परिवेश: उत्तरी भारत के खापलैंड कहे जाने वाले क्षेत्र के दिल हरियाणा का खाप की प्रजातांत्रिक मान्यताओं वाला एक गाँव|
कहानी के मुख्य पात्र:
जसबीर सिंह: 4 साल से कनाडा में रह रहे हैं, 27 साल के हैं और मैनेजमेंट सेक्टर में नौकरी करते हैं|
चौधरी रतन सिंह नम्बरदार (जसबीर सिंह के पिता): स्थानीय राजनीती में पैठ रखते हैं| दादा-पड़दादाओं के जमाने से गाँव और गुवाहंड में परिवार की खानदानी छवि है| लोकतान्त्रिक सामाजिक छवि के इंसान माने जाते हैं|
धीर काका: (जसबीर के घर के सीरी - हरियाणा में नौकर-मालिक नाम का कोई रिश्ता नहीं होता, यहाँ सीरी-साझी का रिश्ता होता है) - तीन बच्चों (दो लड़के, एक लड़की) के विदुर (पत्नी स्वर्गवासी हो चुकी हैं)पिता, गाँव की चमार (रविदासी) जाति से हैं|
पृथ्वी ताऊ: जाति से कुम्हार हैं, गाँव के सबसे बड़े और व्यस्त चौराहे पर पिछले 25 साल से किरयाने की दुकान चलाते हैं, कभी-कभी खबर आती रहती है कि ये चोरी-छुपे अवैध शराब पिलाते हैं अपने ख़ास ग्राहकों को| इनको गाँव का खबरी भी कहा जाता है, गाँव के सबसे बड़े और व्यस्त चौराहे 25 साल से दुकान जो है सो गाँव की हर बात इनके पास रहती है और बात को इधर-उधर करने के भी उस्ताद हैं|
दादी घसो आळी: गाँव की सबसे तेज-तर्रार औरत, वो कहते हैं ना की देश के प्रधानमन्त्री को भी थप्पड़ मार दे फिर तू कौन ढेढ़-ठाईगरा, वो वाली नश्ल हैं| पर हैं गाँव का मौड़ (हरियाणा में गाँव का मौड़ उसको कहा जाता है जो गाँव के संस्कारों-मान्यताओं को पालने, निभाने, दूसरों से पलवाने और निभवाने में गाँव का आदर्श माना जाता है, फिर वो चाहे पुरुष हो या महिला)|
दादा छत्तर सिंह सरपंच: गाँव के वर्तमान सरपंच हैं|
चाँदकौर उर्फ़ नीता: जसबीर की छोटी बहन, शहर कोलेज से बी. एस. सी. कर रही है|
प्रेमकौर: जसबीर की माँ
अन्य पात्र: अन्य छोटे पात्र जहाँ जरूरी होगा नाटिका के मध्य में विवरण दिया जायेगा|
भूमिका: अति-आत्मविश्वास में भाव-विभोर हो भावनावश उल्टे राह चलने वाले इंसान को बौराया हुआ कहते हैं| गावों में खाते-पीते घरों पे चाटुकारिता और घर को बर्बादी की राह पर धकेलने के षड्यंत्रकारियों की कारगुजारी की पर्दे के पीछे की बदनीयती की कोशिशों को उजागर करती हरियाणवी परिवेश की लघु नाटिका|
जसबीर 4 साल बाद जब गाँव में छुट्टियाँ मनाने आता है तो वहाँ के हालात और घर के हालात देखकर, वो ऐसे कदम उठाता है कि एक लघु कहानी बनती है| यही इस कहानी में दिखाया गया है कि कहानी में क्या-क्या होता है|
नाट्य रूपान्तर्ण: अब इससे आगे कहानी की भाषा हरयाणवी रहेगी|
दृश्य 1: जसबीर के घर की बैठक (जनवासा) व् बैठक के साथ लगता पशुओं का चाराग्रह, बैठक में रत्न सिंह और पृथ्वी ताऊ|
पृथ्वी: नम्बरदार छोरा कनाडा चल्या गया तै थारी पीढ़ियाँ तैं चाल्दी आई चौधराट की कती पक्की नीम सी गढ़गी, नीह तै न्यूं कह्या करें अक तीसरी पीढ़ी पै आ कें तो उलाद की मती फिरै ए फिरै| चोखा होया बेटे नैं चौथी पीढ़ी म्ह भी झंडे गाढ़ राखे सें सबाशी के|
रत्न सिंह: रै पिरथी भाई, सब ऊपर आळए की दुआ सै, ओ चाहवै तो आंबा कै आख ला दे अर चाहवै तै आखां कै आम्ब| तू न्युकर आज किम्में सीळक सी का ब्योंत लागै सै, किमें गोळी-द्वाई ल्या दे तरी दुकान पै तें|
पृथ्वी: रै म्र्यार वा प्रसुं दी थी उत्ती इतणा तोळआ डकार ग्या|
रत्न सिंह: रै बैरी इतनै छोरा छुट्टी आ रह्या सै ना, इतनें उसका ज्यक्र भी ना ठाइये|
पृथ्वी: रै नम्बरदार तू भी कुणसी दुनिया म्ह रह सै, छोरा बदेश जा लिया, बाप-बेटे गेल बेठ कें पीण का जमाना आ लिया अर तू आज भी इन स्य्धानता की सयोड़ बांधे हाँडै सै? तन्नें के लागै सै छोरे नैं उडै इब लग यें चीज भी शरू नि करी होंगी| ले देख आज स्पेशल अंग्रेजी ल्याया सुं तरी खातर, मार दो घूँट अर देख फेर जै सीळक लोवै भी लाग ले तो|
(और पृथ्वी अपनी धोती की बंधेज से बोतल निकाल के नम्बरदार की ओर करता है और पैग बनाना शुरू कर देता है)
