तैमूर का भारत आगमन व् अत्याचार: बात उस समय की है जब मार्च 1398 ई0 में तैमूर-लंग ने 92000 घुड़सवारों की फौज लेकर भारत पर तूफानी आक्रमण किया था। तैमूर के सार्वजनिक कत्ले आम, लूट-खसोट और सर्वनाशी आक्रमणों से तमाम भारत थरथर कांप उठा था। तैमूर-लंग क्रूर और अत्याचारी था, उसके असंख्य आंधी व तूफान की भांति चलते लश्करों के रस्ते में जो नगर-गांव पड़ता उसको लूटना, उजाड़ना, नर-नारियों को गुलाम बनाना और जब उनकी संख्या एक लाख हो जाती तो उन्हें तलवार की धार से कत्ल कर आगे बढ़ जाना उसका दैनिक कार्यक्रम तथा व्यवहार था।बगदाद को लूटने के बाद भी उसने एक लाख से अधिक लोगों का वध कराया था। 1398 के उसके भयानक तूफानी आक्रमण को इतिहासकारों ने भगवान का प्रकोप तक कहा। पंजाब में सर्वनाश के बाद जब वह बागे बढ़ा तो भारत की भूमि भी उसके अत्याचारों से कांप उठी।
उसकी क्रूरता, हृदयहीनता व् निर्दयता का आलम इतना था कि उसके भय से दिल्ली का तुर्क सुल्तान महदूम तुगलक कांप उठा था। तैमूर ने पहले पंजाब के हरे भरे चमन को उजाड़ कर वीरान कर दिया और फिर दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली में तुगलक को हराने व् हारकर तुगलक के दिल्ली छोड़ भाग जाने के बाद तैमूर ने दिल्ली में खूब रक्तपात किया व् दिल्ली की गलियों में खूब लूटपाट मचाई| दिल्ली नगर की गलियों में खून वर्षा के पानी की तरह बहने लगा। दुनियाँ में शायद ही इतना बड़ा कातिल पैदा हुआ हो जितना कि तैमूर साबित हुआ। दिल्ली के बादशाह महमूद तुगलक के 50000 पचास हजार सैनिकों तथा 120 हाथियों को सफाया करके दिल्ली के निकट लोनी में एक लाख हिन्दू जनता को तलवार के घाट उतारा। समस्त प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी, सब को उस दैत्य से आत्मरक्षा की चिंता होने लगीl
अब उसका इरादा सहारनपुर, हरिद्वार, मेरठ, बागपत आदि गंगा-यमुना नदियों के मध्य का हराभरा प्रदेश बर्बाद करने का था लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि गंगा-जमुना के मैदानों में ही उसके जुल्म रुपी रथ को नकेल पड़ जाएगी और उसे सर्वदा के लिए भारत से वापिस लौटना होगा और वही उसके साथ सर्वखाप के केंद्रबिंदु वाली धरा पर हुआ। उस समय ग्रामीण जनता में सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत जो मुख्य रूप से जाटों, गुर्जरों, अहीरों, व् राजपूतों जैसी बड़ी किसानी व् दलित-कमेरा वर्ग की जातियों की सम्मिलित पंचायते हुआ करती थी, काम कर रही थी। दिल्ली की तरफ कोई जीतता हुआ बढ़ता था तो यह सर्वखापोँ के लिए सावधान होने के संकेत होते थे और अगर किसी से दिल्ली तक के शासक हार जाएँ या खतरे में पड़ जाएँ तो वह उनके सक्रिय होने का मापदंड रहता आया है| अत: तैमूर द्वारा दिल्ली को लूटने की खबर सुन खापों में खलबली मची और खापों ने एकत्रित होना शुरू किया|
हरयाणा सर्वखाप फैलाव व् संगठन (एक परिचय): प्राचीन काल में हमारे गांवों का प्रशासन बड़ा मजबूत था, प्रत्येक गांव एक गंणतंत्र जैसा था (जिसकी झलक आज भी एक हद तक खापलैंड के हर गाँव में बाकी है)। गांव की प्रत्येक व्यवस्था पंचायत संस्था करती थी। यह संस्था गाँव की न्याय व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शान्ति तथा सुरक्षा व्यवस्था के लिये उत्तरदायी होती थी। समाज की मर्यादा तोड़ने वाले को ग्राम बहिष्कार तक दण्ड भुगतना पड़ता था। चोर, डाकू, लुटेरे यहां तक कि राजा अथवा शासन से भी निपटने के