परिचय
 
खाप
 
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!!!......इस वेबसाइट पर जहाँ-कहीं भी "हरियाणा" शब्द चर्चित हुआ है वह आज के आधुनिक हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान को इंगित करता है| क्योंकि प्राचीन व् वास्तविक हरियाणा इसी सारे क्षेत्र को मिला कर बनता है, जिसके कि १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद इस क्षेत्र को सजा स्वरूप व् खुद के व्यापारिक व् राजनैतिक हितों हेतु अंग्रेजों ने टुकड़े करके सीमन्तीय रियासतों में मिला दिए थे|........!!!
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गठ्वाला खाप

गाँव का खाप संबंधन:


खापलैंड (मीडिया द्वारा हरियाणा और पड़ोसी राज्यों के लिए समानांतर संबोधन नाम) के किसी अन्य समकक्ष गाँव की भांति निडाना गाँव की भी अपनी खाप है| गठ्वाला खाप गाँव का सबसे बड़ा पुण्य सामाजिक तख़्त है जो कि भारत की भी सबसे बड़ी खाप कहलाती है| खाप की स्थापना हमारे पूजनीय पूर्वज स्वर्गीय दादा घासी राम मलिक ने सोनीपत जिले के अंतर्गत आज के दिन के "उल्हाना" गाँव में की थी| खाप का इतिहास अनेकों वीर गाथाओं एवं सामाजिक उन्मूलनों से भरा पड़ा है| महान जाट महाराजा हर्षवर्धन (जिनके साथ देश की भिन्न-भिन्न खापें कई गौरवपूर्ण विजयों एवं आंदोलनों की साक्षी रही हैं) के युग से ले के आजतक खाप अपने अनुयायियों से उचित सम्मान एवं आदर पाती है| आज के दिन गठ्वाला खाप के अनुमानित १० लाख से भी ज्यादा वंशज हैं जो कि उत्तर-प्रदेश के मेरठ-सहारनपुर-शामली-अलीगढ-गाज़ियाबाद, हरियाणा के करनाल-कैथल-पानीपत-सोनीपत-रोहतक-जींद-हिसार और दिल्ली, पंजाब एवं राजस्थान के कई जिलों में बसे हुए हैं|

गठ्वाला खाप और कलानौर रियासत का विध्वंस: मुगलों के काल में उस समय के शासकों द्वारा हिन्दू एवं सिख जातियों पर एक "कौला पूजन" का मनचाहा कानून लादा था जिसके तहत हिन्दू एवं सिख की सभी जातियों की हर नव-विवाहित दुल्हन को पहली बार ससुराल जाने से पहले कलानौर (कलानौर शहर रोहतक जिले में रोहतक-भिवानी मार्ग पर बसा हुआ है) में कौला पूजन करना अनिवार्य कर रखा था| उनके इस कदम ने गठ्वाला खाप को उग्र एवं उद्वेलित कर दिया, नतीजतन खाप ने अपनी समकक्ष खापों से विचार-विमर्श कर कलानौर रियासत को विध्वंस करने का निर्णय लिया और कलानौर रियासत पर चढाई कर दी| हमला इतना जबरदस्त था की खापों के गुस्से के आगे कलानौर रियासत को विध्वंश होते ज्यादा देर ना लगी और इस तरह समाज के धार्मिक ढाँचे में दखल देने वाली ताकत के भय और अत्याचार से समाज को मुक्ति मिली| ये माना जाता है की जो कार्य उस समय उत्तर-पूर्वी पंजाब में महान सिख योद्धा रात के १२ बजे गुर्रिल्ला हमलों के जरिये किया करते थे वही कार्य खापलैंड की खापें दिन-दहाड़े किया करती थी, और कलानौर रियासत का पतन उसी कड़ी की एक मिसाल है| इसी गौरवपूर्ण इतिहास, पवित्र मंशाओं और सामाजिक उत्थान एवं समर्पण भरी वीर गाथाओं की वजह से आज भी निडाना गाँव के वंसज अपनी खाप को सर्वोच्च सामाजिक स्थान एवं सम्मान देते हैं| और इसी वजह से गाँव आज भी खाप के हर निर्णय (जो की सदा समाज के कल्याण, सुरक्षा, उत्थान, एकता और सहिशुणता के लिए होते हैं) को प्राथमिकता से अपनाता है|



