अपराधी कौन?
बधाई शब्द: कोई गैर सरकारी संगठन और सरकारी तौर पर खुली हुई सामाजिक संस्थाएं जो काम पैसे, बिजनेस और रूतबे के लिए करती हैं वो खापों ने एक झटके में कर दिया| क्या कोई टी वी शो या प्रोग्राम वाला सामाजिक हित पे इतनी बड़ा जन-समर्थन जोड़ सन्देश दे सकता है?....शायद ही कोई...और कोई करेगा भी तो पहले पैसे मांगेगा...और यहाँ देखो हर कोई सिर्फ एक बुलावे मात्र पे दौड़ा चला आया....वाह री हिंदुस्तान की खापो और महिलाओं!.....एक साथ आई तो धमाल मचा दिया, दुनिया के हर कोने में चर्चा है आपके इस कदम की| बीबीपुर कन्या-भ्रूण ह्त्या सर्व-खाप महापंचायत की इस अद्भुत एवं अविस्मर्णीय पहल और सफल आयोजन पर आप सबको बधाई!........ये गैर सरकारी संगठन और सामाजिक ट्रस्ट वाले तो भोचक्के रह गए होंगे....कि जिन मुद्दों को वो जिंदगी का ध्येय बना के चलते हैं....रोजगार के नाम पे समाज के ठेकेदार बनते हैं, बड़ी-बड़ी ग्रांट ढकारते हैं जब उन्हीं पे हरियाणवी ग्रामीण आँचल की खापें और महिलायें मिलके मैदान में उतरें तो सब धरे के धरे रह जाएँ और रह गए होंगे...इसे कहते हैं सौ सुनार की एक लुहार की| वाकई में खापों और ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा सामाजिक सुधार का मील पत्थर रख छोड़ा है कि जिस पर हमारी बेटियाँ ही नहीं पूरा देश युग-युगांतर तक गर्व करता रहेगा|
लेकिन:
पंचायत कुछ सवाल अधूरे छोड़ गई या छूट गए, जैसे कि: यह मांग तो कर दी कि कन्या भ्रूण हत्या में सलिंप्त को ३०२ के तहत फांसी दी जाए| यहाँ मेरे मन में प्रश्न कोंधा कि दोषी कौन होगा? क्या वो माँ जो सामाजिक और पारिवारिक दबाव बना के या डरा-धमका के भ्रूण परिक्षण के लिए मजबूर की जाती है और फिर लड़की का भ्रूण हो तो उस माँ को उसे गिराने के लिए तोड़ा जाता है? इस पुरुष-प्रधान समाज में एक औरत ऐसा अपनी मर्जी से करती हो शायद ही कहीं ऐसा सुना हो| फिर भी १ से ५ या १०% ऐसी औरतें हों भी तो भी ९०% से ज्यादा मामलों में तो पुरुष या परिवार का दबाव ही ऐसा काम करने को औरत को मजबूर करता है|
यहाँ गौर करने की बात यह भी है की भ्रूण हत्या भी २ प्रकार की है एक शादी के बाद की और दूसरी जो बिन ब्याही प्यार में धोखा खा या लड़कों के धोखापनी मिजाज के चलते या फिर हो सकता है अपनी सहमती वश जैसे कि लिव-इन-रिलेसन के चलते ही, पर माँ बनने के कगार पर पहुँच जाती है और उनके पास सामाजिक मर्यादा के हवाले से भ्रूण को गिराने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता| खैर हम जो इस महापंचायत में अधूरा छूटा उसी पर चर्चा करते चलते हैं|
अगर महापंचायत में भ्रूण-हत्या का दोषी कैसे निर्धारित हो और कौन हो उसको भी खोल के रखा जाता तो महापंचायत और सार्थक साबित होती| क्योंकि सिर्फ ये कह देने से की अपराधी को ३०२ के तहत दर्ज किया जाए, इससे तो सबसे बड़ा चाबुक पहले से ही प्रताड़ित भ्रूण गिराने को मजबूर की जाने वाली औरतों पर ही पड़ता दीखता है| इस फैसले में कुछ ऐसा भी जोड़ा जाता तो ज्यादा अच्छा होता:
- चूंकि हमारा समाज आज के दिन पुरुष-प्रधान समाज है और इसमें औरत पुरुष की मर्जी के बिना कुछ नहीं करती (कम से कम कन्या-भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध तो वो पुरुष की मर्जी के बिना करती होगी, इसमें मुझे संदेह है), इसलिए पुरुष को यानी उस भ्रूण के पिता को सबसे पहले अपराधी माना जायेगा और उस पर धारा ३०२ लगवाई जाए|
