1. ‘सांझ का सीळआ, गाम-गमीणयाँ’ |
2. असली लुटेरे कौन? |
3. दादा जाग्गर हो, फेर न्यडाणे आईये| |
(दादा चौधरी प्रहलाद सिंह के जौहर को समर्पित)
सांझ का सीळआ, गाम-गमीणयाँ धमक चढ़ी जा हो,
दूर समांणयाँ धाड़ ठहर रही, कोडबै गाम ब्यछोय्याँ हो|
डांगर-ढोर, टूम-ठेकरी, हाथ लगै जो - साह्मर ल्याणा,
खून्नी जाळ बछ्या गाम पै, करड़ाई का धिंगताणा|
बादळ गरजें-बिजळी कड्कें काळी घटा घुमराई हो,
गादड़-रोवें कुत्ते-कुवावें, किसकी चढ़ी करड़ाई हो|
फेर दुज्जे पहर रात की धाड़ नै तैयारी ठाई हो,
न्यडाणे नै उजाड़-ल्यावा, बैरी नै न्यू प्रणाई हो|
धाड़ चढ़ती आवे बेटा, सीन्घां माटी ठाई रे,
भावड-आळए गमे म लखा मौत नाचती आई रे|
खड्या खेत म्ह प्रहलाद सोच रह्या, गाम-चढ़ाई होगी हो,
घाग लूटण चढ़ आया सै, सूते गाम का के राह हो|
इन ब्य्चारा डूबे प्रहलाद कै माथे त्योड़ी छाई,
कै मरणा कै मारणा, ना हो ज्या गाम-दुहाई|
सुनसाण स्म्यान्याँ फेर प्रहलाद नैं चौगरदे नजर दुड़ाई,
दूर लग ना बीज माणस का, अर करड़ाई भभांदी आई|
ले नाम न्यडाणा नगरी का, प्रहलाद नै भाला ठाया,
जा बड्या-भोज्ड़ा म्ह को, गमे की राह पै नजर टकायां|
धाड़ चढ़ रही-धूळ उड़ रही, सरण दे सी भाला सरणाया,
काळ बना लिया अगड़ी-घोड़े को, धाड़ नै धक्का खाया|
डेठ टूट गया-होंसला छूट गया, काळ पै काळ चढ़ आया,
«न्यडाणा सै थारी बाट म्ह-बैठा गमे की साथ म» धाड़ नै यू फ़रमाया|
बेरा कोन्या कितणे सें, या सोच धाड़ उलटे-पायां भोड़ी,
छैल-छबिल्ले सुरमे दादा, थाहमनैं ऐकले नैं धाड़ मोड़ी|
घाघाँ की कड़ तोड़ी, बड़े-बीर का मान षहमाया|
धन-धन हो जामण आळी तन्नैं गाम-रुखाळआ जाया|
तेरे न्यडाणा फेर आइये हो दादा, रंग-चा न्यू-ए लायाँ,
गा गाथा त्हारी फुल्ले-भगत की गद-गद होगी काया|
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
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NH condemns any such mist or provocation which may spread feeling of disregard against any class, community, caste, region or religion.
झूठ नहीं थे जाट लुटेरे जो तारीख के पाठां मैं,
लूटण खातिर ताकत चाहिए जो थी बस जाटां मैं..........
