व्यक्तिगत विकास
 
मोडर्न ठेकेदार
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!!!......एक बच्चा जन्म के वक्त बच्चा नहीं होता, तथापि यह तो उसको विरासत में मिलने वाले माहौल व् परिवेश से निर्धारित होता है| एक बच्चे को माता-पिता जितनी समझ जन्म से होती है| अत: माता-पिता उसको उस स्तर का मान के उसका विकास करें|......!!!
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समाज का मोडर्न ठेकेदार
मेरा और समाज के मोडर्न ठेकेदार का खाप विषय को ले के विचार-विमर्श

समाज का मोडर्न ठेकेदार (पत्रकार) (आगे के संबोधन में ठेकेदार लिखा जायेगा):


प्रश्न 1: अगर इजाजत दें तो मैं आपसे आजकल खापों के बारे में उठ रहे कुछ जव्लंतशील मुद्दों पर बात करना चाहुँगा? क्योंकि आप अपनी वेबसाइट पे भी खापों के बारे में लिखते हैं और खापों के समर्थक दीखते हैं?

मैं: हाँ जरूर क्यों नहीं, लेकिन दो बातें:

1) जो प्रश्न आप खापों को ले के पूछेंगे, उन्ही प्रश्नों पर फिर मैं आपकी जाति और समाज को मद्देनजर रख कर जवाब चाहुँगा?

2) अगर अपने इतिहास के सार्थक पहलुओं को संजो के रखने की कोशिश मात्र पे आप मुझे खाप समर्थक का चोला पहनाना चाहते हैं तो वो आपकी निजी राय है वरना मैं जितना मेरे समाज के इतिहास को ले कर संवेदनशील हूँ उससे कहीं ज्यादा समाज में फैली (जो सिर्फ एक समाज की नहीं अपितु पूरे भारत में फैली हैं) बुराइयों का धुर-विरोधी भी हूँ|


ठेकेदार (थोडा कशमशाते हुए): हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप भी पूछ सकते हैं मेरी जाति-समाज पे सवाल|

मैं: ठीक है, तो पूछिए क्या पूछना है?


प्रश्न 2: खापें ऑनर किल्लिंग के मामलों में बदनाम क्यों हो रही हैं?

मैं: बदनाम हो रही हैं या किया जा रहा है? बाकी मैं इस मुद्दे पर आगे बात करने से पहले यहाँ पे एक बात साफ़ कर दूँ कि मैं न तो किसी खाप का प्रतिनिधि हूँ और ना ही उनका नियुक्त किया वक्ता हूँ, बस इस खाप रुपी परिवार का एक अदना सा सदस्य हूँ, इसलिए जो भी बात कहूँगा वो हालाँकि होगी तो मेरी खाप की मान-मर्यादा के अनुसार परन्तु रहेगी मेरी निजी राय|

ठेकेदार: तो क्या इसका मतलब आपको अपनी खाप का खौफ है?

मैं: मुझे खौफ है आप जैसे ठेकेदारों का....क्या पता आज यहाँ मेरी निजी राय को कल बतंगड़ बना एक मुदा ही बना डालो....के ये देखो आया एक और नया खापों का तलबगार...

ठेकेदार: हा हा हा....चलिए शुरू करते हैं, तो फिर बताइए की ऑनर किल्लिंग पे खापों की हो रही बदनामी या आपके अनुसार की जा रही बदनामी पे आप क्या सोचते हैं?

मैं: हम्म...इसपे तीन पहलू है मेरे जवाब के…

पहलू 1): जो आप कह रहे हैं वो मैंने सुना है पर कोई खाप पर (जहां तक किसी को मारने का सवाल है और उसमें किसी खाप का कोई हाथ रहा हो ऐसा किसी केस में साबित तो हुआ नहीं), हां खापें गाँव से निकाला या जुर्माना जरूर लगाती हैं|

ठेकेदार: तो जुर्माना लगाना या किसी को निकला देना भी कहाँ तक ठीक है?

मैं: बिलकुल भी ठीक नहीं परन्तु एक ऐसी सोसाईटी तो दिखाओ जिसमें ये चीजें नहीं होती, गाँव ही क्यों कोई शहर की ही दिखा दो...?

ठेकेदार: आप गाँव की शहर से तुलना कैसे कर सकते हो?

मैं: मतलब तुम गाँव की व्यवस्था को ले के जो चाहो बोलते रहो और गाँव वाला कोई शहर से तुलना भी ना करे?

ठेकेदार को चुप्पी काट गई!

मैं: क्यों क्या हर सिविल कहलाने वाली शहरी सोसाईटी में रहने का अपना code of conduct नहीं होता ? कोई लड़का (जिसको शहरी भाषा में छड़ा भी बोलते हैं) या कोई लड़की ही, उदाहरण के तौर पर हंगामा करें (जबकि वो हंगामा नहीं कर रहे होते बल्कि पार्टी कर रहे होते हैं) लगभग हर दूसरी सोसाईटी उसको बाहर नहीं निकाल देती है क्या (और इसका मुझे सबूत देने की जरूरत नहीं, आप निकलिये किसी भी टियर 1 या टियर 2 शहरों की गलियों में और पूछिए युवकों से क्या उनके साथ कभी ऐसा हुआ है या नहीं), विश्वास के साथ कहता हूँ अगर 50% से ज्यादा का जवाब हाँ में ना मिले तो?

ठेकेदार: लेकिन वो सोसाईटीज पंजीकृत होती हैं?

मैं: किसनें कहा कि वो पंजीकृत होती हैं?


ठेकेदार को चुप्पी काट गई!

