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बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज |
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समाज, आरक्षण अर जातिगत कनूना का समाज पै पड़ते उलटे असर का जहर |
इस मुद्दे की तळी म्ह जाण तें पहल्यां एक बात कह द्यूं अक बलात्कारी, व्यभिचारी अर दुराचारी की कोए ज्यात-धर्म निः होंदा| ना तो उस अयंदर द्योता नैं कोए ठीक ठहरान्दा जिसनें गौतम की अहिल्या गैल्यां धोखे तें व्यभिचार करया अर फेर सजा भी मली तो अहिल्याँ नैं, ओ अयंदर तो आज भी द्योता ए बणा कें पूज्या जा सै| उसकी पूजा का आज भी कोई धर्म का ठेकेदार बरोध न करदा अर धर्म जिह्से मामलां म ज्यब अयंदर बर्गे आज़ाद घूम सकें सें अर ऊपर तें आपणी पूज्जा भी करवा रे सें तो आज के कलजुग म आम आदमी की के पूछ? लखणिये नैं तो ग्रन्था म्ह ब्रह्मा जी पै भी आंगळी ठा दी थी अक उसकी भी आपणी बेटी पै नीत खराब होगी थी, तो कहण की बात या सै अक हरियाणे म जो ताज्जे बलात्कार के मामले उभरे सें उन्ने जातिगत रंग दें कें, कै तो कोए आपणी राजनीती की रोटी सेंकणा चाहवै सै अर के फेर कोए ब्योपारी म्हारे समाजिक ढाँचे ने उजाड़ कें आड़े आपणा ब्योपार फलाणा चाहवै सै|
अर ऊपर तें खाप्पाँ गेल जुल्म यो अक "घुन्नयाँ नैं खो दिए गाम अर उत्ताँ के नाम बदनाम"| मैं खाप्पाँ नैं असवेंधानिक (जो की सर्फ खाप-ए-नी ब्लय्क हर मंदर-म्सज्यद-ग्रुद्वारा-चर्च-डेरे-मठ असवेंधानिक सें) करार दे, बैन करण की वकालत करणियां नैं, न्यूं पूछना चाहूँ सुं अक क्यूँ निः आज लग किसे मंदर चै धर्माधिकारी नें, इस चीज का फरमान सुणाया अक अयंदर (इंद्र) द्योता तो वहसी-दरिंदा लयकडा, जो दूसरयाँ की बीर-बानियाँ नें च्योड़े म खराब करदा हांडया करदा| ज्यांते उसकी कोए पूज्जा निः करैगा अर हामें आज तें उसका द्योता आळआ पद भी उस्तें छीन ल्यां सां| अर ना हे उन गौतम ऋषि नें अपनी अक्ल द्य्खाई, अक तरी लुगाई का इसमें के दोष, इसनें क्यूँ पाथर बणन की सजा दे, असली दोषी का क्यूँ निः किमें करया? के आड़े निः गौतम ऋषि की मानसिकता म्ह मर्द नें बचाण की झलक दिखी? हो सके सै इसे बात पै ओ अय्न्द्र खुल्ला सांड छोड़ दिया | उस अय्न्द्र का क्यूँ नहीं फरमान सुनवाया अक ले भाई आज तें तेरा स्वर्ग का अधिकारी होण का किरदार सदा खात्तर ख़त्म अर तू इसे पल पाथर हो ज्या| अरे जिस समाज म्ह इह्से-इह्से पापियाँ नैं पाप करण बाद भी द्योता बने रहण का सरंक्षण म्यल्दा आया हो तो उसके आम आदमी तैं नारी नें बरोबर मानण की के उम्मीद? के कदे किसी नें सोच्या सै अक ताहम जिस स्वर्ग म्ह जाण बाबत सारी उम्र बाट जोहें जाओ सो उस स्वर्ग का सबतें बड्डा करता-धर्ता यो अयंदर-ए सै जिसकी ऊपर काहणी सुणाई| भाई जै किमें बदलणा सै तो पहल्यां धर्म के मानदंड बदलो, महिमामंडित कूण हो अर कूण नहीं उसपै सोचो, पूजनीय कूण हो अर कूण नहीं उसपै सोचो, जयब जा कें बीर के प्रति समाज की मानसिकता बदलैगी|
