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!!!......गंभीरतापूर्वक व् सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी राय रखना - बनाना, दूसरों की राय सुनना - बनने देना, दो विचारों के बीच के अंतर को सम्मान देना, असमान विचारों के अंतर भरना ही एक सच्ची हरियाणवी चौपाल की परिभाषा होती आई|......!!!
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खाप इतिहास
हरियाणा यौद्धेय उद्घोषम्
"दादा नगर खेड़ाय नम: (दादा बड़ा बीर/दादा खेड़ा/दादा बैया/दादा भैया/बड़े दादा/बाबा भूमिया)"
मोर पताका: सुशोभम
सर्वखाप पंचायतों का ऐतिहासिक महत्त्व
मौर्य काल से अंग्रेजी राज (1857) से पहले तक:


मौर्य काल में खापों की न्याय व्यवस्था वर्णन मिलता है| महाराजा हर्षवर्धन (थानेसर के राजा) ने अपनी बहन राज्यश्री को मालवा नरेश की कैद से छुड़ाने में खाप पंचायत की सहायता मांगी थी जिसके लिए खापों के चौधरियों ने मालवा पर चढाई करने के लिए हर्ष की और से युद्ध करने के लिए ३०००० (30000) मल्ल और १०००० (10000) वीर महिलाओं की सेना भेजी थी. खाप की सेना ने राज्यश्री को मुक्त कराकर ही दम लिया.

महाराजा हर्षवर्धन ने सन ६४३ (643) में जाट क्षत्रियों को एकजुट करने के लिए कन्नौज शहर में विशाल सम्मलेन कराया था वह सर्वखाप पंचायत ही थी जिसका नाम ‘हरियाणा सर्वखाप पंचायत‘ रखा गया था चूँकि उन दिनों विशाल हरियाणा उत्तर में सतलज नदी तक, पूर्व में देहरादून, बरेली, मैनपुरी तथा तराई एरिया तक, दक्षिण में चम्बल नदी तक और पश्चिम में गंगानगर तक फैला हुआ था. सर्वखाप के चार केंद्र थानेसर, दिल्ली, रोहतक और कन्नौज बनाये गए थे. इस सर्वखाप पंचायत में करीब ३०० (300) छोटी-बड़ी पालें, खाप और संगठन शामिल थे. पंचायत ने थानेसर सम्राट हर्षवर्धन का कनौज के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया. सम्राट हर्ष ने वैदिक विधि विधान से सर्वखाप पंचायत का गठन किया. इससे पूर्व विभिन्न खापों के विभिन्न स्वरुप, संविधान और कार्य करने के तौर तरीके अलग-अलग थे.

सन ६६४ (664) ई. में बगदाद के खलीफा ने अब्दुल्ला नामक सरदार के साथ ३५ (35) हजार सेना भेजकर सिंध पर चढाई की. सिंध के राजा दाहिर द्वारा सहायता मांगे जाने पर पंचायत ने सेना भेजी जिसमें दाहिर के पुत्र जस्सा को प्रधान सेनापति, मोहना जाट को सेनापति तथा भानु गुज्जर को उपसेनापति नियुक्त किया गया. भयंकर युद्ध में मोहना जाट ने अब्दुल्ला को ढाक पर चढाकर जमीन पर पटका और मार दिया. अब्दुल्ला की २७००० (27000) सेना मारी गई , बाकी ८००० (8000) सिंध नदी में डूब गए क्योंकि जाटों ने पहले से ही पार ले जाने वाली नाओं पर कब्जा कर रखा था. खलीफा ने थोड़े थोड़े अंतराल से चार बार आक्रमण किये पर हर बार पंचायत सेना ने उसे मार भगाया.

सन ११९१ (1191) में मोहम्मद गौरी का सामना करने के लिए सर्वखाप पंचायत ने २२००० (22000) जाट मल्ल वीरों को दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ने भेजा था. दिल्ली सम्राट ने सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी थी. सर्वखाप पंचायत में १०८ (108) राजाओं ने दिल्ली सम्राट के नेतृत्व में गौरी से लड़ने का फतवा जारी किया गया था. इस पंचायती और सम्राट की संयुक्त सेना के सामने गौरी की सेना नहीं टिक सकी और मैदान छोड़कर गौरी की सेना को भागना पड़ा. मगर अगले ही वर्ष ११९२ (1192) में गौरी ने पुनः आक्रमण किया और विजयी रहा.

