व्यक्तिगत विकास
 
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हरयाणवी मनोज कुमार
!!!......एक बच्चा जन्म के वक्त बच्चा नहीं होता, तथापि यह तो उसको विरासत में मिलने वाले माहौल व् परिवेश से निर्धारित होता है| एक बच्चे को माता-पिता जितनी समझ जन्म से होती है| अत: माता-पिता उसको उस स्तर का मान के उसका विकास करें|......!!!
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By: P. K. Malik on 21/05/2015 for NHReL
जब विदेश में एक ‘हिन्दू-खत्री-भाई’ का ‘हरयाणवी-म्यूजिक’ से करवाया समझौता|
जिंदगी का वो पल जब 'पूर्व और पश्चिम' वाले मनोज कुमार जैसा किरदार वास्तविक जिंदगी में निभाया!

Description
बात आज से तकरीबन दो साल पहले की है| मैं फ्रांस के लिल्ल शहर में रहता हूँ| अक्सर यहां हम भारतीय अपने तीज-त्यौहार या किसी भाई को शैक्षणिक डिग्री मिलने अथवा नौकरी लगने की ख़ुशी में गेट-टूगेदर (get-together) व् पार्टियां करते रहते हैं| और पार्टी जिसको दी जा रही होती है, उसको छोड़ के बाकी सब पार्टी का फाइनेंस शेयरिंग (finance sharing) के जरिये खुद मैनेज (manage) करते हैं| तीज-त्यौहार की पार्टी हो तो सब अपना हिस्सा डालते हैं| अक्सर ऐसी पार्टियों में पुराने दोस्तों के साथ नयों (acquaintances) से भी मिलना हो जाता है|

क्योंकि बात दो साल पुरानी है इसलिए आपके जेहन में आ सकता है कि आज क्यों बता रहा हूँ| अत: आगे बढ़ने से पहले जिस वजह से यह किस्सा लिख रहा हूँ उसकी वजह का तार जोड़ दूँ| अभी विगत 5 मई 2015 को जाट-आरक्षण के मुद्दे पर ‘हरयाणा पंजाबी सभा (गैर-सिख)' ने रोहतक में उनका जाट-आरक्षण से कोई लेना-देना ना होते हुए भी इसके विरोध में उतरने हेतु मेमोरेंडम (memorandum) निकाला तो मुझे धक्का लगा| क्योंकि अरोड़ा-खत्री अब तक जनरल केटेगरी (general category) में आते हैं (हालाँकि हरयाणा देश की पहली ऐसी स्टेट है, जिसमें जाट से ले के ब्राह्मण, बनिया, अरोड़ा-खत्री, राजपूत तक सबको विगत हुड्डा सरकार ने आरक्षण दे दिया था| मतलब हरयाणा में सभी जातियां/समूह आरक्षण लिए हुए हैं) और जाट जिस आरक्षण की मांग कर रहे हैं वो ओ.बी.सी. केटेगरी (OBC Category) हेतु है| यानी जाट को वो मिले न मिले, इससे अरोड़ा-खत्री भाईयों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला; परन्तु फिर भी इन्होनें जाट विरोधी झंडे बुलंद किये हुए हैं|

हालाँकि दो साल पहले जब यह बात हुई थी तो मैंने इसको कानों पर से मार के भुला दिया था, क्योंकि मेरे बहुत सारे और भी अरोड़ा-खत्री दोस्तों को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसा किया| और यह सोचते हुए बात को हल्के में भुला दिया था कि कोई जरूरी थोड़े ही है कि सारे ऐसे ही हों, जैसा यह भाई था| परन्तु आज इस किस्से को लिखते हुए मुझे कोई हिचक नहीं और हिचक ना होने की वजह भी साफ़ है| और इससे बढ़िया मौका और दस्तूर इस दिल के दर्द को बयाँ करने का शायद और कोई हो भी नहीं सकता था|