मेरे ह्य्साब तें बलात्कारी का माणस-बीर के भेद-भाव तें कोए लेणा-देणा कोनी, क्यूंकि इह्सा होता तो फेर सारा समाज डांगर होंदा अर कुन्ब्यां म्ह रय्स्ते नाम की कोए चीज ना होंदी| बलात्कारी एक दुष्ट कलंकित ज्न्योर तें फ़ालतू किमें निः हो सकदा अर द्योता तो क्युकरे भी निः| मेरे ह्य्साब तें तो आज के माहौल में जो गड़बड़ हो रीह सें इनके कुछ कारण न्यूं सें:
- आरक्षण नें लील लिया घंखरया का चैन: आरक्षण के कारण घणे लम्बर ल्याणिये कुंगर नै ज्यब नौकरी ना म्यल पांदी तो उसनें छोरी यानी बहु भी कित-तें होगी अर उसपै भी ज्यब छोरियां का पहल्यां तें ए तोड़ा हो तो काम और भी टेढ़ा| तो एक तो रोजगार ना मयलण का मलाल अर उप्पर तें फेर ब्याह ना होण की मजबूरी अर ना सरकार-समाज इह्से बाळकां की सुध लयंदा तो वें गहरे मानसिक तनाव म्ह घ्यर कें कुंठित मानसिकता के श्य्कार हो ज्यां सें| अर फेर वें अपराध की ओड़ हो लें सें फेर ओ अपराध समाज में चोरी करण का हो, डाका मारण का चाहे जारी म्ह पड़ण का|
- जातिगत कनूनां नैं खा लिया समाज का भाईचारा तो: एक यो दूसरी बोट की राजनीति की उपज| जातिगत कनून ज्युकर SC/ST एक्ट, पह्ल्ड़े जम्मान्ने में एक-दुसरे के दुःख-सुख म्ह जो एक आध दूसरी जाति आळआ गेल खड्या पाया करदा इब इसके कारण वें भी साथ खड़े ना दिख्दे| तो समाज तो दो फाड़ इन कानूनां नैं ए कर दिया| जुणसे मदद कर सकें थे वें इब न्यूं कह दे सें अक इनके तै स्पेशल कानून बण रे सें, ले ल्यो मदद उड़े तें| अर कै फेर इस SC/ST एक्ट का सहारा ले जो समाज म्ह उलटे काम करण लाग-गे सें, उन्तें गुस्से के कारण कोए साथ ना देणा चाहन्दा|
- टूटदे कुणबे: समाज के बदलदे समीकरण, बदलदे रोजगार, बदलदी पारिवारिक भावना, जिनके चाल्दे सारी रळ-म्यल कें रहण की अर छोटे बाळकां नैं घर के बड्डे बुजुर्गां की छत्रछाया म्ह छोड़ण की स्वर्णिम परम्परा खत्म हो ली| इब हाल इह्से हो रहे सें अक चाहे सगे भाई मुसीबत म्ह हों तो भी लोग मुड़ कें नहीं देखदे| और ये सब भौतिकतावाद अर वैश्वीकरण के नकारात्मक पहलु कहे जा सकें सें|
