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!!!......Self-promotion void of obsession is a must to get the world acquaint with your existence........!!!
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Nidana Heights Banners and Flamboyants

English Version
हिंदी संस्करण
हरियाणवी संस्करण
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- NH (13/12/14) - 32 (Banner still to complete)
Description

मीडिया की अनिमंत्रित व् अनियंत्रित ट्रायलें बंद हों|

कानून आम-नागरिक के मानसिक संतुलन की रक्षा करे|

जब पुलिस तक को बिना कानूनी वारंट के किसी भी आम नागरिक को इन्टेरोगेट करने की इजाजत नहीं तो फिर यह इजाजत मीडिया को कैसे मिली हुई है और कौनसे भारतीय कानून ने दी हुई है कि सामने वाले की मर्जी हो या ना हो, जाओ और उसके मुंह के आगे माइक लगा के कर दो अपनी भड़ास रुपी सी दिखती सवालों की बौछार? निसंदेह: अब इस पर भारतीय जनता को कानून माँगना होगा और मीडिया की इस गैर-जरूरी और हद से बाहर झाँकने व् बिना किसी कोर्ट-कानून के जनता के बीच से किसी की भी मीडिया-ट्रायल बनाने की बिगड़ैल आदतों पर नकेल लगानी होगी| आखिर कहीं तो किसी की जिम्मेदारी होगी, आम आदमी को इनकी अनिमंत्रित व् अनियंत्रित टॉर्चेरिंग से बचाने की? - NH (13/12/14) - 32
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- NH (13/12/14) - 32 (Banner still to complete)
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- NH (08/04/14) - 31 (Banner still to complete)
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शस्त्र-शास्त्र हर कोई सीखे!

कर्मक्षेत्र गुण से निर्धारित हो, जन्म से नहीं!