तभी जसबीर बैठक में प्रवेश करता है| इधर जसबीर की पदचाप सुनते ही पृथ्वी के हाथ काँप जाते हैं और वो आनन्-फानन में बोतल को चाराग्रह में चारे पर फेंक्नें की कोशिश करता है पर बोतल गलत जगह जा पड़ती है और उसके पड़ने से कांच के खड़कने और टूटने की आवाज आती है, जो बैठक में अंदर आ रहे जसबीर के कानों में भी पड़ जाती है और जसबीर इस पर सीधा बैठक से होते हुए पशुवाड़े की तरफ जा कर देखता है कि बोतल टूटी पड़ी है और शराब फर्श पर फ़ैल गई है| और जब वह मुड़कर देखता है तो प्रथ्वी ताऊ वहाँ से फुर्र हो चुका होता है| और जसबीर भी रत्न सिंह की तरफ देखता हुआ बिना कुछ बोले बाहर निकलने लगता है, तो पीछे से रत्न सिंह कहता है:
रत्न सिंह: बेटा म्यरै खांसी-खेर सा हो रह्या था तो मँगवा ली थी|
जसबीर: खांसी-खेर खात्तर मंगवाई थी तो फेंकी क्यां ना की? और इतणा कहते ही वो बैठक से सीधा घर जाता है|
वह रात भर बैठ कर सोचता है कि वो अभी-अभी जो जनवासे में देख के आया है उस समस्या का क्या हल हो? उसनें पूरी रात सोचा और माँ-बहन से बात करने की सोची पर फिर कुछ सोचकर निर्णय करता है कि कल एक पंचायत बुलाई जाए पूरे गाँव की और इसमें औरतें और मर्द दोनों शामिल हों| जब औरतों के शामिल होने की बात आई तो उसे बहन को साथ लेना जरूरी था इसलिए उसनें बहन को सारी बात बताई और दोनों भाई-बहनों ने निर्धारित किया कि हम माँ को यह सब पहले नहीं बताएँगे| और फिर अगले दिन पंचायत को बुलाने की कार्यवाही हुई और औरतों को भी बुलाया गया| आगे का दृश्य ऐसे है:
दृश्य 2: चौपाल की सीढ़ियों के आगे खाटें और मूढे लगे हुए हैं जिनपे औरतें बैठी हुई हैं|
जसबीर: थामें आड़े क्यूँ बेठी सो दादी? ऊपर परस म्ह चालो नैं?
दादी घसो आळी: हामें उरे-ए-ठीक सां बेटा! बीरबानी-परस म्ह पाँ नहीं धरया करदी, ज्यब लग अक मामला बीर का ना हो| तू जा कें कह तरी बात हामें आड़े बेठी सुणां सां|
जसबीर: पर दादी इब वें जमाने जा लिए?
दादी घसो आळी (तांव म्ह आकें): ए रे लम्बरदार के पोते
(जब गाँव की बुड्डी पूरे तांव में आती हैं तो आपको अपनी औकात ऐसे ही दिखाया करती हैं), घणी चौधर तो छाँटे ना, तू के ला रह्या सै यें स्यर पै धोळए न्यूँ-ए घाम म्ह बेठ कें ना करे| अर पढ़ण-ल्यखण का यु कुणसा मतलब अक तू आपणी दादियाँ नैं न्यू बतावैगा अक हामनै कड़े बेठणा सै? म्हारी मान-मर्याद सें किमें, जै कनाडा जा कें भूल ग्या हो तै याद द्यवाऊं? गाम की परस म्हारी मर्याद सै आर मर्याद क्यूकर न्यभाणी हो सै या तू स्य्खावैगा?
जसबीर: दादी फेर भी परस म्ह चाल कें बेठण म्ह के हर्ज सै?
दादी घसो आळी: हे बेबे यु काल का टिंगर ढेढ़-ठाईगरा काबू म्ह ए ना आ रह्या, छोरे जिस दयन तें गाम म्ह आई याहे सीख पाई इतनें जीवां सां (बेरा नी को 10 बरस के सां अक 5 के) हाम्नें म्हारी मर्याद पुगाण दे| म्हारे मरें पाछै चाहे इस परस म्ह रंडियां के नाच करा लियो ताह्में आज के टिंगर|
जसबीर दादी की दुहाईयों के आगे अणबोल हो जाता है.....
दादी घसो आळी: जा इब जुन्सी बात बाबत यु टंडीरा ठा रह्या सै पंचात का ओ शरू कर| हामें सुणां सां अर जड़े भी बात धरणी दिखैगी बीच-बीच म्ह धरदी रह्वांगी|
फिर पता नहीं दादी को क्या हुआ कि जसबीर के सर पर हाथ रख कर बोली की....
दादी घसो आळी: बेटा भोत खुसी महसूस होई ज्यब बेरा लाग्या अक मेरे बेटे नैं लुगाई भी एक इह्सी पंचात म्ह आपणी रै देण बलाई जिसमें उनका कोई मुकद्दमा निह| जा मय्र्रे बेटा आपणी बात शरू कर|
दृश्य 3: चौपाल के अंदर - सभी की जुबान पर जिक्र होता है कि आखिर जसबीर ने यह पंचायत क्यों बुलाई है| इसी बीच जसबीर परस के अंदर आ एक जगह देख बैठ जाता है| और तब दादा छत्तर सिंह बोलना शुरू करते हैं| जसबीर के कहे मुताबिक जसबीर के पिता रत्न सिंह और पृथ्वी ताऊ भी पंचायत में बैठे हुए थे|
दादा छत्तर सिंह: भाई गाम-राम नैं म्यरी राम-राम| आज की पंचात जसबीर के कहे तें बलाई गई सै| अर क्युंके जसबीर कह रह्या था अक मेरे मुद्दे का बीर-मर्द दोनुआ तैं सरोकार सै तो मैं इस पंचायत का संयोजक होण के नाते, दादी घसो आळी अर गाम के सबतें सबूति (चरित्रवान अर समाजिक बुराइयाँ के चिंतक) दादा प्रीतु नैं इस पंचायत का फैसला करण तान्हीं उनके नाम प्रस्तावित करूँ सूं, जै किसे नें इन नाम्मा पै ऐतराज हो तो ओ हाथ ठा सकै सै?
सभी हां में सहमती जता देते हैं|
दादा छत्तर सिंह: तो दादी घसो आळी अर दादा प्रीतु, इब मैंने आज्ञा दें अक मैं आगै की कारवाही शरू करूँ|
दादा प्रीतु: ल्यो राम का ना बेटा!
