व्यक्तिगत विकास
 
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सेक्स मैनेजमेंट
!!!......एक बच्चा जन्म के वक्त बच्चा नहीं होता, तथापि यह तो उसको विरासत में मिलने वाले माहौल व् परिवेश से निर्धारित होता है| एक बच्चे को माता-पिता जितनी समझ जन्म से होती है| अत: माता-पिता उसको उस स्तर का मान के उसका विकास करें|......!!!
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किशोरावस्था व सेक्स पर मानसिक ऊहापोह
सेक्स लजाने/घबराने/शर्माने अथवा डरने की नहीं अपितु मैनेज करने की चीज होती है


सावधानी: मूलत: यह लेख है तो किशोर विधार्थियों (अमूमन सातवीं-आठवीं कक्षा से ऊपर के विधार्थियों के लिए) हेतु, फिर भी सेक्स से अनजान/नादान/अपरिपक्व अथवा असहज महसूस करने वाले इस लेख को पढ़ते वक्त किसी परिपक्व इंसान जैसे कि माता-पिता, विश्वसनीय शिक्षक अथवा अभिभावक को पास में रखें| और यह निहायती जरूरी व् निर्देशित है कि इस लेख के आधार पर कोई भी विचारधारा अथवा मानसिकता बनाने से पहले इसके हर पहलु पर अपने माता-पिता, विश्वसनीय शिक्षक अथवा अभिभावक से विचार-विमर्श कर लें अथवा लेखक तक अपना संदेश/संदेह अथवा प्रश्न पहुँचाने व् उसका उत्तर जानने हेतु इस ईमेल पर लिखें: admin@nidanaheights.com


उद्घोषणा: इस लेख का केवल मात्र उद्देश्य 'सेक्स शिक्षा" है, अत: इस लेख को उसी परिपेक्ष्य व् मंशा से पढ़ा जाए| इसको किसी भी फूहड़ सेक्स की कहानी अथवा व्यभिचारिता की तरह ना लिया जाए, क्योंकि यह अध्याय एक आठवीं कक्षा के विधार्थी की सेक्स-समस्याओं को सम्बोधित करता है|


प्रस्तावना: भारतीय समाज में लड़कियां यह ना सोचें कि शर्म/लज्जा का गहना उन्हें ही पहनना होता है, लड़कों को भी इतनी ही जहमत उठानी होती है, खासकर हरियाणवी समाज के सभ्य व् कुलीन वर्ग में|


लेख की भाषा: लेख सभ्य भाषा में है, परन्तु है लड़कों की सेक्स शिक्षा और समस्याओं से संबंधित, इसलिए शब्दों को अच्छे से और सही दिशा में ही समझ के पढ़ें!


लेख का आधार: लेखक अपने जीवन के सच्चे अनुभव साझा कर रहा है, इसलिए इसका मुख्य पात्र वही है| लेखक एक ठेठ हरियाणवी ग्रामीण परिवेश में जन्मा-पला-बढ़ा परन्तु शहरी परिवेश में शिक्षा अर्जित किया हुआ किरदार है|



लेख: जब मैं आठवीं कक्षा में था तो वयस्कता का पता लगने लग गया था| सर्दियों के दिन होते थे, घर से बाजरे की रोटियां, ढेर सारा मख्खन, सब्जी, लस्सी और उससे एक घंटे पहले खाए हुए घर के बने खोवे के लड्डू खा के स्कूल जाता था| जहां अधिकतर शहरी बालक ठंड में सिकुड़े हुए कक्षा में आते थे तो वहीं मुझे स्वेटर भी नहीं भाति थी| कारण देशी-ठेठ हरियाणवी गाँव का वो भी दादी के हाथ का ये बड़े-बड़े रोट वाला बना पौष्टिकता, ऊर्जा और ताकत से भरपूर खाना| बात सर्दी ना लगने तक रहती तो ठीक होती, स्वेटर ना पहनने तक होती तो भी ठीक होती, परन्तु समस्या यह आने लगी कि कक्षा में बैठे-बैठे ही लिंग में इरेक्शन (इसके आगे के पूरे लेख में इसके लिए सिर्फ़ "उभार" शब्द प्रयोग किया जायेगा|) होने लगा| समझ ही नहीं आता था कि क्या करूँ? मेरा विधालय (विधालय का नाम व् पता लेख के अंत में देखें|) कहने को तो शहर में था, हरियाणा शिक्षा बोर्ड का राज्य-स्तरीय माना हुआ विधालय था परन्तु था रूढ़िवादी मानसिकताओं व मान्यताओं वाला और ऐसा ही उसका अध्यापक वर्ग|