तो हुआ यह था कि मेरे एक साउथ इंडियन (south Indian) मित्र को उसकी पढाई पूरी होने के साथ-साथ नई नौकरी भी लगी थी, तो उसके उपलक्ष्य में हमने उस भाई के लिए एक पार्टी रखी| जिसमें सबने अपने-अपने कंट्रीब्यूशन (contribution) से पार्टी का बजट कलेक्ट (collect) किया और पार्टी की डेट एंड प्लेस फिक्स (date and place fix) करके, पार्टी में पहुंचे|

पुराने मित्रों के अलावा मुझे दो-तीन नए आगंतुक मित्र भी मिले| जिनमें एक भाई यह अरोड़ा-खत्री भी थे जिन्होनें खुद को हांसी, हिसार का बताया| इंट्रोडक्शन (introduction) हुई और मुझे आदतवश अपनेपन की अनुभूति हुई| बड़े सौहार्द और आत्मीयता से मुलाकात की| वह भाई संगीत और शायरी के बड़े शौकजदा थे| उन्होंने अपनी बांसुरी से सबको अपने स्वरलहरी का आनंद भी दिया| महाराष्ट्र से ले गुजरात, तमिलनाडु से उत्तरप्रदेश, हरयाणा और पंजाब के मित्र पार्टी में जुटे थे|

शुरुवाती दौर की पार्टी बढ़िया चलती रही, फिर पार्टी सांग्स एंड डांस (songs and dance) की डिमांड होने लगी, तो यह जिम्मेदारी मैंने संभाल ली, डेस्कटॉप पे बैठा, इंटरनेट खोला और सबकी फरमाइस के हिसाब से बॉलीवुड, हॉलीवुड, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मराठी गाने यू-ट्यूब पर ढूंढ-ढूंढ कर बजाने लगा| माहौल बड़ा अच्छा बना और क्योंकि मैं सर्च इंजन एक्सपर्ट (search engine expert) हूँ तो मुझे सारे गाने विद इन नो टाइम (within no time) मिल जाते और इन मैटर ऑफ़ सेकण्ड्स (in matter of seconds) प्ले कर देता| कोई उनपे नाचते हुए मस्ती करता तो कोई उनको देखते हुए ड्रिंक्स एंड स्नैक्स (drinks and snacks) का लुफ्त ले रहा होता|

फिर एक दम से अचानक उस हांसी वाले पंजाबी खत्री भाई (नाम को व्यक्तिगत रख रहा हूँ) को पता नहीं क्या हुआ कि टूटी-फूटी हरयाणवी में बोला कि आओ आप सबको म्हारे हरयाणा का म्यूजिक सुनाता हूँ| क्योंकि मैंने मेरा यूट्यूब चैनल ओपन किया हुआ था तो उसने कहा कि अपना चैनल लॉगआउट करो; क्योंकि मैं जो सुनना चाहता हूँ उसके लिए मुझे मेरे वाले में लॉगिन करना होगा| तो मैंने कहा ओके, यह लो|

उसने लोगिन किया और मुझे अचम्भित करते हुए एक दम से सबको बोला कि लो भाई आपने पंजाबी सुना, बॉलीवुड-हॉलीवुड सब सुना, लो इब सुनों आपने भाई (मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए) के हरयाणा का म्यूजिक| जब तक वीडियो नहीं चली थी तो मुझे भी ख़ुशी महसूस हुई कि कमाल है पंजाबी खत्री भाई को भी हरयाणवी म्यूजिक का शौक, यह तो बहुत अच्छी बात है| परन्तु जैसे ही वीडियो प्ले हुई, अपना माथा पकड़ के बैठ गया| एक "थर्ड-क्लास" हरयाणवी कम्पटीशन की रागनी, जिसमें कि सिंगर ने दारु पी रखी थी, वो निकली| अब उस रागनी में ना तो बोल बढ़िया और ना ही सुर| वो गायक भी गाते हुए ठिठक-ठिठक के गा रहा, यानी उसका शरीर उसके काबू में नहीं| और मेरे हिसाब से जो टोटल नॉन-सेंस केटेगरी (total nonsense category) ऑफ़ हरयाणवी म्यूजिक होती है वो थी| ऐसी रागनियों को मैं अक्सर सिरे से नकार के डस्टबिन की लिस्ट में डाल दिया करता हूँ|

