निडाना में स्थापत्य कला:
निडाना की घर निर्माण और ईमारत इंजीनियरिंग प्रणाली की एक झलक और इसका पुराने जमाने की लाल-भूरी रंग की छोटी इंटों वाली बड़ी हवेलियों और दरवाजों से आज के आधुनिक मकानों और कोठियों तक का सफ़र की कहानी तस्वीरों की जुबानी| डाट-छज्जे-अटारी-चौबारे-सत्हीर-कड़ी-गुम्बद से ले आज के आधुनिक बालकनी और वरांदों तक की दास्ताँ| पुराने जमाने की पत्थर की चौखटों और जालियों-जंगलों से ले लोहे की जालियों और केंची गेटों की कहानी|
गाँव का नक्शा: गाँव का रिहायसी क्षेत्र एक पंच्भुजाकार आकृति का है जिसमें अधिकतर गलियां और सड़कें समकोण पर बाहरी परिधि सड़क से मिलती हैं| अंदरूनी गलियों में केसुह्ड़ा गली सबसे मुख्य है जो की वर्गाकार गोले के रूप में बनी हुई है| केसुह्ड़ा गली को बाह्य परिधि सड़क से अंदर की और आने वाली अधिकतर गलियां भी समकोण पर काटती हैं| इसके ऊपर विस्तृत जानकारी के लिए साईट के e-Media > Village Map पेज पर देखें|
नीचे की प्रस्तुती गाँव के खाती-मिस्त्री-कारीगरों के हाथों की कला और मकान बनवाने वाले ग्रामीणों की कल्पना को मकानों, दीवारों और इमारतों पर उकेरती है| मुझे कहते हुए गर्व होता है कि हमारे यहाँ दूसरे राज्यों की तरह ठाकुरों और गाँव के प्रधानों के ही दो-चार मकान हवेलीनुमा या कोठीनुमा नहीं होते
(जैसे कि फिल्मों में दिखाया जाता है| असल में हमारे हरियाणवी या कहो कि खापलैंड के परिवेश की फ़िल्में होती ही नहीं हैं| सब फिल्मों का चाहे वो सामाजिक परिवेश की हों या रहन-शहन की, वो दूसरे राज्यों का होता है और हम समझ बैठते हैं कि हमारा भी यही है| या फिर हमारी अपनी संस्कृति की उदासीनता पूर्वक प्रस्तुती को देख कर हम उदासीन हो जाते हैं|) बल्कि आपको हर जाति-वर्ग में ऐसे मकान बने मिलेंगे| निडाना में रिहायस के नाम पर न तो आज के युग में और न ही पुराने युग में ऐसा कोई तन्त्र था कि जिसके तहत सिर्फ पिछड़े और दलित को झोंपड़ियों में रहता देखा गया हो और अग्र और स्वर्ण को हवेलियों में, अपितु सबको अपनी कल्पना के अनुसार मकान बना के रहने की अनुमति थी और आज भी है| गाँव की जाट जाति हो, ब्राह्मण हो या फिर दलित हर किसी के यहाँ हवेलियाँ और सादे मकान दोनों होते आये और आज भी हैं| तो यह प्रस्तुती गाँव में अपनी प्रकार की एक और समता का दर्शन आपको करवाएगी| काश! देश से जात-पात की राजनीति खत्म हो तो समाज को; समाज की नई पीढ़ियों को समझने का मौका मिले कि हमारे पास गर्व करने के नाम पर क्या है और क्या समाज में सुधारने के नाम पर जरूरी है|
गाँव की प्राचीन घर स्थापत्य कला - बाह्य:
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छज्जे-बारजे |
सामुदायिक इमारतों की कला: पत्थर के बारजे, डाट वाले दरवाजे, पत्थरों की खिड़कियाँ, अर्धवृता-अर्धाय्ताकार जंगले, किलेनुमा मुंडेर, पक्षियों-जानवरों की चित्रकला वाली गाँव की ऐतिहासिक चौपालों (परसों) की इमारतें |
छोटी इंटों की हवेली सपाट-प्रतीत होती दीवारें, दिवार के ऊपरी हिस्से पे बनी डयोडियां |
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अर्धवृताकार डाट, नुकीली त्रिकोणी वृताकार कढाई, दोहरे दरवाजे (लोहे और काठ के किवाड़ अंदर की ओर, जाली के किवाड़ बहार की ओर) का दरवाजा और पत्थर का छज्जा |
पत्थर की वर्गाकार जालियां, खड़ी लम्बी समांतर कोनों पे वृताकार जाली की मुंडेर, आयताकार गुंबद वाला बारजा |
घर के आगे ऊँचे चबूतरे |
गाँव की आधुनिक घर स्थापत्य कला - बाह्य:
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सामुदायिक ईमारत का आधुनिक ढलवां-वर्गाकार प्रवेश द्वार |
अर्ध-वृताकार सपाट हवादार जंगले |
सीमेंट और इंटों की गलियां और पानी-निकासी की नालियाँ |
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आयताकार मकान में बाहर की ओर से चढ़ती सीढियां, खिडकियों के ऊपर पैंतालिस डिग्री पर झुके पत्थर के छज्जे ओर दरवाजे के दोनों तरफ बनी चबूतरियां |
तीन मंजिला कोठी पर छतरीनुमा अटारी |
आधुनिक जालीदार मुडेरें, आगे को निकले छज्जे और लोहे के दरवाजों वाला मकान |
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गाँव की नई रिहायस में बन रही कोठियों और मकानों का किसी शहर की कालोनी का आभास देता विहंगम दृश्य |
विशेष: विषय के अनुसन्धान और वक्त के साथ नई जानकारी जोड़ी जाती रहेगी|