लिए गांव की एक सुव्यवस्थित सेना होती थी। ग्राम पंचायतों का समूह खाप पंचायत और सारी खाप पंचायतों का समूह सर्वखाप पंचायत कहलाता था। ध्यान रहे बिहार-बंगाल की स्थानीय व् केरल-तमिलनाडु में पाई जाने वाली कट्टा पंचायतों से इनका स्वरूप बिलकुल अलग है, उनसे खाप की कोई तुलना नहीं बैठती| 1857 से पहले बरेली-मैनपुरी से ले के हिसार-सिरसा तक और हरिद्वार-अम्बाला से ले आगरा-भरतपुर तक, यह सारा क्षेत्र प्राचीन हरियाणा की प्रधान सर्वखाप पंचायत थी। इस खाप पंचायत का कार्यक्षेत्र वर्तमान मेरठ कमीश्नरी (उत्तर प्रदेश) वर्तमान आगरा डिवीजन (उत्तर प्रदेश) धौलपुर (राजस्थान) चम्बल नदी तक, वर्तमान दिल्ली राज्य, वर्तमान अम्बाला डिवीजन से लुधियाना तक फैला हुआ था। प्राचीन हरियाणा प्रदेश का लगभग सारा भूखण्ड इसमें आता था। इस सर्वखाप पंचायत की एक सुसंगठित व् सुसज्जित खापसेना थी, और गाँव स्तर पर पाली जाने वाली टुकड़ियां इसकी न्यूनतम इकाई। इस सेना का मुख्य काम प्रदेश की संकटकाल में सुरक्षा तथा हिफाजत करना था। इस सर्वखाप पंचायत का सदियों पुराना रिकार्ड वर्तमान मुजफरनगर के सोरम गांव (सर्वखाप पंचायत का ऐतिहासिक मुख्यालय) में सुरक्षित है जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण सुरक्षित दस्तावेज है। इस सर्वखाप पंचायत में जाति भेद नाम मात्र को भी नहीं रहा कभी। यह सभी जाति, धर्म, वर्ग और ग्रामीण समुदायों का महत्वपूर्ण सैनिक संगठन था जो संकट काल में सक्रिय हो जाता था। शान्तिकाल में यह संगठन समाज सुधार और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर ध्यान देता था।
देवपाल राजा द्वारा तैमूर को रोकने हेतु सर्वखाप महापंचायत बुलाना: हरयाणा सर्वखाप पंचायत के ऐतिहासिक रिकार्ड, दस्तावेज-43 तथा सर्वखाप पंचायत के तत्कालीन चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) के लिखित लेखों (पोथी) के अनुसार जिस समय तैमूर पश्चिम पंजाब में लूट खसोट और खून की होली खेलकर अपनी खूनी प्यास बुझा रहा था उसके दिल्ली और हरिद्वार आक्रमण की सम्भावना से सतर्क होकर सर्वखाप पंचायत का विशेष अधिवेशन संवत् 1455 (सन् 1398 ई०) कार्तिक बदी 5 को देवपाल राजा (आपका जन्म निरपड़ा गांव जि० मेरठ में एक जाट घराने में हुआ था) की अध्यक्षता में हरयाणा सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन जि० मेरठ के गाँव टीकरी, निरपड़ा, दोगट और दाहा के मध्य जंगलों में हुआ।
महापंचायत में सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये: - सब गांवों को खाली कर दो।
- बूढे पुरुष, स्त्रियों तथा बालकों को सुरक्षित स्थान पर रखो।
- प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति सर्वखाप पंचायत की सेना में भर्ती हो जाये।
- युवतियाँ भी पुरुषों की भांति शस्त्र उठायें।
- दिल्ली से हरिद्वार की ओर बढ़ती हुई तैमूर की सेना का छापामार युद्ध शैली से मुकाबला किया जाये तथा उनके पानी में विष मिला दो।
- 500 घुड़सवार युवक तैमूर की सेना की गतिविधियों को देखें और पता लगाकर पंचायती सेना को सूचना देते रहें।
