प्रस्तावना: निडाना गाँव के ऐसे किस्से जो आज किद्वन्ति बन चुके हैं, जिनमें रोमांच भी है, अपने खेड़े के लिए स्वाभिमान और अभिमान भी है, वीरता भी, चतुराई भी, कटुता भी, व्यंग्य और हंसी-ठिठोली भी। लेकिन इनमें ऐसा ख़ास भी बहुत कुछ है जो इनको ऐतिहासिक बनाता है, ऐसा तार-तम्मय जो इनको लोक-कथाओं का दर्ज दिलवाता है।
इनको मैंने बचपन में मेरे दादा-दादी की गोदियों में बैठ सुना था| जितना रोमांच, उत्कर्ष, अचंभित सा कर जाने वाला अहसास तब उनके मुख से सुनते हुए होता था, उससे कहीं ज्यादा आज जब वो दोनों पुण्यात्माएं स्वर्ग-सिधार चुकी हैं, इनको आमजन के लिए लिखते हुए हो रहा है। तन-मन के तार मेरी उँगलियों से भी तेज दौड़ना चाहते हैं और पलक-झपकते जितने क्षण में इनको लेखनी में तब्दील कर देना चाहते हैं। इनको अगर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचारित नहीं किया जाए तो गाँव की उम्र-पहचान-परिभाषा सब घट जाया करती हैं, धूमिल हो जाया करती हैं, गाँव मरण-सैय्या पे सोये समान हो जाता है। फिर यह तो एक नैतिकता के आधार पर भी मुझे करने की प्रेरणा मेरे दादा-दादी से ही मिलती है, वही प्रेरणा जिसके तहत उन्होंने मुझे ये किस्से सुनाये थे।
वो प्रेरणा कहती है कि यह खजाना मेरा नहीं, बल्कि मेरे पास तो मेरे पुरखों की वो धरोहर है जो रिले-रेस की उस बैटन की तरह होती है जो दौड़ का अपना हिस्सा पूरा होने पर आगे पास कर दी जाती है, तो मैं भी आज इसको आगे बढाते हुए, इन किस्सों को मेरे गाँव की आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए लिखने जा रहा हूँ।
इसमें और भी ज्यादा ख़ुशी इस बात की हो रही है कि अब इन किस्सों को सिर्फ मेरे गाँव के लोग ही नहीं अपितु इन्टरनेट पर जहां तक यह लेख जायेगा वहाँ तक जन-जन पढ़ेगा। जो धरोहर मेरे दादा-दादी संचार के सिमिति दायरे होते हुए मेरे या मेरे भाई-बहनों तक पहुंचा सके वो आज एक विशाल जन-समूह तक पहुचेंगे।
आज उन्हीं की जुबानी इनको यूँ-का-यूँ इस लेख में उतारूंगा| कहते हैं यही बातें तो एक गाँव के इतिहास-एकाकीपन-सुसंगठन को परिभाषित करती हैं। इसलिए आज शुरू कर रहा हूँ गाँव के इतिहास के वो पन्ने जो आज गाँव की लोक-कथाएं बन चुके हैं|
दादा-दादी द्वारा इन किस्सों को सुनाते वक्त लगाई सहिंता: किस्से लिखना शुरू करने से पहले कुछ ऐसे निर्देश जो मेरे दादा-दादी ने ये किस्से-कथाएं सुनाते वक्त मुझे निर्देशित किये थे वो बताना बहुत जरूरी है। इन कथाओं में कुछ ऐसे पहलु हैं जो उन्होंने सार्वजानिक स्थान पर लिखने/बताने के लिए कुछ सहिंताएं लगा के बताने को कहा था। क्योंकि इन किस्सों में कई बिंदु ऐसे हैं जिनमें कि वास्तविक पात्रों के नाम छुपाने जरूरी हैं, हालाँकि एक निडाना वाले के लिए एक निडाना वाले को बताते वक्त तो छुपाने जरूरी नहीं परन्तु अगर निडाना से बाहर भी अगर कोई उनको पढ़ेगा (जैसे कि यहाँ इन्टरनेट पर पढने वाले दोनों तरह के होंगे यानी निडाना के भी और निडाना से बाहर के भी) तो सामाजिक परिवेश को समझ कर ही इनको चर्चित किया जाना चाहिए|
उन्होंने यह भी कहा कि हालाँकि यह किस्से एक गाँव के आम किस्सों की तरह होते हैं और हर गाँव में ऐसे किस्से-कथाएं होती हैं जो सिर्फ उस गाँव के ही गौरव-अभिमान-स्वाभिमान |
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और पहचान से जुड़ी होती हैं। जो उस गाँव की चेतना में प्राण संचारित करती हैं, इसलिए उन्होंने मुझे सख्त निर्देश दिए थे कि इनको सिर्फ अपने गाँव पर गर्व या सहानुभूति से जोड़ के देखना और कभी भी किसी के आगे इर्ष्य-द्वेष के चलते मत कहना।इसलिए इन किस्सों को पढने वाला यहाँ से आगे बढ़ने से पहले यह जरूर समझ ले कि यह किस्से किस भावना व् उद्देश्य से लिखे जा रहे हैं अथवा लिखे गए हैं।
और अगर इस लेख को कोई निडाना से बाहर का इंसान पढ़ रहा है तो वो इस लेख को एक प्रेरणा की तरह ले और उनके अपने गाँव-गली-मुहल्ले-शहर के ऐसे ही किस्से याद करते हुए पढ़े तो स्वयं को लेख से ज्यादा जुड़ा हुआ व् पढने में आनंदायक महसूस करेगा।
हाँ अगर कोई इसको लेखक की अपने गाँव बारे शेखी बघारने वाली मंशा से पढ़ेगा तो वो निसंदेह इस लेख का आनंद नहीं उठा पायेगा, इसलिए अगर पाठक स्वयं को इस मंशा से रिक्त रखते हुए इस लेख को पढने में असमर्थ है तो वह यहीं से लौट जाए, आगे का आनंद व् विस्मय दोनों ही निसंदेह आपके/उसके लिए नहीं है|