फेर ते ले जनम भगत हिन्द महान मै,
गद्दारा के हाथ चढ़े गे फूल तेरी मज़ार पै|
65 साल होगे आज़ादी ने,
गोरखधंधा बनागे तेरी शहादत ने|
दे रुक्का सुखदेव, राजगुरु ने,
ले पंडित आज़ाद ने आजा फेर मैदान मै||
लिख ज्य़ा एक और नयी इबादत क़ुरबानी की,
बनाओ एक नयी फ़ौज ले गेल सुभाष ने|
फेर ते ले जनम इस हिन्द महान मै||
काम अधुरा रहगा भगत,
कह उस माँ महान ने|
जने तेरे जीसा एक और शेर पूत जहान मै||
फेर ते ले जनम भगत हिन्द महान मै,
गद्दारा के हाथ चढ़े गे फूल तेरी मज़ार पै|
लेख्क्क: आवेश अहलावत
द्यनांक: 15/11/12
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एक कहानी अजब सुनो, सन अठारह सौ सत्तावन की,
एक लड़की देश-खाप में ब्याही, थी गठवाला बावन की|
नाम था ‘धर्मबीरी’, इसकी उम्र थी अठाईस साल भाई,
बड़ौत गारद के, अठारह गौरों की तेग से गर्दन उड़ाई|
चार घाव गोली के खाकर, फिर इसे मूर्छा आई थी,
देश-खाप दादा की हवेली में, तुरंत गई पहुंचाई थी|
एक कहानी बिजवाड़े रजवाड़े की बतलानी है,
बिजवाड़े की बहु, वीरों की क़ुरबानी लासानी है|
सिसौली की पुत्री थी, इसकी अजब कहानी है,
फ़ौज घुसी जब बिजवाड़े में, आगे आई यह मर्दानी है|
दोनों हाथ से तेग चलाई, कई गौरों ने मार्ग छोड़ दिया,
आखरी दम तक लड़ी गाँव में, अपना मोहरा तोड़ दिया|
पच्चीस पैदल - नौ सरदारों का थोड़े अरसे में काम तमाम किया,
जीते जी शत्रु को पीछे हटा, अपना ऊँचा नाम किया|
अमर हुई गई स्वर्गलोक यह बिजवाड़े की रानी थी,
जीते जी इसने गोरों की बोटी-बोटी छानी थी|
तीसरी कहानी शाहपुर बड़ौली में, एक देवी ने देशप्रेम दर्शाया था,
बड़ौत के मैदानों में, पैंसठ गोरों से लड़कर खूब दिखाया था|
सातों को नेजे से मारा, बाकी को तेग से घायल बनाया था,
मिला अमर पद इस 'ज्ञानो' को, नाम शहीदों में पाया था|
क्योंकि एक गोरे ने पीछे से, भाले का इसपर वार किया,
बाएं हाथ से भाला पकड़ा, दायें से गोरे का सर तार लिया|
धड़ाम से पड़ा वह धरती पर, उसके साथी घबराये,
दो सवार बढे आगे को, वे भी 'ज्ञानो' ने मार गिराये|
डेढ़ पहर तक लड़ी अकेली, खून से वस्त्र लाल हुए,
रेजा-रेजा कटा 'ज्ञानो' का सात गोली के वार कमाल हुए|
ऐसी-ऐसी अमर देवियों की, सच्ची अमर कहानी है,
देश-खाप की वीरांगनाओं का, महान जीवन लासानी है|
कविता लेखक: रामदत्त भाट
सौजन्य: सर्वखाप इतिहास, सौरम मुख्यालय |
(लैंड-बिल 2015 यानी गुलाम किसान)
सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
इंकलाब और जिंदाबाद का, मिलकेँ लगा रहे नारा,
हे भगवान कौण दिन होगा, जब हो राज-काज म्हारा|
जमीं हो अपणी, आसमान पर चमकै किसानों का तारा,
मेळे लगें चिताओं पै म्हारी, हँसता रहै किसान सारा||
मुर्दाबाद जुल्म हो थारा, यें डह ज्यांगे चौकी-थाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
सर देणे की हमें तमन्ना, देखेंगें महाघोर तेरा,
वक्त आणे दे, गूँज उठैगा, पाप रूप का शोर तेरा|
चेहरे पै काळस पुत री है, खुद है मन म चोर तेरा,
चढ़-चढ़ कैं कितने गिरगे, के सदा रहगा जोर तेरा||