पंचायती सेना के झण्डे के नीचे 80,000 मल्ल यौद्धेय सैनिक और 40,000 युवा महिलायें शस्त्र लेकर एकत्र हो गये। महिला वीरांगनाओं ने युद्ध के अतिरिक्त खाद्य सामग्री का प्रबन्ध भी सम्भाला। दिल्ली के 100-100 कोस चारों ओर के क्षेत्र के वीर यौद्धेय देश रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने रणभूमि में आ गये। सारे क्षेत्र में युवा तथा युवतियां सशस्त्र हो गये। इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट यौद्धेय जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था। आपने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया। आपने तथा आपके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया। लड़ाई के मैदान की बानगी बयाँ करने तक पहुंचने से पहले सेना के प्रधान, उप्रधान, सहायक, उपसहायक व् सामान्य सेनापतियों का परिचय रखते हुए चलेंगे|
सर्वखाप सेना के प्रधान सेनापति महाबली दादावीर जोगराज पंवार जी महाराज: हरियाणा के प्रसिद्ध इतिहासकार स्वामी ओमानन्द जी के एक आलेख में तैमूर के युद्ध का वर्णन उन्होंने इस प्रकार किया है वीर गुर्जर जाति में पीछे भी अनेक वीर हुए हैं जिनमें जोगराज गुर्जर जिला सहारनपुर बहुत ही प्रसिद्ध हुआ है। वह हरियाणें की सर्वखाप पंचायत का मुख्य सेनापति था। वह बड़ा बलवान और वीर था। उसका शरीर अत्यंत सुन्दर और सुदृढ़ था। उसमें 64 धड़ी (320 किलो) अर्थात 8 मण पक्का भार था। इसने ज्वालापुर के निकट पथरी रणक्षेत्र में तैमूर से भयंकर युद्ध किया था। इसका एक उपसेनापति जिला हिसार का धूला भंगी था जिसमें 53 धड़ी (265 किलो) भार था। इसका दूसरा उप सेनापति जिला रोहतक के बादली गुलिया ग्राम का हरवीर सिंह नाम का 22 वर्षीय 56 धड़ी (280 किलो) वजनी जाट युवक था, जिसने तैमूर की छाती में भाला मारा था। वह वहीं वीर गति को प्राप्त हो गया । इस वीर की सहायतार्थ स्वयं सेनापति जोगराज लड़ता हुआ इसके निकट पहुंचा किन्तु उस समय तक इस वीर प्रवर के प्राण पखेरू उड़ गए थे । उसके शव को स्वंय जोगराज उठा कर लाया था। जोगराज को इस वीर की मृत्यु का बड़ा आघात पहुंचा। उसके पीछे स्वयं जोगराज सेनापति का क्या हुआ, यह इतिहास के भू-गर्भ में छिपा है। दाईं ओर दादा जोगराज जी का रेखाचित्र है|
राजा देवपाल की अध्यक्षता में हुए सर्वखाप पंचायत के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से वीर यौद्धेय जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया। आप खूबड़ परमार वंश गुर्जर जाति के यौद्धेय थे| आपने दादा मानसिंह के यहां सन 1375 ईस्वी में हरिद्वार के पास गाँव कुंजा सुन्हटी में अवतार लिया था| बाद में यह गाँव मुगलों ने उजाड़ दिया तो वीर जोगराज सिंह के वंशज उस गांव से चल लंढोरा (जिला सहारनपुर) में आकर आबाद हो गये, जहां कालांतर में लंढोरा गुर्जर राज्य की स्थापना हुई। आप आजन्म अविवाहित तथा ब्रहमचारी रहे| आप अपने समय के उत्तर भारत के भीम कहे जाते थे, आपका कद 7 फुट 9 इंच और वजन 8 मन (320 किलो) था। आपकी दैनिक खुराक 4 सेर अन्न, सब्बी-फल, 1 सेर गऊ का घी और 20 सेर गऊ का दूध था। आप विख्यात पहलवान थे। जैसा कि खाप विचारधारा के लोग दूध और घी अपनी प्राकृतिक खुराक मानते हैं, इसलिए आप दूध और घी के बहुत शौकीन थे| आधुनिक कल में आपकी खुराक और विशाल कदबुत पर यकीन करने में संशय होता है मगर यह सब वृतान्त हरियाणा सर्वखाप पंचायत के रिकार्ड में मौजूद है। वैसे आजकल भी खापलैंड पर १-१ किलो घी और कई-कई लीटर दूध की खुराक वाले बहुत पहलवान हैं, जिसको देखते हुए इस तथ्य यकीन करना इतना दुष्कर भी नहीं है| हालाँकि यह दुर्भाग्य है कि अभी तक हरियाणा सर्वखाप पंचायत के सदियों पुराने ऐतिहासिक रिकार्ड पर न सरकार का और ना ही भारतीय इतिहासकारों का क़ाबिले-गौर ध्यान गया है| धन्य हो दादा चौधरी कबूल सिंह बालियान जी और उनका पीढ़ी-दर-पीढ़ी खानदान जो इस इतिहास को बिना किसी भेदभाव के ज्यों-का-त्यों आगे की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित संभाले आया है|
