विशेष: गैर-जाति की वो जातियां जो जाट की भाई-जातियां रही हैं जैसे कि राजपूत-गुज्जर-अहीर, दलित व् अन्य पिछड़ा वर्ग भी इस लेख को सिर्फ जाट के लिए ना मानें बल्कि जाट तो बहुलता में होने की वजह से एक जरिया है सम्बोधन का, वर्ना जिन षड्यंत्रों और बातों का इस लेख में जिक्र करने जा रहा हूँ, उनसे आप भी सीधे-सीधे जुड़े हो|
भूमिका (जरा लम्बी चलेगी): आजकल लवजिहाद को ऐसे मुद्दा बनाया जा रहा है जैसा तो खुद गैरधर्म वालों को अपनी बेटियां देते वक्त भी बनाना किसी को याद नहीं आया होगा| और यकीन मानियेगा इसको आज मुद्दा भी वही बना रहे हैं जिन तथाकथित राजज्ञानी, दार्शनिकों ने कभी खुद गैर धर्म वालों को खुद बेटियां दी थी अथवा इनके प्रभाव वाली जातियों को ऐसा करने की वकालत की थी, अथवा दिलवाई थी|
और ताज्जुब की बात तो यह है कि इसको मुद्दा शहरी जातियां अधिक बना रही हैं, जिनके ऊपर की खुलेपन, आज़ाद और लिंग अधिकारों की समानता के ढिंढोरे का सेहरा गए दिनों तक भी बंधता आया| और इसपे भी ताज्जुब की बात तो यह है कि इन लोगों ने गाँवों से पलायन करके शहरों में आ बसने वाली जातियों को तो (यहां तक कि शहरों में आ बसने वाले और कल तक स्वछंद मति-विचार-आचार के माने जाने वाले जाटों तक को) ऐसा बहका दिया है कि शहरी जाट भी इनकी भाषा बोलते दीखते हैं कि गैरधर्मी कुछ सालों में हमारी अस्मत छीन लेंगे|
उदाहरण के तौर पर मुझे ताज्जुब हुआ जब मेरे ही एक रिश्तेदार जो प्रोफेसन से तो एस. डी. ओ. (S.D.O.) लगे हुए हैं, शहर में रहते हैं लेकिन मेरे ही दूसरे रिश्तेदार के यहाँ बेटी होने पर कहते हैं कि जल्दी से बेटा भी पैदा कर लो वर्ना कल को घर में लड़का मुदई ना होने पर मुस्लिम तुम्हारी सम्पति जब्त कर लेंगे| मतलब इस हद तक शहरी जाटों के दिमागों को इन शहरी जातियों ने हाईजैक कर लिया है कि इसी मुद्दे पर इतना स्वर्णिम इतिहास साधे जाट जाति का पढ़ा-लिखा इंसान यह भाषा बोल रहा है जिससे कि
अगर हरयाणा में लड़कियां कम क्यों हैं इसपे शोध करने वाला एक कारण और जोड़े तो यह बड़ा तर्कसंगत कारण हो जाए|
ऐसे ही एक और मेरी आपबीती बताता चलूँ, विगत अक्टूबर में मैं मेरे छोटे भाई के साथ हमारे पीढ़ियों से जानकार रहे एक महाजन परिवार जो कि आज एन. सी. आर. (N.C.R.) में जा बसे हैं, उनसे मिलने गए| आवभगत और थोड़ी इधर-उधर की बातें करने के बाद महाजन का बेटा मेरे छोटे भाई को सन्मुख रख बोला कि यार फलाने इन मुसलमानों ने तो ग़दर मचा रखा है, हमारे धर्म पे संकट आ रखा है, जाटों को तो यह कुछ समझते ही नहीं
(जाटों शब्द को तो इतनी चतुराई से इस्तेमाल किया कि बस जाट को जंच जाए कि जैसे बस तेरी अस्मत पर बात है, जबकि हो रही थी, डरपोक के मन में डूम का ढांढा वाली); और ऐसे कहते-कहते उसने सहमति की अपेक्षा में मेरी तरफ गर्दन घुमाई
(जैसे अक्सर आदतवश लोग अपनी बात में हामी के लिए दूसरे की तरफ घुमा देते हैं) तो मेरी आँखें उसको आश्चर्य से स्थिर मिली; और वो उसकी गलती भांप के उस बात को वहीं बंद कर गया| मैंने वहाँ तो कुछ नहीं कहा, पर फिर गाडी में आने के बाद छोटे भाई को यह पूरा वाक्या बता के इसपे फिर से सोचने को कहा तो
छोटा भाई बोला कि हम इसको परिवार का मान के मिलने आये, पीढ़ियों का हमारा रिश्ता हमें यहां खींच के लाया, परन्तु यह आज भी यही समझता है कि जाटों को कैसे भी बहकाया जा सकता है| भाई आगे बोला कि आप सही कहते हो, यह लोग सिर्फ व्यापारिक रिश्ते रखने लायक हैं, इनसे व्यवहार किया नहीं कि यह लोग शुरू हो जाते हैं हमें दोहन (exploit) करने|
