परिचय
 
इतिहास
 
indexhr-history.html
intro-history.html
!!!......इस वेबसाइट पर जहाँ-कहीं भी "हरियाणा" शब्द चर्चित हुआ है वह आज के आधुनिक हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान को इंगित करता है| क्योंकि प्राचीन व् वास्तविक हरियाणा इसी सारे क्षेत्र को मिला कर बनता है, जिसके कि १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद इस क्षेत्र को सजा स्वरूप व् खुद के व्यापारिक व् राजनैतिक हितों हेतु अंग्रेजों ने टुकड़े करके सीमन्तीय रियासतों में मिला दिए थे|........!!!
आप यहाँ हैं: दहलीज > परिचय > इतिहास > उत्पत्ति
उत्पत्ति
 
निडाना गाँव की उत्पत्ति एवं इतिहास
ना मरया रे सींक-पाथरी, ना मरया रे उल्हाणएं-मदीणए| जा मरया रे बेटा गैभां के न्यडाणे||
(गैभ=जो टिक कर मेहनत से खाते हैं और कोई धोंस जमाने आये तो उसको छटी का दूध याद दिलां दें)


उत्पत्ति:


गाँव की पैतृक जड़ें, रोहतक जिले की महम तहसील के "मोखरा" गाँव की हैं| यह कहा जाता है की गाँव के "दादा नगर खेड़ा" का पत्थर आज से तकरीबन ३०० वर्ष पूर्व रखा गया था| (गाँव की स्थापना की सही तिथि जल्द ही अद्यतन की जाएगी). आज भी मोखरा गाँव में निडाना गाँव के उस समय के पूर्वजों की बस्ती के खंडहर मौजूद हैं|



आज़ादी से पूर्व का इतिहास:


भारत की आजादी से पूर्व, गाँव जींद रियासत के अधीन आता था| निडाना माँ ने समय-समय पर ऐसे वीर योद्धाओं को जन्म दिया है जिन्होंने भारत माँ की पुकार पर विभिन्न क्रांतियों, युद्धों और आंदोलनों में जीत हासिल कर निडाना माँ का नाम रोशन किया है| इसके साथ-साथ जब भी हमारी खाप ने पुकारा और जहां-जहां भेजा, निडाना माँ के योद्धाओं ने अग्रणी भूमिकाएं निभाई हैं| तो जैसा की हरियाणा के गाँवों में एक या कई स्वतंत्रता सेनानी हुए और पाए जाते हैं, निडाना माँ के भी वीर सपूत स्वर्गीय चौधरी दादा संता सिंह मलिक को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिंद सेना का सिपाही होने का अमर गौरव प्राप्त है| हालांकि कि आज आप हमारे बीच नहीं हैं पर आपका देश-प्रेम और नेता जी से लगाव आपके परिधान से झलकता था जिसमे आप अपनी छाती पे हमेशा नेता जी एवं आज़ाद हिंद फौज का प्रतीक चिन्ह लगाए रखते थे (निडाना हाइट्स, आपसे अनुरोध करती है कि निडाना की ऐसी कोई दूसरी सख्सियत आपके ध्यान हो तो हमारे ध्यान में जरूर लायें, हम उनकी कहानी को सविस्तार यहाँ प्रकाशित करेंगे)|


लजवाना ग़दर और निडाना: १८५३ के भयावह अकाल की वजह से जनता भूख से मरने लगी थी और बावजूद इस बात का संज्ञान होते हुए भी उस समय के जींद रियासत के राजा ने लाचार जनता पर कर देने का दबाव डाला (जो कि शायद राजा ने भी विदेशी साशकों के दबाव में ऐसा किया हो)| उनके इस कदम ने जनता के बीच एक अशांति और विद्रोह का काम किया, जिसके चलते सदा से दुश्मन रहे इस ग़दर के दो प्रमुख योद्धाओं को दोस्त बना दिया| जल्द ही इस ग़दर की सारी घटनाएं कि कैसे यह विद्रोह १८५३ से चल के १८६३ तक पहुंचा, कैसे १८५७ तक आते-आते यह विद्रोह अति-उग्र हुआ, १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद क्या बदलाव हुए, वीर योद्धा भूरा और निंगाहिया ने कैसे राजा से विद्रोह का नेतृत्व किया और निडाना गाँव ने इस ग़दर में कैसे और क्या भूमिका निभाई लिखी जाएँगी|