वैसे तो अच्छा भला जींद शहर के हैप्पी स्कूल के को-एजुकेशन सिस्टम यानी सहशिक्षा में जम गया था, परन्तु मेरे अभिभावकों के छोटे लड़के का वहाँ मन ना लगने की वजह से मेरा भी उधर से पत्ता कटवा, इस स्कूल में डाल दिया गया, जहां सहशिक्षा भी नहीं थी| ऐसा नहीं कि इसमें लड़के ही पढ़ते थे, लड़कियां भी थी, परन्तु इमारतें दोनों की अलग-अलग, वो भी 500 मीटर दूर (जैसे दीन-ए-इलाही अकबर, हर सलीम और अनारकली को पास ना फटकने देने का इंतज़ाम किये बैठे हों, मजाक की बात अलग है, परन्तु आगे बताऊंगा कि दुनिया पे राज करना है और औरत के प्रति अंदर में सवेंदना भी चाहिए तो उसके लिए को-एजुकेशन यानी सहशिक्षा कितनी जरूरी है| हालाँकि यह अभिभावकों का दिया हुआ को-एजुकेशन का अकाल ग्यारहवीं में तो खत्म हो गया था, परन्तु उन दस साल खो गए थे?)| अब सहशिक्षा मेरी इस समस्या का कितना समाधान कर पाती, अब यह तो अगला जन्म ले, एल. के. जी. से सहशिक्षा में पढाई शुरू करके देखने पर निर्भर है| खैर आगे बढ़ता हूँ अपनी समस्या की ओर|


इस लेख को पढ़ने वाला स्त्रीवर्ग यहां ध्यान दे कि शर्म में सिर्फ आपको ही नहीं अपितु हम लड़कों को भी मरना पड़ता है; और वो कैसे वो ऐसे: हालाँकि आगे बढ़ने से पहले एक बात स्पष्ट कर दूँ, कि मैं पढाई के मामले में मेरिट केस रहा हूँ, मेरे बनाये रिकॉर्ड तोड़ने के लिए गाँव के बच्चों को कम से कम एक दशक लगा था| हाँ तो मैं बता रहा था कि आठवीं कक्षा में मुझे उभार महसूस होने लगा था| अब हिंदी के अध्यापक भरद्वाज जी हों या विज्ञान के सांगवान जी, संस्कृत के अध्यापक गर्ग जी हों या अंग्रेजी के सचदेवा जी, सब के सब सख्त| विज्ञानं वाले तो सवाल पूछने को खड़ा करते और जब कभी नीचे उभार दीखता तो इतना बोल के छोड़ देते कि बेटे ऐसी चीजें टाइम पे ही अच्छी लगती हैं, और मैं मन में झन्ना के रह जाता कि गुरुदेव कौनसी चीजें? अंग्रेजी वाले तो बात ही डंडे के साथ करते थे तो उनके आगे तो भय से अच्छे-अच्छों की बोलती बंद| हिंदी और संस्कृत वाले पेंट का उभार देख के वैसे तो हंस के रह जाते परन्तु अनजाने से संदेह की दृष्टि से देखते| और उनका ऐसे देखना अंदर संशय पैदा करता|

