एन. एच. संग्रह - वेबसाइट के हिंदी प्रभागों में प्रकाशित हुई पुराने लेख व् किस्से
विवरण: नीचे वेबसाइट की दहलीज (मुखपृष्ठ) पर १०/०६/२०१२ के बाद से विभिन्न तिथियों पर पहली बार प्रकाशित हुए लेखों व् किस्सों का संग्रह है|
तैमूर लंग को था हरयाणे की खापों ने ठोका!
अब उसका इरादा सहारनपुर, हरिद्वार, मेरठ, बागपत आदि गंगा-यमुना नदियों के मध्य का हराभरा प्रदेश बर्बाद करने का था लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि गंगा-जमुना के मैदानों में ही
......आगे पढ़िए (79 - 04/08/2015)
प्रधानमंत्री के नाम खुला-खत!
खैर मैं बड़े ही सलीके से पीएम को चैलेंज देना चाहूंगा कि बाकी भारत और हरयाणा में औरतों की स्थिति की तुलना के साथ मेरे से डिबेट में आवें और साबित करें कि हरयाणा में औरतें बिलकुल आपके 'बड़ा ही नेगेटिव माहौल' के हिसाब के तरीके से पीड़ित हैं या मैं साबित करूँगा कि औरतों की
......आगे पढ़िए (78 - 01/02/2016)
मंडी-फंडी हुआ खुला सांड; नकेल डालने को किसानों की सामाजिक संस्थाओं का फिर से खड़ा होना जरूरी!
हजारों सालों से चले आ रहे मंडी-फंडी के किसान के प्रति अन्याय और क्रूरता के रिश्ते का स्थाई इलाज ढूंढने का वक्त आन पहुंचा है| शायद अब भारत को एक फ्रांसीसी क्रांति की जरूरत पड़े; जो कि सिस्टम ही नहीं वरन सिस्टम का माइंडसेट भी बदल डाले| इस तथ्य को समझने के लिए इतिहास और वर्तमान को मिलाकर भूमिका बांधूंगा| वर्तमान में तो देख ही रहे हैं कि जब से सम्पूर्ण रूप से मंडी-फंडी निर्देशित सरकार आई है किसान की तो जैसे शामत आ गई है|......आगे पढ़िए (77 - 31/03/2015)
आज़ादी के बाद प्रथम "असहयोग आंदोलन" की घड़ी!
28 दिसंबर 2014 को भारत की केंद्र सरकार द्वारा आनन-फानन में लाये गए ‘संसोधित भूमि-अधिग्रहण आर्डिनेंस’ के आगे के विकल्प और असरदार व् सार्थक कदम बारे, किसानों द्वारा व्यापारिक वर्गों से "सम्पूर्ण असहयोग आंदोलन” ही नए संसोधित भूमि अधिग्रहण बिल/ऑर्डिनेंस को वापिस करवाने का सबल रास्ता है| इस संकट की घड़ी में किसान व् किसान की युवा संतानों को किसी अन्य प्रकार के वाद जैसे कि "धर्मवाद", "जातिवाद", "वंशवाद", "अपवाद" पर ध्यान पर ध्यान देने की बजाय, सिर्फ "बाजारवाद" और "किसानवाद" पर ध्यान देना चाहिए|......आगे पढ़िए (76 - 19/01/2015)
25 साल से चली आ रही ‘अजगर’ फूट का नतीजा है ‘संशोधित भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश’ अजगर की फूट पर पनपती राजनीति!
30 दिसंबर 2014 को सेंट्रल कैबिनेट से पास हो के आया "संशोधित भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश " किसानी जातियों को यह समझाने के लिए काफी होना चाहिए कि उनके भाईचारे में समरसता और उनकी एकता कितनी अहम है| सर छोटूराम के जमाने में सार्वजनिक तौर पर बना चार प्रमुख व् बड़ी कृषक जातियों का संगठन ‘अजगर’ यानी अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत, चौधरी चरण सिंह से होता हुआ नीचे ......आगे पढ़िए (75 - 31/12/2014)
अगर आज छोटूराम होते तो!