खाप पंचायतों ने नव स्थापित दास वंस के खिलाफ अपना विरोध लम्बे समय तक जारी रखा और मोका पाते ही वह विद्रोह करके इनका शासन समाप्त करने के प्रयास करते रहे

सन ११९३ (1193) ई. में दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक के साथ सर्वखाप पंचायत की सेना ने जाटवान के नेतृत्व में १२ (12) वीं सदी का सबसे भयंकर युद्ध हांसी में लड़ा गया. इस युद्ध को मुस्लिम लेखक भी भयंकर मानते हैं. इसमें जाट वीरों ने अपने परंपरागत हथियारों यथा लाठी, बल्लम, कुल्हाडी, गंडासी, भाला, बरछी, जेळी, कटार आदि से अंतिम दम तक शाही सैनिकों को कत्ल किया. युद्ध कई दिन चला और जाटवान सहित अधिकतर मल्ल योद्धा शहीद हुए. जीत ऐबक की हुई परन्तु कहते हैं वह अपनी आधी सेना के शवों को देखकर दहाड़-दहाड़ कर रोया और रोते हुए उसने कहा कि मुझे पता होता कि जाट इतने लड़ाकू होते हैं तो वह उनसे भूलकर भी न लड़ता, जाटवान जैसे योधाओं को अपने साथ करके मैं सारी धरती जीत सकता था. इतिहासकार लिखते हैं कि यह पहला अवसर था जब जीतने के बाद भी कोई मुस्लिम शासक रोते हुए दिल्ली लौटा और उसने जस्न की जगह मातम मनाया. इस युद्ध से स्पस्ट हो जाता है कि सर्व खाप पंचायत उस समय भी अपना काम कर रही थी तथा गोपनीय स्थलों, जंगलों, बीहडों में इसकी पंचायत होती थी.

सन ११९७ (1197) ई. में राजा भीम देव की अध्यक्षता में बावली बडौत के बीच विशाल बणी में सर्वखाप पंचायत की बैठक हुई थी जिसमें बादशाह द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने तथा फसल न होने पर पशुओं को हांक ले जाने के फरमानों का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए ठोस कार्रवाई करने पर विचार किया गया. इस पंचायत में करीब १००००० (100000) लोगों ने भाग लिया. पंचायती फैसले के अनुसार सर्वखाप की मल्ल सेना ने शाही सेना को घेर कर हथियार छीन लिए और दिल्ली पर चढाई करने का एलान किया. बादशाह ने घबराकर दोनों फरमान वापिस लेकर पंचायत से समझौता कर लिया.

सन १२११ (1211) ई. और १२३६ (1236) ई में गुलाम वंश का सुलतान इल्तुतमिश दो बार सर्वखाप की सेना से हारा था. हारने के बाद उसे सर्वखाप की ८ (8) शर्तों को स्वीकार करना पड़ा था. ये शर्तें थी: पंचायतो को अपने निर्णय स्वयं करने का अधिकार, पंचायत को सेना रखने का अधिकार, पंचायतो को पूर्ण स्वतंत्रता देना, हिन्दुओं को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता देना , जजिया कर की समाप्ति, और दरबार में पंचायत को प्रतिनिधित्व देना. इससे स्पस्ट है कि १३ (13) वीं सदी में सर्वखाप पंचायतें इस स्थिति में थी कि वे सरकार से अपनी बात मनवा लेती. पंचायत सेना भी इतनी शक्तिशाली थी कि शाही सेना को कई बार हराया था.

सन १२३७ (1237) ई. में दिल्ली तख्त पर आसीन रजिया बेगम घरेलू झगडों से परेसान हो गई थी. अमीर उसकी हत्या करना चाहते थे. जब कोई रास्ता न बचा तो रजिया सुल्ताना ने तत्कालीन सर्वखाप पंचायत के चौधरी को सहायता के लिए पुकारा. इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक गुप्त स्थान पर आयोजन हुआ जिसमें पंचायती सेना द्वारा रजिया सुल्ताना का साथ देने का फैसला लिया गया.पंचायती सेना ने अचानक दिल्ली पर धावा बोलकर रजिया सुल्ताना के विरोधियों को कुचल डाला. रजिया ने खुश होकर पंचायती मल्ल योद्धाओं के लिए ६०००० (60000) दुधारू पशु उपहार में दिए.

सन १२४६ (1246) से १२६६ (1266) ई. में गुलाम वंशी नासिरुद्दीन ने शासन किया. उसके विरोधियों की संख्या कम न थी.जब उसे लगा कि उसकी गद्दी कभी भी छिन सकती है तो उसने अपने भतीजे को सहायता के लिए सर्वखाप के मुख्यालय सौरम (मुज़फ्फरनगर) भेजा. इस मांग पर खापों के चौधरियों ने कई दिन तक विचार किया. अंत में नासिरुद्दीन को अपनी कुछ मांगें मानने का प्रस्तान उसके भतीजे के साथ भेजा. नासिरुद्दीन ने पंचायत की सभी मांगे मानली और बदले में पंचायत की सेना ने नसीरुद्दीन के विरोधियों को नष्ट कर उसे निष्कंटक बना दिया.

