1. ब्यन बाप का बेटा सून्ना...! |
2. वें मोर-ध्वज कित रुळगे| |
3. हीड़ो रै हीड़ो |
ब्यन बाप का बेटा सून्ना अर ब्यन माता की छोरी|
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
हे रै ब्यन बेटे के बेटे नैं कोए आच्छी-भुंडी कहजा,
थप्पड़-घुस्से लात मार दे; बेठ्या-बेठ्या सहजा|
जिसका मरज्या बाप ओ चन्दा की ज्यूँ गहजा,
मन म उठें झाल समंदर आँख्यां म्ह कै बहज्या||
हो रै करकें याद पय्त्या नैं रोवै या काया काची कोरी,
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
हे रै ब्यन माता की छोरी कै कती रहजा मन की मन म,
सारी रात नींद ना आवै सपने आवें दयन म|
याणी उमर म दुःख होज्या जिसकी माँ मरज्या बचपन म,
हे यें ओढ़न-पहरण खाण-पीण की रह ज्यां मन की मन म||
बन्या माँ किहसी लाडली ज्यूँ चन्दा ब्यन चकोरी,
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
हो ब्यन भूमि कै जमींदार की चाल्ले किते मरोड़ नहीं,
हे रै अय्न्द्र बरसै घूर-घूर कें जल ओटण नैं ठोड नहीं |
हे रै महफ्य्ल बैठी है भाइयों की किते कुवां साझा जोहड नहीं,
हे रै उठा ब्यस्तर चल्या जाइये हमनैं तरी लोड नहीं||
या धरती उगळए हीरे मोती तेरी कोई जोड़ नहीं,
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
हे रै ब्यन बालम की गोरी का कती फीका बाणा हो सै,
हे रै आच्छी-भुंडी कोए कह ज्या आप्पा मारणा हो सै|
हे रै साज-बाज ब्यन जाट मेहर सिंह यो के गाणा हो सै,
जन्म जाट घर ले लिया इब न्यूं शर्माणा हो सै||
साच्ची बात बख्त पै कह दी भला इसमें के शर्माणा हो सै,
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
ब्यन बाप का बेटा सून्ना अर ब्यन माता की छोरी|
ब्यन भूमि जमींदारा सून्ना ब्यन बालम के गोरी ||
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मैं बणी-डाबड़े टोंहंदा हाँडु, वें गौरे-काल्लर कडै खूगे|
हेलियाँ-अटारी फहरया करदे, वें मोर-ध्वज कित रुळगे||
श्यान न्यराळी दिखया करदी, खेतां खड़े लखान्दें,
गाम दुर्ग सा धमक्या करदा, उंच्यें चौबारें चढ़दें|
गोधुळी गदराया करदी जय्ब रयोड़ गाम नैं मुड़दे,
सुरग नजारा रम ज्यांदा जय्ब बणीयाँ मोर नाचदे||
हेलियाँ-अटारी फहरया करदे, वें मोर-ध्वज कित रुळगे||
छ्यात पै सूतें पीळी-पाट्टी ज्यब सूरज हठखेळी करदा,
खेस्सी म मुंह दबकोऊ म, दादा उठ ले डूम गरजदा|
दूर समाणयाँ टुक-टुक होंदी, कितै टंकार-घुँघरू बाजदे,
छैल-बैहड़के हळआई भरें, किते गौरयाँ झोटे स्यर जोड़दे||
हेलियाँ-अटारी फहरया करदे, वें मोर-ध्वज कित रुळगे||
पनघटा की शोभ्या बण ज्यांदी जय्ब कड़ी-छलकड़े खड़कदे,
कुयाँ ढोल-चकळी चरणान्दे ज्यूँ सांगी सुर म रम रे|
किते दादी खागडां दळीया चरांदी, कितै चुराह्याँ लाडडू धरदी,
फेरी आळए की चीजां कें, तोल्लें ब्यन हाथ ना लाण द्यन्दी||
हेलियाँ-अटारी फहरया करदे, वें मोर-ध्वज कित रुळगे||
राम-रमै हो तन मेरे म जय्ब गाम याद की धुन चडै,
मन-रुळना चाहवै उन गाळआं म, गुडळीयाँ अल्हड़ भरे जडै |
वें चौपाल-परस की पैड़ीयाँ चढ़दे, फेर लुडकणा चाहूँ म,
फुल्ले-भगत मारै-मरोड़े, हयरणां ज्यूँ डाक भरी चाहूँ म||
मैं बणी-डाबड़े टोंहंदा हाँडु, वें गौरे-काल्लर कडै खूगे|
हेलियाँ-अटारी फहरया करदे, वें मोर-ध्वज कित रुळगे||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 25/08/12