दादी घसो आळी: ले नगर खेड़े का ना आर सुमर कें राम शरू कर बेटा|
फिर दादा छत्तर सिंह, जसबीर को बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं| यहाँ यह बताना जरूरी है जैसे कि दादी घसो आळी नें परस में आने से मना कर दिया था सो वो पंचायत परस के बाहरी आँगन में बैठी हुई थी ताकि सामने वाले जनवासे (बैठक/दरवाजा) के आगे बैठी औरतें भी पूरी कार्यवाही देख सकें|
जसबीर: सारे गाम-राम नैं म्यरी राम-राम और दादा नगर खेड़ा नैं सत-सत नमन| मैं सीधी बात थारे स्याह्मी सरल शब्दां म्ह धरुंगा| मेरे प्यता कै हामें तीन उलाद सां म्यरा बड्डा भाई, मैं और मेरी छोटी बेबे|
जसबीर फ़्लैश-बैक में जा के कहते हुए: ज्यब मैं छोटा सा था तो मेरे बड्डे भाई नैं एक बै म्यरी बुआ के छोरे के ब्याह म्ह दारु पी ली थी| ब्याह म्ह तो म्यरे प्यता नैं किमें नि कह्या अर सिरफ़ धमका कें बड्डा भाई घर कानै रवाना कर दिया| पर ज्यब हम ब्याह तें सारे घरां आये तो म्यरे प्यता नैं हम दोनूं भाई घर के उपरले चौबारे म्ह बलाए, म्यरे प्यता के हाथ में तूत की कामची थी, अर बयना किमें बोलें पूरी म्यरे भाई के गात पै तोड़ दी| सारे पड़ोसी पुकारदे रहए अक रै ना मारै छोरे कै इतणा पर किसे की नहीं सुणी, अर इतनें पीटण का कारण नहीं बताया तो मनै भी डर लागे गया अक के बात होगी, दारु आळआ क्य्स्सा तो काल-ए खत्म हो लिया था, आज के बात होगी फेर तें| पड़ोसी तो के म्यरी दादी, दादा अर माँ किसे की निः सुणी|
ईतणे म्ह ताऊ पिरथी (जो सभा में ही बैठे सुन रहे थे), ऊपर आया अर इसनें मेरे प्यता के हाथ तें कामची खोस्सी|
ताऊ पिरथी: रै छोरे नैं ज्यान तें ए मारैगा के?
रत्न सिंह: रै मैं इनकै ऊपर इस बात बाबत पिस्सा ना फून्कदा शहर म्ह पढ़ाण के नाम पै, अक यू ब्याह-वाणयां म्ह दारु पी कें म्यरी श्य्क्षा अर प्यार की धज्जी उड़ान्दा हांडे| जै न्यूं ए फूंकना होगा तो म आपै ए ना फूंक ल्यूँगा| अर कान खोल कें सुण ले रै जसबीर तू भी (मेरी तरफ देख के बोले), जै यें हे राह पकड़नी हों तैने भी तो इब्बे बता दिए| खेताँ म्ह भतेरा काम सै| पढ़ाई पढ़ कें भी जै न्यूं ए खोणी सै तो ठा कस्सी अर हो ले खेताँ कायन अर निः तै म्यरे भतीज माणस बण कें चालिए|
ना तै इसकी (बड्डे भाई की तरफ ईशारा करते हुए) तो इतणी इज्जत राख-ए दी अक यू घरां ल्या कें पिटया, तू जै इन एल-फैलां म्ह पाग्या तो घरां ल्याण की तोहमत नहीं ठाऊँगा, उड़े-की-उड़े खाल उधेड़ी जागी त्यरी| ताऊ पिरथी अवाक सुनते रह गए अर म्यरे प्यता जी इतणा कहके तले उतरगे|
जसबीर फ़्लैश-बैक से वापिस आ के कहते हुए: ओ दयन सै अर आज का दयन, मैंने कदे इन बैलां कायन जाण का मन भी होया तो बड्डे भाई की कामचियाँ खाल उतरदी के सीन याद आ ज्यांदे| याड़े गैल-गैल याह भी कह द्यूं अक म्यरे प्यता की याहे सख्ती मेरी कामयाबी का एक कारण भी सै|
पर आज काह्णी उल्टी हो रीह सै| कामची अर बड्डे भाई के किरदार बदले दिखें सें
(सारी सभा यह सुन अवाक सी हो गई)| मनै पूरा निः बेरा अक जड़ कित लग जा ली सें
(और फिर जसबीर कल रात का बैठक में हुआ पूरा वाकया पंचायत के आगे रख देता है)|
तो आज म्यरे बाप नैं इह्सी के नौबत आगी अक उसे की बात उसपै उल्टी पड़दी दिखें सें? ओहे पिरथी ताऊ जो कदे बड्डे भाई नैं छुड़ाण आया था आज खुद म्यरे बाप नैं बोतल ल्या-ल्या देवे सै? और इतणा कहके जसबीर का गला भर आता है और आँखें नम हो जाती है|
यू ओ नेवा कर दिया म्यरे प्यता नैं अक "
जाट कै लाग्गी हंगाई अर म्हास बेच कें घोड़ी ब्य्साई"
(यानी उसूलों को भूलना नाश की राही हो सै) अर भला कदे फळी सें जाट-जमींदारा कै यें चीज? म्यरे जितणे भी डब्बी-प्यारे सें शहरां म्ह सबकै आगै म्यरे बाप की दारु अर एल-फैलां तैं दूर रहण की बोर अर मरोड़ द्य्खाई मनै| पर काल रात की सच्चाई देख कें मेरा काळजा भरया जा सै| इब सारी बात थारे स्यह्मी सै| मनै म्यरी बात धरदी, बीच-बीच म्ह जो भी बात फेर बोलण की कहोगे तो मैं आड़े ए बैठा सूं|