मैं: और अगर एक पल को मान भी लो की पंजीकृत होती हैं तो कोनसे भारतीय कानून के तहत उनको ये हक़ मिल जाता है कि आप किसी को ऐसे ही सोसाईटी से बाहर निकाल दोगे?......कम से कम सिर्फ हंगामा करना इतना बड़ा अपराध तो नहीं हो सकता जितना बड़ा ऑनर किल्लिंग होता है?....पंजीकृत करवाने से इन कर्मों की छूट मिल जाती हो, मैंने तो किसी भारतीय कानून में ना पढ़ा ना सुना?

ठेकेदार: लगता है आपको जरूर किसी ने निकाला है इसीलिए आपको इतना दर्द है?

मैं: मैं तो जिनके भी यहाँ रहा वो आज भी मुझे याद करते हैं|

ठेकेदार: चलिए अपनी बात पे आते हैं....तो क्या आप खापों को देश के कानून के बराबर रखते हैं?

मैं: नहीं, लेकिन देश के कानून भी तो समाज की मान्यताओं को ध्यान में रख के बनते हैं ना और हमारे देश में दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ....हर वर्ग की राय कानून बनाते वक़्त ली ही नहीं गई....उदाहरणत: एक दलित के सामाजिक रीति-रिवाज-मान्यताएं हों या खाप की.....किसी की कोई भी कानूनी लिखत नहीं...जो कानून देश की आज़ादी से पहले एक गुलाम देश को चलाने के लिए बनाए गए थे आज भी वही के वही लागू हैं|

और उस पर सितम तो ये है कि जब सत्यमेव-जयते जैसे कार्यकर्मों में खाप इंग्लैंड (जिसके कि लाइफ-स्टाइल से ले के पहनावे तक की हम नक़ल करते हैं) का उदाहरण देती हैं तो लोग उनपे हँसते हैं| क्या सिर्फ इसलिए कि इस बात को खाप कह रही हैं? आखिर खाप इंग्लैंड का उदाहरण दे के यही तो कहना चाहती थी कि जब वहाँ के कानून उनके रीति-मान्यताओं के आधार पे बने हैं और हम जो उनको लाइफ-स्टाइल से ले के ओढने-पहरने तक में नक़ल करते हैं तो हमारे कानून बनाने के मामले में क्यों नहीं....परन्तु आमिर जैसे मिस्टर परफेक्ट की समझ भी खापों की सोच को नहीं समझ पाई और देखी उसकी समझ भी......एक तो खाप प्रतिनिधियों की बात भी पूरी नहीं सुनी और ऊपर से ये कह के उनका मजाक भी उड़ा दिया कि आप इंग्लैंड में नहीं भारत में रहते हो.....जब प्रोग्राम बनाए ही सिर्फ अपनी बात को ऊपर रखने के लिए जाते हैं तो मैं यही कहूँगा कि खाप ऐसे गैर-जिम्मेदाराना शख्स को किसी भी मुद्दे पर उत्तरदाई नहीं हैं| Ref1

ठेकेदार: तो क्या आप चाहते हैं कि खाप जो कहती हैं उन सब बातों को ज्यों का त्यों मान लिया जाए?

मैं: अगर खाप इंग्लैंड जैसे उदाहरण दे के कुछ करना या कहना चाहती हैं तो क्यों नहीं?....मैं ये कहना चाहता हूँ भारत की सब जातियों-समुदायों की रीति-मान्यताएं लिखी जाएँ और उनको उनमे से आगे क्या चले और क्या छूटे इसपे उसी जाति के लोग सर्वे कर निर्धारित करें और निर्णय लें, .....तब होगा वास्तव का लोकतंत्र|

ठेकेदार: इतिहास लिखा तो गया है?

मैं: बिना पक्ष-पात के लिखा गया है क्या?

ठेकेदार: ये राय तो आपने सही दी, परन्तु आज के दिन जो मुख्य मुद्दा ऑनर किल्लिंग का है वो होते तो ज्यादातर खापलैंड में ही हैं?

मैं: खापलैंड पे अकेले खाप को मानने वाले ही जातियां रहती हैं क्या?

ठेकेदार को कुछ क्षण के लिए चुप्पी काट गई....

ठेकेदार: परन्तु फिर भी ज्यादा मामले यहीं से आते हैं?

मैं: आमिर खान के सत्यमेव जयते शो में लाइव डाटा देखने के बाद आप ऐसे बोल रहे हैं?......जिसमें दिखाया गया कि ऐसे अपराध ग्रामीण क्षेत्र से ज्यादा शहरी क्षेत्र में होते हैं| हालाँकि वो आकंडे कितने सच्चे थे वो उनपे विश्वास करने वाले पर निर्भर है|

और अगर एक पल के लिए उन आंकड़ों पर यकीन ना भी करो तो यह तो बिना पक्ष-पात के अन्वेषण से पता करने की बात है कि कहाँ ज्यादा और कहाँ कम? और अगर ज्यादा और कम के स्तर पे ही किसी पे दोषारोपण करना है तो खापलैंड क्या, पूरे भारत में, धर्म और जाति के नाम पे बहुतेरे महारथी ठेकेदार बैठे हैं जो हम जैसों के दिल ना मिलें इसकी उधेड़-बुन में पूरी जिंदगियां निकाल देते हैं.....कम से कम खापलैंड पे खाप ये तो नहीं करती....बुरा मत मानियेगा लेकिन क्या आप मेरे को अपनी जाति या समाज का अता-पता देंगे?

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: आप ऐसे सवाल नहीं पूछ सकते…

मैं: आपने मेरे से मेरी जाति-समाज पे पूछा तो ये जानना मेरा कानूनी हक़ भी है और फर्ज भी कि आपका जाति और समाज कोनसा है|

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: आप तो दिल पे ले रहे हैं…………

मैं: जब आप ये मुद्दे ले के आये हैं तो देखना तो होगा ना कि आपके समाज में ऐसी क्या ज्यादा अच्छाई है कि आप ये सब चीजें आपके समाज में होते हुए भी मेरे समाज को सुधारने चले आये?