सोमनाथ के मन्दिर का सब धरा ढका उघाड़ लेग्या,
मोहम्मद गजनी लूट मचा कै सारा सोदा पाड़ लेग्या ।
हीरे पन्ने कणी-मणी चन्दन के किवाड़ लेग्या,
सब सामान लाद के चाल्या सत्राह सौ ऊंट लिए,
कोए भी नां बोल सका सबके गोडे टूट लिए ।
रस्ते मैं सिंध के जाटां नै ज्यादातर धन लूट लिए ।
मोहम्मद गजनी आया था एक जाटां की आँटां मैं.....॥1॥
व्रज का योद्धा जाट गोकुला औरंगजेब नै मार दिया,
सीकरी का महल किला जाटां नै उजाड़ दिया।
ताजमहल मैं लूट मचाई सारा गुस्सा तार दिया,
राजाराम जाट नै लड़कै दिल्ली की गद्दी हिला दई।
औरंगजेब की मरोड़ तोड़ कै माटी के म्हां मिला दई।
कब्र खोद अकबर की हड्डी चिता बणा कै जला दई।
एक चूड़ामण नै मुगलां की लई खाल तार सांटां तैं....॥2॥
भरतपुर के सूरजमल को मुगलां नै धोखे तैं मारा,
उसका बेटा होया जवाहरसिंह लालकिले पै जा ललकारा।
लालकिला जीत लिया लूट लिया माल सारा।
धोखा पट्टी सीखी नहीं जंग में पछाड़ ल्याए,
मुगलां का सिंहासन जाट दिल्ली तैं उखाड़ ल्याए।
साथ मैं नजराना और किले के किवाड़ ल्याए,
देशभक्ति का खून बहै इन जाटां की गांठां मैं.....॥3॥
जाते-जाते सिकन्दर को करा भगोड़ा जाटां नैं,
मुगल और अंग्रेजों को नां बिल्कुल छोड़ा जाटां नैं।
कलानौर की बौर काढ़ दी कोला तोड़ा जाटां नैं,
जलालत की जिन्दगानी, नहीं गंवारा जाटां नैं।
जिसनै न्योंदा घाल्या राख्या नहीं उधारा जाटां नैं।
पृथ्वीराज का कातिल मोहम्मद गौरी मारा जाटां नैं।
कहै जयप्रकाश घुसकाणी के, थारै कमी नहीं ठाठां मैं.....॥4॥
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दादा जाग्गर हो, फेर न्यडाणे आईये|
एडियाँ गाम ल्खावे हो, फेर अल्हड़ करता जाइए||
दादा तेरे गंडास नै कई पाधरे बणाये हो|
जूण माँ-नै-माँ नहीं कहें थे, ताह्मने माँ कहण सखाये हो||
वो माँ कुहावणिया ऐडड़-दिद्याँ आळआ, मायाँ नै सपरे ठाए हो|
दादा तेरी आख्याँ के जिकरा नै कईयां के दय्ल दहलाए हो||
एडियाँ गाम ल्खावे हो................
बात पराणे बख्तां की, तू आवभगती का सरमौर कुहाया हो|
तेरै जणेती खावै परात म, घोड़ी चरी खुल्ली-बुखारियाँ हो||
येंह ठाठ तेरे बताये दादा, दिलदार बड़ा कुहाया हो|
भूखा-माड़ा खाली ल्यकड़ण दिया नहीं, सबका मान पुगाया हो||
एडियाँ गाम ल्खावे हो.................
फेर बतावें दादा ताहरे बढपप्ण की दुदुम्भी बाजी हो|
अफसर बांह पकड़ ठाण लग्या, याह जगहां ताहरी ना गाजी हो||
इस जगहां पै तो जाग्गर ए बैठे, या तह्मने हुंकार लगाई हो|
जाग्गर की जमीन पै स्कूल बनाओ, दानी-हुतात्मा की पदवी पाई हो||
एडियाँ गाम ल्खावे हो.................
