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कवि हरिचंद बन्धु जी की हरियाणवी कविताई
कुल 40 (1-40) |
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बंधू जी का संक्षिप्त परिचय
कवि हरिचंद 'बंधू' M. A., Ph. D. (हिंदी) पुत्र श्री कुरड़िया राम जी, गाँव व् डाकखाना सिल्ला खेड़ी, जिला जींद (हरियाणा)
अध्यन एवं लेखन में रुचि, कई शोध पत्र व् प्रकाशन, जिनमें हरियाणवी सांगों में रागिनी (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में श्रृंगार (शोध पत्र), हरियाणवी सांगों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन व् श्री लख्मीचंद का काव्य वैभव (हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत) प्रमुख हैं| | | |
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1. वरदान |
2. के होग्या जै? |
3. के होग्या जै? - 3 क |
4. के होग्या जै? - 3 ख |
बण्य ऐसा दीप झरूं री माँ, औरां नै जगमग करदे।
कर द्यूं दूर्य अंधेरा री माँ, मन्नै तू ऐसा वर दे।
लाग्गी चोट काल़जा दूक्ख्या,
जिनका रो-रो भीत्यर सूक्या,
सहरे मजबूरी का मूक्का।
मैं उनका दरद वंरू री माँ, जी ज्यां वैं मरदे-मरदे।
वाणी है पर बोल्य सकैं नांह्,
मन की घूंडी खोह्ल्य सकैं नांह्,
अपणा आप्पा तोल्य सकैं नांह्।
भैय् उनका सदा हंरू री माँ, जीवैं जो डरदे-डरदे।
उजड़ी बगिया भाग्गां-मारे,
हो कै लुंज-अपंगी हारे,
जो औरां ने लाग्गैं भारे|
मैं साह्रा रूय धरूं री माँ, रैह्ज्यां वैं त्यरदे-त्यरदे।
काटल्यूं सुभ करमा का खेत,
चहे बदले मँह् कीड़्यां हेत,
पड़ो तन देणा ज्यान समेत।
मैं गैरां न्यमत मंरू री माँ, दुखं-पीड़ा भरदे-भरदे।
रात्य अंधेरे नै भी भर्य द्यूँ,
खुसबू तै चित परसन करयद्यूं,
बण्य कै फूल पीड़ मैं हरद्यूं।
मैं सारै त्यर्या फ्यरूं री माँ, गगन बांस हरदे-हरदे।
जो नफरत मँह् जल़ते-स्यड़ते,
हिंसक बण कें धरती छड़ते,
अपणा आप्पा आप्पै हड़ते।
बणय, बंधू , मेघ घ्यरूं री माँ, प्रेम धार झरदे-झरदे। |
म्हारे चलण महान जिसा नांह्, इस दुनिया म्ह और का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
कदे किसे की जेब झारली,
हत्या कर्य कै लूट मार्यली,
छीन -झपट की नेक कार ली,
रेप करण म्ह सरम तार्यली,
कर्य कै हरण फ्यरौती ले ल्यैं, मचै तैह्लका जोर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
सब तै पैहल्यम सुआरथ म्हारा,
बेस्सक मरज्याओ सुत दारा,
पल म्ह कर्य दयें घल्लू घारा,
भाड़ा ले के बण्य हत्यारा,
ला कै आग्य फूक दयें ढारा, मुँह् ला करसी-कोर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
मेज तले़ कै ले ल्यां सैं हम,
गेड़े काट्टै अगला नांह् गम,
पड़ें नाड़्य मँह् म्हारी नांह् खम,
काम बणन तक द्यवैं चढा दम,
खा-खा डाल्ली तौंद फूला ल्यां, नहीं ठिकाणा बौर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का|
तसकर आल़ी चाल धार्यली,
लाम्बा कुड़ता टोपी पाह्र्यली,
झूठ्य बोल्य के कार सार्यली,
बचना मँह् दी बात हार्य ली,
बंधू, ऐड़ी ला चित मारैं, बेस्सक म्हारी फ्यौर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
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म्हारे चलण महान जिसा नांह्, इस दुनिया मँह् और का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
हम करते प्रेम द्यखावे म्ह,
पड़ो बाप-माँ भी आवे मँह्,
जितणे नाते अपणावे मँह्,
जल़-बैह्ज्यां मतलब लावे मँह्|
खारिज हो मतलब दावे मँह्, भाईचारा डोर्य का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
कामचोर हम करैं इरादा,
काम न हो पर उजरत ज्यादा,
कर्य हड़ताल़ गेर द्यै बाधा,
नांह् चिंता हो कितणा खाह्धा|
गौरमिंट पै ले ल्यें वादा, माप न म्हारी पौर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
जात्य प्रांत का नारा ला द्यैं,
झूठी हफवा गेल फला द्यैं,
दंगे-झगड़े खूब करा द्यैं,
मजहब के नां खून बहा द्यैं।
देस नै उल्टी राह्ई चला द्यैं, कर् द्यैं नास धरोह्र का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
पाल़ा बदलैं कती डरैं नांह्,
बंधू ,चलण सै कदे फ्यरैं नांह्,
देसदरोह् ब्यन हमें सरै नांह्,
जयचंदी औलाद्य मरैं नांह्,
डंड चहे हो , सरम करैं नांह्, काले़ पाणी घोर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
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म्हारे चलण -महान जिसा नांह्, इस दुनिया मँह् और का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
लगा मखौटा रूप ल्हकोज्यां,
साच बणा द्यैं झूठ्य ल्हकोज्यां,
धौल़ी कर्य कै लूट्य ल्हकोज्यां,
खा-खा मेवे भूख ल्हकोज्यां।
गिरगिट, तोते, बुगले, होज्यां, नाच नाच्यद्यैं मोर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
बाल़ देख कै आम्मण लावैं,
ताव रोक्य कै झिड़की खावैं,
झूठे-मूठे गितड़े गावैं।
दा लगदें ही पांह् ठा ज्यावैं।
ब्यसवांसा मँह् घात लगावैं, लेबल ला द्यैं प्यौर का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
घ्यण, दबेस की गठड़ी बांधी,
सैह्नसीलता करली बांदी,
सेवा दया ना हम नै भाह्न्दी,
के लाग्गै सै म्हारा गांधी?
हिसां की हम ठा द्यैं आंधी, उगरवाद नए दौर का।
के होग्या ज?ै बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
नकली नै हम असली कर द्यैं,
म्यला-म्यलू कुछ का कुछ भर्य द्यैं,
खांदें सार किसी के मर द्यैं,
बंधू, दोस , और पै धर द्यैं,
लक्कड़, पत्थर, कोल्ला चर द्यैं, चारा डांगर - ढारे का।
के होग्या जै? बकैं भतेरे, लांछण लावैं चोर का।
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5) ट्यकटार्थी |
6) नेता जी |
7) जघै रही नांह् किते |
8) जी रोवै मेरा |
म्यलै चाणचक सीट, चीज ज्यूं; पाज्यावै सै खू कर्य।
ट्यकट दे दियो तम मन्नै; तम नांह् करियो नांह्-नूकर्य।
लहू पीणिए डांसां मँह् था;
पैने जैह्री फांसां मँह् था;
दुख रड़कणिए धांसां मँंह् था;
धूम्मा देऊ नास्सां मँह् था;
सुगनी फैंकू पास्यां मँंह् था;
चाल ख्यल्हारी तास्सां मँंह् था;
दस नम्बरी बदमास्सां मँह् था;
वीरप्पन से खास्सां मँह् था;
म्यरी कला तै ईब बरी सूं; तम जाणो सो क्यूकर्य।
दर -दर के चक्कर लाऊंगा;
असवासन इसे दिलाऊंगा;
मैं सबजबाग दिख्लाऊंगा;
जन्ता बेकूप बणाऊंगा।
मैं सब्जबाग द्यखलाऊंगा;
उनके चक्कर कटवाऊंगा;
ग्यरगट बदलू होज्याऊंगा;
मैं सीट काट्य कै ल्याऊंगा;
सूत्या-सूत्या भी ताग्गे नै; दरजी पो दे सै जूकर्य।
गैहरी साज्यस इसी रचाऊं;
करूं घुटाले़ दरब कमाऊं;
दानी बण्य खैरात ख्यलाऊंं;
सारी माया बाह्र्य पुंच्हाऊं;
रेप करूं हत्या करवाऊं;
म्यली-भगत का जाल़ ब्यछाऊं;
पुल्यस रपट मॅंह् कदे न आऊं;
मिस्टर क्लिनी छवी धराऊं;
ल्यकड़ूंगा मैं बेदागी हो; जैसे कपड़ा धू कर्य।
पाल्टी के मैॅ नारे लाऊं;
सबद जाल़ ला के भरमाऊं;
भाई की मै खीर बंडाऊं;
पकस करूंगा उनै बचाऊं;
पाह्र्य मखौटा रूह् बदलाऊं;
फूट करूं दंगे भड़काऊं;
झूठ्य बोलदा नांह् सरमाऊं;
साच्ची नै झट झूठ्य बणाऊं;
कैंह्गे लोग मसीहा मन्ने; झुक कै नै पांह् छूकर्य।
रहंू सुआमी - भगत सपूता;
गेट बुहारूं पूंह्जंू जूता;
सरमाऊं नंाह् मैं पांह् छूता;
पूजंू तमनै सूत्या - सूत्या।
यातरा रैली काम कसूता;
हाथ देखियो मैं सूं दूता;
ल्याकत बरणी परखो बूता;
झूठ्य कैह्णिया मरो नपूता;
बेस्सक पाच्छै तै, बंधू, नैं, कहियो गूंडा थू कर्य। |
नेता जी नै दरवाजे पै; घंटी आण्य दबाई।
पाट खुल्हे,घर का माल्यक था; हांँस्या दिया द्यखाई।
देख्या नेता, माल्यक कुछ;
याद्य पाछली आई।
नाक चढ्या ज्यूं बांस् आथी;
मुख पै घ्यन्ना छाई।
हाथ म्यलाणा चाह् नेता नैं;
आग्गै भुजा बढाई।
माल्यक नै भी कर्या द्यखावा;
कर्य कै गात समाई।
रोक रोस नै झूठ्य-मूठ्य की; हांँसी मुख पै ठाई।
पाट खुल्हे, घर का माल्यक था; हाँस्या, दिया द्यखाई।
नेता बोल्या बोट दियो;
कर जोडे, नाड़्य झुकाई।
जात्य ,गोत एक्कै सै अपणा;
आपस मँह् हम भाई।
मैं थ्हारा सूं मरूं मेर मँंह्;
झूठ्य रती नांह् पाई।
अपणा मारै छांह् मँंह् गेरै;
न्यंू सी बात बणाई।
इब कै और देखल्यो मन्नै; करय द्ंयूगा भरपाई।
पाट खुल्हे, घर का माल्यक था; हाँस्या दिया द्यखाई।
जै तूं इतणी सोचै, माल्यक-;
बात बणा कै बोल्या।
हम भी दूर्य नहीं तेरे तै;
घाट्य कदे नांह् तोल्या।
बोट पचास म्यरे कुणबे की;
भेद समझ अणमोल्या।
होज्या बेड़ा पार्य समझले;
जिंघै मारैं झोल्ला।
जिसा पड़ै गुड़ हो सै मिठ्ठा; तुम जाणो सच्चाई।
पाट खुल्हे , घर का माल्यक था, हाँस्या दिया द्यखाई।
गोल़-मोल़ सा असवासन ले;
नेता नै ड्ंयघ ठाई।
गुरगा पूच्छै नेता नै, तुम;
समझे के, कुछ सांई ?