सन १२८७ (1287) ई. में महानदी के तट पर सर्वखाप की एक विशाल पंचायत हुई जिसकी अध्यक्षता चौधरी मस्त पाल सिरोहा ने की. इस पंचायत में ६०००० (60000) जाट, २५००० (25000) अहीर, ४०००० (40000) गुर्जर, ३८००० (38000) राजपूत, तथा ५००० (5000) सैनिकों ने भाग लिया. इस पंचायत में कुछ प्रस्ताव पास किये गए जैसे २५००० (25000) व्यक्ति हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहेंगे, १८ (18) से ४० (40) वर्ष के बीच के लोग शाही सेना से लड़ने का प्रशिक्षण लें, जजिया कर बिलकुल नहीं देंगे, शादी-विवाहों में शाही हुक्म नहीं मानेंगे और अपनी परंपरागत शैली ही अपनाएंगे, फसल का आधा भाग कर के रूप में जमा नहीं करेंगे, पंचायत अपने निर्णय स्वयं लेगी आदि. इस पंचायत में यह स्पस्ट होता है कि सर्वखाप पंचायत एक सर्वजातीय संगठन था.

सन १२९५ (1295) में अलाउद्दीन खिलजी ने पंचायत को कुचलने के लिए अपने एक सेनापति मलिक काफूर को २५००० (25000) की सेना लेकर वर्तमान पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य इलाके में भेजा. हिंडन और काली नदियों के संगम पर अर्थात बरनावा गाँव के आस-पास सर्वखाप के मल्ल वीरों और खिलजी की सेना के बीच भयानक युद्ध हुआ. अधिकतर मुस्लिम सैनिक काट डाले गए, जो बचे वे अपने सेनापति सहित मैदान छोड़कर भाग गए. पंचायती फैसले के अनुसार इस युद्ध में खिलजी सेना से लड़ने हर घर से एक योद्धा ने भाग लिया था.

सन १३०५ (1305) में चैत्रबदी दूज को सोरम (मुजफ्फरनगर) में एक विशाल सर्वखाप पंचायत हुई थी जिसमें सभी खापों के ४५००० (45000) प्रमुखों ने भाग लिया था तथा राव राम राणा को सर्वखाप पंचायत का महामंत्री नियुक्त किया गया था तथा गाँव सौरम को वजीर खाप का पद प्रदान किया था. इसी पंचायत में ८४ (84) गांवों की बालियान खाप को प्रमुख खाप के रूप में स्वीकार किया गया. यदि इस पंचायत के आयोजन पर गहन विचार करें तो यह स्पस्ट हो जाता है कि तत्कालीन हरियाणा का क्षेत्र काफी विस्तृत था जिसमें सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश समाहित था.

सन १३१९ (1319) ई. में मुबारकशाह खिलजी के सेनापति जाफ़र अली ने बैशाखी की अमावश्या के दिन कोताना (बडौत के निकट) यमुना नदी में कुछ हिन्दू ललनाओं को स्नान करते देखा तो उसकी कामवासना भड़क उठी. उसने हिन्दू बालाओं को घेर कर पकड़ने का प्रयास किया तो बालाओं ने डटकर मुकाबला किया. आस-पास के लोग भी सैनिकों से जा भिडे. भारी मारकाट मची. इस बात की खबर सर्वखाप पंचायत को लगने पर पंचायती मल्लों को जाफर अली को सबक सिखाने भेजा. बताया जाता है कि इससे पहले ही एक हिन्दू ललना ने जाफ़र का सर काट दिया था. बीस कोस तक पंचायती मल्लों ने बाकी बचे कामांध सैनिकों का पीछा किया और इन्हें कत्ल कर दिया. बादशाह ने अंत में इस घटना के लिए पंचायत से लिखित में माफ़ी मांगी.

दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के किनारे १३३६ (1336) से १५९६ (1516) ई. तक हिन्दुओं का विजयनगर नामक राज्य रहा है. इस राज्य के लोगों को निकटवर्ती मुस्लिम शासक बहुत तंग करते थे. विजयनगर के राजा देव राज II ने सर्वखाप पंचायत से लिखित में मांग की कि सर्वखाप पंचायत कुछ मल्ल यौद्धा भेजे जो वहां प्रशिक्षण दं् और शत्रुओं से उनकी रक्षा करें. सर्वखाप पंचायत ने विचार कर १००० (1000) योद्धाओं को विजयनगर भेजा. वहां पहुँच कर इन योद्धाओं ने हिन्दुओं को अभय दान देने के साथ-साथ गाँव-गाँव में अखाड़े चालू करवाए. शत्रुओं को पछाड़ कर मार डाला. वहां जाने वाले मल्ल योद्धाओं में प्रमुख थे शंकर देव जाट, शीतल चंद रोड, चंडी राव रवा, ओझाराम बढ़ई जांगडा, ऋपल देव जाट, शिव दयाल गुजर . यह घटना सर्वखाप की शक्ति और सरंचनाओं पर प्रकाश डालती है.