आज ताहरी उस धरती पै बणे स्कूल नै दादा, साल 77 हो लिए|
गाम-गुहांड के बाळक उसमें पढ़कें, अफसर बड्डे हो लिए||
सबतें घणे स्नातक गाम में, ताहरी दिलदारी नै टोह दिए|
यू फुल्ले-भगत तह्मने टोह्वे, माणस हजारां टटोळ लिए||
एडियाँ गाम ल्खावे हो, फेर अल्हड़ करता जाइए||
दादा जाग्गर हो, फेर न्यडाणे आईये|
एडियाँ गाम ल्खावे हो, फेर अल्हड़ करता जाइए||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
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4. महिला शिक्षा-सुधारक स्वामी रत्नदेव सरस्वती! |
5. न्यडाणे म शुरग! |
6. न्यडाणा के बगड़ |
याणेपन का ध्यानी पुरुष, अनुशासित-स्वाभिमानी पुरुष,
लिए जोग-योग की शक्ति, अवतारया न्यडाणे धरती|
१) बाबू नै रमाणा चाहया पर रंग और चढ़ ना पाया,
जातक जन्नत की जीत म, जोग लख्या रह्या नसीब म|
ज्यूँ-ज्यूँ कद चदता आया, सांसारिक मोह छंटता जाया,
बैठ बणां तड़के की पहरी, ध्यान शक्ति तैं सिद्धि सोहरी||
२) घर आल्याँ नैं अरमान संजोये, सुथरी दुल्हन जग में जोहे,
पर भगत रत्न की राह न्यारी, ग्रहस्थी बणी दुनियां सारी|
ल्य्कड़ पड़या ज्ञान की सगत म, लिए नारी-शिक्षा की अलख जगत म,
खरल की धरती पै जा डेरा लाया, गाम-गुवांड कै बाबा मन-भाया|
३) तीन दशक तक अलख जगाया, नारी जागरूक करूँ यो परणाया,
यो कन्या गुरुकुल खरल चलाया, बांगर में नारी-शिक्षा का बीड़ा ठाया|
चलते-चलते इस राह पै एक दयन, न्यडाणा नगरी दई दखाई,
मेरे लाल नै दुनिया सुधारी, मैं ए क्यों ना लागी प्यारी||
४) सिद्ध-जोग सिद्ध-पुरुष बण, स्वामी रतनदेव बण दुनियां म छाया,
न्यडाणा माँ का दूध पुगावण, भौड़ कें लाल माँ-नगरी म आया|
न्यडाणा नैं सुधारूं, नशा-खोरी नै जड़ तैं पाडूँ, गाम-राम को यू फ़रमाया,
बना कें दस्ता नौजवानों का, पहरा बिठा दिया नशा-दान्नों का||
५) गैल अभियान छेड़ा नारी-शिक्षा का, गुरुकुल बनाऊं उत्तम-दीक्षा का,
गाम-राम भी गैल कूद पड़या, स्वामी जी तैं कदम मिलया|
गाम के कुबेरां नैं धन के बोरे खोल दिए, गुरुकुल की नींव के पत्थर रातों-रात म टेक दिए,
स्वामी जी की न्यडाणा नगरी चमचमाई, सरकारां लग गई इसकी रोशनाई||
६) शिक्षा का प्रचार हुआ, दिन-रात लगातार हुया,
चूची-बच्चा सरोकार हुया, न्यडाणा का प्रचार हुया|
गाम माँ का सपूत, स्वामी रत्नदेव सदाचार हुया,
गा तेरी गाथा हो दादा फुल्ले-भगत भी पार हुया||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
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सन 93 की कहाणी कहूँ, न्यडाणे की जुबानी कहूँ|
नशामुक्ति का दौर था ओ, चौगरदे शौर था यो||
आर्यों के मेळऐ भरे, गाभरुओं आले टोळऐ चले,
गाम के चारूं कोळयां डटे, शराबियाँ पै हुए पहरे खड़े|
जोश लबालब दिख्या, युवा सारा लामबंद खिंच्या,
बूँद लग दारु की नहीं चहिये, पग-पग पै नाक्का लग्या||
स्वामी रत्नदेव हो ताहरा दस्ता, जिसके आगे खुदा भी झुकता,
बीरे-अशोक से सिपाही जिसके, जिननें ठेक्यां पै ताळऐ ठोंके|
ठीकर आप लक्याड़ा करते, सबतें आग्गे आप्पे नैं धरते,
बीर-बानियाँ नै छन्न गाये, न्यडाणे के शुरग उतर आये||
फेर बीड़ा वीरांगनाओं नै ठाया, नंबर होक्के-धूम्मे का लाया,