जब एक शास्त्र हाथ में रखने वाला, दूसरे हाथ में शस्त्र रख सकता है या रखने की काबिलियत रखता होता है तो एक शस्त्र हाथ में रखने वाला, दूसरे हाथ में शास्त्र रखने की काबिलियत क्यों नहीं रखता होगा या रख सकता? इंसानों को सात्विक-तामस-राजस गुण के हिसाब से बड़े होने दीजिये, फलने-फूलने दीजिये, उन्होंने किस जाति-वर्ण में जन्म लिया है, उसके अनुसार उनपे उनका कर्म या उनकी क्षमता मत थोंपीए! किसी इंसान का सात्विक-राजस-तामस गुण का होना ना ही तो किसी जाति-विशेष के बपौती हैं और ना ही वर्ण विशेष की, किसी भी गुण का इंसान किसी भी जाति अथवा वर्ण में जन्म ले सकता है| - NH (08/04/14) - 31
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- NH (08/04/14) - 31 (Banner still to complete)
Secularism, Nation & Prosperity!
President/P.M. should be elected by public directly
A secular nation can never be a prosperous country until its president and prime-ministerial posts are not opted directly by the public instead of parliamentry boards of members of parliament! System of parliamentry board is suspectible of yielding the sense of responsbility, uninterrupted connectivity of P.M. to her public, P.M. indepency, control over cabinet, not being driven by its party lead as a puppet. Until leaders sitting on such post won't be elected directly by public, they won't feel themselves a direct responsible to public interests, sentiments, expectations and emotions. Parliamentary board should be chosen by P.M. and not the P.M. by parliamentary boards. A French system of electing president could be a good replacement for a nation like ours. - NH (03/11/13) - 30
धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र एवं सम्पन्नता
राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री सीधे जनता से चुने हुए हों!
एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र तब तक खुशहाल नहीं हो सकता जब तक उसमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सीधे जनता से चुन के आने की बजाये संसदीय बोर्डों द्वारा चुने गए हों| - NH (03/11/13) - 30 (Banner still to complete)
गैर-धर्मी, देश अर ब्योंत!
राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री सीधे जनता चुनै!
(Banner still to complete) - NH (03/11/13) - 30
Farmers should have to enter Retail-Gross-FMCG sectors!
A primary produce should come out as a secondary product from village itself!
(Banner still to complete) - NH (24/10/13) - 30
"किसानों को खुदरा-थोक-FMCG व्यापार में आना होगा"
गाँव से बाहर प्राइमरी नहीं सेकेंडरी प्रोडक्ट जाना चाहिए!
