खस्मान्नी-सोधी
 
मरम्मत
EH-hn.html
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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
थाहमें उरै सो: देहळी > खस्मान्नी-सोधी > मरम्मत
सम्बोधनां की मरम्मत
देसी सम्बोधनां की व्यंगात्मक सच्चाई अर उनकी मरम्मत


ब्य्शेष: यू लेख व्यंगात्मक शैली म्ह लख्या गया सै, जिसतें अक गेल-पड़ी म्ह लेखक आपणा सन्देश भी दे ज्या अर किसे भाई नैं मसूस भी ना होवै| सो चटकारे ले-ले पढ़ोगे तो दूसरी ज्यात-धर्म बाबत थारा मन का मैल भी धुळ ज्यागा अर बेरा भी नी पाटैगा| पर इतणी अर्ज जरूर सै अक जुणसे/जुणसी के मगज म्ह ज्यात-पायत, नश्लभेद अर धर्म-भेद का बड्डा ढीम धरया हो वो इस लेख नै आड़े-ए बंद कर दें, अर आगै ना पढैं|



सुण सरकार:


म्हारी खात्तर भी जातिगत कनून बणाओ, जिसतें अक यें तळए बतळआये होए सम्बोधनां पै हामें भी भों किसे नैं कोर्ट मह जा खड़ा कर दयां बेशक हामें बुरा निः मानदे पर इब ज्यब कनून की बात सै तो म्हारी खात्तर भी बणाओ|



मकसद:

जिसनें देखो ओ हे इक्कस्मी सदी अर 2012 की दुहाई दे आपणे-आप नैं अधुनय्क समाज का सबतें मॉडर्न जन्योर बताण म्ह लाग्या रह सै, फेर ओ चह्ये किसे ज्यात का हो अर चाहे किसे धर्म का| एंडी के चेले लटूर अर शैल्लियाँ की मरम्मत करा, सुथरे-सुथरे (चाहें चीथड़े लटक रे हों) इह्से लत्ते-ड्रेस, सूट-बूट गाड़ कें, गात की तो इह्सी पैकिंग कर ल्यंगे जाणू इब-ए नुवास (सेल) म्ह दखाए जांगे पर ज्यब जुबान खुलै तो बेरा लागै अक सौदा के सै| अर फेर उनके मुंह तें प्रवचन सुण कें महसूस होवै अक यू तो ऊँची दुकान अर फीका पकवान आळआ नेवा सै| अर यू नेवा गाम-शहर दोनूं आळयां गेल पाया जा सै|
मानवीय सत्कारां की गोळ होवै


इह्सा गाभरू/स्याणा/सुवासण टोहणा/टोहणी मुहाल सै जिसकी जीभ पै ज्यात-पायत अर धर्म खात्तर द्वेष अर ठेश ना धरी हो| किसे की पै इस ज्यात बाबत तो किसे की पै उस बाबत पर पावैगी जरुर| कोए बाणिया होगा तो जाट नैं सोळहा-दूणी आठ कहंदा पा ज्यागा| कोए जाट होगा तो बाणीये नैं किराड़ कहंदा पा ज्यागा| कोए हिन्दू पंजाबी नैं "रफूज" कै "बाप्पा" कहंदा पा ज्यागा| कोए शहरी होगा तो गाम आळयां नैं मोलड कहंदा पा ज्यागा अर कोए गाम आळआ होगा तो शहरी बाबत "मुंह चिकणा-पेट खाल्ली" आळी तर्ज पकड़ें पावैगा| अर भाई जिन खात्तर जातिगत सम्बोधन के ख्य्लाफ कनून बणगे सें तो उननें कहण का अर उनके नाम याद करण का तो इसा काम सै अक "आ बैल मुझे मार"| के बेरा लागै कोए मजाक की भाषा ना समझै अर खुंदक खा मन्नें ले थाणे जा खड्या हो तो मेरा बाबू मेरा खोस्ड़याँ बक्ल उधेड़ देगा अर कहंदा पावै आज्या बेटा ल्या मैं मयटवाऊंगा तरे पै ज्याताँ के मन-मुटाव|

