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रागणियाँ
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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
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फुट्कार 46-72
हरियाणवी रागणियाँ - फुट्कार

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आह्मी-सयाह्मी

मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले म्ह भिड़े बताये|
लखमी दादा नैं मेहरू धमकाया घणे कड़े शब्द सुणाए||
सुण दिल होग्या बेचैन गात म रही समाई कोन्या रै,
बोल का दर्द सह्या ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै|
सबकी साहमी डाट मारदी गलती लग बताई कोन्या रै,
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरू नैं भाई कोन्या रै||
सुणकें दादा की आच्छी-भुंडी उठ्कैं दूर-सी खरड़ बिछाये||
इस ढाळ का माहौल देख लोग एक-बै दंग होगे थे,
सोच-समझ लोग उठ लिए, दादा के माड़े ढंग होगे थे|
लख्मी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे,
लोगां नें सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे||
दादा लख्मी अपणी बात पै भोत घणा फेर पछताए||
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया,
दुखी करकें दादा नैं उसका दिल भी था उदास हुया|
दोनूं जणयां नैं उस दिन न्यारे ढाळ का आभास हुया,
आह्मा-सयाह्मी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया||
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वें कदे नजर नहीं आये||
गाया मेहर सिंह नैं दूर के ढोल सुहान्ने हुया करैं सें,
बिना विचार काम करें तैं, घणे दुःख ठाणे हुया करैं सें|
सारा जगत हथेळी पिटे यें लाख उल्हाणे हुया करैं सें,
तुकबन्दी लय-सुर चाहवै लोग रिझाणे हुया करैं सें||
रणबीर सिंह बरोणे आळए नैं सूझ-बूझ कें छंद बणाए||
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जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

सम्पादन: न्य्डाणा हाइट्स

आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
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