सोण-सामण
 
सोण-मिन्हें
 
culturehn.html
Culture.html
!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
थाह्मे उरे सो: देहळी > सोण-सामण > सोण-मिन्हें > कात्यक
कात्यक
 
दिवाळी, चूरमा-खाणी सात्यम, गुरुपर्व, हीड़ो की मशालों, पालतू-पशुवां नैं सिंगारण-सजावण अर गंडे की पहली पाड़ का मिन्हा

'कात्यक'

"हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो"

Pronunciation: कात्यक/कातग (Hariyanvi), कार्तिक (Hindi), Katyak/Kartik (English)

बाबत: "साल के इस मिन्हे का हरियाणे (आज का हरियाणा, हरित-प्रदेश, दिल्ली अर उत्तरी राजस्थान) खात्तर के मतलब अर अहमियत हो सै"


कात्यक का मिन्हा, हरयाणा अर अनुष्ठान-संस्कार:


कात्यक हिन्दू कलेंडर का आठमा मिन्हा हो सै| जै कात्यक के मिन्हें नैं हरियाणवी तीज-त्युहार, संस्क्रती-साहित्य अर खेती के काम-धंधे के ह्य्साब तैं देख्या जा तो इस मिन्हें नैं सारे मिन्ह्याँ का स्यरमोर कह्या जा सकै सै। के त्युहार अर के खेत कमाणे सारे काम्माँ का जिह्सा स्यर कात्यक म्ह जुड्या हो सै, इसके सरूर अर धुन म्ह यु मिन्हा क्यूकर बीत ज्या इसका ज्यब-ए बेर लागै ज्यब मंगसर का जाड्डा चढ़ ज्या सै। लोकजीवन के सारे ढ़ाऴ के रंग इस मिन्हें म्ह एक कै उपर एक उन्प्राथळी गूंथे हों सै, जो खुशियाँ-रंगां-चायाँ की मनमोहणी माळआ बण ज्याँ सैं|


कात्यक के तीज अर त्युहार:

कात्यक न्हाण: कात्यक का नहाण पूरे कात्यक के माह चाल्या करै| आज-काल्य तो छिदा-छिदा रह रह्या सै पर आज तैं एक-डेड दशक पहल्यां पूरे हरयाणे के गाम्मां म्ह कुंवारी छोरी अर सुवासण बहु पहर कै तड़कै गाम के जोहड़-कुयां पै कात्यक नहाण के गीत गांदी नहाण जाया करदी| उनके गीतां की सुर-लहरी तैं सारे गाम का सयमाणा अर गळी गूँज उठया करदी|

जित आज गाम्मां के माहौल इतणे खराब हो लिए सैं अक भाण-बेटी दयन-धौळी भी घर तैं बाहर लिकड़दी भयभीत रहें जा सैं उड़ै-ए यें कात्यक नहाण के इहसे बख्त भी होया करदे अक गाम की बहु-बेटी स्व्छन्द हो जोहड़-कुयाँ पै नहाया करदी| अर माणसाँ म्ह लह्याज-शर्म की वो चौंध अक जुणसी पहरी मः सुवासण नहाँदी होंदी मर्द-माणस इन कुँए-जोहडां कै धोरै को लीकडन की भी क्याण करया करदे|

इहसे-इहसे त्युहार-कारज खू-गे जयांतें दिखै एक आज के समाज म्ह बीर सुरक्षित नहीं रह रिह| बेरा ना आज आळए ऊँ तो खुलेपण के डंके पिटदे नी छय्कदे अर न्यूँ देखै तो सारी क्याण-काज का बंटाधार होया जा सै|


करवाचौथ:कृष्ण पक्ष की चौथ का दयन| गनखरे हरयाणे के शहरी क्षेत्रां म्ह पतिदेव की लांबी उम्र बाबत राखण जाण आळआ त्यौहार। इस द्य्न बीरबानी खसम की लांबी उम्र ताहीं सांझ ताहीं व्रत राख्या करैं अर चौथ का चाँद देखें पाछै खसम के हाथां पाणी पी कें तोड्या करैं|


"होई अष्टमी" (Posterity Day): कृष्ण पक्ष की आठयम का दयन| Is there anywhere in the world a day celebrated on the name of posterity? Yes, there is one in Haryana... बाकी तो बेरा निः पर हरयाणा म उलाद खात्तर भी इह्सा-ए द्यन हो सै ज्युकर mother day, father day, valentine day etc. होया करैं| अर यो द्यन हो सै होई अष्टमी का। यू त्युहार हरयाणे गेल-गेल पूरे उत्तरी भारत म्ह मनाया जा सै| हरयाणा म इसनें बाळक चा-चायाँ म्ह "चूरमा खाणा" बरत भी कह्या करैं अक क्यूँ अक इस द्यन माँ आपणे बाळकाँ नैं चूरमा बणा कें दिया करैं। यू बरत माँ आपणी उल्याद (बेटा-बेटी दोनूं) की खुशहाली खात्तर राख्या करैं। बेटा-बेटी के पैदा होण तैं ले अर ज्यब लग सारी उलाद ब्याही नि जांदी उस लग माँ यु बरत राख्या करैं। तैड़-कै-ए-तड़क नाह-धो कें यू बरत शुरू करया जा सै अर होई-अष्टमी की कथा सुनी जा सै फेर रयात नैं बारात तोड्या जा सै|


