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!!!......गंभीरतापूर्वक व् सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी राय रखना - बनाना, दूसरों की राय सुनना - बनने देना, दो विचारों के बीच के अंतर को सम्मान देना, असमान विचारों के अंतर भरना ही एक सच्ची हरियाणवी चौपाल की परिभाषा होती आई|......!!!
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बेबस दुल्हन
उन्होंने बेचा, इन्होने खरीदा...ना भेजना ऐसे देशों में हो दाता|
दूसरे राज्यों से लाई गई दुल्हनों में भी स्थानीय दुल्हन जैसा आत्म-सम्मान बने, उसके लिए इस दुल्हन की खरीदारी को व्यवस्थित शादी के चलन में ढालना होगा|

हर कोई महिला उत्पीड़न के मामलों से त्रस्त तो दीखता है पर इनके समाधान करने को ले गंभीर कोई-कोई ही| महिला अधिकार, सम्मान और स्वतन्त्रता की बातें तो ऐसी हो के रह गई हैं जैसे कोई नेता जी की राजनितिक रैली के भाषण, जहां सिर्फ वोट लेने भर के लिए लुभावने शब्द बोलो और चलते बनो| पर आज के बुद्धिजीवी, समाजसुधारक और पत्रकार वर्ग तो नेताओं से भी दो कदम आगे निकले दीखते हैं|

आज के दिन ऐसा ही एक मुद्दा है हरियाणा में बिहार-बंगाल एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों से खरीद (क्या कोई उन्हें ब्याह के भी लाता है या यहाँ आने के बाद ब्याह रचाता हो?) कर लाई जाने वाली दुल्हनों का| धरातलीय असलियत में देखो तो इन दुल्हनों से बड़ी पूज्य और शक्तिशाली देवी कोई नहीं, क्योंकि वंश के मिटने के कगार पे आन खड़े हुए घरों या दुल्हन ना मिलने की उम्मीद छोड़ चुके घरों के लिए तो ये किसी देवी के अवतार से कम नहीं| परन्तु दर्द तब उठता है जब समाज के समाज-सुधारक, सभ्य-कुलीन-शालीन कहे जाने वालों से ले पत्रकार लोग भी इनको अपने कार्यकर्मों और भाषणों का विषय बना अपनी पीठ थपथपाने की बीमारी पे मरहम सा लगा के, समाज के कर्णधार होने का चोगा पहने तो दीखते हैं, लेकिन इस जीती-जागती इंसान के व्यापार की वस्तु बनने को कैसे रोका जाए इस पर आजतक शायद ही किसी का ध्यान गया हो?

क्या इन महानुभावों और हर उस महानुभाव जिसको मानवीयता की समझ है नें कभी सोचा है कि जब यह चलन समाज में आ ही गया है तो क्यों ना इसके ऊपर से बेचने-खरीदने के कलंक को धोया जाए? और ऐसे रिश्तों के दोनों पक्षों को जागृत किया जाए कि बेटी को बेचने वाला बेचने के बजाय अपनी बेटी को डोली में विदा करे और खरीदने वाला खरीदे नहीं बल्कि बाकायदा ब्याह कर लायें? ताकि वो लड़की अपनी जिंदगी इस दंश के साथ ना जिए कि उसके पिता और मायके वालों से उसे बेचा था और ससुराल में भी वो खरीद के लाई हुई है बल्कि उसी सम्मान और स्वाभिमान से जिए जिससे कि एक आम दुल्हन जीती है?

और दुःख तो तब होता है जब कोई बिहार, बंगाल का पत्रकार/समाज-सेवी भी हरियाणा पर यह सवाल उठाता है कि यहाँ तो दुल्हनें भी खरीद कर लाई जाने लगी हैं| मैं पूछता हूँ उन पत्रकारों से कि बेशक दुल्हन खरीदना जितना बड़ा सामाजिक कुकृत्य हो सकता है, क्या उससे कहीं बड़ा बेटियां बेचना नहीं? खरीदार बड़ा दोषी या बेचने वाला?

