भूमिका: एक ऐसी लघु-नाटिका जो बताती है कि लड़कियों की कमी, भ्रूण-हत्या और उस पर टी. वी., सिनेमा द्वारा लगते अवास्तविक एवं धरातलीय संस्कृति से दूर बनाए जाने वाले कार्यकर्मों के तड़के (छोंक) नें कैसे समाज को अनैतिक एवं दिशाहीन बना दिया है|
मुख्य-पात्र:
रानी: एक मध्यमवर्गीय किसान की बेटी, शहर कालेज से बी. एस. सी. द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है और कालेज के हॉस्टल में रहती है|
रवि: एक पुलिस थानेदार का बेटा, पोली-टैक्निक का डिप्लोमा कर रहा है|
दोनों के पैत्रिक गावों में 70 किलोमीटर की दूरी है| हरियाणवी सामाजिक मान्यता के हिसाब से रानी और रवि दोनों पक्ष के कोई गोत्र शादी के आड़े नहीं आते|
नरेश: रानी का बड़ा भाई, जिसनें लव-मेरिज की है|
सह-पात्र:
नमिता: नरेश की पत्नी व् रानी की भाभी
विमल-रूप सिंह: रानी के माता-पिता
विभा-आनंद: रवि के माता-पिता
जसबीर: नरेश का बचपन का दोस्त, जो बेंगलोर में नौकरी करता है
मामा: रानी की मामी के भाई
अतिथि: गुडगावां वाले लड़के के पिता
दृश्य 1) रानी और रवि की पहली बार बातें और उनका इजहार-ए-मोहब्बत...
मोबाइल फोन की घंटी -ट्रिंग-ट्रिंग...
रानी फ़ोन उठाती है...
रानी: हैलो "who is there?"
रवि: क्या मैं मीना से बात कर सकता हूँ?
रानी: sorry wrong number, यह मीना का नम्बर नहीं है|
रवि: ओह लगता है रॉंग नम्बर मिल गया|
रानी: no prb bye
रवि: जी आपकी आवाज बहुत अच्छी लगी|
रानी फोन काट देती है| दूसरे दिन शाम को फिर फ़ोन आता है|
रानी: हैलो कौन?
रवि: जी मैं रवि?
रानी: i hope की आज नंबर गलती से नहीं लगा होगा और जानबूझ के किसी अनजान लड़की को कोई शरीफ लड़का फोन क्यों करेगा?
रवि: अजी अनजान से ही तो जान-पहचान होती है?
रानी: सॉरी, आप कहीं और अपनी जान-पहचान बढायें| और कृपया करके फिर से फोन ना करें|
और कोई चारा ना चलते देख रवि रानी की कालेज दोस्त से रानी को approach करने के लिए बोलता है और उसकी दोस्त के जरिये रानी से दोस्ती करने में कामयाब रहता है| फिर धीरे-धीरे बातें बढती है और दोनों एक दूजे से रेगुलर बातें करने लग जाते हैं| इस दरम्यान दोनों एक-दूसरे के बारे में जान लेते हैं| फिर एक दिन रवि रानी को प्रोपोज करता है:
रवि: "I love you Rani, would like to be my life-partner?"
रानी: रवि, इस्पे मैं कोई decision नहीं ले सकती, मेरा परिवार ही मेरा life-partner चुनेगा|
रवि: अरे यार क्या तुम उसी नरेश की बहन हो जिसनें love-marriage करी है?
रानी: भाई के मामले का मेरे मामले से क्या लेना?
रवि: लेना क्यों नहीं? यही तो गुलामी है हमारे समाज की औरतों की...लड़के चाहें तो लव-मेरिज करें और लड़की अपनी मर्जी नहीं चला सकती?
रानी, कुछ सोचती है...
रवि: मैं समझ सकता हूँ, तुम वक्त ले लो पर उम्मीद है कि सुबह तक तुम जवाब दे दोगी।
और सुबह रानी रवि को हाँ कर देती है| थोड़े दिन बाद रवि रानी को कहता है कि मैंने मेरे घर पर अपने प्यार के बारे में बता दिया है और मेरी माँ इस इतवार को तुमसे मिलने आ रही है, तुम होस्टल में ही रहना|
रानी: लेकिन तुम्हारी माँ से मैं कैसे मिलुंगी?