खैर जो सै, समझ म्ह या नी आंदी अक ज्यब यें मॉडर्न बण कें चालें सें तो गात नैं सजाण पै तो ईतणा हांगा ला दें सें अक जाणू इब की इब जणेत चढ़ेंगे पर जै ईतणे-ए-रंग चा तें आपणी जबान नैं भी संगवाण की कोय्शश करी जा तै दुनिया का आधा कळएश तें न्यू ए कट ज्या| म्हारे टेम म्ह तो सर्फ छोरयाँ का यू हाल था, आजकाय्ल तो चाळआ यू हो रह्या सै अक छोरी भी टेक लाण म्ह 2 चंदे अगाऊ हो रीह सें|

तै इस स्यल्सले म्ह, इह्सी सम्बोधनां की मरम्मत करी जागी, जो लोकल समाज म्ह ग्रामीण बनाम शहरी, गरीब बनाम अमीर, अणपढ़ बनाम स्याणा, प्यछड़ा बनाम मोडर्न, इस ज्यात का बनाम उस ज्यात का मजाक उड़ावण/बनावण बाबत/खुन्नस काढण बाबत अर एक समाज नें दूसरे तें ख्यंडाये राखण/दूर करें रह्यें बाबत "खिसयाणी ब्यल्ली खम्बा नोचै" की तर्ज पै तोड़ी-मरोड़ी/घड़ी गई सें| इस लेख म्ह उनके असली मतलब अर उन्नें तोड़ण/मरोड़ण के मतलब जाण कें उनकी मरम्मत करी जागी| इह्सी सम्बोधनां के पाछै अधिकतर कै तो घरणा (नफरत), कै कोए दूसरे जिह्सा ना बण ज्या इस बाबत उसका आत्म-व्यस्वास तोड़ण ताहीं अर कै उसके जिह्सा ना बण पाण की खुन्नस म्ह तोड़ी-मरोड़ी जा सें, अर जो ना तो बोलणीये नें शोभ्या द्य्न्दी अर ना जिसपै बोली मारी जा उसनें सुहावें| इस लेख का मकसद एक-ए सै अक इब इस 21मी सदी म्ह पोह्न्चें पाछै भी जितणी तरक्की हामनें धन जोड़ण अर तन सजावण पै ला दी इतणी ए आपणी जबान नैं भी सजावण की दरकार सै| ओ कह्या करें ना अक तीराँ के घा भर ज्यां पर बोलाँ के घा जन्म-भर भी ना भरें|


  1. क्यराड़/किराड़:

    खुन्नस/छो/जळन: हालाँकि इसका असली अर्थ अर यू क्यूँ घड्या गया था इसकी काहणी की खोज चाल री सै| खोज पूरी होंदें थारे स्याह्मी ल्याई जागी| पर जो आज लग सुणी गई सै उसके ब्योरे तें इसका चलन न्यूं शरू होया; ओ बाणिया जिसके बारे न्यूं लग कही गई अक उसका 100 का भी नुकसान हो ज्या तो ओ कोए खींचा-ताण नीह करै पर ओ हे गरीब पै आपणी धोंस जमावण ताहीं अर उसनें कर्जे में डुब्या राखण ताहीं, एक-एक कोड़ी पै उन गेल्याँ उळजदे अर तान्ने द्यन्दे देखे जा सें| अर जै कोए कहदे अक सेठ के बात होगी, जाण दे| तो सेठ कह्गा अक न्यूं क्यूकर जाण द्यूं एक-एक कोड़ी जोड़ कें-ए तो करोड़ बीणेन्गे| तो इह्सा सुणन मह आवै सै अक उनकी इस आदत तें परेशान हो लोग उन्नें किराड़ अर क्यराड़ कहण लग्गे मतलब एक-एक कोड़ी पै राड़ करणिया|

