हरियाणा सामाजिक चीजों को ले के ईतना बदनाम क्यों हो रहा है?
क्यों नहीं होगा, अब देश का सारा बुद्धिजीवी वर्ग तो हरियाणा के एन सी आर में आके बैठ गया है, सारे मीडिया के कार्यवाही केंद्र यहाँ खुल गए हैं| बिहार-बंगाल हो चाहे आसाम-उड़ीसा वहाँ का सारा उत्तम (creamy) पत्रकार वर्ग तो हरियाणा में आ जमा है| और इन राज्यों में तो सुना है लोग जन्मजात पत्रकार होते हैं| जे एन यू जैसे विश्वविधालयों में अधिकतर पत्रकारिता करने वाले भी इन्हीं इलाकों के हैं| तो अब जब इनको सामाजिक पत्रकारिता पे शोध करना होता है तो दूर-दराज या इनके राज्यों में जा के तो ये लोग शोध करते नहीं, बस एक ले दे के इनको ये नजदीक पड़ा हरियाणा नजर आ जाता है|
फिर चाहे ये खुद ऐसी ही सामाजिक बिमारी से तंग आ मारे-मारे फिरते हों, पर डॉक्टर बन जाते हैं हरियाणा में सामाजिक परिवेश के| ज्ञान ध्यान तो दूर भले ही हरियाणा के सामाजिक परिवेश का इनको अ-ब-स-र भी ना पता हो|
एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत जिसको मानसिक सुरक्षा का सिद्धांत भी कहते हैं, वो बताता है कि इंसान ऐसा तब करता है जब उसको अपने अस्तित्व के खत्म होने या उसपे हमला होने का खतरा होता है| अब बताओ यह कोनसा मुंबई है कि यहाँ कोई शिवसेना या महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना उनपे कभी उनकी भाषा तो कभी उनकी क्षेत्रवाद की पहचान के कारण कोई तंग करेगा|
मेरे भाइयो यह हरियाणा की धरती है यहाँ ऐसे-ऐसे लोगों को हम आपने घरों-गाँव में बर्दास्त नहीं करते तो हम अपने भाइयों पे ऐसा होनें देंगे क्या?
मैं एक किस्सा सुनाता हूँ, एक बार क्या हुआ कि मेरे गाँव में एक भैसों का व्यापारी (उसकी जाति जानबूझकर छुपा रहा हूँ) होता था| तो क्योंकि वो गाँव का बेटा था तो गाँव-गुव्हांड से लाखों रूपये की भैंसे ले गया (हरियाणा से मध्य-प्रदेश और महाराष्ट्र में मुख्य रूप से भैंसे खरीद के ले जाई जाती हैं) और पूना में जा के बस गया| अब हुआ यूँ कि जो भी उससे पैसे देने की कहता तो वो धोंस दिखा देता कि नहीं देता| तो उसके इस व्यवहार से उसनें सभी दुश्मन खड़े कर लिए| और हालात ज्यादा बिगड़ते देख एक दिन अपने परिवार को भी पूना बुला लिया|
अब तो उसके लेनदारों का उसपे और भी गुस्सा बढ़ गया| और क्योंकि ये हरियाणवी होते हैं सो धोंस तो ये अपने घरवालों की नहीं मानें, फिर दुसरे घर या बाहर का तो इनका लागे कौन?
तो एक भाई जिसकी ये व्यापारी साहब 3 भैंसे ले गए थे (अगर आज की कीमत में कहूँ तो करीब 2 लाख रूपये) तो उस भाई को उठा गुस्सा और उसने उस व्यापारी की हवेली पर ही कब्ज़ा जमा लिया| उधर मुंबई और पूने के भाईगिरी के माहौल ने उस व्यापारी का दिमाग वहीँ का बना दिया था और वो इस मति का हो चुका था कि गुंडों से कोई भी काम करवा लूँगा|
तो जब उसको पता लगा कि गाँव में उसकी हवेली कब्ज़ा ली गई है तो जनाब 5 मुम्बईया गुंडों के साथ हवेली खाली करवाने गाँव आया| और सच मानियेगा पूरे मुम्बईया अंदाज में हवेली के आगे आके धहाड़ा और जिस भाई नें उसकी हवेली कब्ज़ा रखी थी साथ लाये गुंडों से उसको बाहर निकालने को कहा|
और क्योंकि उसके लेनदारों को यह बात पहले से पता चल चुकी थी तो सब खार खा गए, कि यह तो वही बात हो गई कि एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी यानी भैंसे भी ले गया और भैंसों की कीमत देने के बजाये हम पर ही गुंडे ले के चढ़ा आ रहा है| अब हरियाणवी खून था खौल गया सबका| और सबनें एक रूप-रेखा तैयार की, कि पहले प्यार से मनायेगें, गाँव का और बचपन का साथी होने का वास्ता देंगे लेकिन अगर फिर भी नहीं माना तो...इसके लिए जो सोचा गया वो आगे बता रहा हूँ सीधा कार्यवाही के तहत...