तो मुझे बैठे-बैठे अहसास हुआ कि इसका मकसद हरयाणवी म्यूजिक की उत्तम साइड दिखाना तो है नहीं| यह तो हंसी उड़ाने वाली बात कर रहा है| मुझे भीतर ही भीतर घुटन महसूस हुई और लगा कि जैसे मेरे और मेरे कल्चर के ऊपर घटियापन का टैग लगाने की कोशिश की जा रही हो| इसपे मुझे अचरज इस बात का हुआ कि भाई ने खुद हरयाणा में जन्म लिया है, कल्चर से ना सही, जन्म से तो हरयाणवी है और फिर भी हरयाणा को ले के गैर-हरयाणवियों के आगे वो भी विदेश की धरती पे ऐसी खिल्ली?

साथ ही मुझे महसूस हुआ कि कहीं इसका मकसद मेरे मित्रों में मुझे उकसा के मेरी छवि बिगाड़ने का तो नहीं? क्योंकि इनका मानना है कि जाट लोगों को तो बड़ी आसानी से भड़का के गुस्सा दिलाया जा सकता है| या फिर वो यह चेक करना चाह रहा था कि विदेश में आ के भी मैं हरयाणवी को छोड़ा हूँ कि नहीं| क्योंकि अक्सर अपने गाँव से दस-बीस किलोमीटर दूर शहर तक में आके बसने वाले ग्रामीण हरयाणवी, अपने-आपको हरयाणवी कहने में असहज देखे गए हैं; फिर मैं तो हरयाणा से 7000 मील दूर पहुंचा हुआ था| तो शायद वह मेरी इस बारे असहजता जांचना चाहता हो| गुस्सा-भड़काना-असहजता-कल्चर से लगाव-दब्बू वगैरह तमाम तरह के ख्यालों से मन भीतर-ही-भीतर उद्वेलित हो उठा|

परन्तु शायद यह भगवान की ही दी हुई एक जन्मजात समझ मेरे में है कि जब भी कोई मेरी संस्कृति या जाटपने पर कुछ बुरी-नीयत से पेश आता है तो मैं पल में उसको भांप लेता हूँ और ऐसे में गुस्से में भड़कने की बजाय, मेरा दिमाग ऑटोमेटिकली इसकी शांतिपूर्ण व् बड़ी तमीज से जवाब देने वाली जुगत में लग जाता है| तो वो रागनी की वीडियो भाई ने पूरी चलाई और उस शराबी गायक की एक्टिंग में उस रागनी के टूटे-फूटे बोल भी बोलने की कोशिश करके, सबका ध्यान उस वीडियो के एक-एक हिस्से पे दिलाने की कोशिश सी करता दिखा (यहां वो हरयाणवी गायक-कलाकार ध्यान देवें जो सस्ती लोकप्रियता अथवा ओच्छी कमाई के लालच में अपने कल्चर को गलत तरीके से पेश करते हैं, और बाद में आपकी ही बनाई इन कलाकृतियों का प्रयोग कैसे इस भाई जैसे हमारे कल्चर को दूसरों के आगे नीचे दिखाने की मंशा रखने वाले लोग, हमें नीचे दिखाने में कितनी बेशर्मी से प्रयोग करते हैं)|

खैर मेरे अंदर शांति और उत्सुकता आत्मशात उतर गई और मैं उस भाई की हर हरकत व् हावभाव को मुस्कराते हुए चेहरे से अवलोकन करता रहा| साथ ही बाकी साथियों के चेहरे भी देखता रहा, जो कि अमूमन निष्क्रिय प्रतीत हो रहे थे| अब यार ऐसी थर्ड क्लास (third class) चीज किसी फर्स्ट टाइम हरयाणवी म्यूजिक लिसनर (first time Haryanvi music listener) को सुनाएंगे तो बेचारा और क्या प्रतिक्रिया देगा|