या हे समझ सै बोट पकड्य़ तूं;
चहे किसे भी नांई।
चूकै मौका मूरख हो सै;
चिड़ी खेत चुग ज्याई;
बंधू, रात्ये ने माल्यक नै; चीयर्ज मोह्र लगाई।
पाट खुल्हे, घर का माल्यक था; हाँस्या दिया द्यखाई। |
जघै रही नांह् किते जमीं पै ; कोन्या किते गगन मँह् ।
खींच सांस की, घुटण लग्या दम ; जैह्र भर्या कण -कण मँह्।
बहे बाढ़ मँह् भ्रस्टाचार की ;
मूल धरम के सारे ।
नंगा नाच नाचता माणस ;
सरम- ओढणे तारे
सुआरथ , बे इमाने, छल़ के ;
हरदम रहैं अधारे।
सेवा, त्याग,प्रेम , सच्चाई ;
जितणे फूल हजारे ।
एक बच्या ना झुल़से सारे ; सामाजिक परदूसण मँह् ।
खींच सांस की , घुटण लग्या दम ; जैह्र भर्या कण -कण मँह् ।
खतम हुआ इनसानी भोजन ;
फ्यरैं भूख के मारे।
को यूरिया , को कोल्ला खा, को ;
खा पसुआं के चारे ।
काढ्यें जीभ फ्यरैं मंुह् बाऐं ;
ज्यूं भेड्यां के लारे ।
हत्या , डाक्के ,लूट ,रेप से ;
कोन्या चरचे न्यारे ।
चाह्वैं अमीरत, करम करैं नांह् ; छल़ बिजल़ी ज्यूं घन मँह् ।
खींच सांस की , घुटण लग्या दम ; जैह्र भर्या कण -कण मँह्
गोल़ तल़ी के होगे सारे ;
के ब्यसवास रह्या सै ।
व्यापारी, कारिंदे जंता ;
राजा गेल बह्या सै
भेडां मँह् रल़ भेड, सभी का;
म्यं - म्यं एक हुया सै ।
नब्बै नौ के फंदे मँह् यू ;
माणस खूब फह्या सै ।
कुछ ग्यरगट कुछ तोते होगे ; आँख्य बदलज्यां छन मँह् ।
खींच सांस की , घुटण लग्या दम ; जैह्र भर्या कण -कण मँह् ।
भोगैं सैं हम भोग कहैं , पर ;
भोग, भोग रे हम नै ।
अपणे आप छलै़ हम आप्पा ;
भोग-भोग चम चम नै ।
अगली पीढी नकल करै सै ;
तोड़ो भूल-भरम नै ।
एक मार्यल्यो सब मरज्यांगे ;
पाल्यो पदी परम नै।
बंधू, संयम -दाब न्यचोड़ै ; जो ब्यस ब्यसियर फण मँह् ।
खींच सांस की , घुटण लग्या दम ; जैह्र भर्या कण -कण मंँह् ।
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देख-देख अचरज आवै, नांह् ; पार बसावै मेरी रै ।
जी रोवै मेरा, गात हुया जल़्य ढेरी ।
बाल़ कलु की चली इसी कुछ ;
मारे इसके सभी फ्यरैं ।
न्याय्-नीति और धरम् करम नै ;
छोड्य पाप मँह् नीत धरंै ।
दुराचार के पाले़े बांधैं
बदी करण तै नहीं टरैं ।
पत्थर पड़गे बुद्वि पै भई ;
ड्योल़ भंग सारी होगी ।
दया तपस्या अर सच्चाई ;
नूण तै भी खारी होगी ।
ऊंच-नीच का ख्याल रह्या नांह् ;
सब क्यांहें की हारी होगी ।
कहैं सभी लाचारी सै न्यूं ; छुटै न हेरा-फेरी रै ।
जी रोवै मेरा, गात हुया जल़्य ढेरी ।
बेइमान , ठग, कपटी होगे ;
बाल़-बाल़ मँह् छल़ होग्या ।
भला किसी का ना चाह्वै को ;
बुरा भली का फल़ होग्या ।
साफ मना को बतल़ावै नांह् ;
सूत-सूत मँह् बल़ होग्या ।
मात-पिता , सुत-दारा के जो ;
होवंै संै सम्बंध ब्यव्हारी ।
झूठे हो सब टूट्य लिए संै ;
खुद गर्जी अधरंग ब्यमारी ।
मेल़-मुल्हाजे रहे नहीं, सब -
की होक्टी न्यारी-न्यारी ।
घटै नहीं बढती जाह्री या ; ध्यन्ना, जल़न चुफेरी रै ।
जी रोवै मेरा, गात हुया जल़्य ढेरी ।
उल्टे लेखे कल़युग के हुए ;
बाड़्य खेत नै खावै सै ।
रैह्ज्यां कूए - च्यार उगज्य, पर ;
एक नहीं भर्यपावै सै ।
एक भर्या करदा च्यारां नै ;
इब वो तरस लखावै सै ।
बल़, बिद्या, बुद्वि मँह् हीणे ;
क्यूकर पूरा पट ज्यावै ।
बणे आलसी करम हीण सब
क्यूकर सांटा संट ज्यावै।
भगती का तो नाम रह्या नांह् ;
क्यूकर फांसा कट्य ज्यावै ।
क्यूकर द्यल डट्य ज्यावै? भावै ; माया कलु की चेरी रै ।
जी रोवै मेरा, गात हुया जल़्य ढेरी ।
गऊ ब्राह्मण साधु सेवा से ;
रय्हा जगत को प्यार नहीं ।
बाह्र्य अतिथी आज्या जै कोए
म्यलै द्यली सतकार नहीं ।
दान भाव सब हुआ खत्म इब ;
न्यसवारथ को कार नहीं
बात करैं घिट्टी तै ऊप्पर ;
पन्हा पेट का द्यैं कोन्या ।
कहैं किसे तै घाट्य नहीं हम ;
तल़ै किसे तै रैंह कोन्या ;
दूध धुल्या मान्नै आप्पे नै ;
खोट्यल सुणना सैंह् कोन्या ।
बंधू, खुद्य को गलत कैंह् कोन्या, चलै न दलील भतेरी ।
जी रोवै मेरा, गात हुया जल़्य ढेरी । |
9) रणनिती -उद्धाटन |
10) रणनिती - जड़े अकल पै ताले़ |
11) रणनिती- वादे |
12) रणनिती - वादे - अ |
जो रणनिती त्यार करी थी; उस्सै पै जम चाल्ले।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले।
परचार उद्धाटन के मौकै;
सैह्भोज करावण नै।
अणगिणती के कारड़ बांडे;
ख्यलकत बुलवावण नै।
कई किल्यां का घेरा दिया;
पंडाल सजावण नै।
ब्यंजन सजा दिए मेजां पै;
फल़-मेवे खावण नै।
काढ्य दिए बल़ लाल परी नै; पड़े रहे ना हाल्ले।
माह्भारत-सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले।
अगले द्यन पतरा द्यखवा कै;
म्हूरत ठीक कढाया।
मन्दर मँंह् जा नेता जी नै;
मात्था रगड़्य ट्यकाया।
द्योते परसन होज्यां,
मंतर-बोल्ले हवन रचाया।
स्पोटर कठ्ठे हो कै आगे;
जय का घोस लगाया।
स्पीकर गावैं गीत-बडाई; तुम्हीं, मसीह रखवाल़े।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले।
कठ्ठे हो स्पोटर-नेता जी;
मांगण नै चले बोट।
पांह्यां हाथ लागा कैह् नेता;
माफ करो म्यरे खोट।
ठोड्डी पकड़ी करी कुसामंद्य;
मारियो नांह् गल़ घोट्य।
हाथ करो मजबूत म्यरे तुम;
बणैं ये थ्हारी ओट।
पर बोटर भी स्याणे हो रे; देंह्गे, कैह् कै टाल़े।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले।
आग्गै चले न्यसान द्यखया;
नए नार्यां की जोट।
हाड़े खाए, हाथ जोड्य, कैह्;
दे दियो मन्नै बोट।
स्यर नीचा कर झोल़ी मांगू;
घाल्य दियो म्यरै स्पोट।
ऊक्खल़ मँह् स्यर दे लिया इब तो;
लाग्गो कितणिए चोट।
कान्नाफूसी करी एक नै;
ल्यो चइहें जो नोट।
च्यांरू कान्ही तै मीठ्ठा, यू;
हनुमान का रोट।
आँट पड़ी मँह् के डर, बंधू; दूजे नै अजमाले।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर, सब हथियार स्ंयभाले। |
जो रणनिती त्यार करी थी ; उस्सै पै जम चाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
सक्कर तै भी मीठ्ठा बण्य ;
अर स्यकल बणा कै भोल़ी ।
बात्तां का पाणी सा प्या-प्या ;
ओ लार्य्हा था ढोल़ी ।
वो चसमे यू हाथ दिखा कै, सब नै ;
देर्य्हा था गोल़ी ।
बोटर मारे गुरग्यां मँह् कै ;
खोह्लण लाग्या न्यौल़ी
बाजीगर ज्यूं बुद्वि हड़्य कै ; जड़े अकल पै ताले़ ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
बांध्यंे राखण खात्यर बोटर;
मीनू त्यार कर्या था ।
र्होज रात्य नै बांड्या कुछ , जो ;
पैह्ले त्यार धरया था ।
दारू-दारू मँह् बोेटरां का ;
पेट्टा नहीं भर्या था ।
ठंडे, बीयर भी हो गेल्यां ;
इन ब्यन नहीं सर्या था ।
जब पेट्टी पै पेट्टी चाल्ली; र्यकार्ड तोड़्य सब डाले
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
चैबिस घंटे लंगर चाल्लै ;
बणती सतपकवानी ।
जिंघै जाओ ऊठ्ठी रैह् थी ;
खसबो , नांह् जा ब्यानी ।
ब्याह् मँह् थे जणु बाऽन उघड़्य रे;
बोटर कहैं जबानी ।
जिसका जिसा जी करै खाओ;
कोन्या थी परेसानी ।
टूटै नांह् था माल़ भरे थे ; झाल्ले के झाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
बांडी साड़ी - सूंटा पै इक ;
सौ का लोट खर्या था ।
फल़ म्यस्ठान बांड्य दिए कितने ;
खरच तै नहीं डर्या था ।
कर्या सुआल जिसा बोटर नै ;
उस तै नहीं फ्यर्या था ।
गधा बणाल्यो बाप आंॅट मँह् ;
यू हे ख्याल जर्या था ।
बंधू, सुख पा ज्यावै बच्चा ; बस इतणै गम खाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार सं्यभाले । |
जो रणनिती त्यार करी थी ; उस्सै पै जम चाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
बी0पी0एल0 कारड नांह् जिनके ;
उनके बणवा द्यूंगा ।
हक सै पर प्यल़सण नांह् म्यलदी ।
उनकी बंधवा द्ंयूगा ।
बणदें सार पैह्लडे़ झटकै।
मुफ्त प्लाट कटा द्यूंगा ।
पक्कै बणैं मकान रैह्ण नैं ;
मुफ्त लोन करा द्यूंगा ।
कई स्कीम काम की ल्यांऊ ; रैह्ण नही द्यूं ठाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
करूं ब्यकास गाम का , पैरिस-
से होड़्य लुवा द्यूंगा ।
पक्की बणैं गाल़ गोले़ सी ;
ठोक्कर कढवा द्यूंगा।
कसर म्यटैे पाणी की, घर-घर ;
टूंटी चलवा द्यूगां ।
करैं सफाई गाल़-गल़ी की ;
स्वीपर लगवा द्यूगां ।
खेह्ल परिसर बणवा दयूं; बणैं, जित अथलीट निराल़े ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंभाले ।
होक्के ,मूड्ढे, तख्त ब्यछंै, ब्यर्ध-
आसरम च्यणवा द्यूंगा ।
बूढे मारैं बोल़, नुआरी ;
प्यलंग ब्यछवा द्यूंगा ।
मनोंरजन नै टेलीवीजन ;
रेड़ी धरवा द्यूंगा ।
पढण‘-सुणन नै खबर भतेरी ;
अखबार मंगा द्यूंगा ।
चाल्लंै कूलर, पंखे ठंड़े ; पड़ै हवा के डाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर, सब हथियार स्यंम्भाले ।
सेवक टैह्ल करैं हरदम ;
हुण-सी लुटवा द्यूंगा ।
साब्बण-तेल न्हाण नै पाणी ;
तात्ता भरवा द्यूंगा ।
गड्या छड़ा नाह् रहै घरां , इब ;
ओ छड़ा पडा द्यूंगा ।
रहै न बंधू, घरां धणोगा ;
ईज्जत बंधवा द्ंयूगा ।
खुसै न प्यलसण आसरम मँह् ; कुणसा उड़ै भकाले ?
