इ-चौपाल
 
हरियाणा-योद्धेय
 
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!!!......गंभीरतापूर्वक व् सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी राय रखना - बनाना, दूसरों की राय सुनना - बनने देना, दो विचारों के बीच के अंतर को सम्मान देना, असमान विचारों के अंतर भरना ही एक सच्ची हरियाणवी चौपाल की परिभाषा होती आई|......!!!
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भूरा जी-निंघाईया जी
हरियाणा यौद्धेय उद्घोषम्
"दादा नगर खेड़ा (दादा बड़ा बीर/दादा खेड़ा/दादा बैया/दादा भैया/बड़े दादा/बाबा भूमिया)"
मोर पताका: सुशोभम
जींद की कटखाणी धरती के दो दुःसाहसी खाप-योद्धेयों की अमर-गाथा
"हरियाणा योद्धेय" की परिभाषा: इसमें "हरियाणा शब्द" इसके ऐतिहासिक प्राचीन वास्तविक स्वरूप को इंगित करता है जिसके तहत आज का हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान होते थे| "योद्धेय शब्द" हरियाणा की विभिन्न खापों में सर्वधर्म सर्वजतियों से समय-समय पर हुए वीरों-हुतात्माओं-दार्शनिकों के सम्बोधन में कहा जाता था| इस तरह दोनों शब्दों को जोड़ कर निडाना हाइट्स नें "हरियाणा योद्धेय" की श्रृंखला बनाई है, जिसके तहत हरियाणा यौद्धेयों के अध्याय प्रकाशित किये जा रहे हैं और प्रस्तुत अध्याय इसी श्रृंखला की कड़ी है|

जिस पर पटियाला में दर्दीले गीत बने कि "लजवाने, तेरा नाश जाइयो, तैने बड़े पूत खपाए" दलाल खाप के वीरवर दादा नम्बरदार चौधरी भूरा सिंह दलाल और वीरवर दादा नम्बरदार चौधरी निघांईया दलाल के अमर-अमिट-ओजस्वी जौहर की कहानी


दोनों दादाओं के पैतृक गाँव का परिचय: जिला रोहतक के पश्चिम में (जहाँ रोहतक की सीमा समाप्त होकर जिले की सीमा प्रारम्भ होती है), रोहतक से 25 मील पश्चिम और जीन्द शहर (उस जमाने में पटियाला संघ की तीन रियासतों में एक) से 15 मील पूर्व में लजवाना नाम का प्रसिद्ध गांव है। सन 1856 (आज से लगभग 158 साल पहले) में उस गांव में दलाल गोत के जाट बसते थे। गांव काफी बड़ा था। गांव की आबादी पांच हजार के लगभग थी। हाट, बाजार से युक्त धन-धान्य पूर्ण गाँव था। गांव में 13 नम्बरदार थे। नम्बरदारों के मुखिया चौधरी भूरा सिंह और चौधरी तुलसीराम नाम के दो नम्बरदार थे।


तुलसीराम की मौत व् दोनों दादाओं दुश्मनी: तुलसीराम नम्बरदार की स्त्री का स्वर्गवास हो चुका था। तुलसी रिश्ते में भूरा भूरा के चाचा लगते थे। दोनों अलग-अलग कुटुम्बों के चौधरी थे। भूरे की इच्छा के विरुद्ध तुलसी ने भूरे की चाची को लत्ता (करेपा कर लिया) उढ़ा लिया जैसा कि जाटों में रिवाज है। भूरा के इस सम्बंध के विरुद्ध होने से दोनों कुटुम्बों में वैमनष्य रहने लगा।