ठेकेदार: खैर अपना दूसरा पहलू बताइए

पहलू 2): अगर ऐसे मामले आ भी रहे हैं तो कानून उनपे अपना काम कर रहा है, पीड़ित जा के कानून से मदद ले रहे हैं और कानून उनको मदद दे रहा है|

ठेकेदार: उनको कानून के पास जाना ही क्यों पड़ता है?

मैं: क्यों भाई, तुम्हारी जाति या समाज में ऐसे मामलों में कोई कानून के पास नहीं तो कहाँ जाता है ?

ठेकेदार: आप इस बात को फिर मेरी जाति और समाज पे ले गए?

मैं: नहीं भाई, मैंने जानकारी के लिए पूछा है कि अगर आपके समाज में ये चीजें कानून हल नहीं करता है, तो लोग किसके पास जाते हैं अपनी फरियाद ले के?

ठेकेदार (झुन्झुलाहट में): नहीं जाते तो हमारे यहाँ भी कानून के पास ही हैं |

मैं: मतलब आप मानते हो कि ये मामले आपकी जाति और समाज में भी होते हैं और जब समाज से न्याय नहीं मिलता तो पीड़ित कानून के पास जाते हैं?

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: अच्छा आपका तीसरा पहलू क्या था इस सवाल का?


पहलू 3): खापें एक प्रजातांत्रिक संस्था हैं, वो इन मामलों में नहीं आती हैं, ये अधिकतर मामले उस कहानी के जैसे होते हैं जिसमे एक खरगोश शेर को मारने के लिए चाँद का सहारा लेता है....ऐसा ही कुछ समाज के कुछ असामाजिक स्वार्थी तत्व अपने स्वार्थ सिद्ध करने हेतु खाप का नाम इस्तेमाल करते हैं...ये कैसे-कैसे होता है इसका ब्यौरा मेरी वेबसाइट के खाप पृष्ठ पर विस्तार पूर्वक दिया है उसको पढ़िए....

ठेकेदार: हां पर उनमे ऐसे लोग पाए गए हैं जो कभी खाप से सम्मानित रहे हैं|

मैं: तो क्या आप ये कहना चाहते हैं कि दुसरे समाज या अपने देश के कानून तक से सम्मानित लोग इन हरकतों में शामिल हुए नहीं पकडे जाते? या किसी का किसी संस्था अन्यथा सविंधान द्वारा सम्मानित हुआ जाना, उसके उम्र भर का चरित्र प्रमाण पत्र हो जाता है?

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: अच्छा प्रजातांत्रिक कैसे, ये तो पारिवारिक संस्था हैं ना?

मैं: अगर पारिवारिक हैं तो फिर आप ये प्रश्न ही क्यों ला रहे हैं, क्यों कि एक परिवार के मामलों में तो आपको कानूनी भी कोई हक़ नहीं दखल देने का?

ठेकेदार: नहीं मेरा मतलब था कि एक ही आदमी, जैसा कि पुराने ज़माने में राजा होते थे, उनकी सबको माननी पड़ती थी, ये तो वैसा ही कुछ हुआ ना?

मैं: इसके लिए पहले आप खाप-तंत्र को समझिये, खाप कोई राजा का तन्त्र नहीं है, ये एक वंशावली है, क्योंकि हम एक दादा की औलादें हैं और अगर हमारे समाज में इतनी पीढ़ियों बाद तक भी भाई-चारा निभाने की समझ है तो मैं नहीं समझता कि किसी को इससे को दिक्कत होगी| अगर यूँ कहूँ कि भाई-चारा ही हमारे समाज का सबसे मजबूत स्तंभ है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी|

ठेकेदार: यूँ कहो तो फिर पूरा संसार ही एक एडम और इव की औलाद है और इसका मतलब आप और मैं भी भाई हुए |

मैं: तुम ईसाई हो क्या?

ठेकेदार: नहीं

मैं: तो फिर अपने-आप को एडम-इव की औलाद मानते हो, या धर्म परिवर्तन करके ताजा-ताजा ईसाईपना छोड़ा है, या फिर किसी के cultural slave बन गए हो ?

ठेकेदार: आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?

मैं: क्योंकि एडम-इव तो ईसाई धर्म में हुए थे ना?

ठेकेदार: हां पर….

मैं: पर क्या?....जब तुम खुद अपने आप को एडम-इव की औलाद मानने से मना कर रहे हो तो बताओ फिर पूरी दुनिया एक एडम-इव की औलाद कैसे हुई? या फिर तुम्हे ये ऐसे उद-जुलूल से तर्क सिर्फ खाप के लोगों के आगे ही रखने आते हैं? ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: नहीं ऐसा तो कोई बात नहीं

मैं: नहीं तो फिर तुम्हे इस बात का अहसास-इल्म भी है कि तुम खुद को ना तो इसाई बता रहे हो और खापों को बुरा साबित करने के लिए खुद को एडम-इव तक की औलाद कहलाने को तैयार हो?

मैं नहीं जानता तुम किस धर्म के हो और ना जानना चाहता पर जैसा तुमने ऊपर कहा कि तुम इसाई तो कम से कम हो नहीं....तो भाई थोडा रहम करो अपने धर्म पर....आस्था रखो थोड़ी उसमे....किसी को नीचा दिखाने का इतना उतावलापन कि खुद को एडम-इव तक की औलाद कहने पे तुले हो......तुम्हारे धरम के मसीहा-महापुरुषों का इतना मजाक तो मत बनाओ.....और करना भी है तो पहले इसाई ही बन जाओ कम से कम...बन्धु थोड़ा संभल के...कहीं ऐसा ना हो तुम चले हो खापों को बदलने और कल को पता चले कि खापों को बदलते-बदलते अपना ही धर्म बदल बैठे.....बाकी सोचता हूँ कि मैं भी इसाई ही क्यों ना बन जाऊं....