तो उसको पहले समझाया गया की गंगा (उसका नाम था) ऐसा मत कर| तू अपनी संस्कृति को अच्छे से जनता है, यहाँ धोंस दिखा के तो कोई गली से नहीं निकल सकता और तू हवेली खाली करवाने की बात कह रहा है, एक तो तूने हमसे भैंसे ली और अभी तक पैसे नहीं लौटाए और उसपे तेरी ये सीनाजोरी| सच मान हमें अपने बचपन की लिहाज ना होती तो तू गाँव के अंदर तक भी ना पाता और तू अभी यहाँ खड़ा धोंस दिखा रहा है|
तो ऐसे ही मान-मनुहार चली, लेकिन वो नहीं माना| तो उधर गाँव में एक ऐसा पहलवान था (आज भी है) जिसका खून इतना गाढ़ा था कि एक बार वो खून-दान करने गया तो उसका खून बोतल की नालियों में ही नहीं चढ़ा| तो डॉक्टर को कहना पड़ा कि भाई तेरा खून नहीं ले सकते हम, बहुत गाढ़ा है और नालियों के जरिये बोतल में नहीं जा रहा| तो वो भी उनमें से था जिसकी की गंगा भैंसें ले के गया था| बस फिर क्या था बात नहीं बनी और जब गंगा अपनी हठधर्मी पर अड़ा रहा तो अपने साथ लाए मुम्बईया गुंडों को हवेली के अंदर से सामान बाहर फेंकनें को कह बैठा| तो फिर क्या था गाढ़े खून वाले पहलवान नें गंडास उठा लिया और फिर गई मति|
हमारे हरियाणा में गाँव ऐसे होते हैं कि सबकी छत-से-छत लगी होती है सो अगर एक घर से चढो तो लगातार 20 घरों की छतों पे चढ़ते हुए भाग सकते हो|
तो उसनें चढ़ा दिया उनको गाँव की छतों पर (गाँव की छतों पर चढाने का मतलब होता है कि उसनें उन पाँचों को गलियों से बच के भागने नहीं दिया और वो अपनी जान बचाने के लिए छतों पर चढ़ गए)|
बस फिर क्या था वो आगे-आगे, अपना पहलवान पीछे-पीछे| उनमें से 2 आ के रुके मेरे घर की छत पे| अब मेरा घर है गाँव के चौराहे पे| जिसके 2 तरफ गलियां, वो भी सदर गली 20-20 फुट चौड़ी| और क्योंकि हमारी हवेली 3 मंजिला है तो अब तीन मंजिल से कूदें कैसे?
लेकिन जब पीछे मौत नाचती आ रही हो तो कौन नहीं कूदेगा...सो कूद गए| बेचारों के कूदते ही हाथ-पैर टूट गए| एक पल को उन्हें लगा कि अब तो पीछा छोड़ेगा ही लेकिन वो उबला हुआ गाढ़ा खून कूद गया उन्हीं के ऊपर| और झट से एक की टांग पर गंडासी से हमला कर दिया| दूसरे की तरफ बढ़ता इससे पहले ही गाँव वाले आ गए और उसको संभाला और उसको किसी तरह रोका गया| और दूसरे नें उसके पैर पकड़ लिए और बोला मुम्बईया स्टाइल में कि भाई आज के बाद हरियाणा की तरफ मुंह भी नहीं करूँगा, बस आज-आज बख्स दे|
फिर गंगा की इस हरकत पर गाँव में पंचायत हुई और गंगा नें अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी| और पंचायत ने कहा कि एक तुम सिर्फ अपने ही गाँव से नहीं बल्कि गुव्हांडों (पड़ोसी गावों) से भी भैंसे ले के गए और किसी का पैसा नहीं लौटाया और ऊपर से गाँव में ऐसा उत्पात? गंगा अगर गाँव के ना होते तो तुम्हे पुलिस के हवाले कर दिया गया होता अभी तक|
गंगा ने कहा कि मैं आज के बाद गाँव में नहीं आऊंगा| तो पंचायत नें कहा कि गाँव में ना आने का नैतिक अधिकार तो तुम अपने आप ही खो चुके हो| तुम गुंडे ला के और गाँव में उत्पात मचाने के बाद पंचायत के पास आये, तुम सीधे भी तो आ सकते थे| हम भी तुम्हारे साथ चलते और तुम पैसे देते ला के तो हम भी तुम्हारी मदद करते तुम्हारी हवेली खाली करवाने में| लेकिन अब तो तुमने हमारा भी नैतिक अधिकार खो दिया है किसी को ये कहने का कि वो तुम्हारी हवेली खाली कर दे|
तो मित्रो जब हम अपने गाँव-घर में ही ऐसे उत्पातियों को नहीं सहन करते तो ये व्यर्थ डर अपने दिल से निकाल हरियाणा को आपकी अपनी धरती माँ मान बेख़ौफ़ रहो और हमारी संस्कृति का आदर करो और आदर पाओ|
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
लेखक: पी. के. मलिक
प्रथम संस्करण: 07/02/2013
प्रकाशन: निडाना हाइट्स
प्रकाशक: नि. हा. शो. प.
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