आर्य-समाज और निडाना: १८७५ में स्वामी दयानंद सरस्वती ने जब आर्य समाज की स्थापना की तो उन्होंने बुतों और मूर्तियों की पूजा की भर्त्सना की और पुरजोर विरोध किया| ऐसी ही मानसिकता के हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कृषक और खेतिहर वर्ग को बहुत आकर्षित किया क्योंकि यह समाज भगवान की एकाकृति और हर इंसान की आत्मा में भगवान के होने को मानता है| अत: संयोगवश आर्य समाज को इस क्षेत्र में बहुत बड़ी स्वीकार्यता मिली और यही निडाना में हुआ| और थोड़े से समय में ही निडाना आर्य समाज के सिद्दांतों का सबसे बड़ा पालक केंद्र कहलाया|

यहाँ यह बात बतानी भी दिलचस्प बन जाती है कि निडाना को ढोंगी साधु-संतों ने "सांड छोड़ राख्या सै" कि संज्ञा दे राखी है जिसका मतलब है कि अगर आप भगवान के नाम पे ढोंगी बन झूठे आडंबर घड़ भिक्षा मांगने की फिराक में आते हैं तो आपका जूतों और लठों से भोग लगाया जाता है ताकि आपको मेहनत करके कम के खाने कि महत्वता का आभास हो सके|

यह आर्य समाज का ही प्रभाव ही था कि गाँव ने नब्बे और दो हजार के दशकों में निडाना नगरी ने अपने ही सपूत स्वामी रतनदेव सरस्वती के नेत्रित्व में कई नशाबंदी के आन्दोलन देखे| स्वामी जी ने प्रसिद्ध खरल कन्या गुरुकुल की स्थापना के बाद अपनी जन्मभूमि पर वैदिक और दर्शन-शास्त्र की विद्या का प्रकाश फैलाने हेतु अपने जीवन के आखिरी वर्षों में यहाँ वापिस पर्दार्पण किया| आप इस विषय पर विस्तृत जानकारी हेतु संस्कृति अनुभाग में पढ़ सकते हैं| गाँव आज तक भी भारत के सबसे अग्रणी आर्य समाज अनुयायियों में गिना जाता है|

90 एवं 00 दशक में निडाना माँ के अपने सपूत स्वर्गीय स्वामी रतन देव जी सरस्वती के नेतृत्व में हुए कन्या पाठशाला विस्तारण, शराब-बंदी, धुम्रपान निषेध या आजादी से पहले के शैक्षणिक एंड सामाजिक आन्दोलन रहे हों| इस विषय पर "संस्कृति" पृष्ठ पर विस्तार से पढ़ा जा सकता है| आज भी निडाना गाँव अपने ठेठ आर्य-समाजी विचारधारा के लिए हरियाणा एवं दूर-दूर तक जाना जाता है|



आज़ादी के बाद का इतिहास:


१५ अगस्त १९४७ को भारत की आजादी के बाद, १५ जुलाई १९४८ को तब तक की स्वतंत्र जींद रियासत को पेप्सू (पटियाला एवं पूर्वी पंजाब रियासतों का समूह) में समाहित कर दिया गया और १९५० में औपचारिक रूप से भारत गणराज्य का राज्य बना| आगे चलकर १९५६ में पेप्सू का पंजाब में विलय कर दिया गया और १ नवम्बर १९६६ जब तक कि हरियाणा राज्य बना गाँव उस वक़्त के पंजाब राज्य के संगरूर जिले में रहा| हरियाणा के नव-निर्माण के साथ गाँव जींद जिले के अंतर्गत रखा गया (जींद नए बने हरियाणा के ७ जिलों में से एक था)| गाँव के लोगों में देश-भक्ति और खेलों का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है इसलिए गाँव का युवा राष्ट्रीय सैन्य एंड आन्तरिक सुरक्षा सेवाओं में जाना और देश के लिए खेलों में नाम कमाना सबसे ज्यादा पसंद करता है| देश में आजतक हुई दो हरित-क्रांतियों एवं एक श्वेत क्रांति में गाँव का अग्रणी एवं सराहनीय योगदान रहा है|