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले । |
जो रणनिती त्यार करी थी; उस्सै पै जम चाल्लै,
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले।
खुल्हैं ज्ञान के ताले़, खोह्लूं;
पठन-कक्स, पुस्तकालय।
छोह्री -छोह्रयां के खुलव्हावा द्यूं;
अलग-अलग ब्यद्दालय।
माणस पसूआं के इलाज नै;
हस्पताल़, औसध्यालय।
कसमीर, ह्यमाचल, द्यखला द्यूं;
छोटटा-बडा ह्यमालय।
देख लियो कर्य भारत-भरमण; जो ना देखे-भाले़।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर, सब हथियार स्यंम्भाले।
लान धास के सुथरे लाग्गै;
फुलवाड़ी ख्यलवा द्यंू।
हवा साफ हो म्यटे ब्यमारी;
पेड घणे रूपवा द्यंू।
न्हाण-त्यरण के खेह्ल खेह्लियो;
तरण-ताल खुदवा द्यंू।
मोडल गाम बणऊं अपणा;
दुनिया मँंह् जणवा द्यूं।
बाह्र्य जाण की म्यटेै समस्या; साफ सुलभ सौचाल्ले।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले।
नगरी मंँह् जो, याद्यगार अर;
धरम सथल सैं खंढर।
गुरद्वारा या बौध पगोडा;
ग्यरजा, मैह्जत, मंदर।
करूं मुरम्मत च्यमका द्यूंगा;
बाहर, धोरै अन्दर।
खेड़ा, पर्यस, घरमसाल़ा भी;
लगैं नए से सुन्दर।
च्यार दुआरी कढै जोह्ड़ की; पाणी के फरमाल्ले।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले।
नेता कैह् था बोट पकड़ल्यो;
जैसे भी थ्या ज्यावैं।
कैपचर करणा बूथ पड़ै जै;
उसने भी हथियावैं।
बेस्सक गोल़ी पड़ो चलाणी;
माणस नै हत्यावैं।
साम, दाम, दंड भेद से, कर्य;
उल्लू सीधा ल्यावंै।
बंधू, आप देखल्यूं जिसके; पड़ै म्यरे तै पाल़े।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले। |
13) रणनिती - भ्रस्टा स्यंग |
14) सुगनी अर पुसगर - 11 क |
15) रणनिती - घूंस मन्त्री -12 |
16° मतलब मोट्टे मँह् -13 |
जो रणनिती त्यार करी थी; उस्सै पै जम चाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
मीदवार सब न्यूए कर्य कै;
मांगै थे कर्य झोल़ी ।
एक चली जा, आज्यावै थी;
दुसरी-तिसरी टोल़ी ।
ज्यता ज्यतावैं अपणेपण का;
म्यल र्हे थे भर्य कौल़ी ।
पा्हरय मखौटा स्यकल ल्हको कै;
झूठ्य बोलते धौल़ी ।
जड़ै जाण नै नांह् मन था पर ; हाथ उड़ै भी घाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
होक्के पै बोटर बतलावैं ;
गुल तम नए ख्यल्या द्यो ।
जो भी आवै असवासन द्यो ;
उल्लू उनै बणाद्यो ।
बात करो घीट्टी तै ऊपर्य ;
पनाह् पेट का नांह् द्यो ।
थाह् नांह् द्यो तम हां मँह् हाँ कर्य ;
मीठ्ठा बोल्य टल्हा द्यो ।
र्होज म्यलै सेै, दस द्यन का; के हर्ज स्टाक बचाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
वैं भी सैं जो न्यूं कैंह् सैं;
तम धवल चोर हो ज्याओ ।
मानदारी धरो ताक मँह् ;
जम कै चूना लाओ ।
देस जिसा हो भेस उसाए -
ख्यलै उनै अपणाओ ।
भ्रस्टाचार का बोल-बाला है;
भ्रस्टा स्यंग हो ज्याओ ।
वो हे समझदार हो सै जो; रुख मंँह् आम्मण लाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
दस द्यन जै हम खा भी ल्यैं तै;
के पाह्ड़ टूट्य के ग्यर्यज्या ।
अर जो बणेै , सरब भक्सी बण्य ;
सब क्यांहे नै चरज्या ।
सोज्जा चढज्या ग्यणे द्यनां मँह् ;
रीते सारे भरज्या ।
म्यल-खेह्ले , खा-ख्यला खेह्ले मँह् ;
जीत साझली करज्या ।
दोन्नू काणे होज्यां सै, फ्यर ; फाउल कुछे कराले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
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जो रणनिती त्यार करी थी ; उस्सै पै जम चाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
उन मँह् तै इक बोल्या सुणियो;
तम नै कोन्या बेरा ।
हों सैं भाई सेर -गव्हेरा;
इक नोै कूदै , इक तेराह् ।
मंत्री , नेता ब्होत इसे सैं;
र्होज खोदते झेरा ।
कैंह् हम ऊप्पर ठावैं सैं, पर;
देसे गरत मँह् गेर्या ।
सोच्चैं, मौका चूकै मूरख ; पाच्छे तै के पा ले ?
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
काले़ धन का ओड़ नहीं, वै;
भ्रस्टे, आंधी ठावैं ।
देसी धन जा बाह्र्य देस तै ;
म्हारै चून्ना लावैं ।
एक कुल़ी के भाई -भाई;
आपस खीर बंडावै ।
घौले़ लाग्गंै पर सैं काले ;
कदे बाज नांह् आवैं।
बंधू, झूठे देस्सां के यें ; उन पै कुछे कुहाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
ब्यल्ली करै रूखाल़ दूध की;
बाड़्य खेत नै खा सै ।
नौकर साह् भी पाच्छै कोन्या;
उनकी पैड़ां जा सै।
सींग चुपड़ने ऊपरल्यां के;
ब्यपारी का राह् सै ।
छोटे कर्मचारी भी लावैं ;
लाग्गै जिसका दा सै ।
देस चरितर जाओ भाड़ मँंह् ; अपणी तौंद फुलाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
हम तो उनके पास्यंग भी नांह् ;
बडे- बडे अजगर सैं ।
एक्कै दा मँह् अरबपती , वैं ;
सुगनी अर पुसगर सैं ।
कपटी -भ्रस्ट वैं भ्याया, कैंह् हम;
बुद्वि से बुधग्यर सैं ।
देस दरोही, दुसमन सैं वैं;
वैं किसके रैह्बर सैं ।
बंधू, बंदर-बांट मँह् बन्दर; बिलियां नै बहकाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
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जो रणनिती प्यार करी थी; उस्सै पै जम चाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
दोयां की थी बोट बराबर्य;
कर्या टाॅस उछल़ा कैं ।
अपसर नै जब दिया नतीजा;
घूंस घणी सी खा कै ।
स्पोटर हाँसे आसमान पै ;
बैठ सातमें जा कै ।
हार्या जीत्या, जीत्या हार्या ;
आग्या मँुह् लटका कै ।
नाच्चैं बोटर जीतणिए के; ह्यरदे हुए ह्यमाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
जीतणिया सौच्चै, हारणिया;
जै हो केस चलैया ।
बापू बडा न भैया , हो सै ;
सब तै बडा रपैया ।
घ्ंाूस मंतरी काम करै, ला;
जज कै भूल भलैया ।
रूक्या काम झट चालू होज्या;
यू ला दे सै पहिया ।
के हिम्मत इब म्यरी जघंा को ; अपणे पैर जमाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर; सब हथियार स्यंम्भाले ।
मेरा बणना नही सुहाया;
देख घणखरे झींखे ।
कुणसा सै स्याह्मी आवै ?
चाल्लैं मेरे सिक्के ।
मसक बांध्य द्यूं बोल सकैं नांह् ;
ला द्यूं उनके छिंक्के ।
पांच साल तक खूब घमोड़ूं ;
करय द्यूं चेह्रे फिक्के ।
बुरक तोड़य द्यूं , को कितनी भी; सींगा माटटी ठाले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
जीत्तण अर सरपंची करण के ;
गुर गरूआं पै सीखे ।
बंाधू पाल़ , बाढ तै पैह्ल्यां ;
जाणु सभी तरीके ।
आँख्य मीच्य के खरच करे, के;
किसनै कोन्या दीक्खे ?
अगली-पिछली कसर काढल्यू ;
ला-ला नस्तर टीक्के ।
बंधू, के थे घाट्य पैह्लड़े ? बडे-बडे घर घाल्ले ।
माह्भारत सा जीत्तण खात्यर ; सब हथियार स्यंम्भाले ।
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करदे देखे और मनै जब ; हुया उम्हाया मन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यंू? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
दरस करूं बैकंुठे पोंह्च ल्यूं ;
सरण हरी चरणां मंँह् ।
सायुज मुक्ती पाऊं, घं्यरूं , क्यूं ;
फ्यरूं जनम -मरणा मँह् ?