और फिर ऐसा तो है नहीं कि बिहार-बंगाल में बेटियां तभी से बेचीं जाने लगी हैं जबसे हरियाणा वालों ने खरीदनी शुरू की हैं| इस नरजिये से कोई नहीं देखता कि हरियाणा वाले अनजाने में ही सही पर इसके जरिये भी कितना पुन्य का काम कर रहे हैं:

  1. पहले वो लड़कियां जो हैदराबाद, मुंबई, दुबई जैसी जगहों पे देह-व्यापार के लिए जाती थी (और आज भी ऐसी लड़की जो बेची जाती हो और वो हरियाणा नहीं आ पाती तो वो वहीँ जाती हैं) तो कम से कम हरियाणा में आके वो घरों कि दुल्हनें तो बनती हैं|

  2. लड़कियों की कमी के चलते ही सही पर कितनी ही ऐसी लड़कियों का भविष्य देह-व्यापार कि दलदल में गिरने से तो बच जाता है जो अगर हरियाणा ना आई होती तो पता नहीं कितनों के हाथों आगे बेची जाती| यहाँ आके कम से कम घरों की इज्जत-रोनक तो बनती हैं|

  3. इससे अंतरजातीय एवं अंतर-राज्यीय विवाहों को बढ़ावा तो मिल रहा है|

  4. इससे धन-दौलत से गरीब-आमिर में रिश्ते बन रहे हैं|

  5. यहाँ आके वो इनके परिवारों में जमीन-सम्पत्ति-दौलत सब में कल को बराबर की हकदार तो होंगी|

और फिर तुम्हे लडकियां बेचने का मलाल है तो सीधे ब्याह करने शुरू क्यों नहीं करवाते? तब क्या कोई उनको दुल्हन बनाने से इनकार कर देगा? क्यों नहीं कहते खरीदने वालों को कि मैं बेटी बेचूंगा नहीं बल्कि दुल्हन के रूप में विदा करूँगा| उनकी इस बात पे शायद ही कोई ऐसा सख्श होगा जो उनको दुल्हन बना के लाने से ना कर दे?

जब चर्चा शुरू की तो मेरे एक मित्र के पास एक ऐसा मामला आया, जिसमें कि कैथल के सीवन गाँव का युवक जो खरीदकर दुल्हन लाने की मंशा से औरंगाबाद, महाराष्ट्र दुल्हन के घर पहुंचा तो लड़की की माँ ने कहा कि हमें तो शादी का अधिकारिक प्रमाणपत्र चाहिए क्योंकि हम यह कलंक ले के नहीं जी सकते कि हमनें लड़की बेचीं है| और लड़के ने ख़ुशी-ख़ुशी लड़की से शादी की और बाकायदा परम्परागत तरीके से लड़की को ब्याह कर लाया| इससे उसकी भी इज्जत रही और लड़की का भी आत्म-सम्मान बचा|

इन बड़बोले पत्रकारों/समाजसेवियों में से जा के ऐसी ही जागरूकता फैलाएगा कोई उन बेचने वालों के बीच कि तुम्हे बेचने की जरूरत नहीं बल्कि खरीदने वालों के आगे ब्याह के ले जाने का प्रस्ताव रखो तो देखो कोई कैसे नहीं बाजे-गाजे के साथ उनको दुल्हन बना के लायेगा? रिश्ते मधुर बनें जिनसे ऐसे तरीके सोचना तो इनके लिए मुहाल है| हाँ समाज को बाँट के रखने के कार्यक्रम तो इनसे कितने ही करवा लो|

मुझे भी दुःख होता है जब मैं कहीं भी यह सुनता हूँ कि फलाना बिहार-बंगाल से दुल्हन खरीद के लाया है और हर वक्त यही सोचता हूँ कि यह ब्याह के भी तो लाई जा सकती थी| हम हरियाणा के बिहार और बंगाल से शुरू हो चुके इन रिश्तों को अब झूठला नहीं सकते लेकिन इनको एक सभ्यता का अमली-जामा तो पहना सकते हैं, इस खरीदारी को बाकायदा शादी के विधान में तब्दील करके, क्या नहीं?