अगर किसान मसीहा दीनबंधु सुशासन के सर्वोत्तम प्रतीक सर छोटूराम इक्क्सवीं सदी में अवतारें तो किसानों-दीनहीनों के ऐसे कौनसे कार्य उनकी प्राथमिकता रहते, जैसे कि उन्होंने उनके प्रथम अवतार में किये थे? ऐसे ही कुछ मुद्दों पर चर्चा करता है यह लेख| इस लेख को लिखने की मेरी प्रेरणा सर छोटूराम द्वारा किसानों-दलितों-दीनों के लिए उस जमाने में बनवाए गए कानूनो जैसें साहूकारा पंजीकरण एक्ट, गिरवी जमीन वापसी एक्ट ......आगे पढ़िए (74 - 21/12/2014)
किशोरावस्था व सेक्स पर मानसिक ऊहापोह
सब मुझे मुफ्त के सर्टिफिकेट से देते दिखते परन्तु असली समस्या पे कोई ध्यान नहीं देता कि बच्चे को इस उभार का मतलब समझा व् इससे संबंधित संभावित दुर्भावना, ग्लानि व् अज्ञान से मुक्त करें, ताकि कहीं यह इससे हीन भावना, असमंजस अथवा दुविधा का शिकार ना हो जाए| परन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ बल्कि इसको लेकर उल्टा एक-दो बार तो मेरे को सीधे झाप्पड़ रसीद हुए| तब मुझे लगता कि मैं जो इनसे पढाई के बारे में कभी डांट या मार नहीं खाता ......आगे पढ़िए (73 - 13/12/2014)
“जाट के आई जाटणी कुहाई (कहलाई)”
Inter-religious tolerance in Jats
इस धर्मान्धता की परिणति क्या?: आज तुम्हें धर्म के नाम पर भिड़ा रहे हैं, कल को तुम्हारे ही धर्म में उपस्थित मिक्स्ड ब्लड के नाम पे तुमसे अपनों को ही कटवाएंगे, नहीं? इसीलिए तो पहले तुम्हारा जातीय-गौरव ध्वस्त किया जा रहा है| आजकल लवजिहाद को ऐसे मुद्दा बनाया जा रहा है जैसा तो खुद गैरधर्म वालों को अपनी बेटियां देते वक्त भी बनाना किसी को याद नहीं आया होगा| ......आगे पढ़िए (72 - 25/11/2014)
भामाशाहों के भामाशाह - क्षत्रियों के भामाशाह 'चौधरी सेठ सर छाजूराम जी लाम्बा'
चौधरी छाजूराम जी चौधरी छोटूराम के धर्म-पिता आप, उनका फ़रिश्ता-ए-रोशनाई थे| हरियाणा में तीन लालों की तरह एक युग तीन रामों का भी रहा है, जो थे छाजूराम, छोटूराम और नेकीराम| इन्हीं रामों में एक राम हुए भामाशाहों के भामाशाह दानवीर चौधरी सेठ छाजूराम जी लाम्बा| जी. डी. बिड़ला और पंजाब केसरी लाला लाजपतराय भी आपके किरायेदार रहे| कहा जाता है कि ......आगे पढ़िए (71 - 14/11/2014)
दादा चौधरी मंगोल जी महाराज ने बसाया था निडाना
दादा बताते हैं कि हमारे पुरखे दादा मंगोल जी महाराज के हाथों गाँव मोखरा (जिला रोहतक) में माणस बिगड़ गया था| और ऐसे माहौल से सुख और शांति की तलाश में दादा जी महाराज ने वहाँ से पलायन कर, यहां आ, आज का निडाना बसाया था| किसी मंशा, उद्देश्य सिद्धि या जिद्द के चलते कहो दादा मंगोल की जिद्द थी कि वो किसी रांघड़ों के खेड़े पे ही अपना खेड़ा बसाएंगे| ......आगे पढ़िए (70 - 08/11/2014)
निडाना गाँव की कहानी, दादा श्री दयानंद कबीरपंथी की जुबानी
दादा बताते हैं कि हमारे पुरखे दादा चौधरी मंगोल जी गठवाला से मोखरा गाँव में एक आदमी बिगड़ गया था यानी उनके हाथों कत्ल हो गया था तो वो अपने परिवार व् संगी-साथियों संग वहाँ से यहां चले आये थे| दादा आगे बताते हैं कि हमारे पुरखों के यहां आके खेड़ा बसाने से पहले किनाना रियासत के मुस्लिम रांघड़ यानी हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुस्लिम राजपूत रहते थे, ......आगे पढ़िए (69 - 02/11/2014)
निडाना गाँव की ऐतिहासिक लोकगाथाएं/कथाएं!
निडाना गाँव के ऐसे किस्से जो आज किद्वन्ति बन चुके हैं, जिनमें रोमांच भी है, अपने खेड़े के लिए स्वाभिमान और अभिमान भी है, वीरता भी, चतुराई भी, कटुता भी, व्यंग्य और हंसी-ठिठोली भी। लेकिन इनमें ऐसा ख़ास भी बहुत कुछ है जो इनको ऐतिहासिक बनाता है,
ऐसा तार-तम्मय जो इनको लोक-कथाओं का दर्ज दिलवाता है। इनको मैंने बचपन में मेरे दादा-दादी की गोदियों में बैठ सुना था| जितना रोमांच, उत्कर्ष, अचंभित सा कर जाने वाला ......आगे पढ़िए (68 - 05/09/2014)
हिंदुत्व की सबसे बड़ी समस्या
मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि धर्म पर कभी राजनीति नहीं होनी चाहिए और ना ही करनी चाहिए, लेकिन जब धर्मगुरु तक खुद संसद में पहुँच जाएँ तो क्या तब भी इस पर बात नहीं होनी चाहिए?
