प्रस्तुत है भारतीय इतिहास की सर्वप्रथम वीरांगना की गाथा, जिन्होनें मुगलों के डर से अपने सतीत्व को बचाने हेतु साक्का-जौहर (स्व अग्नि-प्रवेश) की जगह चंगेज खान की सेना को 25 कोस (लगभग 42 किलोमीटर) तक दौड़ा-दौड़ा के मारा था| ऐसी शेरनी जाटनी की जाई थी खापलैंड की अमर-अजेय सर्वखाप योद्धेया विलक्षण वीरांगना "दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी"| हरियाणा के जींद जिले की धरती की बेटी, सन 1355 में मुगलों के चुगताई वंश के चार बड़े सरदारों समेत चंगेज खान की सेना के सेनापति मामूर
से अढ़ाई घंटे मल्ल्युद्ध कर उसको मौत के घाट उतारने वाली ब्रह्मचारिणी अदम्य-ज्योति खाप योद्धेया| |
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समय और मौका: बात उस समय की है जब हरियाणा सर्वखाप की पंचायती सेना तैमूर लंग और उसकी सेना को दिल्ली से आज के पाकिस्तान के मुल्तान के मार्ग से अटक नदी पार तक खदेड़ने में तल्लीन थी|
यह तल्लीनता इतनी घातक थी कि इसमें हरियाणा सर्वखाप पंचायत सेना के 12000 हजार मल्ल
(पंचायती भाषा में एक सैनिक को मल्ल बोला जाता था) तथा पांच सेनापतियों ने भारत माता के चरणों में अपने प्राणों की आहूत देकर मातृभूमि की रक्षा की थी|
सर्वखाप पंचायती इतिहास के लेखक युनुस व् रामदेव भाट जी लिखते हैं कि "यदि पंचायती सेना मुगलों को देश से ना खदेड़ देती तो मुग़ल दिल्ली को नष्ट कर डालते|" तवारीख फ़रिश्ता कहती हैं कि, "ख़िलजी सेना मुगलों को देश से नहीं निकाल सकती थी| सर्वखाप पंचायती संगठन अत्यधिक दृढ है| पंचायती वीरों में कोई देशद्रोही नहीं है| बादशाही सेना तथा राजाओं की सेना में देशद्रोही मिलते हैं| पंचायती सगठन सेना इस पाप से मुक्त है|"
शिकारपुर की सर्वखाप पंचायत सभा: मुग़ल युद्ध सरहिंद में भागीरथी देवी (सन 1355) द्वारा चंगेजी मुगलों से पंचायती मल्लों को लड़ते देखकर वीरांगनाओं में भी युद्ध करने की लालसा जाग उठी| हरियाणा के जींद जिले की वीरांगना भागीरथी देवी जी जो कि 28 वर्ष की ब्रह्मचारिणी 36 धड़ी यानी 180 किलो वजनी कैसे भारतीय इतिहास की प्रथम वीरांगना बनी, आईये इस वृतांत के जरिये जानते हैं|
हरियाणा की वीरांगना सेना: आप दादीराणी जो कि उस वक्त पंचायत की रशद टोली में सहायिका के तौर पर कार्यरत थी, ने जब अपने पंचायती मल्लों द्वारा मुग़ल सेना से लोहा लेते देखा तो प्रेरणा हुई और पंचायत अधिकारियों से विचार-विमर्श द्वारा प्रोत्साहन पा अपने नेतृत्व में हरियाणा की अठाईस हजार वीरांगनाओं को इकट्ठा किया| जिसमें इक्कीस हजार देवियाँ तो विवाहित थी और सात हजार अविवाहित थी| भागीरथी देवी ने इनके पांच जत्थे बनाये थे, प्रत्येक जत्थे का नेतृत्व दो-दो देवियों के हाथ में दिया| इस प्रकार दस सहायक सेनापति वीरांगनाओं के नाम इस प्रकार हैं:
- मोहिनी - गुज्जर
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लड़कौर - राजपूत
