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!!!......गंभीरतापूर्वक व् सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी राय रखना - बनाना, दूसरों की राय सुनना - बनने देना, दो विचारों के बीच के अंतर को सम्मान देना, असमान विचारों के अंतर भरना ही एक सच्ची हरियाणवी चौपाल की परिभाषा होती आई|......!!!
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जेंडर-इक्वलिटी
अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो

If they seriously wish to build a society of gender-equality and sensitivity
"इनको एडिट करवाइए - then get the things edited"

सविनय निवेदन है कि जो यह मानते हों कि धर्म, ग्रन्थ, पुराण इत्यादि व्यक्ति के आस्था, विश्वास, चरित्र, सभ्यता, लिंग-समानता, रंग-भेद, जातिवाद को पैदा या प्रभावित नहीं करते वो इस लेख को कृपया ना पढ़ें। यह लेख उन प्रगतिशील लोगों के लिए है जो यह मानते हैं कि हमें समय के अनुसार समाज की विचारधारा और बदलाव का रूख देख धार्मिक चरित्रों, किस्सों, किरदारों में भी संसोधन करते रहना चाहिए। समय ऐसी चीज होती है जिसमें कभी पुरुष-प्रधानता रही है तो कभी जातिवाद और वर्णवाद का एकछत्र राज रहता आया है। ऐसे ही आज बदलते भारत की इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी जेंडर-इक्वलिटी और सेंसिटिविटी की बातें करने लगी है तो ऐसे में लाजिमी है कि हमारी मान्यताओं व् आस्थाओं में भी यह बदलाव हो। हमारे धार्मिक पात्र, प्रेरणास्त्रोत व् सभ्यता वाहक चरित्रों में भी


ऐसे बदलाव होने चाहियें जो इक्कीसवीं सदी की इन अपेक्षाओं पर खरे उतरते हों। ऐसे ही कुछ बिन्दुओं पर चिंतन करता हुआ है यह लेख आपके चिंतन हेतु प्रस्तुत है:

  1. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक गौतम ऋषि जी की सती नारी अहिल्या के सतीत्व को भंग करने वाले इंद्र देवता को स्वर्ग का अधिपति बने रहने दिया दिखाया जाता रहेगा और अहिल्या देवी की गलती ना होने पर भी उन्हीं को पत्थर का बनाता दिखाया जाता रहेगा? रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और दिखाएँ कि इंद्र देवता को इतने जिम्मेदाराना पद पे रहते हुए ऐसा घोर कृत्य करने के लिए गौतम ऋषि जी ने प्रबुद्ध वर्ग की सभा बुलवाई और इंद्र देवता जी को पहले तो स्वर्ग के अधिपति के पद से सदा के लिए हटा दिया गया और फिर उनको नरक के घोर-से-घोर अंधकारों वाले कोनों में रहने का आजीवन कारवास दिया गया। आखिर यह स्वर्ग का मामला है कल को हमारी बहु-बेटियाँ भी मर के स्वर्ग में जायेंगी तो ऐसे में ऐसे घोर बलात्कारी के आधिपत्य में स्वर्ग की सुरक्षा कैसे छोड़ी जा सकती है? इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  2. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक अहिल्या माई को राम जी के पैर छुवा के जीवित करवाता हुआ दिखाया जायेगा? रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और अब से राम जी के पैर छुवाने से नहीं अपितु पत्थर के आगे प्रार्थना करने से या हाथ से छुवा के आहिल्या जी को जीवित करवाया जाता हुआ दिखाया जाए, अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  3. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक अकेले सीता जी को ही अग्नि में प्रवेश करते हुए दिखाया जायेगा? रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और राम जी को भी अग्नि में प्रवेश करवाना शुरू करवाएं, आखिर राम जी भी तो दस महीने तक सीता जी से दूर रहे थे| इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  4. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक भरत जी तीनों राजमाताओं के जिन्दा होते हुए सिंहासन पे राम जी की पादुकाएं रख के राज चलाते हुए दिखाए जायेंगे? उन राजमाताओं को सिंहासन पे बिठाओ भाई। मुझे नहीं अच्छी लगती वो एक स्टेटस सिंबल की भांति राजभवन की साइड वाली चेयर्स पे बैठी हुई, क्या कोई फॉर्मेलिटी है क्या औरत के प्रति सम्मान दिखाने की? रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और दशरथ जी के मरने के बाद जब तक राजमातायें जिन्दा हैं तो किसी पुत्र का क्या हक़ सिंहासन पे बैठने का, इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  5. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक लछमन जी द्वारा स्रुपणखा की नाक काटते हुए दिखाया जायेगा? आखिर उसने अपने प्यार का इजहार ही तो किया था, प्यार को पाने की कोशिश ही तो की थी तो क्या अगर वो नहीं मानती है तो सामने वाला उसकी नाक ही काट देगा, ठीक वैसे ही जैसे आज के लड़के लड़की के ना मानने पर उसके चेहरे पर तेज़ाब वगैरह डाल देते हैं? कोई जबरदस्ती है क्या? इसलिए इस चैप्टर को भी एडिट किया जाए और या तो स्रुपणखा की नाक काटने पे लछमन जी को जेल जाता हुआ दिखाया जाए या फिर स्रुपणखा को किसी और तरीके से मनाता हुआ दिखाया जाए। रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और ये प्यार के ना मानने पे उसपे तेज़ाब डालने जैसी हठधर्मिता के किस्सों को एडिट किया जाए, अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो|

