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कला व् जीवन
 
जाट की देन
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!!!......स्वच्छ, प्रगतिशील कला और जीवन पर ही स्वच्छ लक्षण व् सभ्यता का निर्माण होता है| यह सूत्र ही समाज को जीवंत व् संवेदनशील बनाता है|......!!!
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प्राचीन भारत को जाट/जट्ट की देन

सिंधु सभ्यता में पाटरी काली-सफेद लकीरों की गेरूएं रंग की होती थी| खुदाई आभूषण व् चूड़ी बहुत ज्यादा मिली और यही कल्चर जाट में आज भी है| जाटणी आभूषण मांगने के गीत गाती हैं| उत्तरी सिंध, दक्षिणी पंजाब, उत्तरी राजपुताना व् हरियाणा (आज का हरियाणा, दिल्ली व् पश्चिमी उत्तरप्रदेश) जाट का केंद्र बिंदु रहे हैं|













जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर




लेखक: डॉक्टर संतोष दहिया

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 09/05/2014

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

साझा-कीजिये
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९