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई


ठेकेदार: लेकिन आपके यहाँ कोई खाप के प्रतिनिधियों का चयन भी तो नहीं होता....कोई इलेक्शन प्रक्रिया भी नहीं होती....किसी इलेक्शन तन्त्र के तहत....जैसे सिखों में होता है....मंदिर ट्रस्टों में होता है....

मैं: अगर तुम चाहते हो कि खापें दूसरों की तरह मंदिर-गुरुद्वारे-मस्जिद खड़ी करें तब इनको कुछ मानेंगे तो भाई जिस दिन खापों ने धर्म-पुन के नाम पर अड्डे चलानें होंगे और इंसानियत की जगह पत्थर और समाधियाँ पुजवानी होंगी तो खापें वो भी कर देंगी| लेकिन हमारे पुरखे खुद इतनी बड़ी-बड़ी सेनाओं (जो दूसरे धर्मों की कुल सेना के बराबर तो एक-एक खाप की सेनायें होती थी) के पुरोधा, विजेता और सरमाया होते हुए भी कभी उन्होंने अपने आपको पुजवाना और गुणगान करवाना मुनासिब नहीं समझा और अपने वंशजों तक को कह गए कि तुम भी कभी ऐसा मत करना और ना ही इस वीरता की गाथा को यहाँ तक रोकना क्योंकि वीर किसी एक युग या जाति की बपौती नहीं होते, वो किसी भी युग और जाति में हो सकते हैं, इसलिए हमें पुजवाने के बजाये, अपनी नश्लों में ऐसे शेर-शुरमे पैदा करना जो हम से भी बढ़ के हों|

इसलिए खापों ने धर्म-पुन के नाम पर आज तक गुरुकुल (जो कि तुम्हें खापलैंड के हर 10 कोस पे एक-ना-एक तो मसलन तो चालू अवस्था में नहीं तो खंडहर के रूप में तो जरूर दिख जायेंगे) और कन्या शिक्षा के विस्तार पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया| और इसीलिए खापें उत्तरी भारत में ज्ञान की ज्योति फैलाने वाली अग्रिम कड़ी बनी|

और तुमने कभी माँ-बाप का इलेक्शन होते हुए सुना है क्या?...रही बात तुम्हारे उदाहरणों की तो सिख धर्म तो एक जाति का बेसक रहा हो परन्तु बाद में इसको दूसरी जातियों ने भी अपनाया....मंदिर एक जातिगत नहीं होते...धार्मिक संस्था होते हैं....जबकि खापें जातिगत हैं और जातिगत में भी समूह हैं और इन समूहों का आधार ही एक दादा की औलाद होना है.....रही बात इलेक्शन की तो खापों की कमेटियों का चयन होता है|

ठेकेदार: तो क्या खापें एक ही जाति की हैं...?

मैं: वैसे तो तुम्हे मेरे पास आने से पहले इसका पता होना चाहिए था...लेकिन नहीं पता तो बता देता हूँ....खापें एक जाति की नहीं कई जातियों में होती है|

ठेकेदार: इसका उदहारण

मैं: सर्व जातीय सर्व-खाप पंचायत

ठेकेदार: हम्म्म्म


मैं: खापें लगभग बारह-सौ वर्ष पुरानी संस्थाएं हैं....अगर ये इतनी ही अलोकतांत्रिक होती या असामाजिक होती तो क्या इतना लम्बा चल पाती? इनके आगे ही मुग़ल-पठान-तुर्क से ले के डच-फ्रेंच-पुर्त्गिश और अंग्रेज तक आये और चले गए....सारे राजे-रजवाड़े, जिनमें अधिकतर तो इनके सामने बने, वो सब भी ख़तम हो गए, पर फिर भी और आज भी खापें जिन्दा हैं| आखिर कोई तो बात होगी इनमें? वरना जनता पे थोंप के तो आप कोई सामाजिक संस्था दो दिन भी नहीं चला सकते.....जनता में उनकी बातों को पसंद किया जाता है तभी वो चलती हैं और जिन्दा हैं?

ठेकेदार: क्या आप ऐसा उदहारण दे सकते हैं जहां आपने कभी खाप के किसी अच्छे प्रस्ताव को अमल में लिया हो?

मैं: हां क्यों नहीं...खापें सदा से कहती आई हैं कि शादी बिना दहेज़ की करो....और मेरे परिवार ने हमारे छोटे भाई की शादी बिना दहेज़ की ही की है|

ठेकेदार: ये तो वाकई बहुत अच्छी बात है|

मैं: परन्तु आप शायद ही इसको मंच पे लाओ क्योंकि ये अच्छा काम खाप के निर्देशों का आदर करते हुए जो हुआ है....वैसे काश एक लड़की का बाप भी इतनी ही आज़ादी से बिना दहेज़ की शादी कर पाता....उसकी इस असमर्थता का कारण है समाज का पुरुष-प्रधान होना|

ठेकेदार: मुझे इस पहल की विस्तृत जानकारी दीजियेगा....वैसे आप सिख धर्म को एक जाति का क्यों बोल रहे हो?

मैं: क्यों तुम सिख हो क्या?

ठेकेदार: नहीं, ऐसे ही पूछ रहा था....

मैं: माफ़ करना...इसका जवाब मैं एक सिख को ही दे सकता हूँ, अगला प्रश्न पूछो…..


प्रश्न 3


ठेकेदार: अच्छा आमिर खान के सत्यमेव जयते के ऑनर किल्लिंग में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

मैं: मेरे इसके भी तीन पहलू में जवाब हैं:

पहलू 1) खापों के पास अच्छे वक्ता नहीं हैं और वो अगर अच्छे वक्ता थे तो आमिर ने शो में उनको अपनी बात पूरी करने का मौका ही नहीं दिया|

ठेकेदार: तो क्या आप खापों के इस तालिबानी रव्वये का समर्थन करते हैं....या मीडिया का विरोध करते हैं?