समय बीतने पर सारे नम्बरदार सरकारी लगान भरने के लिये जीन्द गये। वहाँ से अगले दिन वापसी पर रास्ते में बातचीत के समय भोजन की चर्चा चल पड़ी। तुलसी नम्बरदार ने साथी नम्बरदारों से अपनी नई पत्नी की प्रशंसा करते हुए कहा कि "साग जैसा स्वाद (स्वादिष्ट) म्हारे भूरा की चाची बणावै सै, वैसा और कोई के बणा सकै सै?" भूरा नम्बरदार इससे चिड़ गए। उस समय तक रेल नहीं निकली थी, सभी नम्बरदार घर पैदल ही जा रहे थे। भूरा नम्बरदार ने अपने सभी साथी पीछे छोड़ दिये और डंग बढ़ाकर गांव में आन पहुंचा। आते ही अपने कुटुम्बी-जनों से अपने अपमान की बात कह सुनाई। अपमान से आहत हो, चार नौजवानों ने गांव से जीन्द का रास्ता जा घेरा। गांव के नजदीक आने पर सारे नम्बरदार फारिग (शौच करने) होने के लिए जंगल में चले गए। तुलसी को हाजत (शौच होने की शंका) न थी, इसलिए वह घर की तरफ बढ़ चला। रास्ता घेरने वाले नवयुवकों ने गंडासों से तुलसी का काम तमाम कर दिया और उस पर चद्दर उढ़ा गांव में जा घुसे। नित्य कर्म से निवृत्त हो जब बाकी के नम्बरदार गांव की ओर चले तो रास्ते में उन्होंने चद्दर उठाकर देखा तो अपने साथी तुलसीराम नम्बरदार को मृत पाया। गांव में आकर तुलसी के कत्ल की बात उसके छोटे भाई निघांईया को बताई। निघांईया ने जान लिया कि इस हत्या में भूरा का हाथ है। पर बिना विवाद बढ़ाये उसने शान्तिपूर्वक तुलसी का दाह कर्म किया तथा समय आने पर मन में बदला लेने की ठानी।

कुछ दिनों बाद रात के तीसरे पहर तुलसीराम के कातिल नौजवानों को निघांईया नम्बरदार (भाई की मृत्यु के बाद निघांईया को नम्बरदार बना दिया गया था) के किसी कुटुम्बीजन ने तालाब के किनारे सोता देख लिया और निघांईया को इसकी सूचना दी। चारों नवयुवक पशु चराकर आये थे और थके मांदे थे। बेफिक्री से सोए थे। बदला लेने का सुअवसर जान निघांईया के कुटुम्बीजनों ने चारों को सोते हुए ही कत्ल कर दिया। प्रातः ही गांव में शोर मच गया और भूरा भी समझ गया कि यह काम निघांईया का है। उसने राजा के पास कोई फरियाद नहीं की क्योंकि जाटों में आज भी यही रिवाज चला आता है कि वे खून का बदला खून से लेते हैं। अदालत में जाना हार समझते हैं। जो पहले राज्य की शरण लेता है वह हारा माना जाता है और फिर दोनों ओर से हत्यायें बन्द हो जाती हैं। इस तरह दोनों कुटुम्बों में आपसी हत्याओं का दौर चल पड़ा।


दोनों दादाओं ने जल हाथ में ले सब मतभेद भुला जुल्म के खिलाफ हाथ मिलाये:

उन्हीं दिनों महाराज जीन्द (स्वरूपसिंह जी - संधु गोत्री जाट फुलकिया राजवंश) की ओर से जमीन की नई बाँट (चकबन्दी) की जा रही थी। उनके तहसीलदारों में एक वैश्य तहसीलदार बड़ा रौबीला था। वह बघरा का रहने वाला था और उससे जीन्द का सारा इलाका थर्राता था। यह कहावत बिल्कुल ठीक है कि –

बणिया हाकिम, ब्राह्मण शाह, जाट मुहासिब, जुल्म खुदा।

अर्थात् जहाँ पर वैश्य शासक, ब्राह्मण साहूकार (कर्ज पर पैसे देने वाला) और जाट सलाहकार (मन्त्री आदि) हो वहाँ जुल्म का अन्त नहीं रहता, उस समय तो परमेश्वर ही रक्षक है।