सर छोटूराम ने कहा कि ‘किसान दुश्मन पहचानना और उसके बोलने की कला सीखे’, चौधरी चरण सिंह के कहा कि ‘किसान अपनी एक औलाद को शहरों में निकाले’, और आज की जरूरत यह आन पड़ी है कि किसान को अपनी एक औलाद को खुदरा-थोक-FMCG वाले व्यापार सिखाने होंगे| खेती से निकल के प्रोपर्टी डीलिंग और आढ़त के व्यापार में किसान जातियों ने अपना परचम लहराया और परम्परागत जातियों को किनारे किया| और अब वक्त आ गया है कि किसान खुदरा-थोक-FMCG व्यापार में भी अपना परचम लहराए। क्योंकि जिस तरह से व्यापार और कॉर्पोरेट जगत ने राजनीति और देश की आर्थिक नीतियों को अपने नियंत्रण में ले लिया है उसके चलते आने वाले समय में खेती का धंधा लाचारी और बेगारी वाला होने वाला है। लेकिन किसान जातियों के पास raw material (primary product) जिससे कि FMCG के सारे secondary product बनते हैं रुपी ऐसा नियंत्रण और ताकत अपने हाथ में है कि इसका प्रयोग करके आप कभी भी खुदरा-थोक-FMCG में अपना परचम लहरा सकते हो| और यही secondary product बनाने की ताकत अब आपको अपने हाथ में लेनी होगी| गाँव-स्तर पर ऐसी इकाइयाँ लगानी होंगी जो कम से कम आपके गाँव की सेकेंडरी प्रोडक्ट की जरूरतें गाँव में ही पूरी कर दें| और इससे आपके बच्चों को गाँव-की-गाँव में रोजगार भी मिलेगा| - NH (24/10/13) - 29
"क्यसानां नैं खुदरा-थोक-FMCG ब्योपार म्ह आणा होगा"
गाम तैं बाहर प्राइमरी नहीं ब्य्लक सेकेंडरी प्रोडक्ट जाणा चहिए!
(Banner still to complete)- NH (24/10/13) - 30
'Feudal Landlordism versus Haryanvi Landlordism'
Better not to eradicate false assumptions!
- NH (14/08/13) - 28 - (Banner still to complete)
'सामंती जमींदारी बनाम हरियाणवी जमींदारी'
वहाँ की बिमारी यहाँ ना ढूँढें!
बिहार-बंगाल और पूर्वी राज्यों जहाँ किसानी-खेती सामंती प्रथा वाली जमींदारी के तहत होती आई है, वहाँ के बुद्धिजीवी व् पत्रकार बंधु और हरियाणाके भी कुछ स्वघोषित डेमोक्रेट्स अपने इन तथ्यों और जानकारी को दुरुस्त कर लें कि हरियाणा (वर्तमान हरियाणा, हरित प्रदेश, दिल्ली, उत्तरी राजस्थान साथ ही पंजाब) में जमींदारी सामंती प्रथा के तहत नहीं होती है। सामंती प्रथा वो होती है जिसमें जमींदार यानी जमीन का मालिक खुद खेतों में काम ना करके मजदूरों से करवाता है, जबकि हरियाणवी जमींदारी में खेत का मालिक खुद भी खेतों में मजदूर के कंधे-से-कन्धा मिला खट के काम करता आया है। इसलिए इन क्षेत्रों से आये बुद्धिजीवियों, समाज-शास्त्रियों और पत्रकारों से अनुरोध है कि वहाँ की बिमारी यहाँ ना ढूँढें, क्योंकि जिस लोकतांत्रिकता की बातों और मुद्दों पे आपके यहाँ गोल-मेजें सजा मंथन भर होते आये हैं, हरियाणा में वो चीज प्रैक्टिकल रूप में धरातल पे सदियों से विद्यमान है। और इसीलिए आज-तक भी अगर पूरे भारत के आंकड़े उठा के देखोगे तो अमीर-गरीब के बीच का सबसे कम अंतर हरियाणा की धरती पर ही है। इसलिए हरियाणा में अपने मानवीयता के वाहक होने के प्रमाण देने हैं तो कोई ढंग का चिंतन कीजिये| - NH (14/08/13) - 28
'सामंती जमींदारी बनाम हरियाणवी जमींदारी'
आडै, चूचियां म्ह हाड टोहणे बंद करो!
- NH (14/08/13) - 28 - (Banner still to complete)
"Authenticity of Natural Talent!"
Help the child in recognizing their intellect!
Evaluating own child from eyes of neighbours, relatives, friends and beloved ones should be stopped. One should even stop such expectations from these people. Because its root nature of human - NH (11/07/13) - 27 - (Banner still to complete)
 
