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डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल कृषि-अर्थ सोधशाला
गाम की बणी-बूटी, पशु-पखेरू अर हेर-स्यमाणे |
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गाम के पशु-पखेरू:
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जंगली बिल्ली |
भैंसा |
मोर |
नीलगाय |
झाया |
कय्स्म |
ढाळ |
ज्नोर |
चान्हा |
चा |
बलद, बैह्ड़का, सांड, घोड़ा, घोड़ी, कुत्ता, ब्य्ल्ली, सुस्सा |
धार-डोका |
म्हास, गां, बकरी |
मांस |
सूर, मुर्गा |
ब्योपार |
म्हास, झोटा, बलद, बैह्ड़का, भेड़, खच्चर, गधा, बांदर |
जंगळी |
खुन्नी |
भेढा, जंगळी ब्य्ल्ली, बाहरला ब्य्ल्ला |
दब्बू |
सुस्सा, मुस्सा, रोज, हीरण, गादड़ |
घुन्ना |
बांदर, सुणसुणिया |
तबियत आला |
झाया |
जमीनी |
जहरी |
सांप, कानखजूरे, पाटड़ा-घो |
कई टान्गा के |
बिच्छु, मकोड़े, कीड़ी, चींटी, सुंडी, दीमक, केंचुआ, गजाई, छ्पकली, गंडोया, भूंड |
खून चूसणिये |
जोंक, ढेरे, जुएँ, नयोळ, चूरणे |
उडारु |
डंक मारणिये |
भिरड़, माख्खी, माछर, डांस, चमगादड़ |
मन के चाहे |
जुगनू, तितली, फटबिजना |
लांबी मार के पखेरू |
काग, बुगला, चील, चडिया, अळउ, ग्य्द, तोत्ता, टटीरी, कोतरी, खाती, कबूतर, काब्बर, तीतर, कठफौड़ा, बाज, शील |
पाणी आळए |
पाणी-जमीनी |
बुगला, हंस, मुरगाई, बत्तख, जोंक, कछुआ, मंडक |
पाणी |
मच्छली |
गाम की बणी-बूटी अर हेर-स्यमाणे:
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कीकर |
जाल |
मंगल-वाला जोहड़ |
शीशम |
कय्स्म |
ढाळ |
बणी-बूटी |
रूख |
आज के बख्तां के |
किक्कर, शिस्सम, नीम्ब, पीपळ, बड़, पोप्लर, केळआ, मरूद, आम्ब, स्तूत, तूतिये, झाड़-बोझड़े, पलपोटण, जामण, पाहडी किक्कर, बेरी, सफेदा, बढबेरी, बांस, पपीता, बकायन, अरंड |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
गुल्यर, जंगळी-जलेबी, सुख्खी-जलेबी, जाळ, जांडी, सीरस, लह्सोड़े, कैर, पापड़ी, केंदु |
लेट-डाबडे |
आज के बख्तां के |
डाबड़ा-लेट: गाम के चौगरदै हेर-स्यमाणां म ढूंग-ढूंग पै जंगळ होया करदे, जिइमे के बीच में तलाब अर उहके चौगरदे रूख-झाड़-बोझड़े-जड़ी-बूटी होया करदे| इनमें जंगळी ज्यनोर अर कीड़े-मकोड़े का बास होया करदा| इनतें गाम की कई ढाळ की जरूत पूरी होया करदी; ज्युकर चूल्हे खात्तर सूखी लाकड़ी, अचार घालण खात्तर टींड-निम्बू-आम, कई ढाळ के फळ, बैद अर सेहत खात्तर कई ढाळ की जड़ी-बूटी, डांगर-ढोर खात्तर पाणी, अर पर्यावरण खात्तर हरियाली| पर इब कित वें नज़ारे|
आज के दयन तो एक-आधा ए बच्या सै नहीं तै बख्त की मार अर माणस के लालची सुभा नै घनखरे ए लील लिए| जुणसे एक-दो बचे सें उनकी जाणकारी भी लागे हाथां धर द्यूं सूं आड़े ए:
बाहमणां आळआ डाबड़ा: धन्य हो गाम के बाहमण जिननें यू डाबड़ा आज भी सांगोपांग बणायें राख्या सै| यो डाबड़ा गाम के सारे दाबड़याँ तैं घणा अर गहरा सै| च्यार किल्याँ म पसरा यो डाबड़ा रूख-बणी-बूटी तैं भरपूर सै|
बाग्गा आळआ डाबड़ा: अनुमानन यो एकला ए इह्सा डाबड़ा बच्या से जो जाटां नै संभाळ कै राख-राख्या सै| पराणे बख्तां म दस तैं भी घणे इह्से दाब्दे होया करदे पर आज सही-सलामत तो एक यू अर एक बाह्मणां आळआ ए बचे सें| छह किल्याँ म पसरा होया यो डाबड़ा भी रूख-बणी-बूटी तैं आज भी भरपूर सै|