- जो डॉक्टर भ्रूण-हत्या में सलिंप्त पाया जायेगा और क्योंकि वो डॉक्टर यह अपराध इतना पढ़ा-लिखा और विदूषक के ओहदे पर हो के करता है तो दूसरा दोषी वो डॉक्टर होगा और उसको भी 302 के तहत धरा जायेगा| डॉक्टर यहाँ बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं क्योंकि आखिर हर कन्या-भ्रूण हत्या का मामला निकलता तो उनके हस्पतालों की नालियों से ही है और अगर वो ही समाज को असभ्यता का इतना घिनोना चेहरा पेश करेंगे तो फिर सभ्यता रह कहाँ जाती है|
इसलिए डॉक्टर सिर्फ कन्या के ही हत्यारे नहीं बल्कि समाज की सभ्यता की रक्षा करने में समर्थ होते हुए भी इसको अंजाम देते हैं इसलिए हत्यारे के साथ-साथ वो मानव सभ्यता के कातिल भी ठहराए जाएँ| यहाँ यह ध्यान रखना भी जरूरी होगा की सिर्फ ऐसी हत्या करने वाले डॉक्टर को इसका दोषी ठहराया जाए ना कि पूरी डॉक्टर-जमात को| और इस दर्द को खापें अच्छे से समझती होंगी क्योंकि उनके साथ अक्सर होता है, ख़बरें हो या टी वी वाले कहीं भी एक सामाजिक अपराध हुआ नहीं कि एक रेट-रटाये तोते की तरह बिना कोई छान-बीन किये बस खापों के मथ्थे मढ़ते आये हैं| उम्मीद है कि यह ऐतिहासिक महापंचायत मीडिया वालों को भी इस दर्द की समझ छोड़ेगी|
- कन्या-भ्रूण हत्या करवाने वाले परिवार को भी दोषी माना जाए और उनको 302 की जगह कोई और छोटी सजा का प्रावधान रखवाया जाए|
- लड़की की माँ को क्या सजा हो?: जब तक हमारा समाज पुरुष-प्रधान रहेगा, लड़की की माँ को सजा निर्धारण एक जटिल मसला रहेगा फिर भी अगर भ्रूण लड़की की माँ की स्वेच्छा से गिरवाया गया है तो उसको भी 302 के तहत बुक किया जाए| लेकिन अगर सबकुछ उसको मजबूर करके किया गया हो तो उसको सजा नहीं बल्कि किसी जागरूकता केंद्र या सरकारी संस्था से जोड़ा जाए और अपना मनोबल और आत्म-सम्मान खो चुकी उस औरत के मानसिक पुनर्वास को सुनिश्चित किया जाए| उसको बताया जाए कि वो घरवालों के ऐसे दबाव के खिलाफ कब, कैसे और कहाँ पर शिकायत कर सहायता मांगी जा सकती है| और इसके बाद भी अगर वो दूसरी बार ऐसा अपराध करे तो फिर उसको सबसे पहला अभियुक्त बनाया जाए, उसके पति से भी पहला|
अब आते हैं महापंचायत के दूसरे फैसले पर जिसमें कहा गया कि खापें अपने स्तर पर अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में इस अपराध से अपने-अपने स्तर पर निबटेंगी| कन्या भ्रूण हत्या के मसले पर ऐसा निर्णय समझ से बाहर लगा| माना कि खापों का प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़ा है, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और इन राज्यों से लगते पड़ोसी राज्यों के सीमांती जिलों तक इनका फैलाव है इसलिए थोड़े-बहुत सामाजिक मूल्य भिन्न मिलना लाजमी है पर कन्या-भ्रूण हत्या जैसे मसले पर तो सभी क्षेत्रों की एक ही राय होने में क्या हर्ज है| इससे बल्कि हमारी एकता और भाई-चारे को ही बल मिलता| हो सकता है और जैसा की पढने को भी मिला कि एक और महापंचायत बुलाई जा रही है इस मुद्दे पे तो उसमें इसपे कोई निर्णय हो पर इस मुद्दे पर इस पूरे क्षेत्र के लिए एक ही सहमती का विधान बने तो और भी अच्छा होगा|
सही कदम: खाप पंचायते, खापों के चौधरी और तपा चौधरी ही आयोजित कर सकेंगे| यह निर्णय बहुत जरूरी था| इससे मीडिया और समाज में इन किवदंतियों पर विराम लगेगा जिनके तहत हर चौराहे पर मन-घडन्त चार लोग इकठ्ठे हुए और खाप-तपा का हवाला दे कर किसी भी उद-जुलूल मुद्दे पे चौधरी बन फैलसा थोंप देते हैं| उदाहरण के तौर ऑनर किल्लिंग के मामले, जिनमें खापों को बेवजह घसीटा जाता रहा है| ऐसी कुकरमुत्ता पंचायतें दूसरों को उनकी जमीन-जायदाद से बेदखल करवाने हेतु और उन पर अपना कब्ज़ा जमाने वाली गिद्दों की दृष्टी वाले भाई-चारे के लोग ही करते हैं और बहाना हो जाता सामाजिक मान-प्रतिष्ठा का और फिर फांस पड़ती है खापों के मथ्थे| उम्मीद है कि यह कदम खापों की सही छवि को प्रस्तुत करने का दूसरा ताजा बड़ा कदम होगा|