    मरम्मत: पर जो इस बात नें हळके म ले ज्यां सें उन्नें या भी सोचणी चहिये अक आदमी धनवान तो एक-एक कोड़ी ए जोड़ कें बनै सै अर जै वो न्यग्र ब्योपारी हो तो फेर तो या कोड़ी जोडणी और भी जरूरी हो ज्या सै| नी तो बताओ फेर पिस्सा कित्तें आवैगा? न्यूं के कुणसा रूखां कें लागै सें| अर फेर जै धर्म-पुन: ए करणा हो तो फेर ब्योपारी बणन की के जरूत अर जै ब्योपारी बण्या सै तो एक-एक पिस्से का ह्य्साब नी राख्या तो लोग कुड़ते नी तार ल्यंगे गात तें|

    सो जै ब्योपारी बणना सै तो भाईचारा अर सगे-सप्टे पाछै अर पिस्सा पहल्यां, जो कदे तें समाज म इज्जत का अर शोहरत का प्रतीक रह्य सै| इसलिए दूसरयां नें किराड़ कहणिया पहल्यां ब्यपार की भाषा समझ कें बोलैगा तो फेर किसे नें किराड़ नी कह पावैगा|


  2. रफूज:

    खुन्नस/छो/जळन: रफूज सै रफूजी शब्द का ब्यगड़या होया रूप जो दूसरे लोग स्थानीय पाकयस्तानी पंजाबी भाईयाँ ताहीं खुन्नस म्ह कहं सें| हालाँकि कहणे आळआ या भूल ज्या सै अक रफूजी दो ढाळ हो सें, एक जो मजबूरी (ज्युकर रोजगार ना मिलदा हो) म देश/जन्मभूमि छोड़ दूसरे देश जा बसें अर दूसरे वें जो राजनितिक कारणों के चलते आपणी जमीन-मकान मूळ तें ए छोड़ कें दूसरी जगहा जा बसें (ज्युकर 1947 म्ह धर्म के अधार पै हिंदुस्तान अर पाकय्स्तान बणे तो हिन्दू पंजाबी भाई हरयाणा अर पंजाब म्ह आण बसे)|

    मरम्मत: अर ज्यब एक आदमी आपणे धर्म के पालन बाबत आपणी जमीन, घर सब तज दूसरी जगहा जा बसण म्ह भी ना झिझ्कदा हो तो ओ उस धर्म के दूसरे लोगां तैं कई गुणा धर्म-भगत अर देश-भगत होया| अर बख्त के थपेड़े अर धर्म की पालणा करदे-करदे उनमें इह्सा व्यश्वास अर ज्ञान जाग ज्या सै अक उनमें तें कर्म नैं छोटा-बड्डा समझण का नजरिया जांदा रह सै, अक क्यूँ उसकी पाछली समाज्यक स्थ्यरता, तानाबाना अर झयझ्क टूट ज्या सै, अर फेर ओ किसे भी कर्म नें करदा होया नी सरमाया करदा| पर ज्यन्दगी का यू मन्त्र वें क्यूकर समझें जिनकी पीढियां नें कदे आपणे घर-जमीन-माट्टी छोड्डण का दंश ना झेल्या हो|

    अर याहे म्हारी पाक्यस्तान तें आई धर्म-भगत, देश-भगत पंजाबी कौम गेल होया| अर इस त्याग की लौ म्ह जळ जो उनके भीतरले म्ह च्यांदणा होया उसनें आगै धर इन्नें जो भी काम ठ्याया ओहे करया| फेर उसमें चाहे कितणा छोट्टा-बड्डा काम क्यूँ ना होया| वीरां नैं रेहड़ी लाणी पड़ी तो वें लाई, किसे की चाकरी करणी पड़ी तो वें करी, अर आपणे इसे सुभा के दम पै आज देश की आगली कौमां म्ह खड़े सें| अर स्थानीय लोग आज भी इस अहम म्ह गंठे बैठे सें अक हामें अर माहरे बाळक यू काम क्यूँ करें, यू तो कदे म्हारे बाप-दाद्याँ नैं नी करया| पर ज्यब दूसरे भाई ज्युकर येन पाक्यस्तानी पंजाबी उसे काम नैं कर कें सफलता के झंडे गाढ़ दे सें तो फेर कणछ्दे होयां नैं और तो किमें पावै नी, इन्नें उलटे "रफूज" बरडान्दे पावेंगे|