मैं: मेरी खापों का नैतिकी बचाव करना मेरा फर्ज है....जहां तक मीडिया की बात है तो मीडिया के तो खापों से पेश आने के तरीक का ही विरोध करता हूँ मैं|

ठेकेदार: वो कैसे....

मैं: मीडिया खापों के साथ चलने की बजाये उनके गले में रस्सा बाँध आगे से खींचने की कोशिश करता है|

ठेकेदार: वो कैसे....

मैं: ये गले में रस्सा दाल के खींचना ही तो है कि जहां-जहां जो-जो खाप अगर दोषी पाई गई है तो प्रूफ के साथ सिर्फ उनसे प्रश्न करने की बजाये, खाप के पूरे तन्त्र को ही कठघरे में घसीट रहे हैं....परन्तु मीडिया इसमें कितना सफल होगा उसपे मुझे संदेह है...या तो मीडिया खाप और गाँव के लोगों को बिलकुल ही मुर्ख समझता है या फिर जान-बूझकर अनजान बनता है

मीडिया वालों को पता होना चाहिए कि जिन भैंसों का वो दूध पीते हैं...उनको गाँव के लोग पालते हैं....और जब इन पालने वालों की भैंसों के कटड़ों तक में (कटड़ा भैंस के बच्चे को बोलते हैं) इन तक में इतनी अक्ल होती है कि अगर आप उसको गले में रस्सा बाँध उसके आगे हो खीचेंगे तो वो उल्टा हटेगा....आप उसको आगे खींचेंगे पर वो आपको पीछे खींचेगा....और कोई अच्छा पला हुआ कटड़ा हो तो आप उसको जगह से हिला के दिखा देना अगर वो टस से मस भी हो ले तो... क्यों...क्योंकि वो जानता है कि ये मेरे को इज्जत नहीं दे रहा....लेकिन वही कटड़ा अगर उसके बराबर में आ पीठ पे हाथ रख चलायें तो वो साथ-साथ चलता है....तो कहने की बात है जिस चीज को हमारे कटड़े तक समझते हैं उनसे ये लोग हमको हांकेंगे क्या....मीडिया को सही में समाज की एक-समान चिंता है तो सबसे पहले खाप समाज के साथ-साथ चलना सीखे....वरना तो भूल जाएँ कि वो अपनी दोगली मंसाओं से समाज का रत्ती भर भी कल्याण कर पायेंगे|

और रही बात तालिबानी कौन है और कौन नहीं, मेरे तालिबानी कौन लेख को पढ़िए, संभवत: आपको जवाब मिल जायेगा|

ठेकेदार: तो क्या ये मीडिया के लिए एक धमकी है...?

मैं: धमकी नहीं सुझाव है और जो मीडिया वाला खाप और खापलैंड के दिलों पे राज करना चाहता हो वो इस फोर्मुले को अपना ले उसको बिज़नस भी मिलेगा और खाप का साथ भी|

ठेकेदार: परन्तु डाक्टर डी. के. चौधरी से बड़ा तर्क क्या होगा? कि परम्पराएं अगर बदली न जाएँ तो उनकी हालत झील के ठहरे पानी की तरह काई लगी हो जाती है और सड़ांध मारने लगती हैं....

मैं: हा तो डाक्टर साहब ने परम्पराएँ बदलने की बात है ना...खापों को ख़त्म करने की बात तो नहीं कही ना? जिसके लिये उन्होंने कानून बदलने की लड़ाई लड़ने को एक रास्ता भी बताया|

ठेकेदार: परन्तु खापें ऐसा कुछ करती हुई भी नहीं दिखती|

मैं: क्यों नहीं दिखती...आप देखना चाहो तब ना...

ठेकेदार: तो बताइए ना

मैं: क्यों भाई...मेरे से विमर्श करने, बिना शोध के आये हो क्या...जो तुम्हे खाप की एक भी अच्छी बात का नहीं पता? फिर भी ये लो पढो खाप के आज के दिन के कुछ ऐसे कदम जो तुम शायद अपने मंच से कभी दिखाना भी ना चाहो.... Ref2

ठेकेदार: नहीं-नहीं पता तो है जैसे शोरहम वाली पंचायत में खापों का 12 सूत्री सामाजिक हित में दिशा निर्देश सूची....गठ्वाला खाप का शादी-विवाह के नियम में बदलाव....

मैं: तो कभी इनको एक मंच भी तो दो....कहीं अखबार या टी वी चैनल में भी तो दिखाओ....लगता है जब तक खापें अपना खुद का चैनल नहीं बनाएंगी तब तक ये होगा भी नहीं.....

ठेकेदार: कवर तो किया था परन्तु दिखाया नहीं.....

मैं: तो अब बताओ...ये दोगलापन नहीं तो क्या कहूँ इसको?

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: अच्छा ये गोत्र विवाद पे आपकी क्या राय है?

मैं: इस्पे तो आपकी जाति और धर्म बताओगे तो ही बात कर पाउँगा...

ठेकेदार: आप मानोगे नहीं


मैं: मानने को नैतिकता ही नहीं कहती....अब आप ही देख लीजिये खुद को एक तरफ तो आप समाज सुधार के ठेकेदार बनते हैं....दूसरी तरफ आपनी ही जानकारी नहीं बता रहे.....कोई नहीं गोत्र समस्या कोई एक जाति या सामाजिक समूह की नहीं और खासकर जहाँ तक हिन्दू और सिख धर्म का सवाल है उनमे तो ये लगभग (लगभग इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि शायद ऐसी कोई जाति हो) हर जाति और समूह में है|

ठेकेदार: हा पर गोत्र के नाम पे कत्ल?

मैं: आपके घर में आज तक कोई लव मेरिज हुई है क्या या एक गोत्र में शादी हुई हो?