"प्राकृतिक स्वाभाविक विलक्षणता"
बच्चों को इसे पहचानने में सहायता कीजिये!
अड़ोसियों-पड़ोसियों, रिश्तेदारों-यारों-प्यारो से अपने बच्चों के लिए गुणों-अवगुणों की डिग्रियां लेना बंद करो| ये सब तुम्हारे बच्चों का गुणगान करें इसकी अपेक्षाएं भी करनी बंद करो| क्योंकि इंसान का मूल स्वभाव है कि वह सिर्फ दो ही परिस्थितियों में दूसरे के बच्चे की तारीफ़ करता है, एक या तो तारीफ़ करने वाला देवता हो (जो आज के जमाने में सिर्फ भाग्यशालियों को मिलते हैं), या दूसरा उसको आपसे कोई स्वार्थ सिद्ध करना हो या आपके बच्चे को गलत रास्ते पर डालना हो या आपको अपने ही बच्चे की विलक्षणता बाबत भरमाना हो| बच्चों की विलक्षणता {यानी उसका 3G (god gifted gut)} की पहचान के बिना बच्चों को भेड़-चाल पे चलते हुए आदर्शों-महापुरुषों या पड़ोस के ही किसी दूसरे विलक्ष्ण बच्चे के जैसे बनने की प्रेरणा/ताना भी देना बंद हो क्योंकि जब तक माँ-बाप को यह समझ ना आये कि बच्चा आइंस्टाइन, बिल-गेट्स, गाँधी, भगत सिंह वगैरह में से किसके domain वाले guts का है, उसके आगे mismatch महापुरुष बनने की पीपनी बजाना वैसे ही होता है जैसे भैंस के आगे बीन बजाना| - NH (11/07/13) - 27
 