खैर रागनी ख़त्म होते-होते मेरे चेहरे के भाव देख के उसके भाव बदलने लगे| फिर पता नहीं उसको क्या हुआ कि खुद ही बोला कि भाई अब तू चला कोई बढ़िया सा धांसू हरयाणवी आइटम| मुझे वो ऐसे आत्मविश्वास में लगा कि जैसे मुझे हरयाणवी के नाम पर नेट पे इससे बढ़िया कुछ मिलेगा ही नहीं अथवा बढ़िया के नाम पर हरियाणवी म्यूजिक में कुछ है ही नहीं| खैर उसके जाहिल ऐटिच्यूड (attitude) ने ऑटोमेटिकली बाजी मेरे हाथ में दे दी|

तो मैंने सबको कहा कि भाईयो जैसे हॉलीवुड से ले बॉलीवुड, टॉलीवुड से पॉलीवुड हर म्यूजिक व् फिल्म इंडस्ट्री में सी और बी ग्रेड गाने व फ़िल्में होती हैं, ऐसे ही यह थी (उस भाई की ओर इशारा करते हुए) अपने भाई की तरफ से हरयाणवी म्यूजिक की एक सी-ग्रेड पेशकश| अब मैं आपको दिखता हूँ समथिंग रोक्किंग (something rocking) साफ़-सुथरा व् मनभावन|

बस फिर क्या था, चंद्रावल, लड़ो-बंसन्ती जैसे कालजयी क्लासिकल व् पुराना फ़िल्मी संगीत, "धाक्कड़-छोरा" फेम उत्तम कुमार जैसे कलाकारों का नया संगीत जैसे कि "छोरी तेरे रूप की धूप सी खिलै" आदि गानों से ले जगबीर राठी जी के 'बोल तेरे मीठे-मीठे', गिटपिट, और काफी सारे नए रैप, राजबाला-नरदेव आदि की ए-वन वाली कई धमाकेदार स्टेज पर्फॉर्मन्सेस और विभिन्न टीवी शोज में आई हरयाणवी पर्फॉर्मन्सेस चला दी| और जब गाने चंद्रावल जैसी क्वालिटी के चलें तो मजाल है कि कोई झूमें बिना रह जाए| फिर वो संदीप लाठर वाली चादर के नीचे वाले शो की कॉमेडी वीडियो चला दी, उसको देख के तो सारे हंस-हंस के लोट-पोट, और उस भाई के चेहरे से हवाइयां गायब|

उसके चेहरे के हाव-भाव बता रहे थे कि बिना भड़के बिना उकसे उसको मेरी तरफ से जवाब मिल गया| फिर मैंने सब भाईयों को कहा कि हरयाणा हरयाणवी के साथ-साथ हिंदी और पंजाबी म्यूजिक की भी बहुत बड़ी मार्किट है| हम हरयाणवी जितने चाव से हरयाणवी और हिंदी म्यूजिक सुनते हैं, उससे भी कहीं अधिक चाव से पंजाबी म्यूजिक सुनते हैं और पंजाब के बाद सबसे बड़ी पंजाबी म्यूजिक लवर (lover) मार्किट हरयाणा ही है|

एनीवे (anyway) क्योंकि उस रात मैं डीजे बना हुआ था, इसलिए इस एपिसोड को जल्दी ही खत्म करते हुए, भाईयों को बोला कि "हूँ इज नेक्स्ट" (who is next) और तभी एक हिंदी आइटम नंबर की डिमांड आई और मैंने वो प्ले कर दिया और डेस्कटॉप की सीट से उठ के टॉयलेट की साइड चला गया| कसम से बड़ा रिलैक्स फील हो रहा था कि मैं एक जाट होते हुए भी, इन लोगों की धारणा के विपरीत जाते हुए बिना लठ उठाये, बिना भड़के, बिना गुस्से में आये भी किसी की बैंड बजा सकता हूँ|

परन्तु इसके आगे मेरी उससे एक व्यक्तिगत बात होनी अभी बाकी थी| यहां बताता चलूँ कि वो मेरे से उम्र में कम से कम दो-तीन साल बड़ा था| तो जब मैं टॉयलेट से बाहर आया तो वो मुझे उधर ही टहलता हुआ मिल गया और कहने लगा कि यार मुझे तो पता ही नहीं था हरयाणवी म्यूजिक ने इतनी प्रोग्रेस कर ली है| इतने बढ़िया-बढ़िया गाने और पर्फॉर्मन्सेस भी आने लगी हैं| उसके मुंह से यह सब सुनके मुझे उससे चिड़ होने लगी और क्योंकि हम एकांत में खड़े थे तो कहे बिना ना रहा गया|