सन १३९८ (1398) में तैमूर लंग ने जब ढाई लाख सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया तो पंचायती सेना ने उसकी आधी सेना को काटकर यमुना, कृष्ण, हिंडन, और काली नदी में फेंक दिया था. तैमूर लंग को रोकने के लिए बेरोगोलिया, बादली, सिसौली तथा सैदपुर में चार सर्वखाप पंचायतें हुई. इसके बाद सर्वखाप की सामूहिक पंचायत चौगामा के गांवों, निरपड़ा, दाहा,दोघट, टीकरी के बीच २२५ बीघे वाले विशाल बाग में हुई जिसकी अध्यक्षता निरपड़ा गाँव के यौद्धा देव पाल राणा ने की. इस महापंचायत ने अस्सी हजार वीरों को चुना गया जिनमें किसी का भी वजन दो कुंतल से कम न था. पंचायती सेना का सेनापति ४५ वर्षीय पहलवान योगराज जाट को चुना. ४०००० (40000) वीरांगनाओं को भी चुना गया. ५०० (500) घुड़ सवारों की गुप्त सेना बनाई. हिसार के गाँव कोसी के पहलवान धोला को उपसेनापति बनाया. युद्ध के पहले ही दिन उस क्षेत्र से गुजर रहे तैमुर लंग के करीब एक लाख साठ हजार सैनिक मौत के घाट उतारे गए. पंचायती सेना के भी ३८ (38) सेनापति और ३५००० (34000) मल्ल तथा वीरांगनाएँ काम आई. तैमूर मरते मरते बचा और बिना रुके घबरा कर जम्मू के रास्ते स्वदेश लौट गया. इससे पहले उसने जी भर कर दिल्ली को लूटा था परन्तु पंचायती मल्लों ने उससे दिल्ली से लूटी गई पाई-पाई को छीन लिया तथा हजारों युवतियों को उसकी कैद से छुडाया. यदि एक दिन तैमूर और रुक जाता तो वह और उसकी सेना को पंचायती सेना सदा के लिए गंगा-यमुना के मैदान में दफ़न कर देती.

सन १४२१ (1421) में मेवाड़ के राणा लाखा ने ५० (50) वर्ष की आयु में मारवाड़ के राजा रणमल की १२ (12) वर्षीय कन्या से विवाह किया जिससे मोकल नमक पुत्र पैदा हुआ. मोकल जब ५ वर्ष का था तो राणा लाखा चल बसे. उसकी सहायता के लिए मोकल के नाना और मामा जोधा चितोड़ में आकर बस गए. उन्होंने सत्ता की चाह में मोकल को मार डालने का सड़यंत्र रचा तथा पड़ौसी राजपूत राजाओं से सौदाबाजी करली. मोकल की माता को जब और कोई सहारा नजर नहीं आया तो सर्वखाप को दूत भेज कर सहायता मांगी. पंचायत ने तुंरत सहायता के लिए मल्ल वीरों को मेवाड़ भेजा. वहां पहुँच कर पंचायती मल्ल योद्धाओं ने राजमहल को घेर लिया. राजमाता और राजकुमार मोकल को सुरक्षित निकाल कर विद्रोहियों को मार डाला. उस समय बहुत से जाट वहीँ बस गए जिनके वंसज आज वहां शान से रहते हैं.

सन १४९० (1490) में दिल्ली पर सिकंदर लोदी का शासन था. उसने प्रजा पर राजस्व कर बढा दिए और हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया. किसानों की हालत ख़राब हो गई और हाहाकार मच गया. लोदी के आतंक के विरुद्ध सर्वखाप पंचायत के नेतृत्व में किसानों की महा पंचायत हुई. पंचायत ने दिल्ली को घेरने का संकल्प लिया. दिल्ली में जब लोदी को पता लगा कि सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धा दिल्ली के लिए कूच कर गए हैं तो सुलतान डर गया. वह सर्वखाप पंचायत के मुख्यालय सौरम गया और पंचायत से समझौता कर लिया तथा ५०० (500) अशर्फियाँ भी पंचायत को भेंट की, बदले में पंचायत ने अपनी सेना वापिस बुला ली.

सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद उसका लड़का इब्राहीम लोदी गद्दी पर बैठा, परन्तु उसके छोटे भाई जलालुद्दीन ने विद्रोह कर दिया. इब्राहीम लोदी ने सर्वखाप पंचायत की सहायता मांगी. सर्वखाप के मल्ल योद्धाओं ने जलालुद्दीन और उसके हजारों सैनिकों को रमाला (बागपत) के जंगलों में घेर लिया और आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया.

सन १५०८ (1508) में राणा सांगा चितौड़ की गद्दी पर बैठा. उसने अपने जीवन काल में ६० (60) युद्ध लड़े परन्तु जब बाबर विशाल सेना लेकर चितौड़ की और बढा तब राणा सांगा ने सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी. पंचायत ने राणा सांगा के पक्ष में युद्ध करने का निर्णय लिया. कनवाह के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ. राणा सांगा घायल होकर अचेत होने लगे तो पास ही लड़ रहे सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धा कीर्तिमल ने राणा का ताज उतार कर स्वयं पहन लिया और राणा सांगा को सुरक्षित युद्ध क्षेत्र से बहार निकाला. बाबर की सेना ताज देखकर राणा सांगा समझती रही. अंततः कीर्तिमल शहीद हो गए. राजपूत राणा को बचाकर एक बार फिर सर्वखाप पंचायत की श्रेष्ठता सिद्ध कर दिखाई.