रवि: अरे कैसे क्या वैसे ही जैसे हर होने वाली बहु अपनी सास से मिला करती है|
रानी: बच्चू, तुम कुछ ज्यादा जल्दी में नहीं हो? अभी तो हमनें अपनी पढाई भी पूरी नहीं की है, जॉब भी ढूँढनी है और.....तुम्हें पहले मेरे घर पे बात करनी है उसके बाद ही तो मैं मिलूंगी तुम्हारी माँ से?
रवि: अरे यार जमाना बदल चुका है और फिर माँ को तुम्हे देखना भी है|
रानी: anyway... but मुझे जल्दबाजी सी लग रही है|
रवि: no but-what...अरे कुछ जल्दबाजी नहीं, तुम मिलो तो सही उनसे, देखना impress हुए बिना नहीं रहोगी|
रानी: ok baba as u say
दृश्य 2) विभा और रानी की मुलाकात
फिर इतवार को रवि रानी को उसकी माँ विभा से मिलवाता है|
विभा: हाय...मैं सद-के-जावां मेरे बेटे ने क्या हूर-परी पसंद करी है|
रवि: मैं ना कहता था माँ कि तुम्हारी बहुत लाखों में एक है|
रानी: नमस्ते आंटी
(और यह कहते हुए रानी विभा के पैर छूती है)
विभा: अरे बेटी माँ कहो मुझे, आंटी की फॉर्मेलिटी किस बात की।।।
और रानी विभा की इस बात पर गर्दन झुका लेती है| इस बीच रवि वेटर को लंच का आर्डर देता है और तीनों बातें करने लगते हैं| विभा रानी से कहती है:
विभा: बेटी तुमसे मिलने के बाद तो मेरी आत्मा संतुष्ट हो गई, तुम ही मेरी बहु बनने लायक हो...लायक क्या अब तो तुम्हे ही अपनी बहु बनाउंगी|
(पीछे से रानी को सांकेतिक आवाज आती है - अरे कलमुंही ये तो पता कर ले कि ये तेरी सास बनने लायक है भी या नहीं......यूँ ही भावनाओं में बह रही है इनकी)
रानी लाज-शर्म से सुनती रहती है|
विभा: बेटी जरा अपना हाथ आगे करो|
रानी: वो किसलिए आंटी?
विभा: ओहो फिर आंटी, बोला ना मुझे मम्मी कहो|
और रवि रानी को आँख मचलाते हुए देखता है और रानी भी उसकी और देख हाँ की मुद्रा में आती लगती है|
विभा: लाओ-लाओ अपना हाथ आगे करो|
और वो रानी के हाथ में 101 रुपया रखते हुए उसका सर पुचकारती है और कहती है कि
विभा: बेटी मैं पुरानी और देशी औरतों जैसी तो हूँ नहीं कि हर बात पे पहले मर्दों से पूछूं और उनके हां-ना की इंतज़ार करूँ| और फिर जब मुझे मेरी बहु पसंद आ गई है तो अभी के अभी पुचकारने में क्या हर्ज?
रानी: (खुश होते हुए) जी माँ जी|
विभा:ये हुई ना बात...अच्छा बेटी तुम्हारे घर में तुम्हारे रिश्ते की बातें हो रही होंगी, तुम्हारे लिए लड़का देखना भी शुरू कर दिया होगा?
रानी: जी पता नहीं| घरवालों ने मन लगा के पढने को कह रखा है|
विभा: मुझे पता है बेटी, वो तुझे तो तब बताएँगे जब सब कुछ निर्धारित हो चुका होगा| वैसे तुम्हारे भाई नें भी लव-मेरिज करी है तो तेरी मर्जी तो उन्हें जरूर पूछनी चाहिए|
रानी: हाँ माँ जी मर्जी तो पूछेंगे ही|
विभा: और मेरी बहु की मर्जी मैं जानती ही हूँ|
रानी शर्मा जाती है और कनखियों से नीचे देखने लगती है|
विभा: अच्छा बेटी अब मैं चलती हूँ, इस बार छुट्टियों में घर आओ...और अब जब भी तुम दोनों का मन करे तो बता देना तुम्हारी शादी करवा देंगे| मेरी तरफ से तो तुम दोनों को छूट है जितना टाइम चाहे लो|
और यह कह के रानी की माँ विदाई लेती है| शाम को फ़ोन पर।.....