तहसीलदार साहब को जीन्द के आस-पास के खतरनाक गांव-समूह "कंडेले और उनके खेड़ों" (जिनके विषय में प्रदेश में मशहूर है कि "आठ कंडेले, नौ खेड़े, भिरड़ों के छत्ते क्यों छेड़े") की जमीन के बंटवारे का काम सौंपा गया। तहसीलदार ने जाते ही गाँव के मुखिया नम्बरदारों और ठौळेदारों को बुला कर डांट दी कि "जो अकड़ा, उसे रगड़ा"। सहमे हुए गांव के चौधरियों ने तहसीलदार को ताना दिया कि - ऐसे मर्द हो तो आओ 'लजवाना' जहाँ की धरती कटखानी है (अर्थात् मनुष्य को मारकर दम लेती है)। तहसीलदार ने इस ताने (व्यंग) को अपने पौरुष का अपमान समझा और उसने कंडेलों की चकबन्दी रोक, घोड़ी पर सवार हो, "लजवाना" की तरफ कूच किया। लजवाना में पहुंच, चौपाल में चढ़, सब नम्बरदारों और ठौळेदारों को बुला उन्हें धमकाया। अकड़ने पर सबको सिरों से साफे उतारने का हुक्म दिया। नई विपत्ति को सिर पर देख नम्बरदारों और गांव के मुखिया, भूरा व निघांईया ने एक दूसरे को देखा। आंखों ही आंखों में इशारा कर, चौपाल से उतर सीधे मौनी बाबा के मंदिर में जो कि आज भी लजवाना गांव के पूर्व में एक बड़े तालाब के किनारे वृक्षों के बीच में अच्छी अवस्था में मौजूद है, पहुंचे और हाथ में पानी ले आपसी प्रतिशोध को भुला तहसीलदार के मुकाबले के लिए प्रतिज्ञा की। मन्दिर से दोनों हाथ में हाथ डाले भरे बाजार से चौपाल की तरफ चले। दोनों दुश्मनों को एक हुआ तथा हाथ में हाथ डाले जाते देख गांव वालों के मन आशंका से भर उठे और कहा "आज भूरा-निघांईया एक हो गये, भलार (भलाई) नहीं है।"


बरघा वाला तहसीलदार प्राण छुटवा गया आ भूरा और निंघाईया की आंटा म्ह: उधर तहसीलदार साहब सब चौधरियों के साफे सिरों से उतरवा उन्हें धमका रहे थे और भूरा तथा निघांईया को फौरन हाजिर करने के लिए जोर दे रहे थे। चौकीदार ने रास्ते में ही सब हाल कहा और तहसीलदार साहब का जल्दी चौपाल में पहुंचने का आदेश भी कह सुनाया। चौपाल में चढ़ते ही निघांईया नम्बरदार ने तहसीलदार साहब को ललकार कर कहा, "हाकिम साहब, साफे मर्दों के बंधे हैं, पेड़ के खुंडों (स्तूनों) पर नहीं, जब जिसका जी चाहा उतार लिया।" तहसीलदार बाघ की तरह गुर्राया। दोनों ओर से विवाद बढ़ा। आक्रमण, प्रत्याक्रमण में कई जानें काम आई। छूट, छुटा करने के लिए कुछ आदमियों को बीच में आया देख भयभीत तहसीलदार प्राण रक्षा के लिए चौपाल से कूद पड़ौस के एक कच्चे घर में जा घुसा। वह घर बालम कालिया जाट का था। भूरा, निघांईया और उनके साथियों ने घर का द्वार जा घेरा। घर को घिरा देख तहसीलदार साहब बुखारी (चने का गोदाम) में घुसे। बालम कालिया के पुत्र ने तहसीलदार साहब पर भाले से वार किया, पर उसका वार खाली गया। पुत्र के वार को खाली जाता देख बालम कालिया साँप की तरह फुफकार उठा और पुत्र को लक्ष्य करके कहने लगा:

जो जन्मा इस कालरी, मर्द बड़ा हड़खाया।
तेरे तैं यो कारज ना सधै, तू बेड़वे का जाया॥


अर्थात् - जो इस लजवाने की धरती में पैदा होता है, वह मर्द बड़ा मर्दाना होता है। उसका वार कभी खाली नहीं जाता। तुझसे तहसीलदार का अन्त न होगा क्योंकि तेरा जन्म यहां नहीं हुआ, तू बेड़वे में पैदा हुआ था। (बेड़वा लजवाना गांव से दश मील दक्षिण और कस्बा महम से पाँच मील उत्तर में है। अकाल के समय लजवाना के कुछ किसान भागकर बेड़वे आ रहे थे, यहीं पर बालम कालिए के उपरोक्त पुत्र ने जन्म ग्रहण किया था )।

भाई को पिता द्वारा ताना देते देख बालम कालिए की युवति कन्या ने तहसीलदार साहब को पकड़कर बाहर खींचकर बल्लम से मार डाला।