    काश यू विस्थापना का दंश ईन दुसरया नें रफूज कहणियां कै भी लागै तो इन्नें बेरा पाटे अर अक्ल आवै अक काम कोए छोटा-बड्डा नी होंदा| अर इसे झूठे अहंकारी एवं रूढ़िवादी रवय्ये कै चलदें, अर खुद ओ काम ना कर सकण के मलाल अर दूसरा कर दे तो उस्तें उठी खीज तें उस करणिये नैं तोड़-मरोड़ कें शब्द बोलण तें ओ आपणा ए नुकस्यान कर बैठै सै|


  3. पोथी/पंडोकळी आळए:

    खुन्नस/छो/जळन: धर्मशास्त्र ज्ञाता होण का ढोंग कर आपणी पेट-पूज्जा अर घर-पूज्जा (सुच्चे अरे सच्चे ज्ञानियाँ नैं छोड़ कें) का जुगाड़ करण आळए लोगां खाय्त्तर घड्या गया संबोधन सै पोथी आळए| इनकै लाग्यें घनखरी बर जो शुद्ध धर्म ज्ञानी/वेत्ता हों सें, उन्नें भी इह्से शब्द सुणने पड़ ज्यां सें|

    मरम्मत: इह्से कयस्सां तें ज्ञानी मणस तो कहणे आळए तें विमुख होए जा सै गेल-गेल कहण आळआ अपणे आप खात्तर ज्ञानी की नजरां म्ह घर्णा भी कमा ले सै| तो सुरती या होणी चहिये अक इह्से शब्दां के अनदेखे अयस्तेमाल तें पहल्यां आदमी नैं स्याह्मी आळए माणस के ज्ञान अर पोंह्च की परख कर लेणी चहिये निः तो अंधे हों कें बकणीये तो गेल "च्यकळआन्दा चिकड़ म्ह पड़े" आळआ नेवा होया करै|


  4. जाट, सोळआ दूणी आठ:

    खुन्नस/छो/जळन: यू जुम्ला ब्योपारी वर्ग की ओड़ तें पराणे ब्ख्तां म्ह इस मंशा अर डर तें घड्या गया था ताकि क्य्सान समाज के छोरट ब्यापार के क्षेत्र म्ह ना आवें अर इसतें दूर रह्वें| क्यूँ अक उन्नें लाग्या करदा जै एक क्य्सान भी इस क्षेत्र म आ ग्या तो उनके वर्ग के पुश्तैनी कारोबार म सेंधमारी तो होवे-ए-गी गेल-गेल हामनें विस्थापन अर कम्पीटीशन भी झेलणा पड़ेगा| अर उनका यू डर कितणा साच्चा था ओ आज के दयन हर गाम-गळी-मुहल्ले म्ह किसानों के बाळकाँ द्वारा चलाई जा रही, हर चाहना के समान की दुकान अर ब्योपारिक केंद्र सें (मेरे गाम की तो या काह्णी हो रही सै अक आज के दयन गाम म्ह एक भी पुश्तैनी ब्योपारी नी रह रह्या, सारे शहरां कान सरकगे|)|

    मरम्मत: इसमें जाट के नाम को क्यूँ घसीटया गया उसका ओढ़ा बणया जाट जाति का किसान वर्ग म्ह सबतें घणा पाया जाणा, जिसकै चलते क्य्सान अर जाट शब्द को एक दूसरे का पर्यायी भी कह्या गया| अर पराणे जमान्ने म्ह ज्यब भी या खबर आंदी अक फलाणा खेती छोड ब्योपारी बणन की राह चाल्दा दिखे सै तो सारे ब्योपारी तान्ने मारदे ए दिख्दे अक इब यू हळ की फाळ छोड कलम थामैगा| अर मनघडंत तर्क लाणे शरू कर द्यन्दे अक यू तो फेर चीजां नैं खेती आळयां खात्तर फ़ादे की बणा बेचैगा, जिसतें हामनें भी दाम घटाणे पड़ ज्यांगे| सो आज जड़े 8 के 16 कमावाँ सां, तडके कदे 16 के 8 ना रह ज्यां| सो उन्नें इसको आपणे ब्यापार कै ऊपर एक डर मान्या अर इस डर तें बचण ताहीं अर उसका मनोबल तोड़ण ताहीं जुम्ला घड़ दिया "जाट, 16 दुनी 8" ताकि यू खेताँ म्ह ए रहवै अर म्हारा कारोबार सदा न्यूं ए चलदा रहवै| याह बात थी तो साच्ची पर उलटे बळ की साच्ची|