ठेकेदार: आप फिर मेरे परिवार पे आ गए....

मैं: भाई जिन चीजों को आप समाज से हटाना चाहते हैं...उनपे पहले ये तो विश्वस्त कीजिये कि वो चीजें आपने करनी शुरू कर दी हैं.....इसलिए पूछ रहा हूँ कि शायद आपने अपनें यहाँ की हो...

ठेकेदार: करिश्मा कपूर ने की

मैं: तो वो आपके परिवार से है या आपके परिवार में ब्याही आई है....या उसका अनुसरण करके आपने शुरू कर दिया है अपने परिवार में.....घर में ना सही किसी दोस्त या रिश्तेदार की करवाई हो?

ठेकेदार: नहीं....और दोस्त या रिश्तेदार की करवा के मुझे क्या मरना है?

मैं: क्यों आप भी किसी खाप से सम्बंधित हो जो इतना डरते हो?

ठेकेदार: नहीं परन्तु एक न्यूनतम स्तर तो होता है ना हर चीज का?

मैं: तो ये न्यूनतम स्तर खाप के आते ही क्यों खत्म हो जाते हैं आप लोगों के?

ठेकेदार: नहीं ऐसी बात नहीं...परन्तु फिर भी....

मैं: देखा, आपने दोस्त और रिश्तेदार की हों तो भी आपको कितना दर लगता है....खुद आपके परिवार में होगी तो क्या होगा?...इससे पता लगता है कि आप खुद परम्पराओं के जाल में कितने जकड़े हुए हैं....और मेरे दोस्त इसको परम्पराओं का जाल ना कह के अपनी नैतिकता कहूँगा...मैं उम्मीद करता हूँ कि ये जवाब देते वक़्त आप पे आपके परिवार या परम्परा का दबाव ना रहा हो?

अब आप मेरे से वो एन. डी. टी.वी. वाले विनोद दुआ की तरह बात मत कीजिये....जैसे विनोद ने माननीय सांसद नवीन जिंदल के साथ की थी....जिसमे पहले नवीन जी से सवाल पूछता रहा और जब खु की बारी आई जवाब देने की तो चलता बना...ये कहते हुए कि मेरे परिवार में बच्चों को जाति-पाती सिखा के बड़ा नहीं किया जाता|

अरे....मैं पूछता हूँ चार सवाल विनोद दुआ से....

पहला: नवीन जी ने ये नहीं पूछा था कि तुम्हारे परिवार में बच्चे कैसे पाले जाते हैं...जो बताने लगे कि हमारे यहाँ बच्चों को जाति-पाती सिखा के बड़ा नहीं किया जाता...

दूसरा: तुम्हे सिखाने की क्या जरूरत है...जो खुल्ले-आम टी.वी. पे बैठ के जाति-पाती की बातें करता हो....उनके बच्चों को भी कोई ख़ास-ट्रेनिंग की जरूरत रह जाति है क्या.....वो बच्चे टी.वी. पे खुद ही देख रहे हैं कि उनके पापा-अंकल-दादा, हमें तो क्या, पूरे देश को ही क्या जाति-पाती का पाठ पढ़ा रहे हैं|

तीसरा: जो नवीन जी ने पूछा कि तुम्हारे यहाँ हुई है कोई शादी एक गोत्र में...उसके बाद शेर के बच्चे ने नवीन जी से कनेक्शन कट कर शो ही ओवर कर दिया...मेरे पहले पॉइंट में कही हुई बात के साथ|

चौथा: उनको कोई बताये कि स्क्रीन के पीछे "आज़ाद आवाज़" लिखने मात्र से से कोई आज़ाद नहीं हो जाता.... उससे समाज में सुधार नहीं आएगा...हां ऐसे-ऐसे विरोधाभाष खड़े करके लोग सुन जरूर लेंगे...लेकिन अगर सही में लोगों के दिलों को जोड़ना है तो पहले अपनी रूह को आज़ाद करें खुद की जंग लगी और सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स से ग्रसित मानसिकता से मुक्ति पायें पहले!

ठेकेदार: खैर विनोद की विनोद जाने

मैं: तो बताओ दोगलापन किस जगह और किस सोसाईटी में नहीं है?....खाप के बन्दों ने बैठ के कम से कम ये चीजें चुपचाप सुन तो ली...जिसका आमिर को पूछने का हक़ भी नहीं था....वरना ये तर्क जो मैंने दिए हैं वो भी तो दे सकते थे...लेकिन नहीं क्योंकि उनमे चाहें किसी का कोई नार्ज्रिया हो...परन्तु धरती से जुड़े लोग हैं वो....बातों में चार-सौ-बीसी उन्होंने नहीं सीखी|

ठेकेदार को फिर चुप्पी काट गई

ठेकेदार: अच्छा आपका इस प्रश्न पे दूसरा पहलु क्या है...?

पहलू 2)
आमिर कोई भारतीय कोर्ट या कानून नहीं था, जिसनें खापों से ये सवाल किया कि आपको कानूनी वैधता है या नहीं? क्योंकि ये वैधता तो दुनियां में ही शायद किसी धर्म या सामाजिक संस्था को हो| और जहाँ तक भारत की मेरी जानकारी है, भारत में ऐसा कोई धर्म या सामाजिक संगठन, कानून से मान्यता प्राप्त नहीं है| तो ये तो साफ़-साफ़ आमिर का दोगलापन ही हुआ, कि एक तरफ तो वो पूरे समाज को एक साथ के चलने की बात करता है और दूसरी तरफ एक विचारधारा और संस्था विशेष को शो में बुला, यह सवाल पूछता है| इसके बजाये उसनें उनको ऑनर किल्लिंग पे सवाल किये होते, उनसे पूछा होता कि आप इसको रोकने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं, तो इससे एक बेहतर संदेश समाज में जाता| पर नहीं उन्होंने अपने ही मंच का प्रयोग, समाज में एक समूह विशेष के खिलाफ किया, जिसका मैं पुरजोर खंडन करता हूँ|