गठ्वाला खाप के मुख्य तथ्य:

  1. खाप-वंशजों के अंतर-ग्रामीण सामाजिक मतभेदों को सुलझाना|

  2. एक ही गाँव या समाज के ऐसे गंभीर मुद्दे जिनकी कलह से गाँव या समाज के उजड़ने या बँटने तक की नौबत आ जाए तो खाप बुलावे पर आकर मुद्दे को सुलझाने के रास्ते निकाल मामलों को शांत करवाती है (ताजा उदाहरण 19 फरवरी से 12 मार्च 2012 तक चला जाट-आरक्षण मुद्दा, जिसमें खापों को मध्यस्ता करनी पड़ी ताकि अनुमान के विपरीत लम्बे हो चले आन्दोलन से समाज के दूसरे घटकों को हो रही परेशानी लम्बी और असहनीय ना हो चले, हालाँकि आन्दोलनकारी बड़े उग्र थे पर अंततः मामले को आगे करवा दिया गया)|

  3. सामाजिक रूदिवादिता और दिखावे (जैसे दहेज़, पैसे का फिजूल दिखावा, महिला अत्याचार) के शिकार हुए पीड़ितों को न्यायोचित हक़ दिलवाना|

  4. अपने वंशजों को ब्याह-शादियों, मृत्यु-भोजों जैसी परम्पराओं पर कम खर्च के लिए सुझाव करना ताकि समाज में छोटे-बड़े की खाई पाटी जा सके|

  5. ऐसे सामाजिक कार्यों को प्रोत्साहित करना, जिससे समाज की एकता और कल्याण को मजबूती मिले|

गठ्वाला खाप कभी नहीं देखी: खाप के प्रकाश में कभी भी कैसा ही सामाजिक मुद्दा लाया गया हो, खाप को ना ही तो किसी को मौत का फरमान सुनाते हुए और ना ही किसी को आदेशित करते हुए सुना गया| खाप सिर्फ सामाजिक हित में निर्देश जरूर देती है|

क्या निडाना में प्रेम-विवाह स्वीकार्य हैं: हालाँकि यह एक व्यक्तिगत मुद्दा है और इसकी स्वीकार्यता प्यार करने वालों के दोनों पक्षों के परिवारों एवं रिश्तेदारों की समझ पे निर्भर करती है परन्तु जब बात सामाजिक तौर पर आती है तो हाँ निडाना में प्रेम-विवाह संभव है अगर प्यार करने वाले सतहीय सामाजिक मान्यताओं (यही हमारी खाप की भी मान्यताएं हैं) को ध्यान में रख कर करें तो| ये मान्यताएं दो प्रकार की हो सकती हैं:

अंतर निडाना वैवाहिक मानदंड:

  1. गाँव की हर धर्म-जात की प्रत्येक लड़की गाँव के हर लड़के की बहन, माता-पिता की पीढ़ी के लिए बेटी-भतीजी,दादा-दादी की पीढ़ी के लिए पोती मानी गई है इसीलिए निडाना में गाँव की गाँव में शादी नहीं होती|

  2. निडाना की सीमा से सटे पड़ोसी गाँव में भी सामाजिक मान्यताओं के आधार पर शादी वर्जित मानी गई है फिर चाहे लकड़े-लड़की का धर्म-जाति-गोत्र सब अलग-अलग क्यूँ ना हों| इसीलिए ढिगाना, भैरों-खेड़ा, लुदाना, ललित-खेड़ा, चाबरी, खरक-रामजी, सिंधवी-खेड़ा,निडानी-पडाना-शामलो और रामकली गाँवों में निडाना के लड़का-लड़की की शादी नहीं होती|

  3. पिता यानि स्वयंम का, माता और अगर दादी जिन्दा हैं तो उनका, निडाना में शादी तय करते वक़्त इन तीन गोत्रों को छोड़ा जाता है| गाँव में बसने वाली सभी हिन्दू जातियाँ अपने-अपने यहाँ इस नियम का अनुसरण करती हैं|

बाह्य निडाना वैवाहिक मानदंड: गाँव में धर्म और जाति से बाहर विवाह अनुमित है परन्तु यहाँ फिर से कहना जरूरी होगा की इसकी स्वीकृति का स्तर परिवार और रिश्तेदारों पर निर्भर करता है|

