धोळए हाथी नैं पाळदें-पाळदें कय्सान की जो रे-रे माट्टी हो रिह सै उसतें किसे का कोए सरोकार नीह| क्यूँ नीह इननें आगली धारा म्ह जोड़न बाबत नीति बणती? क्यूँ इन तांही इनकी उपज का मोल धरण का हक़ दिया जांदा? यू इन्ने समाज की आगली दौड़ म तो ल्यावे-ए-गा, गेल-गेल इनके बाळकां नै बोलण के सलीके अर बातचीत के तौर-तरीके सीखण आळआ महौल भी देगा| - NH (16/07/2012) - 10 |
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Disgracing of civilization |
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God save when guards start hanging you! |
It is taught in earlier education that if science go in wrong hand it can prove evil. But it could be this much fatal never imagined. Those who bear the responsibility of life protectors, falling in tripple heinousness day by day i.e. killing female foeticide thus imbalancing sex ratio consequently disgracing the humanity and civilizations. - NH (16/07/2012) - 9 |
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ये कहाँ की सभ्यता? |
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यही कहलाता है बाड़ का खेत को खाना| |
बचपन में पढाया जाता था कि विज्ञान का नकारात्मक रूप बहुत घातक होता है, परन्तु इतना घातक तो नहीं सोचा था कि जिंदगियों के पहरेदारों में से कुछ चुंनिंदा विज्ञान के दम पर समाज के लिंग-अनुपात को बिगाड़ने का ठेका भी ले लेंगे| अनपढ़-गवार को क्या दोष जब इंसान इतना पढ़ कर भी समाज में तीहरा गुनाह कर असभ्यता फैलाए? एक तो कन्या-भ्रूण की हत्या, दूसरा समाज का लिंग-अनुपात बिगाड़ने में भागेदारी और तीसरा समाज की सभ्यता को कलकिंत करने का भी भागीदारी| - NH (16/07/2012) - 9 |
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सोधी संभाळ भाई? |
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बाड़ खेत नैं खावैगी तै के भला होगा| |
विज्ञान उल्टे हाथां-पड़ ज्या तै मानवता का मळीयामेट कर दे, बाळकपण म पढ़ी या बात आज के कुछ छंटे होड़े जिंदगियां के रूखाळी बड़ी अच्छी तरियां पाळ रेह सें| अणपढ़-अंजाणां नै के दोष जय्ब इतणे पढ़े होड़ भी समाज-रूखाळ के ठेके के नाम पै, तीन-तीन गुनाह कमावें? एक तो कन्या भ्रूण ह्त्या करें, दूजा समाज का लिंग-अनुपात ब्यगाड़ें आर तीजा समाज की सभ्यता कै बट्टा लावें| - NH (16/07/2012) - 9 |
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Double deceit |
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Intoxication leads to health lose |
All kind of mythologies say that guarding own body is ones prime religion, if you fail in protecting it then you lose the internal morale of practice other rules of life. So if path of mortality requires good health then why to indulge in such extravaganza practices? - NH (15/07/2012) - 8 |
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दोहरा छल |
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नशा भी करो और सेहत भी खोवो |
धार्मिक-ग्रन्थ कहते हैं कि इंसान का पहला धर्म अपने शरीर की रक्षा करना होता है और जो इस धर्म को नहीं निभा सकता वो बाकी धर्म पालने में भी असमर्थ हो जाता है| इसलिए जब धर्म की राह स्वस्थ शरीर से निकलती है तो फिर नशे में पड़ पथभ्रष्ट हो क्यों भंवर में डोलना? - NH (15/07/2012) - 8 |
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द्योहरा छळ |
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नशा करै अर देहि नैं खोवै |
धार्मिक-ग्रन्थ कहवैं सै अक खसम का पह्ल्ला धर्म आपणी देह रुखाळन का हो सै अर जो इस धर्म नैं न्हीं पुगा सकदा ओ बाकी धर्म भी पुगाण जोगा न्हीं बचदा| तै ज्यब धर्म की राह तंदरुस्त देहि तैं लिकडै सै तो फेर नश्याँ म्ह पड़ कें क्यूँ अणखद ठाणे? - NH (15/07/2012) - 8 |
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Say no to Dowry |
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Eliminate this sex inequality! |
Human purchases vegetables, cattle even all routine courses in hand to hand give and take deal then why this blunder mistake in marriages that only girl’s side will pay and that too in double costs in terms of daughter and dowry both? Lets stop this male dominance and female discrimination. - NH (19/04/2012) - 7 |
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दहेज़ ना लें |
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यह लिंग असमानता क्यों ? |
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर ब्याह-शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH (19/04/2012) - 7 |
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दहेज़ ना ल्यो |