जींद रियासत से सीधा टकराव और लजवाना को गठवाला खाप की रसद: मातहतों द्वारा जब तहसीलदार के मारे जाने का समाचार महाराजा जीन्द को मिला तो उन्होंने "लजवाना" गाँव को तोड़ने का हुक्म अपने फौज को दिया। उधर भूरा-निघांईया को भी महाराजा द्वारा गाँव तोड़े जाने की खबर मिल चुकी थी। उन्होंने राज-सैन्य से टक्कर लेने के लिए सब प्रबन्ध कर लिये थे। स्त्री-बच्चों को गांव से बाहर रिश्तेदारियों में भेज दिया गया। बूढ़ों की सलाह से गाँव में मोर्चे-बन्दी कायम की गई। इलाके की पंचायतों को सहायता के लिए चिट्ठी भेज दी गई। वट-वृक्षों के साथ लोहे के कढ़ाये बांध दिये गए जिससे उन कढ़ाओं में बैठकर तोपची अपना बचाव कर सकें और राजा की फौज को नजदीक न आने दें। इलाके के सब गोलन्दाज लजवाने में आ इकट्ठे हुए। महाराजा जीन्द की फौज और भूरा-निघांईया की सरदारी में देहात निवासियों की यह लड़ाई छः महीने चली। ब्रिटिश इलाके के प्रमुख चौधरी दिन में अपने-अपने गांवों में जाते, सरकारी काम-काज से निबटाते और रात को लजवाने में आ इकट्ठे होते। अगले दिन होने वाली लड़ाई के लिए सोच विचार कर प्रोग्राम तय करते। उस समय के गठवाला खाप चौधरी दादा गिरधर सिंह मलिक रोज झोटे में भरकर गोला बारूद की रसद भेजते, और खुद भी अपने दाल-बल के साथ लड़ाई में सहयोग देते|

भूरा और निघांईया की मदद चारों ओर की जटैत (यानि जाट कौम) करती थी जो समय के अनुसार घटती, बढ़ती रहती थी। धन, जन की कभी कमी न रहती थी। भूरा और निघांईया अपने मातहत काम करने वालों को आठ रुपये महीना देते थे। तोपची को सोलह रुपये महीना। सात सौ हेड़ी (नायक राजपूत) उनकी फौज में तोपची का काम करते थे। गठवाला खाप के अतिरिक्त गोला, बारूद, रसद उन्हें रिठाना, फड़वाल और खुडाली (किला जफरगढ़) के ठिकानों से पहुंचती थी। खुडाली में तो पुराने घरों में अब तक शोरा, गन्धक, पुरानी बन्दूक, गंडासे आदि बड़ी तादाद में खुदाई पर निकल आते हैं। इस युद्ध में पटियाला, नाभा, जीन्द आदि राज्यों की बीस हजार से अधिक फौज काम आई थी। आज भी पटियाला के देहात में बहनें यह गीत बड़े दर्द के साथ गाती हैं कि –

"लजवाने, तेरा नाश जाइयो, तैने बड़े पूत खपाये"

हरयाणा के स्वाभिमानी पुरुष अंग्रेजी राज्य की स्थापना के कितने विरुद्ध थे, यह उपर्युक्त घटना से अच्छी तरह ज्ञात हो जाता है।

जब महाराजा जीन्द (सरदार स्वरूपसिंह) किसी भी तरह विद्रोहियों पर काबू न पा सके तो उन्होंने ब्रिटिश फौज को सहायता के लिए बुलाया। ब्रिटिश प्रभुओं का उस समय देश पर ऐसा आतंक छाया हुआ था कि तोपों के गोलों की मार से लजवाना चन्द दिनों में धराशायी कर दिया गया। राजा की शिकायत गठवाला खाप से रोज रशद पहुंचाने वाला भैंसा अंग्रेजी सरकार ने पकड़ लिया। भूरा-निघांईया भाग कर रोहतक जिले के अपने गोत्र बन्धुओं के गाँव चिड़ी में आ छिपे। उनके भाइयों ने उन्हें 360 यानी गठवाला खाप के चौधरी श्री दादा गिरधर के पास आहूलाणा भेजा (जिला सोनीपत की गोहाना तहसील में गोहाना से तीन मील पश्चिम में गठवाला गौत के जाटों का प्रमुख गांव आहूलाणा है। गठवालों के हरयाणा प्रदेश में 360 गांव हैं। कई पीढ़ियों से इनकी चौधर आहूलाणा में चली आती है। अपने प्रमुख को ये लोग "दादा" की उपाधि से विभूषित करते हैं। इस वंश के प्रमुखों ने ही 1880 में कलानौर की नवाबी के विरुद्ध युद्ध जीता था और रियासत का कोला तोड़ा था यानी रियासत धूल में मिलाई थी|। स्वयं चौधरी गिरधर ने ब्रिटिश इलाके का जेलदार होते हुए भी जैसा कि ऊपर बताया लजवाने की लड़ाई तथा सन् 1857 के संग्राम में प्रमुख भाग लिया था)।