रानी: तुम्हारी माँ नें कुछ जल्दबाजी नहीं कर दी, मैंने अभी तक मेरे घर पे बात भी नहीं की है और वो मुझे शगुन के पैसे भी दे गई जैसे कि सब-कुछ निर्धारित हो गया हो?
रवि: जान, तो अब और क्या बाकी रहा फाइनल होने में? और रही तुम्हारे घरवालों की बात तो बताओ कब आऊं तुम्हारा हाथ मांगनें?
रानी: मैं घर पर बात करके बताती हूँ तुम्हे|
रवि: तुम बेझिझक बात करना अपने घरवालों से, जब तुम्हारा भाई लव-मेरिज कर सकता है तो तुम क्यों नहीं?
रानी, रवि की इस बात का मतलब ना समझने का मुंह सा बनाते हुए, सोचती हुई फोन रख देती है| कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, दोनों की मुलाकाते और बातें भी चलती रही और रानी अपनी डिग्री के final year में पहुँच जाती है| तब एक दिन रानी की माँ का फ़ोन आता है और वह कहती है:
दृश्य 3: रानी और उसकी माँ की वार्तालाप
विमल: के कर रिह सै म्यरी लाडो?
रानी: माँ की लाडो कती ठीक सै, लाडो की माँ के कर रिह सै अर...?
विमल: मेरी लाडली इब त्यरा रय्स्ता करण की सोच रे सां, सोचा सां अक इस साल त्य्री डय्ग्री पूर्ण हो ज्या तै त्यरे हाथ भी पीले कर दयां|
रानी: माँ इबे-के-तावळ उतर रिह सै, इबै तो मैंने मास्टर डिग्री भी करणी सै|
विमल: बेबे तो कर लिए फेर किस नें रोकी सै, पर सुढाळआ रय्स्ता के एक द्य्न म्ह म्यल ज्यागा, इब टोहण लागांगे तो किते जा कें टेम-सर रयस्ता पावैगा| अर म्यरा लाडला बेटा इतनी पढाई पढ़ गया तो मेळ का रय्स्ता टकराणा और भी ओखा|
रानी: माँ मैंने किते नी पार्थे करवाणे इब्बै|
विमल: आच्छा-आच्छा, वा सुवासण-ए के होई जो आपणे मुंह तें ब्याह की कह दे, इन चीजां की टंडवाळ तो माँ-बाप्पां नैं ए करणी पड्या करै|
रानी: अच्छा-अच्छा, तःमें माँ-बाप अर थारे यें घ्य्से-प्यटे टंडवाल करणे|
विमल: छोरी दिखै सै किमें घणी निः उड़न लाग रीह सै तू, त्यरे भाई की पैडां तो निः चाल रिह सै?
रानी (गुस्से से में होते हुए): आहो री माँ, तू भी कडै की कड़ी कडै जोड़ दे सै|
विमल: हे बेटी, माँ सूं त्यरी, उल्याद की सत्तर ढाळ की सोच करणी हों सें, अच्छा तो लाडो सुण एक छोरा देख्या सै त्यरी खात्तर, वा भटक
(मेरै तो ना ल्य्न्दे होयें भी भड़क सी चढ़ ज्या सै, बेरा ना किसी पढ़ाई सै) आळी पढ़ाई कर,
(भटक नहीं बीटेक - रानी correction करवाती है) गुडगाम्मे नौकरी लाग रह्या सै, अर वें तैने देखण आण की कह रेह थे, बता कद बलाण की कहूँ त्यरे बाब्बू नैं|
रानी (ईतना सुन के रानी सोच में पद जाती है) और सकपकाती हुई सी कहती है कि इब्बै टेम कोनी माँ म्यरे धोरै|
विमल: हे तो तू क्यां नैं खाई, इबै देखा-द्य्खाई-ए तो कर कें जांगे| ब्याह की तो हाम्नें भी कह दी सै अक त्यरी डय्ग्री पूरी होण तें पहल्यां कोन्या करां| तू न्यूं कर इस्तें आगले अयत्वार नें घर के गेडा मार ज्या, न्यून तें छोरे आळयां नें भी बला ल्यांगे, ठीक सै?