हरियाणा के भी हर उस निवासी को जो ऐसे दुल्हनें लाने का इच्छुक हो, लड़की वाले के आगे सर्वप्रथम यह प्रस्ताव रखना चाहिए कि हम आपकी बेटी को बाकयदा ब्याह के ले जाना चाहते हैं, क्योंकि जो आपके घर एक स्थाई सदस्य के रूप में आ रही है, वो आपके बच्चों की माँ होगी, कल आपकी जमीन-जायदाद में बराबर की हक़दार भी होगी| तो एक हकदारी को खरीदिये मत, बाकायदा सामाजिक तौर-तरीकों से ब्याह के विदा करने का अनुरोध कीजिये उनसे, ताकि कल को उस औरत को भी जीवन भर इस अहसास से ना जीना पड़े कि मेरे बाप या घरवालों ने मुझे बेच दिया था और यहाँ मैं खरीद के लाई हुई हूँ|

तो आज के दिन की इस सच्चाई को स्वीकार किया जाए और ऐसे प्रयास शुरू किये जाएँ, जिनसें ऐसी शादियों को खरीदारी के दाग से बचा, बाकायदा अंतर-जातीय और अंतर-राज्यीय विवाहों के विधान में समाहित किया जा सके?


अगर हरियाणा और उन राज्यों के बीच ये ऊपर कहे हुए तरीके से हो जाए तो:

  1. ना ही तो माँ-बाप पर लड़की को बेचने का कलंक लगेगा

  2. ना ही ससुराल वालों पर खरीदने का आरोप लगेगा

  3. और जो आजकल अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे खरीद के लाई हुई लड़कियां भरोसे लायक नहीं होती क्योंकि वो भाग जाती हैं, तो आप क्या मानते हैं कि एक ऐसी लड़की जिसका माँ-बाप और ससुराल दोनों जगह ऐसा बद्धा मजाक बना हो तो वो भागने से भी कतराएगी? सच तो यह है कि ऐसी लड़कियों का आत्म-सम्मान टूट चुका होता है और वो माँ-बाप के उनको बेचने के दंश के साथ जब ससुराल में भी पाती हैं कि उनको सिर्फ खरीद के लाई हुई कहा जाता है तो वो बेचारी भागें नहीं तो कहाँ आदर-मान धरवायें अपना? तो अगर यह हो जाए तो बशर्ते ही उनके भागने की आशंकाएं कम होंगी|


हरियाणवी दुल्हन मिलना अब नहीं रहा इतना आसान: और अगर कोई यह कहे कि इस स्थिति की एक ही वजह है और वह है लिंगानुपात में इतना बड़ा अंतर, तो वह महानुभाव अपनी गलत फहमी दूर कर ले| क्योंकि लिंग अनुपात की समस्या तो हरियाणा में आज से सौ साल पुरानी है| और तजा आंकड़े देखो तो स्थिति मामूली ही सही पर सुधरी हुई नजर आती है| हमारे अनुसार निम्नलिखित कारण हैं जिनकी वजह से दूसरे राज्यों से लड़कियां खरीद के लाई जा रही हैं:

  1. स्थानीय लड़कियों और महिलाओं का शिक्षित और जागरूक होना|

  2. हर माता-पिता का अपने बेटे-बेटी को बराबर की शिक्षा से अवसर प्रदान करना|

  3. लड़की के शिक्षित होने की सूरत में किसी भी लड़की का अपने से कम पढ़े लिखे या कम साधन-संपन्न लड़के से विवाह करने को राजी ना होना और लड़की तो क्या माता-पिता खुद ऐसा वर ढूँढने लगे हैं जो कि उनकी बेटी की शिक्षा और काबिलियत के समकक्ष खड़ा होता हो|

