कल पीएम की "मन की बात" सुनी| मैं जनाब की बातों को तभी सुनता हूँ जब दोस्तों के जरिये पता चलता है कि आज पीएम ने हरयाणा बारे जिक्र किया| पर कल जो जिक्र किया वह सरासर ऐसी कूटनीति और दबाव की राजनीति करने वाला था कि जिससे हरयाणवी मर्द और औरत के मनों में आपसी दरार पैदा हो जाए या और बढ़ जाए| अबकी बार पीएम को इस पर खुली चिट्ठी लिखने का मन कर रहा है कि आपका यह हर दूसरी 'मन की बात' में हरयाणा की मानहानि करना बहुत हुआ, कृपया रोकें ऐसे शब्दों को| कल जो आपने शब्द बोले हैं कि
"जब मैं हरयाणा में गया था तो हमारे अधिकारीयों ने कहा था कि साहब वहाँ मत कीजिये वहाँ तो बड़ा ही नेगेटिव माहौल है|" कमाल है हरयाणा में खड़े हो के भी अधिकारी कौनसे "वहाँ" की बात कर रहे थे, वहाँ खड़े हो के तो 'यहाँ' की बात होगी ना, 'वहाँ' की थोड़े ही? या जिसने जो पकड़ा दिया उसके अर्थ समझे बिना ज्यों-का-त्यों बोल देते हैं?
खैर
मैं बड़े ही सलीके से पीएम को चैलेंज देना चाहूंगा कि बाकी भारत और हरयाणा में औरतों की स्थिति की तुलना के साथ मेरे से डिबेट में आवें और साबित करें कि हरयाणा में औरतें बिलकुल आपके
'बड़ा ही नेगेटिव माहौल' के हिसाब के तरीके से पीड़ित हैं या मैं साबित करूँगा कि औरतों की समस्याएं हो सकती हैं, परन्तु इतनी भी नहीं जितनी बाकी के भारत में हैं या जितना आप हव्वा बना रहे हैं|
मैं इस हव्वे का दूरगामी अर्थ और उद्देश्य दोनों भलीभांति समझ सकता हूँ| अर्थ है हरयाणवियों को कभी भी हरयाणत पर गर्व मत होने दो और इनकी औरतों को इनके मर्दों से जुड़ी मत रहने दो, डायलाग में मत रहने दो; ताकि जब कोई फंडी-पाखंडी हरयाणवियों के घरों में पिछले दरवाजे से एंट्री लेना चाहे तो मर्द सवाल ना करें| क्योंकि करेंगे तो औरतें ही पीएम की बात का हवाला दे के कह देंगी कि पीएम ने वाकई सही कहा था|
मतलब आप रोना ही किन चीजों का रोते हो हरयाणा में औरत के नाम पर? मुख्य और बड़े तौर पर
एक हॉनर किलिंग, दूजी भ्रूण हत्या, तीजी लिंगानुपात और चौथी दूसरे राज्यों से ब्याह के लाई जाने वाली बहुएं? पहले तो इन पर ही सुन लीजिये:
हॉनर किलिंग, भ्रूण हत्या को आज तक कोई मीडिया या रिसर्च रिपोर्ट यह साबित नहीं करती कि यह सबसे ज्यादा हरयाणा में ही हैं? तो जब ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं है तो आपको यह
"हरयाणा-फोबिया" शोभा नहीं देता|