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हीड़ो-रै-हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै दवाळी, हीड़ो-रै-हीड़ो|
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
पंढे-बास्सण ले-ल्यो नए, घर के भाग खुल ज्यां ठये,
तिजोरियां पै चुग्गे बळैं, लछमी खूब फळै-ए-फळै|
पयत्राळ-मोरी पै जो धरें, घर के भाग हिर-फिर फिरें,
धनभाग चाक तेरा कुम्हार हो, जिसपै यें ख़ुशी घड़ें||
माट्टी च्यकणी जोहड़-डहरां की, बीनो-रै-बीनो,
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
या गांडळी मरदो त्यरे ना की, बेदु आळी पाळ बंटी,
रोज चंदे मोरां के चुगे, जिनतें इसकी ग्याँठ बुणी|
टंकार-घुंघरू बळधां खात्यर, गेल जूटी दो-च्यार सणी,
जोहड़ नुहाऊं गात चमकाऊं, के रूंडी के रोजणी||
सीन्गां तेल लाऊं, मोर-फुल्लां लदी गांडळी त्यरी बिणी,
गामी झोटे-खाग्गड़ के घेट जां, कान्नां लग लदे-हो-लदे|||
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
दिवाळी का दयन बताया, खेतां तें पहला गंडा पाड़ण का,
समाई का फळ यू गंडे की म्यठास लबड़-लबड़ सुरडाणन का|
दशेरे नै जो बुहाई भाई गेल्याँ, उस सांझी नै उल्टी मोड़ण का,
कायत्ग के गीतां की गूँज म्ह, देशां के पूताँ नैं टोह्वण का||
हे-माँ-मेरी, हे-माँ-मेरी, हे-जी मन्नै म्यले, स्यमाणे गूंजो-हे-गूंजो,
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
गाळां चढु अल्ल्हड़ भरूँ, टोळां के टोळां म्ह,
हीड़ो आळी ज्योत चढ़ी बळै, ज्यन्दगी धक्कम-होळां म्ह|
जो च्य्ढ़ ज्या पार उतर ज्या, दुनियादारी की रोळां म्ह,
हीड़ो-रै-हीड़ो गूँज चढ़ै ज्यब, जा रळै नभछोरां म्ह||
'फुल्ले-भगत' नैं छोड्डी फुलझड़ी, खूब चसो-रे-चसो,
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
हीड़ो-रै-हीड़ो, आज ग्यरड़ी तड़कै दवाळी, हीड़ो-रै-हीड़ो|
गाम जळावै गादड़ की पीढ़ी, रोशनाई चढो-ए-चढो||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 25/10/12
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4. बात पते की |
5. "हरियाणे सी सोधी नहीं" |
6. पैगाम सुणो। |
सुख अमीरां के धोरै, यें गरीब दुःख घणे भरैं कमला,
किस-किस के दुःख दूर करै, दुनियां दुखी फिरै कमला|
कीड़ी कण बिन, हाथी मण बिन, नागण फण बिन दुखी रहै,
बाँझ जणे बिन, चकवी मिले बिन, सती सजे बिन दुखी रहै|
सूरा रण बिन, केहरी बण बिन, भूखा अन्न बिन दुखी रहै,
हळ बिन हाळी, पशु बिन पाळी, बाग़ बिन माळी दुखी रहै||
अमीर ऐश करता, गरीब आज बिन दवाई मरै कमला|
चोर पड़ोसी अर घणी ख़ामोशी, दुष्ट की यारी दुःख देज्या,
खोटी संगत अर काच्ची रंगत, जुआ अर जारी दुःख देज्या|
बाप कुलच्छणा अर मुर्ख बेटा, फूहड़ नारी दुःख देज्या,
बिन हाळी खेती अर फसल पछेती, कोड़ी-क्यारी दुःख देज्या||
या लांबी बीमारी दुःख देज्या, घणी चिंता-चित चरै कमला|
खेत रिहाळा अर खुंडा फाळा, माः का पाळा दुःख दिया करै,
भींत म्ह आळा, पछीत म्ह खाळा, घर म्ह साळा दुःख दिया करै|
दाळ म्ह काळा, पैर म्ह छाळा, आँख म्ह जाळा दुःख दिया करै,
बिगड़या ताळा, रुक्या पतनाळा, रिश्ता नाळा दुःख दिया करे||
खर्च कुढाळा दुःख दिया करे, यो कर्जा दुखी करै कमला|
ऊळझ्या ताणा, बैर पुराणा, गाम म्ह थाणा घणा दुःख देज्या,
दूर स्यमाणा पैदल जाणा भरोटा ल्याणा घणा दुःख देज्या|
खूंटा बिराणा, ल्यावै उल्हाणा, गीला ठाणा घणा दुःख देज्या,
जंग पुराणा, मैला बाणा, सड़ियल खाणा घणा दुःख देज्या||