Description
सब मुझे मुफ्त के सर्टिफिकेट से देते दिखते परन्तु असली समस्या पे कोई ध्यान नहीं देता कि बच्चे को इस उभार का मतलब समझा व् इससे संबंधित संभावित दुर्भावना, ग्लानि व् अज्ञान से मुक्त करें, ताकि कहीं यह इससे हीन भावना, असमंजस अथवा दुविधा का शिकार ना हो जाए| परन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ बल्कि इसको लेकर उल्टा एक-दो बार तो मेरे को सीधे झाप्पड़ रसीद हुए| तब मुझे लगता कि मैं जो इनसे पढाई के बारे में कभी डांट या मार नहीं खाता, उसको यह उभार मार खिलवा रहा है, जरूर कोई बुरी चीज होगी| उधर घर पर मेरी माँ भी नहीं थी, वो तो मैं छह दिन का था तभी भगवान को प्यारी हो गई थी, इसलिए मुझे तो यह भी नहीं पता कि हरियाणवी माएं अपने बच्चों को इस पर शिक्षा देती भी हैं अथवा नहीं, और देती हैं तो कैसी और कौनसी शिक्षा देती हैं| और हरियाणवी पिताओं का तो मुझे पता ही है, शर्म-लिहाज के नाम पर उनको इतना तो डरा के रखना आता है कि अगर कहीं से किसी लड़की को छेड़ने या गैर की लड़की से किसी नकारात्मक बात पे नाम भी जुड़ गया तो, पूछेंगे बाद में, पहले शरीर पर मार-मार के पानीपत की जंग मचा देंगे, कि क्यों-क्यों तेरा नाम ही क्यों आया किसी लड़की को छेड़ने में| कई बार तो ग्रामीण हरियाणवी पिता इन मामलों में इतनी नैतिकता के होते हैं कि पिता आपसे माफ़ी भी मंगवाएगा और गाँव-गोत्र-गुहांड की ना होते हुए भी उस लड़की को बहन तक बोलने को कहेगा| तो हरियाणवी और भारतीय लड़कियों, ऐसा ही मत समझो कि सिर्फ तुमको ही शर्म-लिहाज ढोनी पड़ती है या उसमें तिल-तिल मरना पड़ता है, यह हरियाणा है यहां तो लड़कों को भी ऐसे ही मरना पड़ता है| हालांकि शरारती तत्व हर समाज में होते हैं, और हरियाणा इसमें कोई अपवाद नहीं|

तो उभार की समस्या से तंग मेरे को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इसका हल ढूँढू तो कैसे अथवा किसके पास, क्योंकि अध्यापक से ले के घर-समाज तक में मेरे को इसपे कोई कुछ बताने वाला ही नहीं था| हाँ, मेरे विज्ञानं के अध्यापक ने इतना जरूर कहा कि बेटा यह उम्र नहीं इन कामों की, परन्तु गुरुदेव यह तो बता दो कि कौनसे कामों की और जब इन कामों की उम्र होगी तब तक इसको मैनेज कैसे करूँ? और पिता और घर की शिक्षा कहो या नैतिक भय इतना जरूर था कि किसी लड़की को बिना मतलब नजर उठाकर भी नहीं देखता था, परन्तु इससे भी मेरी समस्या थोड़े हल हो जाती थी|




मैंने इस समस्या को मैनेज करने के लिए क्या किया?:


मेरे गाँव में आर्य-समाजियों का बड़ा प्रभाव था| उनको गए जमानों तक मैं और मेरा परिवार बहुत मानते थे| खुद को इस पंथ का कहने में बड़ा गर्व महसूस किया करता था| इसलिए जब कभी भी वो गाँव में प्रचार करने आया करते थे तो उनको भी सुनने लगा कि शायद इनके ही प्रवचनों में मेरी समस्या का हल हो| परन्तु वो तो दो रटी-रटाई बातें जानते थे कि लड़की लड़के के लिए आग में घी के समान है, इसलिए इनको अलग-अलग रखा जाए| लड़के ब्रह्मचरियता का पालन करें| लड़के अलग गुरुकुल और लड़कियां अलग गुरुकुल में पढ़ें; कभी भी को-एजुकेशन में ना पढ़ाये जाएँ| लेकिन जब शहर पढ़ने आता और डी. ए. वी. (D.A.V.) जैसे इन्हीं आर्यसमाजियों के को-एजुकेशन स्कूल देखता तो इनका सर फोड़ने को दिल करता, कि सुसरे गाँव में दिमाग पका देते हैं यह कह-कह के कि ब्रह्मचारियता के लिए लड़के-लड़की को अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाओ और शहरों में उन्हीं के को-एजुकेशन स्कूल चलते हैं| बस यही सोचते-सोचते आर्य-समाज के ब्रह्मचरियता मंत्र से भी मोह भंग हो गया कि यह तो एक हांडी में दो पेट रखते हैं, गाँव में अलग और शहर में उसके उल्ट चलते हैं|