धनतेरस: कृष्ण पक्ष की त्यास का दयन, धन-तेरस बाणीये आर ब्योपरियां का त्युहार सै| इस दयन धन के देब्बी लछमी माई की पूजा करी जा सै, क्यूँ एक जिसतैं धन का घर मः आगमन हो| सांझ के पहर या पूजा होया करै, घर के बारणयाँ आगै रंगोली तारी जाया करैं, जिसमैं रंग-ब्यरंगे फूलां आळी रंगोली तैं अर लछमी माई के पायाँ की रंगोली बणाई जाया करैं|


ग्यरड़ी (छोटी द्य्वाळी): कृष्ण पक्ष की चौदस का दयन अर


द्य्वाळी (बड्डी द्य्वाळी): मौस का दयन: आज जयब इस दोनूं त्युहारां बारे ल्य्खण लाग रह्या सूं तो मेरे मन की उडार अर अरमान दोनूं असमान चढ़े जां सैं| वा न्यूं अक यें त्युहार मनांदे हाण जो जयंदगी म्ह जो उल्लास अर संतोष मयला ओ मेरी जयंदगी नैं सम्पूर्ण करै सै| ऊँ तो दोनूं त्युहार अर इन्नै मनाण के तरीके अर कारण एक सैं पर दोनूं दयनां की आपणी-आपणी प्रकाष्ठा सै|

ब्य्वारिक (कारोबारी) कारण: ज्युकर रबी की फसल ठाण का मौका मेख (बैसाखी) हो सै न्यू-ए सारे ढाळ की खरीफ की फसल पाक्कण-ठाण-ठुवाण का मौका हो सै यू त्युहार| धान-कपास-गुवार-गंडा-तयल बरगी घनखरी खरीफ की फसल इस बख्त आवक देण लाग ज्याया करैं| घर म्ह धन-आमदणी के आण का मौका अर इसके आण की ख़ुशी म्ह धन के देबी लछमी माई की पूजा का त्युहार हो सै छोटी-बड्डी दयवाळी| इस करकें हरयाणे की कय्सान बिरादरी आपणी मिहनत का फळ मिलण की अर घर म्ह लछमी के आगमन की ख़ुशी म्ह यें त्युहार मनाया करै|

पौराणिक कारण: रामायण पुराण के मुताब्यक राजा राम जी चौधा साल का बणवास काट अर सीता जी नैं रावण की कैद तैं छुड़ा ज्यब अयोध्या नगरी पोहंचे तो उनके स्वागत म्ह पूरी अयोध्या नगरी नैं साबती रायत हेल्ली-चुबारे-मंडेरे-चुराह्यां पै घी के दिव्यां की रौशनी कर, पकवान बाँट-खा खुशियां मनाई थी अर उस दयन तैं ले अर आज लग यू त्युहार उस याद म्ह इस दयन मनाया जांदा आण लाग रह्या सै|

घरां की साफ़-सफाई, रंगाई-पुताई का मौका: दिवाळी के हफ्ते-दस द्यन पहल्यां तैं-ए घरां की साफ़-सफाई, रंगाई-पुताई का काम शुरू हो ज्या सै, अर हर ग्रहणी की होड़ सी रह सै अक मेरा घर जितणा हो सकै उतणा लय्पा-पुत्या होया नजर आवै|

घर के कूणे-कूणे नैं दिवे, मोमबत्ती, चस-बुझ लैंटां गेल जगमगाणा: घर की बड्डी लुगाई ज्युकर दादी-ताई-माँ-चाची के नयगरान्नी म्ह छोटे बाळक घर-घेर-दरवाजे-बैठक-नोहरे के बारजे-मंडेरे-छज्जे-झांकी कूणे-कूणे नैं सरसम के तेल के दिवे, मोमबत्ती तै किते चस-बुझ लैट ला रोशनाई तैं भर दें सैं|

चुराहा पूजन: चुराहे का हरयाणवी संस्कृति म्ह खासम-ख़ास महत्व सै| चुराहया ग्रामीण अर शहरी दोनूं संस्कृतियां म्ह मेंळे-मंडी-हाट-बजार लाण का सबतैं पराणा अर सबतैं बद्दी स्थान बताया| हरयाणवी ग्रामीण सभ्यता म्ह न्यूं मान्या जा सै अक किसे नैं मुनादी कराणी हो चाहे रेल्ली चाहे क्याहैं का प्रचार, गाम की चुप्याल के बाद चुराहे का हे सबतैं बड्डा दर हो सै| इस करकें हरयाणे म्ह आये बार की गेल-गेल ग्यरड़ी अर द्य्वाळी इहसे त्युहार हो सैं ज्यब चुराहे पूजे जा सैं|

इस त्युहार पै चुराहे पै दिवे ज्योत ला कें, धरी जा सै अर किमें प्रसाद भी| चुराहे नैं नै मंजिल काह्न जाण का अर च्यारूं द्यसाओं तैं इसपै आण का संगम मान्या जा सै|