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बिशनदेई - भंगीं
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सहजो - ब्राह्मण
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कृपि - रोड़
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निहाल्दे - तगा
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सुंदरकुमारी - कोळी
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रंजना - सुनार
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चंदनकौर - बनिया
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नाहर कौर – कायस्थ
इस प्रकार सेनापति नियुक्त करने के पश्चात, हर महिला सेनापति ने अपनी-अपनी टुकड़ी की साज-सज्जा व् तैयारियां कर, युद्ध से पहले के स्पथ व् प्रेरणा भाषण के लिए तैयार कर शिकारपुर में एकत्रित किया गया, जहाँ कि दादीराणी आक्रमण से पहले अपनी सेना को सम्बोधित करने वाली थी|
प्रधान सेनापति दादीराणी भागीरथी का भाषण: "मेरी माताओं तथा बहनों! मैं आप को प्रणाम करती हूँ| मैं ब्रह्मचारिणी हूँ| मैंने जाट कुल में जन्म लिया है| मेरी उम्र अठाईस साल है| आप भी मेरी भांति ब्रह्मचारिणी हो| मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि वीर भाई, पिता, चाचा, ताऊ आदि संबंधी मुगलों से रणभूमि में जूझ रहे हैं| हमारे वीरों ने जिन माता-पिता से जन्म लिया है उनकी ही संतान हम भी हों| हम वीरों के कर्तव्य से पीछे क्यों रहें| हम भी अपने वीरों के समान शत्रु का मान-मर्दन करें| रणचंडी का रूप धारण करो तथा शत्रुओं का खून चूसना हमारा धर्म है| राक्षसों का वध कर डालो| पापी अवश्य ही हारेंगे और हम विजयी होंगे| तभी हमारा जीवन सफल होगा| हे माताओ! हमें आशीर्वाद और युद्धाज्ञा दो|"
यह भाषण सुनकर देवियों ने जय जय की हुंकार लगाई, योद्धेयों के प्रकारमों को नमन किया तथा माथे पर तलवार लगा कर प्रण किया कि शत्रु को जीतेंगी या स्वदेश रक्षा हेतु बलिदान हो जाएँगी| तुरंत एक हजार देवियाँ लाल सिंदूर का माथे पर तिलक लगाकर घोड़ों पर स्वार हो गई तथा एक वृद्धा ब्राह्मणी माई ने सबको विजय का आशीर्वाद दिया| युद्ध में प्रस्थान करते समय, "भारत माता की जय" व् "दादा खेड़ों की जय" के नादों से आकाश गूँज उठा|
मुग़लों से युद्ध: देवप्रकाश भाट तथा जैनुद्दीन मुदर्रिस लिखते हैं कि इन वीर देवियों के जत्थों को देखकर वीर मल्लों का उत्साह बढ़ गया| मारू-बाजे पर चोट लग गई| सिंहों की भांति वीर मल्लों तथा वीरांगनाओं के जत्थे मुग़ल शत्रुओं पर टूट पड़े| देवियाँ युद्ध भी करती और सैनिकों का भोजन भी बनाती, युद्ध सामग्री पहुँचाती, घायलों की मरहम पट्टी करती तथा वीरों का उत्साह बढ़ाती| वीर मल्ल भी अपनी बहनों के साहस को देखकर दोगुनी वीरता से युद्ध करते थे| मुग़लों के साथ यह युद्ध हरियाणा पंचायती मल्लों का था| भागीरथी महाराणी अकेली रणचंडी ने हजारों मुग़ल सैनिकों के सिर काट डाले| यह अंतिम मुग़ल युद्ध सरहिंद के मैदान में हुआ था|