मैंने कहा, "यार प्लीज, एक तो जो इंटरनेट पे इतनी थर्ड-क्लास रागनी ढूंढ के अपने चैनल में सेव करके रख सकता हो, उसको बढ़िया हरयाणवी म्यूजिक नहीं मिला होगा, मैं मान ही नहीं सकता| और नया ना सही चंद्रावल जैसा पुराना म्यूजिक वो भी हरयाणा में पैदा हो के, हरयाणा के स्कूलों में पढ़ते हुए बड़ा हो के भी कभी ना सुना हो, मुमकिन ही नहीं|"

उसने लीपापोती करते हुए कहा, "यार, कभी छोटे होते थे तो स्कूल फंक्शन्स में शायद किसी कल्चरल परफॉरमेंस में देखा था, अब तो भूल सी पड़ गई थी| क्योंकि ग्रेजुएशन आउट ऑफ़ हरयाणा से की है|"

मैं: तो भाई इट्स ओके, लीव इट (its ok, leave it)|

वो: यार, तूने बड़ी अच्छी कलेक्शन इकठ्ठी कर रखी है, मेरे ईमेल पे सेंड करना|

मैं: देख भाई, आपको मेरे आगे लीपापोती करने की कोई जरूरत नहीं है| आपको पसंद नहीं है हरयाणवी म्यूजिक तो नहीं है, कोई इशू वाली बात नहीं| परन्तु अब मेरे को ऐसे मत दिखाओ कि जैसे हरयाणवी म्यूजिक का आपसे बड़ा चासडू (fanatic) कोई नहीं|

वो: वाह भाई क्या वर्ड बोला है 'चासडू'। इन्हीं वर्ड्स का तो फैन मैं हरयाणवी का|

.............थोड़ी देर ख़ामोशी रही .............

वो: नहीं भाई ऐसी बात नहीं है, मैं भी हरयाणा में पैदा हुआ हूँ, लगाव है मुझे अपनी मिटटी से|

मैं (उसकी लगाव वाली बात सुनते ही जो इतनी देर से गुस्सा दबाये बैठा था वो शब्दों के जरिये फूट पड़ा): मैंने कहा ब्रदर, लगाव वालों के तो टशन ही न्यारे होते हैं| आपको लगाव होता ना और मान लो अगर बाईचांस आपको अच्छे हरयाणवी म्यूजिक का नहीं भी पता था, तो आप ऐसे गैर-हरयाणवी गैदरिंग के आगे सी-ग्रेड म्यूजिक तो कम से कम नहीं चलाते| या मुझसे ही कहते आ के कि भाई कोई अपना हरयाणवी म्यूजिक सुना बढ़िया-वाला| तो मैंने जो आपके बाद सुनाया वो मैं बाई-डिफ़ॉल्ट लगा देता|

अब मैं भावुक हो गया था| मैंने बोलना जारी रखा|

यार मुझे अफ़सोस है कि आप लोगों की तीन पीढ़ियां हरयाणा में हो चुकी हैं, परन्तु आज भी आप अपने आपको हरयाणवी कहने में असहज महसूस करते हैं| ऐसे में मेरे जैसे भाई जो आप लोगों को पूर्णत: इस संस्कृति में मिला लेना चाहते हैं, उनके लिए दिक्क्त खड़ी हो जाती हैं| भाई मानता हूँ आपका कल्चर सिंध-मुल्तान का है, आपके दादे-पिता जी वहाँ से आये थे, इसलिए कल्चरली (culturally) बहुत कुछ अलग है| उसमें दिक्क्त नहीं, क्योंकि हर कल्चर के सबसेट (subset) होते हैं, जैसे हरयाणवी कल्चर के कम से कम 10 सबसेट तो मैं ही जानता हूँ, परन्तु उसमें ग्यारहवां आपका भी ऐड हो ऐसी मंशा रखता हूँ| कल्चरली डिफरेंट (different) भी रहो, परन्तु आखिर जन्म तो आपका प्योरली (purely) हरयाणा का ही है ना| कल्चर के नाते ना सही, जन्म के नाते तो आप इस 'हरयाणा टैग' से मुक्ति नहीं पा सकते? और जब मुक्ति नहीं पा सकते तो, ऐसी गैर-हरयाणवी फर्स्ट टाइम हरयाणवी म्यूजिक लिसनर्स ऑडियन (first time Haryanvi music listener audian) के आगे हरयाणा को ले के ऐसी ओच्छी प्रस्तुति क्यों?