मैं इसका दोष जाटों की जो वर्तमान पिता-दादा बन चुकी पीढ़ी यानी 35-40 से 60 साल की आयु वर्ग का जो ग्रामीण जाटवर्ग और जो शहरों में जा के अपने आपको छद्म आधुनिक होने का बहम पाल बैठा जाटवर्ग
(जो अपने बच्चों को मुड़ के ना अपने गांव दिखाते हैं ना अपना इतिहास बताते और ना उसपे उनसे बतलाते हैं), इन दोनों की ख़ामोशी को दूंगा| यह अपने बच्चों को यह बात स्थांतरित ही नहीं कर रहे कि अगर इतिहास में गैर-धर्मी यानी मुसलमान सबसे ज्यादा प्यार से किसी के साथ रहे तो वो जाट के ही साथ रहे|
मुस्लिमों से शुरू कर जिस धरमाई नफरत को मिटाने में हमारे बुजुर्गों ने सदियाँ गुजार के
सन 1857 से बहादुरशाह जफ़र द्वारा खापों को उस क्रांति की कमान सौंपने से ले जो सिलसिला-ए-रहनुमाई जाट और मुस्लिम कौम ने सर छोटूराम, सर सिकंदर हयात खान, सर मलिक खिजर हयात तिवाना, सरदार प्रताप सिंह कैरों, चौधरी चरण सिंह और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के जरिये सन 2011 तक जारी रखा आज उनकी इसी जाट कौम में एक भी ऐसा रहनुमा इनके स्तर का नहीं दीखता कि वो फिर से जाट कौम को इन धर्मान्धता की आँधियों से बचा छोटूराम रुपी मुर्गी की तरह अपने अण्डों को ढक के इस धर्माई कुंठा से बचा सके| हालाँकि फ़िलहाल हल्के-हल्के प्रयास होते दिख रहे हैं परन्तु इनमें से उस चिंगारी के निकलने का इंतज़ार अभी भी जाट कौम कर रही है जो इन शहरी जातियों के षड्यंत्रों को ठीक उसी तरह धत्ता कर दे
जैसे कौमी उन्माद में अंधे जिन्ना को सर छोटूराम ने कर दिया था|
कभी नहीं अपने बच्चों को बताते कि जाटों की खाप प्राचीन भारत की अकेली ऐसी संस्था है जिनके दर पे मुस्लिमों के बादशाहों जैसे कि बाबर, सिकंदर लोधी और रजिया बेगम ने आ के शीश नँवाये| और यह ऐसा सम्मान है जो इस देश के बड़े-से-बड़े मंदिर या धार्मिक संस्था के पास नहीं| मेरे गाँव का तो खेड़ा ही मेरे पुरखों ने रांघड़ों के खेड़े प डाला हुआ है| कभी नहीं बताते कि "जाट के आई, जाटणी कहलाई" जैसी कहावतें कैसे बनी, कैसे चली| और इसी को मैंने आज इस लेख का विषय बनाया है कि यह कहावत कैसे चली?
तो अब आते हैं “जाट के आई, जाटणी कहलाई” कहावत कैसे चली पर:
तीन साल बाद जब मेरे गाँव की सरजमीं पर गया और ‘दादा नगर खेड़ा (बड़ा बीर)’ के दर पे शीश नुवाँ के गाँव के लोगों के बीच इस लवजिहाद के मुद्दे को ले के छानबीन करी तो बुजुर्ग लोग हंसने लगे और बोले कि ताज्जुब की बात है कि आजकल लोग मुद्दों से इतने खोखले हो गए हैं कि
जनता को उन मुद्दों पर भरमा रहे हैं, जिनपर जाटों के यहां तो उलटी गंगा बहती आई|
मैंने पूछा उल्टी गंगा कैसे, तो बुजुर्ग कहते हैं कि "
जिनको अन्य बेटियां देते थे, जाट उन्हीं की बेटियाँ डोले में लाते थे|" साथ ही उन्होंने इस बात के साथ यह शर्त जोड़ दी कि हालाँकि इस बात में अभिमान दिखेगा, इसलिए मेरी बात से अभिमान निकाल के सिर्फ तथ्य हेतु ही इसको ग्रहण करना|
फिर आगे बोले कि अगर ‘जाट युवा उनके इतिहास को भूल एक होने का नारा देने वालों के चंगुल में फंसेंगे’ तो जाटों के साथ "लुगाई किसी की, उठाई किसी ने और पूंछ जलवाई किसी ने” वाले छलावे होते ही रहेंगे|
तब मैंने कहा कि आजकल हर जाट-युवा खुद अपने इतिहास को भूल के धर्म जैसी चीजों के नाम पर एक होने को मुनादी-ढोल टाँगे फिर रहे हैं|
तो बुजुर्ग ने कहा कि यह ढोल इनके गले में टंगवाया किसने?