रळै रेत म्ह बोर तेरा, यें शमा पै जळ ज्याँ परवाने|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
वतन की इज्जत ऊंचीं हो हम इसकी आस करणीया हैं,
मंडी-फंडी हुकूमत की जड़ पाडेँ, दाहूँ नाश करणीया हैं|
किसान-कौम की आज़ादी की, हम दरखास करणीया हैं,
जीणे से ज्यादा मरणे का, हम अभ्यास करणीया हैं|
धरती-माँ के लाल हमें हैं, अपने फर्ज पुगाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
झूंम-झूंम कैं गाण लगे अब, नहीं हमें गुलाम करो,
नहीं किसान झुकै कभी भी, चाहे तुम कितणा त्रास करो|
न्यूं ही किसान चलता जावैगा, जुल्म को जालिम ख़ास करो,
'फुल्ले-भगत' टिल्ले म जा कैं, खूब जोर से अभ्यास करो||
फांसी द्यो या जन्म-कैद, लिए पहर केसरी अब बाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|
कविता लेखक: फूल मलिक
दिनांक: 19/03/2015
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Presenting a poetic tribute to Late. Dada Ch. Baba Mahendra Singh Tikait Ji on thou 4th death anniversary (15/05/2011)
धर्म छोड्या ना, कर्म छोड्या ना, फिरगे पाखंडी चौगरदे कै|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
धर्म नैं चिलम भरी थारी हो, थमनै होण दी ना पाड़ कदे,
अल्लाह-हू-अकबर - हर-हर-महदेव, राखे एक पाळ खड़े|
अवाम खड़ी हो चल देंदी, जब-जब थमनें हुम्-हुंकार भरे,
सिसौली से दिल्ली अर वैं ब्रज-बांगर-बागड़ के मैदान बड़े|
चूं तक नहीं हुई कदे धर्म पै, आज यें हाजिरी लावैं ढोंगियों कै|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
किसान यूनियन रोवै खड़ी, पाड़ उतरगी भीतर म्ह,
तीतर-बटेरों का झुण्ड हो रे, खा गये चूंट कैं चित्र नैं|
स्याऊ माणस लबदा ना, यू गहग्या सोना पित्तळ म्ह,
राजनीति डसगी उज्जड न्यूं, ज्यूँ कुत्ते चाटें पत्तळ नैं||
एक्का क्यूकर हो दादा, खोल बता ज्या इस त्यरे टोळे नैं|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
मंडी भाव-खाणी रंडी हो री, दवन्नी पल्लै छोड्ती ना,
आंधी पिस्सै कुत्ते चाटें, त्यरे भोळे की भोड़ती ना|
कमर किसान की तोड़दी हाँ, या आढ़त खस्मां खाणी,
गए जमाने लुटे फ़साने, कर्मां बची फांसी कै गसखाणी||
अन्नदाता की राहराणी बणै, तू ला ज्या बात ठिकाणे नैं|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
खाप त्यरी यैं बिन छतरी-चिमनी का हो री चूल्हा,
बूँद पड़ी अर चौगरदे नैं धूमम्म-धूमा-धूमम्म-धूमा|
टकसाळाओं की ताल जोड़ दे, ला चबूतरा सोरम सा,
'फुल्ले-भगत' मोरणी चढ़ा दे, अर पैरां तेरे तोरण शाह||
या चित-चोरण सी माया तेरी, करै निहाल सारे जटराणे नैं|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
धर्म छोड्या ना, कर्म छोड्या ना, फिरगे पाखंडी चौगरदे कै|
सिसौली आळे बाबा फेर आ ज्या, यें खागे चूंट तेरे भोळे नैं||
शब्दावली: भोळा/भोळे = किसान
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 14/05/2015
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