वो: निशब्द खड़ा रहा|

मैं: मैं जानता हूँ, कि सम्पूर्ण विस्थापन (complete migration) का दंश क्या होता है| जो लोग धर्म के लिए अपनी धरती-मिटटी छोड़ के इतनी दूर आन बसें, वो कितने जायज और नेक लोग हो सकते हैं| मुझे इस बात का भी अहसास है कि हमारी अख्खड़ धरती पर आपके बुजुर्गों का, यहां तक कि आपका भी स्थानीय हरयाणवी से मिलाजुला अनुभव रहा होगा| लेकिन अफ़सोस कि आप उस मिलेजुले में से नकारात्मक को अपने अंदर घर दिए हुए हो, उस सकारात्मक को नहीं देख रहे, जिसकी दास्ताँ आज भी हरयाणा के हर गली-गाँव-मोहल्ले में पसरी पड़ी हैं| आखिर आज भी यह अलगाव क्यों?

वो: यार तुम लोग आज भी हमें भाप्पे-रफूजी कहते हो|

मैं: मैंने कहा ऐसे सम्बोधन करके बोलने वाला एक तबका तो आपके समाज का भी है जो हमे मोलड़- गुस्सैल-झगड़ालू- दबंग-उद्द्ण्ड-अक्खड़, घुटनों में मति वाले आदि-आदि कहके सम्बोधित करता है| तो क्या हम भी मुम्बईया मराठे बन जाएँ, और उठा लें जातिवाद-भाषावाद-क्षेत्रवाद के मुद्दे को?

वो: नहीं यार मेरा यह मतलब नहीं था|

मैं: यार जितना विस्थापित-फ्रेंडली (migration friendly) हम हरयाणवी हैं, इतने तो पूरे विश्व में कोई नहीं| कभी देश की आज़ादी के वक्त आप लोग आ गए, यहां तक कि पंजाब में आतंकवाद के चलते आप लोगों का दूसरा विस्थापन भी हरयाणा में हुआ, कभी पानीपत की तीसरी लड़ाई के काल से मराठे यहीं रुके हुए हैं, तो अब बिहारी-बंगाली-असामी आये ही जा रहे हैं| भाषवाद-क्षेत्रवाद व् जातिवाद के प्रति हम हरयाणवी इतने सहनशील हैं, कहीं ना कहीं यह बात इन आने वालों के दिमाग में रहती होगी, तभी तो यह इधर आ रहे हैं? आप लोगों से भाईचारा निभाते-निभाते हम लोग अपनी संस्कृति की सुध लेनी भूल गए हैं; हम हमारी संस्कृति को गाने-बजाने-उठाने के कामों से ज्यादा आप लोगों के दंश व् जहर को झेलते हैं| आपको अहसास है इस बात का?