तो मैंने कहा किसने?
तो बुजुर्ग ने जो कहा उसने मेरे पैरों तले की जमीन खिसका दी, बुजुर्ग बोला उन्होंने ही जिनके कारण गौतम बुद्ध के जमाने में तेरे जाट समाज के साथ-साथ दलितों के भी बुद्धिजीवी वर्ग को सरे-आम काटा गया था, हमारे अधिकतम मठों को तुड़वा दिया गया था और मठाधीशों को मरवा दिया गया था| और इस स्तर का जुल्म किया कि समाज में किसी के भी यहां नुक्सान होने पर और और उस नुक्सान की अति होने पर कहावत निकल चली कि, "
ले भाई फलाने का तो मर गया मठ; फलाने का तो हो गया मठ"। और याद रखना पोता उस वक्त यहां मुसलमान भी नहीं थे|
तब मैंने कहा तो क्या ऐसी ही बातों को भूलने के लिए जाटों के बच्चों को इतिहास भूलने की पट्टी पढाई जा रही है?
तो बुजुर्ग ने बेशक शब्द जोड़ते हुए कि और ताकि फिर यह लोग एकता और बराबरी के झूठे ढोंग के साये तले इनको मनमाने ढंग से प्रयोग कर सकें|
तब उल्टी गंगा वाली बात पे वापिस आते हुए, मैंने कहा कि बात तो आप गंभीर कह रहे हो लेकिन जरा प्रकाश तो डालो|
तो इस पर एक बुजुर्ग ने बताया कि, "सुण ओ छोरे, जिन लोगों से यह तथाकथित आज के राष्ट्रवादी हमें बदला लेने को कहते हैं वो इसलिए कहते हैं क्योंकि यह जाटों वाले वो काम इनके साथ कर ही नहीं पाये जो जाटों ने इतिहास में किये| हमारे किये हुओं को यह गाते नहीं और इनके बनाये हुए वीरों से यह काम कभी हुए नहीं| इसलिए इन्होनें ऐसे काम किये होते तो आज यह लोग भी संतुष्टि के साथ जीवनयापन कर रहे होते; ऐसे गैर-वक्त देशभक्ति का राग नहीं अलाप रहे होते| तू ही बता जहां चीन और पाकिस्तान भारत को रोड़ा अटका रहे हैं, वहाँ तो इनमें से कोई नहीं चुस्क रहा, ना वर्तमान वाले ना ही जो पहले रहे वो|
तो मैंने कहा कि पिछली एनडीए ने तो कारगिल लड़ा था|
तो झटके से बुजुर्ग बोलता है कि "घर से दुश्मन को निकाला था, सबक सिखाने को दुश्मन का क्या हथियाया था उनका?"
उस बुजुर्ग ने लाख टके की बात कहते हुए कहा कि, "घर को घरवालों से बचाना देशभक्ति नहीं होती, अपितु घर को बाहर वालों से बचाना देशभक्ति होती है; जो कि इन नए-नए उभरे स्वघोषित देशभक्तों के पल्ले नहीं पड़ती|
मैंने कहा कि दादा "उल्टी गंगा बहाने" वाली बात पे रौशनी डालो|
तो दादा ने कहा सुन लाडले, जाटों के कई ऐसे गोत्र हैं जहां हमारे पुरखों ने गैर-धर्म की आम स्त्री से ले के रानी-महारानियों तक से विवाह किये और अपने घर की अस्मत बनाया| लेकिन इनको गाया सिर्फ इसलिए नहीं गया क्योंकि यह कार्य जाटों ने किये थे| रै छोरे इससे बड़ी विडंबना और इन धर्म वालों की
(हमारा धर्म तो ऐसा नहीं था जैसा आज यह लोग दिखा रहे हैं) मूर्खता और क्या होगी कि जाटों के उन किस्सों को गाने के बजाये जिनमें जाटों ने गैरधर्म की औरतें ब्याही, एक ऐसी घिसी-पिटी कहानी टीवी वगैरह पे गाये जा रहे हैं, जिनमें इन्होने गैर-धर्म को अपनी बेटी दे राज बचाये थे| भला इसमें भी कोई बोर मानने वाली बात है? और यह एकता और बराबरी का इनका राग सच्चा तो तब मानूं जब यह लोग जाटों के इन किस्सों को भी उसी बराबरी और गौरव का दर्ज दें, जो यह पक्षपात करके मनचाहों को देते हैं| मतलब उनकी तो दूसरों की दी हुई भी इनके लिए महान और हमारी औरों से लाई हुई का नहीं कहीं भी इनके लिए सम्मान?