"कुदरती सुभाह का जज्बा"
बाळक नें इस्तीं पिछाणन म्ह साहरा लाओ!
अड़ोस्सी-पड़ोस्सी, रय्स्तेदार-मित्र-प्यारां तैं आपणे बाळकाँ खात्तर लाक-नलाक की डय्ग्री लेणी बंद करो| यें थाहरे बाळकाँ के गुण गावें, इसका लाह्र्सा भी बंद करो| क्यूँ, अक माणस का कुदरती सुभाह रह्या सै अक ओ दो सूरतां म्ह-ए इह्सा करया करै, एक तो अक तारीफ करणिया द्योता हो (जो आज ब्यस भाग आळयाँ नैं मिलें सें), अर कै दूसरा किसे नैं आपणा मतलब साधणा हो, कै थारे बाळक नैं गलत राह लाणा हो, कै थारे बाळक के कुदरती हुनर बाबत थामनें भटकाणा हो| बाळकाँ के कुदरती हुनर की पिच्छाण होयें ब्यना भेड़-चाल पकड़, आदर्श-महापुरुषां कै पड़ोसियां के चोखे बाळकाँ बरगा बणन बाबत भाषण कै तांना निः देणा चहिये अक क्यूँ अक ज्यब लग माँ-बाप कै न्यू समझ म्ह निः आवै अक बाळक के कुदरती गुण आइंस्टाइन, बिल-गेट्स, गाँधी, भगत सिंह म्ह तैं किस बरगे सें, उसके आग्गै बे-मेळ महापुरस बरगा बणन की पीपणी निः बजाणा इह्सा हो ज्या सै ज्युक्र म्हास आग्गै बीन बजाणा| - NH (11/07/13) - 27
 
Social Institutions are the base of society!
Appreciate their existence and contribution!
- NH (07/07/13) - 26 - (Banner still to complete)
 
सामाजिक संस्थाएं सभ्यता की नींव होती हैं|
इनके अस्तित्व और योगदान को मान्यता दीजिये!
जैसे पी. एच. डी. करते वक़्त कोई भी शोध कार्य बिना साहित्यिक विवेचना किये नहीं हो सकता, और अनंत-काल में उस क्षेत्र में जो काम हो चुका है उसको सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, ऐसे ही क्यों नहीं समाज के कुछ चुनिन्दा बुद्धिजीवियों को यह बात समझ आती कि सामाजिक संस्थाएं व् मान्यताएं भी एक शोध का सिलसिला होती हैं जिनको सिरे से ख़ारिज करके नया समाज खड़ा नहीं हो सकता| उनसे बैर ले के या उनको नकारा बता के एक दम नए समाज का तर्क देना वैसा ही है जैसे पी. एच. डी. की ज्यूरी को यह कहके डिग्री हासिल करने की कोशिश करना कि आज से पहले इस क्षेत्र में जो काम हुआ है वह सब नकारा था, गंद था | क्या ऐसे मनोदृष्टि वाले के शोध पे विश्व की कोई भी ज्यूरी मोहर लगा सकती है? ऐसे ही क्यों नहीं ये चुनिन्दा बुद्धिजीवी और पत्रकार इस बात को समझते कि जिन हरियाणा की सदियों पुरानी सामाजिक संस्थाओं पे तुम बिना उनके अस्तित्व एवं योगदान को मान्यता दिए, उनको सिरे से मिटाने पे तुले हो; उनका समाज और उनके बुद्धिजीवी तुम्हें कैसे स्वीकार कर लेंगे? या फिर अब वक्त आ गया है कि यह सामाजिक संस्थाएं ऐसे हठधर्मी लोगों पे अपनी ज्यूरी बिठाएं? - NH (07/07/13) - 26
 
स्माज्यक संस्थावां समाज की नीम हों सें|
इनकी हस्ती अर क़ुर्बानी नैं मानता दयो!
- NH (07/07/13) - 26 - (Banner still to complete)
 
Proudly say, ‘I am Haryanvi’!
Adore own cultural costumes in marriage and festivals!
When a Bengali, Punjabi, Telugu, Tamil, Malyali or Gujrati etc. can proudly wear his/her cultural costumes on cultural and customary occasions, then why not a Haryanvi? Let’s adore our costumes, wear our proud, boast of our chivalry and get it its deserving status! May not all times but at least in family and cultural functions! - NH (04/07/13) - 25
 
