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गाम के बीच मैं खड़्या वो बड़ का दरख़त अपने आप मैं एक इतिहास था। गाम बसण तै पैहल्यां, अर आज तक बेरा ना कितनी दुनिया नै अपणी छां मैं आराम करवा चुक्या होगा, अर कितने लाख पंच्छियां का बसेरा रह्या होगा वो दर$खत? गाम के अगले पिछले हर राज के राजदार उस बड़ की मौत का इंतजार पिछले तीन दिनां तै सारा गाम कर रह्या था। इस चौमासे मंै हुई लगातार बरसात अर आंधी नै वो ऐसा हिलाया के गिरणा शुरु होग्या। आखर पीढिय़ां का यू गवाह कोई तुणका तो था नीं के एक दम गिर जांदा..। तीन दिन तक लगातार उसका गिरणा जारी रह्या अर चौथे दिन का सूरज लिकड़दे सार ही सब गाम आल़्यां नै देख्या के कुएं आल़े उस बड़ की जड़ां हवा मैं अर टाहणे धरती पै आ चुके थे। पंचायत नै अपणा फर्ज़ निभाया ....ठेकेदार बुलाए गए...बोली करी अर टुकड़े-टुकड़े कर कै वो इतिहास ठेल्यां मैं लद कै आरे पै चाल्या गया। अपणे पाछै गाम के बीच मैं छोड़ गया एक सून्नापण...। उसके बिना जणूं पंच्छियां का चहकणा रुकग्या...बेवारसे डांगरां की छत्र छाया जांदी रही....बालक़ां का लुक-छपाई का खेलणा जांदा रह्या, अधेड़ अर बुड्ढे लोगां का दोपहर मैं ओड़ै तांस बजाण का ठिकाणा छुटग्या। |
छ: महीने पाछै उसे चौंक मैं आ कै रूकी एक लाम्बी कार। बलक़ां मैं हल्ला माच ग्या अक कोई बड़ा आदमी गाम मैं आया सै। कार के पाछै धूल फांकते भागे आए बालक कार कै उरै-परै हाथ लाकै खुश हो रहे थे अक उन्हैं औड़ बड़ी कार नै छेड़ऩ का मौका हाथ लाग ग्या...। कार मैं तै धौले कपड़्यां आल़ा एक बुजुर्ग उतर्या। हाथ मैं खुंडी, आंखां पै चश्मा, कानां तक चड़ी मूछ अर चूंच आल़ी जूतियां....। बालक़ां के समझ मैं तो कोनी आया अक यू कौण सै अर उरै क्यूं आया सै पर उस रौबदार बुड्डे नै देख कै वैं घबरा कै कार तै दूर जरूर हो लिये। वो बुजुर्ग आपणी खूण्डी तै बड़ की जड़ां की धरती नै करेल़दा होया उरै-परै नै लखाण लाग्या। जद उसनै ओड़ै कोई नजर ना आया तो ओठै-ए गोड्डी ढाह कै बैठ ग्या....। इतने मैं धोरै की बैठक तै एक बुजुर्ग बाहर आया अर उसनै देखण लाग्या। अजनबी बुड्डा भी उठ्या अर दोनुआं नै एक दूसरे कान्ही पछाणन आल़ी निगाह तै लखाया।
कार आल़े बुड्डे नै पील़ी मूछ अर पाट्टी धोती आल़े उस बुड्डे ताईं अपणी बाहां मैं भर कै कह्या, ‘‘रै नरसी! पछाण्या नी के? तेरा यार सूं कैप्टन राम सिंह।’’ नरसी नै भी कैप्टन ताईं पछाण लिया अर उसनै पकड़ कै अपणी बैठक मैं लेग्या। अपणे गौंच्छे तै खाट झाड़ कै कैप्टन बिठाया अर अपणे पोते ताईं वाज मार कै चाह का भी हुकम दे दिया।
नरसी नै बुझया, ‘‘अरै कैप्टन! भाई घणे साल पाछै गाम की याद आई रै! जे साल-दो साल होर ना आंदा तो हम तै चाल्ले गऐ होंदे भाई इस दुनिया तै, तनै फेर कौण पिछाणदा भाई।’’
कैप्टन नरसी के पैरां पै गिर कै रोण लाग्या, ‘‘भाई नरसी, माफ करियो, पहल्यां नौकरी अर फेर शहर की हवा नै मेरा तै दिमाग कती-ए खराब कर दिया था। इब मेरा दिमाग ठिकाणे पै आया अर मनै एहसास होया के अपणे फेर अपणे होवैं सै। अपणी मां वाहे माट्टी होवै सै जड़ै जन्म लिया हो। पूरी जिंदगी मैं तो ग$फलत मैं-ए रह्या भाई। भगवान की दया तै मिली नौकरी, पद अर परिवार सब नै मिल कै मेरा दिमाग आसमान पै चढ़ा दिया था। आज बी वो सब बिखरग्या तो फेर उसे बाप जिसे उस बड़ के दरख़त अर थारे जिसे भाईयां की छांह मैं आया था पर वो बाप जिसा बड़ भी कोनी बच्या भाई।’’
इतना कहंदे-ए कैप्टर फूट-फूट कै रोण लाग्या। नरसी पै रुक्या कोनी गया अर कैप्टन नै झिंझोड़ कै पूछण लाग्या, ‘‘अरै इसा के जुल्म होग्या जो यू मेरा शेर सा भाई न्यूं रोया रै?’’ यार के इस प्यार नै कैप्टन के भित्तरले मैं खोद सी मारी अर उसके दिल का दर्द फूट पड़्या।