शायद अब वक्त आ गया है कि जैसे किसी टी वी कार्यक्रम में भाग लेने से पहले, टी वी भाग लेने वाले के यह कह के दस्तख्त करवा लेते हैं कि टी वी उनकी कही किसी बात के लिए जिम्मेदार नहीं होगा और जो टी वी को सही नहीं लगेगा उसके उस भाग को वो काट देगा तो ऐसे ही भाग लेने वाले को भी टी वी यह हस्ताक्षर करके दे कि उसके विचारों को यूँ का यूँ अन्यथा, जो संदेश वो देने आया है, टी वी उसको जरूर दिखायेगा, जो कि खापों वाले केस में नहीं किया आमिर खान ने|

ठेकेदार: आपकी बात से कुछ हद तक तो मैं भी सहमत हूँ, आपका तीसरा पहलू ?

पहलू 3) अगर आमिर को खापों पे ही केन्द्रित करके शो करना था तो वो खाप लैंड और खाप समुदाय के ही ऐसे लव-मेरिज के उदाहरण भी ले के आता जो समाज नें खुले दिल से स्वीकारे हैं, खाप-लैंड पे भी लव-मेरिज होती हैं यह भी तो दिखाना था?

ठेकेदार:
आप जानते हैं ऐसे जोड़ों को?

मैं: मैं क्या, खापलैंड का शायद ही कोई ऐसा बासिन्दा हो जिसकी दोस्ती-रिश्तेदारी में ऐसी लव-मेरिज न हुई हों? जहाँ तक मेरी बात है तो मेरे गाँव में एक अंतर-धर्म लव मेरिज हुई, 2 मेरे चचेरे भाइयों ने लव-मेरिज करी

ठेकेदार: तो क्या ये शादियाँ बिना अवरोध के हो गई?

मैं: 2 में विरोध हुआ, एक बिना विरोध हो गई| परन्तु जिनमें विरोध हुआ वो शुरुआती मंजूरी का था विरोध था, जिसको बाद में बैठ के सुलझा लिया गया और वो तीनों जोड़े ख़ुशी-ख़ुशी विवाहित जीवन जी रहे हैं|

ठेकेदार: मैं उनकी कहानी जानना चाहुँगा

मैं: सिर्फ जानने के लिए या उनकी कहानी छापोगे भी कि इसी खापलैंड पर लव-मेरिज भी होती हैं और खाप समुदायों में बिना रूकावट के अंतत: ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार्य भी हैं?

ठेकेदार: हां-हां क्यों नहीं, अगर छापने लायक होंगी तो क्यों नहीं

मैं: और कोई प्रश्न?

ठेकेदार: हां एक और है

मैं: पूछिए


प्रश्न 4)

ठेकेदार: कुछ भी कहिये परन्तु समाज में समस्या तो है, इसका कोई तो हल होगा?

मैं: हां जरूर है क्यों नहीं, मेरे हिसाब से इसके ये हल हो सकते हैं:

1) समाज में एक ख़ास समूह की टांग-खिंचाई बंद हो, क्योंकि ये कटु सत्य है जब कोई दुसरे की किसी मुद्दे पे टांग खींचता है तो इसका मतलब वो खिंचाई करने वाला खुद समस्याग्रस्त है, डरा हुआ है या उसका समाज भी इसमें समाज भी इससे घिरा हुआ है| और वो अपने समाज से तो लड़ने की हिम्मत रखता नहीं, जा के दूसरे के समाज की तांका-झांकी शुरू कर देता है| वो कहते हैं नां कि कुम्हार की कुम्हारी पर पार बसाए ना, जा के गधे के कान खींचे", तो अपने खुद के समाज से डरे हुए लोगों नें एक सॉफ्ट टारगेट मिला हुआ है ये खापें|

2) जो समस्याएं सब जाति-धर्म में सामूहिक हैं जैसे कि दहेज, भ्रूण हत्या, ऑनर किल्लिंग व् अन्य, इनपे सब धर्म-जाति-सम्प्रदाय के समूह एक साथ विरोध का बिगुल फूंकें| और इस इसमें सबसे आड़े आती है जाति व्यवस्था, इसको तोड़ा जाए और इमानदारी से समाज में रंगभेद, नस्लभेद को मिटा इन विकृतियों से लड़ा जाए|

3) सच कहूँ तो हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार या काला धन नहीं अपितु हमारा सामाजिक वर्गीकरण तन्त्र है| इंसान को धर्म-नस्ल-रंग-जाति के नाम पर ईतना बाँट दिया गया है कि किसी को खुद की जाति को साफ़-सुथरा दिखाना हो तो दुसरे वाली पर कीचड़ उछालना अपना धर्म समझते हैं| और यही एक सोच थी जिसनें पहले हमें सदियों तक विदेशियों का दास बना के रखा और अब खुद ही एक दूसरे को कभी धर्म तो कभी आधुनिकता तो कभी बुराइयों के नाम पर सांस्कृतिक दास (cultural slave) बना लेना चाहते हैं|

4) ग्रामीण परिवेश की सुद्ध तस्वीर प्रस्तुत कर सकें ऐसे टी वी धारावाहिक बनाने होंगे|

ठेकेदार: "ना आना इस देश लाडो” जैसे सीरियल ?

मैं: ऐसे सीरयल समाज में विरोधाभाष पैदा करके TRP तो बढ़ा सकते हैं परन्तु जन-साधारण की सच्ची तस्वीर कभी नहीं बन सकते, क्योंकि यह सीरियल, जो परिवेश इसमें दिखाया गया वो वास्तविकता के रत्ती भर भी पास नहीं|

ठेकेदार: आप यह बात कैसे कह सकते हैं?