सेना के उपप्रधान सेनापतियों का परिचय: दादावीर जोगराज जी के प्रधान सेनापति नेतृत्व में उपनेतृत्व की बागडोर दो यौद्धेयों के सुपुर्द थी| जैसा कि ऊपर बताया इनमें एक थे दादावीर हरबीर सिंह गुलिया जो वर्तमान हरियाणा के झज्जर जिले के बादली गांव के रहने वाले थे| बादली गांव आज भी गुलिया गोत्र के जाटों का प्रमुख गांव है और आपके नाम से प्रसिद्ध है जो कि अब कस्बा बन चुका है व् हरयाणा विधानसभा की एक सीट भी है। दादावीर हरवीर सिंह 56 धड़ी (280 किलो) वजनी थे और तैमूर पर आक्रमण के समय आपकी आयु 22 वर्ष थी। आप निडर एवं शक्तिशाली वीर यौद्धेय थे।
दूसरे उपनेतृत्व थे दादावीर धूला भंगी बाल्मीकि जी। आप भी वर्तमान हरियाणा के जि० हिसार के हांसी गांव (हिसार के निकट) निवासी थे| आप अपने समय के प्रसिद्ध पहलवान, महाबलवान्, निर्भय यौद्धेय, गुरिल्ला (छापामार) युद्ध के महान् विजयी धाड़ी (बड़ा महान् डाकू) थे, आपका वजन 53 धड़ी (265 किलो) था। आपका जन्म वाल्मीकि भंगी घर में हुआ था। मगर अपने बलबूते पर वह सर्वखाप पंचायत की सेना में मानी हुई हस्ती थे। खापों में जो व्यक्ति की जन्म से नहीं अपितु कर्म और गुण से पहचान होती थी, आप उसकी मिशाल थे। आपस में भाई चारा था और एक दूसरे के लिए प्राण देते थे|
खापसेना की महिला-विंग की 5 सेनापति: दादीराणी रामप्यारी गुर्जर, दादीराणी हरदेई जाट, दादीराणी देवीकौर राजपूत, दादीराणी चन्द्रो ब्राह्मण व् दादीराणी रामदेई त्यागी। इन सब ने देशरक्षा के लिए शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की।
जब-जब तैमूरलंग बनाम सर्वखाप लड़ाई का इतिहास लिखा जाएगा तो दादीराणी रामप्यारी देवी जी की कहानी भी स्वत: गाई जाएगी| आपका जन्म सहारनपुर क्षेत्र में हुआ था। आप चौहान गोत्री गुर्जर थी| आप पर दादा जोगराज का खासा प्रभाव था| आपको बचपन से ही वीरता की कहानियां और किस्से सुनने का शौक था। आप जन्म से ही निर्भय और लड़ाकू स्वभाव की थी। देश के गुलामकल का दौर होते हुए भी बचपन में अपने खेतों पर अकेली चली जाने में आपको कभी डर नहीं लगता था। आप अपनी मां से प्रायः पहलवान बनने के लिए जिज्ञासा पूर्वक पूछा करती थी और प्रातः सांय खेतों पर जा कर अथवा एकान्त स्थान में व्यायाम किया करती थी। कुछ तो स्वयं बचपन से ही स्वच्छ सुड़ौल और आकर्षक शरीर की लड़की उस पर व्यायाम ने आपके व्यक्तित्व पर वही कार्य किया जो सोने पर अग्नि में तपकर कुन्दन बनने का होता है अर्थात आप कुंदन बन गई थी। रामप्यारी बचपन से किशोर अवस्था में कदम रखने लगी। आप सदैव लड़को जैसे वस्त्र पहनती थी और गांव और पड़ौसी गांवों में पहलवानों के कौशल देखने अपने पिता और भाई के साथ जाती थी| ऐसी वीरांगनाएं सदैव जन्म नहीं लिया करती। रामप्यारी की इन बातों की चर्चा सारे गांव और क्षेत्र में फैलने लगी। दाईं ओर दादीराणी रामप्यारी का रेखाचित्र है|