रानी (खीज सी दिखाते हुए): आच्छा तैड़कैये बता द्युंगी, कालेज का काम देख कें|
विमल: ठीक सै तो याद करकें बता दिए|
और दोनों फोन रख देती हैं| रानी को चिंता होती है और वो रवि को फोन करती है और सारा घटनाक्रम सुनाती है| इस पर रवि कहता है:
रवि: तुम ये पता करके बताओ कि लड़का कहाँ का है और तुम्हें देखने कब आ रहे हैं और हो सके तो उसका फोन नम्बर भी पता कर लेना|
इधर विमला अपनी बहु (नमिता) को कहती है कि बेटी तेरी ननंद की बातों से मुझे कुछ ठीक नहीं लगा, तू एक बार बात कर लेना उससे कि उसनें कोई लड़का तो पसंद नहीं कर रखा| बहु कहती है कि माँ आप ही पूछ लो, तो माँ कहती है कि बेटी वो तेरे को और खुल के बता सकेगी| और इधर रानी की भाभी (नमिता) उसको फोन करती है और सारा भेद लेती है और रानी रवि के बारे में भाभी को बता देती है| तो भाभी रानी को घर आने को कहती है और कहती है कि घर पे जो उसके रिश्ते की बात चल रही है वो रवि को अभी ना बताये| फिर रानी की माँ और भाभी तय करते हैं कि घर के मर्दों को रवि के बारे में रानी के घर आने के बाद उसके रूबरू बात करके ही बताया जाए| और फिर वो दिन आता है जब रानी अपने घर आती है और उसी दिन उधर से उसको देखने वाले भी आते हैं| चूंकि रिश्ता उसके मामी की जान-पहचान से था तो रानी की मामी के भाई भी लड़के वालों के साथ आते हैं| और उनके रानी के घर पहुँचने के बाद सारा घटनाक्रम कैसे नाटकीय मोड़ लेता है एक देखने और परखने वाली बात है|
दृश्य 4) रानी के रिश्ते की बात और इसके साथ जुड़ा घटनाक्रम
जब रानी के घरवाले देखते हैं कि रानी को देखने सिर्फ उसकी मामी के भाई और एक आदमी, कुल मिला के 2 जन आये हैं तो रानी के घरवालों का चेहरा उतर सा जाता है, क्योंकि उनसे अंतिम बात के आधार पर 5-6 मर्द-औरत रानी को देखने के लिए आने वाले थे| नरेश और उसके चाचा आगे बढ़कर अतिथियों को बैठक में बैठाते हैं| और नरेश के चचेरे भाई उनको चाय-नाश्ता परोश्ते हैं तो एक मामा, रूप सिंह को धीरे से कहता है कि हम चाय-नाश्ता करने नहीं आये हैं| और उनके मुंह से यह बात सुन रूप सिंह की हवाइयां उड़ जाती है| इसके बाद अतिथि कहता हैं कि हमें सिर्फ आप और नरेश से बात करनी है इसलिए हमें एकांत चाहिए| और सबको बाहर भेज दिया जाता है, तब अतिथि कहते हैं कि हमारे लड़के के पास किसी रवि नाम के लड़के का फ़ोन आया था और उसनें यहाँ रिश्ता करने से मना किया है और कहा है कि वो आपकी बेटी से प्यार करता है और वो दोनों शादी करने वाले हैं| और लड़के नें ये भी कहा कि उसकी माँ तो लड़की के हाथ रुपया दे बहु का रोका भी कर चुकी है| इतना सुन नरेश और उसके पिता के चेहरे सफ़ेद हो जाते हैं और वो गहन सकते में आ जाते हैं| सारी परिस्थिति को संभालते हुए नरेश अतिथियों से कहता है कि
नरेश: मौसा जी हम इन सब बातों से अनभिग हैं|
अतिथि: बेटा मैं समझ सकता हूँ, लेकिन यह सब होते हुए हमारे लिए लड़की को देखने का कोई औचित्य नहीं बचता| भला होगा अगर तुम पहले अपनी बहन से इस पर स्पष्टीकरण लो|
नरेश (गले का थूक अंदर निगलते हुए): तो मौसा जी आप चाय-पानी ले लीजिये तब तक मैं अंदर बात करके आता हूँ|
अतिथि: चाय-पानी तो हम ले लेंगे बेटा, अगर होने वाले रिश्तेदार के नाते ना लेंगे तो आम जानकार के नाते लेंगे, लेकिन पहले नाता स्पष्ट करो|
नरेश सोच में पड़ते हुए
अतिथि: क्या हुआ बेटा?