मोग-मोरी-पितराळ पूजन: बय्स्वास कहो चहे अन्धब्यस्वास पर इस द्यन लच्छमी जी की पूजा हो सै अर कह्या करैं अक लच्छमी जी घर में किते-को-भी प्रवेश कर सकै सै तो सारै को दिवे ला कें प्रकाश कर देणा चहिये| के बेर लच्छमी जी कुणसे राह घर आ ज्यां| यू तो हुआ इन्नै पूजण का पहला कारण, दुज्जा कारण न्यूं बतावैं सैं अक पितराळ तो छ्यात का सारा बरसाती पाणी मकान नैं किमें नुक्सान करें ब्यना सांगो-पांग तळै तार दे सै, इस करकें पितराळ घर का रक्षक हो सै सो उस आदर म्ह आज के द्यन आदर-श्रद्धा म्ह पितराळ भी पूज्या जा सै| मोरी नैं हिंदी मः कह्या करैं सारे ढाळ के पाणी की निकासी का रास्ता, सो घर मः मोरी ना हो तो घर म्ह गंद माच ज्या, इस महत्व के कारण आज के द्यन मोरी नैं सूखा कैं उसमें दिवा लाया करैं| इब बात आई मोग की, पराणे जामान्यां की हेलियाँ म्ह छोटे-बड्डे लोहे के जाळ होया करदे जो घर साळ म्ह लाये जाया करदे, अर यें इस ढाळ लाये जाया करदे अक ऊपर बेठे माणस नैं घर की देहळ साफ़ दिख्या करदी| जिस्तें घर की बड्डी लुगाई घर तैं लिकड़णिये-बड़णिये नजर राख सकदी| इसतैं चोर-उचक्का घर म्ह पाँ धरण तैं हिचक्या करदा| तो मोग के इस महत्व के कारण आज के द्यन मोग पै भी ज्योत बाळी जा सै|

लक्ष्मी पूजन: लच्छमी पुज्जा मतलब धन की देबी की धोक मारणा| एक जाट-जमींदार तो आज के द्यन इसनें ज्यांत पुज्जै अक उसकी खरीफ की फसल तैं अच्छी आवक होवै, ब्याज जो पिहसा द्यूं उसकी सूद-समेत बोहड़ होवै, घर के डांगर-ढोर मः आच्छा मुनाफा होवै| बाणिया-ब्योपारी न्यूं पूजै अक कारोबार अच्छा चढ़ै| बाह्मण न्यूं पुज्जै अक जजमानां कै देव-उठणी ग्यास पाछै अच्छे शाह्ये जुड़ें अर उसका आच्छा काम चाल्लै| गरीब-दलित न्यूँ पुज्जै अक आच्छा रुजगार मिलै|

इस पुज्जा म्ह जिसके घरां धन की त्यजोरी हो तो ओ नोटां की गड्डी-टूम-ठेकरी गिण कैं सारियां नैं कठ्ठी करकें पूजै, उनकी टिक्का करै अर फेर त्यजोरी पै घी का दिवा धर कैं बाळ दे अर इस दिवे मः इतणा घी घाल्या जा सै एक दिवा साबती रयात चसदा रैह| और चहे घर के सारे दिवे भुझ ज्यां पर यू दिवा साबती रयात बळदा रहणा जरूरी हो सै, एक क्यूँ ताके जै लछमी माई आवै तो उसनें धन कि त्यजोरी पहलम झटक निरोळी दिख ज्या अर वा इसपै आपणी मेहर बरसा ज्या| हालांकि बात तो अंधबिस्वासी सी सै पर धन के मामले म्ह माणस एहसा-ए हो सै| खैर, हाँ जिनकै त्यजोरी नहीं होंदी वें आपनी संदूकड़ियां म्ह यें-ए सारे कारज करया करैं|

परस/चुप्याल/चौपाल/चुपाड़ पूजन: परस हो सै हरयाणवी गाम्मां का एक ह्यसाब का मंदर| हांसण-रोण का, बैठ बतलाण का, दुःख-सुख गाण का, न्या पाण का, मुनादी करण का, सभा करण का, बाट चालणिये के ठहरण का ठयकाणा| सो इन सब महत्वताओं गेल पारस हो सै गाम का दर्श| इस गाम के दर्श की गाम म्ह सबतैं ऊँची टार हो सै, सबतैं ऊंचीं अटारी इसकी होया करदी| कह्या करदे अक गाम म्ह जो चाहे जितणा ऊँचा हेल्ला-दुह्मेला छाप्पो पर अटारी पारस की अटारी तैं ऊंचीं नहीं जाणी चहिये, अक क्यूँ बाट चाल कें आणिये नैं पारस का श्य्खर बाहर गोर-गमे तैं-ए दिख ज्या अर उसनें गाम म्ह बड़ण पहल्यां-ए तस्ल्ली हो ज्या अक इस गाम की परस कित सी पड़ैगी|