बिना सुर के गाणा दुःख देज्या रणबीर सिंह डरै कमला|
लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
द्यनांक: 20/11/12 |
बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
पह्ल्म झटक गाम म्हारे, मानवता सदा तैं सर बैठा रेह,
वासना-द्वेष कम हो मन म्ह, गाम-गोत का इह्सा सुवा रे|
लग ज्या जिस्कै अयन्सानत फळ ज्या, इह्सी ब्यदा लोह-लाठ सी रे,
गाँधी गेल सुवा कें भी तजुर्बा कर लेंदा, फेर भी बेटी बाजी रै||
आडै सारा गाम बेटी-बाहण मान्नै, उसपै कोए नीह रिस्सया|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
हिन्दू संस्कृति म्ह धर्मधारी को मास खाणा मुहाल नहीं,
बकरे-मुर्गे सब चट कर ज्यां इस्पै किसे-का ख्याल नहीं|
एक प्रतिशत इह्सा नि पाणा जो सच्चे हिन्दू-प्रण पुगा दे,
म्हारे गाम्मा म्ह भाईचारे-सद्भाव की इह्सी-ए ऊँची प्रकाष्ठा रे||
पुगावणिया पंचाती कुहावै, नहीं तो झटका फट्बिजणे सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
पंचाती शब्द पै रोळआ ना मचाइयो अर भों-किसे नैं पंचाती ना लाइयो,
खरपतवार सारै होंदी आई, पर सच्चा पंचाती माणस उपरला लाइयो|
एंडी के हम रुखाळए नहीं, सुद्धे-सुच्चे नैं भर ल्यां कोळी म्ह,
ठाकुर-अम्मा का रोब फ़ाब्बै नहीं, राह ला दयां द्य्न-धोळी म्ह||
जाट-दलित खांदा पा ज्या एक थाळी म्ह, सै किते और मजन इह्सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
मोहम्मद गौरी तें ले आज-लग, साल 50 को इह्से गए नीह,
ज्यब हरियाणे की धरती पै, नई नश्ल का हुआ आगमन नहीं|
ईतणे झक-झोळए त्यर कें, संस्कृति म्हारी आज भी रुळी नहीं,
फेर भी राह-चाल्दे बरडा दें अक आड़े सभ्यता-संस्कृति नहीं||
यु तै बड्डा सै ज्यगरा म्हारा, नहीं तै कूण पाँ ठुणक जा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
ठा हूड गाम म्हारयां पै, सुगळए बोल्लां की फ़ौज चढ़ा रेह,
सै इह्सी सीळी धरती किते की, जो ईतणा माणस समा ले|
मुगल-पठान-पंजाबी चहे पूरबी-पाहड़ी सब आडै बस रेह,
चैन तैं जियो अर जीण द्यो, इह्सा प्रण तो बम्बई का भी ना रे||
फुल्ले-भगत खाप्पां की धरती पै, माणस टोह ले चाहे स्यगार सा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
बिहार देख्या बंगाल देख्या, अर देख्या असाम-उड़ीसा|
हरियाणे सी सोधी नहीं, चाहे बतळआ ल्यो जी हो जिसका||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 02/03/13
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सुखी जीवन हो म्यारा ज्ञान विज्ञान का पैगमाम सुणो।
हरियाणे के सब नर-नारी चूच्ची बच्चा तमाम सुणो।।
सारे पढ़े लिखे होज्यां नहीं अनपढ़ टोहया पावै फेर
खाण पीण की मौज होज्या ना भूख का भूत सतावै फेर
बीर मरद का हक बरोबर हो इसा रिवाज आवै फेर
यो टोटा गरीब की चौखट पै भूल कै बी ना जावै फेर
सोच समझ कै चालांगे तो मुश्किल ना सै काम सुणो।।
मिलकै नै सब करां मुकाबला हारी और बीमारी का
बरोबर के हक होज्यां तै ना मान घटै फेर नारी का
भार्इचारा पफेर बढ़ैगा नहीं डर रहै चोरी जारी का
सुख कै सांस मैं साझा होगा इस जनता सारी का
भ्रष्टाचार की पूरी तरियां कसी जावै लगाम सुणो।।
आदर्श पंचायत बणावां हरियाणा मैं न्यारी फेर
दांतां बिचालै आंगली देकै देखै दुनिया सारी फेर
गाम स्तर पै बणी योजना लागू होज्या म्हारी फेर
गाम साझली dhन दौलत सबनै होज्या प्यारी फेर
सुख का सांस इसा आवैगा नां बाजै फेर जाम सुणो।।