ख्यल्या रहूं ज्यूं अटल धारू , ज्यूं ;
चाँद , भान क्यरणां मँह् ।
महाबीर , गौतम सा हो कै;
भैय् सागर त्यरणा मैं ।
पूरणमल, परल्हाद बणूं , अर ; धरू बण्या बचपन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यंू ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
म्यलै गरू सच्चा जो, कर्य कै,
रूख , करवादे म्यरी गती ।
इस्से ध्येय् से टोह्ई गंगा ;
अर जमना, सरसवती ।
तीरथ, धाम गया, देखे थे;
परपंची जती- सती ।
डाढी लटा बधा जो अपणी;
कर्य रे थे मूढमती ।
भेड-चाल मँेह् ब्यच्यल़्या मैं भी; भसमी रमा बदन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यंू ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
मुँह् अंधेरै उठ , न्हा-धो कै;
तार्यां की छांह्-छांह् मँह् ।
छाप्पा ,त्यलक ,जनेऊ माल़ा;
पाह्र्य खड़ाऊं पांह् मँह् ।
पूजा सामगरी ले कै, न्यत;
राह् मंदर की जां मैं ।
कान फोड़ने टेप बजाए ;
राम-नंाम के डां मँह् ।
मात्था रगड़्या करल्यूं अपणे ; ठाकुर नै परसन मैं।
रहूं द्यलद्दर क्यंू ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
उपदेस करू अर म्हंत गुरू ;
सब म्यले मखौटे मँह् ।
कथणी- करणी के अंतर से;
सब सच के टोट्टे मँह् ।
बधूं, यथा- तथा गरू चेल्ला ;
अलफी मँह् , चोट्टे मँह् ।
दूर किते भगती तै, उल़झे;
वैं मतलब मोट्टै मँह् ।
लाग्या ब्यर्था ढोंग एक द्यन; ध्यान बदलग्या छन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यंू ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
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17) नांह् सुआद के लालै़-13अ |
18) धौल़ पोस -14 |
19) सूरत सीरत - 14अ |
20) रीत्ता छ्यलकै - 15 |
करदे देक्खे और मनै जब ; हुया उम्हाया मन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यूं ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
आप्पेै अंधा, औरां नै के ;
तारै परले पालै़ ।
ग्यान स्यरफ स्यध गरूआं मँह् ;
पोपां मँह् के भालै़ ।
तौंद फूह्ल्य री, पल़ी जोंक यें;
लहू पीण के ढालै़ ।
एक टांग पै खड़े रहैं यें;
बुगले जोह्ड़ ब्यचालै़ ।
फल़-इच्छा मतलब मँह् डूब््बे; हर घड़ी , पैह्र द्यन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यूं ? जब साधन ; करूं उद्योग जतन मैं ।
संसारी-सुख के मतलब मँह् ;
सारा जीवन गालै़ ।
भीत्यर नांह् , बाहर कसतूरी ;
म्यरग बैह्म नै पालै़ ।
पंरमानन्द बसे सै भीत्यर;
नांह् सुआद के लालै़।
करै साधना मन साधण की;
दूर्य ब्यस्यां नै टालै़ ।
आतम ज्ञान ब्यना सब सून्ना ; करो चान्दणा तन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यूं ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं।
बण्य संतोसी जी सेवा मँह् ;
अपणा जीवन ढाल़ै ।
मैं तै ऊपर उठ भीत्यर तै ;
आप्पा जमा खंघालै़ ।
मन पाज्जी हो सै बे काबू ;
हर पल इनै स्यम्भालै़ ।
बण्य कै नै रैह् अणजाण्या ,नांह् ;
आप्पा कदे उछालै़ ।
सबकी सुणे अर् सब की सोच्चै ; रहै न खुदी मथन मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यूं ? जब साधन ; करूं उद्योग जतन मैं ।
मतलब हो बलवान हमेसा ;
मतलब कदे मरै नांह् ।
मतलब कारण अग्यानी सब, क्यूं;
ग्यान् अभ्यास करैं नांह् ?
मतलब ऊप्पर ,ग्यान तलै़;
दब्य ससक्यां जा उभरेै नांह् ।
संसारी - सुख भंगुर , दुखी मन;
छोड्डंे ब्यना त्यरै नांह् ।
खड़ग पकड़्य न्यसकाम करम की ; बंधू, जीतै रण मँह् ।
रहूं द्यलद्दर क्यूं ? जब साधन; करूं उद्योग जतन मैं ।
|
बैठ्या बैठक मँह् जब भी वो; बात करै था बडी -बडी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
चोरी -चुगली ,ठग्गी- जारी;
नसा-पता अर जल़ण-बल़ण ।
मीठ्ठा बोल कपट भीत्यर मँह् ;
ये हो सैं सब नीच चलण ।
इसे-इसे उपदेस करै था; बात करै था कढी-पढी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
सब कहैं् थे न्यूं , दूध धुल्या यो;
साफ मनां सै नेक भला ।
दूर्य ब्यस्यां तै, दरिया द्यल सै;
दीन-हीन का दया-तला ।
सुण्य लोगां की बात्तां नै ; पांह्, उसके जांह् थे कड़ी-कड़ी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
भागल पुरिया ख्यंडका बांधै;
जिस मँह् पेच पड़े हों थे ।
धौल़ पोस रंग भूरा , धोती -
मँह् बल़ खूब पड़े हों थें ।
दस्ती डोग्गा,च्यमकै गूंठी ; इन तै सोभा खूब बढी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
पंचात्यां मँह् पूच्छ्या करदे;
उसकी रांधी रंधेै थी ।
जडै़ गया वो म्यल्या स्यर्हाणा;
ईज्जत झंडी बंधै थी ।
बे दागी लाग्गै था; बंधू, अंधेरे मंँह् फूलझड़ी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
|
बैठ्या बेठ्ठक मँह् जब भी वो ; बात करै था बड़ी -बडी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
तसकर एक, पुल्यस नै पकड़्या ;
इक द्यन जब फूट्या भांडा ।
साच उगलदी तसकर नै जब ;े
वो ठाग्या डेरा टांडा ।
रेड पड़ी जब माल़ हयथ्यागा; अखबारा मँह् खबर कढी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
पोल्य खुह्ली सूरत-सीरत की;
जडै़ सुणै पीटेैं थेल़ी ।
न्यूं सी चरचा थी लोगां मँह् ;
खामोस खड़े म्यंतर-मेल़ी ।
तसकर मँह् केै बेच्या करदा; सुल्फा गांझा धड़ी-धड़ी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
साच कहैं संै इक द्यन साह् का ;
बेस्सक चोरी सौ द्यन कर ।
घड़ा पाप का फुट्टेै सै , जब;
कान्या ऊप्पर जा वो भर्य ।
घणे चतर की भी तो अक्कल; कदे-कदे जा खूब हड़ी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
जेल़ कोठड़ी के भीत्यर वो;
आज पड़्या प्यछतावै सै ।
डूब्य मंरू कित कह्न्दा कहिए ;
गई बात के आवै सै ?
करणी आग्गै आवै सै ज्यूं ; म्यरी आबरू आज झड़ी ।
पाह्र्य मखौटा धौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
पणवासी नै कथा-कहाणी;
रोट करे हनुमान के ।
माल़ा जपी घुमाए मणिए ;
भजन करे भगवान के ।
बंधू, उसकी भगती लगै थी; बुगले तै भी घणी खड़ी ।
पाह्र्य मखौटा घौल़ा लाग्गै; भीत्यर काल़स्य खूब चढी ।
|
करे स्यान पै थूक्कै नुगरी; दुनिया का के कैह्णा ।
तोत्ते की ज्यूं आँख्य बदलज्या ; के लाग्गै माँ भैणा।
भेस भुरूपिए भरंै ,करैं सैं ;
वैं रखववाल़ गरज की ।
दा लगद्यंइ वैं धूल चटावैं ;
परवाह् नही फरज की ।
धरम यही बस उनका, अपणी ;
करते दवा मरज की ।
र्यस्ते -नाते , दीन , रागनी ;
उनकी एक तरज की ।
बदनामी के हो सै ? चइहे ; उल्लू सीधा रैह्ण ।
तोत्ते की ज्यूं आँख्य बदलज्या ; के लाग्गै माँ भैणा।
जनम देणिएं भी नांह् अपणे ;
दीक्खण लगैं पराए ।
सरवण बोझा मान्नंै सारे ;
होगे खतम उम्हाए ।
ड्यौल़ टूट्य मरियादा बैह्गी ;
रहे न अपणे जाए ।
वैं हें पाड़ैं - घूरैं जो थे
भौंसण कदे स्यखाए
गरू की न्यंदा कर्य इतरावैं ; पाह्र्य पाप का गैह्णा ।
तोत्ते की ज्यूं आँख्य बदलज्या के लाग्गै माँ भैणा।
नूगरा करै न घ्यण बेस्सक , गम ;
नीचा द्यखलावै सै ।
वो ब्यसवास करै गम ल्यकड़ी ;
बच्चा सुख पावै सै ।
काम बणै इतणै वो खर नै ;
खुद्य बाप बणावेै सै ।
चइहे आँख्य सरम की , पर के ;
नुगरा सरमावै सै ।
छोड्डै ना मरियाद आपणी ; इसतै ए मान्नै लैह्णा ।
तोत्ते की ज्यूं आँख्य बदलज्या ; के लाग्गै माँ भैणा।
नूगरा नीचा रहै हमेसा ;
कोन्य भलाई पावै ।
मतलब का मल़ चढज्या भीत्यर ;
वो अंधा हो ज्यावै ।
घड़ा चीकणा बूंद थल़सज्या ;
उस मँह् नही समावै ।
रीत्ता हो जो, छ्यलक- छ्यलक कै
आप्पा भर्या द्यखावै ।
बंधू, स्यान- बोझ नुगरे नै ; मुसक्यल होज्या सैह्णा ।
तोत्ते की ज्यूं आँख्य बदलज्या ; के लाग्गै माँ भैणा।
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21) च्यार ब्यगड़्यगे -16 |
22) च्यार ब्यगड़्यगे - 16 अ |
23) सुरसा -17 |
24) एकै मंतर - 18 |
पाँचां मँह् तै च्यार ब्यगड़्यगे ; काबू बात रही नांह् ।
जल, वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
म्यरग-त्यरस्णा के बस माणस ;
दौड़्या हो कै अंधा ।
रमण ब्यस्यां मँह् करै रात्य द्यन ;
और नहीं को धंधा ।
गंद देखणा गंद ब्यचारै ;
जीवै हर पल गंदा ।
भ्रस्टाचार के अल़ नै चूस्या ;
हुया समाज दर्यन्दा ।
संसक्यरती परदूसित होगी ; उजड़्या बाग लखीणा ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
जिन नदियों को कहैं पवितर ;
मान्नै मुक्ती दाता ।
गंदे नाले़ होगे उन मँह् ;
जैह्र घुल़्या घुल़्य जाता ।
कई रसायन कूडे़-कचरों ;
से है उनका नाता ।
अमरत ,अमरत रय्हा नहीं , मल़ ;
गीत मौत के गाता ।
कुंड, कूए नल़कूप ब्यगड़्यगे ; बौड़ी रही वही नांह् ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
चलैं फैक्टरी न्यारी -न्यारी ;
पैदावार जतन मँह् ।
राख-रसायन बरसावैं सैं ;
घोलेै़ जैह्र पवन मॅंह् ।
धम्मा-धूल उडावै वाहन ;
गर्द - गुब्बार रहै द्यन मँह्।
टी0बी0, कैंसर जैसी घातक ;
हो बीमारी तन मंॅह्
प्राण हवा का नाम रय्हा नांह् ; सुधता रही कहीं नांह् ।
जल,वायु अर गगन बद्यलगे धरती रही वही नांह् ।
माणस खाणी गैसें जैह्री ;
फ्यरती द्यसा दसन मँह् ।
परमाणु विस्फोट धमाके ;
धूम्माधार गगन मँह्।
वातावरण मंँह् गरमी बधी ;
तपता ताप गगन मँह्।
जी- जन्तर धबराए सारे
बंधू, च्यंता मन मँह् ।
जेठ दुपैह्री भी छांह् चाह्वै ; झूठी बात कही नांह् ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
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पाँचां मँह् तै चार ब्यगड़्यगे ; काबू बात रही नांह् ।
जल,वायु अर गगन बद्यलगे ; धरती रही वही नांह् ।
आबादी की भीड़ बधी सै ;
गेल्ली सोर बध्या सै ।
गूंज रहै ज्यूं मेले़ मँंह् , न्यंू ;
इसका जोर बध्या सै ।
वाहन धर धर , भौपू पौं-पौं ;
मँह् भी घोर बध्या सै ।
कान फोड़णे टेप बजै सैं ;
यू हर ठौर बध्या सै ।
अस्सी डैसी बल से ज्यादा ; जा आवाज सही नांह् ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
पी कै जैह्र ब्यगड़गी धरती ;
होग्या सभा ब्यसैला ।
भांत्य- भांत्य के खार -दवाई ;
उपजै नाज कसैला ।
जैसा अन वैसा मन होग्या ;
न्यूं इनसान गुसैल्ला ।
कुदरत का सन्तुलन ब्यगड्य़ग्या ;
ब्यगड़्या रूप रूपैह्ला ।
बढता सोर करै घबराहट ; के या बात लही नांह् ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
खड़े सुमेरू गंद कूड़े के ;
बस्ती , बाह्र्य गल़ी मँंह् ।
स्यड़ै किते सै पाणी काल़ा ;
जमर्ही गाद्य तल़ी मँंह् ।
चढज्यां बंास मगज मँह् सारै ;
रमज्या नल़ी- नल़ी मँह् ।
सूर -गधे सा जीवन होग्या ;
जीवंै मैल-मल़ी मँह् ।
अंधा हो माक्खी खा, माणस ; की के अकल बही नांह् ?