कृपया ध्यान दें: ऊपरलिखित मानदंड, गाँव की सभ्यता-संस्कृति को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से गाँव की ही सामूहिक-सामाजिक विचारधारा व् मान्यताओं के आधार पर लिखी गई हैं| अतः आपसे निवेदन है कि अगर आप प्रेम-विवाह या किसी के साथ बिना-विवाह रहने का निर्णय लेते हैं तो अपने परिवार और आपके इस कदम से परभावित हो सकने वाले रिश्तेदारों के संज्ञान में ही लें| कृपया इस लेख या वेबसाइट को किसी भी ऐसे उद्देश्य के लिए प्रमाण ना बनाएं|


ओनर किलिंग की हठधर्मिता: अधिकांश प्रेमी-जोड़ों को मारने या निकाला देने के फैसले व्यक्तिगत स्वार्थ के लालच और बदले की भावना के चलते लिए जाते हैं| और ये अधिकांशतः पारिवारिक या सम्बंधित पारिवारिक समूहों से सम्बंधित होते हैं| उदाहरणत: अगर आप पांच भाई हो और आप एक इकलौती या दो लड़की या लड़कों के पिता हैं मतलब अगर बाहुबल में आपका परिवार कमजोर है तो आपके भाई या चचेरे रिश्तेदार ही आपकी धन-दौलत को कब्जाने की मंशा रखने लगते हैं (हालाँकि ऐसे हादसे बहुत ही कम होते हैं अन्यथा भाईचारा ही हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत है)| और इसपे कल अगर आपका बेटा या बेटी अपनी मर्जी से या कहो कि प्रेम विवाह करना चाहे तो, ये निर्णय आपकी धन-दौलत पे गिद्धों जैसी ताक लगाए बैठे रिश्तेदारों को झूठे-मनघडंत सामाजिक आदर्श बना उनका हवाला दे आपको आपकी संपत्ति से दूर करने का मार्ग सूझते हैं| वो अपनी ही पसंद के कुछ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे इकट्ठे कर अपने आपको आत्म-शैली की सामाजिक पंचायत बैठा आपके बेटे या बेटी को निकाला सुना देते हैं ताकि बाद में आपकी संपत्ति हड़प सकें| इसलिए मेरा मानना है कि जब आप इस जमीनी-सच्चाई को जानेंगे तो पाएंगे कि इन कुकृत्यों के पीछे ऐसे ही स्वार्थी समूह होते हैं ना कि खाप पंचायतें (कम से कम गठ्वाला खाप को मैंने ऐसे किसी निर्णय में सम्मिलित होते ना देखा ना सुना)| अगर ऊपरी तौर पर कहा जाए तो ये घटनाएं सिर्फ "सदा रही हैं सदा रहेंगी झगड़े की जड़ तीन - जर, जोरू और जमीन" कहावत के तहत होती हैं यानी कि युगों-युगों से और युगों-युगों तक पारिवारिक (यहाँ तक कि राजनैतिक स्तर पर कई एतिहासिक युद्धों जैसे फ्रांस के ट्रॉय का युद्ध और ऐसी कई पौराणिक महक्व्यों के पीछे भी) झगड़ों और कलहों के पीछे ये तीन कारण बताये गए हैं (यह कहावत जगह और परिवेश के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है परन्तु क्योंकि मेरे गाँव और खासकर पूरे भारत में हमारा समाज पुरुष-प्रधान माना जाता है इसीलिए इस कहावत में जर-जोरू-जमीन कहे गए हैं)| अंततः कहना बेकार होगा कि शादी, ब्याह और जमीन जैसे मसले जब तक इन पानी के बुलबुलों की तरह अकस्मात पैदा होने वाले झूठे सामाजिक ठेकदारों के हाथों में ना पड़ें तो व्यक्तिगत ही रहते हैं| इसलिए हर उस स्वार्थी और अकस्मात संपत्ति हड़पने के उद्देश्य से पल भर के लिए उभर आने वाली मन-घडंत पंचायतों को "खाप पंचायत" नहीं कहा जा सकता और ना ही कहना उचित हो सकता|