आज के गाँव का नौजवान सामान्य शिक्षा के साथ-साथ तकनिकी, खोज एवं आधुनिक प्रबंधन के क्षेत्रों की तरफ भी कदम बढाने लगा है| हाल ही की दिनों में गाँव में सबसे प्रसंशनीय एवं उत्साहवर्धक पहल गाँव की माननीय महिलों द्वारा शुरू की गई खेत-कीट पाठशाला है जो कि न सिर्फ गाँव और आसपास के गाँवों से बल्कि पड़ोसी जिलों और राज्यों से भी ख्याति बटोर रही है| इस विषय पर विस्तार से "कृषि" पृष्ठ पर पढ़ें|


विशेष: हमारी कोशिश है कि गाँव के सब स्वतंत्रता सेनानियों, ऐसे सैनिक जिन्होंने देश के लिए शहीद हुए या जो देश के लिए हुए युद्धों में से किसी में भाग ले चुके हैं चाहे फिर वो किसी भी जाति या धर्म के हों, सबके गौरवपूर्ण किस्सों को इस वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए| इसलिए आपसे निवेदन है कि अगर आप किसी भी ऐसी हस्ती को जानते हैं तो हमें जरूर बताएं|



गाँव की ऐतिहासिक हस्तियाँ:

  1. स्वर्गीय चौधरी नम्बरदार दादा संता सिंह मलिक: आज़ाद हिंद फौज के स्वतन्त्रता सेनानी

  2. स्वर्गीय स्वामी रतन देव: आपने गाँव की कन्या पाठशाला का जीर्णोधार किया

  3. स्वर्गीय रामपाल शास्त्री जी: आप गाँव में लड़कों वाले पुराने विधालय की नींव रखने वाले पुरोधा कहलाये

  4. स्वर्गीय चौधरी दादा जागर सिंह मलिक: गाँव के हुए सबसे बड़े दानवीर

  5. स्वर्गीय दादा चौधरी सैय्या राम मलिक: आपने अकेले अपने साहस पर गाँव पे चढ़ती आ रही धाड़ को मोड़ दिया था|

  6. स्वर्गीय दादा चौधरी गुलाब सिंह मलिक: आपने दुश्मन की धाड़ के 18 लोगों को गाँव के अभिमान व् सम्मान की रक्षा हेतु एकमुस्त काटा था|

  7. 17 दानवीर जिन्होंने कन्या पाठशाला के लिए कमरे दान किये

इन हस्तियों के बारे में “संस्कृति” पृष्ठ पर विस्तार से पढ़ें|

विशेष: गाँव के इतिहास खोज का कार्य निरंतर प्रगति पर है, जैसे-जैसे नई जानकारियाँ मिलेंगी यहाँ अद्यतन की जाती रहेंगी|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 27/04/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
निडाना खेत-कीट पाठशाला

25. जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन



निडानी में संपन हुई २०१३ की खेत-कीट-पाठशाला
जानकारी पट्टल - पूछ-ताछ
पूछताछ जानकारी पट्टल: उपलब्ध करवाता है भारतीय और हरियाणा राज्य प्रणाली और सार्वजनिक पाठ्यक्रम और अर्थव्यवस्था की सेवाओं बारे सार्वजनिक प्रायोगिक वेबलिंक्स नि. हा. नियम व् शर्तें लागू
लोक पूछताछ
अर्थ संबंधी उपयोगात्मक लिंक्स
पैसा और जिंदगी
अर्थव्यवस्था और मुद्रा दर
शेयर और विनिमय
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९