- शराब की बेरोकटोक उपलब्धता: हरियाणा राज्य मह बावजूद यू कनून होण के जिसमै अक जै गाम की पंचात चाहवे तो गाम की सीम अर आसपास मह कोए ठेका च शराब की दुकान ना खुल सकदी फेर भी इसका कोए पंचात इयस्तेमाल नहीं करदी| या कोए बहस की बात नहीं अक बलात्कार के माम्ल्याँ मह घनखरे अपराधी दारु पी कें ए इह्से दुष्कर्म करें से| तो क्यूँ नहीं गामां की पंचात इस कानून नैं हथ्यार बणान्दी, जिसतें एक तीर तैं कई न्य्शाने साधैंगे, सबतें पहल्यां तो यें बलात्कार के ए मामले कम होवेंगे, दूजा घर म्ह शराबियाँ के कारण होण आळी रोज की कळह खत्म हो ज्या, लुगाइयां गेल्याँ होण आळी मार-पीट भोत हद ताहीं घाट ज्यागी, घर का खोया सुख-चैन भोड़ आवैगा अर बाळकां नैं एक सुथरा माहौल म्यलैगा| पर नहीं बेरा निः इह्सा के दावानल बड़ग्या लोगां म्ह अक किसे नै यू दारु का राक्षस ना तो दिखदा अर ना ए इस बात की सुध अक कम तें कम इह्से त्जाम करें जां जिसतें या दारु और नहीं तो २५ साल तें कम उम्र के बाळका अर लोछरा (बलात्कारी लोछर ए हो सके सै, सरीफ बाळक नहीं), के हाथां म्ह तो ना पडे|
- सींग प्य्न रे सें इबी भी खापाँ पै: बताओ खाप कुणसी कुंडली खोलें बेठी सें किसे की खात्तर| बल्या "आपणी रहियां नैं कोय्न रोंदी, जेठ की गइयां नैं रोऊ सुं", रै मीडिया आळए मुर्खो, चैन लेण द्योगे इन्नें? अक इनका दोष यु हे सै अक ब्याह की खात्तर उम्र घटाण का मुद्दा खाप के एक आदमी नैं ठा दिया? अर बस इब के सै चढ़ ज्याओ इनके सयर पै| ताह्मे सदा तें द्य्शाहीन थे अर द्य्शाहीन रहोगे| सर्फ वें बात ठा सको सो जो ताह्मने धंधा दे दे, समाज के सरोकार तें ताह्म्नें कोए लेणा-देणा निः| याहे बात किसी शहरी कै अंग्रेजी बाबू नैं ठा दी होंदी ना, तो ताह्मे उसनें सयर पै धर कें नाच्दे हाँडो अर| याहे तो सोच उस टेम थी जिस कारण देश नैं 1000 साल्लां की गुलाम्मी झेली अर याहे ताहरी इब सै, नहीं तो ताह्मने के बेरा कोनी अक फेशन तें ले, खाण-पीण तक, ओढ़ण तें पहरण लग, बोलण तें ले चालण ताहीं हर मोड़ पै जिनकी नकल करी जांदी हो, उन देशां म्ह जा कें लोग बसण नें मरदे फ्यरदे होँ, उनके ओह्ड़े भी तो 16 साल सै छोरे-छोरी के ब्याह की उम्र? तो इस्पै जै, उस बन्दे नें या सलाह धर दी तो के बिजळी पड़गी अक देश भाज के जाण नें हो रह्या सै? अर फेर कहणिये की रै 16 तें 21 उम्र के बीच के छोरे-छोरियां खात्तर भी तो हो सकै सै, अक्ल के अंधे बेरा नी कित-तें इसमें सारी उम्र की बात लागगे करण| अर जो मैं झूठी फेंकता होँ तो ले यू लिंक पढ़ ल्यो, जै इस्पै अमरीका तें ले इंग्लैंड, कनाडा तें ले यूरोप, जिननें के हम भारत आळए आपणी ज्य्न्दगी के हर ह्य्स्से म्ह नकल करण नें उतारू होए रह सें, सारयां म्ह ब्याह की उम्र जिसमें जै माँ-बाप राजी होँ तो 16 साल सै| इब कोए आमिर खान बरगा तो मेरे धोरे न्यूं बात ले कें आइयों न अक हम भारत म्ह रह सें अमरीका-इंग्लैंड म्ह नहीं| क्यूंकि कोए सा भी आमिर खान इह्सा नी पावेगा जो न्यूं कह दे अक मैं अति-शुद्ध भारतीय सुं अर खाना भी देशी खाऊं सू, ओह्ढू -पहरू भी देशी सुं अर भाई तेरी ढाळ आपणी देशी म्ह बात भी करूँ सू|
