इ-लाइब्रेरी
 
च्यांदणा
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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
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व्यंग्य
स्थानीय समाज और संस्कृति के किम्में व्यंगात्मक पहलू

कुल 7
1. पह्ल्ड़े मर्दां के नाम भी हाई होया करदे
2. पह्लड़ी बीरां के नाम भी हाई होया करदे
3. किसे की दिवाळी किसे का दिवाळा
ज्ञानी, सूबे, रामफळ, सवाई होया करदे,
पह्ल्ड़े मर्दां के नाम भी हाई होया करदे|
अर हर नाम क पाच्छै एक कारण होया करदा,
गाम राम कै खातर जो उदाहरण होया करदा||

धोरै जिसके धेल्ला कोन्या...नाम किरोड़ी पाता,
किताब सिंह भी उन दिनाँ कदे स्कूल नहीं जाता|
बड़े भाई क लट्ठ मारता...लछमन सिंह आवारा,
शक्ल में जिसके बारा बजरे, कहते उसने प्यारा||

हाथी बरगी देई ले रह्या...नाम माड़ा राम,
सहीराम के पाया करदे सदा ए गलत काम|
जिंदगी भर दुःख पाए सुखिया अर खुसीराम,
कुत्ते तैं डर जावै था, शेरा जिसका नाम||

अर दोनूं हाथा दान करै, ताऊ मांगे राम,
आये गये का मान करै झगडू जिसका नाम|
सच...नाम के विपरीत पह्ल्ड़े लोग लुगाई होया करते.....

ज्ञानी, सूबे, रामफळ, सवाई होया करदे,
पह्ल्ड़े मर्दां के नाम भी हाई होया करदे|

बात कह्कैं मुकरया नहीं कदे भी बदलू राम,
गोबर म तैं दाणे चुग ले यें धर्मे के काम|
भुंडूमल भी नहाया धोया बचपन तैं ए रहया,
चाँदराम नैं गर्मी का प्रकोप खूब सह्या||

पूर्ण सिंह का कोये काम भी कदे ना पूरा पाया,
दान सिंह न सारी उम्र मांग-मांग कें खाया|
बात-बात पै गुस्सा होज्या मौसा ठंडीराम,
नकली-राम के पाया करते सदा ए असली काम||

राम नाम कदे लिया नहीं अर नाम बजरंग लाल,
भोळआ-राम तारया करदा सदा बाळ की खाल|
गाम तैं न्यारा धन ले रह्या अर नाम फकीरचंद,
सुंदरमल न अपणे घर में राख्या सदा ए गंद||

भरतु, गंगू अर इसे ए गुसाई होया करते...पहल्यां आळए नाम भी......
ज्ञानी, सूबे, रामफळ, सवाई होया करदे,
पह्ल्ड़े मर्दां के नाम भी हाई होया करदे|
बात लुगाइयां की उनके नाम सुणो थम,
नाम काम के मामले में ये भी नहीं थी कम|
केळआ, अंगूरी, संतरा न कदे फ्रूट नहीं खाए,
मिसरी, मेवा, इमरती न सदा ए चणे चबाये||

तवे तैं भी काळी पाती भूरी अर सुनहरी,
चलती-देवी पड़ोसियाँ कै दस-दस घंटे ठहरी|
कदे खजानी दादी नै भी पंजी तक ना जोड़ी,
गोबर थापण म माहिर थी बसंती अर गिन्दोड़ी||

अर छत पै तैं उतरया ना जा, नाम चाँद धरारी,
मौसी नान्ही देवी न भी देई राखी भारी|
मरिया देवी सौ साल तैं ऊपर जिया करती,
ताई शरबती शरबत नहीं लास्सी पिया करती||

बर्फी, पतासो और इसे ए नाम मलाई होया करते...पह्लड़ी बीरां के नाम भी......