पारस की अटारी सबतैं ऊंचीं बनाण का दूसरा सबब यू होया करदा अक यूं गाम का कोर्ट बाज्या करदी, कोर्ट मतलब न्या का दर, अर न्या के दर की सबतैं ऊंचीं टंकार होणीये चहिये| अर याहे टंकार हो सै जिसके कारण गाम का हर घर आपणे घर कै लोवे लाग्दी परस पै दिवा जळा कैं आया करै|

हरयाणवी दिवाळी का प्रतीक हीडो अर गादड़ की पीढ़ी: आज तो खैर ना वें बणी-बोझड़े रहे, ना वें डहर-डाबड़े रहे अर ना वें जंगळी हेर रहे, पर जै आज तैं दस-पंद्रह साल पाछै भी जा कें देखै तो गम्मां के स्य्माणे इन कुदरती खजाने तैं लबा-लब रह्या करदे| जिनमें सारै ढाळ के जी जन्योर विचरया करदे| तेंदुए, लोबां, गादड, उद ब्लाउ, शूशे, बाहरले ब्यल्ले, शेर-बघेरे, रोज अर बेरा नी करया के-के जन्योर|

तै इब थाम न्यू सोचोगे एक या इतणी लांबी भूमिका के बताण नैं बाँधी; या बाँधी सै गादड़ की पीढ़ी बताण बाबत, अक इन बणी-डाबड़यां म्ह गाद ड़ आपणी सभा लाया करदे अर जड़े जुणसी जंगाह अक लाकड़ी पै यें बेठदे उड़ै एक ख़ास ढाळ लाकड़ी बण ज्यांदी, जो अक एक बै आय्ग पकड़ ज्या तो पहरां ताहीं बळदी रह|

अर यू होया करदा दिवाळी आळी रयात हिडो बाळन का ईंधन| इसकी एक ख़ास बात और या होया करदी अक या हळके-फुल्के बाळ के झोंकयां तैं बुझया नीह करदी| गाम के कुम्हारां की बणाई होड़ हिडो ले दस तैं बीस साल लग के छोरट सांझ होंदे-ए लांबी-लांबी बांस-टूट-शीशम की बैंत सी सीढ़ी लाठी लेंदे अर उसके इस हिडो नैं बाँध लय्न्दे अर फेर उसमें माट्टी के तेल म्ह भीज्जे होड़ बिनोळे (कपास का बीज) घालदे अर उसकै ऊपर धरदे गादड़ की पीढ़ी अर इस तरियां बण ज्यांदी एक मशाल जिसनें हरियाणवी म्ह हिडो कह्या करैं| जुणसे बाळक की मशाल म्ह गादड़ की पीढ़ी ना होंदी उसनें पूरी हिडो नई मान्य करदे|

अर फेर एक-एक ढोंग-ठोळे के बाळक कट्ठे हो ऊँ उनका जी करदा उन्हें गाळा म्ह को लयकड़दे पर सबतैं घणी रौनक लाग्या करदी गाम की सदर यानी केसुहड़ा गाळ म्ह को| टोळ के टोळ मशाल ले-ले आगै बढ़दे अर गूंजा देंदे गाम की गाळा नैं, "हिडो-रै-हिडो, आज ग्यरड़ी तड़के दिवाळी, हिडो-रै-हिडो"। साबते गाम की गाळ प्रकाशमान हो लालिमा पकड़ ज्यांदी अर छोरटाँ के उद्घोषां तैं गूँज ज्यांदे गाम-गोरे अर सीमाणे| अर फेर साबते गाम का फेरा ला कें आपणे घरां आ ज्यांदे अर घर-हेलियाँ की अटारियाँ पै उन बळदी होई मशालां (हिडो) नैं धर आंदे, उनमें और बीनोळे-तेल-गादड़ की पीढ़ी धर आंदे; जो अक पहर के तड़के ताहिं भी बळें जाया करदी| यू होया करदा असली हरयाणवी दीवाळी का दुदुबंभा|

आज-कायल वें रोशनाई तो ना रही पर आज गादड़ की पीढ़ी की जगहां मशालां म्ह मोमबत्तियां नैं ले ली सैं|

आपणी-आपणी हिडो धर अटारियाँ पै मायाँ-दादियां पै भरवा खील-खेलणयाँ की झोळी रळ मील्दे संगी-साथियां म्ह अर बेठ चुराहे-बैठकां आगै खूब खांदे अर पाटदे|

बम-पट्टाके-फुलझड़ी की आतिशबाजी: जड़ै पहलड़े जमान्ने म्ह हिडो ले टोळ बणा कान्ध्या तैं काँधे मयला गाळा म्ह फेरी लाण के चा रह्या करदे आज वें चा आपणे-आपणे घरां की छात्याँ पै एक अनकही सी होड़ म्ह दूसरे तैं बायध दिखाण ताहिं बम-पटाखे फोडण म्ह बदलगे सैं| जड़ै पहल्यां त्योहार गाळा म्ह ल्यकड़ मेळ-मिलाप बधाण के मौके होया करदे आज वें आपणे-आपणे हेल्ले-दुह्मेल्यां टंग मरोड़ पाड़ण के घणे हो रे सैं|