दुनियां के घनखरे बड्डे देशां म्ह ब्याह की न्यूनतम कानूनन उम्र (साल में) |
देश |
ब्याह की उम्र |
देश |
ब्याह की उम्र |
देश |
ब्याह की उम्र |
Spain |
13 |
Brazil |
14 |
France |
15 |
Japan |
13 |
China |
14 |
Greece |
15 |
Argentina |
13 |
Germany |
14 |
Czech Republic |
15 |
Russia |
16 |
Italy |
14 |
South Africa |
16 |
Britain |
16 |
U.S.A. |
16 |
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Pesonal views can't be seen as an amalgamation of a whole social body. One should keep patience. |
अर फेर खाप्पां नें तरली उम्र धरण की बात कही सै उपरली की नहीं| ना तै इसतें बाल-विवाह बढ़णे ना घटणे क्यूँ अक जिननें करणे सें वें तो आज भी करण लाग रेह सें, पर हां जै कोए न्यू कहवे अक कतिये प्रयांत म्ह बैठा कें सगा ल्याओ तो या तो कती बेहुदी बात सै| मेरै तो उस आपणी दक्षिण भारतीय तारिका का ब्यान भी याद आवै सै जिसनें कही थी अक आज के जम्मान्ने म्ह कोए कुंवारी लड़की तें ब्याह होगा, इह्सी उम्मीद भी ना करियो, मिल ज्या किसे नैं तो उसके भाग| क्यूँ के आज हालात वें हो रहे सें अक रोज-की-रोज इह्से बाळकां की तादाद बढदी जाण लाग रिह सै जो स्वेच्छा का पहला सेक्स अनुभव 16 तो के 14-15 साल के होंदे ले लें सें|
अर इसे तथ्य नैं ब्यान कर दी या तुरत की रय्पोर्ट भी ताहरे शाहमी सै, जिसमें बताया गया सै अक ऐकले करनाळ मैं 42 % छोरी यानी 40 छोरियां म्ह तें 17 इह्सी थी जो आपणे प्रेमी गैलां पाई गई थी अर नाबालिग थी| अर स्वेच्छा तें सेक्स कोए बुड्डे गेल करै इसके असार कम सें, तो मतलब सर्फ वें छोरी नहीं वें छोरे भी नाबालिग रहे होंगे, जिनके नाम इन केसां म्ह आये|
रय्पोर्ट | तो जै इस ह्य्साब तें देख्या जा तो उस आदमी नैं या सलाह दे भी दी तो के गलत कर दी| एक ह्य्साब तें मर्जी तें सेक्स करण आळए बाळकां नें तो आज़ादी ए म्यल्लेगी| बेसक आगले नैं कहते वक्त याह बात ना सोची हो पर इसमें या अज़ादी तो आये गई? पर शायद लोगाँ नें या आजादी आखर ज्या क्यूँ अक या आज़ादी आई तो खाप की पहल तें आवेगी|