बहु-बेटियां नैं झ्लूस ल्य्काड़े, हर गाळ म बाज्जें नगाड़े|
नकटी बूढीयां के हाथ जोड़े, नहीं मान्नी तै डीकड़े तोड़े,
स्वामी जी तैं लामबंद होई, गाम म नशा ना दिख्खे कोई||
न्यडाणे का डंका बाज्या, धुर अफसरां के दर तक गाज्या,
पंडत रामनिवास के भजनां की लहरी, आर्य समाज की पताका फहरी|
भाई-चारे का भी हाथ मजबूत हुया, छत्तीस-ज्यात नै खूब कह्या,
फुल्ले-भगत पै भी ना रह्या गया, ज्यब न्यडाणा दिख्या नया-नया||
सन 93 की कहानी कहूँ, न्यडाणे की जुबानी कहूँ|
नशामुक्ति का दौर था ओ चौगरदे शौर था यो||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 14/06/2012
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यह कविता हरियाणा के उन राजनीतिज्ञों और समाज-सुधार के ठेकेदारों के मुंह पर एक तमाचा है जिन्होंने हरियाणा को जाट बनाम गैर-जाट का महाभारत बना रख छोड़ा है| इस कविता में जो तथ्य कवितार्थ किये गए हैं वो सिर्फ इस कविता में नामित गाँव के ही नहीं अपितु हरियाणा के हर दूसरे गाँव की कहानी ऐसी ही है:
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
आधुनिकता नै तोड्या भाईचारा, दर्शन भी दुर्लभ हुए||
किलानुमे घेरे म्ह, कुणबे कई रह्या करदे,
दुःख-सुख सारे रळ-म्यल कें गहया करदे|
चोर-डाकू जो फंसया इनमें, लकड़ पाया नहीं,
यें बन्दोंबसत रयाह्स के चाक-चोबंद हुया करदे||
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
एक बगड़ सांझरण, जिसका दादा लछमन सरमाया,
ताहरी मर्जी ब्यन कदे बगड़ म च्यड़ा भी उड़ ना पाया|
दो दुर्ग हेलियाँ बीच को, बारणा सोसाइटी का बताया,
जाट-बाणिये दोनूं पड़ोसी, इनका बसेरा कट्ठा कुहाया||
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
एक बगड़ यू चेतु बाजै, दुन्नी के गेल नैं लाग्गें,
बाक्खे ओड़ नाई बसें, जीह्म्मर-डूम बीच जटवाड़े कै|
खात्तड़ की गूँज न्यरोळी, गाम की सबतें दूंगी खोळी,
खात्ती-छिम्बी अर जाट, बणा रे एक साज्झी कोळी||
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
इब बात खाडू की सुण ले, बीचों-बींच गाम कै बड़ ले,
बाहरणे पै दस्तक बयन, मुस्सी भी के भीतर बड़ ले|
नाई-जाटां का यू डेरा, पड़ोस लागते बाह्मण भी ले,
बाह्मण-बगड़ तीन बताये, भंता गाम का उत्तर गढ़ ले|
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
मढवे-लुहारां की एक गाळ, कुम्हार बसैं नाई-आळए की पाळ,
धाणक लय्कडै भंते की गाळ, एह्ड़ी-तेल्लियाँ का एक खाळ|
पराणी परस की बगल म, देख चमारां आळए बगड़ नैं,
फुल्ले-भगत तै न्यूं-ए कणछै, गलतफहमी ब्यन ना बासण तयड़कै||
बगड़ गाम के दुर्ग हुए, बडेरे प्रहरी धुर लग हुए|
आधुनिकता नै तोड्या भाईचारा, दर्शन भी दुर्लभ हुए||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
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7. दादा नील्ले खागड़ हो |
8. एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे |
9. आपणी पिछाण |
दादा नील्ले खागड़ हो, तैने आज भी टोहन्दा हांडु हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
गाम के बुड्डे खागड़ का, तैने बदला लिया खेड़े आळी लेट म,