खाप इसके वंशजों और अनुयायिओं के लिए इतना ही पवित्र दर्श है जितना कि एक सिख के लिए अकाल तख़्त, एक हिन्दू के लिए हर की पौड़ी, एक यहूदी के लिए जेरुसलम, एक इसाई के लिए चर्च और एक मुस्लिम के लिए मक्का-मदीना| इसके साथ-साथ यहाँ पर यह बताना भी जरूरी बन जाता है कि ऊपर की तुलना से खाप को एक अलग धर्म ना समझ लिया जाए बल्कि खाप, हिन्दू धर्म के अंतर्गत एक सामाजिक विचारधारा का समूह है वैसे ही जैसे अन्य हिन्दू सामाजिक समूह हैं|


Self-Styled (स्वयंभू) - एक दो-धारी विचारधारा: यह समझना बहुत जरूरी है कि जब बात स्वयं-निर्धारितता पे आती है तो उसका मतलब स्वयं-निर्धारित ही समझा जाए ना कि सामूहिक, अन्यथा किसी का ऐसा मिथ्या-प्रचार हर इस या उस कोण से तोड़-मरोड़ कर देखा जा सकता है और ऐसे मिथ्या-प्रचार करने वाले के धर्म या सामाजिक मान्यता को भी ऐसे ही प्रश्नों में घेर सकता है| कहने का मतलब ये है कि या तो मेरी खापों को हर ऐरे-गैरे सामाजिक अपराध में घसीटने की बजाय ऊन स्वयं-निर्धारित निचले स्तर के समूहों जिनका की उदाहरण ऊपर दिया है को घसीटो या मुझे ऐसा समाज बताओ जो इन अपराधों से मुक्त हो! वास्तिवकता तो ये है कि ना तो विश्व स्तर पर, और भारत के लिए तो ना रास्ट्रीय स्तर पर और ना ही राज्य स्तर पर ऐसा कोई समाज है जिसमें किसी धर्म या सामाजिक विचारधारा को सर्वमान्य मान्यता हासिल हो या स्वयं-निर्धारित हो| इसलिए या तो कुछ भी स्वयं-निर्धारित नहीं है अन्यथा सब कुछ ही स्वयं-निर्धारित है|

जिनको ग्रामीण आँचल की सामाजिक पंचायतों की आधी-अधूरी जानकारी है, उनको पहले इन पंचायतों की सही सरंचना और कार्यशैली की जानकारी होना जरूरी हो जाता है| इस महत्ता को गौरे-नजर रखते हुए "पंचायत" पृष्ठ पर निडाना गाँव को एक उदारहण रखते हुए इन सभी पंचायतों की संरचना और व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है|



गठवाळा खाप की चौधर:

गठ्वाला खप के वर्तमान अध्यक्ष महामान्य दादा बलजीत सिंह मलिक हैं| खाप की गद्दी सोनीपत जिले के "उल्हाणा" गाँव में और मुख्य दर्श समारक "मलिक भवन" गोहाना में है| खाप की स्थापना और पूर्ण इतिहास पर एक विस्तृत गाथा और वंश धारा को जल्दी ही यहाँ डाला जायेगा|

महामान्य दादा घासी राम जी की जन्म-जयंती: हर साल की तरह इस साल भी दादा जी की जन्म-जयंती १९ फरवरी को मनाई गई| इस मौके पर गठ्वाला खाप की गण्यमान्य हस्तियों ने साथ मिलकर उनको श्रद्धा-सुमन अर्पित किये|

गठ्वाला खाप सर्व-साधारण संस्था है: भूतकाल से ही खाप की समिति खाप में मुख्य सदस्यों को कड़े-मानदंडो के आधार पर परख कर जरूरी बदलाव करती आई है, जैसे कि अगर कोई किसी मुद्दे पर गलत निर्णय या समाज और समुदाय की भलाई और शांति के खिलाफ कार्य करता है तो उसको समिति से हटा नए विस्वसनीय सदस्यों को मनोनीत किया जाता है| खाप की वर्तमान विस्तृत कार्य-प्रणाली पर जल्द ही जानकारी एकत्र कर यहाँ डाला जायेगा |