बाबर और सर्वखाप पंचायत में मनमुटाव चलता रहा. अंत में १५२८ (1528) में बाबर स्वयं गाँव सौरम गया तथा तत्कालीन सर्वखाप पंचायत चौधरी रामराय से संधि कर ली और चौधरी को एक रूपया तथा पगड़ी सम्मान के १२५ (125) रपये देकर सम्मानित किया.

सन १५४० (1540) में बादशाह हुमायूं का सर्वखाप पंचायत ने साथ नहीं दिया. इस टकराव का शेरशाह ने भरपूर फायदा उठाया. शेरशाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और हुमायूं को अफगानिस्तान तक दौड़ाकर मुल्क से खदेड़ दिया. शेरशाह ने गद्दी पर बैठते ही किसानों को तंग करना शुरू कर दिया तथा सर्वखाप की एक न मानी. उधर इरान पहुँच कर हुमायूँ को सर्वखाप पंचायत की याद आई. उसने अपना दूत भेजकर सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी. सर्वखाप पंचायत ने इस शर्त पर सहायत दी कि गद्दी पर बैठने पर वह सर्वखाप की सभी मांगे स्वीकार कर लेंगे. हुमायूँ ने शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी सिकंदरशाह सूरी को खाप पंचायत की मदद से सरहिंद के युद्ध में हराकर दिल्ली पर फिर अधिकार कर लिया (जून , १५५५ -1555) और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई .

बादशाह अकबर के जमाने में सर्वखाप पंचायत का पुनर्गठन किया गया. अकबर के समय पंचायत के १० (10) मंत्री चुने गए थे. चौधरी पच्चुमल को अकबर बादशाह ने मंत्री के रूप में मान्यता दी थी. अन्य मान्यता प्राप्त मंत्री थे – चौधरी भानी राम, हरी राम, टेकचंद, किशन राम, श्योलाल, गुलाब सिंह, सांई राम, और सूरज मल. यह मान्यता बादशाह मुहम्मदशाह के जमाने अर्थात १७४८ (1748) तक चलती रही. मुग़लों ने सर्वखाप पंचायत के साथ समझौता नीति को अधिक अपनाया. मुग़ल काल में सर्वखाप पंचायत का आयोजन होता रहा तथा पंचायत के नेताओं ने अनेक कुर्बानियां दी थी और इस बेमिसाल पंचायत व्यवस्था को बनाये रखा.

सन १६२८ (1628) में शाहजहाँ ने किसान-मजदूरों के प्रति कठोर निति अपनाई. सर्वखाप पंचायत ने इसका विरोध कियाम शाही खजानों और चौकियों पर हमला किया. शाहजहाँ ने दो सेनापतियों आमेर (वर्तमान जयपुर) के मिर्जा राजा जयसिंह और कासिम खान को विद्रोह दबाने के लिए भेजा. पंचायती सेना ने इन दोनों को घेर लिया और तभी छोड़ा जब शाहजहाँ ने अपना किसान विरोधी फरमान वापस लिया. सन १६३५ (1635) में शाहजहाँ ने फिर किसानों पर भारी कर लगा दिए. सर्वखाप पंचायत ने लगान के रूप में कर न देने का फैसला किया. आगरा, मथुरा, गोकुल, महावन, पहाडी, मुहाल, खोह आदि में मेव, गुर्जर, राजपूत, और जाट एक हो गए. शाही सेना से टकराव चलता रहा मगर बादशाह पंचायत विरोध को दबा न सका. और समझौता करना पड़ा. सन १६६० (1660) में ठेनुआ गोत्र के जाट नन्द राम नें सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया तथा स्वयं ही उसकी अध्यक्षता की. औरंगजेब ने धर्म परिवर्तन के लिए अनेक तरीके अपनाए. किसानों पर भारी कर लगाये, हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया, हिन्दुओं के त्योहारों और मेलों पर रोक लगादी. नन्द राम ने जनसमर्थन से अलीगढ, मुरसान, हाथरस, और मथुरा पर अपनी छापामार शैली से कब्जा कर लिया. औरंगजेब कुछ नहीं कर सका और अंत में नन्द राम को फौजदार की उपाधि देकर समझौता कर लिया.