गर्व से कहिये, 'मैं हरियाणवी हूँ'|
ब्याह-शादी, तीज-त्योहारों पर अपने पहनावे प्रणाइये|
ठीक है आधुनिक वैश्विकता का जमाना है और हर जगह और हर मौके पे ना तो मर्द धोती-कुर्ता/कुर्ता-पायजामा पहन सकता और ना ही औरत कुर्ता-दामण; लेकिन ब्याह-शादी और तीज-त्योहारों की बेलाओं पर इनका पहनना, आदान-प्रदान जारी रखने में क्या हर्ज? जब एक बंगाली शादी करता है तो शुद्ध-परम्परागत बंगाली पहनावा, पंजाबी पंजाबी पहनावा, तेलुगु, तमिल, मलयाली, पहाड़ी, गुजराती सब अपने-अपने परम्परागत वेश-भूषा पहनना गर्व और आनंद की बात समझते हैं तो फिर हम हरियाणवी क्यों पीछे रहें? आइये अपने पहनावे को अपनी पहचान दें! - NH (04/07/13) - 25
 
च्योड़ी छात्ती करकें कहो अक, 'मैं हरयाणवी सूँ'!
ब्याह-वाणे अर तीज-त्योहारां पै आपणे बाणे प्रणाओ|
! - NH (04/07/13) - 25 - (Banner still to complete)
 
What is the definition of brotherhood as per Khaps?
Uniform distribution of parental properly in quantity as well as quality is the brotherhood of Khaps
For example: if there are 4 sons to a parent, and parent owns 20 acres of land, out of which 8 acre is fertile, second 8 is baron and remaining 4 is semi-fertile then each son will get 2 acre of fertile, 2 of baron and 1 of semi-fertile each. Principle of Khap brotherhood was formed to ensure this uniform distribution of property so that any 2 stonger than other 2 (out of 4 sons in context) should not tie up to practice "Might is Right" and grab the all fertile and better land and refer the remaining less or least fertile to weakers. And this brotherhood still prevails in rural Haryana. - NH (20/05/2013) - 24
 
"क्या है खापों के भाईचारे की परिभाषा?"
पैतृक सम्पति का संख्या और गुणवत्ता के आधार पर भाइयों में बराबर बंटवारा ही खापों का भाईचारा है|
उदाहरणत: अगर एक पिता के पास 20 एकड़ जमीन है, जिसमें 8 एकड़ डहर यानि अति-उपजाऊ, 8 एकड़ थळी यानि मरू और 4 एकड़ टोवा यानी मध्यम उपजाऊ शक्ति की है और उस पिता के 4 पुत्र हैं तो हर पुत्र को 2 एकड़ डहर का, 2 थाली का और 1-1 टोवा का बांटे आएगा| भाईचारा का नियम सुनिश्चित करता था कि 4 में से कोई 2 शक्तिशाली भाई एकजुट हो, दूसरे 2 कमजोरों को ना दबा लें और खुद उपजाऊ जमीन न ले लें और दूसरे दोनों के लिए बंजर जमीन ना छोड़ दें| यानी "जिसकी लाठी उसकी भैंस" के नियम को परिवारों में ना घुसने देना ही खापों का मूलमंत्र रहा है जो कि हरियाणवी ग्रामीण आँचल में आज भी सम्पति बंटवारे का मूल है| - NH (18/06/13) - 24
 
