indexhr.html
व्यक्तिगत विकास
 
EHhr-marmmt.html
EH.html
इच्छाशक्ति
!!!......एक बच्चा जन्म के वक्त बच्चा नहीं होता, तथापि यह तो उसको विरासत में मिलने वाले माहौल व् परिवेश से निर्धारित होता है| एक बच्चे को माता-पिता जितनी समझ जन्म से होती है| अत: माता-पिता उसको उस स्तर का मान के उसका विकास करें|......!!!
आप यहाँ हैं: दहलीज > व्यक्तिगत विकास > इच्छाशक्ति
दिल, दिमाग, आत्मा और इच्छाशक्ति
दिल इंसान का दूसरा रास्ता है, पहला नहीं: दिल के कहे अनुसार जो इंसान चलता है, इसका मतलब या तो वह खुद पर यकीन नहीं रखता या उसको उसकी आत्मा की आवाज सुनने के रास्ते अवरुद्ध कर दिए गए हैं या वो इसको अवरुद्ध समझ बैठा है| और जब आत्मा की आवाज को अवरुद्ध मान लिया जाता है तब पैदा होता है भय, और भय से पैदा होता है खुद पर अविश्वास और खुद पर अविश्वास पैदा होने से हावी होना शुरू हो जाती हैं भावनाएं और जब सिर्फ भावनाएं ही इंसान को आगे बढ़ाने को बचती हैं तो इंसान का लीडर बन जाता है उसका दिल| और दिल एक परिस्थिति में जैसा हो वो दूसरी में वैसा कदापि नहीं होता| और फिर होता है इंसान का दिल के भंवर में डोलना|

इसलिए दिल इंसान का दूसरा रास्ता है, पहला नहीं| पहला होता है आत्मा यानि स्वंय| दिल कभी स्वंय नहीं होता| वो सिर्फ भावनाओं का आशिक होता है, वास्तविकता से दिल को सख्त चिड़ होती है| और भावनाएं अगर बिना आत्मा की सुनें दौड़ने लगें तो समझिये आपका शरीर रुपी रथ, दिल के घोड़े के बस में हो बिना लगाम दौड़ा जा रहा है और बिना लगाम दौड़ती चीज की ना कोई दिशा होती और ना दशा|

फूल मलिक - 25/11/2013


दिल की ना सुनियो रे, दिल पटरी से उतारे:

दिल के साथ कभी जिद्द नहीं लगानी चाहिए, ना इसको दिमाग पर हावी होने देना चाहिए| दिल कभी भी आपका आईना नहीं होता| दिल का मूड इंसान के तत्व की क्षमता के अनुसार बदलता है| तत्व पॉजिटिव हुआ तो दिल मार्केटिंग मैनेजर की तरह दो की चार बना के आपको चढ़ाता है; और तत्व नेगेटिव हुआ तो वही दिल आपको दिशाहीन बना कर, उस मूर्ख की भांति फ़ाकेलाल बना देता है, जिसकी कि अगर आप सुनने लग जाओ तो वह आपको अपने स्तर पर ला कर छोड़ता है|

यह सही है कि दिल रिस्क लेना जानता है परन्तु सिर्फ अँधा-रिस्क, नपा-तुला नहीं| रिस्क के रिस्क को नापने के लिए आपका तत्व मजबूत होना चाहिए| और तत्व को मजबूत बनाने के लिए दिल को मौन रखना अत्यंत आवश्यक है|

अब बात आती है कि इंसान दिल को मौन रखने की क्षमता कब-कब और किन हालातों में खो देता है| इसके कारण इस प्रकार हैं:
  1. किसी अन्य के प्रति गूढ़ निष्ठा हो तब!

  2. शरीर में कोई भय या संशय हो तब!

  3. तत्व की क्षमता को फलने-फूलने का माहौल ना मिला हो तब!

  4. जब छोटी सी उम्र से कोई आपको यह कहे कि बेटा/भाई तेरा तो दिल बहुत बड़ा है| यानी आपके दिल को मौन रख, आपको अपने तत्व प्राप्ति में सहायक बनने की अपेक्षा, आपको उल्टा उकसाए|

और दिल सही काम कब करता है:
  1. किसी अन्य की अपेक्षा खुद के प्रति निष्ठा हो तब!

  2. शरीर भयमुक्त व् संशयरहित हो तब!

  3. अपने तत्व को इसके चरम और पूरी क्षमतानुसार सिद्धि तक पहुँचाया हो तब!