नरेश: मौसा जी बाहर मेरे पडोसी-और चचेरे परिवार खड़े ताक रहे होंगे कि ऐसा क्या बातें चल रही हैं?
मामा: बेटा, चिंता मत करो, हम इस मुलाकात का दोनों ही परिस्थतियों में सुखद अंत करके जायेंगे और हमारी तरफ से किसी को भनक भी नहीं लगने देंगे| तुम जाओ और बात करके आओ|
और नरेश मन में ये विचार लेते हुए चलता है कि ये सब अनहोनी कैसे हो गई| नरेश जब घर के अंदर जाता है तो रानी को अकेले में बुला के रवि के बारे में पूछता है और रानी रवि को जानती है इस बात की हाँ भर लेती है और रवि से ही शादी करने की बात कहती है| इस पर नरेश चुप खींच जाता है और वापिस बैठक में आ के यथास्थिति से अतिथियों को अवगत करवाता है| नरेश के पिता तो गर्दन नीची किये चुपचाप ऐसे बैठे थे जैसे कि उनको लकवा मार गया हो|
अतिथि: बेटा, मुझे नहीं लगता की तुम्हारी बहन इस रिश्ते को तैयार होगी, लेकिन मैंने भी दुनिया देखी है और समझता हूँ कि तुमने अपने पडोसी-रिश्तेदारों को हमारे आने की बता रखी होगी, इसलिए वो हमारे ना आने पर सवाल ना उठायें, इसलिए सब-कुछ पहले से जानते हुए भी हम दोनों आये हैं, अन्यथा हमारे घर पर तो इस रिश्ते को ले के पहले ही सबका मन खट्टा हो चुका है| अब हम चाहेंगे कि आप लोकदिखावे के लिए लड़की को दिखाने की रश्म पूरी कर दो और हमें इजाजत दो|
नरेश (अतिथि की यह बात सुन उसकी मामी के भाई से हाथ जोड़ के कहता है): मामा हमें इतना दुःख इसका नहीं होगा कि मेरी बहन की वजह से यह क्या हो गया अपितु इसका ज्यादा रहेगा कि इतने मान-मर्यादा और समाज की उंच-नीच की समझ रखने वाले परिवार में मेरी बहन का रिश्ता नहीं हो पाया|
मामा (इस पर मामा कहते हैं): बेटा अपने घर की मर्यादाएं हमें ही संभालनी होती हैं| अब हम यहाँ ज्यादा नहीं रुकेंगे, सिर्फ चाय-नाश्ता ही लेंगे, खाने का कार्यकम स्थगित करवा देना और जल्दी से लड़की को दिखाने की फॉर्मेलिटी पूरी करो और हमें विदाई दो|
तब नरेश वापिस अंदर जाता है और लड़की को कहता है कि वो लोग अंदर आ रहे हैं| इस पर रानी यह सोच कर भड़क जाती है कि उसके साथ जबरदस्ती हो रही है और वो इसका प्रतिकार करती है तो नरेश कहता है कि तेरे को सारी बातें बाद में बताऊंगा फिलहाल जैसे कह रहा हूँ वैसे कर| तो लड़की यह सुन बागी सी हो जाती है और बरगलाने लगती है कि मैं कोई सब्जीमंडी की सब्जी नहीं हूँ कि जहां चाहोगे वहाँ बेच दोगे| यह सुन नरेश गुस्से की घूँट पी कर रह जाता है और अपनी पत्नी को रानी को ठीक सूरत में रहने को कहता है, जिसपे रानी फिर भड़क जाती है और घुर्राने सी लग जाती है|
रानी: वाह रे पुरुष-प्रधान समाज के ठेकदारो, खुद लव-मेरिज किये फिरते हो और अपनी ही बहन के अरमानों का गला घोंटते हो|
यह सुन नरेश फिर चुप खींच जाता है और अपनी पत्नी को कहता है कि इसको समझा कि जब तक अतिथि चले ना जाएँ, अपने इन महिलावादी प्रखर विचारों के बाणों को काबू में रखे और यह कहते हुए कि मैं उनको अंदर ला रहा हूँ, बाहर निकल जाता है| और ऐसे वो अतिथि अंदर आ कर रानी को देख गए और चाय-नाश्ता कर अपने घर चले गए| और फिर बाकी पड़ोसियों और चचेरे परिवारों को भी विदाई दी गई|
दृश्य 5) रानी का प्रतिकार, नरेश और रानी के संवाद
सबके जाते ही रानी घर में ही मोर्चा खोल देती है और नरेश के अंदर आते ही उसपे झल्ला पड़ती है:
रानी: क्यूँ रे भाई यो हे प्यार सै तेरा? निभा दिया बाहण-भाई का प्यार?