    जबकि जाट आधा ब्योपारी तो जन्म तें ए होवे सै, क्यूँ अक सदियाँ तें हर कारीगर के राछ-समान का मोल-भा (चाहे वा कुम्हार-खाती-लुहार के बणाऐ औजाराँ के रहए हों चै या आपणी पशुधन तें ले नाज अर खेती के हर समान के मोल-भा की) करदा आया सै| हां माहौल अर परिवेश बदले सें, पह्ल्ड़े बख्तां लेण-देन नाज के रूप म होया करदा आज रपिये-पिस्से अर सिक्कयां का चलण घणा हो गया (कई तो लुगाईयां नैं भुका, छात्याँ पर को नाज के कट्टे-बोरी थळसांदे बाळकपण म्ह मन्नें भी देखे सें, जो फेर जाट नें बेरा लाग्दें आप तो पिटा करदे-ए उनपै, गेल उनकी लुगाईयां का भी खोस्संण सा तरवा दिया करदे| काम उलटे करया करदे आप अर फेर जाट नैं झगड़ालू बतांदे|)|

    इसलिए किसी भी जाट या किसान के बच्चे को इस जुमले से छोटा महसूस करणे की जरूत निः सै| अर जै थमनें या कहावत डरान्दी हो तो इस डर तें बाहर ल्य्क्ड कें ब्योपार करो अर सिद्ध करो अक आपणे ब्योपारिक फायदे खात्तर सदियों से हमको ऐसा बोल सर्फ हमें डराणे भर का नाटक था| भतेरे सिद्ध करण भी लाग रे सें पर इब टेम बाज रह्या सै और भी घणे आगै आवें|



  5. बोलणा ले सीख:

    राय बहादुर चौधरी छोटूराम जी नैं एक बै कही थी अक, "रै म्यरे भोळए क्यसान तू म्यरी दो बात मान ले, एक बोलणा ले सीख अर दूजा दुश्मन पिछाण ले|"

    ज्यब उन्नें कही अक "बोलणा सीख ले" तै इसका मतलब यू कतई नहीं था अक क्यसान नैं बोलणा कोनी आंदा, ब्यल्क उनका अयशारा क्यसान की साफगोई अर भोळएपण तैं बात करण के बैहळ तैं था| थामें कह्या करदे अक तू इतणा भोळआ सै अक अनज्याण माणस ताहीं भी पहली-ए सेठ-पेठ म्ह दय्ल खोल कें धर दे सै अर यें बाहरली दुनियां आळए उससे नैं स्याणा, चलाक अर बोलण म्ह शात्यर मान्नैं सें जो सोहळए बहळआं आपणा हेत-भेत ना आण दे| तो जै कोए क्यसान चै क्यसान का बेटा इस काह्वत तें न्यूं भरमा ज्या अक उसनें तो बोलणा ए कोनी आंदा तै इह्सी गलतफहमी तैं दूर रहियो, अर इसका सुलटा भा समझ न्यूं सीखियो अक अनज्याण अर दुश्मन गेल ब्यना आपणा भेंत दियें, क्यूकर बात करणी चहिए, जिसतें अक ओ सेल्हा सा थारा हेत-भेंत तो जाण पावै नहीं ब्यलक थारे बोलणे के इस तरीके तैं झुंझळआ ज्या और उल्टा उससे का मजन झळका ज्या| गोळ करण की बात सै अक भाषा-बोली-जुबान कोए गन्दी नहीं होंदी| थारी अर बाहरल्यां की कह ल्यो (चहे थारी काट करणीये की) की भाषा म स्यर्फ साफगोई का ए फर्क सै| ज्यांते तो एक शायर नैं भी के खूब कही सै:

