रंजो-गम तेरे सबब का ओ खुदा,
रश्क तूफानों सा, बिखरा रहा सदा|
कश्तिये रहबरी यूँ मचलती रही,
बवंडरों में मेरा कारवां सजा||
तूफ़ान-ए-रंजिश अड़ी रही,
राह मंजिल की खड़ी रही|
रंग-ए-अश्क बहारों के,
उकेर-उकेर धोती रही||
फ़रिश्ते वो सजाये थे मेरे,
कब्रो-दुर्गत में पिरोये तेरे|
सन्यासी सा छल था मेरा,
छला सरे-महफ़िल तूने||
रहमते-बंदगी तेरे दर की,
सुच्चा मन, आत्मा चमन सी|
बाँट छलावे अरमानों के,
लूटी तूने ही रस्क सी||
सोहबत में तेरी बहता रहा,
तू बरपाता, मैं सहता रहा|
उल्फ़ते-असनाई दोजख की,
अनवरत खेता रहा||
कवि: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 01/11/13 |
इश्क-इबादत-रहमत-उल्फत,
जिंदगी ये कैसी गफलत|
राहत-चाहत-बगावत-हिफाजत,
अल्लाह नूर की इबादत||
जिंदगियो-जमीं यूँ कटती गई,
अश्क-बर-अश्क बँटती गई|
इश्क के जलजले ऐसे फले,
करवटें भी ना बदली गई||
हिजरते सौदाई यूँ बरपाई,
उसने अपने रंज री|
जंगे-उल्फत बिन हथियारों के,
घोंट दी हसरतें हिजरी||
जन्नते-जरीन रिश्तों में,
शोहबते मुहब्बत नशा नहीं|
फरिश्ता-ए-खुदाई नूर की,
गजब है करिश्मा नहीं||
शिकस्त दे मंजिल को चल,
राहे बुलंदी छूने को|
राह-ए-जिंदगी छोटी है,
उदासी भर जीने को||
कवि: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 06/11/13
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सिलसिले तो जुड़ेंगे, जोड़ने तो होंगे,
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
तेरी हालत ओ क़िबला,
ठहरे पानी सी क्यूँ,
काईयों की चादर ढके इससे पहले,
रूतबे टटोलने तो होंगे|
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
कीमत-ए-इबादत नहीं दी उसने,
राह उल्टी चढ़ाता रहा|
उसकी सोहबत के शरूर के,
नशे उतारने तो होंगे||
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
प्यार वो करेगा कभी,
रास्ते तेरे सधेगा कभी|
उसके भरोसे बैठे,
कौनसे कुँए भरेंगे?
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
परिपक्वता से पहले,
फूल मसलने वालों पे|
तीर-ए-हिफाजत,
तानने तो होंगे|
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
हस्ती-ए-खुदद्त,
है कीमत तेरी|
भाव इसके तुझे ही (फुल्ले भगत),
जांचने तो होंगे||
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
सिलसिले तो जुड़ेंगे, जोड़ने तो होंगे,
अपनी हस्ती के मायने, मानने तो होंगे|
कवि: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 10/11/13 |
जब आदमी तैयार नहीं होता, दिल हुकूमत जमा लेता है,
तैयारी के शोशे दिखा के, सस्ते में ही तुमको पटा लेता है|
उबलते पानी के बुलबुलों सी बयार होती है इसकी,
वास्तविकता को छूते ही, चुपके से खुद को दुबका लेता है|
तराजू के पलड़ों सा बरताव इसका,
भारी को ताड़, उस संग हो लेता है|
दिमाग से यारी गांठे तो, बदतमीजी चरम पर होती है,
दिमाग को कब दे जाए धोखा, जब जग-हंसाई होती है|
दिल और दिमाग के बीच आत्मा का रहना बहुत जरूरी है,
नहीं तो समझ लो, दिल के हाथों तुम्हारा ढहना लाजिमी है|
दिल को चढ़ने दो ना दिमाग पे, इंसानियत सब खो जाती है,
दबंगों की महफ़िल में फिर, सिर्फ अय्यासी ही रह जाती है|
यूँ तो यह नाजुक होता है, पर बच्चे सा चंचल होता है,
इसका बने जो अंधभक्त, फिर वो बच्चे ज्यूँ ही रोता है|
आत्मा सर्वोपरि रखो, इच्छाशक्ति मजबूत बनाने को,
सोधी बनने की जरूरत, मन की चंचलता मिटाने को|
इन चारों का रिश्ता, कुछ यूँ होता आया,
दिल-दिमाग तभी सधें, जब इच्छाशक्ति को मजबूत पाया|
इच्छाशक्ति मजबूत पाने को, आत्मा की शुद्धि जरूरी है,
और आत्मा शुद्ध होगी तब, जब दिल-दिमाग में दूरी है|
आत्मा जागृत है तो सोधी (होश) है, सोधी है तो नियंत्रण में जोश (वासना) है,
जोश पे अंकुश है होश का तो, दिल-दिमाग खामोश है|
दिल-दिमाग खामोश है तो एकाग्रता बढ़ती जाए,
और एकाग्रता जो बढ़ी तो, इंसान डरों के पार जाए|
इस सांचे से कुछ हिले तो, दिल कब्बड्डी करता है,
'फुल्ले भगत' चुप हो जा अब, दिल तेरा उछलता है|
कवि: फूल कुमार मलिक
दिनांक: 12/11/13
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