नरेश: हाँ बाहण नैं तो बड़ा मौका दे दिया प्यार न्यभाण का? एक इह्सी बाहण गैल्यां क्यां का प्यार न्यभवावैगी तू जो आपणे भाई का ईतणा भी मुंह-माथा फूंकण जोगी ना होई अक रे मैं पहल्यां तें-ए किसे नैं पसंद कर रिह सूं?
यह सुण रानी को जैसे सांप सूंघ जाता है| थोड़ी देर चुप रह के बडबड़ाती जुबान में कहती है...
रानी: मेरी कोए गलती कोन्या, मैंने तो माँ अर भाभी ताहीं बता दी थी|
भाभी: तो त्यरे उस फलहरी नैं या कुणसी सूझी अक उसनें आडै तो किसे धोरै फोन करया नहीं अर सीधा जा खडकाया गुडगाम्मे आले धोरै फोन?
रानी फिर चुप?
विमल: ए दुष्टणी किसे ठाईगरे गेल गळ-मट्ठे हो रीह सै, अक जिसनें न्यूं भी निह बेरा अक रय्स्त्याँ की लाज क्युगर पुगाई जाया करै? उसका के मतबल था गुद्गाम्में फोन खटकाण का?
रानी: ओ ठाईगरा कोनी, इन्जिनीरिंग करै सै अर उसकी माँ तो इतनी मोडर्न अर सुधि लुगाई सै जो मैंने कती स्यर-आय्न्ख्याँ पै बैठा कें राखैगी|
विमल (रानी की पीठ पर गधाके मारते हुए): हे बेशां इब न्यूं और बता दिए अक फेरे तो नहीं लिए बैठी सै जो सास्सु लग के गुण गान लाग रिह सै?
रानी: वा मैंने कालेज म्ह म्यलण आई थी...
विमल: अर तूं उसतें म्यल भी ली......
(सकते में आते हुए) हे! उत देशां की, मर-ज्या तैने किते कुए-जोहड़ पान्दे हों हो तो...... तैने उस बन्यहोण का मुंह-माथा तै फूंक देणा था अक मेरै तें के म्यलणा, म्यलणा सै तो म्यरे घर क्यां तें म्यलो? अर वा भी ढेड-ठाईगरी ब्यन्होण म्यरी, उत्तां कै जाणी अक्ल तें पैदल, उसनें तो ईतणी अक्ल कमाई होगी अक भाज कें बड़ रिह सै उसकी सुसराड़ म्ह?
रानी: तैने के बेरा अनपढ़-गंवार नें, आजकाल तो सारै न्यूं ए चाल रीह सै?
विमल: अर ज्यांते इस हरियाणे की मान-मर्यादा का त्यरे बरगी
"पढ़ी-ल्यखी ज्न्योरा" नें सूड ठा राख्या सै, हे नपूति ज्यब या बात उठी थी उस टेम म्यरा मुंह-माथा निह फूंक सकै थी के?
रानी: बता द्यूं अर तो थामें कुण्से उती घरा बला ल्यो अर?
नरेश: बस यो हे विश्वास था के एक बाहण का आपणे भाई गेल जिसकी दुहाई तू इब थोड़ी हांण पहल्यां दे रही थी?