कोए अनहोनी बात नहीं ये सारी बात सैं होवण की
बैठे होल्यां लोग लुगार्इ घड़ी नहीं सै सोवण की
इब लड़ां ना आपस मैं या ताकत ना खोखण की
बीज संघर्ष का बोवां समों सही सै बोवण की
कहै रणबीर गूंजैगा चारों कूठ यो नाम सुणो।।
लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
द्यनांक: 09/03/2013 |
7. हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी |
8. "यू डॉक्टर देख्या न्यरोळआ हे" |
9. "गरीब किस्सान की आप बीती" |
चाल्लो रे लाडो, चाल्लो रे पोता, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
हे माँ मेरी - हे माँ मेरी, जाणा खरक दादा की देहळी,
बाब्बू म्हारा बैल्ह्ड़ी जोड़ें, दे रहया बुलावे की झोल्ली|
फागण के गीतां की लहरी म्ह या बणी चली फलैहरी,
सीळी-सीळी चाँदणी की, कांनां पर कै बाळ टूरै कल्हैरी||
मुंह-अँधेरी जा दादा के दर, लावाँ अमरज्योत की फेरी,
मेहर फ्यरी जिसपै दादा की, बारहां-साल्ली भी छंटगी|
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
दादा के टिल्ले पै मेळा, भरया ऊँचे ध्वज का भारी,
के पारवा, के खादरिया, सब धोंक पुन्ह्चावें मनहारी|
देखो ईब दंगल के नजारे, पहलवानां की पड़ैं डाक निराळी,
उड़ै कुंड काट्ठे की जांड तळै, गेल गूंजै स्वरलहरी हठियारी||
इब चढ़ैगा नजारा द्य्खे, इनामां की बरसात कांटे-आळी,
याह बोल्ली छुट्टी माह्ल्लां नैं, अर कैंची कुढाळी गडगी|
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
न्यून सारे कट्ठे हो जोह रे बाट नैं, एक सेत्ती ल्यकडांगे,
अर ट्रेक्टर फालतू भाज्जै किसका, इस बात पै अकड़ांगे|
रोड़-गोहर म्ह कोए आ ज्या, सुक्का ल्यकड़ण ना द्यांगे,
किते आयशर, किते फोर्ड तै किते एच. एम्. टी. भाजैंगे||
धुर्र-धुर्र करते झनझणी सी ठावैं, द्यखे रंग-चा से साजैंगे,
दुनियां देखै खड़ी ल्यकड़दयां नैं, या उंमग कुणसै बळ की||
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
गाम बड़ें तो देख्या, दादा अत्तर का टयोळ स्यन्गर रह्या,
छुट्टी बोलें भाभियाँ की, चन्द्र-बादी का सांग सा जुड़ रह्या|
ज्यब चाल्लें गाळां ढोल बजांदे, दादा खेड़ा सारा झुक ज्या,
किते बागड़ो - किते बांगरो - किते सिलाणी आळी जमज्यां||
फुल्ले भगत खेलिए संभळ कें, कदे सांस्सा-म-सांस अटक ज्यां,
कितके रंग-कितकी किलकी, पेरिस की गाळां म्ह जकड़गी||
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
चाल्लो रे पोता, चाल्लो रे लाडो, दादी न्यू चौगरदै फ्य्रगी|
गाळां हूक चढ़री फाग्गण की, रंगां की लहर पसरगी||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फुल्ले भगत)
द्यनांक: 26/03/2013 |
न्यडाणे आ कें नन्दगढ़ आळए नैं इह्सा अलख जगाया था,
यू डॉक्टर देख्या न्यरोळआ, म्हारे भाग जगावण आया था|
कय्सान की रेह-रेह माटी हो रीह थी,
सब कमाई स्प्रे-दवाइयां म्ह खू रीह थी|
जमींदार की कमर अज्ञान तैं जा टूटी थी,
धरती मारी जहर की धोळी होई जा थी||
स्प्रे-दवाई दूर धरणी ठा कें, थमनें आ न्यूं फ़रमाया था,
न्यडाणे आ कें नन्दगढ़ आळए नैं इह्सा अलख जगाया था|
सत्यमेव-जयते नैं अपणा असर कह 2012 म द्य्खाई थी,
वा खुशहाली की मुहीम हे मसीहा, थह्मनें 2008 म चलाई थी|
इह्सा जोड़ें टांडा भतीजे अक मुहीम की दूर लग जा अंगडाई सी,
खाप्पाँ की शरण हम थाम्मां, न्यूं नैट-चैट पै बतळआई थी||
क्यूँ ईतणा मेळ बढाया ओ-भ्यर, जो ईतणा तौळआ छोड जाणा था?