सामान्य सी बात है जो धर्म के वेत्ता होते हुए भी संसद तक गए हैं तो वो वहाँ जप-तप अथवा भजन-कीर्तन तो करने गए नहीं हैं, धर्म पे राजनीति ही करने गए हैं| और जब वो खुद धर्मगुरु होते हुए अपने ......आगे पढ़िए (67 - 03/09/2014)
खेत-किसान सोधशाला 2014 - 'कीटावली'
निडाना के कीटाचार्यों व् कीटाचार्याओं की अथक मेहनत को "कीटावली" के रूप में पिरोया जा रहा है| अबकी
बार की खेत-किसान पाठशाला/सोधशाला की यह अनूठी नई परिपाटी है, जिसको लयबद्ध कर रहे हैं इस सोधशाला से इसके जन्म से आज तक जुड़े जींद जिले के मसहूर पत्रकार 'नरेंद्र कुंडू'। उन्होंने इस सोधशाला के कीटाचार्यों के साथ मिलकर कीटों ......आगे पढ़िए (66 - 28/08/2014)
जाटों ने दिलाई थी प्रथम विश्वयुद्ध में विजय
प्रथम विश्वयुद्ध की शती पर विशेष - चौधरी छोटू राम जैसे चतुर और दूरदर्शी नेताओं ने यह जान लिया था कि यह अंग्रेजों की नहीं अपितु भारत के सुरक्षित भविष्य के
लिये युद्ध है. न कि गुलामी की मानसिकता में जकड़े हुये 'असमर्थ' लोगों की मजबूरी| उन फौजियों में से शायद ही कोई सूबेदार के रैंक ......आगे पढ़िए(63 - 26/07/2014)
निडाना किसान खेत पाठशाला - 2014
बानगी बढ़ती जा रही, परवान चढ़ती जा रही - यह पंक्तियाँ सं २००८ से गाँव निडाना के किसान कैसे सिद्ध कर रहे हैं देखना है तो आईये निडाना गाँव की धरती
पर चल रही "निडाना महिला किसान खेत पाठशाला" का सत्र २०१४ देखने| अभियान के प्रेणास्त्रोत व् सूत्रधार रहे स्वर्गीय डॉक्टर श्री सुरेन्द्र दलाल द्वारा प्रारंभित इस पाठशाला को जब देखता हूँ कि डॉक्टर साहब के किसान कमांडो कैसे उनके जाने के बाद भी आम नागरिक की थाली को ......आगे पढ़िए (64 - 23/06/2014)
दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी
प्रस्तुत है भारतीय इतिहास की सर्वप्रथम वीरांगना की गाथा, जिन्होनें मुगलों के डर से अपने सतीत्व को बचाने हेतु साक्का-जौहर (स्व अग्नि-प्रवेश) की जगह चंगेज
खान की सेना को 25 कोस तक दौड़ा-दौड़ा के मारा था| ऐसी शेरनी जाटनी की जाई थी खापलैंड की अमर-अजेय सर्वखाप योद्धेया विलक्षण वीरांगना "दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी"| हरियाणा के जींद जिले की धरती| ......आगे पढ़िए (63 - 02/06/2014)
भरी थाली को ठोकर मारने वाला
जवानी व् बुढ़ापे में कैसे बनता है यह तो मैं नहीं जनता परन्तु बचपन में कैसे बनता है यह अच्छे से जानता हूँ| जब बच्चे को उसकी मति के अनुसार गति ना पकड़ने दी जाए, उसको कुछ उपलब्ध करने पर कोई प्रोत्साहन मिलने की .......आगे पढ़िए (62 - 11/05/2014)
प्राचीन भारत को जाट देन
वर्तमान के आईने से इतिहास की तस्वीर साफ़ झलकती है, बशर्ते उसे साक्ष्यों के दृष्टिकोण के साथ पारखी नजरों से देखा जाए| सिंधु सभ्यता में पाटरी काली-सफेद लकीरों की गेरूएं रंग की होती थी| खुदाई आभूषण .......आगे पढ़िए (61 - 09/05/2014)
(60 - 30/04/2014)
दो दुःसाहसी योद्धेय
जिला रोहतक के पश्चिम में (जहाँ रोहतक की सीमा समाप्त होकर जिले की सीमा प्रारम्भ होती है), रोहतक से 25 मील पश्चिम और जीन्द शहर (उस जमाने में
पटियाला संघ की तीन रियासतों में एक) से 15 मील पूर्व में लजवाना नाम का प्रसिद्ध गांव है। सन 1856 ......आगे पढ़िए (59 - 15/04/2014)
हरियाणा की धाड़ संस्कृति
पुराने जमाने में हरियाणा यानि खापलैंड (आज का हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान व् उत्तराखंड) में दो तरह के गाँव यानी
"गैभ" गाँव और "ऐब" गाँव हुआ करते थे| "गैभ" गाँव वो होते थे जो अमूमन ईमानदारी से खेती करके, एक ठिकाने पर टिक के कमाते थे और बसते थे, और किसी अकस्मात मुसीबत से बचने हेतु ......आगे पढ़िए (58 - 14/04/2014)
पर्दा-प्रथा को अब अलविदा करने का वक़्त
भारत की मूल प्रजातियों में पर्दा प्रथा किसी मान्यता, परम्परा के तहत नहीं अपितु
दसवीं सदी के इर्द-गिर्द विदेशी आक्रांताओं से अपनी नारी शक्ति की सुरक्षा हेतु मजबूरी में अपनाया गया एक अस्थाई सुरक्षा कवच था जो कि 1947 में भारतवर्ष की आज़ादी के साथ ही चला जाना चाहिए था| मैं इस बिंदु पर ज्यादा नहीं रुकुंगा कि विदेशी ......आगे पढ़िए (57 - 14/03/2014)
खापें और भारतीय संस्कृति
वैसे तो पी. चिदंबरम साहब पहले भी खापों के खिलाफ ऐसे ब्यान देते रहे हैं सो जब पांच फरवरी वाला उनका ब्यान पढ़ा कि "खापें भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं",
तो कोई अचरज की बात नहीं लगी कि उन्होंने फिर से ऐसा ब्यान दिया| ......आगे पढ़िए (56 - 05/02/2014)
"बोलना ले सीख" से आगे क्या?