- खाप की मान्नै कूण सै?: ज्यब उस भाई ताहीं मैंने ऊपरले पहरे की बात बताई तो झुंझळआट म उसने और तो किमें उत्तर सूझ्या नी पड़दा-ए न्यू करे अक बल्या खाप की मान्नै कूण सै? तो भाई मैं न्यूं कहूँ सू ज्यब खाप की कोए मानदा ए ना तो उनकी कही बातां पै यू बवाल किस बात का? ब्लय्क जुणसे मान्नै सें वें तो किमें कहंदे भी निः, तो इन दुसरया के पेटा का पाणी क्यूँ गुड-गुड हो ज्या सै? पर कुछ भी था, उस भाई की बात म्ह सच्चाई जरूर थी, चाहे ओ अनजाणे म्ह ए कहगया हो अक खाप्पाँ की मान्नै कूण सै, ना तो कोए इनके हर साल पास होण आळए "दहेज़ न ल्यो न दयो" के प्रस्ताव नैं मानदा अर ना कोए "ब्याह शादी म्ह खर्चा कम करो" आळी बात का रुखाळी पांदा, के होग्या जै एक आधा छिद्दा-छिद्दा कोए दिख ज्यंदा हो इन्नें मानदा| पर इनकी लांगड़ खींचण नैं जिसनें देखो ओहे सयन्गर ले सै|
राम भली करे अक इन मीडिया आळया नें थोड़ी अक्ल दे अर यें मीडिया आळए ब्योपार के चक्करा म ना पड़, सही म्ह समाज नें जोड़न का काम करें अर जिस जोश तें खाप्पाँ नैं तोड़ण में हांगा लावें सें जै उसे जोश तें खाप्पाँ के समाजिक ह्यत के प्र्स्तावां नें भी लागू करवाण म्ह प्रचार करव्वावें तो जरूर तें जरूर समाज तें बीर-मर्द की असमानता कम भी हो सके सै अर ख़त्म भी|
पर नहीं वें तो बस न्यूं सोचें सें अक यें तो निरे देहाती सें, इन्नें इन मस्ल्याँ पै बोलण का के हक़? अर जीण के सलीके का समाज के चलण का इन्नें के बेरा| मैं पुच्छु सुं रे जिन्नें खेतां म्ह नाज पैदा कर ताहरे पेट भरणे आवें सें, जिन्नें खेतां म्ह कपास पैदा कर ताहरे तन ढँकणे आवें सें, जिन्नें दूध पैदा कर दूध-दही-घी-चाय तक ताहरे पेटा म्ह धरणी आवै सै, जिन्नें गंडा पैदा कर ताहरी चाय मीठी करणी आवै सै, जिन्नें तें दुनिया की वा फौजी रेजिमेंट बणदी हो जो भारत की एक मात्र-विक्टोरिया क्रोस ल्यांण का गौरव राख्दी हो, मतलब ताहरी सुरक्षा लग की इतनी पक्की मोहर जिनपै लाग रही हो, उन्नें ताह्में जीणा स्यखाओगे के? अमरबेल चली सै कीकर की पालनहार बणन| थोड़ा भोत इस समाज की इतणी सेवा करण की जो इमानदारी वें न्य्भा रहे सें इह्से की लिहाज राख लिया करो उन्नें हर मामले म्ह अंधा पीसण तें पहल्यां?
- एक नया मुद्दा पैतृक-सम्पत्ति के बंटवारे का: इस मुद्दे पै तो वा कहावत हो रही सै, "अक भगत सिंह सबनें चहिये पर उनके घर निः पड़ोसियां के घर"| इह्सी शायद ए कोए NGO/Woman Organization हो जिसनें यू मुद्दा निः ठाया हो अक गाम्मां म्ह बीर-मर्द नें पैतृक सम्पत्ति पै बरोबर का हक़ दयो| अर यें सारे शहरां म्ह बेठ कें बत्ते मारें सें| इनतें एक सवाल कर दयो अक गाम्मा की तो देखि जागी, इन शहरां म्ह कितने मर्द, भाई, प्यता, पति इह्से सें, जिन्नें आपणे ब्योपार, मकान-कोठी-बंगले-प्लाट-फ्लैट, दुकान-फेक्ट्री आपणी बेबे, बेटी, लुगाई ताहीं बरोबर का ह्य्स्सा दे राख्य सै? इस