  6. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक बहन की इज्जत का बदला लेने के लिए रावण द्वारा सीता का हरण होता दिखाया जायेगा? ऐसे उदाहरणों को लोग अपनी स्त्री की इज्जत का बदला लेने के लिए सबसे उत्तम तरीका मान बैठते हैं कि अपनी स्त्री का नुक्सान मतलब सामने वाले की स्त्री का नुकसान करके नुकसान की भरपाई। रावण जी को राम जी से बदला ही लेना है तो कुछ और सोचो, नया सोचो ऐसा सोचो जिसमें कम से कम औरत का बदला औरत ना हो| रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और स्वर्ण मृग के चैप्टर की जगह कुछ और सोचें अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो।

  7. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक धोबी के कहने पर अकेली गर्भवती सीता जी ही वन छुड़वा दी जाती रहेंगी? अब से राम जी को भी साथ वन भेजा जाए। और अगर कोई राजकाज का बहाना बना राम जी को अयोध्या में ही रखवाने की वकालत करे तो उससे कहो कि राजकाज चलाने के लिए छोटे भाई हैं वो भी पूरे चौदह साल के एक्सपीरियंस के साथ वाले। राम जी फिर से अपनी पादुकाएं सिंहासन पर रख दें, राजकाज भरत जी देख लेंगे। और फिर वापिस तभी आयें जब अयोध्या की जनता वन जा के दोनों से माफ़ी मांगे, वैसी ही माफ़ी जो सीता जी की धरती में समाते वक्त मांगते हुए दिखाया जाता है। आखिर यह माफ़ी इस तरीके से भी तो मंगवाई जा सकती है| रामायण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और सीता जी को फिर से वन में अकेली नहीं अपितु राम जी को साथ भेजें अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो।