एक समाज और संस्कृति तभी तक फल-फूल सकती है जब उसकी सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था में बराबर की भागीदारी व् समन्वय हो| और शायद इसी तरह की वेदना सर छोटूराम की यह कहते हुए रही होगी
कि "ऐ मेरे भोले किसान! तू मेरी दो बात मान ले, «एक बोलना ले सीख और दूजा दुश्मन पहचान ले»। बचपन से ले कर आज तक जितनी भी चिंतन की समझ बना पाया हूँ, उसके पनपने में रहबरे-हिन्द की इस बात ने गहरी छाप छोड़ी है| सही तारीख का तो पता नहीं कि रहबरे-हिन्द ने यह बात कब कही थी ......आगे पढ़िए (55 - 22/12/2013)
जाटों की ब्राह्मिणवादिता
अब जब मुजफरनगर के दंगे हो चुके तब जा के धरातलीय स्तर के जाट और मुस्लिम को यह समझ आ रहा है कि उनके साथ कितना बड़ा खेल खेला गया| यहाँ मुस्लिम संगठन भी बड़ी भारी
भूल किये हुए हैं जो यह नहीं समझ पाये और शायदअभी ......आगे पढ़िए (54 - 17/11/2013)
समरवीर प्रथम हिन्दू धर्म-रक्षक अमर ज्योति गोकुला जी महाराज
सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे| धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें दिखाई देती थी| जब राजपूताने झुक चुके थे; फरसों के
दम भी दुबक चुके थे| ब्रह्माण्ड के ब्रह्म-ज्ञानियों के ज्ञान सूख चुके थे| कहते हैं इक्कीस बार तथाकथित क्षत्रियों को हराने वाली ताकतें भी इनके आगे घुटने टेक चुकी थी, हर तरफ त्राहि-त्राहि थी, ना धर्म था ना धर्म के रक्षक| तब निकला था उमस के तपते शोलों से वो शूरवीर, तब किरदार में अवतारा था वो ......आगे पढ़िए (53 - 08/11/2013)
जहाजगढ़ (झज्जर) का इतिहास और विरासत
सन 1810 में झज्जर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना हुई जिसका संबंध जोधपुर रियासत से था| सन 1803 में मराठों को
हरा कर सिरजी अंजनगांव की संधि के बाद अपने मददगार निजाबत अली खान को उन्होंने इनाम के तौर पर झज्जर का विशाल इलाका दिया जिसके तरत दादरी और कानोड के आलावा हाँसी तक का इलाका आता था| लेकिन इतना बड़ा इलाका बिना लश्कर के संभालना ......आगे पढ़िए (52 - 02/11/2013)
"पल्ला-झाड़ संस्कृति"
किसी समाज-पंथ-देश का दुनियां पर वर्चस्व इसी बात से निर्धारित होता है कि वहां लिंग-भेद (gender-bias) किस स्तर का है। कोई मुझे पश्चिम (western europe) में बैठा होने के कारण कितना
ही कोसे और इल्जाम लगाए कि मुझपे पाश्चात्य सभ्यता का असर बोल रहा है, लेकिन यह पाश्चात्य सभ्यता का वो वाला असर तो कदापि नहीं है जिसके कारण भारतीय और भारतीयता अपने यहाँ पनपने वाली नई-नई बुराइयों की जड़ें उनकी अपनी संस्कृति और दोगलेपन में ढूँढने के बजाय पाश्चात्य ......आगे पढ़िए (51 - 23/10/2013)
जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी
सविनय निवेदन है कि जो यह मानते हों कि धर्म, ग्रन्थ, पुराण इत्यादि व्यक्ति के आस्था, विश्वास, चरित्र, सभ्यता,
लिंग-समानता, रंग-भेद, जातिवाद को पैदा या प्रभावित नहीं करते वो इस लेख को कृपया ना पढ़ें। यह लेख उन प्रगतिशील लोगों के लिए है जो यह मानते हैं कि हमें समय के अनुसार समाज की विचारधारा और बदलाव का रूख देख धार्मिक चरित्रों, किस्सों, किरदारों में भी संसोधन करते रहना चाहिए। ......आगे पढ़िए (50 - 02/10/2013)
क्या निडाना आज भी सांड छूट रह्या सै?