९ (9) अप्रेल १६६९ (1669) को औरंगजेब का नया फरमान आया – “काफ़िरों के मदरसे और मन्दिर गिरा दिए जाएं“. फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गया. कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहर, तोड़-फोड़, मुंड विहीन, अंग विहीन कर हजारों की संख्या में सर्वत्र छितरा दी गयी. सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार और गिद्ध चील उड़ते दिखाई देते थे . और दिखाई देते थे धुंए के बादल और लपलपाती ज्वालायें- उनमें से निकलते हुए साही घुडसवार. हिन्दुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. अब्दुन्नवी ने सिहोरा नामक गाँव को जा घेरा. क्रान्तिकार जाट गोकुलसिंह ने सर्वखाप पंचायत के सहयोग से एक बीस हजारी सेना तैयार कर ली थी. गोकुलसिंह अब्दुन्नवी के सामने जा पहुंचे. मुग़लों पर दुतरफा मार पड़ी. फौजदार गोली प्रहार से मारा गया. बचे खुचे मुग़ल भाग गए. गोकुलसिंह आगे बढ़े और सादाबाद की छावनी को लूटकर आग लगा दी. इसका धुआँ और लपटें इतनी ऊँची उठ गयी कि आगरा और दिल्ली के महलों में झट से दिखाई दे गईं. दिखाई भी क्यों नही देतीं. साम्राज्य के वजीर सादुल्ला खान (शाहजहाँ कालीन) की छावनी का नामोनिशान मिट गया था. मथुरा ही नही, आगरा जिले में से भी शाही झंडे के निशाँ उड़कर आगरा शहर और किले में ढेर हो गए थे. निराश और मृतप्राय हिन्दुओं में जीवन का संचार हुआ. इस युद्ध को दुनिया के भयानक युद्धों में गिना जाता है. इस युद्ध में ५००० (5000) जाट शाही सेना के ५०००० (50000) सैनिकों को कत्ल कर जान पर खेल गए. ७००० (7000) किसानों को बंदी बनाकर आगरा की कोतवाली के सामने बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. गोकुलसिंह और उनके ताऊ उदयसिंह को सपरिवार बंदी बना लिया गया.अगले दिन गोकुलसिंह और उदयसिंह को आगरा कोतवाली पर लाया गया-उसी तरह बंधे हाथ, गले से पैर तक लोहे में जकड़ा शरीर. गोकुलसिंह की सुडौल भुजा पर जल्लाद का पहला कुल्हाड़ा चला, तो हजारों का जनसमूह हाहाकार कर उठा. कुल्हाड़ी से छिटकी हुई उनकी दायीं भुजा चबूतरे पर गिरकर फड़कने लगी. परन्तु उस वीर का मुख ही नहीं शरीर भी निष्कंप था. उसने एक निगाह फुव्वारा बन गए कंधे पर डाली और फ़िर जल्लादों को देखने लगा कि दूसरा वार करें. परन्तु जल्लाद जल्दी में नहीं थे. उन्हें ऐसे ही निर्देश थे. दूसरे कुल्हाड़े पर हजारों लोग आर्तनाद कर उठे. उनमें हिंदू और मुसलमान सभी थे. अनेकों ने आँखें बंद करली. अनेक रोते हुए भाग निकले. कोतवाली के चारों ओर मानो प्रलय हो रही थी. एक को दूसरे का होश नहीं था. वातावरण में एक ही ध्वनि थी- “हे राम!…हे रहीम !! इधर आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर! क्रांतिकारियों ने अकबर के मकबरे को नेस्तनाबूद किया

सत्ता की लडाई में दारा शिकोह का साथ देने के कारण औरंगजेब ने बादशाह बनते ही सर्वखाप पंचायत को सबक सिखाने के लिए एक घिनौनी चाल चली. उसने सुलह सफाई के लिए सर्वखाप पंचायत को दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा. सर्वखाप ने निमंत्रण स्वीकार कर जिन २१ (21) नेताओं को दिल्ली भेजा उनके नाम थे- राव हरिराय, धूम सिंह, फूल सिंह, शीशराम, हरदेवा, राम लाल, बलि राम, माल चंद, हर पाल, नवल सिंह, गंगा राम, चंदू राम, हर सहाय, नेत राम, हर वंश, मन सुख, मूल चंद, हर देवा, राम नारायण, भोला और हरिद्वारी. इनमें एक ब्रह्मण, एक वैश्य, एक सैनी, एक त्यागी, एक गुर्जर, एक खान, एक रोड, तीन राजपूत, और ग्यारह जाट थे. इन २१ (21) नेताओं के सामने औरंगजेब ने धोखा किया और इनके सामने इस्लाम या मौत में से एक चुनने का हुक्म दिया. दल के मुखिया राव हरिराय ने औरंगजेब से जमकर बहस की तथा कहा कि शर्वखाप पंचायत शांति चाहती है वह टकराव नहीं. औरंगजेब ने जिद नहीं छोड़ी तो इन नेताओं ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया. परिणाम स्वरुप सन १६७० (1670) ई. की कार्तिक कृष्ण दशमी के दिन चांदनी चौक दिल्ली में इन २१ (21) नेताओं को एक साथ फंसी पर लटका दिया गया. जब यह खबर पंचायत के पास पहुंची तो चहुँओर मातम छा गया. इसके बाद धर्मान्तरण की आंधी चलने लगी. साथ ही सर्वखाप पंचायत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया.

सन १६८५ (1685) में सिनसिनी के राजा राम ने मृत प्रायः सर्व खाप सेना में जान डाली. राजा राम के नेतृत्व में एक विशाल सेना तैयार हो गई. पंचायती सेना ने सिकन्दरा को जा घेरा. आस-पास की गढ़ियों में आग लगा दी . सिकन्दरा के मकबरा रक्षक मीर अहमद जान बचाकर भागे. गोकुल सिंह की बर्बर हत्या का बदला लेने पर उतारू क्रांतिकारियों ने अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियों को निकालकर सरे आम फूंक डाला. मुग़लों के इस प्रसिद्द मकबरे को नेस्तनाबूद कर क्रन्तिकारी पंचायती गोकुल सिंह जिंदाबाद के नारे लगते वापिस लौट गए.