के सै खाप्पाँ का भाईचारा फार्मूला ?
दादालाही उजा-ज्यात का न्य्वाई-स्य्वाई देख अर ढेरी के बरोबर हिस्सयाँ म बंडवाणा ए खाप्पाँ का भाईचारा होंदा आया|
ज्यूकर: जै एक बाप पै 20 किल्ले जमीन हो, जिस म्ह 8 किल्ले डहरी, 8 थळी की अर 4 टोवे आळी हो अर उस बाप के च्यार बेटे हों तो हर बेटे कै 2 किल्ले डहरी, 2 थळी अर 1-1 टोवे का बाँडै आवैगा| भाईचारे का नियम इस बात की गोळ ताहीं बणया था अक तड़कै कदे 2 सयाऊ भाई मय्लकें 2 नयाऊ भाईयां गेल हांगा ना कर लें अर जुणसी ठाडड़ी जमीन सै वा खुद ले लें अर माड़ी दे दें नयाऊआं नैं| मतलब परिवाराँ म्ह, "जिसकी लाठी उसकी म्हास" आळी काह्णी बनण तैं बचण खात्तर खाप्पाँ नैं यू भाईचारे का कानून चलाया, अर हरियाणे के ग्रामीण अंचल म्ह आज भी उजा-ज्यात का बंटवारा इसे भाईचारे के मसोदे पै हो सै| तो देख्या खाप्पाँ की लोकतान्त्रिक व्यचारधारा की एक कड़ी, जो अक घर-परिवार लग मानव के मूळ अधिकाराँ की सीधी न्य्ग्रानी राख्या करदी अर आज लग चाल रीह सै| - NH (18/06/2013) - 24
Don't puzzle a child in relations fit!
Make them self-dependent and not the slave of others' expectations
A child should be brought up to become self-dependent and free-mind with priority of earning, because in the world of dwarf relations the only truth sustain is being self-dependent. That is why it is said that, "the capacity for possession is real, querlling is myth"and capacity for possession comes through proper environment for it rather lecturing on it. Don't drive your child to respect a person just because the person is elder in age rather make them learn to honor a person on the basis of character because character doesn't need any formality, it has self-charisma to be respected. But most of the parents (especially the rurals) - NH (20/05/2013) - 23 - (Banner still to complete)
 
"बच्चों को रिश्तों के चोंचलों में ना उलझाएँ"
उनको स्वावलम्बी बनाएं दूसरों की उम्मीदों के गुलाम नहीं
बच्चों को इस तरीके से पाला जाना चाहिए कि आत्मनिर्भर और स्वछन्द बन रोजगारी बनना उनकी प्राथमिकता हो, क्योंकि इस रिश्तों-नातों के झूठे संसार में सबसे बड़ी सच्चाई कोई है तो वह है स्वावलम्बन और कहा भी गया है कि "झगडा झूठा और काबू सच्चा", और यह काबू तभी आता है जब बच्चों को लायक बनने के लिए सिर्फ भाषण देने की बजाय लायक बनने को जरूरी माहौल दिया जाए| इसलिए बच्चों को रिश्तेदार या बड़े का आदर सिर्फ इस आधार पर मत करवाइए कि वो बड़ा है अपितु बच्चे को गुण-अवगुण की पहचान करवाइए| बड़े-छोटे में गुण होंगे तो बच्चा स्वत: उसका आदर भी करेगा और दुआ-सलाम भी, क्योंकि कहा गया है कि गुण अपना आदर अपने-आप करवा लेता है| लेकिन अधिकतर माता-पिता (खासकर ग्रामीण-परिवेश के) बच्चों को सामाजिक रिश्तों और तानोंबानों की मान-मर्यादा में इतना उलझा देते हैं कि बच्चे के स्वावलंबन (self-respect and self-esteem) क्षीण हो जाता है| ऐसे में बच्चे गर्म-मिजाजी, भावुक, दूसरों से ज्यादा प्रभावित रहने वाले बनते जाते हैं| और दुनियां की सबसे बड़ी गुलामी ही यह होती है जब कोई खुद से निर्णय ना ले सके या अपनी बात पे अडिग ना रह सके और रिश्तेदार ऐसी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते जिससे कि आपका बच्चा इस गुलामी के जाल में ना फंस जाए| इसलिए अपने रिश्ते-नातों, और छोटे-बड़ों के सिर्फ उम्र के नाम पे आदर के इन चोंचलों से अपने बच्चों को दूर रखिये और उनको गुण-अवगुण की पहचान कर खुद की सोच निर्मित करने दीजिये| वरना औलाद तो दुखी रहेगी ही, आप भी सारी उम्र कभी औलाद को कोसोगे तो कभी अपने-आप को| याद रखने की बात है कि ऐसा करके दूसरों से अस्थाई वाह-वाही तो लूट लोगे कि आपका बच्चा कितना शालीन है, ये है वो है लेकिन उसमें आपके बच्चे की स्वयं के प्रति शालीनता धुल के रह जाती है| और ऐसा तब तो बिलकुल भी ना करें जब आप एक सर्वसाधन-सम्पन एवं समर्थ माता-पिता हों| - NH (20/05/13) - 23
 