गाम मैं तै फौज मैं भर्ती हो कै गए उस राम सिंह गाबरू गेल उसकी लुगाई भी गई थी। बखत नै साथ दिया अर टेम के साथ तरक्की भी मिलदी गई। पद बड़ते गए अर राम सिंह की ग$फलत भी भी बड़दी गई। भगवान की दया तै तीन फूल सी बेटियां भी घर में आगी। हंसी-खुशी तै चहकदा परिवार पता नी कितने बरस खिल्या रह्या। इसे बीच कैप्टन नै बड़े शहर मैं एक कोठी बी बणा ली। कदे साल-छ: महीने मैं उड़ै गेड़ा मारदा, नहीं तै अपणी नौकरी मैं-ऐ मस्त रैंह्दा। छोरियां पढ़दी होई कॉलज तक पहैंचगी। बखत नै इसा गेड़ा दिया अक एक-एक कर कै उन तीनों छोरियां नै अपणी मर्जी तै वर तलाश लिये । हालत तै समझौता कर कै कैप्टन राम सिंह नै बी बारी-बारी तै उनके हाथ छोरियां की इच्छा अनुसार पील़े कर दिये। कह्या करैं सै अक जद माड़ा बखत आवै तो उंट पै बैठे माणस नै बी कुत्ता काट लिया करै सै। कैप्टन गेल्यां बी इसी-ऐ बणगी। घर आल़ी नै कैंसर जिसी कसूती बिमारी लाग गी। रिटायर होण पाछै जिन सुख के दिनां खातर शहर मैं घर बणाया था वो बिमारी के दुखां मैं बिकग्या। छोरियां नै बी जद बाप धोरै कुछ नजर ना आया तो वैं बी किनारा करगी। बखत की मार मैं मरदे कैप्टन पै रहगी एक लाम्बी कार अर उस मैं ढोण नै बिमार बुड्डी लुगाई। आखर मैं जीवन भर साथ देण के बचन भरण आल़ी वा भागवान बी राम नै प्यारी होगी। इसे दुख झेलदे कैप्टन नै तेरहवीं तक तो उधार की मांग कै राक्खी आपणी बिकी होई उस कोठी मैं टेम कट्या अर फेर अपणे पुरख्यां के गाम की उस माट्टी की याद आण लागी जड़ै जन्म लेकै सुख का बचपन गुजार्या था। दुख के पहाड़ तलै़ दबे कैप्टन नै अपणे दुखां का सीरी बणन नै वाहे गाम के बीच आल़ा बड़ का दरखत याद आग्या अर गाम कान्हीं रूख कर लिया। वाहे माड़े बखत आल़ी बात उरै बी नजर आई, जिस बड़ ताईं अपणे दुख सुणाण चाल्या था आज वो भी उसकी बाट देख कै कूच कर ग्या था। उस बचपन के यार बड़ की छांह का आसरा बी दगा देग्या।
कैप्टन की सारी दुख भरी कहाणी सुण कै नरसी भी फूट-फूट कै रो पड़्या। बोल्या, ‘‘कोनी भाई राम सिंह दुनिया कोनी रुकदी रै! जिंदगी तो पूरी करणी-ऐ सै। तू उरै मेरे धोरै-ऐ रहैगा इब। तेरा गाम आल़ा पुराणा मकान टूट बेशक गया हो पर तनै सांभण नै आज भी तैयार सै। हम सब मिल कै उसनै ठीक करांगे अर तनै सिर आंख्यां पै राक्खांगे भाई।’’
कैप्टन रोंदे होऐ बोल्या ‘‘वा बड़ तो कोनी रह्या पर उसकी जगां तो आज बी कायम सै। जे गाम मनै इजाजत दे दे तो मैं उसे जगां पै फेर एक बड़ का पौधा लगाणा चाहूं सूं जो फेर उसे तरियां बड़ा दरखत बणैगा अर उसकी छांह मैं अगली पीढिय़ां बेठ कै शायद हमनै याद तो जरूर कर्या करैंगी।’’
आज फेर उसे चौंक मैं एक बड़ का पौधा इतिहास बणाण आल़ा दरखत बणन लागरह्या सै। उसके धोरै चबूतरा अर दो तखत कैप्टन नै बणवा दिये। शुरू मैं दिन की धूप मैं तो वो छां कोनी देवै था पर सांझ नैं अर तडक़ै फेर वाहे ताश की महफिल ओड़ै जमण लाग गी। पांच बरस मैं वा पौधा एक खाट की छांह देण जोग्गा हो लिया। कैप्टन दोपहरी मैं बी उसे छांह का सहारा लेण की कोशिश करदा। एक दिन दोपहर ढल़े पाछै ताश खेलणिये आए अर खाट पै लेटे कैप्टन नै जगाण लागे अक ताऊ उठ आजा पत्ते खेलांगे। पर खाट पै तो बेजान माट्टी पड़ी थी। पूरे गाम नै कैप्टन के मरे का घणा शोक मनाया अर अपणा बुजुर्ग मान कै उसका अंतिम संस्कार कर्या। उसकी याद मैं उसे बड़ तलै़ एक पत्थर ला दिया ताके आण आल़ी पीढिय़ां अपणे बड्यां तै इस कहाणी नै बूझदी रहैं अर अपणी माट्टी के लाल तै शिक्ष्या लेंदी रहैं के कदे आदमी नै अपणी जड़ां तै ना टूटणा चाहिये।