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
आबादी की गठड़ी भार्या ;
परदूसण की जड़ सै ।
कटते जंगल़ , परदूसण पै ;
कोन्या रही जकड़ सै ।
अपणे हित मँह् माणस बेल्लै ;
कितणे ही पापड़ सै ।
फ्यर भी हित नांह् हो , परदूसण ;
गैह्रा जाल़ मकड़ सै ।
मार्य कुल्हाड़ी खुद्य पांह्ं ; बंधू ,बणग्या काल़ चबीणा ।
जल,वायु अर गगन बदल्यगे ; धरती रही वही नांह् ।
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आबादी नाह् , सुरसा होगी ; मँुह् का नाप नहीं सेै ।
हो कै चढी राकसी खप्पर ; भर्य -भर्य नाच्य रही सै ।
भूल-भुलैया मँह् हम आप्पै ;
रचल्यैं सैं चकमाऊ ।
देण राम की हैं ये , हम ;
क्यूं होवैं नाक चढाऊ ।
जितने होज्यां , थोड़े हों सैं ;
घर मँह् पूत कमाऊ ।
बूढे बारै लाठ्ठी हों सैं ;
हों सैं बंस चलाऊ ।
सुत ब्यन कूण कराऊ गत्य या; मान्नैं बात सही सै ।
हो कै चढी राकसी, खप्पर ; भर्य -भर्य नाच्य रही सै ।
सबर करैं ना कीड़ नाल़ मँह् ;
कोए नहीं बधाऊ ।
के मांगंै सैं बोझ घणो ?
खुद्य होज्यां कर्य कै खाऊ ।
आंख्य फूल्य ज्यां देख कई ;
लठ ठाऊ नाम कढाऊ ।
कबर तलक भी मनसा हो सै ;
होज्यां गाम बसाऊ ।
आप कुहाड़ी मारैं खुदय के ; पांह्यां , अकल बही सै ।
हो कै चढी राकसी , खप्पर ; भर्य -भर्य नाच्य रही सै ।
करण-खाण के साधन रैंह् नांह् ;
स्यर ल्हकोण नै ढारे।
अध भूखे, अध नंगे होज्यां ;
बीमारी के मारे ।
ठाल्ली नाण्य काटड़े मूंड़ै ;
फ्यरते बेरूजगारे ।
गूंठा टेक रहैं पाल़ी यें ;
सब ढोरां के लारे ।
ये गुरबत के मारे इनकी ; मींडक डांक यही सै ।
हो कै चढी राकसी , खप्पर ; भर्य -भर्य नाच्य रही सै ।
एक कमाऊ के कर्यले जब ;
घर मँह् गाम बस्या हो ।
कूयकर आवै सांस खुह्ल्या ;
जब बांधी मसक कस्या हो ।
सुख-सुधार तो सुपने होज्यां ;
जब दल-दल बीच धस्या हो ।
होंस न आवै जब अग्यान के ;
सर्प ने जिसे डस्या हो ।
बंधू , चस्या न हो जब अंतस ; लगै कपास दही सै ।
हो कै चढी राकसी , खप्पर ; भर्य -भर्य नाच्य रही सै ।
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सभी समस्या हल होज्यां जै ; थोड़ा सा हम ध्यान करैं ।
भूखा नंगा कोए रहै ना ; जै जनसंख्या ग्यान करैं ।
परदूसण हर जघां बसै सै ;
के वायु अर के जल मँह्।
धवनी तक नांह् , बच्य पाई ;
हर सामाजिक हल चल मंँंह् ।
परदूसण जड़ जनसख्या मँह् ;
और नही दूजे मल़ मँह् ।
जनसंख्या की गेल बध्यां जा ;
घड़ी -घड़ी हर पल मँह् ।
दम घुटग्या होया बोल बंद ;
फांसी घली किसी गल़ मँह् ।
जीणा रहै असम्भव आग्गै ;
छल़े गए हम किस छल़ मँह् ।
क्यूं हम दल-दल पार्य करैं नांह् ? अपणे पै अहसान करंै ।
भूखा नंगा कोए रहै ना, जै जनसंख्या ग्यान करैं ।
रहैं नही मोह्ताज किसे के ;
अन-धन की बरसा भारी ।
गुणात्मकता हट्य कै आज्या ;
हो नैतिक रैह्णी सारी ।
क्यरसन जी से योगी होंगें ।
राम जिसे हों चमत्कारी ।
भीम सरीखे पैह्लवान अर ;
अर्जन से गांडिवधारी।
लाचारी हो खतम हमारी ; जै नस्ट यह सैतान करेैं ।
भूखा नंगा कोए रहै नांह् ; जै जनसंख्या ग्यान करैं ।
जर लाग्गे अंधब्यसवासां तैं ;
त्यार जाल़ कर्या बुण्य-बुण्य कै ।
उनै अधेडैं आओ म्यल कै ;
करैं दूर्य उन्हे चुण्य-चुण्य कै ।
और करैं सैं हांसी म्हारी ;
हाल भरम के सुण्य -सुण्य कै ।
अपणे हाथां आप दुखी हम ;
प्यछतावैं स्यर धुण्य- धुण्य कै ।
बंधू, गुण्य-गुण्य ड्ंयघ धरंै हम ; नांह् अपणा अपमान करैं ।
भूखा नंगा कोए रहै नांह् ; जै जनसंख्या ग्यान करैं ।
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25) बोल्य तोल्य कै - 19 |
26) अणमोल रतन-20 |
27) माँ भौं की स्यान -21 |
28) माँ की स्यान -21अ |
बोल्लां तै ए इस जग मँंह् को ; यस-न्यंदा पावै सै ।
दे सै कोह्ल्य किनै के ,कागा ; किसका के ठावै सै ?
कड़वा बोल करै सै हिंसा ;
यू ठेस लगावै से ।
दुखी आतमा हो अगले की ;
यू क्रोध जगावै से ।
आग्य, आग्य नै नही बुझावै ;
या दूणी लावै सै ।
सील़ा काट्टेै तात्ते नै,ज्यूं ;
जल आग्य बुझावै सै ।
मीठ्ठे पै सब जी दे,ं कड़वा ; चख्या न को चाव्है सै ।
दे सै कोह्ल्य किनै के , कागा; किसका के ठावै सै ?
देखी-परखी बात साच या ;
घा म्यट्ज्या तलवार्य का ।
कड़वा बोल जणु जैह्र बुझ़या हो ;
हो सै पैनी धार का ।
यू लाग्गै जब द्यल ब्यंधज्या सै ;
घणी कसूती मार का ।
म्यटै न इसका घा चीस्यां जा ;
ब्यन लाग्गे हथियार का ।
मरणै मरज्या अंत चिता ए ; यंे चीस जल़ावै सै ।
दे सै कोह्लय किनै के, कागा; किसका के ठावै सै ?
सभा सभी के न्यारे-न्यारे;
कुदरत भेद भरी सै ।
सब आप्पे मँह् मगन, फ्यकर भइ ;
किस की किनै करी सै ।
सब कुछ हो सै प्रेम बोल मँह् ;
चइहे न्यजर घ्यरी सै ।
भला करण पै, इक-दूजे का ;
चइहे न्यजर धरी सै ।
बोल्य तोल्य कै पैह्ले, आंधी ; क्यूं धड़ी बगावै सै ।
दे सै कोह्ल्य किनै के, कागा ; किसका के ठावै सै?
चाँद -च्यांदणी भी बोल्लै सै ;
अणकथ सील़ी बाणी ।
जेठ-धूप मँह् छांह् पेड्डे की ;
कैह् सै वही कहाणी ।
मोर, पपहिए, चिडि़या -बोल्ली;
भी कोन्या अणजाणी ।
ले ल्यो कुदर्यत का तोफा यू ;
कोन्या हो को हाणी ।
कुदर्यत बांडै न्याम-स्याम यू; नांह् मोल जचावै सै ।
दे सै कोह्ल्य किनै के, कागा ; किसका के ठावै सै?
आप्पा खो कै बोल्लै मीठठा;
भला आपणा हो वै ।
सुण कै मीठठी बाणी अगला;
मैल भीत्यरी धोवै ।
अगले कै भी सील़क होज्या;
वो भी आप्पा खोवै ।
जै वो समझै तनै डर्या सा ;
अ़ो भरम-भरोटा ढोवै ।
बंधू, इक द्यन उस मँह् आप्पै; आप साच आवै सै ।
दे सै कोह्ल्य किनै के, कागा ; किसका के ठावै सै?