दूसरी बात, लिंगानुपात| आपको भान भी है कि हरयाणा ही इस देश में एकमात्र ऐसा प्रदेश है जिसने सबसे ज्यादा युद्ध और सबसे ज्यादा मानव माइग्रेशन झेली है? आज के दिन यहाँ ऐसी-ऐसी माइग्रेटेड कम्युनिटीज आई बैठी हैं जिनके यहाँ उन्नीसवीं सदी में 24 लड़कों पर मात्र 8 लड़कियां होने का ऑफिसियल रिकॉर्ड होता आया? आपको अंदाजा है कि आज जो गैर-हरयाणवी रोजगार के सिलसिले में अंधाधुंध इधर ही चला आ रहा है
(खासकर जब से मुम्बईया हिन्दुओं द्वारा बिहारी-बंगाली-आसामी हिन्दुओं को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पर पीट-छेत के भगाया तब से) इनमें से 70% बिना परिवार के हरयाणा-एनसीआर में आते हैं? यह भाई अपना राशन कार्ड तो आने के 1-2 साल भीतर ही बनवा लेते हैं, जबकि परिवार को ले के आते हैं औसतन 10-12 साल बाद? समझ रहे हैं ना आप कि इससे गणना में लिंगानुपात पे कितना असर पड़ता है हमारे? अगर गैर-हरयाणवी भाईयों को अपने यहां रोजगार-आसरा देने का हरयाणवी को यह सिला मिलेगा और वो भी सीधा पीएम के मुंह से तो यह एक हरयाणवी के लिए बहुत ही चिंता का विषय है| स्थानीय हरयाणवी का लिंगानुपात कम हो सकता है परन्तु इतना भी कम नहीं कि आप यह कहवें कि "वहाँ तो सामाजिक संतुलन ही बिगड़ गया है|"
और एक बात, मैंने हरयाणा के ग्रामीण बनाम शहरी लिंगानुपात के आंकड़े अध्ययन किये हैं, और पाया है कि इसमें शहरी लिंगानुपात की हालत ज्यादा खस्ता है| इससे मेरे पक्ष को और मजबूती मिलती है कि मूल-हरयाणवी के यहां औसतन लिंगानुपात इतना भी खराब नहीं हो सकता जितना कि इन ऊपर बताई सब वजहों के एक साथ मिलने से हो जाता है|
तीसरा अगर आप हरयाणा का माहौल इस बात पे खराब बता रहे हैं कि यहाँ तो बहुएं खरीद के लाई जा रही हैं, तो सुनिए| हरयाणवी कभी नहीं चाहता कि वो बहु खरीद के लाये| यह तो जहाँ से लाई जा रही हैं वहाँ के राज्यों में सदियों से प्रथा ही ऐसी है कि लड़कियों को जवान होते ही बेच देते हैं| पहले वो कोठों-वेश्यावृति हेतु हैदराबाद-मुंबई-दुबई आदि स्थानों पर जाया करती थी अब उनमें से कुछ हरयाणा आती हैं| वहाँ यह पता नहीं कितनों के बिस्तरों की शोभा बनती थी और जवानी ढलते ही जिंदगी नरक; हरयाणा में आती हैं तो किसी के घर की इज्जत-रौनक बनती हैं| उद्देश्य भले ही कुछ भी हो, परन्तु
हरयाणवी इसके जरिये भी कितनी भारत की बेटियों को वेश्यावृति से बचा के अपने घरों की रौनक बना रहे हैं, आपको अंदाजा भी है इसका?