जिंदगीभर रही क्वारी गाम की बुवा बन्नो,
पंजी-पंजी नै तरसी सदा ए मौसी धन्नो|
अर मन्दिर म कदे गई नहीं माहरी काकी रामप्यारी,
सुखदेई नैं पाळी राखी सदा ए नई बीमारी||

चौखट तैं भी ऊंची फेर भी नाम पता छोटी,
छिपकली सी होती जिसने सारे कहते मोटी|
चम्पा और चमेली न भी कदे बाग़ नहीं देखे,
ताई शांति जूत बजाण के लिया करती ठेके||

कदे खाण तैं ना छिकी धापा जिसका नाम,
नाम दयावंती अर पिटया करती सारा गाम|
मीरा अर कृष्णा न भी कदे भजन नहीं गाये,
रौशनी नैं दिन अपने अँधेरे म्ह ए बिताये||

सच नाम के विपरीत पह्ल्ड़े लोग-लुगाई होया करते......
किते मनै दिवाळी चौखी, किते लिकड़ रह्या दिवाळा|
कुछ घरां म्ह हुया च्यांदणा, म्हारे छाया अँधेरा काळा||

बुराई पै जीतै अच्छाई, ज्यब दिवाळी मनाई जावै,
अच्छाई पिटे च्यारूं कान्ही, आज बुराई बढती आवै|
इह्से महोल म्ह दिवाळी कोए, दिल तैं कैसे मनावै,
राम की नगरी म्ह माणस, बेबस खड्या लखावै||
म्हारी बदरंगी दुनिया का नहीं रह्या राम रुखाळा,
किते मनै दिवाळी चौखी, किते लिकड़ रह्या दिवाळा|

कैसे खील-पताशे म ल्याऊ, घर म्ह मुस्से कुला करैं,
मेहनत करकें रोटी खावाँ, श्याम-सबेरी दुआ करें|
फेर भी उनकी चांदी हो री, दिन-रात जो बुरा करें,
हमनैं सुंदर दुनिया बणाई, हमतैं राम क्यूँ गिला करै||
राम कै तो मिटा अँधेरा, ना तै होगा दुनिया म चाळा,
किते मनै दिवाळी चौखी, किते लिकड़ रह्या दिवाळा|

रामराज म्ह बढ़े गरीबी, बात समझ म आई ना,
तेरे राज म्ह हमनैं राम जी, मिलती आज दवाई ना|
इह्सा के हुआ चाळा बता, मिलती मुफत पढाई ना,
क्यूँ तेरे राज म्ह सुरक्षित आज, लोग ना लुगाई ना||
दुनिया का मालिक बणन का करदे रामजी टाळा,
किते मनै दिवाळी चौखी, किते लिकड़ रह्या दिवाळा|

बता क्यूकर दिवाळी मनाऊं, रास्ता मनै बता दे तू,
समता हो दुनियां म्ह, इह्सा रस्ता मनै दिखा दे तू|
औरत नैं इंसान समझें, समाज इह्सा बणा दे तू,
तेरे बसका ना यो करणा तै, म्हारे जिम्मै ला दे तू||
मेरा भरोसा उठता जा, कह रणबीर बरोणे आळा,
किते मनै दिवाळी चौखी, किते लिकड़ रह्या दिवाळा|
कुछ घरां म्ह हुया च्यांदणा, म्हारे छाया अँधेरा काळा||

द्यनांक: 10/11/12
4. बेमेळ ब्याह
5. "दुखती रग"
6. दूर प्रदेश में आते हैं जो
पूर्णमल के किस्से म्ह एक बेमेळ ब्याह का भी जय्क्र था आया,
साथ दिया सबनें पूर्णमल का, जवान मौसी को था बिसराया|
साठ साल के बुड्ढे संग सोळहा साल की सुवास्सण ब्याही क्यों,
उसे ऊपर इल्जाम लगाया पूर्णमल कान्हीं वा लखाई क्यों|
मौसी-बेटे का प्यार सांग म्ह सही चाहिए था दिखाया||
जवान बीर का जीवन नर्क हुया दिखाया कोन्या रै,
बेमेळ ब्याह का असली सच दादा नैं बताया कोन्या रै|
मौसी की नजर तैं ना सोच्या, पूर्णमल का साथ निभाया||
पुरुष-प्रधान समाज म्हारा कहैं धुर तैं चालदा आवै,
महिला-प्रधान समाज भी थे, न रणबीर झूठ भकावै|
प्राइवेट प्रोपर्टी के हक में महिला का हक दबाया||
पुराणे सांगों में महिला को सही स्थान मिल्या कोन्या,
बराबर का वजूद सै उसका यो सम्मान मिल्या कोन्या|
शुद्र-पशु-ढोल-नारी ताड़ण के अधिकारी समझाया||