ब्रिटिश रेजिमेंट के दबाव में जींद के राजा नहीं निभा पाये वचन: जब ब्रिटिश रेजिडेंट का दबाव पड़ा तो डिप्टी कमिश्नर रोहतक ने चौ. गिरधर को मजबूर किया कि वे भूरा-निघांईया को महाराजा जीन्द के समक्ष उपस्थित करें। निदान भूरा-निघांईया को साथ ले सारे इलाके के मुखियों के साथ चौ. गिरधर जीन्द राज्य के प्रसिद्ध गांव कालवा (जहां महाराजा जीन्द कैम्प डाले पड़े थे), पहुंचे तथा राजा से यह वायदा लेकर कि भूरा-निघांईया को माफ कर दिया जावेगा, महाराजा जीन्द ने गिरधर से कहा – ‘’मर्द दी जबान, गाड़ी दा पहिया, टुरदा चंगा होवे है"। दोनों को राजा के रूबरू पेश कर दिया गया। माफी मांगने व अच्छे आचरण का विश्वास दिलाने के कारण राजा उन्हें छोड़ना चाहता था, पर ब्रिटिश रेजिडेंट के दबाव के कारण राजा ने दोनों नम्बरदारों (भूरा व निघांईया) को फांसी पर लटका दिया।


आज बसे हुए हैं सात लजवाने: दोनों नम्बरदारों को 1856 के अन्त में फांसी पर लटकवा कर राजा ने ग्राम निवासियों को ग्राम छोड़ने की आज्ञा दी। लोगों ने लजवाना खाली कर दिया और चारों दिशाओं में छोटे-छोटे गांव बसा लिए जो आज भी "सात लजवाने" के नाम से प्रसिद्ध हैं। मुख्य लजवाना से एक मील उत्तर-पश्चिम में "भूरा" के कुटुम्बियों ने "चुडाली" नामक गांव बसाया। भूरा के बेटे का नाम मेघराज था।

मुख्य लजवाना ग्राम से ठेठ उत्तर में एक मील पर निघांईया नम्बरदार के वंशधरों ने "मेहरड़ा" नामक गांव बसाया।

जिस समय कालवे गांव में भूरा-निघांईया महाराजा जीन्द के सामने हाजिर किये गए थे, तब महाराजा साहब ने दोनों चौधरियों से पूछा था कि "क्या तुम्हें हमारे खिलाफ लड़ने से किसी ने रोका नहीं था?" निघांईया ने उत्तर दिया - मेरे बड़े बेटे ने रोका था। सूरजभान उसका नाम था। राजा ने निघांईया की नम्बरदारी उसके बेटे को सौंप दी। अभी 15 साल पहले निघांईया के पोते दिवाना नम्बरदार ने नम्बरदारी से इस्तीफा दिया है। इसी निघांईया नम्बरदार के छोटे पुत्र की तीसरी पीढ़ी में चौ. हरीराम थे जो रोहतक के दस्युराज 'दीपा' द्वारा मारे गए। इन्हीं हरीराम के पुत्र दस्युराज हेमराज उर्फ 'हेमा' को (जिसके कारण हरयाणे की जनता को पुलिस अत्याचारों का शिकार होना पड़ा था और जिनकी चर्चा पंजाब विधान सभा, पंजाब विधान परिषद और भारतीय संसद तक में हुई थी), विद्रोहात्मक प्रवृत्तियाँ वंश परम्परा से मिली थीं और वे उनके जीवन के साथ ही समाप्त हुईं।


