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हिंदी शायरी

कुल 5
1. रंजो-गम तेरे सबब का ओ खुदा
2. राह-ए-जिंदगी
3. सिलसिले तो जुड़ेंगे
4. दिल (मन) की सत्ता
रंजो-गम तेरे सबब का ओ खुदा,
रश्क तूफानों सा, बिखरा रहा सदा|
कश्तिये रहबरी यूँ मचलती रही,
बवंडरों में मेरा कारवां सजा||

तूफ़ान-ए-रंजिश अड़ी रही,
राह मंजिल की खड़ी रही|
रंग-ए-अश्क बहारों के,
उकेर-उकेर धोती रही||

फ़रिश्ते वो सजाये थे मेरे,
कब्रो-दुर्गत में पिरोये तेरे|
सन्यासी सा छल था मेरा,
छला सरे-महफ़िल तूने||

रहमते-बंदगी तेरे दर की,
सुच्चा मन, आत्मा चमन सी|
बाँट छलावे अरमानों के,
लूटी तूने ही रस्क सी||

सोहबत में तेरी बहता रहा,
तू बरपाता, मैं सहता रहा|
उल्फ़ते-असनाई दोजख की,
अनवरत खेता रहा||

कवि: फूल कुमार मलिक

दिनांक: 01/11/13
इश्क-इबादत-रहमत-उल्फत,
जिंदगी ये कैसी गफलत|
राहत-चाहत-बगावत-हिफाजत,
अल्लाह नूर की इबादत||

जिंदगियो-जमीं यूँ कटती गई,
अश्क-बर-अश्क बँटती गई|
इश्क के जलजले ऐसे फले,
करवटें भी ना बदली गई||

हिजरते सौदाई यूँ बरपाई,
उसने अपने रंज री|
जंगे-उल्फत बिन हथियारों के,
घोंट दी हसरतें हिजरी||

जन्नते-जरीन रिश्तों में,
शोहबते मुहब्बत नशा नहीं|
फरिश्ता-ए-खुदाई नूर की,
गजब है करिश्मा नहीं||

शिकस्त दे मंजिल को चल,
राहे बुलंदी छूने को|
राह-ए-जिंदगी छोटी है,
उदासी भर जीने को||

कवि: फूल कुमार मलिक

दिनांक: 06/11/13

सिलसिले तो जुड़ेंगे, जोड़ने तो होंगे,
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

तेरी हालत ओ क़िबला,
ठहरे पानी सी क्यूँ,
काईयों की चादर ढके इससे पहले,
रूतबे टटोलने तो होंगे|
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

कीमत-ए-इबादत नहीं दी उसने,
राह उल्टी चढ़ाता रहा|
उसकी सोहबत के शरूर के,
नशे उतारने तो होंगे||
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

प्यार वो करेगा कभी,
रास्ते तेरे सधेगा कभी|
उसके भरोसे बैठे,
कौनसे कुँए भरेंगे?
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

परिपक्वता से पहले,
फूल मसलने वालों पे|
तीर-ए-हिफाजत,
तानने तो होंगे|
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

हस्ती-ए-खुदद्त,
है कीमत तेरी|
भाव इसके तुझे ही (फुल्ले भगत),
जांचने तो होंगे||
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

सिलसिले तो जुड़ेंगे, जोड़ने तो होंगे,
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|

कवि: फूल कुमार मलिक

दिनांक: 10/11/13
जब आदमी तैयार नहीं होता, दिल हुकूमत जमा लेता है,
तैयारी के शोशे दिखा के, सस्ते में ही तुमको पटा लेता है|

उबलते पानी के बुलबुलों सी बयार होती है इसकी,
वास्तविकता को छूते ही, चुपके से खुद को दुबका लेता है|

तराजू के पलड़ों सा बरताव इसका,
भारी को ताड़, उस संग हो लेता है|

दिमाग से यारी गांठे तो, बदतमीजी चरम पर होती है,
दिमाग को कब दे जाए धोखा, जब जग-हंसाई होती है|

दिल और दिमाग के बीच आत्मा का रहना बहुत जरूरी है,
नहीं तो समझ लो, दिल के हाथों तुम्हारा ढहना लाजिमी है|

दिल को चढ़ने दो ना दिमाग पे, इंसानियत सब खो जाती है,
दबंगों की महफ़िल में फिर, सिर्फ अय्यासी ही रह जाती है|

यूँ तो यह नाजुक होता है, पर बच्चे सा चंचल होता है,
इसका बने जो अंधभक्त, फिर वो बच्चे ज्यूँ ही रोता है|

आत्मा सर्वोपरि रखो, इच्छाशक्ति मजबूत बनाने को,
सोधी बनने की जरूरत, मन की चंचलता मिटाने को|

इन चारों का रिश्ता, कुछ यूँ होता आया,
दिल-दिमाग तभी सधें, जब इच्छाशक्ति को मजबूत पाया|

इच्छाशक्ति मजबूत पाने को, आत्मा की शुद्धि जरूरी है,
और आत्मा शुद्ध होगी तब, जब दिल-दिमाग में दूरी है|

आत्मा जागृत है तो सोधी (होश) है, सोधी है तो नियंत्रण में जोश (वासना) है,
जोश पे अंकुश है होश का तो, दिल-दिमाग खामोश है|

दिल-दिमाग खामोश है तो एकाग्रता बढ़ती जाए,
और एकाग्रता जो बढ़ी तो, इंसान डरों के पार जाए|

इस सांचे से कुछ हिले तो, दिल कब्बड्डी करता है,
'फुल्ले भगत' चुप हो जा अब, दिल तेरा उछलता है|

कवि: फूल कुमार मलिक

दिनांक: 12/11/13

5. मेरे दिल की नगरी चली ब्याहने सपनों को
मेरे दिल की नगरी,
चली ब्याहने सपनों को|
हस्ती पूछे क्यूँ बांटेगा नहीं,
ये सौगात अपनों को?

टूटी शोहरतों के खंडहरों से,
क्या बाँटू अपनों को|
वो सौदागर सितारों के,
क्या जानें मेरे जख्मों को||

बाजार लगा है उफानों का,
नहीं ठिकाना अरमानों का|
आंधी उठे, धूल उड़ जाए,
ना रिझाना हुआ अपनों का||

रंगते-नूर जो तू दे गई थी,
उसी चमक का चमत्कार है|
क्यूँ रूठ गई थी ओ देवी तू,
बड़ा झूठा जग-दरबार है||

एक तेरी ही तो जीस्त रही मेरी,
जिसने चलाई मेरी पतवार है|
वर्ना खेवनहार मिला ना कोई,
यहाँ छलियों की भरमार है||

कवि: फूल कुमार मलिक

दिनांक: 13/12/13
   
 


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

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