द्यनांक: 13/01/13
ठीक थोडा गलत घना जगत मैं पीस्सा सर चढ़ कै बोलै|
सांझै दारू पी कै रमलू सारी रात बहार भीतर वो डोलै||

कोए घर बार नहीं आज बच्या मानस चाहे बच्या हो घर मैं,
घणी कुसंस्कृति बढावै सै दारू या दारू पीवनिया नर मैं|
बाहर भीतर वो तां कै झाँ कै कलह जहर घणा घोलै||

बिना नौकरी बिन ब्याहे गाम गाम मैं घूम रहे दिखाऊँ,
नशे पते के शिकार हुए किस किस के नाम गिनाऊँ|
या हालत हरियाणे के गामां की मेरा कालजा छोलै||

नैतिकता जमा ख़तम हुई व्यभिचार घना बढ़ता जा वै,
प्यार मोहब्बत कै ताला लाया अवैध सम्बन्ध सारै पावै|
साच बोलानिया धक्के खावै मौज करै जो जमा कम तोलै||

घोटाले पै घोटाले करते म्हारे अफसर नेता ये मिलकै,
कोए दण्ड ना इनकी खातर ठेस कसूती लागै दिल कै|
रणबीर सिंह बरोने आला आज दुखती रग नै पपोलै||

लेख्क्क: डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया

द्यनांक: 14/06/13
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के,
धूर्तता ऐसी कि मानवता के पाठ पढ़ाते, खापों को ठान के|

पूर्वोत्तर की परम्परा सुनी, कच्छा टांग के आना ख़ास,
घर औरतें खास नहीं, पर खापलैंड में अलापें बास|
उनका पीछे रूखारा नहीं, घर अबला को सहारा नहीं,
जेंडर-इक्वलिटी पे लेक्चर टूरने को, इनको खाप ही आये रास|
मीडिया में पूर्वोत्तर का कोई, है हिम्मत जो मुझसे करे अलाप?
घर पाव-भर मानवता नहीं, खुश हो रहे दूसरों के सर पे नाच के,
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के|

सतयुग-त्रेता-द्वापर-कलयुग से बदले नहीं आज लग,
तब भी नहीं थी आज भी नहीं हैं, औरतें इनकी शान लग|
मंदिरों में औरतों का हक़ दिलाते नहीं, खापों में ढूंढें खाज लग,
सारे पुजारी मर्द विराजें, औरतें ना आज भी पास लग|
शास्त्रों का बहाना ले आते हैं, कि औरतें नहीं सिद्धांत में,
तो फिर क्यों खापों पे दोष मढ़ो, मिडवियल की बतान में?
मंदिरों में रखनी हों जब देवदासियां, शास्त्र भी रख दें टांग के,
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के|

एक देखो ये महिला आयोग वाले, अनोखे इनके जहर के प्याले,
शास्त्रों में हक़ मांगती नहीं, दुनियां में बाँटें इश्क निराले|
ममता-रंजना-बृंदा-कविता, क्यों नहीं तुमको ये दीखता?
खाप-चबूतरे तुमको दिखें, मंदिरों का गर्भ क्यों नहीं दीखता?
क्यों औरत वहाँ से गायब है, क्यों उसके नाम जहर के छाले?
अपने मर्दों से हक़ लेती नहीं, दूसरों के गलों में फांसी घालें?
क्या कोई आवाज सुनेगा, जब धर्मों में इक्वलिटी टंगी हो टांड पे?
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के|

बंगाल की पंचायत को खाप बताते, तुमको कीड़े क्यों ना पड़ जाते?
खापलैंड का नक्शा या प्राचीन हरियाणा का रकबा देखा कभी उठा के?
कब देखा उससे बाहर जाते, जो तुम इनको बंगाल में भी बताते?
गोहद-तिलपत-बागपत देखो इनके, जिनसे अंग्रेज थे थर्र-थर्र कांपे?
आगला शरमांदा भीतर चलग्या, बेशर्म जाणे मेरे से डर गया,
अब हद हो चुकी इन्हें थोबना होगा, जिससे लगे वो-गया-वो-गया|
ये मानहानी ना पड़ जाए भारी, बोलना सीख लो जुबान सुधार के|
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के|

