फाग्गण के पारम्परिक लोक-गीत:
लाग्या फागण:
लाग्या फागण फूली स्यरसम नाचण लाग्या गाम|
हरे-भरे सब खेत खड़े सैं,
ईंखां के भी बंधे ब्यड़े सैं|
गड़गोई मैं तुले धड़े सैं, ले ईश्वर का नाम||
थलियाँ पे अरहर का तोड़,
सूरजमुखी खिली बेजोड़,
सब फसलाँ मैं लागी होड़, खरे मिलैंगे दाम||
न्यूँ कहैं पीले-पीले फूल,
त्यरा भाग बदल द्याँगे हरफूल,
दुख दरदा नै जागा भूल
भली करैंगे राम||
लेखक: प्रोफेसर राजेन्द्र गौतम
हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी:
हे! चाल्लो रे लाडो, चाल्लो रे पोता, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
हे माँ मेरी - हे माँ मेरी, जाणा खरक दादा की देहळी,
बाब्बू म्हारा बैल्ह्ड़ी जोड़ें दे-रहया बुलावे की झोल्ली|
फागण के गीतां की लहरी म्ह या बणी चली फलैहरी,
सीळी-सीळी चाँदणी की, कांनां पर कै बाळ टूरै कल्हैरी||
न्यूं! मुंह-अँधेरी जा दादा के दर, लावाँ अमरज्योत की फेरी,
हे! मेहर फ्यरी जिसपै दादा की, बारहां-साल्ली भी छंटगी|
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
दादा के टिल्ले पै मेऴआ, भरया ऊँचे ध्वज का भारी,
के पारवा - के खादरिया, सब धोंक पुन्ह्चावें मनहारी|
ईब देखो दंगल के नजारे, पहलवानां की पड़ैं डाक निराळी,
कुंड काट्ठे की जांड तळए, गेल गूंजै स्वरलहरी हठियारी||
इब चढ़ेगा नजारा द्य्खे, इनामां की बरसात कांटे-आळी,
याह बोल्ली छुट्टी माह्ल्लां नैं, अर कैंची कुढाळी गडगी|
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
न्यून सारे कट्ठे हो जोह रे बाट म्ह, एक सेत्ती ल्यकडांगे,
अर ट्रेक्टर फालतू भाज्जै किसका, इस बात पै अकड़ान्गे|
रोड़-गोहर म्ह कोए आ ज्या, सुक्का ल्यकड़ण ना द्यांगे,
किते आयशर, किते फोर्ड तै किते एच. एम्. टी. भाजैंगे||
धुर्र-धुर्र करते झनझणी सी ठावें, द्यखे रंग-चा से साजैंगे,
दुनियां देखै खड़ी ल्यकड़दयां नैं, या उंमग कुणसै बळ की||
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
गाम बड़ें तो देख्या, दादा अत्तर का टयोळ स्यन्गर रह्या,
छुट्टी बोलें सारी भाभियाँ की, चन्द्र-बादी का सांग सा जुड़ रह्या|
ज्यब चाल्लें गाळआं ढोल बजांदे, आ राम जी भी ठुमकग्या,
किते बागड़ो-किते बांगरो-किते सिलाणी आळी, लिएं कोरड़ा जमज्यां||
फुल्ले भगत खेलिए संभळ कें, कदे सांस्सा-म-सांस अटक ज्यां,
कितके रंग-कितकी किलकी, पेरिस की गाळआं म्ह जकड़गी||
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
हे! चाल्लो रे पोता, चाल्लो रे लाडो, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
द्यखे! गाळआं हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
लेखक: फूल कुमार मलिक
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