थोड़ी देर के लिए परस के बाहर-भीतर सन्नाटा पसर जाता है क्योंकि सभी आश्चर्यचकित थे| शायद बहुतों के लिए तो यह पहला ऐसा मुकदमा था जिसमें एक बेटे ने अपने पिता को इतनें आड़े हाथों लिया हो| और यह एक ऐसी संस्कृति में जिसमें कि पिता को हर गुनाह लगभग माफ़ी के बराबर होता है वहाँ उठाया गया था| सब जसबीर की बेबाकी को देख कर हैरान थे| उनको समझ नहीं आ रहा था कि जसबीर को अपने पिता के खिलाफ बोलने की सजा दी जाए या उसनें जो बातें उठाई थी उन पर गंभीरता अपनाई जाए| जो भी था जसबीर ने बात की बुनियाद ही इस तरीके से रखी थी कि कोई उसको नकार नहीं सकता था|
इधर पृथ्वी ताऊ और चौधरी रत्न सिंह दोनों पसोपेश में थे| उनको शायद दूर-दूर तक भी उम्मीद नहीं रही होगी कि उनका बेटा उनको ऐसे कटघरे में ला खड़ा करेगा| लेकिन पिता से भी जसबीर को वह उम्मीद नहीं थी जो उसनें कल रात देखा था| वैसे तो जसबीर की बेबाकी और स्वच्छ मन से सब बचपन से वाकिफ थे पर आज का उसका बागी वाला रूप देखकर सब अंतर्ध्यान से हुए जा रहे थे जैसे कि खुद से ही सवाल कर रहे हों|
फिर दादा प्रितु ने दादी घसो आळी को परस के भीतर आने को कहा, जिसपर दादी पहले तो मना कर देती है पर फिर दादा प्रितु ने कहा कि बेटी अगर मामला तुम्हारा होता और यही पुरुष समाज तुम्हें परस में चढने को कहता तो भी तो तुम आती ही (वैसे भी पुराने जमानें में जब खाप-सेनायें होती थी तो उनमें महिलाओं की टुकडियां भी होती थी जो परस/चौपालें रही हों या रण का मैदान हर जगह चढती थी|) और अब तो क्योंकि आप और मुझे फैसले की बागडोर सौंपी गई है इसलिए आपको अंदर आना चाहिए|
तो इस पर दादी, नीता के हाथ कहलवाती हैं कि ठीक है मैं आ तो जाउंगी पर सारी उम्र एक पित्सरे की जो लिहाज पुगाई है वो पूरी रखूंगी, इसलिए मेरी तरफ से जो भी बात कहेगी वो नीता कहेगी| तो इस पर दादा प्रितु की सहमती मिलने के बाद दादी घसो आळी और नीता परस के आंगन में आ जाते हैं और दादा प्रितु के बगल वाला पलंग उनके लिए खाली कर दिया जाता है और वहां दादी और नीता बैठ जाती हैं|
आगे की कार्यवाही:
दादा प्रितु: बहु इह्सा मामला मनै म्यरी ज्य्न्दगी म्ह पहली बर सुणया सै| अर क्युंके दोनूं पक्ष गाम के इह्से हीरे खड़े सें जिनपै गाम-गुव्हांड दोनुआ नैं अभमान रह्या सै| ना तो जसबीर की बात नकारी जा सकदी, अर ना रत्न सिंह बरगे नेकद्य्ल, उस्सुलां आळए अर किसे का किमें भी ना हाडंण-मोसणिये माणस नैं न्यूं फरमान सुणा सकदे| तै बताओ बेटी तःमें के कहो सो?
दादी घसो आळी नीता के जरिये: कह दे बेटी त्यरे दादा नैं अक पिरथी अर रत्ने की बात भी ली जा|
(और नीता दादा को दादी की राय बताती है)
दादा प्रितु: हां भाई रत्न अर पिरथी जो बात छोरे नैं कही सें यें साच्ची सें ? थामें दोनूं आपणा पक्ष धरो|
(और साथ-साथ दादा प्रितु जसबीर से कहते हैं कि की पोता जै तैने इनकी कोई सी बात के जबाब पै किमें कहणा हो तै बीच-बीच म्ह पूछ्दा रहिये| और जसबीर ठीक सै दादा बोल के, हाँ में सर हिला देता है|)
रत्न सिंह: दादा म्यरे बेटे की बातां नैं म्यरी छाती चौड़ी कर दी| पर मनै इतणी भी कहणी सै अक काल मेरै खेर-खांसी सी का ब्यस्वास सा था अर मनै तो पिरथी पै गोळी-बूटी मांगी थी अर यू दारु की शीशी पहल्यां तैं ए धोती की गांठ म्ह बाँध रह्या था अर बोल्या अक नम्बरदार इसकी एक घूँट ले ले, इतनें म्ह जसबीर के आण का सूत बेठ ग्या| अर इसनें देख लिया| बस और किमें बात ना थी|
जसबीर: आच्छा, किमें बात ना थी तो बोतल फैंकी क्यूँ थी, खेर-खांसी के ना की तो घरां धरी-ए-ना रह सै| बल्क मेरे दादा तान्हीं कई बर तो मनै आपणे हाथां 2-4 चम्मच जितणी दवाई के ह्य्साब की अपणे हाथां दी सै, अर म्यरी दादी बाळकपण म्ह दवाई के ह्य्साब की तो हाम्नें द्य्न्दी आई?
पिरथी ताऊ: वा तो बेटा मैं सहम सा गया था तनै देख कें, अर म्यरे पै बगाई गई|
जसबीर: ताऊ इब कितणी ए दलील दे ले, पर भीतर म्ह काळआ होयें ब्यना कोए न्यूं तोळ नी तारया करदा| इतणा तो मैं भी जानूँ सूं अक खेर-खांसी की दवाई के ह्य्साब की लेण की बात होंदी तो त्यरी भरी बोतल की जरूत कोयन थी, घर तैं मांग ली होंदी म्यरे बाप नैं? अर एक बात बता त्यरी दुकान तो परचून की सै ना फेर तेरे धोरै बोतल का के काम?