न्यडाणे आ कें नन्दगढ़ आळए नैं इह्सा अलख जगाया था|
दशकां लाग्गें एक न्यखरण म्ह, वो सोयाँ का तू सरमाया,
घर-घर कीट पढ़ा दिए न्य्डाणे म्ह,अलख कसूत जगाया|
इस बावळए की बणे प्रेरणा, तो न्य्डाणा-हाइट्स ठा ल्याया,
आज सुणी जय्ब ब्यछोह की थारी, प्राणां सुक्खा गहराया||
कपास के बाद, जीरी-बाजरयाँ का भी तो नम्बर लाणा था|
न्यडाणे आ कें नन्दगढ़ आळए नैं इह्सा अलख जगाया था|
यू जमींदार सुन्ना छोड़ गया तू, आख्याँ पाणी चढ़ रह्या,
हरियाणे-पंजाब की ईंट-खूंट लग, तेज थारा चढ़ रह्या,
खुड्डाँ-चुपाल्याँ चलेंगे चर्चे, तू वैज्ञानिक था पहुंचा हुया,
भोहड कें आईये हो फरिस्ते, यू किसान रोवै खड्या-खड्या||
फुल्ले-भगत की मन म्ह रहगी, मिलकें भोह्त बतलाणा था|
न्यडाणे आ कें नन्दगढ़ आळए नैं इह्सा अलख जगाया था,
यू डॉक्टर देख्या न्यरोळआ, म्हारे भाग जगावण आया था|
In memory of departed (18th May 2013) soul Agri-scientist honrary late Dr. Surender Dalal
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 20/05/2013 |
दो किल्ले धरती सै मेरी मुश्किल हुया गुजारा रै
खाद बीज सब महंगे होगे कुछ ना चालै चारा रै
बुलध यो पड्या बेचना ट्रैक्टर की मार पड़ी
मैं एकला कोन्या लोगो मेरे जिसयाँ की लार खड़ी
स्वाद प्याज की चटनी का पाछै सी होग्या खारा रै
मिंह बरस्या कोन्या ट्यूबवैल का खर्चा खूब हुया
धान पिटग्या मंदी के माँ इसका चर्चा खूब हुया
चावल का भा ना तले आया देख्या इसा नजारा रै
भैंस बांध ली बेचूं दूध यो दिन रात एक करां
तीन हजार भैंस बीमारी के गए डाक्टर के घरां
तीस हजार कर्जा सिर पै टूट्या पड्या ढारा रै
बालक धक्के खान्ते हाँडै इननै रुजगार नहीं
छोरी बिन ब्याही बिन दहेज़ कोए त्यार नहीं
छोरा हाँडै गालाँ मैं मेरे बाबू का चढ़ज्या पारा रै
घर आली करै सिलाई दिन रात करै वा काले
खुभात फालतू बचत नहीं हुए ये कसूते चाले
दारू पी दिल दातून बालक कहैं मने आवारा रै
कर्जा जिस पै लिया उसकी नजर घनी बुरी सै
घरां आकै जम्जया सै दिलपे चल्ले मेरे छुरी सै
रणबीर बरोनिया का बिक्गया घर का हारा रै
लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया
द्यनांक: 25/05/2013
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10. "साम्मण उतरया - म्हारे हो अंगणा" |
11. भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का |
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टेक: 'बादळ उठ्या री सखी, मेरे सांसरे की ओड़'
साम्मण उतरया - म्हारे हो अंगणा, घटा मतवाल्ली छा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
बादळ उमडें-घुमडें, रुक्खां कै गळ-मठ्ठे पावैं,
प्यछ्वा के झ्यकोळए आवें, ओळए-बोळए-सोळए आवें|
मोराँ के पिकोहे गूंजें, स्यमाणे - ज्यूँ अम्बर चूमैं,
नाचण के हिलोरें पड़ें, गात्तां म्ह डयठोरे चढ़ें||
सुवासण ज्यूँ हरियल खेती, जावै चढ़ी-इ-चढ़ी|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
कोथळीयाँ के लारें उठें, शक्कर और पारे घूटें,
द्य्लां म्ह हुलारे फुटटें, भाहणां के हिया रे छूटें|
पींघां की च्यरड़-म्यरड़, सास्सुवां के नाक टूटें,
माँ के जाए कद आये न्यूं, नैनां म्ह तें अश्रु फूटें||