विशेष: इस अध्याय में प्रकाशित की गई जानकारी गठ्वाला खाप के शौर्यशाली इतिहास और गौरवपूर्ण सामाजिक योगदान पर प्रकाश डालने हेतु हैं, जो किसी व्यक्ति-विशेष या समूह की विचार-धारा से भिन्न हो सकती है| परन्तु हमारा परम-उद्देश्य खाप की ऐतिहासिक महानता और वर्तमान में इसकी महत्ता को आपके सम्मुख रखना है और हमारी यह कोशिश तब तक जारी रहेगी जब तक कि इसको परिपूर्णता तक न पहुंचा दें|
बाएं से दूसरे श्री जितेंदर मलिक, पूर्व एम. पी. सोनीपत, बाएं से तीसरे वर्तमान खाप प्रधान दादा बलजीत सिंह जी (सफेद पगड़ी में), बाएं से चौथे श्री धर्मपाल मलिक पूर्व एम. पी. सोनीपत व् मंत्री, एकदम दायें श्री कुलबीर मलिक पूर्व मंत्री-स्पीकर हरयाणा सरकार, बीच में रखी दादा जी की प्रतिमा को पुष्प भेंट करते हुए|


सर्वखाप के बारे संक्षेप:


यहाँ पर ऐसी ऐतिहासिक तारीखों के बारे में बताया गया है जो सर्व-खापों के नाम और गौरव को सार्थक और साबित करती हैं:

  1. सन १३९८ AD में तिमूर पर सर्व-खाप का आक्रमण हुआ जिसको जोगराज सिंह गुजर, (जो कि सहारनपुर के बड़े जमींदार थे) सर्व-खाप सेना के सेनापति की अगुवाई में लड़ा गया और तिमूर को मुहं की खानी पड़ी|

  2. मुहम्मद गौरी के खिलाफ बारहवीं शताब्दी में लड़ी गई तरावडी की लड़ाई|

  3. तेरहवीं सदी में भारी करों से मुक्ति पाने और निजी-समाज के मामलों में राज के दखल के तिरस्कार हेतु हिंडन और काली नदी के संगम पर अल-उ-दीन-खिलजी के खिलाफ खापों की लड़ाई|

  4. ५६४ विक्रमी सवंत हूणों के खिलाफ मुल्तान (आज पाकिस्तान में) में लड़ी गई लड़ाई|

  5. १७६१ की पानीपत की तीसरी लड़ाई की हार के बाद सदाशिवराव भाऊ (जिसने कि शुरू में इसी लड़ाई को जाट और मराठा सेना के एक साथ लड़ने के प्रस्ताव को नजरअंदाज कर दिया था), ने सांघी गाँव में खाप की छत्रछाया में शरण ली| भाऊ की पूरी घायल सेना को खाप-लैंड के हर गाँव-घर से खुले दिल से चिकित्सा और भोजन सहायता मिली, जिसने भारत की दो योद्धा-जातियों में भाई-चारे की अमिट स्थापना की| यह भाईचारा मुगलों से अपने रिश्ते खराब करने की कीमत पर बनाया गया था|

  6. गठ्वाला खाप के नेतृत्व में हिन्दू धर्म की मान और प्रतिष्ठा की रक्षा हेतु कलानौर रियासत का पतन, जिसके बारे में आपने ऊपर भी पढ़ा|

  7. कुतुबुदीन ने 1206 से 1210 तक दिल्ली पर शासन किया, लेकिन इस अवधि में जाटों ने कभी उसे चैन से नहीं बैठने दिया। दिपालपुर रियासत के राजा जाटवान (मलिक गठवाला गोत्री जाट) ने ऐबक को पूरे तीन साल तक नचाये रखा, जब तक वह महान् जाट योद्धा लड़ाई में शहीद नहीं हो गये। जाटों की सर्वखाप पंचायत की सेना ने ऐबक की सेना को वीर योद्धा विजय राव ‘बालियान’ की अगवाई में उत्तर प्रदेश के भाजु और भनेड़ा के जंगलों में पछाड़ा, दूसरी बार वीर यौद्धा भीमदेव राठी की कमान में बड़ौत के मैदान में पीटा, तीसरी बार वीर यौद्धा हरिराय राणा की कमान में दिल्ली के पास टीकरी में भागने के लिए मजबूर किया।