हमारा जाट-युवा जरा बोले तो इनको कि क्या यह एकता-और-बराबरी वाले कर देंगे हमारे लिए वैसा, जैसा मैं कह रहा हूँ, ज्यों का त्यों तो कदापि नहीं|
दादा बात तो आपकी ठीक लेकिन मेरे प्रश्न का उत्तर अभी भी अधूरा है; तो दादा ने कहा बेचैन मत हो तेरे प्रश्न के उत्तर पे ही आ रहा हूँ और सुन उत्तर:
आज के जाट का बौद्धिक स्तर इस कदर टूट चुका है कि वो एक स्वछंद मति का होने वाली धारणा से कबीलाई सोच का बनता जा रहा है; और इसका कारण है जाट का अपने इतिहास से दूर होना या प्रपंचों से इसको अपने इतिहास से दूर हटाना| वरना तू ही बता कितनों को यह बात याद होगी कि "गठवाला जाटों का निकास गढ़-गजनी से है और
हमारे "महाराज दादा मोमराज जी गठवाला" ने गढ़-गजनी की महारानी से प्रेम-विवाह किया था? जब उनके प्रेमविवाह का गजनी के बादशाह को पता चला तो दोनों को छलावे से आजीवन कैद में डाल दिया था| तब वीर व् चतुर तेजस्वी
"बाहड़ला पीर जी महाराज" हुए जिन्होनें दोनों को कैद से निकाला और वो गोहाना के पास "कासंढा" आकर बसे और फिर वहीं से आगे "मलिक यानी गठवाला जाटों" की लेन चली|
तुझे लगे हाथों एक किस्सा और जोड़ दूँ इसमें; "बाहड़ला पीर जी महाराज" की धर्मपत्नी थी "
दादी चौरदे", जिनका कि अपने गाँव के "दादा नगर खेड़ा" के बगल में छोटा सा मंदिर है, जब दादा मोमराज जी महाराज और महारानी गढ़गजनी को बचा के उनको "कासंढा" की ओर "बाहड़ला पीर जी महाराज और दादी चौरदे" ने विदा किया तो वो भावुक हो उठी और कहने लगी कि "मोमराज जी" आपका तो वंश आगे चल पड़ेगा, लेकिन हम दोनों बेऔलादे हैं, क्या हमें भी भविष्य में कोई याद करने वाला होगा?
तब दादा मोमराज जी महाराज ने दादी चौरदे को वचन दिया था कि बहन आपको मेरा वंश गठवाला खूम की "देवी" के रूप में पूजा करेगा| और तब से गठवालों के यहां "दादी चौरदे" की पूजा होती है|
और सुन ले,
साहू जाटों से ले खोखर जाटों, और भी दर्जनों भर जाटों के गोत्रों में ऐसे विवाह हुए जहां जाटों ने मुस्लिम लड़की को परणाया| साहू जाटों को तो खुद ग़जनी ने अपनी बहन ब्याही थी| लेकिन इस मान-अभिमान को वो क्या जानें जिन्होनें अपने वीरों से गैर-धर्म में बेटियां परनवाई|
इसीलिए कहा कि इस लव जिहाद के मामले में हम जाट तो उल्टी गंगा बहाने वालों में हैं, यानी कि अपनी मर्जी से उनको देने वालों में नहीं अपितु उनसे लेने वालों में हैं|
यहां दादा ने एक बात और कही कि बेटा आज के जमाने में इस बात को अपने लिए कमजोरी या कायरता ना समझो या कोई तुम्हें कायर न कहने लग जाए, इसलिए ऐसी स्थिति के लिए यह जवाब भी अपने दादा से सुनता जा और कह देना उनको जो तुझे कायर कहें कि, "
जाट ही ऐसे हुए जिन्होनें ऊपर बताये तरीके के उल्टी गंगा बहाने वाले रिश्ते भी गैरधर्म से किये और गैरधर्म शासकों से हमारी खापों ने अपने सर्वखाप मुख्यालय पर बार-बार शीश भी नुंवाये, जो कि किसी भी मंदिर या डेरे के नसीब में नहीं|" इसका मतलब यह बताना कि जाट इतने स्वछंद रहे हैं कि शांति के माहौल में उनसे विवाह सम्बन्ध बना के उनको रिश्तेदार भी बनाया लेकिन अगर उन्होंने रिश्तेदारी की लिहाज ना की तो उनसे अपने सर्वखाप मुख्यालय पर शीश भी नुंवाये|
और बेटा इतने सारे जाट गोत्रों में मुस्लिम लड़कियां आई इसीलिए उनकी स्वजाति में मंजूरी बारे यह कहावत चली कि "जाट के आई, जाटनी कहलाई"।
इसलिए जाटों को सिर्फ देश की रक्षा भाति है, धर्म और जाति तो इंसान को भरमाने की काँटी है|
तो बता आज के यह जोश में अंधे युवा जाट इस बात को क्यों नहीं समझते कि जिन जाटों के यहां इतनी मुस्लिम लड़कियां आती रही हों कि उनकी स्वीकार्यता के लिए जाटों के यहां यह कहावत चली कि जाट के आई जाटनी कुहाई, तो उन जाटों को किस लव-जिहाद का डर?
