कनागताँ (श्राद) का हो सै आस्सुज का पहला पखवाड़ा:
हिन्दू धर्म की मानता के ह्य्साब तैं आस्सुज का कृष्ण पक्ष पितर-पूजा का हो सै| इन पन्द्राह द्य्नां म्ह सब आपणे-आपणे सुरग स्य्धारे होड़ पुर्ख्याँ के प्यतर पूज्या करें| बताया जा सै अक इस बख्त म्ह नया काम शरु करणा शुभ नि मान्या जाया करदा| बाहर-भीतर यानी गाम-गमिणे अर सय्गारां की आवाजाही की भी मनाही हो सै ताके खसम आपणे प्यतर पुगा दे| इस दौरान बहु-बेटी पीहर म्ह सै तो पीहर म्ह अर जै स्युसराड़ म्ह सै तो स्युसराड़ म्ह ए डयटैगी|
आस्सुज अर साहित्य:
आस्सुज की आस, फसल फळऐ ख़ास,
इह्सा रंग लाइए दादा, हो ज्या हर्षोल्लास|
रंग भी सजाणे, ब्याह-वाणे भी पुगाणे,
तीज-त्युहारां पै, पडै ना काळी रयात||
आस्सुज के पारय्मपरक लोकगीत:
"सांझी री":
सांझी री मांगै मड्कन जूती,
कित तैं ल्याऊं री मड्कन जूती।
म्हारे रे मोचियाँ कें तैं,
ल्याइये रे बीरा जूती॥
सांझी री मांगै हरया गोबर,
कित तैं ल्याऊं री हरया गोबर।
म्हारे रे पाळी ब्य्टोळएं गोरयां,
ल्याइये रे बीरा, हरया गोबर||
सांझी री मांगै दामण-चुंदड़ी,
कित तैं ल्याऊं री दामण-चुंदड़ी|
म्हारे रे दर्जी के भाई,
दे ज्याइये रे दामण-चुंदड़ी||
सांझी री मांगै गंठी-छैलकड़ी,
कित तैं ल्याऊं री गंठी-छैलकड़ी|
म्हारे रे सुनारां के तैं,
ल्याइये रे बीरा गंठी-छैलकड़ी॥
सांझी री मांगै चिकणी-माटी,
कित तैं ल्याऊं री चिकणी-माटी|
म्हारे रे डहर-लेटा की,
ल्याइये रे बीरा चिकणी-माटी||
सांझी री मांगै नए तीळ-ताग्गे,
कित तैं ल्याऊं री नए तीळ-ताग्गे|
म्हारे रे बाणियाँ के तैं,
पड़वाइए रे बीरा तीळ-ताग्गे||
सांझी री मांगै छैल-बैहलड़ी,
कित तैं ल्याऊं री छैल-बैहलड़ी|
म्हारे रे खात्ती के तैं,
घड़वाइए रे बीरा छैली-बैहलड़ी॥
सांझी री मांगै टिक्का-चोटी,
कित तैं ल्याऊं री टिक्का-चोटी|
म्हारी री मनियारण के तैं,
ल्याइये री भाभी टिक्का-चोटी||
गींड-खुळीया के खेल: आज का तो बेरा नहीं अक वें-हे चाह रह-रेह सें अक नीह पर एक-दो दशक पह्ल्याँ तै गाम के गोरयां पै गाम के गोरयां के इह्से आलम होया करदे अक आस्सुज की मोस गई नहीं, च्यांदण चढ्या नहीं अक चाँद की सीळी-सीळी सीळक म्ह उननें छड़दम मचाये नीह| न्यूं हुलार उठया करदी जाणू तो उपरला भी धरती पै झुक-झुक देख्दा हो अक यू मेरा रचाया सुरग म्ह होण आळआ नाच धरती पै कित-कित माच रह्या सै|
सांझ होंदें, रोटी-टुक्के तैं निबटदें जित एक और नैं बहु-बेटी सांझी बनाण के लाहरया पड़ जांदी ओडे-ए दूसरी औड नैं गाम के गाभरू-लड़धू-लोछर ठा-ठा आपणी-आपणी खुळीया लाठी
(देशी हाकी, जो अक एक सबूत बन्या जोड़ की लाकडी की बणी हों सें) ले-ले पोहंच ज्यांदे गाम के गोरयां पै अर देर रयात ताहीं हे-ले-हे-ले, ले-ल्यो-ले-ल्यो, यु आया - ओ गया की रूक्क्याँ म्ह गींडां की ग्याँठ सी गांठण के इह्से झोटे-से भड्या करदे अक कुदरत भी एक टक देख्या करदी, अर इह्सी स्यांत हो ज्याया करदी अक जाणु चाँद नैं भी कहंदी हो अक रे इबै मत जाइये म्यरे बेट्याँ के खेल इबै थमे नहीं सें|
कुम्हाराँ के कारोबार का सबतें ख़ास मिन्हा:इस मिन्हें म्ह सांझी फोड़ण आळए (इसे द्य्न दशहरा भी पड्या करै) पराणे माट्टी के बर्तन भी फोड़ दिए जाया करदे| अक ताके कुम्हारां के आव्याँ तें काड्या होया ताजा माळ तो ब्यके-ब्यक सकै, गेल-गेल घर म्ह फूटण अर लीक होण के कगार पै आये पराणे माट्टी के बर्तन भी बदले जा सके, जिनमें अक वें बर्तन भी होया करदे जिनमें पीने का पाणी सीळआ रहणा बंद हो ज्याया करदा अर पाणी का सुवाद भी बकबका हो ज्याया करदा|
इस करकें गाम की गाळआँ दशहरे तैं आगले द्य्न ठेकरे-ए-ठेकरे भर ज्याया करदे, जाणु तो गई रयात ऐड लागी हो अक द्य्खां कूण सारया म्ह घणे भांडे फोडैगा| कई उत तो इह्से होया करदे अक छाजे-अटारियां कूददे हांडया करदे अक क्यूँ उनकै माट फोड़ण का चाह चढ्या-ए ईतणा करदा|
खेती-बाड़ी अर आस्सुज:
बाड़ियाँ कें भोह्की-फूल-टिंडे फूटण का मिन्हा: सामण-बाधुवे म्ह जो बाड़ी नुलाई-पताई गई थी उस मिहनत के निसरण का मिन्हा हो सै आस्सुज। इस टेम घनखरी बाड़ियाँ कै भोह्की फुटण लाग ज्यां सैं अर किसान-जमींदार के सपने साकार से होण लाग ज्या सैं। क्यासान घटती-बडदी भोह्कियाँ की संख्यां गेल आपणे सपने भी घटाण-बधाण लाग ज्या सै|
जीरियाँ का न्यसरणा भी इसे टेम शरू हो ज्या सै, गंडे की पोरियाँ म्ह भी म्य्ठास भरणी शुरू हो ज्या सै| किते पछेते बाजरे चुंडे जा रेह हों सें तो किते बाजरे की पूळीयाँ की पांदी लाई जा रीह हों सें|