मैं: मैं बड़े स्तर की तो जानता नहीं परन्तु हाँ मेरे गाँव और साथ लगते जिलों में, कोई ऐसा गाँव नहीं देखा ना सुना जहाँ एक अकेली अम्मा जी की छत्र-छाया रही हो| ऐसे हमारे गावों में ना तो कभी था और ना कभी हो सकता| और कोई करने की सोचेगा भी तो गाँव का हर नागरिक व्यक्तिगत स्तर पर सदियों से इतना जागरूक तो है कि वो ऐसा सोचने वाले की बैंड बजा सके| क्योंकि हमारे गावों का आधार ही प्रजातंत्र रहा है, सत्ता का विकेंद्रीकरण रहा है जो हमारी खापों से हमें विरासत में मिला है (और यह सत्ता का विकेंद्रीकरण ही था कि राजे-रजवाड़े मिट गए परन्तु ये अभी तक भी जिन्दा हैं)| हालाँकि समय और परिस्थिति के अनुसार किसी को भी कटघरे में खड़ा किया जा सकता है, आपको-मुझको-सबको

ठेकेदार: बात वो आपने वो चंद्रावल फिल्म का गाना है ना, जिसमें चन्द्रो, सूरज से कहती है, कि "मैं भी साथ निभाऊ टूंडे लाठ का" वाली कही है एक डीएम सही आंकलन| क्या अन्ना और बाबा रामदेव जैसे आन्दोलन कभी सामाजिक सुधार को ले के भी हो सकेंगे?

मैं: क्यों नहीं हो सकेंगे, अगर ये सारी बातें हो जाएँ जो हमनें ऊपर बतलाई हैं तो जरूर होंगे|

ठेकेदार: आमिर खान के शो में इस चीज की झलक दिखी?

मैं: दिखी, परन्तु जैसे की ऊपर बतलाया उन वजहों से जल्दी ही धूमिल भी हो गई…लेकिन खापों के समाज में बात-बात पर विरोध जताने की परम्परा नहीं है| हां इतना जरूर है कि जिस भी दिन गुस्सा फूट गया तो कुछ ना कुछ एतिहासिक ही करके छोड़ेगा, और यही इनके गुस्से का इतिहास भी रहा है|

ठेकेदार: मुझे आपकी बात से इत्तेफाक है

मैं: और कोई प्रश्न?

ठेकेदार: नहीं आज के लिए इतना ही काफी है, बहुत धन्यवाद! आपसे बातें करके वाकई में लगा कि मुद्दे या तो हर समाज और जाति के बराबर जोर-शोर से उठाए जाएँ अन्यथा ये पक्षपात और दोगलेपन से पूर्ण ही कहलायेंगे|


Now my turn:

मैं: तो फिर अब इन्हीं प्रश्नों को आपकी जाति और समाज के परिवेश में रख के खंगालें?

ठेकेदार: जी वैसे आपकी मर्जी, पर मुझे समझ आ गया कि ऐसे सर्व-समाज की समस्या पे सामूहिक रूप से बैठ के बातचीत करने की बजाये दूसरे की टांग-खिंचाई से कुछ नहीं मिलेगा| मेरी शर्ट तुझसे सफ़ेद कहने या समझने से काम नहीं चलता|

मैं: कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहते कि आप मेरी टांग खींचनें आये थे?

और ठेकेदार ओह माफ़ कीजियेगा पत्रकार हंसनें लगा

मैं: क्या मैं आपकी मंशा को सही भांप पा रहा हूँ?

ठेकेदार: सर, पहले का तो मुझे पता नहीं पर आज के बाद ऐसी मंशा होगी भी तो उसको मार के और निष्पक्ष हो के समाज के मुद्दों को उठाया करूँगा|

मैं: भगवान का शुक्र है! और इसका मतलब है कि कम से कम आपको तो खापों के साथ हो रहा दोगलापन समझ आया|

ठेकेदार: जी काफी भ्रम के बादल छंट गए आपसे बातें होनें से

The end!


निष्कर्ष: अपनी मान्यताओं की स-सम्मान रक्षा कीजिये! हमारे समाज में बुराई है तो भी किसी अपराधी की तरह सर मत झुका के बैठिय! उनके हर सवाल का जवाब ऐसे दिया जा सकता है, जैसे इस बहस में दिया गया है| क्योंकि आपके सिवा अपना और अपने समाज का आपसे बेहतर और बढ़कर सुधारक, चिन्तक और उस पर गौरव करने वाला, कोई नहीं हो सकता|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 28/11/12

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • Ref1

  • Ref2

  • नि. हा. सलाहकार मंडल

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निडाना हाइट्स के व्यक्तिगत विकास परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

HEP Dev.:

हरियाणवी में लेख:
  1. कहावतां की मरम्मत
  2. गाम का मोड़
  3. गाम आळा झोटा
  4. पढ़े-लि्खे जन्यौर
  5. बड़ का पंछी
Articles in English:
  1. HEP Dev.
  2. Price Right
  3. Ethics Bridging
  4. Gotra System
  5. Cultural Slaves
  6. Love Types
  7. Marriage Anthropology
हिंदी में लेख:
  1. धूल का फूल
  2. रक्षा का बंधन
  3. प्रगतिशीलता
  4. मोडर्न ठेकेदार
  5. उद्धरण
  6. ऊंची सोच
  7. दादा नगर खेड़ा
  8. बच्चों पर हैवानियत
  9. साहित्यिक विवेचना
  10. अबोध युवा-पीढ़ी
  11. सांड निडाना
  12. पल्ला-झाड़ संस्कृति
  13. जाट ब्राह्मिणवादिता
  14. पर्दा-प्रथा
  15. पर्दामुक्त हरियाणा
  16. थाली ठुकरानेवाला
  17. इच्छाशक्ति
  18. किशोरावस्था व सेक्स मैनेजमेंट
NH Case Studies:
  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९