डांगर-डोर का नुहाणा-सजाणा-स्यन्गारणा: कह्या करें अक कयसान नैं आपणा डांगर-ढोर उल्याद जितणा प्यारा हो सै| अ तो ज्यब इतणे रंग-चायां का त्युहार हो तै उसके डांगर पछै क्यूकर छूट ज्यांगे| ग्यरडी-द्य्वाळी के त्युहार पै डांगर-ढोर की ब्य्शेस साज-सज्जा हो सै:

ग्यरडी आळए द्यन मशोहके नैं नुहवा कें ल्याणा, गोहके-घोड़ियाँ कै खुर्रा फेरणा: ऊँ तैं यें काम सारी साल चाल्दे रहं सैं पर आज के द्यन इनकी नहाई-धुवाई-सफाई कि ख़ास लाय्ग हो सै| ताके नुहायें पाछै सांझ के बख्त इन्नै सजाया-सिन्गारा जा सकै|

सींग-ख़ुराँ कै सरसम का तेल लगाणा: बताया जा सै अक सरसम के तेल तैं डांगर के सींग अर खुर्र मजबूत बण्या करैं अर डांगर सुथरा लागै ओ न्यारा| सरसम का तेल डांगर नैं प्याओ चहे उसके लाओ दोनूं ढाळ तैं डांगर के गात कै लाग्या करै अर नै डांगर इसतैं नै स्फूर्ति महसूस कार्य करै|

गांडळी-गँठियां बांधणा: हाळी-पाळी साबती साल जो मोर के चंदे चुग-चुग घरां जमा करया करैं वैं इसे द्यन खात्तर करया करैं| आसुज्ज कै लाग्दाऐं पाळी सण, मोर के चंदे, रंग-बिरंगी कतरण, टाल्ली-घंटाल-घुंघरू ले गांडळी बाँटणी शुरू करदे अर ग्यरड़ी कै आंदे-आंदे तो सब किमें तैयार कर लिया करदे| म्हास-गायां खात्तर टाल्ली आळी गांडळी, झोटे-बळदां खात्तर चौरासी-गंठी बणान्दे अर सांझ नैं सारे डांगरां कै बाँध द्य्न्दे| अर fer पड्या करदी गोरयां पै होड़ न्यूँ देखण की अक किसके डांगर सारयां मः घणे ख्यल रे सैं|

गाम आळए झोटे-खागड़ ताहीं दळीया खुवाणा अर उननैं सांझे तौर पै सजाणा: हरयाणे के गाम्मां म्ह जितनी मान घर के डांगरां की ही हो सै उसतैं कई गुणा गाम आळे झोटे-खागड़ां की हो सै| कोए उननैं नुहा दे, कोए खुर्रा मार दे, कोए गांडळी बाँध दे अर चाट-दळिये की तो आज के द्य्नां इहसि पो-बाहरा होंदी अक खागड़-झोटे भी सोच म्ह पद ज्यांदे अक किसका छोडुं अर किसका खाऊँ| गाम्मां म्ह गाम आळे खागड़-झोटे गाम के द्योता मानने जा सैं अर इन ताहिं सर्वोत्तम सम्मान का दर्जा देण की मान धरी सै बड्डे-बडेरयां नैं| अर इसे मान का भाग हो सै जो गाम आळए झोटे-खागड़ भोग्यां करैं|

ताश-जुए-दारु जिहसी बुरी लत्तां म्ह पड़ घर खावण की बुराई: वा ज्युकर हर खुशी गेल गम लाग्या हो सै अर हर अच्छाई गेल बुराई न्यू-ए बाज्या-बाज्या कोढ़ी (हिंदी म्ह बुरी आदतों का शिकार) माणस इहसे उल्लास के मौकयां पै भी नाश-कळेष अर खड़दू-खाड़े करण के ह्यल्ले टोह ले सै| जै इस त्युहार पै भी कम-तैं-कम यें दारु-दप्पटे करणे अर जुए खेलण की क्याण कर लें तो इस त्योहार बरगा त्युहार नी पाणा धरती पै|

समूं का पहला गंडा पाड़ण का द्यन: आसुज्ज के मिन्हे म्ह जिस गंडे म्ह म्य्ठास चढ़णी शरू हो ज्या सै वा द्य्वाळी लग आंदे-आंदे सही बेठ ज्या सै| अर इसे कारण गंडे की नई पाक कैं तैयार हुई फसल म्ह पहला गंडा पाड़ण का द्यन हो सै दीवाळी| घर का बाकी पकवान अर मिस्ठान एक कांनैं अर गंडे के चुसड़के एक कांनैं|


स्वामी दयानंद सरस्वती जी का निर्वाण द्यन (30-10-1883): हालांकि दिवाळी द्यन तो हो सै खुशियां का पर ज्यब-ज्यब हरयाणे म्ह इसका ज्यक्र होगा स्वामी दयानंद नैं याद करें बयना पूरा ना हो| आज के द्यन कांच मिल्या खाणा खाणे तैं स्वामी दयानंद सरस्वती जी का निधन हो गया था| स्वामी जी का हरयाणे गेल अटूट रयस्ता इस बात के कारण भी सै अक उनके दिए आर्य-समाज के सिद्धांतां नैं हरयाणे के जाट-जमींदार नैं सबतैं बाद्दु परणाया जो अक भोत-से गाम्माँ म्ह आज लग भी जारी सै।