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या स्यरस्टी सै जलतै ए ; इस ब्यन तो या सपना सै ।
अणमोल रतन, हर हाल इसे ; बचा-बचा रखणा सै ।
जरा ब्यचारो रूप किसा माँ-
भौं का होगा जल ब्यन ?
मरघट , उज्जड़ सी दीखै या ;
फैल्या जणु मरूस्थल ।
सूरज बरसा करै आग्य की ;
या धरती जा बल़्य-बल़्य ।
झल़ ल्यकडैं ज्यूं आवे मँह् तै ;
न्यूं तपज्या इस का तल ।
तपन थम्बै नांह् जल के ब्यन ; या घटती रैह् घटना सै ।
अणमोल रतन हर हाल इसे ; बचा-बचा रखणा सै ।
नांह् लकसण को धरती पै हो ;
जिने से जिन्दा लाग्गै ।
पसू-पखेरू जी-जन्तर, नांह् ;
हरियाली भी जाग्गै ।
बीन बजै नांह् भौंर्यां की , नांह्;
कोह्ल्य पपहिया राग्गै ।
बहै न जीवन नदिया भौं पै ;
भान धरा नै दाझै ।
किसी लगै भौं जल ब्यन, आग्गै; नांह् और कलपना सै ।
अणमोल रतन हर हाल इसे ; बचा-बचा रखणा सै ।
जल तै ए भौं- बनस्पती सै ;
सजी-ख्यली हरियाली ।
जल तै ए जी सरसाया सै ;
जीवन -नदिया चाल्ली ।
चैह्ल -पैह्ल अर चैहक-लैहक सब ;
जीवन की खुसहाली ।
जी-जन्तर सब पसू-पखेरू ;
कोन्य रहै को ठाल्ली
नस-नस सील़ी करदे सै यू; इस ब्यन तो तपणा सै ।
अणमोल रतन, हर हाल इसे; बचा-बचा रखणा सै ।
काम घरेलू नूह्-खुर तै सब ;
जल ब्यन हों ना पूरे ।
सपने खेती मँह् किसान के ;
जल ब्यन रहैं अधूरे ।
उद्योग तरक्की थम्बै देस की ;
जल ब्यन कोन्य जहूरे ।
मुफत मान्य कै ब्यर्थ बुहावै ;
अणसमझे बेसूह्रे ।
अमरत सै यू इनै बचाल्यो; जै जिन्दा बचणा सै ।
अणमोल रतन हर, हाल इसे ; बचा-बचा रखणा सै ।
जित पाणी नांह् म्यलै पीणा नै ;
उत पूछो इसका भा ।
जल जीवन सै, अमरत सै यू ;
इसका को भा कोन्या ।
माँ ज्यूं रक्स्या करै पूत की ;
इनै बचाओ च्यत ला ।
सौ बातां की एक बात सै ;
इस ब्यन कुदरत थम्बज्या ।
घर की छत के मींह् पाणी की ;
ल्यो इक-इक बूंद बचा ।
सारत करल्यो जबै बचैगा ;
नांह् ब्यरथा करो बहा ।
सब तै बडा देवता सै यूं; बंधू, जो जपणा सै ।
अणमोल रतन हर हाल इसे ; बचा-बचा रखणा सै ।
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बडी सुरग तै तू आनन्दी ; जनम भौम बतलाई ।
नमन करो मंजूर हमारा ; प्यारी जननी माई ।
ढाल़-ढाल़ के बसतर-बोली;
कइए दीन-इमान त्यरे ।
सुन्दर रूप,रंग रूत कइए ;
कितने खानो-पान त्यरे ।
घाटी परबत, बीहड़ जंगल़ ;
किते पठार मदान त्यरे ।
पंछी कुल -बुल , झरने कल -कल;
गेल म्यलावै तान त्यरे ।
कइए रूप़ त्यरे माँ, फ्यर भी; दे़ती एक दिखाई ।
नमन करो मंजूर हमारा ; प्यारी जननी माई ।
ख्पलै हिमालय मुकट माथ, बण;
साजैं केस त्यरे माँ री ।
प्यरवा, प्यछवा, दक्खण सागर ;
पैह्रू खड़े तणे माँ री ।
विंध्य त्यरी तगड़ी पै गुफा के ,
चित्तर अजब ख्पणे माँ री ।
थाल, पाल अर भोर त्यरे;
प्यछवा मँह् घाट बणे माँ री ।
चलै मलय की मलय हवा जित; कुदरत की चतराई ।
नमन करो मंजूर हमारा ; प्यारी जननी माई ।
उपजे रतन त्यरी माटी से ;
बल-बुद्वि की खान्य हुए ।
करगे रचना बेदां की जो;
र्यसी -मुनी ब्यदवान हुए ।
मरियादामय रामचन्दर अर;
सेवक वर हनुमान हुए ।
गीता मँह् सन्देस देणिया ;
क्यरसन जी त्यरी स्यान हुए ।
अधरम का कर नास जिन्हो ने; सत की जीत कराई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
महाबीर से त्यागी-जोगी ;
गौतम बुध भगवान हुए ।
पाणिनी पातंजली जैसे ;
व्याकरणी गुण वान हुऐ
चन्दर गुप्त मौर्या योधा ;
चाणक्य नीती वान हुए ।
राज्यां मँह् इक संत माहत्मा;
भूप असोक महान हुऐ ।
गया सरण मँह् बुध की, उसकी ; प्रेम अहिंसा राह्ई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
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बडी सुरग तै तू आनन्दी ; जनम भौम बतलाई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
चन्दर गुप्त ब्यकरमा द्यत से ;
न्याकारी इनसान हुए ।
नागर्जुन अर अरिया भट से ;
ऊंचे संाइसदान हुए ।
काल़ीदास, भाण अर सुदरक ;
भट से साहित्यवान हुए ।
और ब्होत से याद्य नही माँ ;
बण्यकै त्यंरी प्यछ्याण्य हुए ।
स्योने की चिडि़या थी माँ तू ; सभी न्यजर ललचाई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
नानक अर रैदास, कबीरा;
जो भगती की ज्यान हुए ।
भेद समझ जीवन का सारा;
कर दरसन बाखान हुए।
तुलसी दास ससी होगे ;
सूर दास से भान हुए ।
न्यारे-न्यारे रागां का , कैेंह्
तान सैन कर्य गान हुए ।
आग्य लगावै तुरत्य बुझावै; कला गजब की पाई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
स्यान्ती दूत हुए बापू जी ;
साच, अहिंसा प्रछाई ।
राज गुरू, सुखदेव, भगत स्यंग;
कितन्या नै फांसी खाई ।
लगा बोस नै दा पै सब कुछ;
आ0 ह्यन्द फौज सजाई ।
जयहिन्द का जयकारा दिया;
अरज्यान की बाजी लाई ।
खून दियो आजादी द्यूंगा;
ऊंची ललकार लगाई ।
धन-धन हे माँ, जणे तने ये ;ं
योधे बीर स्यपाही ।
सींज खून तै तेरी माट्टी ; धज की स्यान बढाई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
अलीस्यान त्यरा संविधान माँ;
ब्यसवास त्यरा समता मँह् ।
कोए आओ सरण द्यवै सै ;
तू माँ कितनी मगतामय ।
जीण भाव अर दया, अंिहंसा ;
रैह् सै त्यरी नरमत मँह् ।
सहनसील तू जिन्दा सै माँ;
त्यरी निरपेक्स धरमता मँह् ।
बंधू, निरगुट, स्यंात रहै तू; करती रहै समाई ।
नमन करो मंजूर हमारा; प्यारी जननी माई ।
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29. फरज |
30. फरज - अ |
31. समाध्य दीप |
32. समाधी दीप - अ |
पैर फला जग सोज्या सारा; अर हम जी ल्यैं मौज मँह् ।
माँ कि रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
न्यूं कैह् था के जीणा मेरा ;
कूख लजाई माँ की ।
ह्यरदे की चितकार म्यरे पै ;
सुणी न जाई माँ की ।
आँख्यां मँह् पाणी था उसके ;
कसम उठाई माँ की ।
मरज्यांगा, नांह् हटूं, कंरू मैं ;
कला सवाई माँ की ।
करज चुकाऊंगा माँ का मै; दब्या रहूं नांह् बोझ मँह् ।
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
दुसमन नै माँ को ललकार्या ;
अबला रूप जाण्या कै ।
जाणी ना ओकात स्यार नै ;
भभकी द्यई आण्य कै ।
खाई कपासी दही भल़ामैं;
आप्पा सेर मान्य कै ।
जाणा पड़ै जरूर हूर्य - मन;
पाणी -दूध छाण्य कै ।
कोन्या मेरै गात समाई ; भसम हुया जां क्रोध मँह् ।
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
सारी दुनिया थूक्कैगी जब;
कुए-जोह्ड़ का राह् होज्या ।
के द्यखलाऊंगा मँह्, पूरा;
जै दुसमन का दा होज्या ।
माँ कान्ही का फरज करण दे ;
मन का पूरा चाह् होज्या ।
धरती माँ के काम्$आया तै ;
इतिहासां मँह् नां होज्या ।
इसा नहीं सूं भूल्लंू तन्नै; फोटू लेज्यां गोझय मँह् ।
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
एक लड़ूं मै सवा लाख से ;
अगनी - तोब चलाऊंगा ।
दांद करूं खाट्टे बैरी के ;
पल मँह् धूल चटाऊंगा ।
चैन पड़ै ना जब तक, उसका; नही म्याटऊं खोज मँह् ।
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
पंुछ, रजोरी, छम्ब, जोडि़या ;
अगले मोर्चै जाऊंगा ।