क्या आपने कभी हरयाणवियों से बात करके देखी इस मुद्दे पे? मैंने देखी है| मैंने उनसे सवाल किये हैं कि आप खरीद के क्यों लाते हो, ब्याह के क्यों नहीं लाते? तो बताते हैं कि भाई हम तो ब्याह की ही पेशकश रखते हैं, परन्तु जिसने बेटी बड़ी ही इसलिए की हो कि अंत में जा के बेचनी है तो उनको तो पैसे से मतलब| इसलिए हरयाणवी खरीददारी नहीं चाहता, अपितु वो पैसा चाहते हैं जो बेटी को ब्याहने से ज्यादा बेचने के इच्छुक होते हैं|
अगर आपको जागरूकता संदेश देना है तो
अगली 'मन की बात' में 'बंगाल-बिहार-असम' के लोगों को संदेश देवें कि वो हरयाणा, पंजाब या पश्चिमी भारत से उनकी बेटियों को ले जाने आने वालों को बेटियां बेचें नहीं, अपितु ब्याहवें; फिर देखिएगा आप खुद ही कि जो अगर एक भी हरयाणवी, पंजाबी या पश्चिमी भारतीय बहु खरीदने की पेशकश धरे तो|
अब जरा बाकी के भारत से हरयाणा में औरत की स्थिति बेहतर कैसे इसपे भी एक नजर डाल लीजिये:
- बाकी के भारत की भांति हरयाणा में विधवा को उसके दिवंगत पति की जायदाद से बेदखल कर विधवा आश्रमों में नहीं सड़ाया जाता माननीय पीएम, महोदय| यहाँ सदियों से विधवा औरत अपनी मर्जी की मालकिन है, चाहे तो दूसरी शादी करे नहीं तो अपने दिवंगत पति की प्रॉपर्टी-जायदाद पर स्वाभिमान के साथ बसे| आपको चाहिए तो हरयाणा के किसी भी नगरी (हिंदी में गाँव) में निकल के फिर से देख आवें (फिर से शब्द इसलिए कि आपने हरयाणा के भाजपा प्रभारी होने के काल में हरयाणा की वैसे ही बहुत ख़ाक छानी हुई है, फिर भी अगर यह तथ्य आपकी नजरों से बचा रह गया हो तो इसलिए फिर से देख आवें), एक-एक नगरी में दर्जनों विधवा ऐसी मिलेंगी, जो अपनी मर्जी से दूसरा विवाह ना करते हुए, अपने दिवंगतों की जमीन-जायदाद पर बड़े ही स्वाभिमान से जीवनयापन कर रही हैं|
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दक्षिण-पूर्वी भारत में दलित-पिछड़े समाज की औरतों को देवदासी बनाना व् कुछ राज्यों में तो आज भी उनको वक्ष-स्थल ढांपने की इजाजत ना होना (वो भी बाकायदा कानून बनने के बावजूद भी); मध्य व् दक्षिणी भारत में सतीप्रथा, हिमाचल-उत्तराखंड में द्रोपदी की भांति बहु-पति प्रथा (इसमें एक औरत के 2 से 6 तक पति होते हैं); उड़ीसा-झारखंड-छत्तीसगढ़ में प्रथमव्या व्रजस्ला होने पर लड़की का मंदिर में पुजारियों द्वारा सामूहिक भोग, पारिवारिक वेश्यावृति आदि-आदि; यह हरयाणा को छोड़ के बाकी के भारत की ऐसी भयावह तस्वीरें हैं कि जिनपे निष्पक्ष मन से अवलोकन करेंगे तो रूह काँप जाएगी आपकी|
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आपको पता है पीएम साहब, जिस तलाक के बाद औरत के गुजारा-भत्ता बारे भारत का सविंधान अभी 2014 में कानून बनाया है, इस पर हरयाणवी समाज में 'नौ मण अनाज और दो जोड़ी जूती' कानून के तहत सदियों से तलाकशुदा औरत को पिछले पति से गुजारा-भत्ता मिलता आया है?
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हरयाणवी औरतों ने युद्ध, कला, खेल, विज्ञान और शिक्षा में जो कीर्तिमान गाड़े हैं उसके लिए एक बार अपने अधिकारीयों की बजाये, पूरे विश्व से पूछ लेवेंगे तो भली-भांति पता चल जायेगा कि कितनी बेहतर और स्वछंद स्थिति है औरत की हरयाणा में बाकि के भारत की अपेक्षा|
मतलब क्या मीडिया, क्या पीएम और क्या खुद हरयाणा के सीएम, सबने अपने ख्याली एक्सपेरिमेंट की भूमि बना के रख छोड़ा है हरयाणा को| इनके लिए हरयाणा ना हो गया रोते हुए बालक को चुप कराने वाला
'भय का भूत' हो गया|
विशेष: हालाँकि मैं खुद भी इस लेख को पीएम तक पहुँचाने की कोशिश में हूँ, फिर भी इसको उन तक पहुंचाने वाले मित्र का आभारी होऊंगा|