तख्त बदल गए, दरख्त बदल गए, बदली नहीं गुलामी,
विडम्बना रोती अर्श पर, गिरफ्त गिद्दों की देश की चाबी।
जनता रूठे पर सिंहासन ना छूटे, करो चाहे जो मनमानी,
कौन आत्मा कराहती बनाने को, देश की छटा असमानी? |
|
हमारे भारतवर्ष की आजादी के छयासठवें पर्व पर मैं कामना करता हूँ कि हमारे देश की व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन लाने का संकल्प हो:
-
देश में यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू हो!
-
J&K और तमाम ऐसी जगह जहां राष्ट्र विरोधी (Anti-Nation), आतंकवाद (Terrorism) और अलगाववाद वाले (Extremists) सक्रिय हैं उनको नियंत्रित करने के लिए भारतीय आर्मी को विशेषाधिकार दे| ऐसे तत्वों को नियंत्रित करने अथवा समाप्त करने हेतु हमारी आर्मी के हाथ खोल दिए जाएँ।
-
फ्रांस व् अमेरिका की तरह भारत के सर्वोच्च पद जैसे कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री चुनने का हक़ सीधा जनता को होना चाहिए, इसमें किसी पार्टी के मुखिया या चुनिन्दा सांसदों का कोई दखल नहीं होना चाहिए। हाँ सांसद अगर प्रधानमन्त्री चुने तो चलेगा लेकिन प्रधानमन्त्री चुनना सांसदों के हाथ में ना हो सीधा जनता के हाथ में हो।
-
लोकसभा की तर्ज पर राज्यसभा के सांसद भी जनता ही चुने, किसी पार्टी, व्यक्ति-विशेष अथवा सरकार को इन्हें चुनने का अधिकार ना हो|
-
या तो सरकार मार्किट के सभी प्रकार के उत्पादों (Products) के मूल्य निर्धारण को अपने नियंत्रण में ले अन्यथा व्यापारियों और अन्य उत्पादकों की भांति, किसान को भी उसके उत्पाद के मूल्य निर्धारण का हक़ दिया जाए।
-
देश के हर एक गाँव को एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था माना जाए, और उस गाँव और उसकी स्थानीय जनता द्वारा चुनी हुई पंचायत को वो सब सुविधाएँ और व्यवस्थाएं विकसित करने का अधिकार और सुविधा हो जिससे कि गावों से लोगों का शहरों की तरफ पलायन कम हो| एक मत के अनुसार हमारे C और D श्रेणी के निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की मानवीय संसाधन की कमाई, ऊर्जा, समय और स्वास्थ्य गाँव से रोजगार वाले शहर के बीच लटके रहने यानी जिंदगी को व्यवस्थित करने में ही व्यय हो जाती है।
-
हर प्रकार के सरकारी महकमे के पास दस हजार से ज्यादा जनता का बोझ ना हो और इनके दफ्तर किसी शहर में ना हो दस हजार की जनसँख्या के घनत्व के मध्य बनाए जाएँ। आज क्या हो रहा है कि छोटे से भी सरकारी काम के लिए जनता को शहरों में बने इनके दफ्तरों की तरफ भागना पड़ता है जिसमें भरी वक्त और पैसा खर्च होता है। जबकि वही सरकारी कर्मचारी को इनके बीच दफ्तर बना के दिया जाए तो जनता को कितना चैन और आराम होगा।
-
सरकारी कर्मचारी अपने आपको जनता का सेवक समझे, माई-बाप नहीं|
-
सारा विकास दिल्ली, मुंबई, NCR और देश के 5-6 चुनिन्दा शहरों में ही केन्द्रित ना करके दूर-दराज के राज्यों और क्षेत्रों तक भी पहुँचाया जाए, ताकि लोगों को विस्थापितों की जिंदगी जीना कम हो।
-