बंधू , ग्यलगत, करग्यल जा कै ;
मारो मार मचाऊंगा ।
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पैर फला जग सोज्या सारा; अर हम जी ल्यैं मौज मँह् ।
माँ की रक्स्या करण म्यरा हे; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
ठाराह् सौ फुट ऊंचाई पै ;
जाणा को आसान नहीं ।
माइनस चालि़स ताप जड़ै ;
जीणे का सामान नहीं ।
बरफीले तूफान चलैं सैं ;
आक्सीजन का नाम नहीं ।
करो-मरो का हुकम बजाणा ;
उल्टा हटण मँह् स्यान नहीं ।
हिया उझल्य कै आवे मेरा; आँऐ , उसके रोह्ज मँह्
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
मै बोली ले चाल दलां मँह्
उड़ै धूम्मा ठा द्यूं मैं ।
मार्य -मार्य कै बैरी की , पिया ;
रण मँह् ल्हास ब्यछा द्यूं मैं
धोरै रैह् कै त्यरा मनोबल ;
पड़ण नहीं द्यूं ठा द्यूं मैं ।
बीर पदी पा इतिहासां मँह् ;
रैह्ज्यां न्यूं की न्यूं मैं ।
क्यां हैं मँह् नांह् जी मेरा बस; बसै म्यरे मनोज मँह् ।
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
न्यूं कैह् था मैं मर्या सरम मँह् ;
गरदन झुक्यगी मेरी ।
बाक्की कोन्य रही तन मेरे ;
हुई गात की ढेरी ।
रोआ -पीट्टी छोड्य ब्यदा कर्य ;
ख्यल्य कर्य नांह् कर देरी ।
समझूं संू पर ना बस मेरे ;
दुखी आतमा मेरी ।
आंहे, एक धड़ी के आग्गै; पांस्यग नहीं नपोज मैं ।
माँ कि रकस्या करण म्यरा हेे ; पती गया न्यू फौज मँह् ।
न्यूं कैह्ग्या जै, मैं नांह् आया;।
सबर म्यरे तै कर्य लिए तू ।
बंधू पल्ला नांह् भेइए तू ;
घंूट सबर की भर लिए तूं ।
जुणसा भा हो बीर-मरद का ;
उस पै खरी उतर लिए तू ।
भींत पड़ण नांह् दिए गाल़ मँह्
लगै न लांछण डरलिए तूं
परमवीर चक्कर ल्यावै हे ; या हे मानऊं र्होज मै,
माँ की रकस्या करण म्यरा हे ; पती गया न्यूं फौज मँह् ।
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गए, जा रहे अर जाहं्गे जो; करण रूखाल़ सीम की ।
सच्चे पूत्तर माँ भौं के नांह् ; परवाह् हीम-खीम की ।
अणबुझ ललक जल़ण की जिन मँह्
यंे वैं परवाने सैं ।
समा जलै़ आजादी की के
मदमत दीवाने सैं
माँ हित जल़ना ही इबादत ; इनकी राम रहीम की ।
सच्चे पूतर माँ भौं के नांह्; पखाह् हीम-खीम की ।
मैह्कै से राह् बली मैह्क से ;
जिस राह्ई यें गुजरैं ।
ओज-तेज गोबिंद स्यंग का ;
बैरी देक्खैं बुझ्य रैंेह् ।
सारा गढी के अभिमन्यू यें ; ताकत पांडु भीम की ।
सच्चे पूत्तर माँ भौं के नांह्; परवाह् हीम-खीम की ।
सूरे पूरे आन बान के ;
रूकण झुकण नांह् जाणैं ।
इतिहास रचैं , गर्विला जब-जब;
रण मँह् त्यौड़ी ताणैं ।
जोस लाइट-ब्रगेड़ का यंे; हिम्मत उसै स्कीम की ।
सच्चे पूत्तर माँ भौं के नांह् ; परवाह हीम-खीम की ।
हरियाणी हो या पंजाबी;
गुजराती मदरासी ।
बंधू, मराठी या तेलंगा
एक्कै राह् के ख्यासी ।
अनुसासित ये सदा एक सैं ; बात नांह् तकसीम की
सच्चै पूत्तर माँ भौं के नांह् ; परवाह ही-खीम की ।
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गए जा रहे अर जाह्ंगे जो ; करण रूखाल़ सीम की ।
सच्चे पूत्तर मां भौंके ; नांहू परवाह्ं हीम खीम की ।
हम जीवैं आनन्द मौज मँह् ;
सोज्यां पैर फला कै ।
इसी लिए यें होमैं जीवन;
अपणी सुध भुला कै ।
जोस भरैं रणभेरी पै, फिर ; बात नांह् तरमीम की ।
सच्चे पूत्तर मां भौं के नांह्; परवाह् हीम-खीम की ।
होंस उडाद्यैं , बैरी नै, हर-
तरिया फैल करैं सैं
ललकार सुणै जब बैरी इनकी;
कई- कई दैह्ल मरैं सैं ।
सुण्य हुंकार, न पाणी मांगैं; फैल दवा हकीम की ।
सच्चे पूत्तर मां भौं के नांह्; परवाह् हीम-खीम की ।
च्यंगारी छ्यटकंावैं जल़-जल़ ;
सब कुछ दा पै ला ज्यां ।
कायर भी लख जोस भरैं सैं;
परम पदी पद पाज्यां ।
सबद नहीं जो गाथा गादें ; इसे सहीद अजीम की ।
सच्चे पूत्तर मां भौं के नांह्; परवाह् हीम-खीम की ।
ट्यम ट्यमावै समाध्य दीप जणु ;
उसकी अंतर ज्योति ।
बलिदान खुसी मँह् हाँसै सै;
पर रूह् माता की रोती ।
अमर रहो जय तेरी बंधू ; रटण किसे यतीम की ।
सच्चे पूत्तर मां भौं के नांह्; परवाह् हीम-खीम की ।
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33. न्हाल्यू अंतिम बरियां |
34. मस्त त्यरंगा |
35. ललक |
36. चाह् |
लियो पाछली राम- रमी रैं; टेम आखरी आया ।
मने म्यलैगी माँ की गोद्दी ; मुसक्यल यू द्यन थ्याया ।
कोन्य रही को इच्छा बाकी ;
जीत्य गया, नांह् हार्या ।
करतब और कर्यां जांऊ मैं ;
जै जी म्यलै उधारा ।
चरण आखरी बरियां के ल्यूं ;
और नहीं कुछ प्यारा ।
माँ पै म्यटता जाणा चाहूं ;
ले-ले जनम दुबारा ।
या हे इच्छा मन मेरे की ;यू हे म्यरा उम्हाया ।
मने म्यलैगी माँं की गोद्दी ; मुसक्यल यू द्यन थ्याया ।
जिनके हो कै साथ चल्या था;
संग छुटज्यागा आज ।
छूटैं बंधू , यारे-प्यारे;
होज्या सपन सा राज ।
आज टूट्य ज्यां तार, जुड़ै नांह् ;
चुप हो बाजणा साज ।
दुख ब्यछड़ण का कितणा ! पर खुस;
मरूं जननी के काज ।
घड़ी दो घड़ी का सै बस यू ; थ्हारी माँ का जाया ।
न्हाल्यूं अंत्यम बरियां का, सब;
नदियां-नीर ल्याइयो ।
माटटी चंदन इसकी इसनै;
म्यरे मात्थै लाइयो ।
चैइहे और कफन नांह् मन्नैं,
त्यरंगा ल्यपटाइयो ।
दे के आग्य च्यता मँह् मेरी
’बंदे मातरम ’ गाइयो।
सोग न करियो तम मेरा ; यू, मनै परम पद पाया ।
माँं के ह्यत मरणा-जीणा , ध्येय् -
हो माँ - भगत धीर का ।
गाद्दड़ बण्य जै जीया तै , के-
उठ्ठै इस सरीर का ?
ग्यान याद्य करल्यो गीता के;
क्यरसन करम बीर का ।
खेत रहै काम् $ आवै माँं के;
जो धणी समसीर का ।
इस तै बध्य नांह् को करतब, माँ ; के काम् आवै काया ।
कुछ नांह् मरणे तै आग्गै, मत;
पीठ द्यखाइयो रण मँह् ।
इक द्यन मरणा सब नै सै , फ्यर;
के घबराणा मन मँह् ?
भजा- भजा कै मारो बैरी;
सांस चढाद्यो तन मँह्।
याद्य द्युवाद्यो दूध छठी का ;
दीक्खैं तारे द्यन मँह् ।
उल़झ्या बंधू, सांस किते जब; भीत्यर लाग्या फाह्या ।
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मस्त त्यरंगा बड़ा रंगीला ; मौजां मँह् लैह्रावै ।
रहै झूमता स्यखरी मँह् यू ; अपणी स्यान बणावै ।
केसर के रंग केसरिया की ;
द्यन -द्यन कला सवाई ।
इस मँह् त्यागी -जोगी देखो ;
बीर बड़े बलदाई ।
गौतम, नानक गोबिंद स्यंग ;
सिवा, लक्समी बाई ।
और ब्होत से पता न उनका ;
जिनकीे यू परछाई ।
आजाद, गुरू , सुखदेव , भगत की ; जीवन गाथा गावै ।
रहै झूमता स्यखरी मँह् यू; अपणी स्यान बणावै ;
रंग रोसनी का सफेद यू ;
दे सै झल़क सचाई ।
माह्पुरसां नै कदे न छोड्डी ;
म्यरतु तक अपनाई ।
गैह्णा नांह् इस तै बध्य कोई ;
सब फीेके हैं भाई ।
इस तै कर्य स्यंगार चलैं हम;
चमक दूर्य तक जाई ।
आख्यर सच ही तो जीतै सै ; सच का सार बता्वै ।
रहै झूमता स्यखरी मँह् यू; अपणी स्यान बणावै ।
बनस्पती का रंग लिया इनै ;
सजगी स्यान सुहानी ।
दुल्हण धरती सजी हमारी ;
इस रंग मँह् मस्तानी ।
खुसहाली का चिन्ह सै, इस पै ;
भारत माँ दीवानी ।
रहैं भरे भंडार हमारे ;
इसकी सुणो जुबानी ।
ताकतवर तीनांे रंगांे से ; इसनै कूण झुकावै ?