ताऊ पिरथी यह सुनते ही सु-सां-चप गये|
जसबीर (दादा प्रितु से की तरफ हो आगे बोलते हुए): दादा मनै नी बेरा इन दोनुआ की दलीलां म्ह कितणी सच्चाई सै, अर ना मनै इस्तें आगै जाणनी, पर म्यरे घर म्ह सावधानी बरतण ताहीं इतणी-ए घटना भतेरी सै| बाळकपण तैं देख्दा अर सुणदा आया अक ताऊ पिरथी, दुकान म बिठा लोगां नैं दारू भी प्यावै सै| पर कदे यकीन निह करया किसे का पर इब मनै बेरा लाग ग्या अक "
जिसकै लागै ओहे जानै"| अ तो इब ताऊ पिरथी नैं भी करड़ा करो अर असल तो गाम म्ह तैं सारे ठेके ठुवाओं अर निह तो उन्नें जरूर बंद करवाओ जुणसे गाम की फ्यरणी भीतर सें| गाम की रिहास म्ह ठेका निह होणा चहिये एक भी|
दादा प्रितु: हां भाई रत्ने अर पिरथी और किमें कहणा चाओ सो?
(दोनों ना में गर्दन हिला देते हैं)
दादा प्रितु: हां भाई गाम-राम नैं किमें बात धरणी हो इस्पै?
इतणे म्ह बाहर जनवासे में बैठी औरतों की आवाज आती ह: दादा और किमें हो ना हो पर इस दारू का त्यजाम जरूर बंधणा चहिये|
ढेढ़ बेशर्म इह्से-उघाड़े हो रे सें दादी देखदे न ताई, चाची देखदे न बुआ| सांझ होंदे तो गाम की गाळआं म्ह को बहु-बेटी का लिकड़ना मुहाल हो रह्या सै| हामें तो न्यूं कहवां सां अक जुणसा भी दारू पीयें पा ज्या, उस्से नें घाघरी पहरा, गधे पै बिठा, गाम तैं बाहर काढ आओ| अर जुणसा भी दुकानदार परचून की दुकान की आड़ म्ह दारू अर नशे बेचण के काम करदा हो उसती समाजिक स्तर पै सजा भी दयो अर उसकी दुकान कै ताळआ तो जड़-ए-जड़ दयो|
और सभी औरतों का एक स्वर गुस्सा देख पूरी पंचात में सुई गिर जाए तो उसकी भी आवाज सुनाई दे इतना सन्नाटा पसर जाता है|
पंचात में अभी तक एक-आध जिसकी आँखें खुल बंद हो रही थी वो भी पूरे होश में आने की कोशिश सी करता दिखता है|
फिर दादा प्रितु खड़े होते हैं और बोलते हैं: हां भाई किसे-और नैं किमें कहणा सै अक हामें जावां व्यचार करण?
सभी की तरफ से आगे कोई बात ना आते देख दादा प्रितु, नीता और दादी घसो आळी आज के मसले पर अलग से विचार करने बैठ जाते हैं| क्योंकि दादी घसो आळी अपने पित्सरे (दादा प्रितु दादी के पति के चचेरे भाई थे, इसलिए वो उनके पित्सरे लगते थे) की कायण रखना चाहती थी इसलिए वो अपने विचार नीता के जरिये ही दादा को बता रही थी| तब फिर थोड़ी देर बाद दादा बाहर आते हैं और अपनी बात सबके समक्ष रखते हैं|
दादा प्रितु: दादा नगर खेड़ा अर गाम-राम की आत्मा अर मर्याद नैं साक्षी धर बात कहूँगा, अर या बात मेरी अर बहु घासों आळी की सलाह का न्यचोड़ सै| इस न्यचोड़ के पांच ब्यंदु सें:
- रत्न सिंह क्योंके गाम का मर्यादा आळआ माणस सै अर इस्तें पहल्यां किसे भी ढाळ गाम-राम की बुराई म्ह नी आया अर या घटना इसके घर के भीतर बयना किसे माणस नैं शारीरक अघात पुन्ह्चायें होई सै पर जसबीर नैं इस्तें मानस्यक अघात पुंच्या सै तो रत्न सिंह आगै तैं या बात फेर ना बनै इसका ध्यान राखै अर आपणी उलाद की उस खात्तर गर्व अर सम्मान की भावना नैं टूटण ना दे| माँ-बाप बाळक की मरोड़ हों सें अर या मरोड़ टूट ज्या तो समझो बाळक टूट ज्या अर बाळक टूट ज्या तै घर-बास्सा जांदा रह्या करै|
- पिरथी आगै तीन रस्ते सें:
1) पिरथी की दुकान म इब की इब च्यार माणस जांगे (जिनमें एक पिरथी के घर का होगा, एक मैं खुद, तीसरा सरपंच अर चौथी बहु घसो आळी) अर छानबीन करकें आंगे अक उसमें दारु तो निः सै|
2) पिरथी चावै तो इब्बे बता दे, जै दारु सै दुकान म्ह तो पंचात खत्म होंदें पिरथी का पहला काम होगा उस दारु नें जडे तें ल्याया था उड़े उल्टी पुंचाण का अर आपणे पिस्से आगले तैं उल्टे ले ले| अर गाम-राम आगै इबै-ए कहदे अक आगै मेरी दुकान म्ह इह्सा काम निः होगा|
3) जै पिरथी दूसरा रस्ता ले सै तो उसनें यू काम करण के 5 घंटे दिए जांगे, इब 3 तीन बजे सें, साँझ के 8 बजे हाम च्यारूं माणस त्यरी दुकान पै देखण आवेंगे जै दारु फेर भी दुकान म्ह पाई तै सारी बोतल उड़े-की-उड़े फौड़ी जांगी अर दुकान तुरत-पाँ दुकान बंद करा दी जागी| अर फेर आगले छह मिह्नें तान्हीं पिरथी गाम म्ह कोए दुकान नि कर सकैगा| पिरथी म्यरी पान्चुं बात पूरी होयें पाछै आपणी रै बता दे|
-
गाम म्ह जितणी भी दुकानां म्ह दारु ब्य्कै सै वें सारी 2 दयन के भीतर-भीतर बंद कर दी जाँ| अर जुन्सी दुकान जिस मकसद ताहीं खोली गई सै उसमें उसे मकसद का कारोबार करया जा| घाट-तें-घाट दारु-अफीम-गांजा-सल्फा जिसे नशे तो किसे भी दुकान म्ह निः पा ज्यां| इसमें सारै ढाळ की दुकान आगी, फेर चाहये वा नाइपणे की हो, हलवाई की हो, परचून की हो, बिजळी आळए की हो अर चह्ये डाकदार की हो| 2 दयन पाछै जै कोए यें काम करदा पाया गया तो उसकी दुकनदारी छह मिह्नें ताहीं बंद|