20/08/13 को आडम्बरों-पाखंडों के खिलाफ प्रकाश की ज्योति जलाने वाले ‘नरेन्द्र दाभोलकर जी‘ की हुई अकस्मात हत्या के बाद मीडिया ने पाखंडों, ढोंगियों, टूणे-टोटकों के खिलाफ ऐसी डिबेट छेड़ी, लगा कि जैसे अब तो ये भारत को
आडम्बर और पाखण्डमुक्त बना के ही हटेंगे| दंभ सा होने लगा कि जैसे ये सदा से ही इन आडम्बरों के खिलाफ थे और अब तो ढोंगी-पाखंडियों की खैर नहीं| पर अंत में हुआ वही जो ऐसी ......आगे पढ़िए (49 - 31/08/2013)
संस्कृति के असली वाहक
जहाँ एक तरफ हरियाणा के मेट्रो-सिटीज में रहने वाले अधिकतर हरियाणवी, दिन-प्रतिदिन दूसरे राज्यों के लोगों के प्रवासन के धुंधलके में धूमिल होती हरियाणवी संस्कृति और एक अस्थाई व् अपरिभाषित सी आधुनिकता और
अग्रिम कहलवाने की चकचौंध में अपने आपको हरियाणवी कहलाने में आत्म-विश्वास पर हलके उतरते जा रहे हैं और शायद यह सोचते हैं कि ......आगे पढ़िए (48 - 15/08/2013)
15 अगस्त 2013 के अवसर पर
तख्त बदल गए, दरख्त बदल गए, बदली नहीं गुलामी,
विडम्बना रोती अर्श पर, गिरफ्त गिद्दों की देश की चाबी।
जनता रूठे पर सिंहासन ना छूटे, करो चाहे जो मनमानी,
कौन आत्मा कराहती बनाने को, देश की छटा असमानी? हमारे भारतवर्ष की आजादी ......आगे पढ़िए (47 - 15/08/2013)
बच नहीं पाई बुनकरों की धरोहर
गये जमाने में हरियाणा में जुलाहा या बुनकर वर्ग के लोग मुसलमान और धाणक (कबीरपंथी) दोनों ही जातियों में से हो
सकता था। आजकल ज्यादातर जुलाहे कबीरपंथी जाति के हैं। इन्हें नये कानूनों के तहत बेशक ......आगे पढ़िए (46 - 12/08/2013)
हरियाणा में आहार परम्परा
हरियाणा में खान-पान की संस्कृति के क्रमिक विकास की दास्ताँ यहाँ के घरेलू पालतू पशुओं और वनस्पति के अलावा
मानवीय कौशल से जुडी रही है| गंगा और सिन्धु के विशाल और उपजाऊ मैदान में स्थित इस भू-भाग ......आगे पढ़िए (45 - 21/07/2013)
गठ्वाला खाप के अमर जौहर को संजोये - 'मोखरा गाँव'
गठ्वाला खाप के अमर-अजर गौरवशाली जौहर को संजोये मलिक (गठ्वाला) जाटों का सिरमौर, जराहिया नाईकी खेड़ा-भक्ति
व् भगाणा वाले ब्राह्मण का उपकार धारे नौ-सौ साल से दुर्ग सा खड़ा 'मोखरा' ......आगे पढ़िए (44 - 11/07/2013)
गावों के लोक-इतिहास लेखन की जरूरत
स्थानीय लोगों द्वारा विकसित की गई अनेकों तकनीकें, यांत्रिक प्रणालियाँ, रीति-रिवाज, लोक-परम्पराएँ एवं मान्यताएं, अभिव्यक्ति के सजीव व् निर्जीव प्रतीक एवं रचनाएं, कलात्मक भवनों की धरोहर और उनके अलंकरण को लेखन की भारी जोह ......आगे पढ़िए (43 - 28/06/2013)
हरियाणा में धर्मशालाओं की परम्परा
हरियाणा में धर्मशालाओं के निर्माण और व्यवस्था की परम्परा सम्भवत: मौर्यकाल से शुरू हुई होगी क्योंकि पथिकों, यात्रियों
और व्यापारियों द्वारा गाँव या नगर में प्रवेश करने के बाद उनके विश्राम और ......आगे पढ़िए (42- 27/06/2013)
अनूठी हैं ताजपुर की हवेलियाँ
अहीरवाल क्षेत्र का ताजपुर गाँव पारम्परिक रूप से बनायी गई हवेलियों के मामले में अनूठा कहा जा सकता है| यहाँ वैसी हवेलियाँ नहीं है जैसी कि मध्य व् उत्तर हरियाणा में पायी जाती हैं| ताजपुर की हवेलियों का विन्यास तो सभी अन्य स्थानों पर निर्मित की गई ......आगे पढ़िए (41 - 27/06/2013)
ऐतिहासिक वास्तु धरोहरों से भरपूर - फर्रुखनगर
फर्रुखनगर का इतिहास शान-ओ-शौकत के दौर से गुजरता हुआ जल्द ही भरतपुर के
महाराजा सूरजमल से युद्ध में उलझ कर मार खा बैठा, लेकिन कुछ वर्ष बाद इस पर पुन: पुराने लोगों का कब्ज़ा हो गया| इसके बाद अंग्रेजों के दौर में यहाँ लगभग शांति ही रही, परन्तु सन १८५७ की क्रांति में यहाँ के नवाब द्वारा मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर की तरफदारी और ......आगे पढ़िए (40 - 25/06/2013)
डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल खेत-कीट किसान पाठशाला - सत्र २०१३
कीट साक्षरता के अग्रदूत डा. सुरेंद्र दलाल द्वारा थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए जिले में शुरू की गई मुहिम को आगे बढ़ाने
के लिए शनिवार (२२ जून) को साल २०१३ के कीट साक्षरता अभियान का शुभारम्भ डॉक्टर दलाल द्वारा तैयार की गई कीट कमांडों किसानों की टीम तथा कृषि विभाग के सौजन्य से किया गया| यह पाठशाला अब अगले २० सप्ताह तक चलने की योजना है ......आगे पढ़िए (39 - 23/06/2013)
लोकवार्ता की प्रस्तुती सम्बन्धी दिक्कतें
हरियाणा में लोकराग, लोकवार्ता अथवा फोकलोर में नये उत्पाद यदा-कदा देखने में
आते हैं| आजकल में आये ऐसे 'साहित्यिक उत्पाद' हमारा कितना ध्यान खींचते हैं? इन्हें पढने के लिए हमें स्वयं से जबरन काम लेना पड़ता है चूंकि बात को न तो मजेदार तरीके से कहा गया होता है और ......आगे पढ़िए (38 - 22/06/2013)
सिखों की रियासत था बुद्धकालीन बूड़िया
यमुनानगर और जगधारी, दो जुड़वां नगरों से करीब दो कोष दूर पूर्व में बसा हुआ है एक ऐसा कस्बा जिसका इतिहास काफी पुराना होते हुए भी लोगों ने इसका नाम
शायद ही कभी सुना हो| इस नामालूम से कस्बे का नाम है बूड़िया ......आगे पढ़िए (37 - 20/06/2013)
कायम है अभी तक महम की महिमा
मध्य हरयाणा के जिला रोहतक का एक प्राचीन नगर है महम| हाईवे नम्बर १० पर
यात्रा करने वालों को यहाँ के ऊँचे टीले पर बनी हुई इमारतें बहुत दूर से दिखाई देती हैं| महाभारत काल से ले कर आज तक महम ने बहुत उतार-चढाव देखे हैं| कितनी ही बार आक्रमणकारियों ने इस बर्बाद किया लेकिन जीवट के धनी लोगों ने इसे न केवल बार-बार बसाया बल्कि समृद्ध भी किया ......आगे पढ़िए (36 - 17/06/2013)
खाप बनाम मीडिया
प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट करना उचित रहेगा कि खाप पंचायतों और उनकी कार्यवाहियों के प्रति ज्यादातर मीडियाकर्मी अज्ञानी हैं
और वो हमें अक्सर विरोधी पाले में बैठे नजर आते हैं| आश्चर्यजनक बात यही भी है कि हरियाणा के अधिकतर बुद्धिजीवी जो कि ......आगे पढ़िए (35 - 17/06/2013)
जवानी में नहीं तो फिर कब करेंगे
विकृत आधुनिकता, आर्य-समाज की अनुपस्थिति से पैदा हुई आध्यात्म तप और चिन्तन की रिक्तता, दूसरों (पड़ोसियों, सहकर्मियों, सहपाठियों, सहविचरणियों ) से बड़ा दिखने या बराबर का बनने
की अस्थाई चंचलता और समाज में किसी कालजयी प्रेरणादायक सामाजिक सभ्यता के स्तंभ की अनुपस्थिति का हरियाणा के ग्रामीण आंचल में ईतना दुष्प्रभाव हो चुका है कि अबोध युवा-पीढ़ी नें अपने अनैतिक कार्यों की वैधता के लिए एक नया तकिया-कलाम गढ़ लिया है कि...... आगे पढ़िए (34 - 14/06/2013)
भित्तिचित्रों के संरक्षण की जरूरत
हरियाणा के जनमानस में ललित कलाओं के पैमाने क्या रहे हैं? उपलब्ध प्रतीकों और बिम्बों के सहारे क्या हम कोई सार्थक अनुमान लगा सकते हैं? ऐसे अनुमान लगाने के लिए केवल प्रतीकों और बिम्बों के अलावा हमें साहित्य और
जनमानस द्वारा संरक्षित की उन मौखिक और यथार्थपरक धरोहरों को भी टटोलना पड़ेगा जो प्रलेखित होनें के अलावा अप्रलेखित भी रह गई हैं....... आगे पढ़िए (33 - 08/06/2013)
पबनावा का गौरवपूर्ण इतिहास
हरियाणा के गावों का अस्तित्व प्राचीन काल से ही प्रकृति द्वारा निर्मित सरोवरों की वजह से कायम रहा है| ऐसे ही एक प्राचीन तीर्थ सरोवर के कंठारे बसा हुआ
गाँव है पबनावा जो कि आदिकाल में पवनहृद तीर्थ के नाम से....... आगे पढ़िए (32 - 07/06/2013)
छात्तर गाँव की गौरवशाली कला-संस्कृति
कला और सांस्कृतिक धरोहरों को संजो के
रखने में हरियाणा के जींद जिले इस गाँव का अपना एक मुकाम है| छात्तर गाँव उन गावों में से एक है जो अपने इतिहास और धरोहर से कहीं अविष्म्यी प्रभावित करता है, प्रस्तुत है...... आगे पढ़िए (31 - 06/06/2013)
