भूमिका: हरियाणवी साहित्य क्या है, इसकी कृतियाँ क्या हैं, किस्से और हस्तियाँ कौन है? क्या वाकई में हरियाणवी साहित्य-शून्य हैं, ऐसे प्रश्नों की उत्तर देने की कोशिश है यह लेख| यह लेख उन लोगों के लिए भी एक उत्तर माना जा सकता है जो अक्सर हरियाणा को साहित्यहीन व् इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ मानते और बताते आये हैं:
महाभारत: हरियाणा को साहित्यहीन या साहित्य के क्षेत्र में पीछे बताने वाले ये क्यों भूल जाते हैं कि विश्वप्रख्यात संसार का सबसे बड़ा ग्रन्थ महाभारत हरियाणा की धरती पर हरियाणवियों द्वारा ही रचा गया था| यही वो धरती है जिसपे मह्रिषी वेद-व्यास नें महाभारत रची| विश्व को गीता का ज्ञान देने वाले श्री कृष्ण भी हरियाणवी ही थे, जिन्होनें प्राचीन हरियाणा की बृज-भूमि पर जन्म लिया और कुरुक्षेत्र में आ गीता उपदेश दिया| है कोई इतनी बड़ी पुस्तक जिसको शिक्षाविद से ले व्यापारी, अध्यात्मी से ले ब्रह्मचारी तक अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं?
यहाँ यह बताता चलूँ कि आज का हरियाणा सम्पूर्ण और वास्तविक हरियाणा नहीं है, यह तो उस हरियाणा का एक हिस्सा है जिसके कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद चार टुकड़े कर दिए गए थे, एक टुकड़ा जो आज का हरियाणा है, दूसरा दिल्ली
(इन्द्रप्रस्थ, जो प्राचीन महाभारत काल से इसकी राजनैतिक व् सांस्कृतिक राजधानी होती आई), तीसरा बृज से ले सुदूर हरिद्वार तक का पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड और चौथा जयपुर तक का राजस्थान|
भगवान शिव, उनके पुत्र कार्तिकेय जी और उनकी खापें: हरियाणा को सांस्कृतिक और साहित्यिक स्तर पर पिछड़ा बताने वाले ये भी याद रखें कि भगवान् शिव के उस वक्त के गण
(आज की खापें) भी इसी 1857 से पहले के संगठित भू-भाग पर हुई, जो कि आज भी विद्यमान हैं| योद्धेय शब्द सर्वप्रथम खापों ने अपने नायकों के लिए प्रयोग करना शुरू किया था और इस शब्द का उल्लेख इन संस्थाओं के इतिहास मे भरा पड़ा है| भगवान् शिव जी के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी जो प्रथम खाप संस्थापक कहलाते हैं उनकी कर्मभूमि भी यही हरियाणा रही| हरियाणा की प्रसिद्ध जाट समाज की पुरानी हवेलियों और चौपालों के चौबारों और अटारियों पर मोरध्वज लहराया करते थे जो कि आज भी कहीं-कहीं देखे जा सकते हैं| ऐसी किद्वन्ति है कि यह मोर ध्वज भगवान कार्तिकेय जी के वाहन मोर का प्रतीक है और इसका सीधा नाता खाप से जाता है| वह अलग बात है कि लोग फिल्मों-टी. वी. सीरियलों में इसको इसका उचित श्रेय नहीं देते| महाभारत का इस प्राचीन हरियाणवी भू-भाग
(कुरुक्षेत्र से दिल्ली होते हुए मथुरा तक) पर होना और इसी भू-भाग पर खापों का पाया जाना यह भी प्रमाणित करता है कि प्राचीन हरियाणा कहाँ तक होता था|
योग और योगा जो आज के दिन पूरे विश्वभर में इतना प्रचूर है कि हर सन्यासी से ले corporate Professional वाला इसका अनुसरण करता है, इसकी भी जंगम-संगम और उद्गम भूमि यही हरियाणा है| यही वो हरियाणा है जिसपे मह्रिषी चरक ने योग-सहिंता लिखी| यही वो हरियाणा है जहां पे जन्म ले जहां के गुरुकुलों का अपार योग साहित्य पढ़ बाबा रामदेव
(बाबा रामदेव महेंद्रगढ़ में जन्मे और कालवा (जींद) के गुरुकुल में पढ़े और वहां प्राचार्य भी रहे) जैसे योगगुरु आज पूरे विश्व में योग के तप की पताका फहरा रहे हैं|
यही वो धरती है जिसनें कालिदास जैसे महाकवियों की शाकुंतलम जैसी कालजयी रचनाओं के लिए उसके मुख्य पात्र भरत और शकुंतला दिए|