  8. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक लक्ष्मी जी को विष्णु जी के चरणों में ही बैठाया दिखाया जाता रहेगा? विष्णु-पुराण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और लक्ष्मी जी को विष्णु के बराबर बैठाया हुआ दिखाया जाए। औरत को पैरों की जूती कहने और समझने पे ऐतराज करने वाले अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  9. इक्कीसवीं सदी में आके भी जब हॉनर किलिंग पर चर्चाओं-बहसों के बाजार गर्म हैं तो अब कब तक श्री परशुराम जी को हॉनर के लिए उनकी माता रेणुका देवी जी का शीश काटते हुए दिखाया जाता रहेगा? विष्णु-पुराण पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और अगर रेणुका देवी जी से अपराध हुआ भी था ऐसा माना जाता है तो उसका कोई और हल दिखाया जाए और माता पर पुत्र का हक़ उसको मारने का कभी नहीं ना हो ऐसा दिखाना शुरू करना चाहिए, इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  10. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक श्री राधा जी को श्री कृष्ण जी के प्यार में भटकती हुई दिखाया जाता रहेगा? महाभारत और श्री कृष्ण-लीला पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और बरसाने की इस छोरी से ही श्री कृष्ण का ब्याह होता दिखाया जाना शुरू किया जाए, ताकि ज़माने में औरत को कोई प्यार करके छोड़ देने वाली वस्तु ना समझें।

    आखिर कब तक श्री कृष्ण को यह कहके कि उनको राष्ट्र और समाज धर्म के कार्य करने हेतु राधे जी को छोड़ना पड़ेगा दिखाया जाता रहेगा? जबकि उन्हीं राष्ट्र व् समाज धर्म का उस वक्त जिक्र तक भी नहीं आया जब उनका रुकमणी जी से ब्याह हुआ| बल्कि रुकमणी से उनके ब्याह को उचित ठहरवाने हेतु तर्क प्रस्तुत किया गया था कि एक तो रुक्मणी जी श्री कृष्णा से प्यार करती थी और दूसरा रुक्मणी जी की शादी उनकी इच्छा के विरुद्ध हो रही थी जबकि दोनों बातें राधा जी के मामले में भी तो यही थी कि राधा जी को उनसे प्यार भी था और उनकी इच्छा के विरुद्ध उनकी सगाई भी श्री कृष्णा के सामने ही हो रही थी, एकता कपूर ने "कहानी हमारी महाभारत की" में भी इसको बदला नहीं अपितु यथावत पुनरावृति कर दी| इसलिए इस तर्क को हटा के अब से राधा जी से उनका ब्याह होता हुआ दिखाया जाए। हो सकता लड़के इससे सीख ले के लड़कियों को उनकी भावनाओं को भड़का उनसे खेलने की चीज समझना छोड़ दें या कम से कम उनको अपने ग्रन्थों में ऐसे अध्याय ना मिलें जिनसे ऐसी मानसिकता को बल मिलता हो| इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  11. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक पितामह भीष्म द्वारा काशी नरेश की तीन राज-कन्याओं अम्बा-अम्बिका-अम्बालिका का हठपूर्वक हरण होता हुआ दिखाया जाता रहेगा? महाभारत पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और अगर हस्तिनापुर को काशी राज्य द्वारा काशी की तीनों राज-कन्याओं के स्वयंवर में आने का निमंत्रण ना पाने से खेद था तो भीष्म जी ने अपने शौर्य और ताकत का प्रयोग अपने भाई विचित्रवीर्य को उस स्वयंवर सभा में खड़ा करवाने में किया, ऐसा दिखाया जाए और फिर चुनने दिया जाए तीनों राज-कन्याओं को अपना वर। अगर उनमें से किसी को विचित्रवीर्य पसंद होंगे तो वो स्वयं ही उनको वरमाला पहना देंगी। और इससे अम्बा को भी जन्म-पे-जन्म ले प्रतिशोध हेतु भटकना नहीं पड़ेगा| आखिर ये "जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाले किस्से दिखा मानवता को कब तक रौंदता हुआ दिखाते रहेंगे, इससे समाज में मूढ़ता बनी रहती है| इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  12. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक धर्मराज जैसे धर्म के विदूषक के हाथों प्रोपर्टी समझ बिना पत्नी की इच्छा व् आज्ञा जाने उसको जुए में दांव पे लगता हुआ दिखाया जाता रहेगा? महाभारत पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और या तो द्रोपदी को दांव पे लगाने से पहले धर्मराज को उसकी आज्ञा लेते हुए दिखाया जाए या फिर इस अध्याय को बिलकुल ही खत्म कर दिया जाए| और पांडवों को बिना पत्नी को जुए में लगाए ही हरवा दिया जाए, यानी उनका जुए में सब-कुछ हार जाने का सिलिसला द्रोपदी वाले चैप्टर तक यूँ -का-यूँ रखा जाए और द्रोपदी को दांव पे लगाने वाला किस्सा ना दिखाया जाए| फिर भी सीरियल वालों को यदि लगता है कि अच्छी टी. आर. पी. नहीं मिलती है तो उसका अन्यथा उपाय सोचें| इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