- जै कोए दारु पी कें नीच तकदा पाया अक किसे नें तंग करदा पाया जा, ओ फेर 2 साल लग गाम की किसे भी समाजिक कारवाही (ब्याह-वाणयां तैं ले समाजिक पंचात्यां म्ह बोलण तान्हीं) म्ह अग्रिम पंक्ति म्ह नि खड्या हो सकैगा| दादा नगर खेड़ा का गाम-गोत म्ह सबनें भाण-बेटी-बुआ मानण का बचन गाम की छत्तीस ज्यात का माणस पुगावैगा|
- गाम के सरपंच तैं अनुरोध सै अक गाम के स्याणे बाळकां का (छोरे-छोरी दोनूं होंगे इसमें) एक इह्सा दस्ता बणाया जा जो जसबीर बरगे ब्य्चारां का, जागरूक सोच का अर गाम-गोत के नयम नैं पुगाणिया हो| इस दस्ते का काम होगा गाम के हर बौराए माणस पै नजर राखण का| जिसतें के म्हारे बाळक आपणे आप नैं ज्यम्मेदार भी समझें अर गाम की सदाबहार मान्यताओं नैं भी सीखें|
इब जुणसा-जुणसा भी ब्यंदु जुणसे बाब्य्त कह्या गया सै, वें आपणी बात धरें ताके फेर पंचात की करवाई पूरी करी जा|
रत्न सिंह: दादा प्रितु थामनैं गाम का कोळआ क्यूँ कह्या जा सै आज एक बर फेर थमनें आपणे व्य्चारां म्ह दर्शा दिया| मनै म्यरे बेटे पै नाज सै अर इस गाम-राम नैं साक्षी धर इस पंचात के पञ्चां नैं अर म्यरे बेटे नैं व्यस्वास द्यलाऊं सूं अक मैं जिह्सी म्यरी छवि रही सै उसकै ह्य्साब तें गाम-राम की सेवा करूँगा| अर दादा प्रितु अर दादी घसो आळी नैं गाम नैं नशे तें मुक्त करण का जो प्रस्ताव धरया सै, उसनें पूरा लागू कारवांण तान्हीं गाम-राम की गेल खयड़ा पाउँगा|
पिरथी ताऊ: दादा प्रितु अर दादी घसो आळी, मैं गाम-राम कै आगै झूठ निः बोल सकदा अर कबुलूं सुं के म्यरी दूकान म्ह दारु सै| अर अगले 5 घंटा भीतर तो के मैं इबै-ए जा कें सारी दारु उल्टी दे आऊं सूं अर गेल गाम-राम नैं दादा नगर खेड़ा की सूं ठा कें कहूँ सूं अक म्यरी दुकान म्ह आगै तें दारु निः पावैगी|
सरपंच: गाम म्ह जितणे भी अवैध दारु दारु के कारोबारी सें सबकी धर-पकड़ करी जागी अर ज्यूकर दादा प्रितु अर दादी घसो आळी नैं सुझाई सै न्यूं की न्यूं बात लागू करी जांगी|
जसबीर (बोलने के लिए हाथ खड़ा करता है) तो सरपंच उसको बोलने के लिए बोलते हैं|
जसबीर: अर जो गाम म्ह वैध दारु आळए सें उनका के राह?
सरपंच: बेटा उन्नें कूण रोक सकै सै, उनकै धोरै तो कनूनी लीसेंस सै?
जसबीर: दादा, उन्नें थामें रोक सको सो| घाट-तें-घाट इतणा जाप्ता तो थाह्में बांधे-ए सको सो अक आपणे गाम की सीम म्ह कोए दारु का ठेका निः खुल सकदा|
सरपंच: वा क्यूकर भाई?
नीता: दादा, हरियाणा सरकार नैं हरियाणे के गामां के हर सरपंच तान्हीं यू अधिकार दे राख्या सै अक जै सरपंच चाहवै तो गाम म्ह कोए दारु का ठेका निः खुल सकदा, गैर-कनूनी तो के कानूनन भी कोए निः खोल सकदा|
सरपंच (अचरज जताते हुए): आँ रै रत्न सिंघ यें दोनूं इतणे स्याणे बाळक तेरै ए क्यूँ होये भाई?
रत्न सिंह: रै चाचा, इनकी जुणसी भी बात पै हाँ भरै वा पुगाणी भी होगी, सूखी हाँ ना भरिये, निः तो जानै सै ना इन्नें मैं (इनका बाप) ए ना छोड्या पंचात म्ह ल्या खड्या करण तें तो इह्सा ना हो अक इब तो जोश बणे महौल म्ह हां भर ज्या अर फेर टोह्या भी ना पावै?
और सारी सभा ठहाकों से गूँज उठती है...
सरपंच (चुटकी लेते हुए):
भाई बात तो तू ठीक कह रह्या सै भतीजे, इब आपां बड्डयां नैं भी करडा होणा पडैगा, आजकाय्ल के बाळक वें ना रहए जो बन्याँ कारण मान ज्यांगे| आपां इनतें उम्मीद धरां सा तो इब इनकी भी उमीदां पै खरा उतरणा पड़ेगा|
और नीता की तरफ देखकर कहते हैं कि बेटी तू सोच ना करै, जै सरपंच के इह्से अधिकार हों सें तो मैं गाम-राम नें वादा करूँ सूं अक गाम म्ह दारु निः दिखण द्यूंगा|
और फिर सरपंच दादा प्रितु और दादी घसो आळी से पंचायत खत्म करने की इजाजत मांगते हैं|
तब दादा प्रितु यह कहते हुए पंचायत खत्म करने की घोषणा करते हैं: आज की पंचात म्ह उठे मुद्द्यां पै जै बाद म किसे का कोए रै देण का व्यचार बनै तै सरपंच तान्हीं जरूर पुंचा दें| जो युवा दस्ता बनाण की बात करी गई सै उसकी आगली कारवाही, खात्तर मैं जसबीर नैं कहूँगा अक ओ तड़के आंडीवारें जड़े उसनें ठीक लागै उस बैठक म्ह अखाड़े आळए छोहर्ट अर बाकी दुसरे जो भी इस उद्देश्य म जुड़ना चंदे हों, सबनें कठ्ठा कर ले|
इब सारे म्यल कें दादा नगर खेड़े का जयकारा करेंगे अर उस पाछै आज की पंचात पाट्टी समझी जा|
दादा प्रितु: बोल दादा नगर खेड़े की!