और मेरी समस्या वहीँ-वहीँ की वहीँ खड़ी थी, बल्कि अध्यापकगणों ने तो मुझे घूर के देखना भी शुरू कर दिया था; ठीक वैसे ही जैसे एक बेचारी कन्या को अँधेरी रात में अकेले जाती को आवारा बदमाश घूरा करते हैं| अब इससे हुआ यह कि मुझे गुस्सा उठने लगा कि अच्छा खासा स्टडी रिकॉर्ड है, मेरिट से कम कभी नंबर नहीं लाता, फिर भी अध्यापक मेरी उभरी पेंट को देख, ऐसे घूरते हैं जैसे मैं कोई अपराधी हूँ| सिर्फ लुभावने उपदेश जरूर दे देते हैं परन्तु हल कोई नहीं बताता|

तब एक दिन ऐसे ही राह चलते, गाँव के अखाड़े के कोच चाचा ने पेंट की तरफ देख के कहा कि भतीजे बड़ा जल्दी जवान हो रहा है, ऐसा किया कर लंगोट बाँध के स्कूल जाया कर| और कोच चाचा की बात ने इतना तो हल जरूर दे दिया कि अब पेंट में उभार दिखना बंध हो गया| अब किसे पता था कि जिस अखाड़े में मुझे जाने की आदत ही नहीं थी चाव भी नहीं था, उसी अखाड़े के कोच से मुझे अंजाना सा और अस्थाई ही सही परन्तु हल मिल जायेगा| फिर कुछ ही दिनों में लंगोट वी-शेप अंडरवियर में बदल गया| परन्तु मानसिक समस्या और इसके स्थाई हल हेतु असमंजस अभी तक बरकरार थी|

वो एक अंजाना गुरु: क्योंकि मुझे बचपन से सुबह जल्दी ऊठ, स्व-स्वभाव से ही दौड़ लगाने व् व्यायाम करने की आदत थी और इन दिनों जब आठवीं कक्षा के छ: माही व् नौ-माही परीक्षाएं नजदीक आई तो मैं स्कूल के हॉस्टल में रहने लग गया था| वहाँ एक दिन वो हुआ जिसको लोग "अपनी मदद करने वाले की भगवान भी मदद करता है कहते हैं|" हुआ यह कि जींद के अर्जुन स्टेडियम में कोई राज्य स्तरीय खेल-प्रतियोगिता लगी हुई थी और उसमें आये खिलाडियों-कोचों के ठहरने हेतु मेरे स्कूल के कमरे खोले गए थे| तो जब मैं स्कूल के प्रार्थना ग्राउंड में सुबह पांच-साढ़े चार बजे के करीब व्यायाम कर रहा था तो एक अनजान कोच भी उधर एक्सरसाइज करते हुए आया और मुझे कहने लगा कि मैं पिछले तीन दिन से तुम्हें देख रहा हूँ, रोज सुबह दौड़ लगा के फिर व्यायाम करते हो, यह लग्न स्वत: है या कोई वजह? तो मैंने उत्तर दिया कि नहीं श्रीमान ऐसे ही रूचिवश कर लेता हूँ| सुबह का अँधेरा था पार्क की सिर्फ स्ट्रीट लाइट वो भी मंद-मंद जल रही थी, इसलिए उन महाशय का चेहरा तक ठीक से नहीं देख पाया|

परन्तु उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें व्यायाम पर कुछ टिप्स देना चाहता हूँ| तो उन्होंने मुझे कुछ पेट की एक्सरसाइज, जैसे कि पेट से हवा अंदर-बाहर करना (अनुलोम-विलोम की भांति की थी, जो कि आज भी मेरे जीवन का स्थाई हिस्सा हैं) बताई व् कुछ स्ट्रेचिंग की और कहा कि इनके नियमित करने से तुम्हें कभी भी किशोरावस्था की समस्याएं जैसे कि स्वप्न दोष, हस्तमैथुन, शीघ्रपत्न, असमय उभार, पेट की बीमारियां व् स्वास की समस्याएं नहीं आएँगी|