  13. इक्कीसवीं सदी में आके भी अब कब तक द्रोपदी का चीरहरण दिखाया जाता रहेगा? ऐसे अध्यायों से इंसान स्त्री को जलन, विद्वेष और बदला लेने का माध्यम समझ लेता है| उसको ऐसी वस्तु समझ लेता है कि जिस पर हठ व् बलपूर्वक अधिपत्य जमाया जा सकता है। महाभारत पे सीरियल, फ़िल्में व् डोक्युमेंट्रि बनाने वाले एडिट करें इस चैप्टर को और द्रोपदी चीरहरण के इस अध्याय को बिना दिखाए ही पांडवों को वनवास मिलता दिखा दिया जाए| इसलिए अगर वो सही में समाज में जेंडर-इक्वलिटी एंड सेंसिटिविटी को ले के सीरियस हैं तो करें ये एडिटिंग।

समीक्षा: हमारे धार्मिक अध्यायों में ऐसे अनगिनत किस्से-हादसे विद्यमान हैं जो अगर आज इक्कीसवीं सदी में भी जीवित रखने हैं या फिल्म व् सीरियल बना के पैसे कमाने का जरिया ही बनाने हैं तो इनमें से कम से कम ऐसे भाग या तो एडिट किये जाएँ अथवा निकाले जाएँ जो लिंग-नस्ल-वर्ण भेद के पर्याय रहे हैं। क्योंकि जब तक एक सामाजिक नेता-अभिनेता-चरित्र के रूप में इनकी पुनरावृति होती रहेगी, तब तक मुश्किल है कि हम हमारी पीढ़ियों की नारी के प्रति सोच को बदल पायें। क्योंकि अंतत: हमारे बच्चे फिल्म-सीरियल आदि के जरिये देखते तो इन्हीं चीजों को हैं और इनका उनकी सोच पर इतना गहरा प्रभाव होता है कि जो आगे चलकर समाज में लिंग-नस्ल-वर्ण भेद बढ़ाने के धोतक-सूत्र साबित होते हैं।

अगर हमें वास्तव में हमारे समाज को लिंग-भेद के दानावल से मुक्त करना है तो हमें हमारे आध्यात्म और धर्म के स्त्रोतों को भी संसोधित करना होगा। क्योंकि धर्म और आध्यात्म ऐसी चीजें और जरिये हैं जिनसे हम में एक उत्तम इंसान बनने के गुण संचारित होते हैं, इसलिए ये गुण तमाम तरह की लिंग-भेद की बातों, किस्सों और कहानियों से रिक्त होने चाहिए। अन्यथा सिर्फ समाज में प्रवचन दे के उसको सुधरने के अपने वहम से हम कभी समाज को अपने सपनों का समाज नहीं बना पाएंगे|

जगमती सांगवान जी से ले रंजना कुमारी जी, ममता शर्मा जी से ले गिरिजा व्यास जी, बृंदा करात जी से ले किरण बेदी जी, संज्ञान लीजिये इन बातों का। टी. वी. में भी तो बहुत सारी लेडी एंकर बैठी हैं, आप तक भी आवाज जाती हो तो संज्ञान लीजिये इन बातों का। "क्या सुपरकूल हैं हम" वाली एकता कपूर जी भी संज्ञान लें इस बात का|