सबकी मिलकर आवाज आती है: जय!
दादा प्रितु: बोल आर्य नगरी की!
सबकी मिलकर आवाज आती है:
जय!
दृश्य 4: माँ का गुस्सा
दोनों भाई-बहन पंचायत से निकलते ही घर की ओर हो लेते हैं और जैसे ही घर की देहळ पर पैर रखते हैं तो अंदर से आवाज आती है|
प्रेमकौर: जै देहळआं कै भीतर पाँ भी धरया तो दोनुआं के टाकणे काट दयुंगी, चले जाओ उडै-ए जडै तैं आपणे बाप नैं पंचात म्ह खड्या करणा सीख कें आये सो|
दोनों भाई-बहन देहळ पर ही रुक जाते हैं और सोच में पड़ जाते हैं, क्योंकि माँ से छुपा के यह सब करने का उनका फैसला ऐसे माँ का गुस्सा बनकर उनपे टूटेगा, दोनों ने नहीं सोची थी| 10-15 मिनट तक दोनों वहीँ खड़े रहते हैं, तब उनके पिता आते हैं और दोनों को देखकर अनमने मन से उनके पास से निकल कर घर के अंदर चले जाते हैं| तब नीता आपराधिक बोध सा मुंह बनाते हुए कहती है|
नीता: बाब्बु, माँ छोह म्ह सै|
रतन सिंह: किसकै, मेरै ऊपर? अर थामें दोनूं देहळ पै क्यूँ खड़े सो?
प्रेमकौर: ना तो और इनका आरता तारुं? थाह्में
(जसबीर और नीता को डांटते हुए) गए नि दोनूं इब लग? थारे तैं के कही थी?
रतन सिंह (क्षणिक व्यंगात्मक हंसी मुख पर लाते हुए): आच्छया तो काह्णी या हो रिह सै, अक गाम नैं सुधरणिये, माँ की आंटा म्ह फंसे खड़े सें|
प्रेमकौर: माँ की आंटा म्ह नी, एक बीर की आंटा म्ह, इह्सी बीर की आंटा म्ह अक जिसके खसम की भरी पंचात म्ह शाख खो दी हो, अर वा भी म्यरी आपणी ऊलाद नैं, मैं भी किसनें रोण लाग रिह सूं, एक यू बाप जुणसा बैठक म्ह के-के खेल रचाएं जा सै मनै धनभाग नैं बेरा-ए कोन्या, अर के यें दो बेअक्ली ऊलाद, जिन्नें आपणे जामणियां-ए पंचात म्ह जा खड़े करे|
नीता: जामणियां नैं नी माँ, स्यरफ जामण आळए नैं|
प्रेमकौर: लोरही, चप हो जिये, आगै तैं जबान भी काटणा सीखगी? जामण आळआ खड्या कर दिया इह्सी जामण आळी कर दी| माँ की इज्जत बाप तैं न्यारी कद रहई? जडे जामण आळए की गईन जामण आळी की तो आप-ए-ना रूळगी?
प्रेमकौर के गुस्से के आगे ना रतन सिंह की कुछ चल रही थी और नीता और जसबीर को तो आज जैसे माँ घर निकाला ही देने के गुस्से में थी| इस बीच प्रेमकौर, रत्न सिंह से
प्रेमकौर: ले फूंक ले भीतर म्ह, आज जी तो करदा नी तेरे तान्हीं टिकड़ भी देण का, पर तेरे तैं ऊपरला हाथ तो या ऊलाद फेरगी|
(और रत्न सिंह चप-चाप खाणे की थाळी पकड़ लेता है)
रत्न सिंह: इन बाळकां नैं तो दे दे अर इनती भीतर भी बला ले?
प्रेमकौर: मेरै गेल्लयाँ मखौल ना करै, इन्नें तो आज द्युंगी पकवान, पाँ तो टेको यें देहळ के भीतर, टाकणे नी काट द्यूं तो इनके|
रत्न सिंह: रै बोळी ज्यब मैं-ए-छोह म्ह कोन्या इनपै, जुणसे नैं यें पंचात म्ह लेग्ये तो तू क्यूँ सांस ऊपर-तलै कर री सै?
प्रेमकौर: म्यरे जी नैं घणी कांह्स मत ना करै, म्यरा जी काच्चा होया पड्या सै आज, किमें उल्टी सोच ज्यांगी म,
(थोड़ी देर सांस लेने के बाद), म जा कें सोऊँ सूं अर यें रोटी खा कें कुवाड़ मार जाइये बाहर तें
(और प्रेमकौर अपने सौपे में सोने चली जाती है)
रत्न सिंह: रै इबै तो 7 ए बजे सें, अर धीरा रोटी खाग्या?