सवाल पै जै इन्नें कोए-से-नैं भी सांस भी आ ले तो? भाई बात इह्सी सै जो बदलाव समाज म्ह देखना चाह्वो सो उसकी शुरुआत घर तें करो तो जाणु| अर जो कोए उछळदा होया धोंस जमाण का मारया एक-दो उदहारण था भी ल्यावैगा तो इह्से एक-दो तो मैं मेरे गाम म्ह तें भी द्य्ख्या द्यूंगा| ताह्मे तो न्यूं चाह्वो सो अक पहलम वें बदलें फेर हाम्मे, पर हां उन्नें बदलण का मोड़ म्हारे सयर पै धरया ज्या| अर हाम्नें कोए आ कें न्यूं नी कहवे अक वें तो गाम्मा म्ह सें ताहरे तें कम पढ़े-ल्य्खे, कम कनून जाणणिये, सो वें तो ज्यब करेंगे ज्यब देखांगे पह्ल्य्म शहरां म्ह तें क्यूँ न शरुआत करी जा औरतां नें यू अधिकार देण की? आडै मैं या बात जरूर कह द्यूं अक या चीज लागू तो सारे होणी चहिये पर उन "थोथे थूक ब्य्लोनियाँ के हाथ निः" जो आपणे आसपास झान्क्दे निः अर यू समाज सुधार का ठीकरा फोडन नें अर बड्डी-बड्डी ग्रांट डकारण गाम जरूर दिख ज्यां सें| अर फेर वाहे काह्णी हो ज्या सै अक "हिरै-फिरै गादडी अर गाजरां म्ह को राह", इन साम्मण के आंध्यां नें खाप फेर भी ब्य्शराणी| बीबीपुर म्ह पंचात तो होई कन्या-भ्रूण हत्या के मुद्दे पै, पर बिश्राह्निये बोले अक सम्पत्ति के मुद्दे पै बात निः करी| अरे जुणसे मुद्दे पै पंचात हो रही सै उसनें तो पूरा हो लयण दयो| उनकी ऊपर न्यूं टूट कें पड़ण नैं हो रहे जाणू तो अक बस गाम ए बच रे सें जड़े यू कनून लाग्गू निः होया बाकी शहरां म्ह तो सारी सम्पत्ति बरोबर की बाँट रीह सै|
ध्यान देण की बात: पैतृक-सम्पत्ति मुद्दे पै ल्यखण का मेरा मकसद इनं NGO अर इन्हें की ढाळ के समाज के दुसरे ठेकेदारां के दोगले रव्वये अर चेहरे द्य्खाण का था, जिननें के समाज-सुधार के नाम पै सर्फ गाम दिखें फेर खुद बेशक आपणे घर म्ह भी इस बात नें लागू ना कर रे हों|
ब्यशेष: हरियाणवी क्य्सान जमींदारा म्ह पराणे जम्मान्ने म्ह जमीन नें बाँटण के बड़े सिधाए होए क़ानून होया करदे, जो आज टूटगे अर माणस के लोभी मन नें तोड़ दिए| इन कनूनां म्ह बेटे-बेटी का बरोबार ख्याल राख्या गया था| मेरी इनपे रिसर्च चाल रही सै अर पूरी रिसर्च होंदे, इस साईट पै ताहरे स्यह्मी ल्याऊंगा| फ्य्लहाल तो मैं न्यूं देखणा चाहूँ सुं अक जिस समाज म्ह ब्याह के टेम औरत की डोली उठण का ब्य्धान धार्मिक ग्रन्था लग म्ह लख्या हो उस कानून म्ह तडके जै बीर-मर्द की शत-प्रतिशत बरोबरी ल्याणी हो तो फेर एकली सम्पत्ति के बंटवारे तें आ ज्यागी अक उस्तें आग्गे भी किम्मे और करना पड़ेगा, ज्युकर:
१) डोली बीर की ए क्यूँ उठै?
२) बीर ए मर्द के घरां जा कें क्यूँ बसे?
३) बीर नें मर्द का गोत क्यूँ धारण करणा पडे?