और हो सके तो रामलीला करवाने वाले महानुभाव भी संज्ञान लें इस बात का और एडिट करें इन चैप्टर्स को ताकि मर्द द्वारा औरत को प्रोपर्टी समझा जाना बंद ना हो तो कम तो हो|

और ऐसा हो सकता है क्योंकि: 16 सितम्बर 2013 से स्टार प्लस पर महाभारत का जो नवीनीकृत संस्करण प्रारम्भ हुआ है उसका धृतराष्ट्र विवाह तक का किस्सा देखा और देख कर अचंभित रह गया कि मैं हिन्दू होने पे गर्व करूँ या अपने आप को कोसूं? कुछ दिन पहले मैंने फेसबुक पर देखा था कि कुछ महानुभाव एक टूथपेस्ट की ऐड को ले के कितनी अद्भुत स्मरण शक्ति का परिचय दे रहे थे कि उन्होंने कोलगेट की धूर्तता को पल में तब पकड़ लिया जब वो पंद्रह साल पहले एक टूथपेस्ट को बिना नमक वाला बढ़िया होता है बता के बेच रही थी और आज उसी को नमक वाला होना जरूरी होता है बता के उसमें नमक है ऐसा कह के बेच रही थी।

ऐसा ही किस्सा इस नई-नई शुरू हुई महाभारत में भी देखने को मिला कि कैसे मच्छ-कुमारी सत्यवती ने अपने ब्याह की वो शर्त जो इससे पहले उसके पिता द्वारा राजा शांतनु के सामने रखी जाती आ रही थी, आज वाली महाभारत में उसको स्वयं रखते हुए दिखाया गया। जबकि इससे पहले की तमाम महाभारतों में और पाठ्य -सामग्रियों में यह शर्त उसके पिता नें ही रखी थी ऐसा दिखाया गया था, फिर चाहे वो C.B.S.E., N.C.E.R.T. या हरियाणा बोर्ड की पाठ्य-पुस्तकों की बात हो, या महाभारत के मूल संस्करण की, या दो दशक पहले बी. आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित महाभारत की हो| अभी हाल-ही के सालों में एकता कपूर वाली "कहानी हमारी महाभारत की" वाले सीरियल में भी यह शर्त सत्यवती के पिता द्वारा रखी गई ऐसा ही दिखाया गया था। तो फिर अब एक दम से महाभारत की मूल कृति से यह छेड़छाड़ क्यों? आखिर ये धर्म वाले कहाँ बैठे हैं जो उनकी मान्यताओं को कम्पनियों की भांति बदल के परोसा जा रहा है और वो चुप हैं?

और इसी नई परोसी जा रही महाभारत में दूसरा बदलाव अम्बा वाले चैप्टर को ले के किया गया है जहां दिखाया गया है कि महारानी खुद अम्बा को बता रही है कि भीष्म द्वारा उसके साथ हुए अन्याय का न्याय उसको परशुराम जी दिलवा सकते हैं, जबकि पुरानी महभारत में अम्बा को 'परशुराम जी उसकी समस्या का हल जानते हैं' यह जानने के लिए भी पहले तपस्या करनी पड़ी थी। मतलब अभी असली महाभारत तो शुरू भी नहीं हुई और उससे पहले के हिस्से में ही इतने महत्वपूर्ण बदलाव, महाभारत की मूल कहानी से इतना बड़ा छेड़-छाड़?

अगर सभ्य और सभ्रांत वर्ग ही धर्म के मामले में इतना अनिश्चित है तो साधारण समाज का क्या होता होगा? मेरे ख्याल से यह मामला तो टूथपेस्ट से भी गंभीर है। परन्तु महाभारत के इस नए संस्करण पर तो टूथपेस्ट एपिसोड पर प्रतिक्रिया देने वालों को भी प्रतिक्रिया रहित देखकर तो लगता है कि उनकी स्मरणशक्ति नें भी चादर ओढ़ ली है| और फिर अगर ऐसे ही ग्रंथों को कोई भी तोड़-मरोड़ के पेश कर सकता है तो फिर वो हिन्दू धर्म के सिरमौर कैसे कहे जाते हैं? आखिर हमारे मठाधीस-धर्माधीस ऐसी चीजें होने कैसे दे रहे हैं?