उभार के हल बारे सुनते ही मेरा चित प्रसन्न हुआ और उनसे पूछा कि इनके करने से यह समस्या कैसे ठीक हो जाएगी तो उन्होंने कहा कि इससे तुम्हारे स्नायु तंत्र खुलते हैं और तुम्हारे शरीर के अंगों पर तुम्हारा दिमागी नियंत्रण पैदा होता है| तब मैंने उत्सुकतावश पूछा कि यह स्वप्नदोष, हस्तमैथुन व् शीघ्रपतन क्या होते हैं तो उन्होंने इतना ही कहा कि यह किशोरावस्था की समस्याएं होती हैं, लेकिन तुम इन व्यायामों को नियमित करोगे तो तुम्हें यह समस्याएं नहीं होंगी| जानना तो इससे आगे भी विस्तार में था परन्तु कृतज्ञता के चलते आगे नहीं पूछ पाया और मन ही मन उन महाशय का धन्यवाद किया| ऐसा प्रकाश हुआ कि जैसे स्वंय कोई नारायण आ के दो मिनट का प्रवचन दे के गए हों| और इससे पहले मैं उनका नाम-पता पूछता वो अपने ठहरने वाली बिल्डिंग की तरफ अदृश्य हो गए| जरूर कोई भले मनुष्य थे जो परिचय की प्यास ना रखते हुए सिर्फ शिक्षा के ज्योत जला गए| इस अनुभव से उनके बारे इतना जरूर कह सकता हूँ कि उन्होंने बहुत से बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाया होगा, उनको मानसिक तौर पर सुदृढ़ बनाया होगा, जैसे कि मुझे बनने का मार्ग बता गए| वो मार्ग जो मेरे खुद के स्कूल के अध्यापकों को बताने का भान भी नहीं था| उस पुण्यात्मा को कोटि-कोटि नमन!


मेरा अनुभव, ब्रह्मचरियता किसी भयवश करनी चाहिए अथवा उद्देश्य वश: सीधे-सीध शब्दों में ब्रह्मचरियता माने वीर्य का संरक्षण, और इसी को सेक्स-मैनेजमेंट का मूल अध्याय कहते हैं| यह हर किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले युवान के लिए जानना बहुत ही आवश्यक होता है कि जब उनको कोई यह कहे कि हस्तमैथुन सिर्फ इसलिए मत करो क्योंकि यह बुरी चीज है अथवा इससे तुम दूषित होते हो तो यह बिलकुल ही गलत तरीका है| इससे आपको यह बात बताने वाला है चाहे वह आपका माता-पिता हो, अभिभावक हो अथवा अध्यापक, आपको भय और लज्जा के जरिये इसको ना करने की शिक्षा देता है| और भय और लज्जा तो ऐसी चीजें हैं जो शिक्षा के आड़े आ जाएँ तो शिक्षा को औचित्यहीन बना दें| क्योंकि फिर आप उस आदत से दूर भले हट जाएँ, परन्तु उस भय और लज्जा को ढूंढते रहते हो और इससे व्यर्थ में आपकी ऊर्जा वहाँ लगती है, जहां कोई उत्तर ही नहीं होता| इसलिए माता-पिता, अभिभावक व् अध्यापक इस मामले में ईमानदारी बर्तें और बच्चे को सीधा-सीधा यह बताएं कि कल को तुम कितने बड़े इंसान बनते हो वह तुम्हारी इस कला पर निर्भर करता है कि अपने शरीर, दिमाग, मन और आत्मा की संतुष्टि हेतु कितना वीर्य संरक्षण करते हो| क्योंकि इंसान की मूल रचना का आधार ही वीर्य है, और यहां यह बात पुल्लिंग-स्त्रीलिंग दोनों पर लागू होती है| वीर्य बहाव के साथ नाली-गटरों में बहाने वाली चीज नहीं अपितु संरक्षित कर तपाने और उस तप से अपने लिए विलक्षण व् कुशाग्र बुद्धि व् शारीरिक बल संचित करने की चीज होती है| वीर्य का संरक्षण हमारे शरीर-आत्मा-बुद्धि का वैसे ही संरक्षण करता है जैसे एक मक्की के भुट्टे पर चढ़ी पत्तों की परतें, उस भुट्टे को परिपक्व होने तक संरक्षण देती हैं| इसलिए जब वीर्य का बहाव दिमाग में गर्माहट पैदा करे तो अपने आपको शून्य में यानी प्रतिक्रियाहीन बना दो; क्योंकि यही वह दिमाग में गर्माहट का बहाव होता है जो आपके शरीर-बुद्धि की भुट्टे के पत्तों रुपी कवच बनता है, और अगर संरक्षित किया जाए तो आपको इंसानियत की परिपक्वता तक ले के जाता है| लेकिन अगर इस गर्माहट को सहन कर संचित करने की अपेक्षा गटर-नाली में बहाओगे तो निसंदेह खुद को कभी किसी भी प्रकार की बुलंदियों की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचा पाओगे| और जो आपको यह कहते हैं कि जब यह चीजें दी हैं तो इनका इस्तेमाल तो किया ही जायेगा तो वो सत्य है कि किया जायेगा, परन्तु यह आपको तय करना है कि आपको इसका उन कहनेवालों के अनुसार इस्तेमाल खुद को परिपक्वता तक पहुंचाने से पहले करना है अथवा बाद में| परिपक्वता से पहले इसका इस्तेमाल करना ठीक वैसे ही जैसे बिना पकी फसल को काट डालना|