मुखड़ा द्य्खा दे रे बीरा, बाट मैं करड़ी जोह रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
फून्द्याँ आळी पोंह्ची बनूं, बाग्गां से फूल जडूं,
छ्यांट-छ्यांट रंग धरूं, बीरे की कलाई भरूँ|
मूळ तें हो सूद प्यारा, भतिज्याँ के लाड लडू,
माँ-बाप्पां से हों भाई, किते छिक्कें किते टांड धरुं||
ना चहिये मैंने सोना-चांदी, भाई म्यरे की उम्र हो लांबी,
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
नगरां के प्यटारे हो सें, भक्ति के भी लारे हों सें,
हरिद्वार चढ़ कें चाल्लें, न्यारे रंग लाणे हों सें|
बम-बम भोळए गूंजें सारै, श्यव्जी के श्यम्चाणे हों सें,
फुल्ले-भगत हांडै रूळदा, कित-के-कित ठयकाणे हों सें||
जहर हो पीणा, श्यव्जी जिह्सा जीणा, घड़ी बख्त की गा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
साम्मण उतरया - म्हारे हो अंगणा, घटा मतवाल्ली छा रही|
जेठ की गर्मी - साढ़ की गय्रवा, छब-छब-छब म्ह जा धूळी||
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक
द्यनांक: 31/07/2013 |
भाभियों बिना क्या त्यौहार होली का,
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
एक भाभी जो हमारे घर की मूरत है,
घर हमारे की उनसे जन्नत सूरत है|
कोरड़े तो बेचारी से जैसे लगते ही नहीं,
हाथ ऐसे मुड़ते हैं जैसे चलते ही नहीं||
पर इसके पीछे ध्यान देवर की ख्याली का,
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
एक भाभी होती थी खुंखार बड़ी,
होली आते ही हो जाती विकराल बड़ी!
ले कोरड़ा हाथ, क्या खाल उतारती थी,
छंट जाते सब पानी ज्यूँ, जब ललकारती थी||
ना हुआ कोई सामी, जिसके वो टांग तली जा|
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
एक भाभी तो थी इतनी मसीह,
उससे ना देवर का दुःख जा सही|
कोरड़े तक भी ऐसे सालती थी,
देवर की खाल नहीं, आरती उतारती थी||
मुलायम देखा दिल बहुत, पर उस भाभी से तली का|
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
एक भाभी कहने को गाँव तिहाड़ की थी,
पर उसके कोरड़ों में मार से ज्यादा बाड़ सी थी|
सबसे बड़ी भाभी वो मेरे घर-परिवार की थी,
उसके कोरडों की मार भी पुचकार सी थी||
लाड क्या लड़ाती थी वो जैसे दूध छटी का|
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
एक भाभी अजायब वाली, धमकते सूरज सी छवि निराली,
पूरा फागण कोरड़ा संग रखती, घर-कुआँ या खेत-खलिहानी|
खो गया वो बचपन सारा, पहन दामण पुरुषों की रेल बनानी,
फुल्ले भगत तड़पत है, हुई बंद शीशों की अब ये जिंदगानी||
भाभियों को सलाम पहुंचे, से ये बंद कमरा लिल्ली का|
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
भाभियों बिना क्या त्यौहार होली का,
भाभियाँ तो होती हैं श्रृंगार होली का|
शब्दावली:
कोरड़ा: कपड़े या जूट के रस्से का बना हंटर
लिल्ली: फ्रांस का लिल्ल शहर
लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक (फुल्ले भगत)
द्यनांक: 15/03/2014
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जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
छाप: न्यडाणा हाइट्स
छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.
ह्वाल्ला:
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