  4. जमीनों की दिन-ब-दिन छोटी होती जोतों का: पहले जमाने में जहां जमीन एक वर की योग्यता का अहम पैमाना होता था वहीँ आज जमीन से पहले लड़के की काबिलियत और रोजगार की क्षमता देखी जाने लगी है, जिसके चलते कम-पढ़े लिखे लड़के स्वत: ही दौड़ से बाहर हो जाते हैं और उनको बाहर से दुल्हनें लानी पड़ती हैं|

पिछले सौ सालों से हरयाणा में लिंग-अनुपात की स्थिति

5. नौकरियों में आरक्षण और सिफारिस का चलन बढ़ना: जिसके चलते जो एक-आध गैर-आरक्षित वर्ग का लड़का नौकरी ले सकता था वो उससे वंचित रह जाता है और फिर उसके पास राज्य से बाहर से दुल्हन लाने के अलावा कोई मार्ग नहीं बचता|

विश्लेष्ण: मेरे इस लेख से यह मतलब कोई ना निकाले कि इस मुद्दे को प्रस्तुत करने से कन्या भ्रूण हत्या या लिंगभेद के अन्य मुद्दे गौण हो जायेंगे, नहीं बल्कि उन मुद्दों की आवाज में इस खरीदारी के मुद्दे में गौण हो चली उस आत्मसम्मान को ढूँढती औरत की पीड़ा को मैंने उजागर किया है| जितना मूल्य एक कन्या के जीवन का है, जितना मूल्य एक स्थानीय नारी के सम्मान का है उतना ही मूल्य इन दुल्हनों का भी है जो कि खरीद के लाई जा रही हैं| इसीलिए आगे आइये और हरियाणा और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच इन विवाह के चल निकले नए चलन को खरीदारी की जगह शादी के विधान में स्थापित करें|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेखक: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 30/10/2012

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

  • सुरेन्द्र चुघ, सीवन, कैथल

साझा-कीजिये
 
इ-चौपाल के अंतर्गत मंथित विषय सूची
निडाना हाइट्स के इ-चौपाल परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

इ-चौपाल:


हरियाणवी में लेख:
  1. त्यजणा-संजोणा
  2. बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज
  3. हरियाणवी चुटकुले

Articles in English:
    General Discussions:

    1. Farmer's Balancesheet
    2. Original Haryana
    3. Property Distribution
    4. Woman as Commodity
    5. Farmer & Civil Honor
    6. Gender Ratio
    7. Muzaffarnagar Riots
    Response:

    1. Shakti Vahini vs. Khap
    2. Listen Akhtar Saheb

हिंदी में लेख:
    विषय-साधारण:

    1. वंचित किसान
    2. बेबस दुल्हन
    3. हरियाणा दिशा और दशा
    4. आर्य समाज के बाद
    5. विकृत आधुनिकता
    6. बदनाम होता हरियाणा
    7. पशोपेश किसान
    8. 15 अगस्त पर
    9. जेंडर-इक्वलिटी
    10. बोलना ले सीख से आगे
    खाप स्मृति:

    1. खाप इतिहास
    2. हरयाणे के योद्धेय
    3. सर्वजातीय तंत्र खाप
    4. खाप सोशल इन्जिनीरिंग
    5. धारा 302 किसके खिलाफ?
    6. खापों की न्यायिक विरासत
    7. खाप बनाम मीडिया
    हरियाणा योद्धेय:

    1. हरयाणे के योद्धेय
    2. दादावीर गोकुला जी महाराज
    3. दादावीर भूरा जी - निंघाईया जी महाराज
    4. दादावीर शाहमल जी महाराज
    5. दादीराणी भागीरथी देवी
    6. दादीराणी शमाकौर जी
    7. दादीराणी रामप्यारी देवी
    8. दादीराणी बृजबाला भंवरकौर जी
    9. दादावीर जोगराज जी महाराज
    10. दादावीर जाटवान जी महाराज
    11. आनेवाले
    मुखातिब:

    1. तालिबानी कौन?
    2. सुनिये चिदंबरम साहब
    3. प्रथम विश्वयुद्ध व् जाट

NH Case Studies:

  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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