दादा जोगराज के नेतृत्व में बनी 40000 हजार ग्रामीण महिलाओं को युद्ध विद्या का प्रशिक्षण व् निरीक्षण जा जिम्मा आप व् आपकी चार सहकर्मियों जिनके नाम ऊपर बताये को मिला था| इन 40000 महिलाओं में गुर्जर, जाट, अहीर, राजपूत, हरिजन, वाल्मीकि, त्यागी, तथा अन्य वीर जातियों की वीरांगनाएं थी। इस महिला सेना का गठन आप पांचों ने मिलकर ठीक उसी ढंग से किया था जिस ढंग से सर्वखाप पंचायत की सेना का था। प्रत्येक गांव के युवक-युवतियां अपने नेता के संरक्षण में प्रतिदिन शाम को गांव के अखाड़े पर एकत्र हो जाया करते थे और व्यायाम, मल्ल विद्या तथा युद्ध विद्या का अभ्यास किया करते थे। गांव के पश्चात खाप की सेना विशेष पर्वों व आयोजन पर अपने कौशल सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किया करती थी। सर्व खाप पंचायत के सैनिक प्रदर्शन यदा-कदा अथवा वार्षिक विशेष संकट काल में होते रहते थे| लेकिन संकट का सामना करने को सदैव तैयार रहते थे। इसी प्रकार रामप्यारी गुर्जरी व् अन्य चारों महिला सेनापतियों की महिला सेना पुरूषों की भांति सदैव तैयार रहती थी।
ये महिलाएं पुरूषों के साथ तैमूर के साथ युद्ध में कन्धे से कन्धा मिला कर लड़ी। महिला सेनापतियों खासकर दादी रामप्यारी के रण-कौशल को देखकर तैमूर दांतों के नीचे अंगुली दबा गया था। उसने अपने जीवन में ऐसी कोमल अंगों वाली, बारीक आवाज वाली बीस वर्ष की महिला को इस प्रकार 40 हजार औरतों की सेना का मार्गदर्शन करते हुए ना कभी नहीं देखा था और ना सुना था। तैमूर इनकी वीरता देखकर वह घबरा उठा था।
सेनापतियों का निर्वाचन: प्रधान व् उप-प्रधान सेनापतियों ने नीचे पांच सेनापति चुने गए, जिनके नाम यह हैं - (1) गजेसिंह जाट गठवाला (2) तुहीराम राजपूत (3) मेदा रवा (4) सरजू ब्राह्मण (5) उमरा तगा (त्यागी) (6) दुर्जनपाल अहीर।
उपसेनापतियों का निर्वाचन: (1) कुन्दन जाट (2) धारी गडरिया जो धाड़ी था (3) भौन्दू सैनी (4) हुल्ला नाई (5) भाना जुलाहा (हरिजन) (6) अमनसिंह पुंडीर राजपुत्र (7) नत्थू पार्डर राजपुत्र (8) दुल्ला (धाड़ी) जाट जो हिसार, दादरी से मुलतान तक धाड़े मारता था। (9) मामचन्द गुर्जर (दादा जोगराज का एक सेनापति मामचन्द गुर्जर था जो जोगराज का शिष्य, सहयोगी व छाया की तरह साथ रहने वाला साथी था। यह भी सहारनपुर क्षेत्र का विख्यात पहलवान था और दादा जोगराज का बांया दांया हाथ था) (10) फलवा कहार।
सहायक सेनापति: भिन्न-भिन्न जातियों के 20 सहायक सेनापति चुने गये।
वीर कवि: प्रचण्ड विद्वान् चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) को वीर कवि नियुक्त किया गया जिसने तैमूर के साथ युद्धों की घटनाओं का आंखों देखा इतिहास लिखा था।
प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण के कुछ अंश: “वीरो! भगवान् कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया था उस पर अमल करो। हमारे लिए स्वर्ग (मोक्ष) का द्वार खुला है। ऋषि मुनि योग साधना से जो मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, उसी पद को वीर यौद्धेय रणभूमि में बलिदान देकर प्राप्त कर लेता है। भारत माता की रक्षा हेतु तैयार हो जाओ। देश को बचाओ अथवा बलिदान हो जाओ, संसार तुम्हारा यशोगान करेगा। आपने मुझे नेता चुना है, प्राण रहते-रहते पग पीछे नहीं हटाऊंगा। पंचायत को प्रणाम करता हूँ तथा प्रतिज्ञा करता हूँ कि अन्तिम श्वास तक भारत भूमि की रक्षा करूंगा। हमारा देश तैमूर के आक्रमणों तथा अत्याचारों से तिलमिला उठा है। वीरो! उठो, अब देर मत करो। शत्रु सेना से युद्ध करके देश से बाहर निकाल दो।”