और अगर होने ही दी जा रही हैं तो फिर इनमें से पुरुष-प्रधानता से ले नश्ल व् वर्णभेद के सारे किस्से भी क्यों नहीं एडिट करवा दिए जाते लगे हाथों? ऐसे ही किस्से जैसे कि ऊपर के तेरह उदाहरणों में मैंने प्रस्तुत किये?

लगता है आज के दिन इन बदलावों से ज्यादा पैसा बन रहा है सो कल को अगर इन मेरे वाले बिन्दुओं में भी किसी को पैसा बनाने का जरिया सूझा तो ये लोग वो भी कर दें शायद। चलो पैसा कमाने के लालच में ही सही पर ये काम हो तो किसी तरह। परन्तु धर्म को पैसा कमाने के लिए एडिट करवाना तो मेरी मंशा नहीं। ऐसा बट्टा तो मैं मेरे धर्म पर नहीं चाहता। मैं तो चाहता हूँ कि धारावाहिक और फिल्म बनाने वालों से पहले समाज इसपे कदम बढाए, ताकि लिंग-भेद से ले नस्ल व् वर्णभेद के किस्सों-अध्याओं से हम अपने धर्म को सदा के लिए मुक्त कर सकें।

धन्यवाद!


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेखक: पी. के. मलिक

प्रथम संस्करण: 02/10/2013

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
इ-चौपाल के अंतर्गत मंथित विषय सूची
निडाना हाइट्स के इ-चौपाल परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

इ-चौपाल:


हरियाणवी में लेख:
  1. त्यजणा-संजोणा
  2. बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज
  3. हरियाणवी चुटकुले

Articles in English:
    General Discussions:

    1. Farmer's Balancesheet
    2. Original Haryana
    3. Property Distribution
    4. Woman as Commodity
    5. Farmer & Civil Honor
    6. Gender Ratio
    7. Muzaffarnagar Riots
    Response:

    1. Shakti Vahini vs. Khap
    2. Listen Akhtar Saheb

हिंदी में लेख:
    विषय-साधारण:

    1. वंचित किसान
    2. बेबस दुल्हन
    3. हरियाणा दिशा और दशा
    4. आर्य समाज के बाद
    5. विकृत आधुनिकता
    6. बदनाम होता हरियाणा
    7. पशोपेश किसान
    8. 15 अगस्त पर
    9. जेंडर-इक्वलिटी
    10. बोलना ले सीख से आगे
    खाप स्मृति:

    1. खाप इतिहास
    2. हरयाणे के योद्धेय
    3. सर्वजातीय तंत्र खाप
    4. खाप सोशल इन्जिनीरिंग
    5. धारा 302 किसके खिलाफ?
    6. खापों की न्यायिक विरासत
    7. खाप बनाम मीडिया
    हरियाणा योद्धेय:

    1. हरयाणे के योद्धेय
    2. दादावीर गोकुला जी महाराज
    3. दादावीर भूरा जी - निंघाईया जी महाराज
    4. दादावीर शाहमल जी महाराज
    5. दादीराणी भागीरथी देवी
    6. दादीराणी शमाकौर जी
    7. दादीराणी रामप्यारी देवी
    8. दादीराणी बृजबाला भंवरकौर जी
    9. दादावीर जोगराज जी महाराज
    10. दादावीर जाटवान जी महाराज
    11. आनेवाले
    मुखातिब:

    1. तालिबानी कौन?
    2. सुनिये चिदंबरम साहब
    3. प्रथम विश्वयुद्ध व् जाट

NH Case Studies:

  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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