ड्यंग पाट्टी नही बैरी पै ज्यब धरया तैने अपणी फेट म|
रुक्का पाट्या तेरी रहबरी का दूर-दूर लग की हेट म,
आंडीवारें गाम की गाळआं, रहन्दा रात्याँ खेत म||
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
रोज सांझ नैं आया करदा, जाणू कोए सिद्ध-जोगी हो,
गाळ म एक बै धाहड्या करदा, ज्यब घुड़ की डळी ले मैं आया करदा|
बड़े चा तें मेरे हाथां नैं चाट-चाट तू खाया करदा,
गात पै खुर्रा फेरूँ ताहरै, इस बाबत फेर पूंजड़ ठाया करदा||
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
दो पल भिक्षा की बाट देखण की तैनें, मर्याद कदे तोड़ी नहीं,
दादी बरसदी मेरे पै जै टेम पै टहल तरी मोड़ी नहीं|
दूसरा दर जा देख्या तन्नै जो मेरे पै बार माड़ी सी हुई नहीं,
पर कदे भी देळ की लछमन-रेखा, तःम्ने लांघी नहीं||
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
खागड़ सून्ने न्यडाणे की राह भोत चढ़े,
तू ए बताया जिसनें सबके मोर्चे खूब अड़े|
एक-एक खैड़ तेरी गाम की गाळआँ नैं सरणा ज्यांदी,
स्याह्मी आळए खागडाँ की जोहडाँ बड़ें ज्यान छूटदी||
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
उत्तराधिकारी नैं ब्यरासत सोंपणी तन्नें खूब स्य्खाई हो,
ज्यब नया बाछड़ा हुया तैयार, तू गाम की गाळ त्यज जाई हो|
सांझरण आळी पाळ बणी डेरा, तैनें जग-मोह तैं सुरती हटाई हो,
माणस भी के जी ले इह्सी बैराग ज्यन्दगी तैनें प्रणाई हो||
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
आज भी तरी तस्वीर मग्ज म न्यूं की न्यूं धरी, ओ गाम के मोड़ हो|
गाम का द्योता, गाम का रुखाळआ, तू था गाम का खोड़ हो|
लियें तासळआ दळीये का हांडू, न्यडाणे के काल्लर-लेट हो,
फुल्ले-भगत की भेंट स्वीकारिये, नहीं आगै करूँ को अळसेट हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
दादा नील्ले खागड़ हो, तैने आज भी टोहन्दा हांडु हो|
नहीं पाया रहबर गाम की सीम्मां का, तेरे बरगा दूज्जा हो||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
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एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे, इह्सा देख्या तगाजा चाळआ हे|
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
तात्ता-सीळआ देख्या कदे ना, समूं-सुझाई चाल्या हे,
सांपा के मुहां पाँ रहे सदा, खाळआं गात अड़ाए हे|
रायत बधी चैहे पाणी चढ़े, अयन्सान भूखा ना रह ज्या हे,
गात गाळ कें पेट भरण के धर्म की श्यान सदा पुगाई हे||
यू खुडाँ-खुडाँ खटे तै, लोगाँ का सुवाद बनै न्यराळआ हे|
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
लोकतंत्र का ज्ञान त्यरे म्ह, देख्या सबतें टळमा हे,
खाप बणाई तन्ने, यू न्यातन्त्र का उपरला खरणा हे|
दुनिया कणछै तोड़ण नैं, त्यरी न्या की इस भेरी नैं,
स्प्रे-ठावें मन-भरमावें न्या इह्सा सस्ता क्युकर ठयाणा हे||
हळद लगै न फटकड़ी, रंग चोक्खे का चोक्खा ए पाणा हे|
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
स्वभिमान्नी अर समर्थ ईतणा, रक्ष्या का सांग भी जोड्या हे,
बड़े-बड़े राजां के जुल्मी राज हाथ लिए, जो राजा राह तैं ब्यद्का हे|