आदिकवि सूरदास: हरियाणा के प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता श्री रणबीर सिंह बताते हैं कि पंद्रहवीं सदी के आदिकवि संत सूरदास जी का जन्म भी हरियाणा के ब्रज के फरीदाबाद के गाँव सीही में सन 1478 में हुआ और मथुरा उनकी कर्मभूमि बनी| यह हरियाणवी हस्ती मुगल शासक अकबर के दरबारी कवी भी रहे| उनकी कालजयी रचनाएं "सूरसागर", "सूर सारावली" एवं "साहित्य लाहरी" आज भी अमर हैं|
हरियाणवी साहित्य के रचयिता: महाकाल और परमात्मा के असीम पुन्य और कृपा के सभार हरयाणवी संस्कृति में ऐसे
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विरल सितारे हुए हैं जिन्होनें हरियाणवी सांग, रागनियों, आह्लों, शब्दों और सूफी संगीत को नए आयाम दिए| जिनमें मुख्यत: नाम आते हैं दादा लख्मीचंद जी जानकी वाले, उनके गुरु दादा दीपचंद ब्राह्मण जी, पंडित मांगेराम जी, फौजी जाट मेहर सिंह दहिया जी बरोणा वाले, दादा चन्द्रबादी जी, दादा धनपत डूम निन्दानिया जी, दादा भगत भाजे नाई जी सिसाणा वाले, दादा दयाचंद मैना जी, दादा खेमचंद (खीमा) जी बखेता वाले, दादा मान सिंह और आधुनिक समय के क्रांतिकारी कवि डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया जी बरोणा वाले|
हरियाणवी साहित्य के संवाहक: आज के अनूठे नायक के नाम से मशहूर श्री अनूप लाठर नें तो जैसे सिसक रही हरियाणवी साहित्य और संस्कृति को नया जीवनदान दे दिया है| उनकी शुरू की गई अनूठी पहल "
रत्नावली" पिछले 27 सालों से ऐसे आयाम पार कर चुकी है कि इनके कार्य पर पूरा encylopedia बन चुका है, जिसका हर रिकॉर्ड हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविधालय में इन्होनें स्वंय संजो के रखा है| इस संग्रह में 25 से भी ज्यादा हरियाणवी साहित्य और कला की विधियाँ हर साल जुडती जा रही हैं| हरियाणवी रंगमंच के मशहूर नाम डॉक्टर संजीव चौधरी हरियाणवी रंगमंच के नए आयाम जोड़ते रहते हैं|
देवी सिंह प्रभाकर जी, जिनको की आधुनिक हरियाणवी साहित्य का भीष्म पितामह कहा जाता है नें चंद्रावल जैसी कालजयी फ़िल्में दी हैं| यह एक ऐसी फिल्म थी जिसने स्थानीय भाषा की फिल्म होते हुए भी शोले फिल्म से ज्यादा कारोबार किया था और इसका संगीत तो इतना मशहूर हुआ कि लोकप्रियता की सारी ऊंचाईयाँ छूते हुए आज लोकसंगीत बन चुका है|
विवेचना: हम हरियाणवी अपनी चीजों की शेखी नहीं बघारते तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी हमारे साहित्य को तोड़-मरोड़ के पेश करके उसको अपनी रचनाएं बना अपनी साहित्यिक काबिलियत सिद्ध कर लेगा? अगर कोई इस भ्रम में है तो वह सिर्फ तब तक, जब तक हरियाणवी ऊठ के खुद आगे आकर यह नहीं कहते कि हाँ यह मेरी है|
और इस मेरी कहने की जरूरत इनको इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि यह इनके लिए रोजगार नहीं रहा अपितु सम्मान और गौरव की अनुभूति रही है| रेतीले-रेगिस्तानी इलाके हों या सामंतों की धरतियों के इलाके, वहाँ साहित्य को गले से चिपकाने वाले ज्यादा इसलिए मिलते हैं क्योंकि उनके पास रोजगार के दूसरे साधन सीमित होते हैं और जो होते हैं वो अधिकतर सामंतों के आधीन होते आये हैं| इसलिए उनके लिए नाचना-गाना, साहित्य कृतियाँ करना ही रोजगार बनता आया है|
जबकि हरियाणा में आज तक यह कहावत रही है कि यहाँ के गावों में भिखारी नहीं होते
(अब हो जाएँ तो कुछ कह नहीं सकता)| क्योंकि हर
(शिव-महादेव) और हरी