गौवर्धन पूजा: शुक्ल पक्ष की एकम का दयन| महाभारत पुराण के मुताबयक श्री कृष्ण अवतार नैं ज्यब मींह ग्यारवाण खात्तर अयंदर द्योता की पुज्जा का ब्यरोध करया तै अयंदर द्योता छोह मः आग्ये अर अँधा-धुंध मींह गेरणा शरू कर दिया| तै उस मींह तैं गोकुल आळयाँ नैं बचावण बाबत गोवर्धन पर्वत आपनी आंगळी पै ठा लिया था| तै उस दयन तैं ले आज लग इसे याद मः यू दयन मनाया जा सै|



भाई दूज: शुक्ल पक्ष की दूज का दयन| पुराणिक कथा सै एक इस दयन यमराज आपनी भाण यमी के घर आया था अर दोनुआ नैं दुःख-सुख की बतळआई, तोहफे आदान-प्रदान करे अर यमी नैं यमराज कै तिलक करया तो बदले मः यमराज नैं कह्या अक जो आज के दयन बेबे के तिलक नैं धार-रह्या होगा ओ उसके प्राणां नैं नहीं हरैगा| बाकी या सब आपणी-आपणी श्रद्धा की बात सै, अक क्यूँ जो आज के दयन मर ज्यां सैं वें भी तो किसे-ना-किसे के भाई हो सैं अर भाई-दूज भी मना रे हों सैं|

तो कहण की बात याहे सै अक इस अन्धब्यस्वास म्ह तो कोए इस त्युहार नैं मनावै निः बाकी आपणी-आपणी श्रद्धा|


द्यो-उठणी ग्यास: शुक्ल पक्ष की ग्यास का दयन| पुराणिक मानता के हैसाब तैं आज के दयन भगवान विष्णु च्यार मिन्ह्याँ के अराम तैं जाग्या करै जो अक साढ़ की द्यो-सोणी ग्यास तैं शरू होया करै| मानता सै एक यें च्यार मिन्हें नकारात्मक वयचारां के मिन्हें हों सैं, इस करकें इस दौरान कोए शुभ काम शुरू करण तैं बचणा चहिये| इसे करकें ब्याह के शाह्यां पै भी इस दौरान रोक हो सै, जो इस द्यो-उठणी पाछै ऊठ ज्या सै|

ब्याह बरगे शुभ-तैं-शुभ मौके ज्यब हरयाणे म्ह हों तो बन्या शिन्टणयाँ के क्यूकर साच्चै हो सकें सैं| कुछ इहसे-ए सींटणे जो ब्याह के माहौल नैं खुसगवार बना दें सैं सोळए ओड़, "दे-उठणी ग्यास कै आन्दे-ए ब्याह के साह्याँ म्ह फेरयाँ पै जणेतियाँ तान्हीं दिए जाण आळए किमें सींटणे" ह्यस्से मः दिए सैं|


गुरपर्ब (गुरु नानक जयंती): परणवासी का दयन| सिक्खाँ के पहले गुरु बाबा नानक देव जी आज के दयन धरती पै अवतारे थे| इसे उपलक्ष म्ह आज के दयन गुरु-पर्व मनाया जा सै|


कात्यक के म्यठाई-म्यसठान: चूरमा, खील-खेलणे-करवे, पतासे, होई, चुग्गे, हलवा-खीर, पूरी-छोले,


खेती-बाड़ी अर कात्यक:

खरीफ फसलों की कटाई-चुगाई-झड़ाई-छुलाई की समूं:
  • उड़द-मूँग-त्यल झड़ाई
  • ज्वर-गुवार की चुंडाई-कटाई
  • कपास चुगाई
  • धान कटाई अर झड़ाई
  • गंडा(गन्ना) कटाई, छुलाई अर ढुलाई
  • खाट्टी-मीठी कचरी
लेखक: फूल कुमार (30/10/2013)



कात्यक साहित्य/दोहे:


कात्यक की रुत आ गई

कात्यक मै काई छँटी, निर्मल होगे ताल,
कंठारै गोरी खड़ी, जल मैं दमकैं गाल

कट्या बाजरा काल्ह था, आज कटैगी ज्वार,
उड़द-मूँग-त्यल पाक गे, हर्या-भर्या सै ग्वार