- NH (20/05/2013) - 23 - (Banner still to complete)
When in Rome do as the Romans do
Wear the system not the culture
As much as an individual/community is certain and assured on her cultural and spiritual aspects so vibrant and progressive the society would be and it works despite the fact that you live at home or abroad. And that is why perhaps Bill Gates once marks the South Indians as the smartest genre on earth, because they know how to grow while being fluvial with "natal heritage". Idioms like “When in Rome do as the Romans do” are made for commercial purposes thus should never be taken as a requirement/compulsion or excuse to change your natal/cultural identity or cursing drawbacks of it (instead if could then work on its rectification and promotion, you shall achieve the enlightenment). Moreover if it would have been so necessary then Britishers should have become pure Indians in 300 years of their rule over India but they wore our system (for commerce) not our culture, so where ever on the earth you are “wear the system not the culture”. - NH (12/05/2013) - 22
 
जैसा देश वैसा भेष
प्रणाली को धारो संस्कृति को नहीं
- NH (12/05/2013) - 22 - (Banner still to complete)
जिह्सा देश उह्सा भेष
ब्योहार अपणाओ संस्क्रती नीह
जितणी म्हारी अपणी संस्कृति अर बौद्धिक पहलुवां की समझ अर विश्व्सनिता ठाडडी होगी अर इसनें गेल ले कें चालैंगे; हामें उतणे-ए ज्यन्दा-द्य्ल अर तरक्कीपसंद बणांगे| यू मन्त्र देश म्ह रहो अर चहे ब्यदेश म्ह सारै काम करै सै| ज्यब-ए तो दक्षिण-भारतीय इस बात नैं सांगो-पांग प्रणा रे सें ज्यांते एक बिल गेट्स सरीखे नैं भी यें धरती के सबतें जीवंत अर बुद्धिमान नश्ल बताये| "जिह्सा देश उह्सा भेष" जिह्सी कहावत ब्योपरियां की ब्योपार करण ताहीं बणाई गई थी| - NH (12/05/2013) - 22 - (Banner still to complete)
Meaning of "Learn to Speaking"
Sir Chhotu had preached that "O! my innocent farmer do two things, learn to speaking and recognizing the enemy!"
Sir’s preaching on “learn to speaking”, meant for not to open flawlessly and innocently in first meeting with unknowns and mischievous people. The world outside the agriculture is not so easy going and transparent as yours; they are so clever, critical and ambitious in their aspirations and communication that they would remain most conserved in their conversation with you. And symptom of recognizing such people in first meeting is that they would try to reflect their frankness the best way but real truth is just reverse of it. And a farmer or descendent of farmer should not take their this approach as a demoralization for themselves but it’s your purity of heart and purity of hearts are secretive things at least not to be meant for opened in very first meeting. So you have to learn their kind of smartness while dealing with them otherwise you will always be blamed for not a good speaker or communicator. And damn you can do it so easily that opponent will reflect his/her anxiety/hidden agendas his/herself. - NH (16/03/2013) - 21
"बोलना ले सीख" का मतलब
रहबर-ए-आजम सर छोटूराम जी ने कहा था कि "ऐ मेरे भोले किसान तू मेरी दो बात मान ले, एक बोलना ले सीख और दूजा दुश्मन पहचान ले"|
जब उन्होंने कहा कि "बोलना ले सीख" तो इसका मतलब ये कतई नहीं था कि किसान को बोलना नहीं आता, अपितु उनका ईशारा किसान की साफगोई और भोलेपन से बात करने के तरीके से था| वो कहते थे कि तू इतना भोला है कि अनजान आदमी को भी पहली मुलाकात में दिल खोल के रख देता है और बाहरी दुनियां स्याना, चालाक और बोलने का चातुर्य उसको कहती है जो सहज से अपना भेद ना दे| तो अगर कोई किसान या किसान का बेटा इस कहावत से यह समझे की उसको बोलना नहीं आता तो इस गलतफहमी को दूर कर, ये सीखें की अनजान और दुश्मन से अपनी बातों का भेद दिए बिना, कैसे बात करनी चाहिए, ताकि वो आपका भेद-व्यवहार इतनी आसानी से न समझ सके अपितु झुंझलाहट में उसका जरूर कुछ भेद या मंशा झलका जाए| याद रखने की बात है कि भाषा-बोली-जुबान कोई गन्दी नहीं होती| आपके और बाहर के कहो (या आपकी आलोचना करने वाले कहो) की भाषा में सिर्फ ये साफगोई का ही फर्क है| इसलिए किसी शायर ने खूब कहा है: दिल सबके साथ नहीं खोले जाते, ये वो खजाने होते हैं जो सबको नहीं बांटे जाते| महबूब जिगर की दुल्हन बनाइये इसको, राह चलते की रखैल नहीं||" - NH (16/03/2013) - 21
"बोलणा ले सीख" का मतलब
राय बहादुर चौधरी छोटूराम जी नैं एक बै कही थी अक, "रै म्यरे भोळए क्यसान तू म्यरी दो बात मान ले, एक बोलणा ले सीख अर दूजा दुश्मन पिछाण ले|"
ज्यब उन्नें कही अक "बोलणा सीख ले" तै इसका मतलब यू कतई नहीं था अक क्यसान नैं बोलणा कोनी आंदा, ब्यल्क उनका अयशारा क्यसान की साफगोई अर भोळएपण तैं बात करण के बैहळ तैं था| थामें कह्या करदे अक तू इतणा भोळआ सै अक अनज्याण माणस ताहीं भी पहली-ए सेठ-पेठ म्ह दय्ल खोल कें धर दे सै अर यें बाहरली दुनियां आळए उससे नैं स्याणा, चलाक अर बोलण म्ह शात्यर मान्नैं सें जो सोहळए बहळआं आपणा हेत-भेत ना आण दे| तो जै कोए क्यसान चै क्यसान का बेटा इस काह्वत तें न्यूं भरमा ज्या अक उसनें तो बोलणा ए कोनी आंदा तै इह्सी गलतफहमी तैं दूर रहियो, अर इसका सुलटा भा समझ न्यूं सीखियो अक अनज्याण अर दुश्मन गेल ब्यना आपणा भेंत दियें, क्यूकर बात करणी चहिए, जिसतें अक ओ सेल्हा सा थारा हेत-भेंत तो जाण पावै नहीं ब्यलक थारे बोलणे के इस तरीके तैं झुंझळआ ज्या और उल्टा उससे का मजन झळका ज्या| गोळ करण की बात सै अक भाषा-बोली-जुबान कोए गन्दी नहीं होंदी| थारी अर बाहरल्यां की कह ल्यो (चहे थारी काट करणीये की) की भाषा म स्यर्फ साफगोई का ए फर्क सै| ज्यांते तो एक शायर नैं भी के खूब कही सै: दिल सबके साथ नहीं खोले जाते, ये वो खजाने होते हैं जो सबको नहीं बांटे जाते| महबूब जिगर की दुल्हन बनाइये इसको, राह चलते की रखैल नहीं||" - NH (16/03/2013) - 21


Jai Dada Nagar Kheda Bada Bir


Publication: NHReL

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