न्यडाणी काहन आळआ डाबड़ा: यो डाबड़ा न्यडाणे अर न्यडाणी की सीम पै पड़े सै| |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
सांझरण आळआ डाबड़ा, डहरां आळी लेट, टोवे आळी लेट |
जोहड़-पोखर-गोरे |
ब्यौरा |
जोहड़ गाम की संस्कृति अर डांगर-ढोर पाळण खात्तर सबतें जरूरी साधन हो सें| ज्यूकर हरियाणे का कोए सा भी गाम था ल्यो न्यूं ए न्यडाणे म भी जोहड़ गाम की फयरणी के लागते इसके भीतरली ओह्ड़ नैं खोद्दे होए सें| बख्त-बख्त पै इनकी खुदाई खात्तर ल्हास (जीवन-शैली आळए पन्ने पै पढो अक ल्हास क्यां नै कह्य करें) करी जाया करें अर फेर न्यू ए इनमें पाणी भरण खात्तर भी ल्हास बलाई जाया करें| आज के बख्तां म्ह तै कुए-ट्युबल-नळकूप अर घर-घर पाणी खात्तर टोंटी हो रही सें, पर पराणे बख्तां म एक जोहड़ इह्सा राख्या जाया करदा जिसका पाणी सर्फ गोउ-बलद अर माणस बरता करदे| बाकी पशु अर जन्दोरा खात्तर न्यारे जोहड़ होया करदे|
गोरे: जोहड़ के चारों और खाली-पड़ी जमीं जो की पशुओं को बैठाने-ठहराने के लिए होती है, उसको गौरा कहते हैं| पाळी अपणे डंगर-ढोर को सुबह खेतों म ले जाणे तैं पहल्यां आड़े बैठाया करें, जब सारे कट्ठे हो ज्यां तो फेर डांगराँ नैं खेताँ काहन बोल दिया करें, हांक दिया करें| |
आज के बख्तां के |
लाधवा-आळआ, नाई-आळआ, नागा-आळआ, मंगल-आळआ, देब्बी की जोहड़ी, ज़िडाणा |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
बाख्खा, गुहड़ी |
बणी |
ब्यौरा |
बणी गाम की बसासत के चौगरदै अर खेताँ के स्यमाणां म छोटे-छोटे जंगळआ नै कह्य करें| जिसमें घनखरे रूख छोटी रयास के झाड़-बोझड़े, जांड-जांडी यें होया करें| गाम की बढती आबादी अर इस कारण रिहायस के बढते दायरे नैं घनखरी ए बणी लील ली सें| |
आज के बख्तां के |
ब्यौरा तोळआ लाया जागा| |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
ब्यौरा तोळआ लाया जागा| |
स्यमाणे-हेर-कल्लर-कौरे-हरियाले खेत |
ब्यौरा |
गाम कै चौगरदे पसरे न्यारे-न्यारे खेताँ के सय्माणां नै हेर-ढूंग कह्य करें| अर बन्या बोई अर बन्या रूख-कैरा की खाल्ली पड़ी बंजर धरती नै कल्लर-थळी कह्या करें| |
आज के बख्तां के |
मौजां-आळी, टोवा, कीकर-आळआ, लाध्वा-आळी, डहर, थळी, लाल-आळए, देबी-आळए, लेट-आळए, सांझरण-आळए |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
ब्यौरा तोळआ लाया जागा| |
पाळ-खाळ-ब्यद्रो |
ब्यौरा |
पाळ खेत म पाणी की ढाळ नै ढाळण खात्तर बांधी जाया करें| इसमें खेत की उपरली परत के उबड़-खाबड़ ह्यस्से की माटी कस्सी-गोड़ियाँ गेल एक कूणे म पहाड़ी सी के ह्य्साब म कट्ठी कर दी जाया करै| पाळ बाहर तैं आये बाढ़ के पाणी नै आगे ढाळण खात्तर भी बनाई जाया करें| ब्यद्रो इसे पाळ का एक नमूना सै, जिसमें एक काहन तो माटी की पाळ बाँधी जा अर दूजी काहन गहरा खाळ खोद्या जा, जिस्तैं के पाळ तो ढूंगे खेताँ म पाणी नै बडन तैं रोक दे अर खाळ उस पाणी नै आगे ड्य्गा दे| |
आज के बख्तां के |
तीन ब्यद्रो: ललत खेड़े काहन आळी, न्यडाणी काहन आळी, ढगाणे काहन आळी |
खत्म हो लिए कै होण आळए सें |
ब्यौरा तोळआ लाया जागा| |
ध्यान म देण की: बख्त की गेल इसमें और भी जानकारी घाली जान्दी रहगी|
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
लेखक्क: पी. के. म्यलक
तारय्ख: 18/06/2012
छाप: न्यडाणा हाइट्स
छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.
ह्वाल्ला:
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