दादीराणी का पराक्रम: इन देवियों की सेना ने शत्रु की लाशों के ढेर लगा दिए| भागीरथी देवी ने मुगलों के चुगताई वंश के चार बड़े सरदारों के शीश काट गिराये| मुग़लों का मामूर नामी सेनापति सरदार बड़ा वीर योद्धा था| वह बोला कि "
भागीरथी देवी क्यों अधिक सेना को लड़ायें, आजा लड़ाई केवल मेरी और तेरी ही हो जाए|"
भागीरथी तथा मामूर युद्ध: मामूर के इतना कहते ही भागीरथी देवी ने अपना घोड़ा उसके सामने पहुंचकर युद्ध आरम्भ कर दिया| दोनों की भयंकर टक्कर हुई| पास में लड़ने वाले योद्धा खड़े होकर दोनों का युद्ध देखने लगे| जब एक हथियार उठाता और आक्रमण करता तो योद्धा समझते कि हमारा मारा गया परन्तु वीर तुरंत वार को बचा कर उसी पर आक्रमण कर देता| ऐसे अढ़ाई घंटे तक लड़ाई होती रही| अंत में मामूर के हाथ ढीले पढ़ गए| भागीरथी ने बड़े जोर से हुंकार भरके अपने घोड़े को मामूर के घोड़े के बराबर करके उसके घोड़े को दबा दिया और बड़े कौशल से भारी भाले को दोनों हाथों से संभाल कर और मुंह में घोड़े की लगाम लेकर इतने जोर से मामूर की छाती में घुसेड़ दिया कि भाला छाती के पार हो गया| फिर भागीरथी ने तुरंत तलवार उठाई और मामूर का सिर काट डाला| मुग़लों के पाँव उखड गए, और वो मैदान छोड़ भागे|
देवियों ने भागते मुगलों को पच्चीस मील (कोस) तक छकाया और उनकी सेना की लाशें भूमि पर बिछाती चली गई| तो इस तरह दादीराणी के पराक्रम के चर्चे चहुंओर फैले और दादीराणी एक निष्कंटक वीरांगना कहलाई| क्योंकि दादी राणी ने कह रखा था कि वह अपने समकक्ष वीर से ही विवाह करेंगी तो बहुतेरे वीर दादीराणी से विवाह करने के ख्याल रखने लगे| और इधर दादीराणी के स्वयंवर की तैयारियां शुरू हो गई| इस अनूठी परम्परा पर चलते हुए दादीराणी किसको अपना वर चुना उसका जिक्र इस प्रकार है|
सर्वखाप में अंतर्जातीय स्वयंवर का अनूठा संयोग: इतिहास पर नजर डालने पर पता चलता है कि यह युद्ध एक और ढंग से भी अनोखा था और वो था एक साथ कई वीरांगनाओं द्वारा स्वेच्छा से अंतर्जातीय वर चुनने का|
दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी ने प्रतिज्ञा की थी कि अपने समान योग्य वीर योद्धा से ही विवाह करूंगी| और क्योंकि उस समय पंचायत संगठन में स्वंयवर करने की विधि का प्रचलन था तो इस युद्ध के दो वर्ष पीछे भागीरथी देवी ने स्वेच्छा से पंचायत के सानिध्य में एक महा-तेजस्वी पंजाब के रणधीर गुर्जर योद्धा से विवाह किया| इसके साथ ही कुछ और भी देवियों ने स्वंयवर किये, जिनमें दो देवियों के विवाह विवरण इस प्रकार हैं|
उसी काल में
दादीराणी महादेवी गुर्जर वीरांगना ने दादावीर बलराम जी नाम के जाट योद्धेय से स्वयंवर किया|
वीरांगना महावीरी रवे की लड़की ने अपने समान दुर्दांत योद्धेय दादावीर भद्रचन्द सैनी जी से विवाह किया|
एक
राजपूत जाति की लड़की ने कोली जाट वीर योद्धेय से विवाह किया|