खाप-सेना राखी तैयार बणा कें, नवाब्बी धोख्याँ म आया कदे ना हे,
बड़े-बड़े राज बणा कें खड़े कर दिए, फ्यरंगी भी तोड़ ना पाए हे||
लोकतंत्र कहें इसे नैं जडै, दांती प्यघळआ तल्वायर बणदी आई हे,
लोगाँ के रयात नैं बारहा बजदे, तैने द्यन-धोळी रयात बणाई हे||
विक्टोरिया क्रोस तें ले कारगिल लग, तरया जज्बा उत-मटिल्ला हे|
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
आज बतावें सदियाँ तें एक-ए काम करणियाँ नैं आरक्षण दे रहे सें,
तेरे तैं पराणा कर्म किसका, फेर भी खड़े मुंह फेरें सें|
सब धंधे चलें तेरे तैं, चाहे रोजगार हो चाहे खाणा हे,
दो पाट्टा ब्यचाळए प्यसदा आया, फेर भी धन्ना भगत कुहाया हे|
पर रोऊँ आज की दुनिया म, ज्यब देखूं तन्ने उघाणा हे|
फुल्ले भगत राह जोह्वे छोटूराम तेरा फेर कद बनै आणा हे||
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
एक क्य्सान के च्यार रूप सुणे, इह्सा देख्या तगाजा चाळआ हे|
अन्नदाता, रक्षक, रोजीदाता इसमें, यू न्याकारी भा आळआ हे||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 07/10/12
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हाथ जोड़ कै कहरया सूं मेरा एक इतना कहण पुगाइयो रै।
लोगो आपणे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
बताइयो बिठा कै एक दिन उन तै लिजवाना की होली रै।
भूरा अर निघायिया कौण थे आर कोण थी बुआ भोली रै।
क्यूकर दुश्मन दोस्त बण गए आर किसनै मारी बोली रै।
रोहनात के बालक बुढ्या नै किस बात पै खायी गोली रै।
हाँसी की लाल सड़क पै जाकै जरुर शीश निवाईयो रै।
आपणे जामे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
क्यूकर नाहर सिंह ऐकले नै दिल्ली की लाज बचायी थी।
अपने हठ तै गोकुल नै ओरंगजेब की घिस्सी करायी थी।
हुकमचंद अर मुनेर बेग कै क्यूँ हिस्से मैं मौत आयी थी।
क्यों हरफूल जुलानी आले शेर नै फांसी की सजा पायी थी।
गऊ गेल म्हारा के रिश्ता है या एक एक बात सुणाइओ रै।
आपणे जामे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
बताइयो क्यूकर गजनवी जाटां कै धक्के चड़ग्या था।
क्यूकर तैमूर लंग भूलकै शेरां की मांद मै बड़ग्या था ।
मोहना तै लड़दा अब्दुल्ला क्यूँ पीठ कै ताण पड़ग्या था।
लाल किले का दरवाजा कोण सी आंधी मै झड़ग्या था ।
क्यूँ शेरां तै लड़ ऐबक रोया यो किस्सा जरुर सुणाइओ रै।
आपणे जामे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
कौण बिगाड़ै रिश्तयां नै कौण खाप नै बदनाम करै सै।
कौण लगावै आग भाईचारे कै अर दुःख नै कौन जरै सै।
कौण ठावै ठेका लड़न का और कौण बिन आयी मरै सै।
आर भाईचारे कै आगै तो लोगो दुनिया पानी भरै सै।
रमेश चहल का यो संदेशा घर घर तक पहुँचाइओ रै।
आपणे जामे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
हाथ जोड़ कै कहरया सूं मेरा एक इतना कहण पुगाइयो रै।
लोगो आपणे जामे बालकां नै अपणी पहचाण बताइयो रै।।
लेख्क्क: कवि रमेश चहल
द्यनांक: 25/12/13 |
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
छाप: न्यडाणा हाइट्स
छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.
ह्वाल्ला:
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