  4. "बेटा/भाई तेरा तो दिल बहुत बड़ा है" जैसे लोगों से दूर रहना! उनको अपने पे हावी ना होने देना! (चाटुकारों से बड़ा संभल के रहना चाहिए)

याद है ना ऊपर बताया मार्केटिंग मैनेजर वाला फंडा! यानी किसी ने दिल को बड़ा बताया नहीं और बदकिस्मती से आपका तत्व परिपक्व हुआ नहीं हुआ तो लग गए आपकी लाइफ के "एल"| बचपन में अगर कोई ऐसा झेलने को मिले तो फिर भग्वान ही रक्षा करे आपकी, क्योंकि बचपन में आपका तत्व परिपक्व नहीं हुआ होता और इस दौर में कोई ऐसा इर्दगिर्द घर-बाहर का कोई आप-पे मंडरा गया तो समझो आपकी तो लाइफ की गई भैंस पानी में| अब ऐसी परिस्थिति से आपको या तो माँ-बाप बचाये, वरना बदकिस्मती चढ़-चढ़ के आपकी बैंड बजाये|

शरीर के तत्व को इसकी प्रकाष्ठा अथवा क्षमता की चोटी तक विकसित करने हेतु जरूरी होता है इंसान का भयमुक्त व् संशयरहित होना|

ऐसे माता-पिता बेहद घातक होते हैं जो अपने बच्चों की क्षमता पहचाने बिना उनको बात-बात पर (शायद अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने की फॉर्मेलिटी मात्र निभाने हेतु) दूसरों के उदाहरण दे बच्चे को उन जैसा बनने या करने के ललित निबंध से कान पकाते रहते हैं| सबसे बड़ा भय एक बच्चे में यहीं से घर करता है, जब वह देखता है कि मेरे माँ-बाप मुझे जिसके जैसा बनने की कह रहे हैं, उससे तो ज्यादा मैं पहले से हूँ| और ऐसा करने वाले माँ-बाप दो तरीके के होते हैं, एक तो वो जो वाकई में साफ़-दिल हो बच्चे को दूसरों के उदाहरण देते हैं; और एक वो जो सिर्फ बच्चे पे लेक्चर झाड़ने हेतु ऐसा करते हैं, जबकि अंदर वो खुद भी जानते होते हैं कि तुम्हारा बालक उससे तो कई गुना बेहतर है जिसके कि तुम इसको उदाहरण पेश कर रहे हो| और यह दूसरी तरह के माता-पिता होते हैं, जिनको समाज "बच्चेखाना" यानी अपने ही बच्चों का दुश्मन वाली केटेगरी में रखते हैं|

दिल की नगरी में माँ-बाप कहाँ से घुसा लाया, यही सोच रहे हो ना| सोचा होगा कि इतना रोमांटिक टाइटल दे के इस फूल ने यह क्या लिख डाला? भाई रोमांटिक तभी तो बनोगे ना जब जीवन की नींव से भय और संशय हटा; खुद को खुद के प्रति निष्ठवान बनाओगे| - फूल मलिक - 20/02/2015
दिल कल्पना से बे-सोचे पंछी के समान है, जिधर चाहे उड़ जाए; सपनों के महल खड़े कर ले| लेकिन वास्तविकता में निर्भर व् शर्तिया होता है| निर्भर आपकी इच्छशक्ति पे, निर्भर आपकी दिमागी शक्ति पे, निर्भर आपकी वासना शक्ति पे, निर्भर आपकी होश-सँभालने या होश-में आने पे यानी आत्मानुभूति पे| और शर्तिया यानी यह ठीक हो तो ऐसा कर दू, वह ठीक हो तो वैसा कर दू, यह ठीक नहीं था तो ऐसा नहीं कर पाया, या वह ठीक नहीं था तो ऐसा नहीं हो पाया| यानी हकीकत जब सामने आती है तो फिर जिम्मेदारी लेने की हैसियत दिल की नहीं होती|

इसलिए जिंदगी में जो भी कदम उठायें, दिल के भरोसे नहीं, अपितु अपने दिमाग, आत्मानुभूति और इच्छाशक्ति के भरोसे| और काम करें तो इन्हीं को मजबूत करने की दिशा में, क्योंकि इन्हीं की क्षमता आपकी जिंदगी की सहूलियत निर्धारित करती है, दिल तो इनके दम-खम के अनुसार पलटता रहता है|

फूल मलिक - 17/09/2014


दिल और वासना के ऊपर दिमाग होता है, दिमाग के ऊपर इच्छा-शक्ति, इच्छा-शक्ति के ऊपर होश (यानी तत्व) और होश के ऊपर एवं सर्वोपरी होती है आत्मा| आप देख सकते हैं कि ये जितने भी आशिकी-दिल्ल्गी-दरियादिली के खेल होते हैं, ये सारे सबसे निचले स्तर पर आते हैं| दरियादिली घमंड लाती है, इसलिए यह सबपे नहीं दिखानी चाहिए| तत्व व् आत्मा से व् इनको लगा के किया गया प्यार ही अमिट-अमर-अजेय होता है| दिल चंचल होता है, हठी और बह्मी भी होता है, जो वासना की भट्टी के ताप को देख फुदकता रहता है; जितनी आंच इसकी तरफ जाने दोगे, ये उतने ही शोशे करेगा|

फूल मलिक - 11/05/2014


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

साझा-कीजिये
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९