यहां यह सवाल भी आ सकता है कि हम परिपक्व हुए कि इस बारे कौन बताएगा? आप परिपक्व हुए अथवा नहीं इस बारे जानने के दो रास्ते हैं, अगर आप सन्यासी बनना चाहते हैं तो यह अंतहीन है, लेकिन अगर आप गृहस्थ जीवन जीना चाहते हैं तो इसमें फिर आगे दो तरीकों से पता लग सकता है| एक तो आपके माता-पिता-गुरु-अभिभावक अथवा विश्वसनीय मित्र इसको जानने में आपकी मदद कर सकते हैं या फिर अपनी जिंदगी के जो लक्षय आपने निर्धारित किये हैं, जैसे कि ऊँची पढाई, ऊँची नौकरी उनको पाने हेतु वीर्य की गर्माहट के प्रति प्रतिक्रियाहीन रहते हुए, उन लक्ष्यों को पाईये और इनको पाने के साथ ही आप देखेंगे कि आपने इसकी परिपक्वता भी पा ली है|

वीर्य संरक्षण पर लालन-पालन, सामाजिक संरचना व् परिवेश का बहुत प्रभाव होता है, अगर घर-बाहर आपको ऐसा माहौल नहीं प्राप्त हो रहा जो आपको स्वछंद छोड़ इतना भी वक्त नहीं देता कि आपके लिए जरूरी इस प्रतिक्रियाहीनता के पलों को सुनिश्चित कर सके तो निसंदेह उसका दुरुस्त किया जाना जरूरी बन जाता है|


सविनय निवेदन: जींद के एस. डी. स्कूल {यही मेरा कमियों से कम (सेक्स-शिक्षा जैसी कमी) परन्तु खूबियों से ज्यादा भरा स्कूल था} के प्रबंधन या अध्यापक वर्ग में किसी को यह लेख हाथ लगे और इस लेख में लिखी बातें आज भी वहाँ ऐसे ही चल रही हों, तो अपनी इस अलुम्नी की बात पे जरूर गौर फरमाएं और प्रबंधन से फरमवायें और स्कूल में रूढ़िवादी शिक्षा पद्दति को बदल सेक्स एजुकेशन और को-एजुकेशन पर जरूर कुछ करवाएं|