इसी प्रकार
भंगी कुल की तथा ब्राह्मण कुल की कन्याओं ने भी अपनी मनपसंद वीरों से स्वयंवर किये|
खापों के इतिहास में ऐसे यह अपने-आप में ऐसा विलक्षण अवसर था जब एक साथ इतनी वीरांगनाओं ने स्वयंवर किये थे| और एक बार फिर समाज में यह सन्देश गया था कि सर्वखाप एक जातिविहीन, ऊंच-नीच व् वर्ण-व्यवस्था रिक्त सामाजिक तंत्र है| अत: इसमें जातीय-कुल-वंश-रंग-भेद के हिसाब से कोई भेदभाव नहीं था| उस समय भंगी टट्टी-मैला नहीं उठाते थे, अपितु अन्य किसानी जातियों के सहयोगी बन उनके खेतों में कार्य करते थे अथवा अपनी खुद की खेती भी बहुत से करते थे| इनका दूसरा प्रमुख कार्य होता था ललकार यानी मुनादी करना| यह मैला उठाने का कार्य कुछ जातीय तंत्र की जटिलताओं के चलते चला जिसको कि बाद में देश की गुलामी के काल में और भी प्रखर हवा मिली, और आज तलक जारी है| आज के दिन इस लोकतान्त्रिक युग में यह बिलकुल बंद होना चाहिए|
चलते-चलते दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी की जीवनी को काव्य रूप में संजोती यह कविता:
जब तक मुंह ना लावें, ना लावें, लावें तो खींच लें खाल चर्म से:
चंगेजों की उड़ी धज्जियाँ, जब चली रणचंडी चढ़ के,
घोड़े की जब चापें पड़ें, धरती जाए दहल पल में|
सर्वखाप चले जब धुन में, दुश्मनों के कलेजे फड़कें,
दिल्ली-मुल्तान एक बना दें, मौत नाचती दिखे घन में||
जब प्रकोप जाटणी का झिड़के, दुश्मन पछाड़ मार छक जे,
पिंड छुड़ा दे दादीराणी से, अल्लाह रहम कर तेरे बन्दे ते|||
चालीस हजार की महिला आर्मी खड़ी कर दूँ क्षण में,
जहां बहेगा खून हमरे मर्दों का, हथेली ताक पे धर दें|
वो आगे-आगे बढ़ चलें, हम पीछे मलीया-मेट कर दें,
अटक नदी के कंटकों तक दुश्मन की रूह चली कतरते||
खापलैंड की सिंह जाटणी हूँ, तेरी नाकों चणे भर दूँ,
दुश्मन बहुत हुआ भाग ले, नहीं "के बणी" वाली कर दूँ|||
पच्चीस कोस तक लिए भगा के, दुश्मन के पसीने टपकें,
खुल्ला मैदान है तेरा भाग ले, विचार करियो ना मुड़ के|
पार कर गया तो पार उतर गया, वर्ना लूंगी साँटों के फटके,
चालीस हजार योद्ध्यायें नभ में, यूँ करें कोतूहल चढ़-चढ़ के||
सर्वखाप है यह हरयाणे की, बैरी नहीं लियो इसको हल्के-हल्के,
जब तक मुंह ना लावें, ना लावें, लावें तो खींच लें खाल चर्म से|||
प्राण उखड़ गए मामूर के, 36 धड़ी सिंहनी ने जब लियो आंट में धर के,
अढ़ाई घंटे तक दंगली मौत खिलाई, फिर फाड़ दिया छलनी करके|
ब्रह्मचारिणी दादीराणी क्या दुर्गा क्या काली, सब दिखी तुझमे मिलके,
दुश्मन भोचक्को रह गयो, ये क्या बला आई थी घुमड़ के||
हरियाणे की सिंहनी गर्जना से, मंगोलों के सीने यूँ थे चटके,
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फुल्ले भगत" पे मेहर हो माता, दूँ छंद तुझपे निराले घड़-घड़ के|||
विशेष: दादीराणी के जीवन के अन्य पहलुओं पर शोध जारी है व् वक्त के साथ इस अध्याय में और तथ्य समाहित किये जाते रहेंगे|