अंग्रेजी राज और सर्वखाप पंचायतें:


२३ (23) अप्रेल १८५७ (1857) को मेरठ छावनी में सैनिक विद्रोह हुआ और १० (10) मई १८५७ (1857) को सर्वखाप पंचायत के वीरों ने अंग्रेजों को गोली से उड़ा दिया. ११ (11) मई १८५७ (1857) को चौरासी खाप तोमर के चौधरी शाहमल गाँव बिजरोल (बागपत) के नेतृत्व में पंचायती सेना के ५००० (5000) मल्ल योद्धाओं ने दिल्ली पर आक्रमण किया. शामली के मोहर सिंह ने आस-पास के क्षेत्रों पर काबिज अंग्रेजों को ख़त्म कर दिया. सर्वखाप पंचायत ने चौधरी शाहमल और मोहर सिंह की सहायता के लिए जनता से अपील की. इस जन समर्थन से मोहर सिंह ने शामली, थाना भवन, पड़ासौली को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया गया. बनत के जंगलों में पंचायती सेना और हथियार बंद अंग्रेजी सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मोहर सिंह वीर गति को प्राप्त हुए परन्तु अंग्रेज एक भी नहीं बचा. चौहानों, पंवारों, और तोमरों ने रमाला छावनी का नामोनिशान मिटा दिया. सर्वखाप पंचायत के मल्ल योद्धाओं ने अंततः दिल्ली से अंग्रेजी राज ख़त्म कर बहादुर शाह को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया. ३० (30) और ३१ (31) मई १८५७ (1857) को मारे गए कुछ अंग्रेज सिपाहियों और अधिकारीयों की कब्रें गाजियाबाद जिले में मेरठ मार्ग पर हिंडोन नदी के तट पर देखी जा सकती हैं.

जुलाई १८५७ (1857) में क्रांतिकारी नेता शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना संकल्पबद्ध हुई पर लगभग 7 हजार सैनिकों सशस्त्र किसानों व जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया। शाहमल के भतीजे भगत के हमले से बाल-बाल बचकर सेना का नेतृत्व कर रहा अंगेज अफसर डनलप भाग खड़ा हुआ और भगत ने उसे बड़ौत तक खदेड़ा। इस समय शाहमल के साथ 2000 शक्तिशाली किसान मौजूद थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण के एक बाग में खाकी रिसाला से आमने सामने घमासान युद्ध हुआ.

डनलप शाहमल के भतीजे भगता के हाथों से बाल-बाल बचकर भागा. परन्तु शाहमल जो अपने घोडे पर एक अंग रक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया. उसने अपनी तलवार के वो करतब दिखाए कि फिरंगी दंग रह गए. तलवार के गिर जाने पर शाहमल अपने भाले से दुश्मनों पर वार करता रहा. इस दौर में उसकी पगड़ी खुल गई और घोडे के पैरों में फंस गई. जिसका फायदा उठाकर एक फिरंगी सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया. अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने शाहमल के शरीर के टुकडे-टुकडे करवा दिए और उसका सर काट कर एक भाले के ऊपर टंगवा दिया.

बाद में अंग्रेज पुनः सत्ता पर काबिज हुए तथा उन्होंने भारी दमन चक्र चलाया. सर्वखाप पंचायत फिर से निष्क्रिय हो गई. मुस्लिम काल में सर्वखाप पंचायत ने अनेक-उतर चढाव देखे परन्तु अंग्रेज बड़े चालक थे उन्होंने सर्वखाप पंचायत की जड़ों पर प्रहार किया. विशाल हरियाणा को उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों में विभाजित कर दिया. अंग्रेज सरकार में लार्ड मैकाले ने सर्वखाप पंचायत पर रोक लगादी थी. फलस्वरूप १९४७ तक खुले रूप में पंचायत का आयोजन नहीं हो सका.

सन १९२४ (1924) में बैसाखी अमावस्या को सोरम गाँव में सर्वखाप की पंचायत हुई थी जिसमें सोरम के चौधरी कबूल सिंह को सर्वखाप पंचायत का सर्वसम्मति से महामंत्री नियुक्त किया था. वे इस संगठन के २८ (28) वें महामंत्री बताये जाते हैं. इनके पास सम्राट हर्षवर्धन से लेकर स्वाधीन भारत तक का सर्वखाप पंचायत का सम्पूर्ण रिकार्ड उपलब्ध है जिसकी सुरक्षा करना पंचायती पहरेदारों की जिम्मेदारी है. इस रिकार्ड को बचाए रखने के लिए पंचायती सेना ने बड़ा खून बहाया है.