और कुछ देर खामोश खड़ा रहने के बाद वो निरुत्तर नजरें चुराता हुआ गानों पर थिरक रही पार्टी की भीड़ में वापिस चला गया|

उसके पास मेरी बातों के जवाब ही नहीं थे| परन्तु जो भी था मुझे अनमनी सी अनुभूति देता रहा| जब तक पार्टी चली, उसकी आँखों में मुझे कहीं ना कहीं ध्वंध व् संताप सा जरूर दीखता रहा| मैंने उसको अपना संदेश दे दिया था| और मुझे उसकी आँखें इतना आश्वस्त जरूर कर रही थी कि वो हरयाणवी म्यूजिक को पसंद करे या ना करे, सुने या ना सुने, परन्तु आज के बाद ऐसे अपमान कम से कम नहीं करेगा|

यहां यह बात बता दूँ, कि एक तो हम एकांत में खड़े थे, दूसरा पार्टी के म्यूजिक के शोर में किसी और को हमारी वार्तालाप नहीं सुनी| और मैंने इसपे पब्लिकली कोई उपदेश टाइप सेशन करने की सोची भी नहीं, क्योंकि उसका उत्तर तो मैं हरयाणवी म्यूजिक का उत्तम संगीत चला के दे चुका था|

चलते-चलते मेरी मेरी हर उस भाई की तरह के बन्दे से यही उम्मीद है कि हम हरयाणवी लाख उद्द्ण्ड और अक्खड़ सही, परन्तु दिल से जितने विशाल हम हैं, दुनिया में शायद ही कोई और ऐसी मानव-जाति मिले|

इसलिए हमारा विरोध करने के लिए, हमें डरा के रखने के लिए अथवा हमपे अपना अधिपत्य जमाने के लिए, हमारी संस्कृति और सभ्यता को कलंकित मत करो| क्योंकि डर जाएँ, दब जाएँ अथवा झुक जाएँ, यह हरयाणवी मिटटी की ही परिणति नहीं| हम तो वो धरती हैं जहां देवदासियां पालने वाले भी औकात में रहते हैं, जो नौकर-मालिक की नहीं अपितु सीरी-साझी की सभ्यता पालते हैं; इसलिए हमारी इस महानता को समझें और जैसे हमने आपको अपनी मिटटी-दिल-आत्मा सबमें आत्मसात किया है, ऐसे ही आप भी इसकी कोशिश करें|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


साझा-कीजिये
 
जानकारी पट्टल - मनोविज्ञान (बौधिकता)

मनोविज्ञान जानकारीपत्र: यह ऐसे वेब-लिंक्स की सूची है जो आपको मदद करते हैं कि आप कैसे आम वस्तुओं और आसपास के वातावरण का उपयोग करते हुए रचनात्मक बन सकते हैं| साथ-ही-साथ इंसान की छवि एवं स्वभाव कितने प्रकार का होता है और आप किस प्रकार और स्वभाव के हैं जानने हेतु ऑनलाइन लिंक्स इस सूची में दिए गए हैं| NH नियम एवं शर्तें लागू|
बौद्धिकता
रचनात्मकता
खिलौने और सूझबूझ
जानकारी पट्टल - मनोविज्ञान (बौधिकता)
निडाना हाइट्स के व्यक्तिगत विकास परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

HEP Dev.:

हरियाणवी में लेख:
  1. कहावतां की मरम्मत
  2. गाम का मोड़
  3. गाम आळा झोटा
  4. पढ़े-लि्खे जन्यौर
  5. बड़ का पंछी
Articles in English:
  1. HEP Dev.
  2. Price Right
  3. Ethics Bridging
  4. Gotra System
  5. Cultural Slaves
  6. Love Types
  7. Marriage Anthropology
हिंदी में लेख:
  1. धूल का फूल
  2. रक्षा का बंधन
  3. प्रगतिशीलता
  4. मोडर्न ठेकेदार
  5. उद्धरण
  6. ऊंची सोच
  7. दादा नगर खेड़ा
  8. बच्चों पर हैवानियत
  9. साहित्यिक विवेचना
  10. अबोध युवा-पीढ़ी
  11. सांड निडाना
  12. पल्ला-झाड़ संस्कृति
  13. जाट ब्राह्मिणवादिता
  14. पर्दा-प्रथा
  15. पर्दामुक्त हरियाणा
  16. थाली ठुकरानेवाला
  17. इच्छाशक्ति
  18. किशोरावस्था व सेक्स मैनेजमेंट
  19. भ्रामक धारणाएं
  20. हरयाणवी मनोज कुमार
NH Case Studies:
  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
© निडाना हाइट्स २०१२-१९