खाप वो है जो बाबर से शीश नुवां दे, औरंगजेब तक को संधि पे ला दे|
तैमूर लंग, कुतुबद्दीन-ऐबक और गुलाम-वंश की ईंट-से-ईंट बजा दे,
जाओ पूछो रजिया के अंश से, खिलजी के कुलंच से, तुंगभद्रा के मंच से,
सिकंदर लोधी बतायेगा तुमको, क्यों आया था वो सोहरम शीश नवाने,
गोकुल के किस्से सुना दूं और बाबा शाहमल तोमर को भी गा दूं तो,
बहादुरशाह का ख़त दिखा दूं, या इनके बनाये शिक्षा के मंदिर दिखा दूं तो?
फुल्ले-भगत सौं खेड़े की, भागोगे वापिस वहीँ जहां से आते हो मुंह उठा के,
दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के|

दूर प्रदेश में आते हैं जो, अपने घरों में कच्छे टांग के,
धूर्तता ऐसी कि मानवता के पाठ पढ़ाते, खापों को ठान के|

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

द्यनांक: 04/02/2014
7. अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!
ओंधे मुंह हुआ रब, गोड्डे चढ़ा जा टोटा,
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

काल भैरवी, पाताल भैरवी, धारें दूण का सोटा,
खा गया अकूत चूट, बढ़ा चाण्डालों का कोटा!
अपनी फितरत संगवा ले, कर साक्षी नूण का लोटा,
संगठन साधे बिना सधै ना, यू फंड-फंडी का ठोस्सा||
"गॉड-गोकुला" फेर हो बणना, मार क्रांति का घोट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

सरकार का ना करतार का, खोट बड्डा तकरार का,
अचरच माचें अचम्भे, जै ना हो 'अजगर' इकरार का|
जोड़-जुड़ाने, तोड़-तुड़ाने कर, कर ले खोल करार का,
रयात-अँधेरी छंट ज्यागी, हो दूर तम-अंधकार रा||
राद बह चली अरमानां की, रह्या ना टींगर हट्टा-कट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

खुली पण्डोकळी, सीख बांधणी,
ला ग्याँठ म्ह, खुले बाट-ताखड़ी|
मोकळे-मोर्चयाँ पै फैला दे वंश नैं,
ग्लोबल सोच धार कैं नश-नश म||
भर ज्ञान तैं इनको ज्यूँ, तेल पिलाया कट्टा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

फिर देख नज़ारे काळ के, देवै हुलारे सीळी बाळ के,
जलियावालां-रोहणात् लगाइये घी के दिए बाळ के!
मोरणी फेर चढ़ेंगी हवेलियां पै, गूंजें टामर टाक के,
'फुल्ले-भगत' खोज टोहणी, ज्यूँ बादळ छटें काळ के||
जमींदारों की परस सजो सदा, जैसे नभ के म्ह चंदा|
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

ओंधे मुंह हुआ रब, गोड्डे चढ़ा जा टोटा,
अबकी बार तेरी फीकी बैशाखी ओ जट्टा!

लेख्क्क: फूल कुंवार म्यलक

द्यनांक: 13/04/2015


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

आग्गै-बांडो
 
जानकारी पट्टल - लाइब्रेरी

श्यक्ष्या ब्यौरा सूची म ताहरी खात्तर राष्ट्रीय अर राजकीय श्यक्ष्या तन्त्र, स्कूल बोर्ड अर यून्वरस्टी की न्यारी-न्यारी वेब-साइटों के लंक लाये गए सें| NH नियम अर शर्त लागू|
बड्डे श्यक्ष्या संस्थान अर यून्वरसटी
हरियाणा सूबा
सूबा-अंतर्गत अर राष्ट्रीय
जींद शहर के स्थानीय
श्यक्ष्या बोर्ड, पात्रता परीक्षा तैयारी, नतीज्याँ की जानकारी के ल्यंक
हरियाणा सूबा
सूबा-अंतर्गत अर राष्ट्रीय
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भाषा अर शब्दकोश
 
प्रतियोगता निर्गम अर पत्रिका
e-Learning Vidoes
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न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
© न्यडाणा हाइट्स २०१२-१९