RTI कानून के दायरे में देश का हर प्रकार का राजनैतिक, सामाजिक व् आर्थिक संगठन आये।
-
देश के हर सरकारी महकमे की हर Grade (A, B, C, D) के कर्मचारी की तनख्वा न्यूनतम इतनी जरूर हो कि उसको रिश्वत लेने के लिए यह बहाना कम-से-कम ना मिले कि सरकारी तनख्वाह में तो घर भी नहीं चलता। और यह सत्य है आज भारत सरकार के अधिकतर विभागों में न्यूनतम तनख्वाह इतनी कम है कि कर्मचारी उस तनख्वाह में 2 बच्चों के परिवार का लालन-पालन नहीं कर सकता|
-
देश की स्वास्थ्य सेवाओं का केन्द्रीकरण करके 'National Social Security System’ के तहत राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए। और हर डॉक्टर को गाँव व् शहरी दोनों क्षेत्रों में जनता (Population Volume) फिक्स कर दी जाए कि इस क्षेत्र (गाँव-कालोनी-कस्बे) की इतनी जनता की फर्स्ट-ऐड (First-Aid) की जिम्मेवारी और इनके हेल्थ रिकॉर्ड (Health Record) रखने और उसे ‘national social security system database’ में डालने की जिम्मेदारी और इसको अपडेटेड (Updated) रखने की जिम्मेदारी तुम्हारी होगी।
-
चुनावों के वक्त देश के हर क्षेत्र से MLA और MP बनने के इच्छुक नेताओं/सामाजिक कार्यकर्ताओं के कम से कम 3 (अधिक से अधिक जितनी जरूरी हों) डिबेट T.V. चैनल पे उसी क्षेत्र की जनता के सामने उसी क्षेत्र की भाषा में करवाए जाएँ। जिससे कि चुनावों में जाने से पहले नए खून को अपने होने वाले जन-प्रतिनिधि की सोच और दूरदर्शिता का पता हो|
-
देश की समाज-सेवी और गैर-सरकारी संस्थाओं (NGOs) को चाहिए कि वो देश में व्याप्त किसी भी बिमारी पे बिमारी का पता लगाने हेतु सर्वे करें और इसको सुनिश्चित किया जाए कि वो इसकी आड़ में समाज में जातिवाद-भाषावाद अथवा क्षेत्रवाद तो नहीं फैला रहे हैं। और जो संगठन ऐसा करता पाया जाए उसको तुरंत प्रभाव से सलाखों के पीछे धकेल देना चाहिए। हमारे देश में समाज की भलाई का ढोंग रच बड़ी-बड़ी ग्रांट डकारने वालों पे लगाम लगाई जाए|
-
डोनेशन (Donation) दे के होने वाली हर प्रकार की पढ़ाई ख़त्म की जाए। क्योंकि अब यह रिश्वतखोरी रुपी भ्रष्टचार के वृक्ष का वो बीज बन चुका है जिसका हवाला दे डॉक्टर से ले इंजिनियर तक यह बहाना बना लेते हैं कि डोनेशन में लगाया गया पैसा तो वसूल करेंगे ही और वह सिलसिला अंतहीन बढ़ता जाता है|
-
देश में नौकरियों में आरक्षण का आधार जातिगत से बदल कर आर्थिक व् मानव विकास के संसाधनों की उपलब्धता के आधार पे कर देना चाहिए। क्योंकि अब जातिगत आरक्षण भी आरक्षित जातियों में नीचे तक नहीं जा रहा है और अधिकतर वही परिवार बार-बार आरक्षण का लाभ लिए जा रहे हैं जो पहले एक दो या तीन बार ले चुके हैं| स्थिति ऐसी हो गई गई जैसे कि आरक्षण जाति-विशेष में भी धनाढय एवं प्रभावशाली बन चुके परिवारों की ही पहुँच तक रह गया है|
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
लेखक: पी. के. मलिक
प्रथम संस्करण: 15/08/2013
प्रकाशन: निडाना हाइट्स
प्रकाशक: नि. हा. शो. प.
उद्धरण:
|