उपप्रधान सेनापति चुना जाने पर इसने भाषण दिया कि: “मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं। आपके सम्मान देने से मेरा खूब उबल उठा है। मैं वीरों के सम्मुख प्रण करता हूं कि देश की रक्षा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पवित्र झण्डे को नीचे नहीं होने दूंगा। मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर प्रधान सेनापति के चरणों में उसने खून के छींटे दिये। उसने म्यान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “यह शत्रु का खून पीयेगी और म्यान में नहीं जायेगी।” इस वीर यौद्धेय धूला के भाषण से पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर-जोर से मातृभूमि के नारे लगाये।
यह भाषण सुनकर वीरता की लहर दौड़ गई। 80,000 वीरों तथा 40,000 वीरांगनाओं ने अपनी तलवारों को चूमकर प्रण किया कि हे सेनापति! हम प्राण रहते-रहते आपकी आज्ञाओं का पालन करके देश रक्षा हेतु बलिदान हो जायेंगे।
सूरत-ए-मैदान-ए-जंग:
पंजाब को उजाड़ कर और दिल्ली को तबाह करके अब तैमूर लंग ने अपनी टिडडी दल की तरह चलने वाली फौज का मुंह जाट-गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र मेरठ-हरिद्वार की तरफ कर दिया| यहां महाबली जोगराज पंवार के नेतृत्व में सर्वखाप पंचायत की सेना इस राक्षस के मान मर्दन के लिए पहले से ही विधिवत तैयार हो चुकी थी।
मेरठ युद्ध: तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना गुरिल्ला धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी। वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। इस प्रकार गुरिल्ला मार, रसद पर हमलों व् रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। इससे तंग आकर व् दरकिनार करने की कोशिश करते हुए तैमूर यहां से हरिद्वार की ओर बढ़ा।
हरिद्वार युद्ध: मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे।
एक तरफ भारत माता की रक्षा करने वाले धर्मयुद्ध करने वाले, आत्म रक्षा के लिए लड़ने वाले रणबांकुरे यौद्धेय और वीरांगनाओं की सेना जो अपने प्रधान सेनापति के नेतृत्व में तैयार थी और दूसरी तरफ राक्षस रूपी तैमूर की खूनी और इंसानियत का सर्वनाश करने वाली लुटेरों की भीड़ रूपी सेना थी। उस से दो-दो हाथ करने को, भूखे भेडिए की तरह भयंकर रौद्र रूप धारण किए हुए थी सर्वखाप पंचायत की वीर सेना| बहादुर धर्म रक्षक सेना राक्षस तैमूर का मानमर्दन करने के लिए प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों ओर से रण की धोषणा की प्रतीक्षा किए बिना घोर घमासान युद्ध तैमूर ने ही शुरू कर दिया। बस फिर क्या था। किसी विश्वमहायुद्ध सा विशाल व् भंयकर दृश्य पथरी रणक्षेत्र में प्रगट हो गया। कई दिन घोर घामासान युद्ध हुआ।
हरिद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर-पथरीगढ़ (ज्वालापुर) में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए:
- उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर यौद्धेय सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर यौद्धेय हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह यौद्धेय अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।
उसी समय प्रधान सेनापति जोगराज सिंह ने अपने 22000 मल्ल यौद्धेयओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर यौद्धेय वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस यौद्धेय की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।
- युद्ध के कई मोर्चों पर वीरता से आगे बढ़ते हुए एक जगह हरिद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर यौद्धेय ने 190 अति-बहादुर सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगति को प्राप्त हो गये।