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यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ? |
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH (19/04/2012) - 7 |
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Adore the girl child |
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Say no to female foeticide! |
If you can’t bear the birth of a
girl child in your family, you should not expect a bride for your son. Invaders are gone, lets bring back our divine period of Vedic times for our females. - NH (19/04/2012) - 6 |
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लाडो को लीड दें |
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कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो! |
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH (19/04/2012) - 6 |
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बेटियां नै लीड द्यो |
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कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो! |
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH (19/04/2012) - 6 |
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Lead the Change |
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Keeping the system of discussion alive! |
Moving with time and adapting the change is the only key to sustain civilizations. - NH (19/04/2012) - 5 |
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परिवर्तन चला-चले |
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चर्चा का चलन चलता रहे ! |
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH (19/04/2012) - 5 |
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बदलाव नै मत थाम्मो |
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समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे| |
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH (19/04/2012) - 5 |
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Veil is a curse |
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Pudency lays within eyes instead of veil! |
Veil was induced to protect our women from invaders beginning 10th century until 19th. But now they are gone thus veils should also go. Our women should be relieved completely from this curse of society. - NH (24/06/2012) - 4 |
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पर्दा-प्रथा एक श्राप है |
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लज्जा आँखों में बस्ती है पर्दे में नहीं| |
पर्दा प्रथा का चलन मजबूरी में, हमारी औरतों को विदेशी आक्रान्ताओं और लुटेरों से बचाने के लिए दसवीं से उन्नीसवीं सदी के बीच अपनाना पड़ा| परन्तु अब वो सब जा चुके हैं इसलिए पर्दा भी जाना चाहिए| इसलिए अब हमें हमारी औरतों को इस अभिशाप से पूरी तरह से मुक्त करवाना चाहिए| - NH (24/06/2012) - 4 |
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घूंघट एक बोझ सै |
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शर्म तो आख्याँ की बताई, परदे की के शर्म| |
घूंघट म्हारी बीर-बानियाँ नै ब्देसी हमलागरों अर लुटेरों तैं बचाण बाबत दसमीं तैं ले उन्नीसमीं सदी के बख्तां मजबूरी म चलाया गया था| पर इब ज्यब वें जा लिए तो यूँ घूँघट भी तै जाणा चहिये| बख्त आ लिया सै अक इब आपणी बीर-बानियाँ का इस मजबूरी तैं पैंडा छुड़ाया जा| - NH (24/06/2012) - 4 |
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Save girl child-save rites |
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Alert!- Decreasing sex-ration, will take on culture shock| |
One involved in criminal abortion, in the deficit og girls, why they would not be seen promoting within-gotra marriages on the name of love marriages and breaking other similar social norms tomorrow. Because who can murderer own-blood, rituals are of no avail to him/her. So if to excile or put bridle on someone then put on these termites of society, who are hollowing the whole social fabric. - NH (21/06/2012) - 3 |
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कन्या बचाओ-संस्कार बचाओ |
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सावधान!- घटता लिंग-अनुपात, कल करेगा संस्कारों पे आघात| |