हरियाणा का साहित्यिक गौरव
हरियाणवी साहित्य क्या है, इसकी कृतियाँ क्या हैं, किस्से और हस्तियाँ कौन है? क्या वाकई में हरियाणवी साहित्य-शून्य हैं, ऐसे प्रश्नों की उत्तर देने की कोशिश है यह लेख| यह लेख उन लोगों के लिए भी एक
उत्तर माना जा सकता है जो अक्सर हरियाणा को साहित्यहीन व् इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ मानते और बताते आये हैं...... आगे पढ़िए (30 - 02/06/2013)
दुनिया से विदा हुए कृषि क्षेत्र के अग्रदूत डा. सुरेन्द्र दलाल
किसानों को कीट ज्ञान का पाठ पढ़ा कर नामुमकिन को कर दिखाया मुमकिन,
ब्लॉग के माध्यम से विदेशियों को भी दिखाई नई राह,कीटनाशक कंपनियों के साथ छेड़ा था शीत युद्ध....... आगे पढ़िए (29 - 24/05/2013)
पशोपेश किसान
एक इंसान उसकी रचना-सरंचना को अपनी इच्छानुसार नाम दे सके, उसका गुणगान कर सके, उस पर गर्व कर सके, उसके बूते ख्याति-प्रसिद्धि और पहचान पा सके,
आखिर यही तो अंत-परिमाण के लिए वो जीता है, ताउम्र खटता है| लेकिन सरकार और तथाकथित पढ़े-लिखे, सभ्य-सभ्रांत समाज ने ऐसी कोई कसर नहीं छोड़ रखी जिससे यह तो सुनिश्चित हो ही कि...... आगे पढ़िए (28 - 14/05/2013)
किसानों को हो रहा भारी नुक्सान
आज भी देश में किसान की पैरवी करने वाला कोई नजर नहीं आता। यही कारण है कि सराकरों के आंकड़े बताते हैं कि किसानों
की फसल उत्पादन में भारी लागत आ रही है, बावजूद उसके देश की राजधानी में बैठे उनके नीति निर्धारक किसान का गला...... आगे पढ़िए (27 - 25/04/2013)
हैवानियत
15 अप्रैल 2013 को दिल्ली में 5 साल की बच्ची से हुए बलात्कार की घटना ने विवेचना पर मजबूर किया और सोचने लगा कि ऐसे बलात्कारों के पीछे वजहें क्या बनती हैं| इन वजहों में क्रूर इंसान की
मानसिकता तो मुख्यत: जिम्मेदार रहती ही है...... आगे पढ़िए (26 - 22/04/2013)
दादा नगर खेड़ा
हरयाणवी संस्कृति की सर्वोच्च मान्यता की मीमांसा| यथार्थ बनाम अयथार्थ (Realism versus mythology) - खापलैंड की मूल जातियों की आध्यात्मिक व् मनोवैज्ञानिक आस्था का केंद्र-बिंदु...... आगे पढ़िए (25 - 06/04/2013)
हरयाणे के वीर योद्धेय
जिस महत्वपूर्ण योद्धेय जनपद को आधुनिक इतिहासकारों ने उपेक्षा कर के भुला ही रखा था उसके विषय में व्याकरण अष्टाध्यायी में महर्षि पाणिनी जी ने अनेक सूत्रों में चर्चा की है। योद्धेय गणराज्य शतद्रु (सतलुज) के दोनों तटों से आरम्भ होता था...... आगे पढ़िए (24 - 10/03/2013)
ऊंची सोच
ऊंची सोच, पक्का इरादा और कड़ा संघर्ष, सफलता की गारंटी है| प्रस्तुत है 50 ऐसी
राष्ट्रीय एवं अन्य-राष्ट्र शख्सियतें, जिन्होनें जीवन से विषम परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को सिद्ध किया...... आगे पढ़िए (23 - 05/03/2013)
खापों का ऐतिहासिक महत्व
मौर्य काल में खापों की न्याय व्यवस्था वर्णन मिलता है| महाराजा हर्षवर्धन (थानेसर के राजा) ने अपनी बहन राज्यश्री को
मालवा नरेश की कैद से छुड़ाने में खाप पंचायत की सहायता मांगी थी जिसके लिए...... आगे पढ़िए (22 - 10/02/2013)
बदनाम समाज
हरियाणा सामाजिक चीजों को ले के ईतना बदनाम क्यों हो रहा है? क्यों नहीं होगा, अब देश का सारा बुद्धिजीवी वर्ग तो हरियाणा के एन सी आर में आके बैठ गया है, सारे मीडिया के कार्यवाही केंद्र यहाँ खुल गए हैं...... आगे पढ़िए (21 - 07/02/2013)
विकृत आधुनिकता
हर युग में और हर समाज में अच्छे-बुरे सभी उदाहरण रहे हैं, कौन किस से प्रेरित होकर क्या करता है इसकी विवेचना
आसान नहीं है। लगभग एक ही वक़्त दो बच्चों को उनके बुजुर्गों ने राजा हरिश्चन्द्र की कथा सुनाई.......आगे पढ़िए (20 - 02/01/2013)
आर्य समाज के बाद क्या?