थोड़ा ही सही परन्तु मुझे तो वो पुण्यात्मा सेक्स समस्याओं पर कुछ ज्ञान दे गई, परन्तु ऐसे अनजान ज्ञान देने वाले सबके नसीब में हो जरूरी नहीं होता| दूसरा अगर आप लोगों ने अभी तक सहशिक्षा शुरू नहीं की और अगर चाहते हैं कि आपके पुल्लिंग विधार्थी लड़की-महिला से बेझिझक परन्तु आदर से बात करें, उसको वस्तु ना समझें, उसकी संवेदना को जानें और उसकी गरिमा व् स्मिता को जीवन में स्थान व् महत्व दें तो शीघ्राति इसको शुरू करवाएं| मेरा इसको कहने का आशय यह नहीं है कि बिना को-एजुकेशन में पढ़े लड़के बद्तमीज अथवा दुर्व्यवहारी होते हैं, कदापि नहीं परन्तु इतना जरूर है कि उनमें औरत को समझने की वो संवेदना नहीं पैदा हो पाती जो कि एक को-एजुकेशन में पढ़े हुए में होती है| उसमें औरत के प्रति मान-सम्मान तो जरूर होता है परन्तु औरत को समझने बारे को-एजुकेशन में पढ़े हुए बच्चे से कोसों दूर होते हैं| और इस दूरी का परिणाम उनको अपने करियर के कई मोड़ों पर भुगतना पड़ता है, जब वो अनुभव की कमी की वजह से उत्पन्न शर्मीलेपन से या अविश्वास से अपने स्त्रीलिंग कलीग को सही नहीं समझ पाते हैं| और जीवन में कई तरक्की के अवसरों से वंचित रह जाते हैं|


माता-पिताओं व् अभिभावकों से अनुरोध: अपने बच्चों को कभी भी एकल शिक्षा में ना पढ़ाएं; और जहां भी पढ़ाएं वहाँ खुद कह के यह बात सुनिश्चित करवाएं कि आपके बच्चों को सेक्स-एजुकेशन दी जाए| बाकी मैं तो एक बिना माँ का बालक हूँ, इसलिए मुझे घर पे इस बारे क्या शिक्षा दी जाती है, ज्यादा नहीं पता, फिर भी इतना जरूर कहना चाहूंगा कि जितना हो सके उतना घर पर भी अपने बच्चों की इन मानसिक समस्याओं का हल उनको अतिशीघ्र दें, ताकि वो लम्बे समय तक किसी ऊहापोह की स्थिति में गिरने की अपेक्षा, इनका स्मयोचित समाधान प्राप्त कर, जीवन में निर्बाध आगे को अग्रसर रहें|

जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 13/12/2014

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
जानकारी पट्टल - मनोविज्ञान (बौधिकता)

मनोविज्ञान जानकारीपत्र: यह ऐसे वेब-लिंक्स की सूची है जो आपको मदद करते हैं कि आप कैसे आम वस्तुओं और आसपास के वातावरण का उपयोग करते हुए रचनात्मक बन सकते हैं| साथ-ही-साथ इंसान की छवि एवं स्वभाव कितने प्रकार का होता है और आप किस प्रकार और स्वभाव के हैं जानने हेतु ऑनलाइन लिंक्स इस सूची में दिए गए हैं| NH नियम एवं शर्तें लागू|
बौद्धिकता
रचनात्मकता
खिलौने और सूझबूझ
जानकारी पट्टल - मनोविज्ञान (बौधिकता)
निडाना हाइट्स के व्यक्तिगत विकास परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

HEP Dev.:

हरियाणवी में लेख:
  1. कहावतां की मरम्मत
  2. गाम का मोड़
  3. गाम आळा झोटा
  4. पढ़े-लि्खे जन्यौर
  5. बड़ का पंछी
Articles in English:
  1. HEP Dev.
  2. Price Right
  3. Ethics Bridging
  4. Gotra System
  5. Cultural Slaves
  6. Love Types
  7. Marriage Anthropology
हिंदी में लेख:
  1. धूल का फूल
  2. रक्षा का बंधन
  3. प्रगतिशीलता
  4. मोडर्न ठेकेदार
  5. उद्धरण
  6. ऊंची सोच
  7. दादा नगर खेड़ा
  8. बच्चों पर हैवानियत
  9. साहित्यिक विवेचना
  10. अबोध युवा-पीढ़ी
  11. सांड निडाना
  12. पल्ला-झाड़ संस्कृति
  13. जाट ब्राह्मिणवादिता
  14. पर्दा-प्रथा
  15. पर्दामुक्त हरियाणा
  16. थाली ठुकरानेवाला
  17. इच्छाशक्ति
  18. किशोरावस्था व सेक्स मैनेजमेंट
NH Case Studies:
  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९