रानी सूं-सां-चप जाती है| और नरेश चिंता-ग्रस्त घर से बाहर चला जाता है| तब नरेश को उसके सबसे गहरे दोस्त जसबीर की याद आती है जो कि बंगलोर में मेनेजर की नौकरी कर रहा होता है|
दृश्य 6): नरेश और जसबीर की बातें
जसबीर: हैलो नरेश, क्या हाल हैं भाई?
दोनों परिवारों की राजी-ख़ुशी पूछने के बाद नरेश जसबीर को अपने घर के ताजे घटनाक्रम से अवगत करवा सलाह मांगता है कि क्या करूँ? इस पर जसबीर नरेश को क्या कहता है...
जसबीर: देख नरेश, मैं जानता हूँ कि से इस मामले में कई मौकों पर चूक हुई है, जैसे की जब उस लड़के की माँ उससे मिलने आई तो रानी नें मिलने से मन कर देना था और कहना था कि मेरे घरवालों से पहले मिले| और दूसरी गलती रवि ने करी गुडगावां वाले लड़के को फोन करके| इससे एक बात तो सिद्ध होती है कि रानी को रवि और उसकी माँ को परखना नहीं आया|
नरेश: यार तू जानता है इस उम्र में होश के ऊपर भावना ज्यादा हावी रहती है, और मुझे आहत इस बात से हुई कि उसने मेरे से बताना भी जरूरी नहीं समझा| और फिर उसको मेरे से डरने का भी कोई कारण नहीं होना चाहिए था क्योंकि वो मेरी और तेरी भाभी की लव-मेरिज कैसे हुई इसका पूरा वाकया अपनी आँखों से देख चुकी थी| कैसे मेरे ससुर ने मेरे नौकरी लगने से पहले तक हमारे रिश्ते को कोई तवज्जो नहीं दी थी और फिर नौकरी लगते ही कैसे खुद ही घर आ के रिश्ता कर गए|
जसबीर: भाई यही ताज्जुब मुझे भी हो रहा है|
नरेश: तो अब मैं क्या करूँ।।।ये तो आज लड़के वाले समझदार आदमी थे, इज्जत रख ली हमारी और समाज में ऐसे सन्देश गया कि जैसे सब ठीक-ठाक था, लेकिन क्या ठीक है वो तो हम ही जानते हैं|
जसबीर: भाई मेरी बात माने तो तू एक बार लड़के के परिवार से मिल ले...
नरेश: जसबीर तू सब कुछ जानते हुए भी ऐसे कह रहा है?
जसबीर: भाई, तू मेरे पे भरोसा रख- आजकल के बच्चों को जब तक साड़ी तस्वीर खोल के उनके सामने ना रखो तो उनको ऐसा ही लगता है कि जैसे उनकी भावनाओं को दबाया जा रहा है|
नरेश: लेकिन उनके घर में जा के देखूंगा क्या? क्या अभी तक जो उस लड़के और उसकी माँ ने अमर्यादित हरकतें करी है वो काफी नहीं उस परिवार की मान-मर्यादा और चाल-चलन को समझने के लिए?
जसबीर: ये तू और मैं समझ सकते हैं, रानी तो नहीं ना? उसकी आँखों पे तो अंधे खुलेपन (मोडर्न प्यार) का पर्दा पड़ा हुआ है? उसकी तसल्ली के लिए तुझे ये सब करना होगा| वरना वो और तो जो करेगी सो हम सोच भी नहीं सकते, साथ-साथ तुम्हे भी टीस रहेगी कि मैंने खुद तो लव-मेरिज करी और अपनी बहन पे बात आई तो उसका दुश्मन बन गया...
नरेश, थोड़ी देर चुप रहता है|
जसबीर: आगे बोलता है कि देख 2 बातों से रानी को इतना तो समझ आ ही जाना चाहिए कि उसकी पसंद
"पढ़ी-लिखी ज्न्योंरों वाली" category की है|
नरेश: ठीक है मैं जाता हूँ उसके घर|
फिर नरेश रानी को कह के रवि के घर मिलने और उसका घर देखने चला जाता है| इस पर रानी बहुत खुश होती है|
दृश्य 7) नरेश का रवि के घर उसके माता-पिता से मिलना
दृश्य 8) वापिस आकर रानी को रवि के माता-पिता से मुलाकात को बयाँ करना
दृश्य 9) नाटक का संदेश
Note: The remaining parts of the play would soon be updated...thank you for your patience....