यज्ञ-कुंड भुजे पड़े, आर्य हो खड़ा रे|
सभ्यता तेरी कुंद हुई, काल के ग्राहक रे|
ले उठा क्रांति-मशाल निकल, क्यूँ सहमा हुआ
रे,
तूने हर युग सभ्यता घड़ी, अब हो नया दौर शुरू रे||...... आगे पढ़िए (19 - 14/12/2012)
समाज का मोडर्न ठेकेदार
मेरा और समाज के मोडर्न ठेकेदार का खाप विषय को ले के विचार-विमर्श| और अंतत: पाया कि आपके सिवा अपना और
अपने समाज का आपसे बेहतर और बढ़कर चिन्तक, सुधारक और उस पर गौरव करने वाला, कोई नहीं हो सकता...... आगे पढ़िए (18 - 28/11/2012)
प्रगतिशील आन्दोलन
सब को साथ ले कर चलने वाली जिंदगी ही दरअसल जिंदगी है और वो निरंतर प्रगति के बिना संभव नहीं| प्रगतिशीलता किसी
बाहरी ताकत की देन नहीं बल्कि हमारे ऐतिहासिक पुरोधाओं की प्रवृति रही है|...... आगे पढ़िए (17 - 20/11/2012)
निडाना के अजूबे
गाँव के ऐसे लोग जिनके पास अपने मूल कार्यक्षेत्र के अलावा असाधारण शारीरिक क्षमता, विलक्ष्ण वीरता, तीव्र बुद्धि और
आत्म शक्ति के संचय की सिद्धि थी या है| यानी एक शख्स की Extra Curricular Skills...... आगे पढ़िए (16 - 20/11/2012)
सर्वखाप
खाप की परिभाषा क्या है, इनके चुनने की पदति क्या रही है, जानिये इस जातीपाती से रहित युगों पुराने संसार के सबसे बड़े एवं पुराने लोकतान्त्रिक सामाजिक समन्वय के तन्त्र के बारे में...... आगे पढ़िए (15 - 10/11/2012)
प्रदेश की 47वीं वर्षगांठ पर
हरियाणा के प्राचीन इतिहास का उल्लेख न करते हुए हरियाणा प्रदेश के गठन की 47वीं वर्षगांठ पर प्रदेश की दशा और दिशा पर एक नजर डालते हैं।...... आगे पढ़िए (14 - 31/10/2012)
ना भेज ऐसे देशों में हो दाता!
हर कोई महिला उत्पीड़न के मामलों से त्रस्त तो दीखता है पर इनके समाधान
करने को ले गंभीर कोई-कोई ही| महिला अधिकार, सम्मान और स्वतन्त्रता की बातें तो ऐसी हो के रह गई हैं...... आगे पढ़िए (13 - 30/10/2012)
रत्नावली उत्सव
27 अक्टूबर से 30 अक्टूबर 2012, कुरुक्षेत्र विश्वविधालय परिसर में! और साक्षी बनिए हरियाणवी संस्कृति के अठ्ठाइसवें महाकुम्भ के!...... आगे पढ़िए (12 - 25/10/2012)
जलवायु संकट
अगर आज हमनें जलवायु परिवर्तन पे गंभीर संज्ञान लेते हुए, जरूरी कदम नहीं उठाये तो आने वाले समय में हम कृषि खाद्द्यानों में पोषकता की कमी और भारी जल संकट में फंस सकते हैं|...... आगे पढ़िए (11 - 24/10/2012)
तालिबानी कौन?
मैं असवैंधानिक खाप छोड़ के दूसरे समाज को धारण करूँ भी तो किसको हर कोई तो किसी ना किसी बुराई से ग्रस्त है? या तो मुझे ऐसा सवैंधानिक समाज बताएं जो उनकी ही बताई बुराइयों से रहित हो और हो, अन्यथा यह
साम्प्रदायिकता का जहर उगलने की नूरा-कुश्ती बंद हो|....... आगे पढ़िए (10 - 13/10/2012)
आरक्षण और जातिगत कानूनों ने किसान को क्या दिया?
आज का किसान जैसे लोहे के चने चबाया हुआ परन्तु लाचार| सदियों से किसान के कंधे से कन्धा मिलाकर काम करते आये...... आगे पढ़िए (9 - 27/09/2012)
स्थानीय तीज-त्यौहार
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार तीज के त्यौहार को गाँव का प्रथम और होली के त्यौहार को गाँव का अंतिम त्यौहार कहा
गया है| मेख का दिन, जिसको कि पंजाब में बैशाखी के नाम से जानते हैं|...... आगे पढ़िए (8 - 06/08/2012)
रक्षा का बंधन
माँ-पिता और डॉक्टर के अलावा एक भाई कैसे कन्या-भ्रूण हत्या को रोक सकता है? भाई-बहन के रिश्ते में इतनी सिद्दत बरतने और श्रद्धा होने पर भी हमारे यहाँ लड़कियों की संख्या ऊपर क्यों
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं - NH