दादाओं के साथ हुए अन्याय का दंश जींद महाराजा का संगरूर तक पीछा करता रहा: लजवाने को उजाड़ महाराजा जीन्द (जीन्द शहर) में रहने लगे। पर पंचायत के सामने जो वायदा उन्होंने किया था उसे वे पूरा न कर सके, इसलिए बड़े बेचैन रहने लगे। ज्योतिषियों ने उन्हें बताया कि भूरा-निघांईया के प्रेत आप पर छाये रहते हैं। निदान परेशान महाराजा ने जीन्द छोड़ संगरूर में नई राजधानी जा बसाई।


देश की आज़ादी और जींद राजवंश:स्वतंत्रता के बाद 1947 में सरदार पटेल ने रियासतें समाप्त कर दीं। महाराजा जीन्द के प्रपौत्र जीन्द शहर से चन्द मील दूर भैंस पालते हैं और दूध की डेरी खोले हुए हैं। समय बड़ा बलवान है। सौ साल पहले जो लड़े थे, उन सभी के वंश नामशेष होने जा रहे हैं। समय ने राव, रंक सब बराबर कर दिये हैं। समय जो न कर दे वही थोड़ा है। समय की महिमा निराली है।


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेखक: पी. के. मलिक

दिनांक: 15/04/2014

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  1. स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी द्वारा लिखित पुस्तक देशभक्तों के बलिदान अंक 2000 से

  2. NH सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
इ-चौपाल के अंतर्गत मंथित विषय सूची
निडाना हाइट्स के इ-चौपाल परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

इ-चौपाल:


हरियाणवी में लेख:
  1. त्यजणा-संजोणा
  2. बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज
  3. हरियाणवी चुटकुले

Articles in English:
    General Discussions:

    1. Farmer's Balancesheet
    2. Original Haryana
    3. Property Distribution
    4. Woman as Commodity
    5. Farmer & Civil Honor
    6. Gender Ratio
    7. Muzaffarnagar Riots
    Response:

    1. Shakti Vahini vs. Khap
    2. Listen Akhtar Saheb

हिंदी में लेख:
    विषय-साधारण:

    1. वंचित किसान
    2. बेबस दुल्हन
    3. हरियाणा दिशा और दशा
    4. आर्य समाज के बाद
    5. विकृत आधुनिकता
    6. बदनाम होता हरियाणा
    7. पशोपेश किसान
    8. 15 अगस्त पर
    9. जेंडर-इक्वलिटी
    10. बोलना ले सीख से आगे
    खाप स्मृति:

    1. खाप इतिहास
    2. हरयाणे के योद्धेय
    3. सर्वजातीय तंत्र खाप
    4. खाप सोशल इन्जिनीरिंग
    5. धारा 302 किसके खिलाफ?
    6. खापों की न्यायिक विरासत
    7. खाप बनाम मीडिया
    हरियाणा योद्धेय:

    1. हरयाणे के योद्धेय
    2. दादावीर गोकुला जी महाराज
    3. दादावीर भूरा जी - निंघाईया जी महाराज
    4. दादावीर शाहमल जी महाराज
    5. दादीराणी भागीरथी देवी
    6. दादीराणी शमाकौर जी
    7. दादीराणी रामप्यारी देवी
    8. दादीराणी बृजबाला भंवरकौर जी
    9. दादावीर जोगराज जी महाराज
    10. दादावीर जाटवान जी महाराज
    11. आनेवाले
    मुखातिब:

    1. तालिबानी कौन?
    2. सुनिये चिदंबरम साहब
    3. प्रथम विश्वयुद्ध व् जाट

NH Case Studies:

  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
मिलते-जुलते विषय
"खाप स्मृति" व् "हरियाणा योद्धेय" उपभागों के विषयों के समान वेबसाइट के दूसरे भागों में प्रकाशित विषय:
  1. Sarvjatiya Sarvkhap Legend
  2. Gathwala Khap
  3. गठ्वाला खाप
  4. Gotra System
  5. समाज का मॉडर्न ठेकेदार
  6. दादा नगर खेड़ा
  7. हरयाणे के वीर योद्धेय
  8. Shakti Vahini & Honor Killing
  9. Property Distribution System
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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