४) जै छोरे माम्याँ कै जा कें बसण लाग्गे तो उनके भात, उसके माम्मे उसके बाब्बू के गाम म्ह भरण आवेंगे अक माँ के ए गाम म्ह? अर जै माँ के गाम म्ह ए जावेंगे तो फेर एक बीर आपणे-ए-पीहर म्ह आपणे भाईयाँ नैं पाटडे पै क्यूकर म्यन सके सै? इह्से और भी भतेरे सवाल उठेंगे जिनपै हो सकै सै अक सर्फ समाजिक-ए-नी धार्मिक लोग भी मजबूर होवेंगे आपणे धर्म की व्याख्या बदलण पै| तै मेरे ख्याल तें तो इस मुद्दे पै भोत बड्डी बहस चहिये|
अर बड्डी बहस चहिये धर्म पै, जिसनें रामायण रही हो चाहे महाभारत, औरत सर्फ भोग की वस्तु तें फ़ालतू किमें नी द्य्खाई| राम का राज होया तो अग्निपरीक्षा लुगाई (सीता) देवेगी, रावण का राज होया तो वाहे लुगाई (सीता) अपहरण कर ल़ी जावेगी| पांडुवां का राज होया तो लुगाई (द्रोपदी) जुए म्ह हरा दी जागी, कौरवां का राज होया तो उसे लुगाई (द्रोपदी) का चीरहरण कर लिया जागा| समाज म्ह पुरुषप्रधानता-पुरुषप्रधानता पै छात्ती पीटनियां नें कदे सोची सै अक या पुरुष-प्रधानता तो ताहरी संस्कृति म्ह सै| किसे एक समाजिक-संगठन चै क्षेत्र म्ह निः ब्लय्क पूरे देश म्ह धर्म म्ह अर उस धर्म तें म्हारे खून म्ह धंसी पड़ी सै| अर जै किसी शेर के बच्चे म्ह सही द्य्षा दे समाज नैं एक करण की सीख हो तो सर्फ आपणी उद-जुलूल क़ाबलियत द्य्खान के चक्क्रां म्ह एक समूह का न्य्शाना बनाणा छोड़ दे|
अर आखिरी म्ह गोळन की बात या सै अक समाज का भला चाहण की नौटंकी करणिये इन समाजिक संगठना का अर खाप्पाँ के सयर चढ़ नाचणिया का इस बात पै कोए ध्यान निः अक जिस बढदी बेरोजगारी अर नौकरियां म्ह होण आळए पक्षपात के कारण समाज घुट्या बैठा सै उसका किमें समाधान करया जा| इस्पे व्य्चार करया जा अक आज की समाजिक अर रोजगार की नीति समाज नैं ख्यंडाण लाग रिह सें अक जोड़ण, पर नहीं पहल्यां खाप्पाँ गेल्याँ ओ नेवा करो "अक गरीब की बहु सबकी भाभी", इन्नें रगड़ो पहल्यां| गरीब की बहु क्यूँ , अक इन्नें शब्दां का ब्योपार तो करणा आंदा ना सो चढ़ ज्याओ इनपै, किसे भी बात नैं ले कें| येंह ठीक सें अक नहीं यु बड्डा मुद्दा सै समाज के ठेकेदारां खात्तर, उनका इस बात तें कोए सरोकार निः अक समाज इस आरक्षण अर जातिगत कनून की राजनीति के कारण, वैश्वीकरण अर अंधाधुंध ब्योपारक अर मीडिया की मनमानी के कारण कुण्से कुराहे पै जा लिया सै| कद लग "कबूतर की ढाळ ब्यल्ली नैं देख आयंख मूंदे बैठोगे?", ज्यद लग जयब वा ब्यल्ली ताहरे पंख से ख्यंडा जागी? अर इस्तें फ़ालतू पंख ख्यंडेंगे भी क्यूकर ज्य्ब राज्य के शांति-सद्भाव के हालात इस गर्त म्ह जा लिए सें?
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
लेखक्क: पी. के. म्यलक
छाप: न्यडाणा हाइट्स
तारयक्ख: 12/10/2012
छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.
ह्वाल्ला:
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