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किसान खेत पाठशाला
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!!!......अगर आपने आज खाना खाया, तो देश के किसान का धन्यवाद जरूर करें|......जो अपनी ऐतिहासिक जड़ों व् संस्कृति को नहीं जानते, उनकी सामाजिक पहचान एक बिना पते की चिठ्ठी जैसी होती है; ऐसे लोग सांस्कृतिक रूप से दूसरों की दार्शनिकता के गुलाम होते हैं| यह एक ऐसी संस्कृति को समर्पित वेबसाइट है जो "हरियाणव" के नाम से जानी जाती है.......!!!
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डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल कृषि-अर्थ सोधशाला

महिला किसान खेत पाठशाला निडाना का इतिहास

एक यात्रा जो २००८ से शुरू हुई:


20 वीं सदी के अंत व् 21 वीं सदी क़ी शुरुवात में अमेरिकन सुंडी ने कपास के कीट नियंत्रण अखाड़े में व् भूरे फुदके ने धान कीट नियंत्रण अखाड़े में किसानों क़ी कसुती कड़ लगाई। किसानों को फसल में कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीट मरते भी नजर आते हैं और फसल में कीट बने भी रहते हैं। कीटों क़ी इस अंतहीन समस्या को किसानों क़ी सक्रीय भागेदारी से जड़मूल से समझने व् बेहतर कीट प्रबंधन के लिए सन 2008 कपास क़ी फसल में कृषि विभाग के सौजन्य से खेत पाठशाला क़ी शुरुवात हुई। इस पाठशाला में अहसास हुआ कि एक तो हमारे खेतों में कपास के पौधों क़ी संख्या बहुत कम है व् दुसरे हमें कीटों क़ी जानकारी भी बहुत कम है।



पाठशाला २००९: इसीलिए पुख्ता कीट प्रबंधन के लिए कीटों क़ी जानकारी जुटाने के लिए 2009 में किसानों द्वारा अपने खर्चे पर "अपना खेत-अपनी पाठशाला"का आयोजन किया गया। जून से अक्तूबर तक हर मंगलवार को लगाई गई इस पाठशाला में कपास में पाए गये दो दर्जन शाकाहारी कीटों व् चार दर्जन मांसाहारी कीटों क़ी पहचान क़ी गई व् जानकारी जुटाई गई। इसी पाठशाला के दौरान एक नई जानकारी मिली कि जिंक-यूरिया-डी.ए.पी.का 5.5% के घोल का स्प्रे करने से कपास क़ी फसल में पोषण के अलावा छोटे-छोटे कीड़े भी मरते हैं। इस साल एक दर्ज़न किसानों ने बिना किसी कीटनाशक का इस्तेमाल किये कपास का सफल उत्पादन किया। इसी साल इस पाठशाला के किसानों श्री रणबीर मालिक व् मनबीर रेड्हू ने कम्प्यूटर सीख कर ब्लॉग लिखने शुरू किये।

  1. कीट साक्षरता केंद्र, निडाना

  2. प्रभात कीट पाठशाला

  3. कृषि चौपाल

  4. निडाना गाम का गोरा

  5. नौगामा

इसी के साथ-साथ यहाँ कपास क़ी फसल में देखे गये शाकाहारी व् मांसाहारी कीड़ों के फोटो व् विडिओ नेट पर लोड किये गये।



पाठशाला २०१०: कोई माने या न माने पर सच्चाई है कि आज निडाना में भी घरों में महिलाओं क़ी चलने लगी। इस को ध्यान रखते हुए 2010 में कपास क़ी फसल में ही जून से लेकर अक्तूबर तक हर मंगलवार को महिला खेत पाठशाला का आयोजन कृषि विभाग के सौजन्य एवं मार्ग दर्शन में आयोजित क़ी गई। इस पाठशाला में भाग लेने वाली तीस महिलाओं में से केवल छ: महिला ही पढ़ी-लिखी थी। पाठशाला क़ी कार्यवाही को तीन जून से ही "महिला खेत पाठशाला" नामक ब्लॉग पर लिखा जाने लगा। मिनी व् सुदेश ने सह्लेखिकाओं क़ी जिम्मेवारी संभाली। इस पाठशाला क़ी कारवाहियों को प्रिंट एवं डिजिटल मिडिया(एक, दो, तीन) में अच्छी कवरेज मिली। हरियाणा के अन्य जिलों व पंजाब से किसानों के अलावा मिडिया कर्मियों, कृषि अधिकारीयों, विज्ञानिकों व प्रोफेसरों ने भी इस महिला खेत पाठशाला के परिदर्शन किये एवं महिलाओं के साथ विस्तार से विचार-विमर्श किया। 25 दिसम्बर,2010 को गाव में कृषि विभाग द्वारा आयोजित खेत दिवस के अवसर पर महिलाओं ने अपनी कीटों के बारे में हासिल इस जानकारी को फ्लेक्स बोर्डों व गीतों क़ी सहायता से गाम व गुहाँडों के हजारों किसानों, कृषि अधिकारीयों व वैज्ञानिकों के सामने रखा।



पाठशाला २०११: 2011 क़ी साल इन महिलाओं में से छ: महिलाओं ने मास्टर ट्रेनरों के रूप में डैफोडिल पब्लिक स्कूल के छात्रों को "परिवेश पाठशाला" चला क़र कीटों के बारे में जानकारी दी। निडाना क़ी इन खेत पाठशालाओं के जरिये, यहाँ के किसान अब तक अकेले कपास क़ी फसल में ही 107 किस्म के कीट देख एवं पहचान चुके हैं। इनमे से 80 किस्म के कीड़े तो मांसाहारी व 27 किस्म के शाकाहारी पाए गये। इन शाकाहारी कीड़ों में से केवल 3-4 ही कभी कभार फसल में हानि पहुचाने के स्तर पर पहुँचते हैं। इन कीटों में से 43 कीटों क़ी पहचान क़ी पुष्टि भी हो चुकी है। निडाना गावं के छ: दर्ज़न से अधिक किसान शाकाहारी कीड़ों को काबू करने में मांसाहारी कीड़ों क़ी अचूक भूमिका को स्वीकार करके व अच्छी तरह से आजमा कर अब बगैर कीटनाशकों के ही विषमुक्त खेती करने लगे हैं।


किसान महिलाओं द्वारा उल्लास में कीटों पे रचा गया लोकगीत:

कीड़याँ का कटरया चाला हे, मनै तेरी सूं.
देख्या ढंग निराला हे, मनै तेरी सूं.

कीड़याँ म्ह का कीड़ा, वो तो मेरी तरफ लखावै था.
जोड़े हाथ खड़ा बेबे, वो गर्दन पूरी घुमावै था.
आरी बरगी टांगा आला हे, मनै तेरी सूं.

कीड़ों से अपनी भूख मिटाता.
क्यां ऐ का ना परहेज़ पूगाता.
काम करै स्प्रे आला हे, मनै तेरी सूं.

जापे तै पहल्यां जापे की तैयारी.
मिलने तै पाछै खसम की बारी.
देखा ढंग कुढाला हे, मनै तेरी सूं.

ना राम की गाँ ना तो यू राम का घोडा,
मांसाहारी कीट सै, बेबे यू हथजोड़ा,
गादड़ की सुंडी आला हे, मनै तेरी सूं


विशेष: वक्त के साथ इस विषय पर और जानकारी जोड़ी जाती रहेगी|

जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर




लेखक: डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 07/05/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

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