मैं तो इस क्यारी चुगूँ, तूँ उसकी कर ख्यास,
नणदी तेरे रूप-सी, सुधरी खिली कपास

पके धान के खेत नै, प्यछवा रही दुलार,
स्योनै की क्यारी भरी, धरती करै सिंगार

बाँध सणी के घूंघरू , धर छाती बम्भूल,
कात्यक की रुत आ गई, दुख-दरदाँ नैं भूल

दिन ढलदें उडकै चली, जब सारस की डार,
धान्नाँ आलै खेत मैं, उट्ठैं थी झनकार

मीठी कचरी फल रही, थलियां आलै खेत,
मीठी ठ्यारी आ गई, ठंडी-ठंडी रेत

मनै दिवाली खूब गी, दीव्याँ की रुजनास,
हीड़ो- कप्पड़ बाल़, कर गाल़ा मैं परकास

खील-पतासे थाल भर, लिया गोरधन पूज,
माँ-जाया जुग-जुग जियो, परसूँ भैया दूज

सारी छोरी गाल़ की , जावैं कात्यक न्हाण,
भजन राम के गा रही, सुख राखैं भगवान

चोगरदै गूँजण लगे, 'दे' ठावण के गीत,
कात्यक की इस ग्यास नै, सारे अपणे मीत

बीत्या कात्यक मास जा, लगी कूँज कुरलाण,
बाल्यम बसे बिदेस मैं, कूण बचावै ज्यान

खेताँ मैं म्हारे राम जी, खेताँ मैं भगवान,
खेताँ मैं सै द्वारका गढ़-गंगा का न्हाण

कुछ दिन मैं कोल्हू चालैं गुड़गोई के ठाठ,
भेली पै भेली बणैं, बजैं ताखड़ी-बाट

लेखक: प्रोफेसर राजेंद्र गौतम (26/10/2013)



कात्यक के लोकगीत:

सींटणे: दे-उठणी ग्यास कै आन्दे-ए ब्याह के साह्याँ म्ह फेरयाँ पै जणेतियाँ तान्हीं दिए जाण आळए किमें सींटणे:

  1. हमनै बलाए लांबे-लांबे,
    छोटे-छोटे आये री बछेरे!

  2. बाज्या-ए-नंगाडा फलाणे का, म्हारै बयाह्वण आये,
    आपणी बेबे नै छोड़ कें म्हारै ब्याहवण आये!

  3. बड़ा पढ़या ओ दादा बड़ा पढ़या,
    मार फलाह्री गधे चढ़या!

  4. फलाणे तेरी रे बेबे ब्याहिये,
    फेरां पै फूल बखेरिये!

  5. हमनै बलाए भूरे-भूरे,
    काले-काले आए री पस्सेरे ठठ्ठे आये री पस्सेरे बछेरे!!

  6. के मौसा जी थामे गाम गए थे, के ब्हाओं थे गाड्डी हो,
    बन्दडा सुथरा, पुराणा शेहरा, डूब मरे थारे भाती हो!

  7. म्हारी बन्दड़ी इस्सी खड़ी जाणू महल्या म्ह राणी खड़ी,
    थाहरा बन्दडा ईसा खड्या जाणू कुर्डीयाँ म्ह गधा खड्या!

  8. खोल ऊतणी के कांगणा,
    खोल बेशां की कांगणा!

  9. खिंडगी काक्कर-खिंडगे रौड़,
    खिंडगी जणेतियो थारी मरोड़!

  10. चुग ले काक्कर-चुग ले रोड़,
    चुग ले मौसा तेरी मरोड़!

  11. धोळी ह्वेली म्ह मोग ए मोग,
    बन्दडे की बेबे के लोग-ए-लोग!

  12. धोळी ह्वेली मोग बन्या,
    बन्दडे की बेबे लोग बना!

  13. पटडी ए पटड़ी मुस्सी जा, बन्दडे की बेबे रूस्सी जा,
    कान पकड़ कै लयावांगे, म्हारे वीर कै ब्याह्वांगे!

  14. आधी रोटी खांड बन्या,
    सारे जनेती रांड बना!

  15. फलाणे बेबे नै समझा ले हो, काब्बळइ चाल्दी,
    साड्डे लाम्बे-लाम्बे तूत, तूतां पै चढ़ी!


कात्यक न्हाण का सबतें बड्डा लोकगीत:

राम अर लछमन दशरथ के बेटे, दोनूं बणखंड जां,
हे री कोए राम मिले भगवान!

एक बण चाल्ले दो बण चाल्ले,
तिज्जै बण लग आई प्यास,
हे री कोए......

छोटे से लड़के गऊ चरावैं,
पाणी पिलाओ नन्दलाल,
हे री कोए......

ना कोए कुआँ, ना कोए जोहड़,
ना कोए सरवर-ताल,
हे री कोए......

ना कोए लोटा, ना कोए बाल्टी,
कैसे पिलावैं नन्दलाल,
हे री कोए......

सीता के बागाँ तैं उठी बदळीया,
बरस रही झड़ लाय,
हे री कोए......

भर गए कुँए, भर गए जोहड़,
भर गए सरवर-ताल,
हे री कोए......

किसके बेटे, किसके पोते,
कौण तुम्हारी मात,
हे री कोए......

पिता अपणे का नाम ना जाणां,
सीता हमारी मात,
हे री कोए......

ले चलो रै लडको उन गळीयाँ,
जिन गळीयाँ तुम्हारी मात,
हे री कोए......

सीता खड़ी-खड़ी केश सुखावै,
हरे बिरछ की ओट,
हे री कोए......

ढक ले री माता केश अपणों नैं,
बाहर खड़े श्री भगवान,
हे री कोए......

इसे भगवान का मुख ना देखूं,
जिसनें दिया बणवास,
हे री कोए......