रहै झूमता स्यखरी मँह् यू; अपणी स्यान बणावै ।
प्यरिया दरसन का चक्कर घूमै ;
नहीं प्रण से कदे टल़ै ।
बढते कदम रहैंगे न्यू ए;
जल़ने वाल़े जलैं़ भले ।
अध्यातम मँह् सब तै आग्गै ;
ले भौतिकता साथ चले ।
देख तरक्की चैगर्दे की ;
नांह् दुनिया की दाल़ गलै़ ।
बंधू दुआ करै बस इतनी यू ; ऊंचा -ऊंचा जावै ।
रहै झूमता स्यखरी मँह् यू ; अपणी स्यान बणावै ।
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आया सुभ द्यन गणतंतर यू ; परब मनावैं हे ।
हँस्य-ख्यल नाच्चंै उमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे
यू द्यन दिया सहीदां नै हे ;
चढे बली जो माँ पै ।
उनका सपना था आजादी ;
सब कुछ्य ला गे दा पै ।
उन सब अमर सहीदां नै झुक ; सीस नवावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
धन-धन जो अरमान जवानी ;
कर्यगे माँ भौं के नां ।
ल्हास ब्यछ्यागे खुद्य तन की , पर;
ठाया नहीं उल्टा पांह ।
उन के चरणा की धूल़ उठा हम; मात्थैं लावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
माँ बगिया के फूल हजारे ;
ख्यल्या म्हारा इतिहास ।
उनकी कुरबानी खसबो से ;
भरे धरती आकास ।
वैं मसाल कुरबानी की , राह; हमंे द्यखावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
कदे न ब्यरथा जा कुरबानी ;
आख्यर मँह् रंग ल्यावै ।
मरै बाड़्य -मूस्सी नांह् जिस पै ;
स्याल नै सेर बणावै ।
ललक उठै म्हारै भी, उनसा; हम पद पावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
बोल ’बंसती चोले’ के जो ;
कुछ्य याद्य द्युवावैं हे ।
जग्या रहै कुरबानी जजबा ;
हम भूल्य न जावैं हे ।
दे कुरबानी माँ हित, औरां; नै भी जगावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
परम धरम माँ भौं हित मरणा ;
हम नहीं भुलावैं हे ।
सांसां मँह् हो ’वंदे मातरम्’ ;
हम या हे चाह्वैं हे ।
बंधू, नारा ’इनकलाब’ हम; गगन चढावैं हे ।
हँस्य- ख्यल नाच्चैं अमग भरैं मन ; हम हरसावैं हे ।
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पढण-ल्यखण के चाह् मँह् मन्नै; रात्य नींद नांह् आई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई।
परचार सुण्या हम नै री मँा;
स्यक्सा का अधिकार म्यल्या ।
मुफत पढाई म्यलै वजीफा ;
दीक्खै आग्गा मनै ख्यल्या ।
जल़्या दीप सा भीत्यर, अॅंटज्या ; जणु अंधेरी खाई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
कीड़्यां आल़ी जून्य छूटज्या;
रैह्ण -सैह्ण का रंग आज्या ।
खाण-पीण , ओढण -पैह्रण, अर;
बात-चीत का ढंग आज्या ।
आज्या घर मँह् ग्यान -गंग फिर ; म्यटै मैल की काई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
काल़ा अक्सर म्हैस बराबर्य ;
रहैं न ऊंट उभाणे ।
समझै म्हैस बीन का लैह्रा ;
हो ज्यांगे हम स्याणे ।
ल्याणे नए सबेरे न्यत, हो ; द्यन-द्यन कला सवाई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
पढ्य- ल्यख कै गुणवान बणै हम ;
जनम सफल करज्यांगे ।
करै तरक्की भारत, इसनै जग-
नकसे मँह् भरज्यांगे ।
त्यरज्यांगे ना खे ब्यद्दा की ; स्याणे खेवट नांई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
नए बखत्य की नई मांग सै ;
बदली बात पराणी ।
अणपढ माणस नहीं रहै को ;
बदलै स्यकल डराणी ।
ब्यराणी अकल न बरतै, इब; नई चेतना आई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
अंधे ब्यसवासां मँह् री माँ;
वजन नहीं इक तोल़ा ।
इनते हुई बुराइयां तै, सै ;
माँ का मैला चोल़ा ।
चैधं टूट्यज्या ज्ञान-बाढ मँह् ; म्यटै अंधेरी राह्ई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
तेली आल़े बैल बराबर्य ;
अपढ आदमी होवै ।
आँख्य म्यची मँह् द्यन भर बोझा ;
पाट्य -जुलम का ढोवै ।
सोवै , पैह्र जागदे, बंधू; होवै भेड मुंडाई ।
नाम ल्यखा भरती करवा री ; मनै मंदरसै माई ।
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37. अणबोले दानी |
38. पेड की आतमकथा |
39. इनै जोड्या कब ? |
40. चाट्टैं चून त्यरा कुत्ते |
सोभा नांह् दे कैह्णी खुद्य की ; बात बडाई आल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
मुहँ मियां मिठ्ठू बणने आल़ा ;
कदे नहीं यस पांदा ।
जाणैं सैं हम कहंे ब्यना , पर ;
रय्हा नै हम पै जांदा ।
भर्या सुआरथ मँह् माणस यू ;
न्यपट हुया सै आंधा ।
आया करले कदे किसे का ;
कोन्या इसनै भांदा ।
जाड़ भींच जल्लाद चढै यू; मारै चोट कुढाल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
हम अणबोल, निरीह् निहत्थे;
इसका ह्यलै हिया नांह् ।
पाक्कण नांह् दे, काट्टै काच्चे ;
इस मँह् जमा दया नांह् ।
कितणा दें हम नुगरे नै, पर ;
टस-मस कदे हुया नांह् ।
ह्यंसा के हो, ओ के जाणै ?
जिसनै जुलम सय्हा नांह् ।
कथणी मँह् हमदरदी इसकी ; पर करणी चंढाल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
सच्चे सेवक निसकामी हम;
कोन्या मैं के मारे ।
त्यागी त्याग्गैं त्याग नहीं, हम;
दानबीर सैं न्यारे ।
दयासील ह्यतकारी सैं हम ;
ह्यत करते नांह् ह्ारे ।
जीणा स्यखलावैं उपदेसक ;
भार गुरू का ठाह्रे ।
राक्खैं नांह् कुछ्य सब सौपैं , जड़ ; पत्ते, डाह्ले,़ डाह्ल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
तन ढाँपैं हम उदर भरैं, दें ;
कोठठी, मैहल, दुवारे।
चैपाया नै सरण पखेरू ;
म्हारे रहैं चुबारे ।
दवा, जड़ी -बूटी, संज्यूणी ;
खटरस मीठ्ठे खारे ।
बंधू, धरती स्यंगारैं हम ;
इस कुदरत के प्यारे ।
माँ -आँचल सी ठंडी छांह् मँह् ; जी ज्यां हाल़ी-पाल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
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सोभा नांह् दे कैह्णी खुद्य की , बात बडाई आल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
हम सिव, पी ब्यस उमरत बांडैं;
जीवन दान करैं सैं ।
बरसा ल्यावैं बादल के जल;
अमरत धार झरैं सैं ।
रोक बाढ की परल़ो , सब के ;
स्यर पै हाथ धरैं सैं।
भूमी नही कटणद्यैं, बलके;
ताकत और भरैं सैं ।
मैह्क बखेरैं ख्यला फूल , च्यत ,परसन करणे आल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
वातावरण नै सुध करैं हम;
तन-मन की सुद्धी भारी ।
ताजा रहै द्यमाग, हवा की;
बांस हटावै सारी ।
तपत्य बुझावैं, भूख म्यटावै;
ह्यत मँह् ब्यरती म्हारी ।
फल़-मेवे तै इंधण तक की ;
कोन्य रहै लाचारी ।
माणस को कुदर्यत की हम सैं; भौं पर भेंट न्यराल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
हम रूक्खां नै इस माणस का;
जीणा सरल बणाया ।
भाँत्य -भाँत्य के रंग दे-दे कै;
भौं पै सुरग सजाया ।
अणगिणती के तोफे दे ंहम;
कलप करैं जो काया ।
हम ब्यन जीवन किसा ? इनै नांह्;
यू अंदाजा लाया ।
जी सा आज्या देख-देख कै; बनस्पती- हरियाली ।
ऐसा करणा करणी हो सै ; छवी आपणी काल़ी ।
जो जीवां के ह्यत नांह् जीवै ;
उसका के जीणा सै ।
हँस्य कै घूंटै दूज्यां के नां;
जै ब्यस भी पीणा सैं ।
खा की खा ज्या , लात मार्यज्या;
उसका के धीणा सै ।
एक पेड भी लगै न ,नुगरा;
यू माणस हीणा सै ।
बंधू, नुगरी ब्यरती माणस; की सै देक्खी भाल़ी ।
ऐसा करणा करणी हो सै; छवी आपणी काल़ी ।
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भला करैं सैं वंै हें जिनकी ; भला करणी बाण्य सै।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं ; उन मँंह् नांह् तरसाण्य सै ।
ओले़ आंधी मींह् नै सैह्कै ;
कांड्यां मँह् न्यू का न्यू रैह्कै ।
मैह्क बखेरै कण-कण मैह्कै;
सुथरी स्यान देख मन चैह्कै ।
बैह्कै नांह् यू नेम्मी , बेस्सक ; ब्होतै पड़ै ताण सै ।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं ;उन मँह् नांह् तरसाण्य सै ।
किते किसे झाड़ी मँह् चुपके ;
एक फूल कोणे मँेह् दुबके ।
मस्त पवन मँह् हिलै झूमकै;
इतरा -इतरा लावै ठुमके ।
छुमके छम-छम लावै, इसनै; आंनद की जाण्य सै ।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं ; उन मँह् नांह् तरसाण्य सै ।
राग-जल़ण तै सदा परै सै;
द्योत्यां के स्यर - पग ब्यखरै सै।
कदे न अपणा मोल धरै सै;
पर -सुख - ह्यत मँह् सदा मरै सै ।
करै सै नहीं उम्हान, इसनै ; अभिमान की आण्य सै ।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं ; उन मँह् नंाह् तरसाण्य सै ।
तितली, भौंरे रस लेवैं जब;
नही उजर - ब्यरोध करै तब।
खुसी-खुसी अपणा दे दे सब ;
अपणे लिए इनै जोड़या कब ।
ढब इसका सब गेल्ल़ी , जाणै; दान मँह् ना हाण्य सै ।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं ; उन मँह् नांह् तरसाण्य सै ।
हाँंस्यां जा जिस तरफ लखावै ;
थोडे़ द्यन जी कै मर्य ज्यावै।
पर, जीवन का अरथ बतावै ;
बंधू,मूढ समझ ना पावै ।
भावै इसा अरथ नांह् मन्नैं; संसार की काण्य सै ।
कर्य संतोस म्यटैं पर ह्यत वैं , उन मँह् नांह् तरसाण्य सै ।
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सैहन सील भौं तै भी ज्यादा, बडा गगन तै द्यल तेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या, कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या ।
आंधा हो कै पीस्सै सै तूं ;
चाट्टैं चून त्यरा कुत्ते ।
चुटकी तक नांह् बचै चूह्ल्य मंॅँह् ;
बाल़क भूखे के भूखे ।
उक्खल मंँह् रैह् स्यर तेरा ,के;
मूस्सल़ वार कदे दुक्खे ?
जणु सुन सै पत्थर होग्या, रैह् ;
मारें छात्ती मँह् मूक्के ।
आंधी-ओल़्यां मँंह् हो बौल़ा ; टोह्वै सै नया सबेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
धूप जेठ की पोह् -पाल़े का;
लाग्गै नांह् अनुमान तनै ।
भूख- प्यास अर भरे पेट का;
कदे रहै नांह् ध्यान तनै ।
झाड़ ,फांस अर डल़े बाह्न के ;
तोसक सभी समान तनै ।
मौज, ऐस-आराम भूलग्या ;
नांह् काढे अरमान तनै ।
द्यन ल्यकड़ण अर छ्यपणे का भी; कोन्य पटै तन्ने बेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
बेस्सक बैल बण्या कोह्लू का ;
उसै पैड़ का अभ्यासी ।
पर सफेद ह्यरी क्रान्ती ल्याकै ;
दुनिया की ली स्याबासी ।
तात्ती धरले नांह् सील़ी कर्य;
ख्यास काम की रैह खास्सी ।
रीड देस की बण्या हुया तूं ;
सै स्योने की अठमास्सी ।
करमबीर तूं सै सन्यासी; रैहता जंगल़ मॅँह् डेरा।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
त्यरी अपढता ले बेठै तूं ;
सोच्चै सै बात जरा सी ।
करता त्यार मकदमा झट ,कैह; बेस्सक आज्याऊं फांसी ।
सोल़ा दूणी आठ बता कै;
करते लोग त्यरी हाँसी ।
टेम नबज पहचान बावल़े ;
क्यूं होग्या सत्यानासी ।
बंधू, कर पहचान कूण सै; दुसमन सोई तेरा ।
काच्ची पीज्या बोल्लै कोन्या; कितणा बडा ज्यगर लेह्र्या।
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जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
सौजन्य: प्रोफेसर राजेन्द्र गौतम
सम्पादन: न्य्डाणा हाइट्स |
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