आजाद भारत में सर्वखाप पंचायतें:


आजाद भारत में ८, ९ (8, 9) मार्च १९५० (1950) में गाँव सोरम में सर्वखाप पंचायत का आयोजन पंडित जगदेव सिंह सिद्धान्ती मुख्याधिष्टाता गुरुकुल महा विद्यालय किरठल की प्रधानता में हुआ था. इसमें ६०००० (60000) पंचों ने भाग लिया था. तत्पश्चात पूर्व न्यायाधीश श्री महावीर सिंह को हरियाणा सर्वखाप का प्रधान बनाया गया.

१२ (12) जून १९८३ (1983) और ५ (5) मार्च १९८८ (1988) को स्वामी कर्मपाल जी की अध्यक्षता में दो बार हरियाणा सर्वखाप की पंचायतें हुईं जिनमें जाट जाति के उत्थान पर विचार कर समाज को दिशा निर्देश जरी किये गए.

आजादी के बाद पंचायती राज्य व्यवस्था लागू हो गई इससे सर्वखाप व्यवस्था का महत्त्व घट गया. अब वोट की राजनीति होने से जातियों ने अलग-अलग पंचायतें बनाली हैं. जातीय पंचायतों, गोत्रीय पंचायतों, पालों और खापों का महत्त्व बढ़ गया है. आजकल लोग न्यायालाओं में प्रकरणों का निराकरण चाहते हैं इसमें समय और धन दोनों की ही बर्बादी होती है और अनिश्चित लम्बे समय तक विवादों का निराकरण भी नहीं हो पाता है.

आज अखिल भारतीय जाट महासभा जाटों की सर्वोच्च संस्था है. इसके अधीन प्रदेशों में प्रादेशिक जाट महा सभाएं काम कर रही हैं.



धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार पहली खाप पंचायत:


खाप पंचायतो का इतिहास बहुत पुराना है और ये महाभारत काल से लेकर रामायण काल और उसके बाद मुग़ल शासन का सफ़र करते हुए अब इस इकिस्वी सदी (कलयुग) के समाज में अपने वजूद के साथ आज भी कायम है! कहा जाता है कि जब “राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान् शिव को ना बुलाकर उनका अपमान किया गया तब पार्वती जी ये अपमान सह ना पाई और उन्होंने यज्ञ के हवन कुंड कि अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे, जब शिवजी को ये पता लगा तो बहुत क्रोधित हुए और तब उन्होंने वीरभद्र को ये आज्ञा दी कि वो अपनी गन सेना के साथ जा कर राजा दक्ष का यज्ञ नष्ट करके उसका सर काट दे”! खाप पंचायतो कि ये सबसे पुरानी घटना मानी जाती है!


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


इंटेरेंट रूपांतरण: पी. के. मलिक

सहलेखिका: डॉक्टर संतोष दहिया

दिनांक: 10/02/2013

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • http://khappanchayats.com/

  • नि. हा. सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
इ-चौपाल के अंतर्गत मंथित विषय सूची
निडाना हाइट्स के इ-चौपाल परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

इ-चौपाल:


हरियाणवी में लेख:
  1. त्यजणा-संजोणा
  2. बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज
  3. हरियाणवी चुटकुले

Articles in English:
    General Discussions:

    1. Farmer's Balancesheet
    2. Original Haryana
    3. Property Distribution
    4. Woman as Commodity
    5. Farmer & Civil Honor
    6. Gender Ratio
    7. Muzaffarnagar Riots
    Response:

    1. Shakti Vahini vs. Khap
    2. Listen Akhtar Saheb

हिंदी में लेख:
    विषय-साधारण:

    1. वंचित किसान
    2. बेबस दुल्हन
    3. हरियाणा दिशा और दशा
    4. आर्य समाज के बाद
    5. विकृत आधुनिकता
    6. बदनाम होता हरियाणा
    7. पशोपेश किसान
    8. 15 अगस्त पर
    9. जेंडर-इक्वलिटी
    10. बोलना ले सीख से आगे
    खाप स्मृति:

    1. खाप इतिहास
    2. हरयाणे के योद्धेय
    3. सर्वजातीय तंत्र खाप
    4. खाप सोशल इन्जिनीरिंग
    5. धारा 302 किसके खिलाफ?
    6. खापों की न्यायिक विरासत
    7. खाप बनाम मीडिया
    8. खाप बनाम तैमूर-लंग
    हरियाणा योद्धेय:

    1. हरयाणे के योद्धेय
    2. दादावीर गोकुला जी महाराज
    3. दादावीर भूरा जी - निंघाईया जी महाराज
    4. दादावीर शाहमल जी महाराज
    5. दादीराणी भागीरथी देवी
    6. दादीराणी शमाकौर जी
    7. दादीराणी रामप्यारी देवी
    8. दादीराणी बृजबाला भंवरकौर जी
    9. दादावीर जोगराज जी महाराज
    10. दादावीर जाटवान जी महाराज
    11. आनेवाले
    मुखातिब:

    1. तालिबानी कौन?
    2. सुनिये चिदंबरम साहब
    3. प्रथम विश्वयुद्ध व् जाट

NH Case Studies:

  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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