जो आज कन्या भ्रूण हत्या करवाते हैं, वो कल लड़कियों की कमी होने पर अपने ही बेटों को लव मेरिज की आड़ में सम-गोत्र में ही दुल्हनें ढूंढनें और ऐसी ही अन्य सामाजिक मान्यताओं को तोड़ने के लिए क्यों नहीं उकसायेंगे? जो स्व-खून हत्या से नहीं डरता वो संस्कारों की हत्या से कब डरने वाला है| देश-निकाला देना हो या नकेल डालनी हो तो इन पर डालो, क्योंकि समाज के ढाँचे को दीमक की तरह खोखला तो ये कर रहे हैं| - NH (21/06/2012) - 3 |
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कन्या बचाओ-संस्कार बचाओ |
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आग्गा देखो! घटदा लिंग-अनुपात, करैगा ताहरे संस्कारा का मळीया-मेट| |
जूण आज बच्चियां नैं मरवा दे सें, वें तड़कै छोरियां की कमी होण पै आपणे बछेरा नै लव-मेरिज के नाम पै एक-गोत ब्याह अर इसी ए दूसरी समाजिक मानताओं नै तोड्न ताहीं क्यूँ नहीं उक्सावेंगे? रै जो आपणे खून की हत्या तैं ना डरया ओ तडके संस्कारा नै खूँटी पै टांगण तै डरेगा के? देश-नयकाळआ देणा हो अर चै नकेल घालणी हो तो इनके घालो, समाज के ढाँचे की असली दीमक तो येहें सें| - NH (21/06/2012) - 3 |
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Prevail dignity in relation |
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Correction of one relation can’t cost the dignity of other's! |
Is the brother-sister relation so easily accessible that it can be conferred on already married couples, who by virtue had made sexual relations too? Better find some other alternative. Please stop this heinous insult on dignity of brother-sister relation . - NH (24/06/2012) - 2 |
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रिश्ते की गरिमा बनी रहे |
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एक रिश्ते को ठीक करने हेतु दूसरे रिश्ते की गरिमा आहत ना हो| |
पहले से शादी-शुदा, जिसके प्रभाव वश वो दाम्पत्य-सुख भोग चुके हों, उनको वापिस भाई-बहन बना देना क्या इतना सरल हो सकता है? संज्ञान रहे कि ऐसा करने से भाई-बहन के रिश्ते की मर्यादा भंग होती है| बेहतर हो कि ऐसे मसलों का कोई और हल निकाला जाए| - NH (24/06/2012) - 2
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रिश्त्याँ की लिहाज रूखाळी जा |
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एक रश्ते की गलती दूजे की गरिमा तोड़ क्यूकर सुधारी जा सके सै? |
दाम्पत्य सुख भोगे ओह्ड़े जोड़े, भाण-भाई क्यूकर बणाये जा सकें सें| भाण-भाई का रश्ता इतना सस्ता तो नी हो सकदा अक किसे पै भी लाद दिया जा| आच्छा तो यो हो अक इह्से मस्ल्याँ का कीमे और तौड़ काड्या जा| - NH (24/06/2012) - 2 |
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Priest |
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What kind of equality? |
Why only male priests in temples? Why was not it made a religious regulation to have one male and one female priest a minimumin every temple? When the feel of inquality originates from our such and supreme shrines then how can one expect from a lehman to be void of it? And if priests show will power then most possibly a so called Dalit and Savrn would be worshipping together in one temple. The places which should be center to euality are proving the root source of social inequality by mistake. - NH (23/07/2012) - 1 |
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धर्माधिकारी |
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यह कैसी समानता? |
मंदिरों में पुजारी पुरुष ही क्यों होते हैं? क्यों हर मंदिर में कम से कम एक महिला और एक पुरुष पुजारी होने का विधान नहीं लिखा गया? धर्म की इतनी सर्वोच्च संस्थाओं में ही अगर पुरुष-प्रधानता है तो फिर आम समाज के पुरुष-प्रधानता से रहित होने की कैसी उम्मीद? और क्या मंदिरों के पुजारी चाहें तो दलित और स्वर्ण एक साथ एक मंदिर में बैठ के पूजा न करें? क्या यहीं से नींव नहीं पड़ जाती है समाज को असमान रूप से विखंडित देखने की? - NH (23/07/2012) - 1 |
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धर्म मुनादी |
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इसे नै बरोबरी कह्या करें के? |
मंदरा म पुय्जारी मर्द ए कान्त हो सें? क्यूँ हर मंदर म घाटो-घाट एक बीर का अर एक मर्द के पुय्जारी होण की बिधान नीह बणाया गया? धर्म के ईतणे बड्डे दर्श म ए जै पुरुष-प्रधानी चाल्ले सै तो फेर आम-समाज इस्तें बच्या रह ज्या इसकी किह्सी उम्मीद? अर के मंदरा के पुय्जारी चाह्वें तै दलित अर स्वर्ण एक मंदर म एक ठोड़ बेठ कें नि पूज्जा करें? ताह्म्ने के लाग्गे सै समाज नै खंडया अर बरोबर ना देखण की नीम तो आड़े तैं ए ना धरी जा सै? - NH (23/07/2012) - 1 |
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Jai Dada Nagar Kheda Bada Bir
Publication: NHReL
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