इसे पति का मुखड़ा ना देखूँ,
धरती म्ह जाऊं समाय,
हे री कोए......

पाट गई धरती, समां गई सीता,
खड़े लखावैं श्री राम,
हे री कोए......

समांदी-समांदी का छोटा पकड़ा,
केशों की बण गई डाभ,
हे री कोए......

चाँद-सूरज के गहण होवैंगे'
जय्ब चाहिएगी डाभ,
हे री कोए......



कात्यक में किसान के दर्द और हालात अंकित करती कवी ज्ञानीराम जी की एक लोक-रागणी:

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का॥

कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही -
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्याँ कानी तैं टूट रही -
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥
चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

सारे पड़ौसी बाळकाँ खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे -
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे -
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥
एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

दोनूँ बाळक खील-खेलणाँ का करकै विश्वास गये -
माँ धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।
माँ बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए -
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।
तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामाँ सौदा ना थ्याया -
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया -
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।
कहै ज्ञानीराम थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥


कात्यक कविता:

"हीड़ो रै हीड़ो"

हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो|
गाम जळआवै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो रे चढो||

पंढे-बास्सण ले-ल्यो नए, घर के भाग खुल ज्यां ठये,
तिजोरियां पै चुग्गे बळएं, लछमी खूब-ए-खूब फळऐ|
पयत्राळ-मोरी पै जो धरें, घर के भाग फिरें-ऐ-फिरें,
धनभाग कुम्हार तेरा चाक हो, जिसपै यें ख़ुशी घड़ें||
माट्टी च्यकणी जोहड़-डहरां की, बीनो-रै-बीनो,
हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो|
गाम जळआवै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो रे चढो||

या गांडळी मरदो त्यरे ना की, बेदु आळी पाळ बंटी,
रोज चंदे मोरां के चुगे, जिनतें इसकी ग्याँठ बुणी|
टंकार-घुंघरू बळधां के, गेल जूटी थी दो-च्यार सणी,
जोहड़ नुहाऊं गात चमकाऊं, के रूंडी-खुंडी के रोजणी||
तेल लाऊं सीन्गां कै, गांडळी मोर-फुल्लां की गळ म्ह बिणी,
गामी झोटे-खाग्गड़ के घेट भी, कान्नां लग जां ल्य्दो-ल्य्दो|||
हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो|
गाम जळआवै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो रे चढो||

द्यवाळी का दयन बताया, खेतां तें पहला गंडा पाड़ण का,
समाई का फळ यू गंडे की म्यठास म्ह लबड़-लबड़ सुर्डाणे का|
सांझी दशेरे नै जो बुहाई, भाई गेल्याँ उसनै उलटी मोड़ण का,
कायत्ग के गीतां की गूँज म्ह, दशरथ के पूताँ नैं टोह्वण का||
हे-माँ-मेरी, हे-माँ-मेरी, हे-जी मन्नै राम म्यले स्यमाणे गूंजो-हे-गूंजो,
हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो|
गाम जळआवै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो रे चढो||

गाळआं चढु अल्ल्हड़ भरूँ, टोळआं के टोळआं म्ह,
हीड़ो आळी ज्योत चढ़ी बळऐ, ज्यन्दगी धक्कम पेल म्ह|
जो च्य्ढ़ ज्या पार उतर ज्या, दुनियादारी की रोळ म्ह,
हीड़ो-रै-हीड़ो जो गाळ म गूंजी, जा मिली नभछोर म्ह||
फुल्ले-भगत नैं छोड्डी फुलझड़ी, खूब चसो-रे-चसो,
हीड़ो रै हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै द्यवाळी हीड़ो रै हीड़ो|
गाम जळआवै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो रे चढो||

लेखक: फूल कुमार (25/10/2012)

कात्यक का मिन्हा तस्वीरों म



जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


विशेष: कात्यक के मिन्हे पै न्यडाणा हाइट्स की खोज लगातार जारी सै। म्हारी साईट के इस पद-भाग का उद्देश्य सै कात्यक अर हरियाणवी का जो भी मेळ-मान-मनुहार-लाग-लपेट तैं यें एक-दूसरे तैं जुड़े सें वें सारी बात कट्ठी इस भाग म्ह संजोणा। जै थाहमनैं इस भाग म्ह किसे भी हिस्से म्ह कोए कमी नजर आवै, या कोए चीज छूटी होई दिख्खै तो हाम्नें इस पते पै जरूर ईमेल करें: nidanaheights@gmail.com हाम्में थाहरे नाम की गेल वा चीज इसे भाग म्ह प्रकाश्यत करांगे|


लेखन अर सामग्री सौजन्य:

  1. प्रोफेसर राजेंद्र गौतम

  2. पी. के. म्यलक

  3. इन्टरनेट

तारय्ख: 30/10/2013

छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

हरियाणवी समूं अर उसकी लम्बेट

नारंगी मतलब न्यगर समूं, ह्यरा मतलब रळमा समूं




हरियाणवी तारय्खा के नाँ



आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
© न्यडाणा हाइट्स २०१२-१९