प्रेमकौर: अम्बै
रत्न सिंह खाना खाने के बाद, देहळ पर आता है और नीता और जसबीर को चुपचाप अंदर जाने को कहता है| अंदर रसोई में जा के नीता देखती है, कि माँ ने रोटियों के लिए आट्टा तो लगा के छोड़ा है पर उनके लिए रोटियाँ अभी तक नहीं बनाई थी| यह देख जसबीर उसको चुप-चाप बाहर चलने की कहता है और दोनों बाहर आके बातें करते हैं|
जसबीर: लागै सै ज्यब आपां देहळ पै आये नैं, उस टेम माँ रोटी बणाण लाग रिह थी अर आपां नैं आया देख उसकी छोह उठया अर वा एध्म-ब्यचाळए चुल्हा छोड़ भीतर चली गई| माँ आज इतणी सेल्ही मानण आळी ना सै|
नीता: हां भाई, लागै तो न्यूं-ए सै, कोए ना मैं घाल ल्युंगी आपणी रोटी तो|
जसबीर: ना चप-चाप जा कें आपणे कमरे म्ह पढ़ ले, रसोई म्ह किमें भी खुडक्या तो माँ फेर बाहर आ ज्यागी| जद लग माँ का छोह सीळआ नि हो ज्यांदा, आपां नैं चप-चाप रहणा पडैगा| तू जा भीतर मैं आया थोड़ी हाण म|
नीता: ठीक सै भाई तोळआ आईये|
और जसबीर चौराहे की दुकानों की तरफ निकल लेता है| जब वो पिरथी ताऊ की दूकान के नजदीक चल रहा होता है तो उसको दुकान के अंदर से "धीरा काका (उनका सीरी)" बोलता हुआ सुनता है|
दृश्य 5: पृथ्वी की दुकान पर
धीरा काका: रै पिरथी काढ़ भी किमें गळआ तर करण नैं|
पिरथी: रै ठणोंई, इब्ब तो पंचातडे तैं क्युकरे प्यंड छुटा कें आया सूं, तू लुवा दे म्यरी दुकान कै ताळआ आगले 6 मिह्न्याँ खात्तर, आज कोनी किमें भी सारी दे दी ठा कें छोरे (पिरथी ताऊ का बेटा) तान्हीं उल्टी भुडा कें आण तान्हीं| अर इतनैं यू थारा साझी (जसबीर) छुट्टी आ रह्या सै, इतनें भूल कें भी डा ना ठा दिए, इस बह्न्योंण का|
धीरा: रै इह्सी-इह्सी पंचात तो रोज होंदी रह सें, देख लिए तड़कैया हो ल्यण दे जै किसे कै न्यूं भी चों पा ज्या तो अक काहल पंचात म्ह के होया था| देखै नैं म्यरयार, किते कूण-खाब्बे म्ह पड़ी होगी म्यरे जोगी तो|
धीरे काका की इस हठधर्मिता को देख कर, जसबीर से रहा नहीं गया और वह दूकान में कदम रखता है|
जसबीर: काका, त्यरी इस दारु की बायण के कारण, म्यरी काकी घुट-घुट कें मरगी| म्यरे भाह्ण-भाई ब्यना माँ के बणा दिए, इब्बी सब्र निह तरै?
दुकान म्ह सन्नाटा पसर जाता है|
पिरथी ताऊ: भाई देख ले जसबीर, मनै तो आन्दें सारी की सारी दारु, भाई हाथ उल्टी पुन्ह्चा दी सै, पर यू धीरा सै अक मानदा ए कोन्या|
जसबीर: हां ताऊ, सुणी मनै (फिर धीरे की ओर देखते हुए), काका इब खड्या हो ले तू आडै तें अर चपचाप घरां काहन डिगर जाइए| रै काका खुद की निः तो म्यरी बेबे की तो ख्यास कर ले, बय्ना माँ की तो वा ऊँ, ऊपर तैं ब्याहण जोगी ऊँ होरी, तैने उसकी सोच भी सै अक निः?
सारै दयन तो आडै खेताँ म्ह खुंडे जा, सांझ के टेम टुन्न हो कें चस ले सै, उस ब्यचारी नैं भी कदे न्यूं सुख सांस आवैगी अक म्यरे बाप नैं सोच सै म्यरी?
धीरा (भावुक होते हुए): बेटा ईतणें हक़ तें तो कदे, त्यरी बेबे के माँ जायां (अपने दोनों बेटों के बारे में), नैं भी कोय्न हड़काया मैं| अर ज्यब उसकै त्यरे जिह्से भाई सें तो मनै के सोच? (थोड़ा रुक के ) एक बात कहूँ म्यरे बीर, गाम की धी की च्यन्ता अर कद्र करण बाबत गाम-राम आज लग सुक्के-ए-रुक्के मारदा देख्या, पर साच्चा "गाम अर गोत" का व्रत पुगाणिया त्यरे बरगा निः पाया| बेटा बैरी भी त्यरे इस स्यालपणे की म्यसाल दें सें|
रै मैं एक दलित सूं, कदे म्यरे बाळकां की ईतणी हक़ तैं च्यन्ता करण की बात तो दूर, किसे नैं उनकै स्यर पै मयस्स भरें भी हाथ नि फेरया, (फिर थोड़ा सा और भावुक होते हुए), बेटा पराणे जमान्याँ म्ह जो खापाँ के प्रधान हुया करदे नैं, वें देख्ये त्यरे बरगे सुभा अर म्यथन क...नहीं तै जमाना बीत ग्या था, पर त्यरे बरगा सीधी बात कहणीया माणस नि देख्या, (फिर पंचात के बारे कहते हुए) मनै सारा बेरा लाग लिया बेटा, प्यर्थी नैं सारी बता दी|
बेटा इसे -ए (जसबीर की छाती पर उंगळी रखते हुए) म्यथन के माणस तो असली जाट कुहाया करदे , आज के सै, आज आळए तो समाज की ल्याज, शर्म अर मर्याद पाळन के ह्य्साब तैं पास्यंग भी कोन्यां उतरें पराणे पंचातियाँ कै|
जसबीर: काका, मैनैं दीखै सै ब्योंत आज तो धुर खेतां म्ह तें-ए चढ़ा कें आ रह्या सै?
धीरा (चुप होते हुए): बेटा मैं भी ईब घराँ चाल्लुं सूं, जुग-जुग जियो म्यरे शेर, तेरै बरगे सबकै लाल हो ज्यां तो के मजाल अक जै आगली-अर-पाछली कोए सी भी पीढ़ी म्ह किमें उहल-पेल हो ज्या तै!
जसबीर: काका, त्यरे पाँ ठय्काणे ना सें, चाल तनै घरां छोड़ आऊं|
और जसबीर अपनी माँ के गुस्से के बारे में सोचता हुआ, धीरे को ले धीरे के घर की हो चल देता है|