खापों का तारीख-दर-तारीख इतिहास: खाप एक ऐसी पंचायत का नाम है जो एक ही गोत्र में होने वाले विवाद का निपटारा करती हैं। राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इस तरह की खाप अस्तित्व में हैं। खाप यानी किसी भी जाति के अलग-अलग गोत्र की अलग-अलग पंचायतें। खाप पंचायतों का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। इस समय देश भर में लगभग 465 खापें हैं। जिनमें हरियाणा में लगभग 68- 69 खाप और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में करीब 30-32 खाप अपने पुराने रूप में संचालित हैं।

सबसे पहले महाराजा हर्षवर्धन के काल (सन् 643) में खाप का वर्णन मिलता है। इसके अलावा जानकारी मिलती है कि 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने सर्वखाप पंचायत के अस्तित्व को मान देते हुए सोरम गाँव के चौधरी को सम्मान स्वरूप एक रुपया और 125 रुपए पगड़ी के ‍लिए दिया था।

विभिन्न मतानुसार 1199 में पहली सर्वखाप पंचायत टीकरी मेरठ में हुई थी। 1248 में दूसरी खाप पंचायत नसीरूद्दीन शाह के विरूद्ध की गई थी। 1255 में भोकरहेडी में, 1266 में सोरम में, 1297 में शिकारपुर में, 1490 में बडौत में और इसके बाद 1517 में बावली में सबसे बड़ी पंचायत हुई। आरंभ में सर्वखाप पंचायतों का आयोजन विदेशी आक्रमण से निपटने के लिए होता रहा। जब भी आक्रमण हुए सर्वखाप ने उनके विरुद्ध राजा-रजवाड़ों की मदद की।

स्वतंत्रता के पश्चात सर्वखाप पंचायतों का स्वरूप बदला और एक सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत 8 मार्च 1950 को सोरम में आयोजित हुई। तीन दिन तक चली इस पंचायत में पूरे देश की सर्वखाप पंचायतों के मुखियाओं ने भाग लिया। इस पंचायत के बाद दूसरी सबसे बड़ी सर्वखाप पंचायत 19 अक्टूबर 1956 को सोरम में ही आयोजित हुई थी।

खाप पंचायतें विवादों के निपटारे तो करती ही थी लेकिन इनकी अपनी एक विशिष्ट परंपरा भी होती थी। पंचायतों के मुखिया जब इनमें शामिल होते तो किसी सामान्य सम्मेलन की तरह नह‍ीं बल्कि परंपरागत अस्त्र-शस्त्र और अखाड़ों के साथ। इन अखाड़ों में मुख्य रूप में कुरूक्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर, बदायु, मेरठ, मथुरा, दिल्ली, रोहतक, सिसौली, शुक्रताल आदि शामिल है। परंपरागत शस्त्रों में मुख्य रूप से कटारी, तीरकमान, ढाल, तलवार, फरसा, बरछी, बन्दूक और भाला आदि हुआ करते थे। बाजों में ढपली, ढोल, तासे, रणसिंघा, तुरही और शंख हुआ करते थे जिसमें रणसिंघा और तुरही आज भी पंचायत के समय बजाई जाती है। आरंभिक दौर में खापों ने अँग्रेज शासन के विरुद्ध बादशाहों की मदद की। बाहरी आक्रमण से पिटने में अपनी ताकत दिखाई


वर्तमान में खापों द्वारा सामाजिक हित के कदम: १२०० सालों से भी पुराना इतिहास समाज में खापों की वैधता और अस्तित्व का सबसे बड़ा तथ्य है| खापें उत्तरी भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा अभियान, सदियों में हुए भिन्न-भिन्न सामाजिक सुधारों और कृषक आन्दोलनों की ध्वजवाहक रहीं हैं| गत वर्षों में भी खापों ने अपनी सामाजिक विचारधारा के अनुरूप बहुत से अच्छे कार्य किये हैं, उनमें से कुछ आप यहाँ से पढ़ सकते हैं:

  1. अब ‘लाडो’ के संदेश से शुरू होगी पंचायतों की कार्रवाई

  2. खाप-पंचायतों के सामाजिक हित के निर्णयों के उदहारण

  3. कन्या-भ्रूण हत्या पर महिलाओं की सभा का पालन करें - खापें

  4. खापों ने कन्या-भ्रूण हत्या को कत्ल ठहराया - १४ जुलाई २०१२ का ऐतिहासिक दिन

  5. कन्या-भ्रूण हत्या के खिलाफ महिला-खाप महापंचायत, बीबीपुर-जींद: नगों और सरकारी तौर पर खुली हुई सामाजिक संस्थाएं जो काम पैसे, बिजनेस और रूतबे के लिए करती हैं वो खापों ने एक झटके में कर दिया| क्या कोई टी वी शो या प्रोग्राम वाला सामाजिक हित पे इतनी बड़ा जन-समर्थन जोड़ सन्देश दे सकता है?....शायद ही कोई...और कोई करेगा भी तो पहले पैसे मांगेगा...और यहाँ देखो हर कोई सिर्फ एक बुलावे मात्र पे दौड़ा चला आया....वाह री खापो और महिलाओं!....एक साथ आई तो धमाल मचा दिया....दुनिया के हर कोने में चर्चा है आपका| ये नगों और सामाजिक ट्रस्ट वाले तो भोचक्के रह गए होंगे....कि जिनको वो जिंदगी का ध्येय बना के चलते हैं....रोजगार के नाम पे समाज के ठेकेदार बनते हैं जब खापें और महिलायें मिलके मैदान में आई तो सब धरे के धरे रह गए...इसे कहते हैं सौ सुनार की एक लुहार की| हरिभूमि कवरेज

सत्यमेव जयते का ऑनर किल्लिंग उपाख्यान:



आमिर खान को हर धर्म और सामाजिक संगठन से एक-एक प्रतिनिधि या कम से कम मुख्य धर्मों और सामाजिक समूहों के साथ गोल-मेज चर्चा करनी चाहिए थी:


1. Amir Khan should avoid such critical questions of authoritativeness because in Indian constitution no religious or social entity, body or group is authorized officially or legally.

No religious bodies like Temple, Mosque, Gurudwara, Church etc bear nationwide or even state level official approval. Similarly no social bodies like Akaal-Takht, Fatwa’s delivering bodies from Muslims, any Hindu cloister, Church monastery, Khaps, or any other equivalent entity is approved by Indian constitution. All these are society’s own-defined and believed systems. So Amir asking this question appeared going out of common understanding.

If he would have remained on line of discussing the prime issue of Honor Killing would have made better sense and could spread message of pure discussion rather like in this case it reflected the feel of targetting one particular group.

If he had to do so then he must have round-tabled one religious or social representative from and at least all above mentioned religions and their respective social groups, which could have given a better sense to this episode. But seems and it is seen as if Amir himself fears of his own religious or social bodies asking them such blunt question of authoritativeness.


2. By presenting the example of England, Khap wanted to put a reference that when we follow them in day to day life and fashion, then why not we follow them in their system of law formation for us. All of us know that laws of England are referenced on their local customs and values so similar thing can be borne in India too. But before Khaps could complete their part, Aamir Khan jumped on to another question. Here no body even cared to put a quench and this gave the feeling that show was not fairly judice. It happened knowingly or unknowingly but it happened as Khap representative didn't even get the time to put their part completely.


Analytics: Nidana Heights is against any kind of killing including honor killing and appreciate Amir' show but he should have avoided such straight questions to Khaps, especially when we all know the answer to such question would have been no; even if was asked from any other such entity. So it doesn't make any sense to us. The focus should have remained to topic. Asking the Khaps on what steps, modifications and/or measurements they have been taking or will take further to avoid or get rid of their society from this stigma, would have avoided this particular targetting feel.


Important points to be discussed:

1) This episode clears one thing that Khaps need good debaters with better argument intellect. For this Khaps require to talk directly with their community and representatives.

2) Khap representatives should also understand the strictness of their responsibility and should keep in sense that except Indian law and their own society, they are in no way liable to respond to/on/from any such platform or program. Even then if they want to respond then should prepare themselves before any such event and also make it assured that their points will be clearly listened from end to end.


Note: More and more points will be added with time. Alongside we request you also to help us in enriching this knowledge with your experience and knowledge.


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 27/04/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

  • जाट इतिहास

  • खाप इतिहास

  • रणदीप घणघस

साझा-कीजिये
 
निडाना खेत-कीट पाठशाला

25. जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन



निडानी में संपन हुई २०१३ की खेत-कीट-पाठशाला
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