(कृष्ण) इन दोनों आराध्यों की इस धरती पर अपार श्रद्धा रही है और इस इलाके को गंगा-जमुना-सरस्वती की जल-लहरों से सरोबार कर वाकई में हरियाणा (हरयाणा) बनाने का काम खुद इन श्री हरियों ने किया है| जबकि हरयाणा में खाप व्यवस्था होने की वजह से ना ही तो सामन्ती प्रथा बड़े स्तर पर कभी रही और ना ही कभी यहाँ पैर जमा सकी और क्योंकि यह गंगा-जमुना-सरस्वती नदियों का उपजाऊ मैदान रहा है इसलिए यहाँ के लोगों को खेतों से खेती करके ही इतनी आजीविका मिल जाया करती थी कि इनको उसी पर्याप्त रोजगार और रोजी हो जाती थी| और क्योंकि खेती जैसे कार्य बड़ा धैर्य, सयंम, मेहनत और ताकत मांगते आये हैं और इनमें इंसान को इंसान से नहीं अपितु भगवान से सीधा लेन-देन होता है तो इनकी ईश्वर-भक्ति की पिपासा भी शांत हो जाती थी| इसलिए इस धरती पर लोगों नें साहित्य रचा तो जरूर पर कभी ऐसी मजबूरी इस धरती की नहीं रही कि इसके लोगों को बड़े स्तर पर साहित्य को रोजगार बनाना पड़े|
लेकिन अब हरियाणा वालों को भी अपने इस प्रचूर साहित्य के खजाने पे अपने copyright की मुहर लगवानी होंगी| और भगवान् शिव से ले भगवन कृष्ण, योग-विद्या और सांग-रागणियों तक के साहित्य को उचित मंच दे, मान-सम्मान दिलवाने होंगे| दादा लख्मी से ले जाट मेहर सिंह के साहित्यों को अब digital मीडिया में animations, फिल्मी characters बना के उतरना होगा| हरियाणा के वीर योद्धेयों के किस्से-कहानियों पे फिल्में और टी. वी. सीरियल्स बनाने होंगे|
यहाँ एक बात और है जो भूलने की नहीं और वो यह कि हाजिर-जवाबी उसी इलाके के लोगों में ज्यादा होती है जिनको अपने साहित्य का आभास होता है और हरियाणवियों को अपने साहित्य का आभास है इसीलिए तो इनकी हाजिर जवाबी विश्वविख्यात है| इसलिए कोई भी हरयाणा का नेता-राजनेता-साहित्यकार दूसरे साहित्य की प्रसंशा करे सो करे लेकिन ये भी मत भूले कि तुम्हारा अपना साहित्य दुनियां की कई सभ्यताओं की जननी और प्रेरणा रहा है|
डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में प्रयास: कुछ आधुनिक प्रयासों की शुरुआत हो भी चुकी है| जैसे कि सन 2000 में शुरू हुई वेबसाइट
www.jatland.com, इस वेबसाइट नें हरियाणा के योद्धेयों की स्मृतियाँ संजोने में अभूतपूर्व योगदान दिया है| और आज के दिन हरियाणवी साहित्य की एक जीती जगती कृति बन चुकी है|
अप्रैल 2012 में
www.nidanaheights.com वेबसाइट आई, जो आज तक की और विश्व की पहली हरियाणवी भाषा में आई वेबसाइट कहलाई| इस वेबसाइट पर तीन भाषाओँ में वह सब पहलु उतारे गए हैं जो कि किसी गाँव या शहर के इर्द-गिर्द होते या हो सकते हैं| विश्लेषकों नें पाया है कि विकसित देशों के भिन्न-भिन्न गावों-शहरों तक की वेबसाइट इतने पहलु नहीं दिखाती जितने इस साईट ने उतारे हैं और वो भी हरियाणवी के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी में भी|
तीसरा अनूठा प्रयास इस वेबसाइट के लांच होने के ठीक एक वर्ष बाद आया जब मार्च 2013 में "
A1 तहलका हरियाणा" टी. वी. चैनल लांच हुआ| यह चैनल अपने आप में अनूठा चैनल है जो एक साथ हरियाणवी समाज, राजनीती, संस्कृति से जुड़े भिन्न-भिन्न पहलुओं को साथ लाया है|
उम्मीद है की आने वाले समय के साथ ऐसे-प्रयासों में और भी तेजी आये|
विशेष/प्रार्थना: जैसा कि हरियाणवी साहित्य एक अथाह सागर के समरूप है इसीलिए इस लेख में चर्चित, किस्से, कृतियों और हस्तियों में और भी बहुत ऐसे नाम हैं जो कि जैसे-जैसे शोध गहन होता जायेगा जोड़े जायेंगे| इसलिए संभव है कि आपको आपके जानकारी के मुताबिक कोई व्यक्ति, कृति और किस्सा ना मिले तो हमें उससे जरूर अवगत करवाएं|