दादा का जाट-युवा और तमाम जाट की भाई जातियों के युवाओं के नाम संदेश:
और बेटा इन जाट-युवाओं को समझा देना, वर्ना आज तो शहरी जातियों के कहने पर यह मुस्लिमों को निशाने पे लिए हुए हैं, फिर चढ़ी-चढ़ी यही शहरी जातियां कल को इस बात का फरमान भी निकाल देंगी कि अब उन वर्गों को निशाना बनाओं जो मुस्लिमों की लड़कियां ब्याह के लाये हुए हैं; तो क्या ऐसे जाट युवा कल खुद को काट लेंगे, कि नहीं मेरे पुरखों ने मुस्लिम औरतें ब्याही तो मैं पवित्र नहीं इसलिए मैं स्व्हत्या कर लेता हूँ| हाँ क्यों नहीं, काल के घोड़े पे सवार यह होनी ऐसे ही तो जाट युवाओं के हाथों ही जाट कौम को खत्म करवाएगी| कहना जाट युवाओं को कि ओ नादानों दूसरे धर्म या जाति की स्त्री ब्याहना उसी तरह गर्व की बात होती है जैसे मुस्लिम आज भी आमेर की जोधा को ब्याहने पे खुद पर करते हैं| वो यह नहीं देखते कि अकबर और जोधा से वंश चला वो आधा मुस्लिम और आधा हिन्दू है वो यह देखता है कि वो भी मुस्लिम है| कहना युवाओं को कि क्या वो इन मूर्खों की बातों में आ के कल को इस गौरव से वंचित होना चाहते हैं?
और अंत में दादा ने एक बड़ी साहसिक बात कही कि जिस स्तर के भय-विपदाओं में इन तथाकथित धर्म की एकता और बराबरी के ठेकेदारों के दिल-हौंसले डोल जाया करते हैं, उन स्तर पे तो जाट घोंसले बनाया करते हैं| इसीलिए मेरा साफ़ सन्देश देना जाट युवा को कि अपनी ऐतिहासिक स्वछँदता को पहचानें और इन क्षणिक, स्वार्थी और आतंकित कुकरमुत्तों के देशभक्ति के रागों से दूर रहें,
क्योंकि जो जाट हो गया वो देशभक्ति तो माँ की कोख से ले के पैदा होता है| और यह तथाकथित इतिहास को लिखने वाले हमारी इस स्वछँदता को जिस दिन जगह देनी शुरू कर देंगे उसी क्षण से बिना प्रयास किये देश में हर तरफ शांति ही शांति होगी|
धर्म जाति को बांटता है, जातीय पहचान को ढक देता है, वर्ण व्यवस्था में पड़ के तुम उस धर्म में द्वितीय-तृतीय अथवा न्यूनतम तक बन जाते हो| इसलिए पहले अपने जातीय भाईयों से एकता रखो और फिर जिस धर्म में जो भाई जाना चाहे, जाने दो; आना चाहे आने दो| जाट चाहे सिख हो, चाहे हिन्दू हो चाहे मुस्लिम, या कोई और धर्मी, वह उनके पुरखों की दी हुई इस एकता की विरासत को ना भूले, वर्ना धर्म के पचड़े घुण लगा देंगे मानवता को|