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तीसरे युद्ध में प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर यौद्धेयओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। तथापि जोगराज सिंह स्वयं भी बुरी तरह जख्मी हो चूका था, परन्तु 45 संगीन घाव लगने पर भी अन्त तक होश में रह कर सेना का भली भांति संचालन करता रहा और वह वीर होश में रहा। पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरिद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। तैमूर हरिद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागा। उस भागती हुई तैमूरी सेना का पंचायती वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने देश हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया तथा समस्त हरियाणा व हरिद्वार तक के क्षेत्रों को सर्वनाश से बचा लिया।
वीर सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में बीच-बीच में घायल होने एवं मरने वाले सेनापति बदलते रहे थे।
कच्छवाहे गोत्र के एक वीर राजपूत ने उपप्रधान सेनापति का पद सम्भाला था।
हालाँकि उनकी मृत्यु कालांतर में रहस्य बनी रही, परन्तु एक लोकमत कहता है कि वीर यौद्धेय प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे।
तंवर गोत्र के एक जाट यौद्धेय ने प्रधान सेनापति के पद को सम्भाला था।
एक रवा तथा सैनी वीर ने सेनापति पद सम्भाले थे।
इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।
इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर यौद्धेयओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।
हमारी पंचायती सेना के 35000 वीर एवं वीरांगनाएं देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।
इस युद्ध के बाद वीर जोगराज सिंह का क्या बना यह इतिहास के अन्धकारमय भू-गर्भ में छिपा पड़ा है। परन्तु आगे चल कर जोगराज सिंह के वंशजों ने लंढोरा जिला सहारनपुर में गुर्जर रियासत की स्थापना की जिसका विस्तार सहारनपुर से करनाल तक हुआ| हरिद्वार की पौड़ी तले होने की वजह से गुर्जर रियासत के वंशज हरिद्वारी राजा भी कहलाते थे|
इति: तैमूर-लंग बनाम हरयाणा सर्वखाप युद्ध अध्याय!
जय खाप! जय हरयाणा! जय यौद्धेय!
जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर
स्टोरी प्रेजेंटेशन एंड राइटिंग: पी. के. मलिक
दिनांक: 04/08/0215
उद्धरण:
- Chapter 4 of Book Jat History by author Dalip Singh Ahalawat
- संदीप गुर्जर
- Mangal Sen Jindal (1992): History of Origin of Some Clans in India (with special Reference to Jats), Page-48
- Harveer Singh Gulia article from Jatland website
- Conquest of Tamerlane. p-29, Kurgan (a vassal of Khakhan in Persia-750 A. Hijri)
- हरियाणा के प्रसिद्ध इतिहासकार स्वामी ओमानन्द जी के आलेख
- By Rajpal Singh, 'Rise of the Jat power' - Books.google.co.in. Retrieved 2012-05-22
- Wikipedia - Campaign against the Tughlaq Dynasty Screenshot (scroll down) of same captured as of 04/08/2015 from Wikipedia, we needed to capture it so as to keep our readers sure that we got one reference from there too.
प्रकाशन: निडाना हाइट्स
प्रकाशक: नि. हा. शो. प.
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