    दिल सबके साथ नहीं खोले जाते, ये वो खजाने होते हैं जो सबको नहीं बांटे जाते|
    महबूब जिगर की दुल्हन बनाइये इसको, राह चलते की रखैल नहीं||"


  6. मोल्लड़:

    इस कहावत पै इब्बे शोध चाल रह्या सै, पूरा होंदे थारे स्याह्मी ल्याया ज्यागा|


  7. ढेढ़:

    इस कहावत पै इब्बे शोध चाल रह्या सै, पूरा होंदे थारे स्याह्मी ल्याया ज्यागा|


  8. गंढळ:

    इस कहावत पै इब्बे शोध चाल रह्या सै, पूरा होंदे थारे स्याह्मी ल्याया ज्यागा|


हाथ जोड़ विनती: लेखक का एक मात्र उद्देश्य इन अनकहे मन-मुटावों को जातियों के बीच से निकालने मात्र का था| इसको अन्यथा ना लिया जाए| अगर एक इंसान भी इस लेख को पढ़ के अपने अंदर के जातीय द्वेष, घृणा को मिटा देता है तो लेखक अपने प्रयास को सफल समझेगा| ऐसी बातें समाज को सिर्फ खंड-विखंड बनाए रख सकती हैं| अगर समाज में सही मायनों में लोकतंत्र लाना है तो ऐसी बातों और धारणाओं को हमें अपने अंदर से निकलना होगा या इनको यथार्थ और इनके पीछे मनोबल तोड़ने के उद्देश्यों को समझना होगा|

ध्यान म लेण की: बख्त की गेल और भी इह्सी सम्बोधनां की मरम्मत कर आड़े जोड़ी जांगी|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक्क: पी. के. म्यलक

छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

आग्गै-बांडो
 
जानकारी पट्टल - खस्मान्नी-सोधी

मनोविज्ञान जानकारीपत्र: यह ऐसे वेब-लिंक्स की सूची है जो आपको मदद करते हैं कि आप कैसे आम वस्तुओं और आसपास के वातावरण का उपयोग करते हुए रचनात्मक बन सकते हैं| साथ-ही-साथ इंसान की छवि एवं स्वभाव कितने प्रकार का होता है और आप किस प्रकार और स्वभाव के हैं जानने हेतु ऑनलाइन लिंक्स इस सूची में दिए गए हैं| NH नियम एवं शर्तें लागू|
बौद्धिकता
रचनात्मकता
खिलौने और सूझबूझ
खस्मान्नी-सोधी मसले अर मामले
न्यडाणा हाइट्स के खस्मान्नी-सोधी बहोळ म्ह आज लग बतळआए गये मसले अर मामले| के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम म सूचीबद्ध करे गये सें|

खस्मान्नी-सोधी:


Articles in English:
  1. HEP Dev.
  2. Price Right
  3. Ethics Bridging
  4. Gotra System
  5. Cultural Slaves
  6. Love Types
  7. Marriage Anthropology
हिंदी में लेख:
  1. धूल का फूल
  2. रक्षा का बंधन
  3. प्रगतिशीलता
  4. मोडर्न ठेकेदार
  5. उद्धरण
  6. ऊंची सोच
  7. दादा नगर खेड़ा
  8. बच्चों पर हैवानियत
  9. साहित्यिक विवेचना
  10. अबोध युवा-पीढ़ी
  11. सांड निडाना
  12. पल्ला-झाड़ संस्कृति
  13. जाट ब्राह्मिणवादिता
  14. पर्दा-प्रथा
  15. पर्दामुक्त हरियाणा
  16. थाली ठुकरानेवाला
  17. इच्छाशक्ति
हरियाणवी में लेख:
  1. सम्बोधनां की मरम्मत
  2. गाम का मोड़
  3. गाम आळा झोटा
  4. पढ़े-लि्खे जन्यौर
  5. बड़ का पंछी
NH Case Studies:
  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
© न्यडाणा हाइट्स २०१२-१९